कर डालिए जिंदगी का मोबाइल रीचार्ज

आज की भागमभाग वाली जिंदगी में इंसान सबकुछ होते हुए भी कभीकभी नितांत अकेलापन महसूस करता है. चिंता, अवसाद व तनाव से घिर कर वह अनेक प्रकार की बीमारियों से जकड़ा जा रहा है. हर समय मोबाइल पर बतियाना या एसएमएस करना दिनचर्या का अभिन्न अंग बनता जा रहा है. ऐसे में यदि मोबाइल के सिमकार्ड की वैलिडिटी खत्म हो जाए तो व्यक्ति खुद को असहाय व सब से कटा हुआ महसूस करता है. सिमकार्ड से कई गुना अधिक जीवन का मोल है, इसलिए जिंदगी की वैलिडिटी की चिंता ज्यादा जरूरी है. जिंदगी की वैलिडिटी बढ़ती रहे, इस के लिए हमें स्वयं ही कुछ प्रयास करने पड़ेंगे. मसलन :

गमों को कहें अलविदा

समाजसुधारक दयानंद का कहना है कि इंसान खुद ही अपनी जिंदगी के सुखदुख का जिम्मेदार होता है तो क्यों न हर समय गमों या दुख के समय को याद करने के बजाय सुख वाले समय को याद करें. इस से मनोबल बढ़ेगा, मन हलका रहेगा. यदि कोई समस्या आए भी तो उस का उचित हल ढूंढ़ें, न कि उस से चिंतित हो कर मन को गमगीन बना लें. यदि मन हमेशा पिछली बातों, दुखों या गमों से घिरा रहेगा तो वह आने वाली खुशियों का स्वागत नहीं कर पाएगा. सो, कंप्यूटर की भाषा में गमों को सदैव डिलीट करते चलें और खुशियों को सेव. यदि अच्छा समय सदैव नहीं रहता तो बुरा समय भी बीत जाएगा.

दोस्ती को डाउनलोड करें

दोस्ती ऐसा अचूक मंत्र है जिस से समस्याएं कभीकभी चुटकी बजाते हल हो जाती हैं. सो, ऐसे दोस्तों की संख्या बढ़ाएं जो सुखदुख में आप के भागीदार बन सकें. दोस्ती से प्यार बढ़ता है तो जीवन में बहार बनी रहती है. प्यार, उत्साह, उमंग तीनों ही प्रवृत्तियां दोस्ती में ही पनपती हैं. शुष्क व नीरस जीवन भारी लगने लगता है. सो, अच्छे व सच्चे मित्रों की संख्या बढ़ाएं, जो सही माने में आप के हितैषी हों.

रिश्तों को रीचार्ज करते रहें

रिश्ता चाहे दोस्ती का हो या पारिवारिक, उस को प्यार से सींचना होता है. यदि रिश्तों में स्वार्थभाव हो तो उन के चरमराने में देर नहीं लगती. इसलिए समयसमय पर अपने रिश्तों को रीचार्ज करते रहें ताकि मन में आई दूरियां व गलतफहमियां दूर होती रहें. रिश्तों में यह उम्मीद कतई न करें कि दूसरा ही पहल करे. स्वयं भी पहल करें. प्यार को सीमित करने से घुटन होने लगती है.

भाषा पर नियंत्रण रखें

बातचीत करते समय शब्दों का प्रयोग सोचसम?ा कर करें. हो सके तो मीठे वचन बोलें. रहीम ने क्या खूब कहा है-

रहिमन मीठे वचन ते

सुख उपजत चहुं ओर

वशीकरण एक मंत्र है

तज दे वचन कठोर.

कहा भी गया है कि तलवार का घाव भर जाता है, शब्दों का नहीं. कड़वी बात भी यदि शालीनता से बोली जाए तो बुरी नहीं लगती. सो, वाणी में सदैव शीतलता व मधुरता बनाए रखें. आप का मन भी खुश रहेगा व सुनने वाले पर भी अच्छा प्रभाव पड़ेगा.

कबीरदास ने कहा भी है-

ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय,

औरन को शीतल करे आपहुं शीतल होय.

मीठी व मधुर भाषा में बात करने से बिगड़े काम भी कभीकभी आसानी से बन जाते हैं.

मुसकराहट को करें इनबौक्स

हंसनेमुसकराने की क्रिया इंसान के ही पास है तो क्यों न मुसकराने की आदत डालें. यदि आप मुसकराते हैं तो सामने वाला भी प्रत्युत्तर में मुसकराएगा. परंतु रोते हुए या मायूस चेहरे से सभी दूर भागते हैं, कोई उस का साथ नहीं देता. सभी को मुसकराता चेहरा ही अच्छा लगता है तो क्यों न हंसने व दूसरों को हंसाने की आदत अपनाएं.

नफरत व दुश्मनी को करें इरेज

जहां तक हो सके किसी के लिए भी मन में नफरत व दुश्मनी की भावना न पनपने दें. इस भावना से दूसरे का कम, आप का मन ज्यादा दूषित होगा. मन विकारग्रस्त होगा तो नकारात्मकता आएगी, जिस से आप का तन भी प्रभावित होगा. आप की कार्यक्षमता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा और फिर नफरत से नफरत को कभी मिटाया नहीं जा सकता. उस को मिटाने के लिए प्यार के शस्त्र की जरूरत पड़ती है. अगर किसी से दोस्ती नहीं रख सकते तो कबीर की राह पर चल कर किसी से दुश्मनी भी न रखें-

कबीरा खड़ा बाजार में मांगे सब की खैर

न काहू से दोस्ती न काहू से बैर.

प्यार की करें इनकमिंग

अपने मन में प्यार की भावना विकसित करें, फिर देखें कैसे आप का तनमन प्रफुल्लित रहता है और फिर, प्यार की भाषा तो हर कोई सम?ाता है.

कबीरदास के शब्दों में-

पोथी पढ़पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय

ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय.

गुस्से या क्रोध को रखें होल्ड

प्लूटार्क ने कहा है, ‘क्रोध सम?ादारी को घर से बाहर निकाल कर अंदर से दरवाजा लौक कर लेता है.’ क्रोध में मनुष्य सोचनेसम?ाने की शक्ति खो देता है. जिस किसी पर क्रोध आए, उस के सामने से हट जाएं, किसी काम में लग जाएं या एक गिलास पानी पिएं. क्रोध को होल्ड करने के लिए जेफरसन ने कहा है, ‘यदि आप क्रोध में हैं तो बोलने से पूर्व 10 तक गिनें. यदि अत्यधिक क्रोधित हैं तो 100 तक गिनें. साथ ही, अपने मन में यह संकल्प दोहराएं कि मु?ो शांत रहना है, क्रोध नहीं करना है. निश्चित तौर से आप को चमत्कारी परिणाम देखने को मिलेंगे.’ सेनेका ने कहा है, ‘क्रोध की सर्वोत्तम औषधि है विलंब.’

