लिवइन रिलेशनशिप और कानून

जब मन को कोई अच्छा लगे तो उस की बैकग्राउंड बेमतलब हो जाती है. गुडग़ांव में अभी एक जोड़े के शव किराए के मकान में मिले 22-23 के साल के दोनों लिवइन में रह रहे थे जबकि युवक शादीशुदा था और उस की पत्नी बूटान की थी. लडक़ी जानते हुए थी कि लडक़ा शादीशुदा है 15 महीने से उस के साथ रह रही थी. दोनों अच्छाखासा कमा रहे थे. एक 5 स्टार होटल में शैफ था. दूसरी फूड डिलिवरी चेन में मैनेजर थी.

उन्होंने किस कारण जान दीं, यह नहीं पता पर यह अवश्य पहली बार में पता चला कि बाहर के किसी जने ने आकर उन्हें मारा नहीं था. पुलिस को लडक़ी बैड पर मिली और लडक़ा पंखे से लटका.

अपनी ङ्क्षजदगी अपने मनचाहे के साथ मनमर्जी से जीने का हक सब को है पर जब यह हक विवाह में बदल जाए तो बहुत चुभता है. लिवइन में सब से बड़ा खतरा यही है कि पार्टनर कभी भी बिना नोटिस दिए वर्क आउट कर सकता है और दूसरे के सुखदुख का तब उसे कोई ख्याल नहीं रहता. लिवइन रिलेशनशिप में जिम्मेदारी वर्षों बाद आ पाती है. अगर दोनों में से एक भी शादीशुदा हुआ या मातापिता पर निर्भर हो या उन की जिम्मेदारी हो तो लिवइन के लिए मुश्किलें बढ़ जाती है. पैसे और समय को ले कर कभी भी तकरार हो सकती है क्योंकि लिवइन पार्टनर आमतौर पर साथ वाले की समस्याओं को अपनी समझना.

लिवइन का मतलब ही टैंपरेरी अरेजमैंट होता है और इस में एक कुर्सी तक खरीदने पर 4 बार सोचना पड़ता कि कौन खर्च करेगा और रास्ते अलग हो जाने के बाद इस का क्या होगा? अब जब तक साथ रहेंगे तो 4 कुर्सियां, 1 बैड, 1-2 टेबल, गैस, बर्तन तो चाहिए होंगे न. पार्टनरशिप टूटने पर क्या होगा.

लिवइन रिलेशनशिप न कानून है, न होना चाहिए. यह 2 व्यस्कों की अपनी टेलेंट और अपना नीडबेस्ड है. इसे कानूनी दायरों में नहीं बांध जाना चाहिए. अदालतों को लिवइन पार्टनर की हर शिकायत को पहली बार में ही खिडक़ी से बाहर फेंक देना चाहिए क्योंकि जो लोग अपनी प्रौब्लम्स खुद सोल्व नहीं कर सकते उन्हें लिवइन के रास्ते पर जाना ही नहीं चाहिए.

पुलिस को मारपीट में भी दखल कम करना चाहिए क्योंकि जरा सा गुस्सा दिखाने पर दूसरे के पास घर का हक है. जब लडक़ालडक़ी राजी तो क्या करेगा काजी का फार्मूला निभाया जाना चाहिए.

ये भी पढ़ें- धर्म टैक्नोलौजी और राजनीति

लिव-इन में कानून का हस्तक्षेप क्यों?

सही कहा है कि कानून अंधा होता है. असल में कानून की व्याख्या करते हुए हर जज अपनी भावनाओं और मान्यताओं को आस्तीनों पर चढ़ाए रखता है जिस में से निर्णय लिखते समय उस की व्यक्तिगत चाहत टपकती रहती है. राजस्थान उच्च न्यायालय के जज संजीव प्रकाश शर्मा ने एक निर्णय में कहा है कि लिवइन में रहना एक तरह से विवाह है और जोड़े में से कोई भी कहीं और विवाह नहीं कर सकता.

उन के सामने मामला आया था जब एक युवती ने अपने पार्टनर की शादी रुकवाने की अर्जी दी थी. कानून इस बात पर अब तक अड़ा रहा है कि जब तक विधि सम्मत तरीके से विवाह न हो साथ रहना विवाह नहीं है और साथ रहना और सोना अवैध नहीं है. शादी से दोनों को एकदूसरे के प्रति कुछ अधिकार मिलते हैं पर बिना शादी साथ रहने पर कोई अधिकार नहीं मिलता.

ये भी पढ़ें- बस एक कदम और…

लिवइन की आजादी जज संजीव प्रकाश शर्मा ने एक झटके में छीन ली. लिवइन का अर्थ ही यह है कि दोनों में से कोई भी बिना कारण बताए जब चाहे अलग हो जाए. ठीक है, दूसरे को इस में बहुत दर्द होता है पर इस ब्रेकअप का उत्तर न्यायालय या पुलिस में नहीं है. यह दर्द तो खुद ही झेलना होगा.

ब्रेकअप का दर्द जीवन में बहुत मोड़ों पर होता है. हर माता-पिता अपनी बेटी का विवाह बड़े यत्न से करते हैं पर वह विवाह बेटी का घर से ब्रेकअप होता है जिस का दुख सालों तक मातापिता को सताता है. यह प्रकृति का नियम है कि बड़े होने पर बच्चे अपने घोंसलों से जाएंगे. दर्द माता-पिता को ही नहीं भाईबहनों को भी होता है. यह ब्रेकअप लिवइन के ब्रेकअप से ज्यादा दर्द देता है. कानून क्या इस में भी टांग अड़ाएगा?

ये भी पढ़ें- बच्चों की परीक्षा मांओं की अग्निपरीक्षा

ब्रेकअप सामाजिक प्रक्रिया है. यह बिना शादीशुदा में भी हो सकता है, शादीशुदा में भी. मानसिक रूप से ब्रेकअप के बाद साथ रहना एक जेल में रहने के समान है जिस में आप के पास कोई विकल्प नहीं होता. लिवइन पार्टनर कहीं विवाह कर रहा है तो इसलिए कि वह स्थायी, सुरक्षित माहौल चाहता है. दूसरा उस में अड़चन न डाले, यही अच्छा है.

Edited by-Rosy

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें