लॉकडाउन के साइड इफेक्ट: युवाओं की भी निकल आयी है तोंद

रिसर्च एजेंसी गैलप द्वारा हाल में किया गया एक रिसर्च सर्वे इन दिनों खूब चर्चा में है. इसके मुताबिक 4 मई के बाद जिन कुछ शहरों में लॉकडाउन में रियायतें दी गई है और दफ्तरों को खोल दिया गया है, हैरानी की बात है कि यहां के बहुत सारे लोग काम पर जाना ही नहीं चाहते. सरकारों ने जितनी संख्या में कर्मचारियों को ऑफिस आने की इजाजत दी है लोग उतनी संख्या में भी नहीं पहुँच रहे.

हद तो यह है कि जो लोग घरों से काम कर रहे हैं,उनमें से भी ज्यादातर लोगों के लिए ये छुट्टियों जैसा टाइम है और ये इसे खत्म होना नहीं देखना चाहते. हालांकि घरों से काम करते हुए भी ये लोग ईमानदार नहीं हैं. रिसर्च सर्वे के निष्कर्ष के मुताबिक़ ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत के ज्यादातर लोगों के लिए आलस्य से बढ़कर कुछ नहीं है. इस सर्वे का तो यहां तक मानना है कि बहुत सारे लोग तो इस बात के लिए भी तैयार हैं कि भले ही उनकी तन्ख्वाहें कम कर दी जाएं लेकिन उन्हें काम पर अब न न बुलाया जाए.

वास्तव में यह इस लॉकडाउन का सबसे बुरा साइड इफेक्ट है. लेकिन युवाओं का आलस्य कोई पहली बार निकलकर सामने नहीं आया. सच्चाई तो यह है कि तमाम जिम कल्चर के हल्ले के बावजूद हिन्दुस्तान का कामकाजी युवा दुनिया में सबसे ज्यादा आलसी है और दैहिक नजरिये से दुनिया में सबसे बेडौल भी है. सिर्फ इस लॉकडाउन की ही बात नहीं है,वैसे भी पूरी दुनिया में ऑफिस जाने वाले युवाओं में भारतीय युवा ही ऐसे हैं जिनकी सबसे ज्यादा तोंद निकली हुई होती है. इन दिनों तो आलस्य का कारण लॉकडाउन और उसमें तय रूटीन का न होना है लेकिन जब सामान्य दिन होते हैं तब भी युवाओं का घंटों कुर्सी पर बैठकर काम करना.  काम की अधिकता और समय की कमी की स्थितियों का होना तथा दिन भर अस्त-व्यस्त रहना.  ये कुछ ऐसी बातें हैं जिनके चलते हमारे युवाओं का स्वास्थ्य दुनिया में सबसे खराब है.

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बेतरतीब लाइफस्टाइल के कारण हमारी यह अस्वस्थ्यता सबसे पहले  हमारी बढ़ी हुई तोंद के रूप में ही दिखती है. यह अकारण नहीं है कि लॉकडाउन के पहले भी हर पांचवा भारतीय नौजवान औसत से ज्यादा मोटा था और हर आठवें नौजवान की तोंद बाहर निकली हुई थी. यह अलग बात है कि युवाओं की तोंद अधेड़ों जितनी तीखी या स्पष्ट नहीं दिखती. लेकिन नाभि के पास से अगर पेट खींचने पर पेट का एक बड़ा हिस्सा रबर की तरह खिंच जाए या हाथ पर आ जाए तो समझो तोंद निकली हुई . कई बार यह तोंद हमारे लिए इंबैरेसमेंट की वजह भी बन जाती है.  लेकिन अगर हम इससे शर्मिंदा न भी हों तो भी तो यह हमारे लिए कई किस्म की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की वजह तो बनती ही है.

सवाल है इस स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है? आप कहेंगे लाइफस्टाइल. अगर लाइफस्टाइल जिम्मेदार है तो इसे बदल दो. आप कहोगे आपके लिए यह संभव नहीं है; क्योंकि बाजार की यही डिमांड है. अगर लाइफस्टाइल बदलना संभव नहीं है; क्योंकि भूमंडलीकरण के चलते दुनिया आपस में एक जैसा जीवन जीने के लिए बाध्य है तो क्या पूरी दुनिया का भी यही हाल है ? इस सवाल का जवाब है-‘नहीं’. दुनिया में और कहीं भी युवाओं के स्वास्थ्य का ऐसा हाल नहीं है जैसे हमारे यहाँ है . वास्तव में हम हिंदुस्तानी चाहे युवा हों या अधेड़ इस कहावत को बेहद संजीदगी से अपनाते हैं कि आराम सबसे बड़ी चीज है.