महत्त्वाकांक्षी बनें

सुखी व संतुलित जीवन जीने के लिए अपने जीवन में छोटेछोटे लक्ष्य तय करें, फिर इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए महत्त्वाकांक्षी बनें. एक बार जो भी मन में ठान लें, उसे पूरा करने में जीजान से जुट जाएं. फिर चाहे अपना खुद का घर खरीदना हो या कार. जरूरत है प्रबल इच्छा की. यह प्रबल इच्छा ही महत्त्वाकांक्षा बन जाती है. हां, महत्त्वाकांक्षी बनने से पहले समय व परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए अपना आकलन अवश्य कर लें. परिस्थिति एवं योग्यता के विपरीत महत्त्वाकांक्षा रखने वाला मनुष्य हमेशा दुखी रहता है तो कर ही डालिए जल्दी से अपनी जिंदगी का मोबाइल रीचार्ज.

परिवर्तनों को कहें वैलकम

परिवर्तन प्रकृति का नियम है. यदि परिवर्तन न हों तो जिंदगी नीरस हो जाएगी. परिवर्तनों के अनुरूप चलने वाले व्यक्ति जीवन में दुखी नहीं रहते. जो इंसान परिवर्तनों को खुशीखुशी स्वीकार कर लेता है, वह कई प्रकार के सुखों को अपने साथ जोड़ लेता है. परिवर्तन को स्वीकारने वाला व्यक्ति जिंदगी की दौड़ में अपेक्षाकृत अधिक आगे बढ़ता है.

वुडन फ्लोरिंग : हर कदम का हमकदम

फ्लोरिंग आप के घर को ओवरआल लुक देती है. इन दिनों वुडन फ्लोरिंग ज्यादा चलन में है. यह डिफरैंट पैटर्न में मार्केट में उपलब्ध है. यदि आप अपने घर को अलग लुक देना चाहती हैं, तो वुडन फ्लोरिंग करवाएं.

कर्वड डिजाइन

इस पैटर्न में लकड़ी पर डिजाइनर नक्काशी होती है, जो बेहद खूबसूरत कला है. यह फ्लोरिंग लंबे समय तक आप के घर की शोभा बढ़ाएगी. इस लकड़ी का रंग सूरज की रोशनी में और भी रोशन हो जाता है.

परक्युट पैटर्न

फ्लोरिंग का यह पैटर्न आप के रूम को एक नया और वार्म लुक देगा. बौक्स डिजाइंड यह पैटर्न चैस बोर्ड की तरह लाइट और ब्राइट कलर कौंबिनेशन में होता है.

हीरिंगबोन पैटर्न

यह पैटर्न जिगजैग डिजाइन में मिलेगा. यह घर को एक रैंडम लुक देता है. लकड़ी का क्रीमिश कलर दीवारों के कलर पर भी खूब फबता है.

पेरिमीटर बौर्डर पैटर्न

यह पैटर्न आप के फ्लोर के बौर्डर को आउटलाइन करता है. इस से कमरे को फौर्मल लुक मिलता है. अगर बिना डिजाइन की फ्लोरिंग चाहती हैं, तो इस वुडन पैटर्न का इस्तेमाल कर सकती हैं.

लगाने में आसान

आजकल वुडन फ्लोरिंग ट्रैंड में है. ज्यादातर लोग इसे पसंद कर रहे हैं. अहम बात यह है कि वुडन फ्लोरिंग अपनी इंसुलेटिंग क्षमता के कारण लंबे समय तक खराब नहीं होती. इस की सब से खास बात यह है कि इसे मात्र 3-4 घंटों में ही लगाया जा सकता है, क्योंकि तख्तों को एकदूसरे के साथ एक विशेष बौंडिंग के साथ जोड़ते हुए इंटरलौक किया जाता है. इसे लगाना आसान है. इसे लगाने या लौक करने के लिए ‘टंग ऐंड गू्रव’ तकनीक या किसी चिपकाने वाले पदार्थ अथवा कीलों का प्रयोग करते हैं.

जब बजट हो कम

अगर आप को लगता है कि रियल वुडन फ्लोरिंग आप के बजट में फिट नहीं बैठती, तो इस बात को ले कर अफसोस करने की जरूरत नहीं है कि आप अपने घर को खूबसूरत लुक नहीं दे पाएंगी. आधुनिक तकनीक की वजह से आज बाजार में ऐसी फ्लोरिंग उपलब्ध हैं, जो वुडन न होने के बावजूद उस जैसी लगती हैं. इसे लगा कर आप कम खर्च में हार्डवुड जैसा ऐलिगैंट लुक डैकोर में ला पाएंगी.

बेहतर विकल्प

विनायल प्लैंक फ्लोरिंग, पौली विनायल क्लोराइड (पीवीसी) से बनी होती है, जो बहुत उच्च क्वालिटी का प्लास्टिक होता है, जिस के पीछे चिपकाने वाला पदार्थ लगा कर फ्लोर पर चिपका दिया जाता है. देखने में बिलकुल हार्डवुड जैसी लगने के साथसाथ यह वाटरपू्रफ भी होती है और इस पर दीमक भी नहीं लगती. जो लोग केवल लिविंग या बैडरूम में ही नहीं, बल्कि अपने बाथरूम को भी वुडन टच देना चाहते हैं, उन के लिए यह बेहतर विकल्प है.

देखभाल

फर्श पर जमी धूलमिट्टी को साफ और सूखे कपड़े से ही पोंछें. हर 5-6 साल के अंतराल पर फर्श को पौलिश कराएं. अगर कमरे के फर्श पर धूप आती है, तो वहां परदे का इस्तेमाल करें, क्योंकि धूप से लकड़ी का रंग फीका पड़ सकता है. फर्श पर पानी इकट्ठा न रहने दें, क्योंकि इस से लकड़ी खराब हो सकती है.

क्या करें

– सभी फर्नीचर जो उस कमरे में हों उन के नुकीले सिरों के नीचे कौटनबौल या फर्नीचर पैड लगा दें.

– दरवाजे पर डोरमेट का उपयोग करें व इन की नियमित सफाई जरूरी है.

– वैक्यूम क्लीनर का उपयोग सौफ्ट ब्रश के साथ करें.

– अगर घर पर पेट्स हों, तो यह ध्यान रखें कि वे नाखूनों से फ्लोरिंग को न खुरचें.

– सही गुणवत्ता वाले फ्लोरिंग क्लीनर का उपयोग करें.

– फ्लोर की सफाई के लिए हमेशा अच्छे पैड का उपयोग करें.

क्या न करें

– भारी व ऊंची हील की सैंडिल, जूतों का उपयोग कम से कम करें.

– अमोनिया या अन्य किसी ऐसिड के प्रयोग से बचें.

– पानी का उपयोग फ्लोरिंग को धोने में न करें.

– भारी फर्नीचर को फ्लोरिंग पर घसीटें नहीं.

