#lockdown: तीर्थ यात्रियों की वापसी, फिर छात्रों और मजदूरों के साथ भेदभाव क्यों?

गरीब मजदूर और छात्र अपने-अपने घर जाने के लिए तड़प रहे हैं. क्योंकि उनके जाने के लिए कोई वाहन व्यवस्था नहीं है. लेकिन वहीं सारे नियम और कानून को ताख पर रखकर तीर्थ यात्रियों को यात्राएं कराई जा रही है. जबकि गरीब मजदूरों और छात्रों के घर जाने पर राजनीति हो रही है.

लॉकडाउन में जहां घर के ज़रूरियात सामान लाने पर पुलिस लोगों पर बेतहासा डंडे बरसा कर उसका पिछवाड़ा लाल कर दे रही है. वहीं आंध्र प्रदेश के राज्य सभा सांसद जी बीएल नरसिम्हाराव की पहल पर केंद्र सरकार के आदेश पर धार्मिक नगरी काशी से सोमवार को नौ सौ भारतीय तीर्थ यात्रियों को उनके गंतव्य पर भेजा गया.

लेकिन न तो इन तीर्थ यात्रियों की थर्मल स्क्रीनिंग की गई और न ही सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन किया गया. हालात ऐसे थे कि एक बस में 45 सीटों पर 45 यात्री थे. 12 बसें भोर में चार बजे रवाना की गई जबकि आठ बसें देर शाम को. इसके अलावा दो क्रूजर से 12 की संख्या में तीर्थ यात्री रवाना किए गए.

तीर्थ यात्रियों की रवानगी जिलाधिकारी के देख-रेख में की गई. बसें उन्हें आंध्र प्रदेश, तमिलनाडू, कर्नाटक और केरल ले कर गई. रास्ते में कुछ और यात्रियों को भरा गया. ये सभी दक्षिण भारतीय यात्री सोनापुरा और आसपास के क्षेत्रों में स्थित मठों और गेस्ट हाउस मे ठहरे हुए थे.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने राष्ट्र को अपने चारों संबोधन में ज़ोर देते रहे हैं कि सोशल डिस्टेन्सिंग ही कोरोना महामारी से बचाव का एकमात्र विकल्प है. लॉक डाउन का मकसद लोगों को भीड़ से बचाना है, क्योंकि एक जगह कई लोगों के जमा होने से कोरोना फैलने की आशंका बढ़ जाती है. लेकिन इसके बावजूद शुक्रवार को लॉकडाउन और सोशल डिस्टेन्सिंग के नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हुए पूर्व सीएम एचडी कुमारस्वामी के बेटे निखिल गौड़ा की बड़ी धूमधाम से और भव्य तरीके से शादी हुई. इस वीआईपी शादी में मेहमानों की भीड़ ने न तो सोशल डिस्टेन्सिंग पर ध्यान दिया और न ही मास्क पहनना जरूरी समझा. इस शादी समारोह के आयोजन में जिस तरह से कोरोना वायरस से बचाव के लिए लागू लॉकडाउन का उल्लंघन हुआ उससे राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन पर कई सवाल खड़े हो गए हैं. क्योंकि इस विवाह समारोह की बाजाप्ता अनुमति ली गई थी और विवाह स्थल तक मेहमानों को लाने-ले जाने के लिए प्रशासन की ओर से पास भी निर्गत किया गया था.

वैसे, कुमार स्वामी सफाई दे रहे हैं कि शादी समोरोह बड़े ही सादगी से किया गया और इसमें चुने हुए मेहमान ही बुलाये गए, लेकिन शादी समारोह की जो फोटो सामने आई है, उनमें दूल्हा-दुलहन के इर्द-गिर्द काफी भीड़ साफ नजर आ रही है. लॉकडाउन के दौरान देशभर में इस प्रकर के समारोह करना तो दूर, लोगों को समूह में सड़कों पर आने की भी इजाजत नहीं है. इसके बावजूद कुमारस्वामी जैसे नेता शुभ मुहूर्त के फेर में शादी टालने की बजाय भीड़ वाला आयोजन करने से नहीं चुके.

हाल ही में टुमकुर जिले के तुरुवेकेर से बीजीपी विधायक एम जयराम ने भी इसी तरह लॉकडाउन के नियमों की धज्जियां उड़ाई थीं. उन्होंने सार्वजनिक तौर पर ग्रामीणों के साथ अपना जन्मदिन मनाया था. इस मौके पर केक और बिरियानी लोगों के बीच बँटवाई गई थी. यहाँ भी अधिकतर लोग बिना मास्क के थे.

गोरखपुर में एक व्यापारी के बेटे के जन्मदिन की पार्टी में करीब 60 लोगों के जुटने पर अगर पुलिस लॉकडाउन के उलंघन का मामला दर्ज कर सकती है, तो इन लोगों के आयोजनों को लेकर इसी तरह की कार्यवाई से परहेज क्यों ? क्या लॉकडाउन के नियम क्या सिर्फ आम इन्सानों और गरीब मजदूरों के लिए है ? नेताओं के लिए नहीं ? क्या नेता होने का मतलब यह है कि वे नियमों के बंधन से मुक्त हैं ?  

दरअसल, देश में जिस तरह कोरोना के लिए माहौल बनाया गया, मानो मात्र किसी जाति वर्ग विशेष को ही हाशिये पर रखा गया हो. आए दिन अमीर लोग अपने परिवार और पहचान वालों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जा-आ रहे हैं. लेकिन गरीब मजदूर कहीं पुलिस से पीट रही है, तो कहीं भूखे पेट पैदल ही चलने को मजबूर हैं.

अब जब दो हफ्तों के लिए लॉकडाउन और बढ़ा दी गई है तो ऐसे में मजदूरों की बेचैनी और बढ़ गई है. क्योंकि न तो उनके पास रोजगार है न खाने के लिए पैसे, तो जाएँ तो जाएँ कहाँ ?