हम लोग कसरती काम को बिल्कुल भी तरजीह नहीं देते हैं.  पांच  साल पहले हुए ‘मैक्सबूपा वॉक फॉर हेल्थ सर्वे’  में यह निष्कर्ष निकलकर सामने आया था कि हर चौथा हिंदुस्तानी कसरत से जी चुराता है,चाहे वह युवा हो या अधेड़. सर्वे के मुताबिक जो लोग तथाकथित वर्जिश करते भी हैं वे भी दौड़ने या तैरने जैसी मेहनत भरी वार्जिशों से बचते हैं. इसकी जगह बागो बहार में टहलना पसंद करते हैं.  दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे महानगरों के लोगों से बातचीत के आधार पर हुए सर्वे के मुताबिक 56 फीसदी लोग वर्जिश के नाम पर टहलना पसंद करते हैं. इसी सर्वे के निष्कर्षों के मुताबिक 42 फीसदी लोग स्वस्थ रहना चाहते हैं, इसलिए टहलते हैं जबकि 34 फीसदी लोग ब्लड प्रेशर की समस्या से जूझ रहे हैं इसलिए टहलते हैं.  इसी क्रम में 24 फीसदी ऐसे भी हैं, जिन्हें डॉक्टर साहब ने कहा तो टहलने लगे वरना इनका अपना कोई एजेंडा नहीं था.

सबसे चिंताजनक बात यह है कि 50% युवा मानते हैं स्वास्थ्य की चिंता करना तो बुड्ढों का काम है ,हम क्यों इसे लेकर परेशान रहें  हम क्या कोई बुड्ढे हैं ? कुल मिलकर कहने की बात यह है कि निकलती तोंद लाइफस्टाइल या बदले हुए वर्क नेचर का नतीजा नहीं बल्कि हमारी नासमझी और स्वास्थ्य को लेकर जागरूक न होने का नतीजा है.  बहरहाल इस सब पर आपकी कितनी भी आलोचना कर ली जाए कोई फायदा नहीं. इसलिए आइये देखते हैं कि खानपान की सजगता से बढ़ती हुई तोंद पर कैसे काबू पाया जा सकता है? अगर आपकी तोंद निकली हुई है तो आपके लिए पुदीना काफी फायदेमंद साबित हो सकता है.  नियमित रूप से इसकी चटनी और पुदीने से बनी चाय  पीजिये.  जल्द ही मोटापा से निजात मिलेगा और तोंद से भी.  आपके लिए सौंफ भी कापी फायदेमंद साबित हो सकती है.  इसके लिए आधा चम्मच सौंफ को एक कप पानी में उबालें और फिर करीब 10 मिनट तक के लिए इसे ढक कर रख दें.  इसके बाद इस पानी का सेवन करें.  लगातार तीन महीने तक ऐसा करने से वजन में फर्क पड़ेगा और मोटापे में भी.

मूली को सलाद में तो खाते ही होंगे. अब इसके रस का भी सेवन करना शुरू करिए. दो बड़े चम्मच मूली के रस में शहद मिलाकर बराबर मात्रा मिलाकर इसे पानी के साथ पीयें.  एक महीना ऐसा करने से आपका वजन में निश्चित फर्क दिखेगा.  टमाटर और प्याज भी फैट कम करने में काफी फायदेमंद साबित होते हैं.  इसके लिए खाने के साथ टमाटर और प्याज के सलाद पर काली मिर्च और नमक डालकर खाइए.  इससे बढ़ता वजन कम होने लगेगा.  साथ ही आपके शरीर में पर्याप्त मात्रा में विटामिन सी, विटामिन ए, विटामिन के, आयरन, पोटैशियम, लाइकोशपीन और ल्यूटिन भी पहुंचेगा.