Winter Special: बुनाई करते समय ध्यान रखें ये 7 टिप्स

मौसम की फिज़ा में अब ठंडक घुलने लगी है  कुछ समय पूर्व तक इस मौसम में महिलाओं के हाथ में ऊन और सलाइयां ही दिखतीं थीं. आजकल भले ही हाथ से बने स्वेटरों की अपेक्षा रेडीमेड स्वेटर का चलन अधिक है परन्तु स्वेटर बुनने की शौकीन महिलाओं के हाथ आज भी खुद को बुनाई करने से रोक नहीं पाते. रेडीमेड की अपेक्षा हाथ से बने स्वेटर अधिक गर्म और सुंदर होते हैं साथ ही इनमें जो अपनत्व और प्यार का भाव होता है वह रेडीमेड स्वेटर में कदापि नहीं मिलता परन्तु कई बार स्वेटर बनाने के बाद ढीला पड़ जाता है अथवा फिट नहीं हो पाता या फिर धुलने के बाद रोएं छोड़ देता है. इन्हीं छोटी छोटी समस्याओं से मुक्ति के लिए आज हम आपको स्वेटर बनाने के लिए कुछ टिप्स बता रहे हैं-

1. ऊन

लोकल या सस्ती ऊन की अपेक्षा स्वेटर बनाने के लिए सदैव वर्धमान या ओसवाल कम्पनी की 3 प्लाई की उत्तम क्वालिटी की ऊन ही  खरीदें. यदि आप छोटे बच्चों के लिए स्वेटर बना रही हैं तो सामान्य की अपेक्षा छोटे बच्चों के लिए विशेष रूप से बनाई जाने वाली बिना रोएं की बेबी वूल का ही प्रयोग करें.

2. सलाई

ऊन के साथ साथ सलाई भी अच्छी क्वालिटी की होना अत्यंत आवश्यक है. सस्ती सलाई अक्सर ऊन पर अपना रंग छोड़ देती है जिससे कई बार स्वेटर का वास्तविक रंग ही खराब हो जाता है. मोटी ऊन के लिए 5-6 नम्बर की मोटी और पतली ऊन के लिए 10-12 नम्बर की पतली सलाई लेना उपयुक्त रहता है

3. फंदे

मोटी प्लाई की ऊन में कम फंदे और पतली ऊन में अधिक फंदे डालें. फंदे दोहरी ऊन से टाइट करके डालें, फंदे ढीले रहने पर स्वेटर बॉर्डर से ढीला हो जाने की संभावना रहती है.

4. बॉर्डर

आम तौर पर एक उल्टा और एक सीधे फंदे से बॉर्डर बनाया जाता है. यदि आप स्वेटर 10 न की सलाई से बना रहीं हैं तो बॉर्डर 2 न अधिक अर्थात 12 न की सलाई से बनाएं इससे स्वेटर की नीचे और बाहों से फिटिंग सही रहती है.

5. बुनाई

आप स्वेटर में जो भी डिजाइन डालना चाहतीं हैं उसे पहले एक नमूने में डालकर देख लें ताकि स्वेटर बनाते समय आपको कोई कन्फ्यूजन न रहे. छोटे बच्चों के स्वेटर में बहुत बड़ी और दो रंगों की डिजाइन की अपेक्षा सेल्फ  में ही डिजाइन डालें क्योंकि 2-3 रंग की डिजाइन में स्वेटर के उल्टी तरफ  ऊन निकली रहती है जो बच्चों के हाथ में उलझ जाती है. हर हाथ की बुनाई में फर्क होता है इसलिए स्वेटर को एक ही हाथ से बुनना चाहिए. हल्के रंग के स्वेटर को बुनते समय बॉल्स को एक पॉलीथिन में डालकर रखें इससे स्वेटर गन्दा नहीं होगा.

6. गला

आमतौर पर स्वेटरों में वी, गोल, चौकोर और कॉलर वाले गले बनाये जाते हैं. गोल गले को बाजार में गोल गले के लिए विशेष रूप से बनाई जाने वाली  चार सलाइयों से ही बनाएं और बंद करते समय फंदों को सुई की मदद से बंद करें. छोटे बच्चों के लिए किसी विशेष गले का स्वेटर बनाने के स्थान पर सामने से खुला स्वेटर बनाएं जिससे उन्हें पहनाने में आसानी रहे.

7. सिलाई

पूरा स्वेटर बन जाने के बाद स्वेटर की सिलाई की जाती है. सिलाई स्वेटर के रंग की ऊन से ही करें. यदि ऊन बिल्कुल ही समाप्त हो गयी है तो आप सेम रंग के धागे का भी प्रयोग कर सकतीं हैं.  सिलाई करते समय सभी गांठो को सुई की मदद से स्वेटर के पीछे की तरफ कर दें साथ ही ऊन के लंबे धागों को भी आसानी से काट दे.

11 Tips: वार्डरोब रखें व्यवस्थित ऐसे

मैं क्या पहनूं कुछ मिल ही नहीं रहा पहनने को… मेरी वह वाली ड्रैस कहां गई?

क्या वार्डरोब के आगे खड़ी हो कर आप भी अकसर यह सवाल खुद से करती हैं? यदि हां, तो आप को जरूरत है अपने वार्डरोब को मैनेज करने की. वैसे तो आप हर महीने यह काम करती ही होंगी, लेकिन यदि वार्डरोब को सलीके से मैनेज किया जाए तो चीजें आसानी से और जल्दी मिल जाती हैं. आइए, हम आप को वार्डरोब मैनेजमैंट से जुड़े कुछ टिप्स बताते हैं:

1.  सब से पहले वार्डरोब में रखा सारा सामान बाहर निकालें. फिर वार्डरोब को अच्छी तरह साफ करें. उस के बाद हर कपड़े को अच्छी तरह तह लगा कर वार्डरोब में रखें. यदि कपड़ों के अलावा भी दूसरा सामान वार्डरोब में रखती हैं, तो उसे भी साफ कर के ही रखें.

2. कपड़ों को वार्डरोब में ठूंसें नहीं. यह आप को भी पता होगा कि आप के वार्डरोब में कितनी स्पेस है? स्पेस के हिसाब से ही वार्डरोब में कपड़े रखें. कपड़ों की अच्छी तरह तह लगा कर एक के ऊपर एक रखें. लेकिन यह ध्यान रहे कि कपड़ों का ढेर ज्यादा न हो. इस के लिए थोड़ीथोड़ी दूरी पर कपड़ों की गड्डी बना कर रखें.

3. जरूरी नहीं कि हर कपड़े को तह लगा कर वार्डरोब में रखा जाए. कुछ कपड़ों को हैंगर में भी टांगा जा सकता है. खासतौर पर कोट, ब्लेजर, साडि़यां, ईवनिंग ड्रैसेज आदि को हैंगर में ही टांगें, क्योंकि इन्हें तह लगा कर रखने पर इन में क्रीज बन जाती हैं. हैंगर में टांगने पर ऐसा नहीं होता.

4. बाजार में वुडन, स्टील, प्लास्टिक आदि के अलगअलग कपड़ों के लिए अलगअलग हैंगर उपलब्ध हैं. मसलन, कोट को टांगने के लिए चौड़े हैंगर मिलते हैं, तो साड़ी टांगने के हैंगर पतले होते हैं. शर्ट और ट्राउजर्स के लिए क्लिप वाले हैंगर बाजार में उपलब्ध हैं.

5. यदि आप किसी ड्रैस को लंबे समय से नहीं पहन रहीं या फिर अब उसे आप कभी नहीं पहनना चाहतीं, तो ऐसे कपड़ों को वार्डरोब में रख कर उसे भरें नहीं, बल्कि उन्हें हटा दें ताकि नए कपड़ों के लिए वार्डरोब में जगह बन सके.

6. यदि आप के वार्डरोब में कपड़ों के साथ ही जूते रखने की भी जगह है, तो जूतों को खुला न रखें. उन्हें कैनवास के डब्बे के अंदर रखें. इस से कपड़ों से जूतों की गंध नहीं आएगी.

7. यदि कपड़ों को तह लगा कर सैल्फ में रखना है, तो एकजैसे कपड़ों को एकसाथ रखें यानी बौटम के साथ बौटम और टौप के साथ टौप रखें. इस से कपड़ों को खोजने में आसानी होगी.

8. जिस ड्रैस या आइटम का आप सब से अधिक इस्तेमाल करती हैं उसे वार्डरोब में ऐसी जगह रखें जहां से आसानी से निकाल सकें यानी उसे निकालते समय अन्य सामान डिस्टर्ब न हो.

9. यदि आप के वार्डरोब में ड्रैसेज और जूतों के अलावा बैडलाइन और तौलिए भी रखें हैं, तो उन्हें तह लगा कर रखें. इस से उन में सिलवटें नहीं पड़ेंगी और जगह की भी बचत होगी.

10. यदि आप के वार्डरोब में लाइट की व्यवस्था हो सके तो अच्छा होगा, क्योंकि रोशनी होने से आप को सामान आसानी से मिल जाएगा और दूसरा सामान डिस्टर्ब भी नहीं होगा.

11. यदि आप के वार्डरोब में बहुत स्पेस नहीं है, तो आप उस में हुक्स अटैच करवा सकती हैं. इस से कुछ कपड़ों को, जिन में सिलवटें नहीं पड़तीं उन्हें उन पर टांग सकती हैं. 

रोशनी के फेस्टिवल में घोलें सपनों के रंग

आप जब भी किसी दोस्त या रिश्तेदार के घर में प्रवेश करते हैं, तो सब से पहले आप की नजर उस कमरे की दीवारों पर पड़ती है. और अगर दीवारों का रंग अच्छा लगता है तो उसे ऐप्रिशिएट भी करते हैं.

दरअसल, रंग हमारी आंखों को सब से पहले प्रभावित करते हैं, इसलिए घर में रंगरोगन करवाते वक्त सही रंगों का चुनाव बहुत जरूरी होता है. रंग न सिर्फ व्यक्तित्व को उजागर करते हैं, घर में एक सुकून भरा वातावरण भी बनाते हैं. दिन भर की भागदौड़ के बाद व्यक्ति जब घर लौटता है, तो उसे पूरी तरह से रिलैक्स होना जरूरी होता है ताकि वह अगले दिन के लिए अपनेआप को तैयार कर सके. ऐसे में अगर घर की दीवारों का रंग अच्छा और सुकून देने वाला होता है तो उस से बहुत चैन और आराम मिलता है.

सफेद रंग का क्रेज

मुंबई की नाबार प्रोजैक्ट्स की इंटीरियर डिजाइनर मंजूषा नाबार कहती हैं कि मैं पिछले 24 सालों से इस क्षेत्र में हूं. पहले 90 के दशक में अधिकतर लोग औफ व्हाइट या सफेद रंग ही पसंद करते थे, लेकिन धीरेधीरे लोगों का टेस्ट बदला. उन का ध्यान सफेद से हट कर ब्राइट कलर्स पर ध्यान गया.

रंगों के ट्रैंड में बदलाव पेंट की कंपनियों की वजह से आता है. बड़ीबड़ी कंपनियां हर बार नएनए रंग और उन्हें प्रयोग करने के तरीके बाजार में उतारती हैं, जिन्हें देख कर उपभोक्ता उत्साहित हो कर वैसे ही रंग अपने कमरों में करवाने लगते हैं. लेकिन सफेद रंग का के्रज हमेशा रहा है और रहेगा भी. समयसमय पर कुछ फेरबदल अवश्य होते हैं पर सीलिंग पर सफेद रंग हमेशा सही रहता है.

सफेद रंग से घर बड़ा और खुला दिखता है क्योंकि इस रंग से रोशनी रिफ्लैक्ट होती है. गहरे रंग से तो रोशनी के साथसाथ जगह भी कम दिखती है.

सभी रंगों का महत्त्व

आमतौर पर घरों में रंग उस के क्षेत्र के अनुसार कराए जाते हैं. अगर मुंबई और दिल्ली की हम तुलना करें तो मुंबई के मौसम में नमी अधिक होती है, इसलिए वहां थोड़ा डार्क कलर चलता है, जबकि दिल्ली का मौसम ऐसा नहीं रहता, इसलिए वहां हलके रंग अधिक पसंद किए जाते हैं. लेकिन सभी रंगों का अपना महत्त्व तो होता ही है.

आप अपने घर में रंग करवाते वक्त कुछ बातों पर अवश्य ध्यान दें:

– गहरे रंग डिप्रैशन लाते हैं, इसलिए हमेशा लाइट औरेंज, ग्रीन, सफेद आदि रंगों का प्रयोग करें.

– नई तकनीक के अंतर्गत रिफाइंडमैंट टैक्सचर, वालपेपर, फैब्रिक पेंट, ग्लौसी पेंट और मैट फिनिश आदि अधिक लगाना अच्छा होता है.

– बच्चों के कमरे में प्राइमरी रैड, ग्रीन, यलो और ब्लू कलर अच्छा लगता है, तो बुजुर्गों के कमरे के लिए लाइट पिंक, लाइट ब्लू व लाइट औरेंज कलर अच्छे होते हैं, क्योंकि ये रंग रिलैक्सेशन का एहसास कराते हैं. यंगस्टर्स और नवविवाहितों के लिए वाइब्रैंट कलर अधिक अच्छे रहते हैं. इन में रैड, ग्रीन व औरैंज कलर काफी लोकप्रिय हैं, क्योंकि वे ऐक्टिव होने का एहसास कराते हैं.

रंगों का चयन

रंगों का चयन तो व्यक्ति के व्यक्तित्व, प्रोफैशन और स्थिति वगैरह को ध्यान में रख कर करना चाहिए, क्योंकि रंगों का व्यक्ति के जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है.

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कौरपोरेट क्षेत्र के अधिकतर लोग लाइट कलर अधिक पसंद करते हैं तो अध्यापक वर्ग अधिकतर लोग यलो व ग्रीन कलर पसंद करते हैं. व्यवसायी अपने स्टेटस के हिसाब से रंग चुनते हैं, तो अधिकतर फिल्मी लोग सफेद रंग ही पसंद करते हैं. बुद्धिजीवी लोग अधिकतर ‘अर्थ कलर’ करवाते हैं.

