मेरे पति का लिवर फेल हो चुका है, क्या लिवर ट्रांसप्लांट कराना सही है?

सवाल

मेरे पति का लिवर फेल हो चुका है. डाक्टर ने लिवर ट्रांसप्लांट कराने के लिए कहा हैलेकिन मैंने सुना है लिवर ट्रांसप्लांट की सफलता दर बहुत कम है?

जवाब

हमारे देश में लिवर ट्रांसप्लांट की सफलता दर अत्यधिक विकसित देशों के समान ही है. लिवर ट्रांसप्लांट के 90-95% मामलों में मरीज ट्रांसप्लांट के बाद स्वस्थ्य और सामान्य जीवन जी सकते हैं और कुल लिवर ट्रांसप्लांट के मामलों में से 70-80% में लोग 5 साल या उससे अधिक जीते हैं.

लिवर ट्रांसप्लांट के बाद हम देखते हैं कि लिवर फेल्योर से मृत्यु के मामले लगभग न के बराबर होते हैं. मृत्यु का कारण बुढ़ापाहृदय रोग या अन्य स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं.

 

-डा. संजय गोजा

प्रोग्राम डायरेक्टर ऐंड क्लीनिकल लीड – लिवर ट्रांसप्लांटएचपीबी सर्जरी ऐंड रोबोटिक लिवर सर्जरीनारायणा हौस्पिटलगुरुग्राम. 

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लीवर पर कैसे असर डालता है हेपेटाइटिस बी और सी का संक्रमण

लिवर हमारे शरीर का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक है, जो हृदय को सहारा देने, रक्त से विषाक्त पदार्थों को निकालने, हार्मोन बनाने और विटामिन स्टोर करने के साथ ही अन्य महत्वपूर्ण कार्य करता है. हेपेटाइटिस बी और सी सामान्य वायरल संक्रमण हैं जो लिवर को प्रभावित करते हैं जिससे तीव्र और जीर्ण हेपेटाइटिस होता है. ये बीमारियां साइलेंट किलर मानी जाती हैं जो वर्षों में धीरे-धीरे विकसित होती हैं और लिवर सिरोसिस और लीवर ट्रांसप्लांट का प्रमुख कारण बनती हैं. दुनिया भर में, लगभग 350 मिलियन लोग हेपेटाइटिस बी से संक्रमित हैं और लगभग 170 मिलियन लोगों को हेपेटाइटिस सी से संक्रमित हैं.

डॉ मनोज गुप्ता, वरिष्ठ सलाहकार – लीवर ट्रांसप्लांट और जीआई सर्जरी, पी.एस.आर.आई अस्पताल के बता रहे हैं हेपेटाइटिस वायरस के प्रकार और लक्षण.

हेपेटाइटिस वायरस कई प्रकार के हैं, हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी सहित जो कुछ समानताओं वाले अलग-अलग वायरस हैं – दोनों के लक्षण समान हैं. हेपेटाइटिस बी आमतौर पर शरीर के तरल पदार्थ बी से फैलता है, हालांकि, यह इंट्रानेसल और इंजेक्शन दवा के उपयोग के साथ-साथ टैटू और शरीर भेदने  चीज़ों का उपयोग किए जाने वाले से भी फैल सकता है. बीमारी के लिए जिम्मेदार यह वायरस छींकने या खांसने से नहीं फैलता है, यह खून, वीर्य या शरीर के अन्य तरल पदार्थों से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में जाता है. हेपेटाइटिस बी और सी के फैलने के सामान्य तरीकों में शामिल हैं:

  • यौन संपर्क –

किसी संक्रमित व्यक्ति के साथ असुरक्षित यौन संबंध बनाने से आपको रोग होने की संभावना बढ़ जाती है. संक्रमित व्यक्ति के खून, लार, वीर्य या योनि स्राव से वायरस आपके शरीर में प्रवेश कर सकता है.