गैरकृषि महीनों में शहरों में कमाई करने जाने वाले प्रवासी मजदूरों की चिंता यह भी है कि फसलों की कटाई का समय है, ऐसे में घर नहीं पहुंचे तो तैयार फसल बर्बाद हो जाएगी और वह कर्ज में डूब जाएंगे. लेकिन इनके पास लॉकडाउन खत्म होने का इंतजार करने के अलावा और कोई विकल्प भी नहीं है.

चार बच्चों की माँ 36 वर्षीय आशा देवी बात करते हुए रो पड़ी. उसने बताया कि उसके दो बच्चे वहाँ यूपी में अकेले रहते हैं.

बड़ा 14 साल का बेटा मजदूरी करता है और अपने छोटे भाई का ध्यान भी रखता है. पिछले महीने वह गाजियाबाद के ईंट-भट्टे पर काम करने के लिए अपने पति और 13 अन्य लोगों के साथ पहुंची थी. ठेकेदार ने उन्हें राशन देने का वादा किया था, लेकिन अचानक भाग गया. अब उनके पास खाने को कुछ नहीं है. मजबूरन पैदल ही सब अपने गाँव लौटने को निकल पड़े. लेकिन पुलिस ने उन्हें जाने नहीं दिया.

34 वर्षीय मोनु वेटर का काम करता है. उसकी पत्नी, माँ और दो छोटे बच्चे गाँव में रहते हैं, उसने बताया कि होली के दौरान उसने परिवार को कुछ पैसे भेजे थे, जो अब पूरी तरह से खत्म हो चुके हैं. लॉकडाउन के कारण काम छिन गया तो कमाई भी बंद हो गई. अब न अपने घर जा सकते हैं और न यहाँ रह सकते हैं. क्या करे समझ नहीं आता.

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करीब तीन दर्जन मजदूर तो जम्मू में फंसे हुए हैं. मजदूरों तक किसी तरह की मदद नहीं पहुँचने पर वे इतने विचलित हैं कि अपने छोटे-छोटे बच्चे के साथ आत्महत्या करने पर मजबूर हो गए थे.

यह दो-चार नहीं, अनगिनत मजदूरों की अंतहीन दास्तान है, जो काम-धंधे की तलाश में हरियाणा, राजस्थान, बिहार, बंगाल आदि राज्यों से देश के अन्य शहरों में पहुंचे थे, लेकिन लॉकडाउन में फंसे हुए हैं. कोई जरिया नहीं है जिससे वह अपने घर जा सकें.

कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमन को देखते हुए सरकार ने लॉकडाउन को 14 अप्रेल से बढ़ाकर 3 मई तक कर दिया. लेकिन क्या लॉकडाउन ही किया जाना एक मात्र विकल्प था ? वह भी अचानक से ? क्या पूर्ण लॉकडाउन का एलान करने से पहले सरकार ने उन छात्रों के बारे में भी नहीं सोचा जो अपने परिवार से दूर बाहर रह कर पढ़ाई कर रहे हैं ? की वह अपने घर कैसे जाएंगे ? 

राजस्थान के कोटा में कई छात्र हैं, जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, और वहाँ फंस चुके हैं.  इन छात्रों का कहना है कि इनके पास खाने की भी ठीक से सुविधा नहीं है. कहते हैं, ‘हम पूरी तरह से फंस चुके हैं कोटा में. सोचा था निकलने का कोई जरिया मिलेगा. लेकिन सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिला. एक छात्र का कहना है कि वह झारखंड से कोटा नीट की तैयारी करने आया था. एक महीने पहले ही हमारी टेस्ट सीरीज बंद हुई थी. उसके बाद लॉकडाउन लगने से हम घर नहीं जा पाए. इंतजार था कि जैसे ही लॉकडाउन खत्म होगा अपने घर चले जाएंगे. लेकिन दोबारा से लॉकडाउन लग गया तो अब क्या करे.

उत्तर प्रदेश के कानपुर से कोटा पढ़ने आई तान्या बताती है कि ‘लॉकडाउन बढ़ चुका है और हमारे घरवाले हमारी चिंता में बहुत परेशान हैं. अब हम लोग भी घर जाना चाहते हैं. यहाँ खाना भी बाहर से आता है, तो रिस्क बढ़ गया है. हम सब घर जान चाहते है , लेकिन यहाँ कोई व्यवस्था नहीं है. कहती हैं पढ़ाई में भी अब मन नहीं लग रहा है, हम एकदम डिप्रेशन में हैं.‘

हैदराबाद विश्वविधालय की प्रियंका की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है. वह अकेलापन मसहूस करने लगी है. कहती है, ‘ज़िंदगी बस हॉस्टल के रूम से लेकर मैस की बेंच तक सिमट कर रह गई है. मैं अपने फ्लोर पर अकेली स्टूडेंट हूँ. आसपास कोई एक शब्द बात करने वाला नहीं है. इस समय मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती मानसिक स्वास्थय को बरकरार रखने की है. कभी-कभी मन में डर भी लगता है कि अपने घर-परिवार से दूर अगर कुछ हो गया तो कौन संभालेगा. हालांकि, मैस कर्मचारी और सुरक्षा गार्ड भी हमारे लिए ड्यूटी निभा रहे हैं तो उनसे साहस मिलता है.

मनोचिकित्सक डॉ. सुमित गुप्ता कहते हैं कि कोई भी यदि इस तरह के सिचुएशन में फंस जाएगा तो वह तनाव में रहेगा. स्ट्रेस में रहने से इंसान के भूख और नींद में बदलाव आ जाते हैं. उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाति है जिससे संक्रमित होने का खतरा बढ़ जाता है. कोटा में फंसे अधिकतर छात्र बिहार और यूपी के हैं. और बताते हैं कि कई छात्र दिवाली के बाद अपने घर नहीं गए. पिछले महीने ही उनके कोर्स कंप्लीट हुए और घर जाने का मन बना ही रहे थे कि लॉकडाउन हो गया और वे जा नहीं पाए, लेकिन दोबारा लॉकडाउन से वह डिप्रेशन में आ गए हैं.

