सही कहा है कि कानून अंधा होता है. असल में कानून की व्याख्या करते हुए हर जज अपनी भावनाओं और मान्यताओं को आस्तीनों पर चढ़ाए रखता है जिस में से निर्णय लिखते समय उस की व्यक्तिगत चाहत टपकती रहती है. राजस्थान उच्च न्यायालय के जज संजीव प्रकाश शर्मा ने एक निर्णय में कहा है कि लिवइन में रहना एक तरह से विवाह है और जोड़े में से कोई भी कहीं और विवाह नहीं कर सकता.

उन के सामने मामला आया था जब एक युवती ने अपने पार्टनर की शादी रुकवाने की अर्जी दी थी. कानून इस बात पर अब तक अड़ा रहा है कि जब तक विधि सम्मत तरीके से विवाह न हो साथ रहना विवाह नहीं है और साथ रहना और सोना अवैध नहीं है. शादी से दोनों को एकदूसरे के प्रति कुछ अधिकार मिलते हैं पर बिना शादी साथ रहने पर कोई अधिकार नहीं मिलता.

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लिवइन की आजादी जज संजीव प्रकाश शर्मा ने एक झटके में छीन ली. लिवइन का अर्थ ही यह है कि दोनों में से कोई भी बिना कारण बताए जब चाहे अलग हो जाए. ठीक है, दूसरे को इस में बहुत दर्द होता है पर इस ब्रेकअप का उत्तर न्यायालय या पुलिस में नहीं है. यह दर्द तो खुद ही झेलना होगा.

ब्रेकअप का दर्द जीवन में बहुत मोड़ों पर होता है. हर माता-पिता अपनी बेटी का विवाह बड़े यत्न से करते हैं पर वह विवाह बेटी का घर से ब्रेकअप होता है जिस का दुख सालों तक मातापिता को सताता है. यह प्रकृति का नियम है कि बड़े होने पर बच्चे अपने घोंसलों से जाएंगे. दर्द माता-पिता को ही नहीं भाईबहनों को भी होता है. यह ब्रेकअप लिवइन के ब्रेकअप से ज्यादा दर्द देता है. कानून क्या इस में भी टांग अड़ाएगा?

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