  • सुई साझा करना –

यह बीमारी दूषित सुई और सिरिंज से आसानी से फैल सकती है. सुई से अचानक चोट लगना स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों और मानव रक्त के संपर्क में आने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए चिंता का बड़ा विषय है.

  • मां से बच्चे में –

इस बीमारी से संक्रमित गर्भवती महिलाओं से बच्चे के जन्म के दौरान उनके बच्चों को वायरस जा सकता है. नवजात को संक्रमित होने से बचने के लिए टीका लगाया जा सकता है.

यदि आप जांच में हेपेटाइटिस बी से पॉजिटिव पाए जाते हैं, तो हेपेटाइटिस सी का परीक्षण करना आवश्यक है क्योंकि इससे पता चलता है कि क्या आप कभी हेपेटाइटिस सी के संपर्क में आये हैं या क्रोनिक हेपेटाइटिस सी हुआ है. हेपेटाइटिस बी के विपरीत, हेपेटाइटिस सी वायरस के लिए कोई टीका नहीं है, इसलिए, हेपेटाइटिस सी के संपर्क में न आने को लेकर विशेष रूप से सतर्क रहना चाहिए – उदाहरण के लिए, कभी भी किसी के साथ सुइयों को साझा न करें.

इसके अलावा, पर्याप्त रूप से विटामिन और मिनरल्स लेना महत्वपूर्ण है. जब तक कहा न जाए, आयरन की खुराक से बचें क्योंकि बड़ी खुराक लेने पर वे लीवर को नुकसान पहुंचने की प्रक्रिया को तेज कर सकते हैं.

रोग के सामान्य लक्षणों में त्वचा का पीला रंग, म्यूकस मेम्ब्रेन, और आंखों का सफेद भाग, पीला मल, खुजली और गहरे रंग का मूत्र शामिल हैं. साथ में, कुछ मामलों में थकान, पेट दर्द, वजन घटना, उल्टी और बुखार जैसे लक्षण दिख सकते हैं. हेपेटाइटिस बी और सी वायरस के साथ क्रोनिक संक्रमण से गंभीर समस्याएं हो सकती हैं, जैसे कि लिवर फेल होना, लिवर कैंसर, और सिरोसिस या लिवर पर चोट आना, जो लिवर की बेहतर ढंग से काम करने की क्षमता को क्षीण कर सकता है. इसके अलावा, क्रोनिक हेपेटाइटिस से पीड़ित लोगों में किडनी  की बीमारी या रक्त वाहिकाओं की सूजन हो सकती हैं. इसलिए हेपेटाइटिस वायरस से संक्रमित होने से बचने के लिए सावधानी बरतना जरूरी है. आप रोग होने के जोखिम को कम करने के लिए निम्न कुछ तरीकों को आज़मा सकते  हैं:

  • यदि आपको अपने साथी की हेपेटाइटिस स्थिति के बारे में नहीं पता है तो हर बार यौन संबंध बनाते समय नए कंडोम का उपयोग करें. भले ही कंडोम आपके रोग के होने के जोखिम को कम कर सकते हैं, वे जोखिम को पूरी तरह से समाप्त नहीं करते हैं.
  • अवैध ड्रग्स से दूर रहें. अवैध दवाओं के इंजेक्शन लगाने से बचें और कभी भी सुई साझा न करें.
  • टैटू और शरीर भेदने वाली चीज़ों को लेकर सावधान रहें. सुनिश्चित करें कि उपकरण साफ है और कर्मचारी स्टेराइल की गई सुई का उपयोग कर रहा है.
  • हेपेटाइटिस बी के टीके के बारे में पूछें – यदि आप किसी ऐसे क्षेत्र की यात्रा कर रहे हैं जहां हेपेटाइटिस आम है, तो अपने डॉक्टर से संबंधित टीके के बारे में पहले ही पूछ लें.