कोटा में फंसे छात्र अपनी बात सरकार तक पहुँचाने के लिए सोशल मीडिया का भी सहारा ले रहे हैं. हैशटैग से करीब 70 हजार ट्वीट किए गए. छात्रों ने पीएमओ, प्रधानमंत्री, राजस्थान के मुख्यमंत्री समेत अन्य राज्यों के भी कई नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों को ट्वीट किए. लेकिन अभी तक इनकी सहायता के लिए कोई आगे नहीं आया.

फेसबुक पर भी वे अपने समस्याओं के समाधान के लिए पोस्ट करे रहे हैं, लेकिन यहाँ से भी कोई समाधान अभी तक नहीं मिला है. स्टूडेंट्स का आरोप है कि इनके चलाए हैशटैग ‘सेंडअस बैकहोम’ को अब नेता अन्य राज्यों की घटनाओं के लिए उपयोग कर रहे हैं.

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सोशल मीडिया पर छात्रों की मदद के लिए हैशटैग चलाने वाले आशीष रंजन एक ट्विटर हैंडल के लिए काम करते हैं, बताते हैं कि छात्र बेहद परेशान हैं और हमारे पास हजारों की संख्या में रोज छात्र मैसेज कर रहे हैं. रंजन कहते हैं कि छात्र अपनी परेशानी बताते हुए रोने लगते हैं, वे इस कदर परेशान हो चुके हैं और शासन प्रशासन की ओर से पास रद्द किए जाने के बाद वह घर जाने को लेकर चिंचित हैं.

छात्र अपनी समस्या जब कोचिंग संस्थाओं से बताते हैं तो वे भी सरकारी नियमों का हवाला देते हुए मदद करने से खुद को असमर्थ बताते हैं.

छात्र वीडियो के माध्यम से अपना दर्द परिवार तक पहुंचा पा रहे हैं. कहते हैं बातों से ज्यादा हमारे आँसू बहते हैं.

लेकिन क्या लॉकडाउन किया जाना ही एक मात्र विकल्प था ? और अगर लॉकडाउन किया ही जाना था तो उसके पहले लोगों को जानकारी नहीं दी जानी चाहिए थी? पूर्ण लॉकडाउन की घोषण से पहले लोगों को वक़्त न देकर प्रधानमंत्री जी ने सिर्फ अपनी मर्ज़ी चलाई, जिसका खमजाया भुगतना पड़ है देश की जनता को. 

यदि मोदी जी 24 मार्च को सम्पूर्ण लॉकडाउन करने के लिए चार घंटों के बजाय 20 मार्च के देश को दिये गए संदेश में बता देते जैसे और देशों में हुआ तो यह समस्या खड़ी ही नहीं होती. लेकिन उन्होंने यह सोचा ही नहीं और अचानक से लॉकडाउन की घोषण कर दी. कम से कम लॉकडाउन के पहले लोगों को संभलने का वक़्त दिया होता तो वे अपनी जरूरतों के हिसाब से अपनी व्यवस्था कर लेते. जिसे जहां जाना होता चले जाते. लेकिन मोदी जी ने ऐसा कुछ सोचा ही नहीं और अपनी घोषण सुना दी, जो जहां हैं वहीं रहें. ‘सरकार फंसे तीर्थ यात्रियों को लाने की व्यवस्था कर सकते थे, तो फिर लॉकडाउन में फंसे छात्र और गरीब मजदूरों का क्या कसूर था ? विदेशों में फंसे भारतियों को स्पेशल विमान से यहाँ बुलाया जा सकता था, तो फिर छात्र और मजदूरों को क्यों नहीं ? क्या ये देश के नागरिक नहीं है ? 

लाखों गरीब मजदूर अपने गाँव तक जाने वाले वाहन की उम्मीद में पैदल ही चलते जा रहे हैं. भूख-प्यास से ब्याकुल ये मजदूर किसी तरह बस अपने गाँव पहुंचाना चाहते हैं. क्योंकि अब उनके लिए शहरों में कुछ बचा नहीं. लेकिन अगर सरकार इन प्रवासी मजदूरों के लिए शहर में ही खाने और रहने की व्यवस्था कर देती, तो ये उम्मीद होती कि कई मजदूर घर जाने के लिए इतने परेशान न होते और न ही स्थिति इतनी खराब होती.

कोटा में पढ़ने वाले छात्र लाखों रुपये फीस देकर कोचिंग करते हैं. कई हजार रुपये किराए के रूप में अपने हॉस्टल और पीजी को देते हैं. अधिकतर कोचिंग करने वाले छात्र सशक्त्त मध्यमवर्ग या उच्च्वर्गीय परिवारों से होते हैं. ये सब छात्र 18 से कम उम्र के के हैं जो कोचिंग के लिए अपने घर और परिवार से दूर रहते हैं. इनकी अपनी समस्याएँ हैं, डर है, कोरोना के संक्रमन का खतरा है. मानसिक तनाव होने की शंका है. इसलिए सरकार ने कुछ छात्रों की आवाज सुन ली और उन्हें उनके घर भेज दिया गया. लेकिन अभी भी कुछ छात्र हैं जो लॉकडाउन में फंसे हैं और घर नहीं जा पा रहे हैं.

लेकिन वो गरीब जो रो रहे हैं, पैदल ही अपनी पत्नी, छोटे-छोटे बच्चों और बुजुर्ग परिवार वालों के साथ हजारों किलोमीटर पैदल चलकर घर पहुंचना चाहते हैं, उनके साथ यह अन्याय क्यों ? उन सबों को भी बसों की व्यवस्था कर उनके घर क्यों नहीं पहुंचवाया जा सकता है ? इन गरीबों के ऊपर डांडा चलाकर, मुर्गा बनाकर उन्हें कहीं भी परेशान होने छोड़ दिया जाना केंद्र और अन्य राज्य सरकारों के ऊपर बड़े सवाल खड़े करता है.