रंगों की पसंदनापसंद के अलावा जरूरी बात यह है कि घर को घर के जैसा ही रहने देना चाहिए. उसे आर्टिफिशियल नहीं बनाना चाहिए. घर को हमेशा वैलकमिंग होना चाहिए.

हर रंग कुछ कहता है

रंगों ने हमारी सोच, भावनाओं और बौद्धिकता को विकसित करने में अहम भूमिका निभाई है. अत्यधिक आकर्षक, आसानी से नजर आने वाले और विविधता भरे रंगों में कुछ खास प्रकार की ऊर्जा उत्सर्जित करने की ताकत होती है. ये रंग हमारे दिलोदिमाग को प्रभावित कर सकते हैं. यदि इन्हें सही अनुपात में शामिल किया जाए, तो कुछ खास तरह के रंग और उन के मिश्रित रूप काफी जीवंतता ला सकते हैं.

सजावट की अलगअलग चीजों जैसे पेंटिंग, लैंप, फूलदान, वालपेपर, फूल, पौधे, लाइट, कलाकृतियां, मूर्तियां, फर्नीचर आदि को शामिल कर के विभिन्न रंगों को शामिल किया जा सकता है. इस के साथ ही घर की खूबसूरती को बढ़ाने वाले सजावटी सामान, मोमबत्तियों से ले कर सौफ्ट फर्निशिंग जैसे परदे, ड्रैप, साजोसामान, कुशन, ट्यूब पिलो, बैड और बाथरूम लिनेन, डाइनिंग टेबल सैट, मैट और रनर से भी रंगों को जोड़ा जा सकता है. साथ ही किचन वेयर जैसे सर्व वेयर, क्रौकरी, बेक वेयर, मग, ट्रे आदि भी रंगों को शामिल करने का अच्छा तरीका हो सकते हैं. पूरी दुनिया कला के बेहतरीन नमूनों से भरी है, जिन्हें घर में सजा कर उसे बहुआयामी, सुंदर और आकर्षक बनाया जा सकता है.

ट्रैंडी शेड्स, पैटर्न और प्रिंट में उपलब्ध ये इंटीरियर फैब्रिक वेयर घर की सजावट में बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं और वह भी किफायती दाम में और बिना ज्यादा देखभाल के.

कला के रंग थोड़े पेचीदा होते हैं, इसलिए सही चीज का और सही मात्रा में चुनाव करें. ऐक्सपर्ट की राय भी ली जा सकती है. रंग को समझना कि उस के लिए क्या सही और क्या गलत है, उस की ऊर्जा और उस का प्रभाव क्या है, ये सारी चीजें एक नया बालगेम हैं. ये रंग आप के व्यक्तित्व को समझने में मदद करेंगे.

लाल

यह गतिशीलता, उत्साह और दृढ़संकल्प का रंग है. यह रंग बहुत ही तेज है और आधुनिक संदर्भों में इस का अर्थ शक्तिशाली और प्रभावी हो गया है. यह रंग तानाशाही, तुरंत क्रोधित हो जाने वाले और निडर होने का प्रतीक है. लाल रंग जितना सुंदर होता है इसे पसंद करने वाले भी उतने ही उत्साही, आत्मविश्वासी और मुखर होते हैं.

नीला

यह रंग विश्वास, ईमानदारी, निष्ठा, सुव्यवस्था, शांति और धैर्य का प्रतीक है. जिन लोगों को नीला रंग पसंद आता है, वे दयालु, आशावादी, अनुमानित, अकेले और माफ न करने वाले होते हैं.

हरा

जिन लोगों को हरा रंग पसंद आता है उन में दिल और दिमाग का सही संतुलन होता है. वे प्रकृति प्रेमी, संवेदनशील, अनुकरणीय, व्यवहारकुशल, परिवार के लिए समर्पित होते हैं.

पीला

पीला भी सकारात्मकता और नकारात्मकता का मिश्रित रंग होता है. यह रंग आशावादी, उत्साह, बुद्धिमत्ता और तार्किकता को दर्शाता है. साथ ही यह व्यक्ति को विश्लेषी, डरपोक और अहंकारी बनाता है.

सफेद

यह पूर्णता का रंग है, जो प्रेरणा और गहराई प्रदान करता है. स्वतंत्रता और पवित्रता का प्रतीक माना जाने वाला यह रंग एकता, सद्भाव, समानता और पूर्णता प्रदान करता है.

बैगनी

जो लोग बैगनी रंग पसंद करते हैं वे सौम्य, उत्साही और करिश्माई व्यक्तित्व वाले होते हैं. वे दूसरों पर निर्भर रहने वाले होते हैं, इसलिए रोजमर्रा की जिम्मेदारियों को लेने से बचते हैं. ये लोगों को आसानी से पहचान लेते हैं. इन्हें सत्ता पसंद आती है.

धूसर

यह सब से अधिक ग्लैमरस रंग है, जो निराशाजनक होने के बावजूद सुंदर है, बोरिंग हो कर भी परिपक्व है, उदासीन होने पर भी क्लासिक है. यह शेड स्थिरता एवं शालीन तरंगों के साथ गरिमामयी महिमा का वर्णन करता है. यह अनिश्चितता और अलगाव को भी दर्शाता है.

भूरा

इस रंग को पसंद करने वाले गंभीर, जमीन से जुड़े होने के बावजूद भव्यता की झलक देते हैं. ये लोग सहज, सरल, निर्भर होने के बावजूद कई बार कंजूस और भौतिकवादी होते हैं.

काला

दृढ़, सीमित, सुंदर, आकर्षक और ठंडक देने वाला काला रंग काफी गहरा होता है, जिसे कई लोग अशुभ करार दे सकते हैं. यह रंग रहस्य, नकारात्मकता, निराशा और रूढिवादिता को दर्शाता है.

नारंगी

अत्यंत चटकीला रंग नारंगी मुखर और रोमांच चाहने वालों का रंग है. आशावादी, खुशमिजाज, सहृदयी और स्वीकार्य होने के साथसाथ यह रंग सतही, असामाजिक और उन लोगों का प्रतीक है, जो अत्यधिक अहंकारी होते हैं.

अच्छा इंटीरियर मुनाफे का सौदा

मिठाई की दुकान से ले कर परचून की दुकान तक का इंटीरियर अब पहले से काफी बेहतर होने लगा है. जिन दुकानों में पहले इंटीरियर पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया जाता था वहां भी अब मौडर्न स्टाइल का इंटीरियर होने लगा है. कपड़ों की शौप्स पहले से बदल गई हैं. फर्श हो या छत अब हर जगह का इंटीरियर अलग दिखने लगा है. सैलून के नाम पर पहले केवल महिलाओं के ब्यूटीपार्लर ही सजेधजे नजर आते थे पर अब पुरुषों के सैलूनों में भी इंटीरियर डिजाइन होने लगा है. सोशल मीडिया के जमाने में लोग जहां जाते है वहां के फोटो अपडेट करने की कोशिश करते हैं. अच्छा इंटीरियर मुफ्त में प्रचार का भी काम करता है.

इस बदलाव के क्या कारण हैं? यह जानने के लिए हम ने लखनऊ की रहने वाली मशहूर इंटीरियर डिजाइनर और और्किटैक्ट अनीता श्रीवास्तव से बात की:

शौप्स का मैनेजमैंट अच्छा हो जाता है

अनीता श्रीवास्तव कहती हैं, ‘‘सुंदर और सुव्यवस्थित माहौल हर किसी को पसंद आता है. ऐसा माहौल मन पर सुंदर छाप छोड़ता है. पहले शौप्स में सामान इधरउधर फैला होता था, जिस की वजह से गंदगी दिखती थी, सफाई करना मुश्किल हो जाता था. चूहे और कीडे़मकोडे़ सामान को नुकसान पहुंचाते थे. लाइटिंग की सही व्यवस्था नहीं होती थी. बिजली के उल?ो तारों से दुकानों में दुर्घटना हो जाती थी.

शौर्ट सर्किट से आग लग जाती थी. काम करने वालों को सही तरह से बैठने या खडे़ होने की जगह नहीं मिलती थी. हवा और रोशनी नहीं मिलती थी. अब इंटीरियर डिजाइनर शौप्स की जरूरत और वहां आने वाले कस्टमर की सुविधा को देखते हुए शौप्स को अच्छे से डिजाइन करते हैं. इस से काम करने वाले को सुविधा और कस्टमर को देखने में अच्छा लगता है.’’

बिजली का डिजाइनर सामान

इंटीरियर डिजाइनिंग में पहले बिजली का प्रयोग जरूरत के लिए होता था. आज के दौर में बिजली का ऐसा सामान आ गया है जो जरूरत के साथसाथ सुंदर भी लगता है. जहां जिस तरह की हवा और रोशनी की जरूरत होती है वहां उस का उपयोग किया जाने लगा है. बिजली के ऐसे उपकरण आ गए हैं जो कम वोल्टेज पर चलते हैं. इस से बिजली की बचत होने लगी है. हवा के लिए पंखे के साथसाथ एसी का प्रयोग होने लगा है. पीने का साफ पानी भी बिजली के प्रयोग से मिलता है.

इस का उपाय भी सही जगह होने लगा है. कम और ज्यादा रोशनी का प्रयोग जरूरत के हिसाब से हो इंटीरियर डिजाइन करते समय इस बात का खयाल रखा जाता है. बिजली चली जाए तो इनवर्टर, सोलर ऐनर्जी या जनरेटर का प्रयोग कैसे कमज्यादा हो इस का प्रबंध भी पहले से किया जाने लगा है.

अर्श से फर्श तक सब बदल गया

अनीता श्रीवास्तव कहती हैं, ‘‘आज इंटीरियर के लिए बहुत अच्छाअच्छा मैटीरियल मिलने लगा है, जो सस्ता भी है और अच्छी तरह तैयार हो जाता है, साथ ही हलका भी होता है. भले ही यह लकड़ी जैसा मजबूत और टिकाऊ न हो पर आज इंजीनियरवुड और प्लाई का उपयोग इंटीरियर में होने लगा है. सस्ता होने के कारण इसे जल्दी बदला जा सकता है.

‘‘कैमिकल का प्रयोग होने से दीमक नहीं लगती है. इंटीरियर में पेपर कार्डबोर्ड का प्रयोग होने लगा है. महंगी टाइल्स की जगह आकर्षक फ्लोरिंग मिलने लगी है. यह मैचिंग और मनचाहे रंग व डिजाइन की होने लगी है. फर्श से ले कर छत तक को नए रंगरूप में बदला जा सकता है.’’

बजट इंटीरियर

इंटीरियर डिजाइनर पहले डिजाइन तैयार कर लेता है उस के बाद वह बजट के अनुसार मैटीरियल चुनता है. डिजाइन का अब थ्रीडी फौर्मेट बन जाता है, जिस से पूरा इंटीरियर कैसा लगेगा यह पहले ही पता चल जाता है. जो अच्छा नहीं लगता उस को बदला जा सकता है. इंटीरियर में कुछ ऐसा शामिल किया जाता है जो पूरे इंटीरियर को हाईलाइट करता है. जैसे म्यूरल आर्ट का प्रयोग बढ़ गया है. ग्रीन माहौल दिखाने का प्रयास रहता है. स्पेस रहता है तो माहौल बेहतर होता है. लोग कंफर्टेबल फील करते हैं.

कार्यक्षमता को बढ़ाता है

इंटीरियर की उपयोगिता इसलिए बढ़ रही क्योंकि यह देखने वाले का आकर्षित करती है. कस्टमर यहां आने में कंफर्टेबल फील करता है. यहां काम करने वालों को जब साफ हवा, पानी, खुशनुमा माहौल मिलता है तो उन की कार्यक्षमता बढ़ती है.

अपार्टमैंट कल्चर को भी जानें

मैट्रो कल्चर की देन अपार्टमैंट कल्चर ने लोगों के रहनसहन व उठनेबैठने का तरीका बदल दिया है. अब न तो वह घर रहा और न ही घर में मौजूद आंगन, छत व खुले में बैठने के लिए बड़ा लौन. शहरों में कम पड़ती जमीन के चलते शहरों में लोगों के अपने घर के सपने को पूरा करने के लिए बहुमंजिला इमारतों का निर्माण आज आम बात हो गई है. पर इन अपार्टमैंट्स में रहने पर आप को न सिर्फ अपने उठनेबैठने का ध्यान रखना होता है, बल्कि अपने साथसाथ अगलबगल, ऊपरनीचे रहने वालों का भी ध्यान रखना होता है वरना आप को पिछड़ा होने का तमगा मिलते देर नहीं लगेगी. अपार्टमैंट्स में रहते हुए आप को निम्न बातों का ध्यान रखना होगा:

