देश में 12वीं की परीक्षा किसी के भी भविष्य को बनाने और बिगाड़ने का इकलौता मील का पत्थर होती है. इसे सही ढंग से पार कर लिया तो जीवन में कुछ बन सकते हैं, नहीं तो सारा जीवन आधाअधूरा मुंह छिपाए रहना होता है. मांओं के लिए बड़े होते बेटेबेटियों की 12वीं की परीक्षा एक अग्निपरीक्षा होती है और उस में हर मां को ऐसे ही झुलसना होता है जैसे सीता को जलना पड़ा था. परीक्षा चाहे बेटेबेटियों की हो, कम अंक आने पर मांओं का ही मुंह लटका रहता है.
पूरे साल मांओं को यह परीक्षा देनी होती है. पैसा हो तो कोचिंग क्लासों में भेजना, रिपोर्टें चैक करना, भारी भरकम किताबें खरीदना, घूमने-फिरने के कार्यक्रम त्यागना, बेटे-बेटी से पहले उठ कर उन के लिए खाना बनाना, रिश्तेदारों के यहां जाना बंद करना पड़ता है. उस के बाद अगर कहीं ऐसे अंक आए जिन का आज के युग में कोई मोल नहीं तो मुंह छिपाए घूमना मां को ही पड़ता है.
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यह हमारी सरकार की नीतियों की देन है कि शिक्षा का आज कोई वजूद नहीं रह गया. अति योग्य और साधारण तो हमेशा ही होते थे पर पहले हरेक को अपने स्तर के अनुसार जीवन बनाने का अवसर मिल जाता था. पर जब से 12वीं में 98 और 99.5% अंक एक के नहीं कईयों के आने लगे हैं, पूरे देश में 90% से कम अंक लाने वाले बेकार कूड़ा बन गए हैं और उन की मांओं को असफल और निकम्मा घोषित कर दिया गया है.
90% से ज्यादा वालों को भी आज भरोसा नहीं है कि उन्हें मनमरजी की पढ़ाई का रास्ता मिल सकेगा. वैसे भी 12वीं की परीक्षा के साथ नीट, जेईई जैसी बीसियों परीक्षाएं देनी होती हैं ताकि कोई कैरियर बन सके. वरना लगता है अमेजन और फ्लिपकार्ट वालों के बैग पीठ पर लादे घरघर सामान डिलीवर करने का काम ही बचेगा.
देश को अगर कुशल डाक्टरों, कुशल वैज्ञानिकों, कुशल इंजीनियरों, कुशल प्रबंधकों की जरूरत है तो काम चलाऊ लोगों की भी जरूरत है. पर 12वीं की परीक्षा ऐसा बैरियर बन गया है जो चीन की दीवार की तरह ऊंचा और लंबा है और उसे पार नहीं करा गया तो वापस लौट जाना तय समझो. हर युवा को लाखों की नौकरी बीए, एमबीए, एमबीबीएस, आईआईटी करने के बाद भी मिल जाए जरूरी नहीं. पर कुछ तो मिले ताकि मां ढंग से संतोष कर सके कि उस ने अपने बच्चों के प्रति अपना कर्तव्य पूरा कर लिया है.
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अगर 90% से ज्यादा लाने वालों की मांएं भी चिंतित दिखें और 90% से कम लाने वाली मांएं भी रोतीपिटती दिखें तो यह एक अन्याय है जो समाज, सरकार, व्यवस्था, बाजार मिल कर औरतों के साथ कर रहे हैं. बेरोजगारी चुनावी मुद्दा रहा इस बार पर केवल विपक्ष के लिए. नरेंद्र मोदी का तो कहना था कि सर्जिकल स्ट्राइक बालाकोट में कर दी, गाएं कटने से बचवा दीं, भारत माता की जय बुलवा दी तो मांओं के कष्ट समाप्त हो गए समझो.
देश और समाज यह भूल रहा है कि 12वीं की परीक्षा में सफलता का सेहरा सिर्फ कोई बेटी के सिर पर नहीं बंधता है, मां के सिर पर भी बंधता है. मां को ही मालूम होता है कि इस बैरियर को अगर ढंग से पार नहीं किया गया तो न घर में शांति रहेगी, न बेटेबेटी का विवाह होगा, न कमाई होगी, न इज्जत रहेगी.
असल में 12वीं के बाद सैकड़ों विकल्प खुल जाने चाहिए. जिन के 90 से 99.5% अंक आए हैं यदि उन के लिए रास्ते हैं तो दूसरों के लिए संकरे, कम पक्के पर फिर भी कहीं सही जगह ले जाने वाले रास्ते होने चाहिए. आज शिक्षा को सुधारने के नाम पर इन छोटे रास्तों को प्लग करा जा रहा है, उन्हें बदनाम करा जा रहा है.
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जिन्हें पहले से आभास हो जाए कि वे 90-99 की गिनती में नहीं हैं वे अपना रास्ता पहले चुन सकें. यह प्रबंध मां नहीं कर सकती, यह तो समाज और सरकार को ही कर के देना होगा.
योग्यता केवल एक परीक्षा पर निर्भर नहीं रह सकती. 17 साल के युवा से अगले 70 साल का रास्ता खोजने को कहना ही गलत है. अगर सैकड़ों विकल्प होते तो हर जना अपनी योग्यता, अपनी इच्छा का रास्ता अपना सकता, सिर उठा कर, मां को साथ में ले कर.