#lockdown: कोरोना संकट और अकेली वर्किंग वूमन्स

कोरोना के खिलाफ यह जंग लंबी चलेगी ऐसा लग रहा है.  जो लोग परिवार के साथ घरों में हैं वे इस संकट का मुकाबला मिलकर कर रहे हैं. लेकिन वो कामकाजी महिलाएं जो इस मुश्किल समय में अकेली हैं. उनके लिए यह समय और परिस्थितियां किस तरह के अनुभव, दिक्कतें लेकर आई हैं? कोरोना महामारी के बीच वे अकेले अपने दम पर किस तरह हालात का सामना कर रही हैं? कहीं उनके हौंसले पस्त तो नहीं हुए? कोरोना से खुद को सुरक्षित रखने और इस डर पर अपनी जीत दर्ज कराने की उनकी क्या तैयारी है? आजकल दिनचर्या कैसी है? यही सब जानने के लिए हमने कुछ महिलाओं से बातचीत की. आइए जानें क्या कहा इन्होंने –

किश्वर जहां – जागरूक रहें, डरें नहीं

कस्बा गंगो, जिला साहनपुर, यूपी के सरकारी प्राथमिक स्कूल में प्रधानाचार्य किश्वर जहां के माता-पिता नहीं हैं. उन्होंने शादी नहीं की. अकेली रहती हैं और एकल जीवन जीने की आदि हैं. कोरोना की वजह से स्कूल में छुटि्टयां हैं इसलिए आजकल घर पर हैं.

जिस तेजी से कोरोना फैल रहा है किश्वर की सबसे बड़ी चिंता क्या है? “मैं कोरोना पीड़ितों की बढ़ती संख्या से चिंतित हूं. मैं पहले से समाचारों के माध्यम से दुनिया में फैली इस बीमारी के प्रकोप से परिचित थीं. यह कैसे फैलता है? इससे कैसे बचा जा सकता है. इन बातों की जानकारी मुझे थी. जब भारत में कोरोना मरीज सामने आए तो मैं सर्तक हो गईं. क्योंकि मैं जानती हूं कि यह तेजी से एक दूसरे के संपर्क में आने से फैलता है. मैं आस-पड़ोस के लोगों को जागरूक करने लगी. कैसे सोशल डिस्टेंस मेनेटेन करना है. क्यों मास्क लगाना जरूरी है. घर से बाहर नहीं निकलना आदि. कोरोना से मैं सतर्क हूं भयभीत नहीं. क्योंकि इससे बचाने की मेरी पूरी तैयारी है. मैं सभी सावधानियों का पालन कर रही हूं.”

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किश्वर अपने आसपास के लोगों को ही अपना परिवार मानती हैं. वे बताती हैं, “जब 22 मार्च को जनता कर्फ्यू गया तभी से यह संभावना थी कि यह आगे बढ़ेगा. टीवी व अखबारों के माध्यम से मैंने बाकी देशों की स्थिति का जायजा लिया था कि किस प्रकार कोरोना रोकने के लिए कई शहरों को लॉक डाउन किया गया है. इस बात को ध्यान में रखते हुए मैंने लगभग महीने-डेढ़ महीने का राशन लाकर पहले ही रख लिया ताकि बार-बार बाजार न जाना पड़े. ”

किश्वर कहती हैं, ‘मुझे मौत का डर नहीं. मौत बरहक है वो आनी है. चिंता यह है कि अगर मुझे यह बीमारी होती है तो क्या चिकित्सीय सुविधाएं मिल पाएंगी या नहीं?”

इन दिनों किश्वर का रुटीन थोड़ा बदल गया है. अब वे शारीरिक व मानसिक मजबूती व शांति के लिए सुबह योग व ध्यान लगाती हैं. पौष्टिक हल्का सुपाच्य खाना खाती हैं. किताबें पढ़ती हैं. दिन के समय फोन पर दोस्तों व भाई-बहनों से बात करती हैं. अब ज्यादा टीवी नहीं देखती क्योंकि कई बार हर तरफ से महामारी के बढ़ते आंकड़े किश्वर को परेशान कर देते हैं. इसलिए बस मुख्य समाचार देखती हैं. पुराने गाने सुनती हैं. घर की साफ सफाई के साथ ही बागवानी करती हैं. यूट्ब्यू पर कुकरी शो देखती हैं और आशा करती हैं कि जब सब ठीक हो जाएगा तो वे यह सभी रेसिपी बनाकर अपने आसपास के लोगों को खिलाएंगी.

राखी रानी देब मन में डर है पर कोरोना को हराना है

जानिए कुछ  राखी रानी देब के बारे में. राखी असम की रहने वाली हैं. परिवार असम में रहता है. राखी दिल्ली में एक पीआर एजेंसी में काम करती हैं और काफी समय से अकेली रह रही हैं. राखी बताती हैं, “पहले और अब लॉकडाउन के बाद की जिंदगी में काफी अंतर आ चुका है. पहले मैं सुबह ऑफिस जाती थीं और वहां काम व ऑफिस के लोगों के बीच कब समय बीत जाता था पता नहीं चलता था. कभी दोस्तों के साथ बाहर डिनर करना. घर में रहने का मौका बहुत कम मिलता था. ऐसा लगता था जैसे रात को सोने के लिए घर आती हूं और सुबह फिर से ऑफिस और देर तक ऑफिस का काम. लेकिन अब चौबीसों घंटे घर पर हूं”

राखी बताती हैं कि ऐसे समय में लगातार खबरों को जानना भी जरूरी है दूसरी तरफ कोरोना जिस तेजी से बढ़ रहा है ऐसे में अकेले रहते हुए यह खबरें नकारात्मक विचारों को जन्म देती हैं. मैं परिवार से दूर हूं और इस समय मेरे पास खाली समय भी है कहते हैं खाली दिमाग शौतान का घर. ऐसे में कई बार नकारात्मक चीज़ें सोचने लगती हूं. कई बार यह भी सोचती हूं कि अगर मुझे कुछ हो गया तो क्या करूंगी? दिल्ली या उसके आसपास मेरा कोई रिश्तेदार भी नहीं जो मेरी मदद करे. मुझे नहीं पता उस समय मुझे खुद को कैसे मैनेज करना होगा. यही सब नेगेटिव बातें सोचकर कई बार बहुत डर जाती हूं. फिर यही डर मुझे यह भी सोचने के लिए बोलता है कि कैसे खुद को कोरोना से बचाया जाए.