  1. अपार्टमैंट्स में बने फ्लैटों में ज्यादा दूरी नहीं होती है. अत: इस बात को इग्नोर करते हुए पड़ोसियों के घर में ताकझांक न करें और न ही उन की डोरबैल बजने या किसी के आने पर अपने घर का दरवाजा खोलें.
  2. अपार्टमैंट्स या सोसाइटी के घरों में कई बार समस्या मसलन, सीढि़यां, लौन, छत आदि की साफसफाई को ले कर हो जाती है. इसे ले कर कई बार पड़ोसियों में अनबन तक की नौबत आ जाती है. अत: इस संयुक्त भागेदारी में सहयोग करने में पीछे न रहें.
  3. अपार्टमैंट्स में विभिन्न प्रांतों, जातियों व धर्मों के लोग रहते हैं. अत: इस मुद्दे को ले कर कभी किसी पर टीकाटिप्पणी न करें और न ही उन के धर्मसंस्कृति को ले कर उन्हें भावनात्मक ठेस पहुंचाएं.
  4. फ्लैट्स आसपास होने के कारण आप के घर का शोर सामने के घर तक पहुंच सकता है, जिस से उन्हें परेशानी हो सकती है. इस से पहले कि सामने वाला आप से इस बात की शिकायत करे, आप स्वंय इस मामले में सावधानी बरतें. खासकर म्यूजिक सुनते समय या टीवी देखते समय.
  5. अगर आप को हर छोटीमोटी चीज मांगने की आदत है तो अपनी इस आदत पर लगाम लगाएं वरना आप के पड़ोसी को आप से कन्नी काटते देर नहीं लगेगी. इसी तरह यदि आप के पड़ोसी को आप से कुछ न कुछ मांगने की आदत है तो मन ही मन कुढ़ने के बजाय उसे बातों ही बातों में समझा दें.
  6. अपने पड़ोसी को न जानने में बेशक आप इसे अपनी शान समझते हों, लेकिन इस बात को भी गांठ बांध लें कि मुसीबत में पहले आप के पड़ोसी आप के काम आएंगे. अत: उन से बना कर रखें.
  7. फ्लैट्स में रहने वालों से अनजान बनने के बजाय, मुसकरा कर उन का हालचाल पूछा  करें. खासकर यदि आप के फ्लैटस में कोई लाचार या फिर बूढ़े लोग रहते हों तो उन की मदद करने में जरा भी न हिचकें.
  8. माना कि आप के पास दूसरों के लिए वक्त नहीं है. फिर भी वक्त निकाल कर फ्लैट्स में होने वाले कार्यक्रमों से दूर रहने की जगह उन में हिस्सा लें. घर में होने वाले फंक्शन में पड़ोसियों की उपेक्षा न करें.
  9. किसी भी गौसिप से बचने के लिए अच्छा है कि आप अपनी प्राइवेसी के साथसाथ पड़ोसियों की प्राइवेसी का भी खयाल रखें.
  10. फ्लैट्स में कभीकभी पानी, बिजली या और कोई समस्या होने पर उसे दूर करने में सहयोग करें.
  11. हर सोसाइटी के अपनेअपने नियम होते हैं. अत: उन का सदैव पालन करें. अपने यहां आने वाले दोस्तों व रिश्तेदारों को भी इस बारे में अवगत करा दें. जैसेकि मेन गेट पर ऐंट्री करना आदि.
  12. आप अपने शौक को पड़ोसी की परेशानी का कारण न बनने दें. मसलन, आप को पालतू जानवर पालने का शौक है, तो उसे अपनी निगरानी में रखें.
  13. महानगरों में घरों में चोरी होना आम बात है. खासकर तब जब घर के सदस्य बाहर गए हों. यदि आप चाहते हैं कि आप के साथ ऐसा हादसा न हो तो आप अपने पड़ोसी के बाहर जाने पर उन के घर की सुरक्षा का खयाल रखें. फिर कहीं जाने पर वे भी आप के घर का खयाल रखेंगे.
  14. फ्लैट्स में घर आमनेसामने व ऊपरनीचे होते हैं. अत: कपड़े आदि सुखाते समय ध्यान रखें कि कहीं पानी वगैरह नीचे तो नहीं टपक रहा है. इसी तरह गमले आदि रखते समय भी ध्यान रहे कि गमले की गंदगी से नीचे रहने वालों को परेशानी न हो.

ऐसे पाएं सफलता

दुनिया में कामवाली हर औरत का जीवन बड़ा संघर्षमय होता है, जो घर से दूर रह कर काम करती हैं, उन के लिए तो चुनौतियां और ज्यादा होती हैं. जो कभी हार नहीं मानतीं, आमतौर पर स्वभाव से हंसमुख होती हैं, उन्हें पार्टी करना, पार्टी में जाना और घूमना बहुत पसंद होता है. उन्हें सब के दिलों पर छा जाने की कला सीखनी होती है.

कई औरतों को चुनौतीपूर्ण काम मिलता है और साथ ही मातापिता की देखभाल का जिम्मा भी. अगर जौब ऐसी है जिस में अकेले ट्रैवल करना भी जरूरी हो तो कुछ और चैलेंज आ जाते हैं.

अनिता को अपनी जौब के सिलसिले में दिल्ली से मुंबई आनाजाना करना होता था क्योंकि वह मार्केटिंग और मैनेजमैंट का दोहरा काम संभाल रही थी.

वह हिमाचल की निवासी थी और जब दिल्ली आई तो मांबाप से मिलने भी जाती. उसे कालेज में डांस करने का शौक था और किसी भी अवसर पर वह अवश्य नृत्य करती थी. अब भी किसी पार्टी में वह घंटों नाच सकती है. पहले वह दिल्ली में काम करती थी पर बाद में उसे मुंबई में एक कंपनी ने बुलाया.

पहले वह वहां 1 हफ्ता काम करती और फिर वापस दिल्ली चली आती थी. फिर वह मुंबई आ गईर् और यहीं रहने लगी. तब तक काम इतना बढ़ गया था कि बारबार आनाजाना संभव नहीं था.

जीवन एक संघर्ष है

इस तरह की चुनौतियां हर सफल औरत को कई बार ?ोलनी पड़ती हैं. शादी तो हो जाती है पर अगर काम के बोझ में जीवनसाथी के कारण तो चैलेंज बढ़ जाते हैं, खासतौर पर जब बच्चे भी हो जाएं. डिवोर्स का समय काफी संघर्षपूर्ण रहता है क्योंकि लोग इस अलगाव को समझ नहीं पाते हैं. इस में सब से बड़ी सहायता अकसर उन की मां करती है क्योंकि उन्हें पता होता है कि ऊंचनीच क्या होती है.

आमतौर पर सफल तलाकशुदा औरतें अपने पति के बारे में अधिक बताना नहीं चाहतीं और यह सही भी है क्योंकि वह एक बीता हुआ कल था जिसे उसे याद करना अच्छा नहीं लगता है. लेकिन इतना जरूर है कि जो लोग इस तरह की स्थिति से न गुजरे हों उन्हें उस की बात समझ में नहीं आती और फिर यह भी चुनौतियों की लिस्ट में जुड़ जाता है. शादी टूटने को हमेशा एक सकारात्मक रूप में लें कि झगड़े वाले विवाह से चुनौती वाला एकाकीपन ज्यादा अच्छा है.

अगर परिवार की कोई लड़की ऊंचे पद पर न हो तो वह भी इसी तरह की सफल महिला को नहीं समझ पाती. काम कर के अपने पैरों पर खड़ा होना एक ऐसा जनून है जिसे रोकना नहीं चाहिए. एक औरत को चैन तभी आने लगेगा जब वह काम में सफल होने लगेगी. यही बात बच्चों में भी आ जाती है अगर बच्चे हों तो.