हेपेटाइटिस बी और सी दोनों का लिवर पर अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है, हालांकि, हेपेटाइटिस सी की तुलना में हेपेटाइटिस से तीव्र संक्रमण होने की संभावना अधिक है, जो आमतौर पर गंभीर स्थिति में बदल जाता है. और भले ही हेपेटाइटिस बी शरीर के तरल पदार्थ से फ़ैल सकता है, हेपेटाइटिस सी का संक्रमण आमतौर पर रक्त से रक्त संपर्क से होता है. व्यक्ति को किसी भी तरह के हेपेटाइटिस के जोखिम कारकों के सम्बन्ध में डॉक्टर से बात करनी चाहिए, जैसे कि असुरक्षित यौन संबंध का इतिहास या सुई साझा करना आदि.

ट्रांसप्लांट से क्या लिवर कैंसर से छुटकारा मिल जाएगा?

सवाल-

मैं लिवर कैंसर की तीसरी स्टेज से गुजर रहा हूं. क्या इस अवस्था में लिवर ट्रांसप्लांट संभव है और क्या इस से कैंसर से छुटकारा मिल जाएगा?

जवाब-

लिवर कैंसर 2 प्रकार का होता है – प्राइमरी एवं सैकंडरी. अधिकतर लिवर कैंसर शरीर के किसी अन्य हिस्से में पनपता है और फिर लिवर तक (सैकंडरी/मैटास्टैटिक) फैल जाता है, जबकि प्राथमिक लिवर कैंसर खुद लिवर में पनपता है और फिर लिवर के बाहर फैलता है. लिवर प्रत्यारोपण का विकल्प सिर्फ प्राइमरी लिवर कैंसर और वह भी केवल लिवर तक सीमित छोटे ट्यूमरों वाले मामलों में अपनाया जा सकता है.

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भारत में लिवर ट्रांसप्लान्ट की प्रक्रिया में प्रगति के साथ आज न सिर्फ मरीज लंबे जीवन का आनंद ले सकता है बल्कि सर्जरी के बाद उसके जीवन की गुणवत्ता भी बेहतर हो जाती है.

कई पत्रिकाओं में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, जीवित डोनर लिवर प्रत्यारोपण से गुज़रने वाले 15% से अधिक मरीज विदेशों से होते हैं. फेफड़ों की बीमारियों में वृद्धि और बढ़ती जागरुकता के साथ लगभग 85% डोनर जीवित होते हैं. इससे आकर्षित होकर मिडल ईस्ट, पाकिस्तान, श्री लंका, बांग्लादेश और म्यांमार आदि विदेशों से लोग लिवर ट्रांसप्लान्ट के लिए भारत आते हैं. आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 200 ट्रांसप्लान्ट किए जाते हैं और अबतक लगभग 2500 जीवित डोनर ट्रांसप्लान्ट किए जा चुके हैं.

जीवित या मृतक डोनर वह है जो अपना लिवर मरीज को दान करता है. भारत में अबतक का सबसे बड़ा विकास यह हुआ है कि अब मृत डोनर के अंगों को मशीन में संरक्षित किया जा सकता है. शरीर से निकाले गए अंगो को कोल्ड स्टोरेज में सीमीत समय के लिए ही रखा जा सकता है और लिवर को डोनर के शरीर से निकालने के 12 घंटो के अंदर ही प्रत्यारोपित किया जाना चाहिए. जबकि मशीन संरक्षित लिवर की बात करें तो पंप के जरिए खून का बहाव जारी रहता है जिससे लिवर सामान्य स्थिति में रहकर पित्त का उत्पादन कर पाता है.”

भारत में यह तकनीक एक लोकप्रिय प्रक्रिया बन गई है. लिवर के केवल खराब भाग को प्रत्यारोपित किए जाने के कारण लिवर डोनेशन बिल्कुल सुरक्षित हो गया है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- भारत में अधिक सुरक्षित है जीवित डोनर लिवर ट्रांसप्लान्ट

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भारत में अधिक सुरक्षित है जीवित डोनर लिवर ट्रांसप्लान्ट

भारत में लिवर ट्रांसप्लान्ट की प्रक्रिया में प्रगति के साथ आज न सिर्फ मरीज लंबे जीवन का आनंद ले सकता है बल्कि सर्जरी के बाद उसके जीवन की गुणवत्ता भी बेहतर हो जाती है.

