भारत में लिवर ट्रांसप्लान्ट की प्रक्रिया में प्रगति के साथ आज न सिर्फ मरीज लंबे जीवन का आनंद ले सकता है बल्कि सर्जरी के बाद उसके जीवन की गुणवत्ता भी बेहतर हो जाती है.

कई पत्रिकाओं में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, जीवित डोनर लिवर प्रत्यारोपण से गुज़रने वाले 15% से अधिक मरीज विदेशों से होते हैं. फेफड़ों की बीमारियों में वृद्धि और बढ़ती जागरुकता के साथ लगभग 85% डोनर जीवित होते हैं. इससे आकर्षित होकर मिडल ईस्ट, पाकिस्तान, श्री लंका, बांग्लादेश और म्यांमार आदि विदेशों से लोग लिवर ट्रांसप्लान्ट के लिए भारत आते हैं. आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 200 ट्रांसप्लान्ट किए जाते हैं और अबतक लगभग 2500 जीवित डोनर ट्रांसप्लान्ट किए जा चुके हैं.

जीवित या मृतक डोनर वह है जो अपना लिवर मरीज को दान करता है. भारत में अबतक का सबसे बड़ा विकास यह हुआ है कि अब मृत डोनर के अंगों को मशीन में संरक्षित किया जा सकता है. शरीर से निकाले गए अंगो को कोल्ड स्टोरेज में सीमीत समय के लिए ही रखा जा सकता है और लिवर को डोनर के शरीर से निकालने के 12 घंटो के अंदर ही प्रत्यारोपित किया जाना चाहिए. जबकि मशीन संरक्षित लिवर की बात करें तो पंप के जरिए खून का बहाव जारी रहता है जिससे लिवर सामान्य स्थिति में रहकर पित्त का उत्पादन कर पाता है.”

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भारत में यह तकनीक एक लोकप्रिय प्रक्रिया बन गई है. लिवर के केवल खराब भाग को प्रत्यारोपित किए जाने के कारण लिवर डोनेशन बिल्कुल सुरक्षित हो गया है.

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