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करेले की सब्जी खाने से भी वजन में फर्क पड़ता है.  इसके लिए कम तेल में कटे हुए करेले की सब्जी खाएं न कि तले हुए करेले. ग्रीन टी भी मोटापा कम करने में सहायक है.  ग्रीन टी का सेवन शुरू करें बिना चीनी और दूध.  इसमें मौजूद एंटी ऑक्सिडेंट्स आपके चेहरे से झुर्रियों को भी हटाता है और साथ ही साथ वजन को भी नहीं बढ़ने देता. लौकी का जूस वजन घटाने का एक अच्छा माध्यम है. इससे आपका पेट भी भरा रहता है और लौकी में मौजूद फाइबर भी शरीर को स्वस्थ रखते हैं.  जाहिर है मोटापा तो कंट्रोल में रहता ही है.  हरी मिर्च भी आपके इस अभियान में सहायक बन सकती है बशर्ते तीखी हो और उसे खाते हुए बार बार आप पानी न पीयें.

आपके लक्ष्य को हासिल करने में गाजर की भी काफी उपयोगिता है.  इसके लिए करें ये कि खाना खाने से कुछ देर पहले गाजर खाएं. गाजर का जूस भी वजन कम करने में सहायक होता है. लेकिन बाजार में पीयें तो ध्यान रखें उसमें चीनी या स्क्रीन न हो. पपीता भी फायदेमंद है. पपीता हर मौसम में उपलब्ध है. लंबे समय तक पपीते का सेवन चर्बी कम करता है.  मोटापा कम करने के लिए छाछ भी काफी उपयोगी है. लेकिन लस्सी की तरह से पीने में नहीं.  इसके लिए आंवले और हल्दी को बराबर मात्रा में पीसकर इसका पाउडर बना लें और इसे रोजाना छाछ के साथ पीयें. बहरहाल मेहनत करके तोंद नहीं सिकोड़ना चाहते तो खानपान की सजगता से ऐसा कर सकते हैं. तोंद कम होगी.

#coronavirus: साइकोलोजिस्ट से जानें Lockdown में बच्चों और बुजुर्गों को कैसे रखें मेंटली फिट

लॉकडाउन की वजह से लोग घरों में रह-रहकर उब गए हैं क्योंकि वे बाहर नहीं जा सकते हैं, ऐसे में बच्चों और बुजुर्गों के दिमाग पर इसका ज्यादा असर पड़ रहा है. आपको बता दें कि भारतीय मनोचिकित्सा सोसाइटी ने इस बीच मानसिक बीमारी से पीड़ित रोगियों की संख्या में भारी इजाफा देखा है. एक रिपोर्ट के अनुसार,  देश में मानसिक बीमारी के मामलों में 20  प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है. यानी कम से कम पांच भारतीयों में से एक मानसिक रूप से पीड़ित है. इस आर्टिकल में हम जयपुर की साइकोलोजिस्ट डॉ. अनामिका पापड़ीवाल द्वारा बताए गए कुछ उपायों के बारे में आपको बता रहे हैं, जिसे अपना कर आप बुजुर्गों और बच्चों का ख़्याल रख सकते हैं.

बच्चों के लिए टिप्स

बच्चों को कहानी सुनाएं और सुने भी

उनके साथ खेलें और उन्हें कुछ अच्छा बनाकर खिलाएं

कोरोना वायरस और प्रौबल्म को लेकर उनसे बात न करें

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घर के अन्दर ही उन्हें योगा, पजल गेम, स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज में बिजी रखें

उनके दोस्तों से फोन पर बात कराएं

भले ही स्कूल बंद है लेकिन रोजाना उन्हें कुछ न कुछ जरूर पढ़ाएं

बुजुर्गों के लिए टिप्स

उनके साथ टाइम स्पेंड करें

उनसे बातचीत करें

उनके साथ पजल गेम या इंडोर गेम खेलें

उन्हें एक्सरसाइज और योगासन के लिए प्रेरित करें

उन्हें घर के छोटे-छोटे काम जैसे गार्डनिंग में बिजी रखें

उनके चाहने वालों से फोन पर बात कराएं

समाचार देखने से मना करें

उनकी लाइफ से जुड़े मजेदार किस्से सुनें क्योंकि उनके पास कहने के लिए बहुत कुछ होता है.

दोस्तों, अगर आप इन टिप्स को फौलो करते हैं तो खुद को और अपने परिवार को हेल्दी रख सकते हैं.

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