10 वर्षीया अविका आजकल हरदम अपनी दादी से चिपकी रहती है. क्योंकि जब से कोरोना के कारण लॉक डाउन हुआ है, दादी और पोती दोनों घर पर ही हैं. लॉक डाउन से पहले स्कूल के दिनों में तो अविका स्कूल से आकर ट्यूशन फिर होमवर्क करने में ही लगी रहती थी. सुबह जल्दी उठने के कारण रात को 9 बजे तो उसे नींद के झोंके ही आने प्रारम्भ हो जाते थे पर जब से लॉक डाउन हुआ है तो न ट्यूशन का झंझट और न स्कूल होमवर्क का. बस ऑनलाइन क्लास अटैंड करके वह दादी के पास आ जाती और दादी अपनी कहानियों का पिटारा खोल देतीं . अब हर दिन वह दादी के पास कहानी सुनकर ही सोती है. अविका कहती है,"स्कूल टाइम में तो मुझे कभी कहानी सुनने का मौका ही नहीं मिलता था पर कोरोना के टाइम में दादी मुझे हर रोज कहानी सुनाती हैं. " कहानी के माध्यम से दादी और पोती की दोस्ती बहुत मजबूत हो गयी है.

कहानियों का ऐसा ही कुछ अनुभव है 8 साल के आर्यन का. आर्यन के दादा जी बताते हैं कि आर्यन आजकल मेरे पास ही सोता है और जब तक मुझसे दो तीन कहानी सुन नहीं लेता उसे नींद ही नहीं आती. कहानी सुनते समय वह मुझसे ढेरों प्रश्न पूछ्ता है. जब मेरी कहानियों का स्टॉक खत्म हो जाता है तो मैं उसे विभिन्न बाल पत्रिकाओं में से कहानी पढ़कर सुनाता हूँ. उसकी रुचि को देखते हुए मैंने उसके लिए महापुरुषों की जीवनियों का संग्रह ऑनलाइन मंगवाया है.

कहानियों के माध्यम से बच्चों को व्यस्त तो रखा ही जाता है परंतु इसके साथ ही कहानी के विभिन्न पात्रों के माध्यम से दैनिक जीवन और नैतिकता की बातें भी बड़ी सुगमता से सिखायी जा सकतीं हैं. बाल्यावस्था में कहानियों के माध्यम से बच्चों को दिए गए जीवन मूल्य ताउम्र काम करते हैं.

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