जब लॉकडाउन की घोषणा हुई तो राखी ने क्या तैयारी की थी? “सच कहूं तो मैंने अपने लिए कुछ भी खानेपीने का सामान नहीं रखा था. वही जो थोड़ा बहुत राशन रहता है घर पर, वही मेरे पास था. जैसे ही 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा हुई. मैंने अपनी बालकनी से बाहर देखा, लोग अपनी गाड़ी और बाइक लेकर बाजार जा रहे थे. तब मुझे घबराहट हुई कि मेरे पास तो खानेपीने का सामान बहुत कम है. लेकिन उस दिन मैं बाजार नहीं गई. अगले दिन सब जगह बंद था. सबसे बड़ी मुश्किल तब आई जब लॉकडाउन के पहले ही दिन मेरी रसोई गैस खत्म हो गई. मैं सोच में पड़ गई, अब क्या करूं? आसपास गैस सप्लाई करने वाले जितने लोग थे सबको फोन किया सबका एक ही जवाब था कि दुकान बंद है. उस रात मैंने कुछ नहीं खाया. अगले दिन कई गुप्स में मैसेज किया तो एक व्यक्ति ने घर आकर गैस का सिलेंडर दिया और मैंने राहत की सांस ली. ऑनलाइन सामान की सप्लाई भी बंद हो चुकी थी. कुछ जो सामान मेरे पास था उसी से मैंने काम चलाना शुरु किया. फिर दो दिन बाद जब हमारे मार्किट की दो-तीन दुकाने खुली तो मैं राशन लेकर आई. ”

दो सप्ताह से ज्यादा समय लॉकडाउन को हो चुका है. कोरोना के केस रोज बढ़ते जा रहे हैं ऐसे में राखी की मनस्थिति कैसी है? राखी बताती हैं, “अमेरिका, इटली, फ्रांस में जो हालात हैं उसे देखकर डर समा गया है कि कहीं भारत में भी स्थिति बिगड़ न जाए. मुझे कोरोना न हो जाए. कई बार बहुत नकारात्मक विचार आते हैं.”

नकारात्मक विचारों से खुद को दूर रखने के लिए क्या करती हैं? “कोरोना का डर व नकारात्मक विचार मुझसे दूर रहें इसके लिए मैं रोज अपने परिवार से फोन पर बात करती हूं. दोस्तों से बात करती हूं. चैटिंग करती हैं. सोशल मीडिया पर एक्टिव रहती हूं ताकि ध्यान बंटा रहे और मैं पॉजिटिव सोचूं. घर के अंदर रहती हूं बाहर नहीं निकलती. यही एक मात्र उपाय है खुद को सेफ रखने का.”

राखी अपने परिवार को बहुत मिस करती हैं. वे मानती हैं अगर परिवार साथ होता तो इस समय को फेस करना आसान हो जाता. मम्मी चाहती हैं जैसे ही हवाई सेवा शुरु हो मैं तुरंत घर लौट आऊं.

राखी कोरोना से इतनी डरी हुई हैं तो उससे लड़ेगी कैसे? राखी कहती हैं, “मैं लड़ रही हूं. मैं घर से बाहर नहीं निकलती. बार-बार हाथ धोती हूं. सामान लेने जाती हूं तो मास्क पहनकर पूरी सावधानी के साथ. वापस लौटकर अपने हाथ धोना. मैं जानती हूं कि ऐसे कठिन समय में मुझे अपना ख्याल खुद रखना है.”

राखी का रुटीन पहले जैसा ही है. पहले वे छह बजे उठती थीं अब सात बजे. पहले की तरह सुबह उठकर योग करती हैं. फिर फ्रैश होकर अपने लिए नाश्ता बनाती हैं. उसके बाद ऑफिस का काम शुरु हो जाता है. इन दिनों वे वर्क फ्रॉम होम कर रही हैं. एक नई चीज़ जो राखी के शेड्यूल में शामिल हुई है वो है किताबें. राखी रोज श्याम को किताबें पढ़ती हैं. परिवार व दोस्तों से फोन पर बातचीत. समाचार सुनना और 11 बजे तक सो जाना. इस उम्मीद के साथ कि जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा.

निकिता वर्मा अपनी डाइट का ख्याल रखें

पेशे से इंजीनियर और फैशन, लाइफस्टाइल ब्लॉगर निकिता वर्मा  अपने काम के सिलसिले में परिवार से दूर नोएडा, यूपी में रहती हैं. निकिता मानती हैं, “कोरोना वायरस ने हम सभी को बहुत डरा दिया है. ऐसे समय में अकेले रहते हुए मुझे परिवार की बहुत याद आती है. एकता में शक्ति होती है जो आपको कठिन समय में भी हारने नहीं देती. अगर इस समय परिवार मेरे पास होता तो इस कठिन समय का सामना करना मेरे लिए आसान हो जाता. वैसे मैं रोज विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए परिवार के संपर्क में हूं. पहले भी अकेली रहती थी लेकिन जब से कोरोना फैला है और लॉकडाउन हुआ है इसने सभी की जिंदगी को हिलाकर रख दिया है.

“कोरोना को खत्म करने में हर नागरिक की अपनी भागीदारी है. इस समय हम नागरिक होने का फर्ज इसी तरह निभा सकते हैं कि हम घर पर रहें. बाहर न निकलें. ऐसा करके हम अपनी जान तो बचाएंगे ही साथ ही समाज के लिए भी खतरा नहीं बनेंगे. अब तो नोएड़ा के कई इलाके सील कर दिए गए हैं. इससे और घबराहट बढ़ गई है.”