कई पत्रिकाओं में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, जीवित डोनर लिवर प्रत्यारोपण से गुज़रने वाले 15% से अधिक मरीज विदेशों से होते हैं. फेफड़ों की बीमारियों में वृद्धि और बढ़ती जागरुकता के साथ लगभग 85% डोनर जीवित होते हैं. इससे आकर्षित होकर मिडल ईस्ट, पाकिस्तान, श्री लंका, बांग्लादेश और म्यांमार आदि विदेशों से लोग लिवर ट्रांसप्लान्ट के लिए भारत आते हैं. आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 200 ट्रांसप्लान्ट किए जाते हैं और अबतक लगभग 2500 जीवित डोनर ट्रांसप्लान्ट किए जा चुके हैं.

जीवित या मृतक डोनर वह है जो अपना लिवर मरीज को दान करता है. भारत में अबतक का सबसे बड़ा विकास यह हुआ है कि अब मृत डोनर के अंगों को मशीन में संरक्षित किया जा सकता है. शरीर से निकाले गए अंगो को कोल्ड स्टोरेज में सीमीत समय के लिए ही रखा जा सकता है और लिवर को डोनर के शरीर से निकालने के 12 घंटो के अंदर ही प्रत्यारोपित किया जाना चाहिए. जबकि मशीन संरक्षित लिवर की बात करें तो पंप के जरिए खून का बहाव जारी रहता है जिससे लिवर सामान्य स्थिति में रहकर पित्त का उत्पादन कर पाता है.”

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भारत में यह तकनीक एक लोकप्रिय प्रक्रिया बन गई है. लिवर के केवल खराब भाग को प्रत्यारोपित किए जाने के कारण लिवर डोनेशन बिल्कुल सुरक्षित हो गया है.

जीवीत डोनर लिवर ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया में लिवर के केवल उस भाग को प्रत्यारोपित किया जाता है जो खराब हो चुका हो. सर्जरी के बाद डोनर का शेष लिवर दो महीनों के अंदर फिर से बढ़ने लगता है और पुन: सामान्य आकार ले लेता है. इसी प्रकार रिसीवर का प्रत्यारोपित लिवर भी अपनी सामान्य आकृति में बढ़कर, अपने कार्य को सामान्य रूप से शुरू कर देता है. भारत में लिवर ट्रांसप्लान्ट की प्रक्रिया समय के साथ अधिक सुरक्षित व सफल होती जा रही है. इसकी मुख्य वजह भारतीय नागरिकों में जागरुकता है, जहां लोग स्वेच्छा से अपने जीवित डोनर के साथ-साथ मृतक डोनर का लिवर दान कर रहे हैं.”

जीवित डोनर के जरिए लिवर ट्रांसप्लान्ट करना भारत में एक सुरक्षित व पारदर्शी गतिविधि है. यह प्रक्रिया संबंधित विशेषज्ञों की मंजूरी के बाद ही की जा सकती है. अच्छे संबंधों से किए गए दान के अलावा सभी दान राज्य द्वारा अधिकृत प्राधिकरण समिति की मंजूरी के बाद ही किए जा सकते हैं. यदि कोई विदेशी अंगदान करना चाहता है या ट्रांसप्लान्ट करवाना चाहता है तो उसे पहले स्टेट क्लियरेंस सर्टिफिकेट के साथ संबंधित एंबेसी से मंजूरी लेनी पड़ती है. डोनर रिस्क और ऑपरेशन की सफलता के बारे में साफ-साफ बात की जाती है. हालांकि, एलडीएलटी से नैदानिक लाभ जारी रखने के लिए जीवित डोनर को हर हाल में बचाना आवश्यक होता है.

डॉक्टर विवेक विज, डायरेक्टर व चेयरमैन, लिवर ट्रांसप्लान्ट और जीआई सर्जरी विभाग, फोर्टिस हॉस्पिटल, नोएडा

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