आसान बनाएं काम

आज भी किसी भी अकेली महिला का काम करना मुश्किल है. आज हर दिन, हर पल सिस्टम बदलते हैं. प्रैक्टिस के चक्कर में कंपनी के रोज नए प्रयोग करती है, दखलंदाजी करती है. इसलिए काम शुरू कहीं से होता है और हो आगे कुछ और रहा होता है, जिस का आगापीछा समझना और समझना चैलेंजिंग होता है. आप जिस जौब के लिए रखी जाती हैं उस का प्रोफाइल बदल जाता है. मैनेजर की निजी जिंदगी नहीं रहती.

बच्चों के पीटीए को अटैंड करना, फिर उन के साथ घूमना, उन का खयाल रखना, मातापिता का ध्यान रखना सब सही तरीके से करना होता है. काम 9 से 6 बजे तक हो या 9 से रात के 12 बजे तक सहना पड़ता है. काम की गुणवत्ता अधिक बनी रहे यह लगातार चैलेंज होता है.

बढ़ते जाना है

हां हर सफल महिला को अपने पहरावे पर पूरा ध्यान रखना चाहिए. हर तरह के कपड़े अच्छे नहीं होते. वही पहनें जो कंफर्टेबल रखे. पार्टियों में जाएं, प्रकृति से प्यार करें.

काम में ऐक्सप्लायटेशन हो तो हल्ला न मचाएं. यह हमेशा से होता रहा है. अगर आप को किसी से कुछ खास उम्मीद है तो आप को कुछ देना होगा. खुशीखुशी दें या रोधो कर यह आप पर है. यह गारंटी भी नहीं कि आप जो चाहें वह आप को मिलेगा पर छुईमुई न बनें.

काम का चैलेंज वह क्षेत्र है जहां मरना भी पड़ता है. अगर आप का कोई गौडफादर है तो आप कामयाब. आप की सफलता आप की बहुत सी खामियों को छिपा देगी. पीछे की फुसफुसाहट को इग्नोर करना भी चैलेंज है.

जब लत बन जाएं गैजेट्स

गैजेट्स का गुलाम होना ठीक नहीं क्योंकि अगर आप इन के गुलाम हो गए तो इन के खराब होने पर आप एक दिन भी इन के बिना नहीं बिता पाएंगे और आप को इन के बिना जिंदगी नीरस व अधूरीअधूरी सी लगने लगेगी. इसलिए आज तक आप ने जो किया सो किया, लेकिन अब अपनी जिंदगी में गैजेट्स को उतनी ही अहमियत दें, जितनी देने की जरूरत है. भूल कर भी खुद को इन का गुलाम न बनने दें.

आइए, जानते हैं कैसे इन से दूरी बनाएं:

आज किसी को फोन नहीं करेंगे

हर समय बस मोबाइल से चिपके रहने से हमारी आदत पूरी तरह बिगड़ गई है. बस जरा सा खाली समय मिला नहीं कि फोन में कभी गूगल पर कुछ देखने लग जाते हैं, तो कभी सोशल मीडिया पर फोन से अपने फोटोज अपलोड करते हैं, तो कभी दूसरों की डाली गईं पोस्ट्स में इतना इंटरैस्ट दिखाने लगते हैं जैसे इस से जरूरी और कोई काम ही नहीं है.

ऐसे में आप मन में ठान लें कि हर हफ्ते संडे को हम अपने मोबाइल से किसी को भी फोन नहीं करेंगे और न ही इस का इस्तेमाल सैल्फी लेने, फोटो अपलोड करने में करेंगे. जब तक बहुत जरूरी न होगा, हम आज के दिन फोन को हाथ नहीं लगाएंगे. अगर आप मन में ऐसा संकल्प ले लेंगे और 1-2 महीनों तक इस पर अमल भी करेंगे तो आप आराम से गैजेट्स से दूरी बना पाएंगे.

आज पूरा दिन टीवी से छुट्टी

आज रिलैक्स डे है, आज औफिस की छुट्टी है, आज कोई काम नहीं है तो इस का मतलब यह नहीं कि आप आज पूरा दिन बस टीवी पर ही नजरें गड़ाए बैठे रहें. आप का ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर सब टीवी के सामने ही हो रहा है और टीवी के सामने बैठेबैठे कब सुबह से शाम हो गई पता ही नहीं चला.

ऐसा आप के साथ ही नहीं बल्कि अधिकांश लोगों के साथ होता है कि फ्री टाइम का मतलब वाचिंग टीवी और फुल डे फ्री का मतलब तो फुल डे टीवी के साथ टाइम स्पैंड होता है. घर के बाकी लोग चाहे कुछ भी कहते रहें, लेकिन आप को टीवी से फुरसत मिले तब न.

अगर आप के साथ भी ऐसा ही है तो हफ्ते में 1 दिन या 15 दिन में एक दिन टीवी से ब्रेक जरूर लें.

आज गाड़ी की छुट्टी

चाहे पास की मार्केट जाना हो या फिर 2 गलियां छोड़ कर फ्रैंड से मिलने, हर काम के लिए हम गाड़ी का इस्तेमाल करते हैं, जिस से जहां हमारी चलने की आदत छूटती जा रही है, वहीं हम खुद के खर्चों को भी बढ़ाते जा रहे हैं. ऐसे में अगर आप खुद को गाड़ी के ही सहारे नहीं चलाना चाहते या फिर खुद के खर्चों को जानबूझ कर नहीं बढ़ाना चाहते तो हफ्ते में 1 दिन बिना गाड़ी घर के व खुद से जुड़े काम करें. इस से एक तो आप की गाड़ी पर से निर्भरता खत्म होगी और दूसरा आप अपने कामों के लिए खुद के शरीर को चलाना सीखेंगे.

आज औनलाइन सामान नहीं मंगवाएंगे

आज डेली नीड्स के हर सामान के लिए हम औनलाइन स्टोर्स पर निर्भर हो गए हैं. कोई सामान खत्म हुआ नहीं कि झट से और्डर कर के मंगवा लिया, जिस से न तो हम ग्रोसरी पर होने वाले खर्च को कंट्रोल कर पाते हैं और दूसरे हमारी आदत भी खराब होती जाती है. औनलाइन सामान मंगवाने पर हम दुकानदार से अब सामान के लिए मोलभाव भी नहीं कर पा रहे हैं. यहां तक कि कुछ खाने का मन किया तो झट से और्डर कर के मंगवा लेते हैं. लेकिन जान लें कि ये औनलाइन स्टोर्स हमें घर बैठे कुछ ही मिनटों में सामान देने के कारण हमें आलसी बना रहे हैं.

ऐसे में अगर आप को अपनी इस लत को छोड़ना है तो आप हफ्ते में एक दिन औनलाइन कोई भी सामान नहीं मंगवाने का संकल्प लें. उस दिन यदि आप को किसी सामान की जरूरत पड़ी तो आप दुकान पर जाएं. दुकानदार से आप मोलभाव कर के सामान लें, जो बजट को कंट्रोल करने का तो काम करेगा ही, साथ ही आप उस दिन सिर्फ जरूरी चीजें ही लाएंगे, जो बचत के साथसाथ आप की औनलाइन और्डर करने की हैबिट को भी बदलने का काम करेगा.

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