निकिता ने काफी पहले ही अपनी मेड को आने से मना कर दिया था. अपने घरेलू काम वे खुद कर रही हैं. 22 तारीख के बाद से ही लंबे लॉकडाउन की आशंका थी इसलिए निकिता ने खानेपीने का जरूरी सामान पहले ही ऑनलाइन मंगा लिया था ताकि बाजार जाने की जरूरत न पड़े.

निकिता बताती हैं, “कोरोना से लड़ने के लिए मेरी तैयारी यह है कि मैं अपनी और घर की सफाई का ख्याल रखूं. बार-बार हाथ धोने के साथ ही हाइजीन का बहुत ख्याल रखती हूं. शारीरिक व मानसिक फिटनेट के लिए सुबह-श्याम योग करती हूं. एक्सरसाइज करती हूं. ऐसी डाइट ले रही हूं जो मेरे इम्यूनिटी सिस्टम को सही रखे. विटामिन सी, सूखे मेवे और हरी सब्जियां इन दिनों मेरी डाइट में ज्यादा हैं. रोज एक गिलास दूध पी रही हूं.”

लक्ष्मी सकारात्मकता व सावधानी से हारेगा कोरोना

बिहार की रहने वाली लक्ष्मी की जो  पत्रकार हैं, दिल्ली में अकेली रहती हैं. लक्ष्मी कहती हैं, भले ही इस समय देश व दुनिया में लॉकडाउन है लेकिन इस बुरे समय में भी मैं अच्छा देखने की कोशिश करती हूं. और महसूस करती हूं कि कोरोना की वजह से कई सकारात्मक परिवर्तन हम सबकी जिंदगी में आ गए हैं. कोरोना के भय ने हमारी जिंदगी को अनुसाशन में ला दिया है. अब हमें साफ सफाई की अहमियत ज्यादा समझ में आ गई है. कई अच्छी आदतें जीवन में शुमार हो चुकी हैं. अपनी फिटनेस और डाइट पर हमने गंभीरता से सोचना शुरु किया. सीमित साधनों में कैसे सब कुछ मैनेज करना है यह सीख लिया. अब हम उतना ही खाना बना रहे हैं जितने की जरूरत है. बस इन अच्छी आदतों को हमें आगे भी बनाए रखना है.

कोरोना से मुकाबला कैसे करेंगी? लक्ष्मी कहती हैं, मैं केवल सकारात्मक सोचती हैं. कोरोना से भयभीत नहीं हूं. कुछ लोग टीवी देखकर कोरोना की खबरों से भी डर रहे हैं. इसमें डर की कोई बात नहीं है. खबरों का मक्सद हमें जानकारी देना है. जानकारी ही नहीं होगी तो हम समस्या का सामना कैसे करेंगे? हेल्थ मिनिस्ट्री जो गाइड लाइन जारी कर रही है मैं उसका पालन करती हूं. लक्ष्मी सहारा अखबार में काम करती हैं. सामान्य दिनों की तरह ऑफिस जा रही हैं. इस दौरान पूरी सावधानी का ख्याल रखती हैं.

इस मुश्किल समय में लक्ष्मी सकारात्मक सोच विचार बनाए रखने को सबसे जरूरी मानती हैं. साथ ही अपने आसपास के माहौल को भी सकारात्मक बनाए रखने की अपील करती हैं. लक्ष्मी मजबूत लड़की हैं. उनके माता-पिता बिहार में रहते हैं. लक्ष्मी का कहना है कि हम जहां रहते हैं वहीं हमारा एक परिवार बन जाता है. माता-पिता ने हमें समाज में कैसे मिलजुल कर रहना है यह सिखाया है. यही वजह है कि इस संकट की घड़ी में सभी लोग अलग-अलग रूपों में एक दूसरे की मदद कर रहे हैं. पूरा देश एक परिवार बन गया है. इसलिए मैं बेशक अपने माता-पिता से दूर हूं लेकिन मैं उन्हें मिस नहीं कर रही. मेरे आसपास के लोग ही परिवार की तरह मेरे साथ हैं.

लॉकडाउन की घोषणा हुई तो लक्ष्मी की क्या तैयारी थी? वे कहती हैं, लोगों ने काफी राशन घरों में भर लिया था लेकिन मैंने नहीं भरा. न मैं यह सोचती हूं कि हमें आने वाले दिनों में खाना नहीं मिलेगा. इस समय तो हमें उन लोगों की मदद करनी चाहिए जो गरीब मजदूर हैं. उन्हें खाना खिलाने के बारे में सोचना चाहिए.

कोरोना से जंग जीतने की क्या तैयारी है? बस इतनी तैयारी है कि मैं स्वच्छता का ख्याल रखती हूं. मास्क लगाकर बाहर निकलती हूं. जो बिना मास्क लगाए दिखते हैं उन्हें टोकती हूं. ऑफिस से लौटते वक्त एक बारी में ही सारा जरूरी सामान ले आती हूं. विश्व स्वास्थ संगठन व भारत सरकार की ओर से जो निर्देश सामने आ रहे हैं उनका पालन करती हूं. इस मुश्किल समय में सकारात्मक सोचती हूं सतर्क रहती हूं इसलिए मन में कोरोना का भय नहीं है. कुछ लोगों के मन में कोरोना का डर इस कदर भर चुका है कि सामान्य खांसी होने पर भी सोच रहे हैं कहीं कोरोना तो नहीं हो गया. नकारात्मक बातें मुश्किल घड़ी में इंसान को परेशान कर देती हैं. इस समय हमारा एक ही मंत्र होना चाहिए नकारात्मकता आउट, सकारात्मकता इन.

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कोरोना की वजह से लक्ष्मी की दिनचर्या में कोई खास बदलाव नहीं आया. पहले की तरह सुबह योग करती हैं. फिर नहा कर नाश्ता और फिर ऑफिस के लिए रवाना. श्याम को घर आकर साफ सफाई और अपने लिए डिनर बनाती हैं.

पंखुड़ी परिवार पास होता तो अच्छा था 

अब बात करते हैं पंखुड़ी की. पंखुड़ी एक पीआर प्रोफेशनल हैं. भोपाल, मध्यप्रदेश की रहने वाली हैं. परिवार भोपाल में ही रहता है. पंखुड़ी दिल्ली के सुखदेव विहार में रहती हैं. पंखुड़ी के लिए सबसे बड़ा डर यही है कि इस समय वे परिवार से दूर हैं. जिस तेजी से कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है और लॉकडाउन आगे बढ़ा दिया गया है. ऐसे में अगर चीज़ें समय रहते ठीक न हुईं और महामारी ज्यादा फैल जाए तो वे अकेली क्या करेंगी.

लॉकडाउन की घोषणा होने से कुछ समय पहले ही पंखुड़ी महीने डेढ़ महीने का राशन ला चुकी थी. लॉकडाउन के बाद मन में यह ख्याल जरूर आया कि अगर थोड़ा और राशन ले आती तो ठीक रहता.

पंखुड़ी कहती हैं लॉकडाउन से पहले भी मैं अकेले रहती थी लेकिन अब वर्क फ्रॉम होम कर रही हूं. कोशिश करती हूं कि किसी न किसी काम में खुद को व्यस्त रखूं. ऑफिस वर्क के अलावा घर की साफ-सफाई. कुछ शौक जो लंबे समय से पूरे नहीं हो पा रहे थे वो पूरे कर रही हूं जैसे – ड्रॉईंग, कुकिंग, रीडिंग. बाहर बहुत कम निकलती हूं बस दूध सब्जी फल लेने. वह भी ज्यादा ले आती हूं ताकि 2-3 दिन फिर बाहर न निकलूं.

पंखुड़ी को लगता है कि इस समय अगर वे परिवार के साथ होती तो उन्हें इतनी चिंता न होती. जैसे-जैसे समय बीत रहा है वैसे-वैसे पंखुड़ी को परिवार की याद आ रही है. पंखुड़ी बताती हैं कि लॉकडाउन के पहले सप्ताह तक तो फिर भी सब ठीक रहा लेकिन अब महसूस कर रही हूं कि मन बहुत उदास हो गया है. भीतर से बेवजह की खीज, चिड़चिड़ापन, अकेलापन महसूस हो रहा है.

कोरोना की अपडेट व देश दुनिया का हाल जानने के लिए पंखुड़ी समाचार सुनती हैं. कोरोना मरीज़ों की बढ़ती संख्या पंखुड़ी को डराती है. लेकिन यही डर पंखुड़ी को सीख भी दे रहा है कि कोरोना से बचना है तो घर पर रहो. यही एक मात्र उपाय है.

पंखुड़ी फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, ट्वीटर पर एक्टिव रहती हैं. फोन पर परिवार व दोस्तों से बातें करती हैं. पंखुड़ी बताती हैं कि लॉकडाउन के बाद से मेरी दिनचर्या में बहुत बदलाव आ गया है. जैसे अब रोज दिन की शुरुआत योग से होती है. फिर नहाकर नाश्ता बनाती हूं. लंच और डिनर भी कर रही हूं जोकि पहले मेरा ज्यादातर छूट जाता था. अब खाने का एक निश्चित समय तय हो गया है जोकि सेहत के लिए बहुत जरूरी था. श्याम को मैं घर के अंदर, बालकोनी या छत पर टहलती हूं. अपनी इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए रोज हल्दी वाला दूध पीती हूं.

पूजा मेहरोत्रा मजबूत हूं जागरूक हूं सतर्क हूं

अब मिलाती हूं एक मजबूत, जागरुक लड़की पूजा मेहरोत्रा से. पूजा पत्रकार हैं द प्रिंट में काम करती हैं और फिलहाल एक महीने से घर से ही काम कर रही हैं. पूजा बिहार की रहने वाली हैं. लगभग बीस साल से दिल्ली में अकेली रह रही हैं. पूजा सिंगल हैं इसलिए अपना ख्याल खुद रखना जानती हैं.

कोरोना वायरस के भय के बीच पूजा की सबसे बड़ी चिंता अपने माता-पिता को लेकर है. दोनों बिहार में हैं और बुर्जुग हैं. बढ़ती उम्र की कई तकलीफें भी फेस कर रहे हैं. पूजा के लिए उसके माता-पिता का ठीक रहना बहुत जरूरी है. इसलिए वे उन्हें फोन पर बताती रहती हैं कि आजकल उन्हें कैसे रहना है. कैसा खानपान और साफ सफाई का ख्याल रखना है. किस प्रकार बार-बार हाथ धोना है. सेनेटाइज़र कैसे यूज़ करना है.

खुद पूजा की तैयारी कैसी है? मैं सारे प्रिकॉशन्स ले रही हूं. काफी पहले से ही मास्क लगाकर घर से निकलती थी. दुनिया में जब कोरोना फैल रहा था तभी से इस बात को लेकर अवेयर थी कि अगर भारत में यह संक्रमण फैलता है तो हमें क्या सावधानी बरतनी होंगी. मैंने अपनी कामवाली बाई को भी पहले ही कोरोना और उसके परिणामों के बारे में बता दिया था. मेरा घर पूरी तरह सैनेटाइज़ है.

बेशक पूजा कई सालों से अकेली रह रही हैं लेकिन क्या इस समय परिवार को मिस कर रही हैं? पूजा कहती हैं, परिवार का साथ होना हमेशा सपोर्ट देता है. अगर फैमली साथ होती तो एक दूसरे की केयर कर पाते. मुझे अपने माता-पिता की इतनी चिंता नहीं होती जितनी अब दूर रहकर हो रही है. जिंदगी थोड़ा आसान हो जाती.

लॉकडाउन की वजह से क्या पूजा ने भी अपना राशन घर पर रख दिया था? नहीं, बिल्कुल नहीं. बल्कि मैंने लोगों को समझाया कि बहुत ज्यादा राशन मत भरो. लॉकडाउन हो या कर्फ्यू जरूरी सामान की सप्लाई बंद नहीं होती. इसलिए मैंने उतना ही खरीदा जितने की जरूरत थी. दो सप्ताह से ज्यादा समय हो चुका है मुझे इस दौरान राशन फल सब्जी की कोई दिक्कत नहीं हुई. हां, क्योंकि मैं सिंगल हूं इसलिए कुछ जरूरी दवाएं डॉक्टर की सलाह पर मैंने रखी हैं ताकि जरूरत पड़ने पर दिक्कत न हो.

पूजा रोज योग व प्राणायाम करती हैं. काम के बीच में पांच-दस मिनट का ब्रेक लेती हैं. श्याम को थोड़ा टहलती हैं. पूजा बताती हैं कि जब बहुत ज्यादा कोरोना कोरोना हो जाता है तो मन दुखी होता है यह देखकर कि दुनिया में कितने लोग मर रहे हैं. समाज कहां जा रहा है? इतना होने के बाद भी कुछ लोग लॉकडाउन की गंभीरता को नहीं समझ रहे हैं तो बहुत गुस्सा भी आता है.

पूजा ने अपने घर की सफाई के साथ-साथ अपनी बिल्डिंग की सारी रेलिंग्स साफ कीं. स्विचबोर्ड साफ किए. रोज डिटॉल के पानी से दरवाजे के हैंडिल साफ करती हैं. पूजा बताती हैं कि इतना होने के बाद भी जब कुछ लोग डॉक्टर्स, नर्स, हेल्थ सेक्टर से जुड़ा स्टाफ, आशा वर्कर, आंगनवाणी, पुलिस स्टाफ को सहयोग नहीं करते तो बहुत दुख होता है.

शुचि सहाय सबसे पहले अपनी सुरक्षा

अब एक सिंगल मदर शुचि सहाय के बारे में बात करते हैं. शुचि जी की एक बेटी है जो अमरीका में पढ़ती हैं. यहां वे वैशाली गाजियाबाद में लंबे समय से अकेली रह रही हैं. शुचि मेडिकल ट्रांसक्रप्शन के क्षेत्र में क्वालिटी एनालिस्ट हैं. शुचि जी वर्क फ्रॉम होम ही करती रही हैं इसलिए लॉकडाउन का असर उनके काम पर नहीं पड़ा. लेकिन कोरोना की वजह से एक अनजान सा भय वे जरूर महसूस करती हैं. कोरोना का खतरा जैसे ही भारत पर मंडराया शुचि जी ने तय किया कि सबसे पहले उन्हें अपना ख्याल रखना है. खुद को सुरक्षित रखना है.

लॉकडाउन के दौरान के लिए उनकी तैयारी कैसी थी? इस पर वे बताती हैं कि बहुत ज्यादा तो नहीं लेकिन थोड़ी बहुत तैयारी मैंने भी की. महीने डेढ़ महीने का सामान मैंने भी घर पर लाकर रखा.

वैसे तो शुचि जी लंबे समय से अकेली ही रहती हैं लेकिन मानती हैं कि इस संकट काल में अगर परिवार साथ होता तो समय कैसे कट जाता है पता नहीं चलता.

देश-दुनिया में कोरोना मरीज़ों की बढ़ती संख्या शुचि जी को भी डराती है. वे कहती हैं- जब अमेरिका की बिगड़ती स्थिति देखती हूं तो बहुत डर लगता है मेरी बेटी वहां पर है. रोज उससे फोन पर बात करती हूं. कभी विडियो कॉल करती हूं. हिदायतें भी देती हूं. जब वो बताती है कि वो घर पर सुरक्षित है. बाहर नहीं निकलती, उसने राशन रखा हुआ है. इम्यूनिटी का ख्याल रखते हुए डाइट ले रही है तो मन को तसल्ली होती है.

शुचि बताती हैं कि इस समय एक नागरिक होने के नाते मेरा यह फर्ज है कि जो भी सरकार की ओर से, मीडिया के माध्यम से. डॉक्टरों द्वारा दी जा रही सेहत संबंधी सलाह हैं उनको माना जाए. शुचि जी सफाई का खास ख्याल रखती हैं. वैसे तो घर पर रहती हैं. अगर दूध सब्जी खरीदने बाजार जाना पड़े तो सामाजिक दूरी का ख्याल रखती हैं, मास्क पहनती हैं. वे मानती हैं कि अगर हर इंसान इन बातों का ख्याल रखे तो हम कोरोना को फैलने से रोक सकते हैं.

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शुचि के लिए लॉकडाउन का शुरुआती सप्ताह बहुत ज्यादा परेशान करने वाला था. बड़े-बड़े देशों की कोरोना की वजह से क्या हालात हो गई है. यह सब देखकर बहुत घबराहट होती थी. फिर शुचि ने तय किया कि इस विषय पर ज्यादा नहीं सोचना. घर पर रहो. ऑफिस का काम करो. अपनी नींद पूरी लो. अपनी डाइट सही रखो बस.

शुचि की दिनचर्या पहले की तरह योग व प्राणायाम से शुरु होती है. योग से उन्हें शारीरिक व मानसिक शांति मिलती है. पॉजिटिव एनर्जी मिलती है. फिर वे अपने रोज के काम करती हैं. श्याम को कुछ किताबें पढ़ती हैं. परिवार व दोस्तों से बातें करती हैं. सबसे महत्वपूर्ण वे सकारात्मक रहने की कोशिश करती हैं.

#coronavirus: क्या 15 अप्रैल से खुलेगा Lockdown?

अब जबकि 21 दिनों का Lockdown डाउन अपने आखिरी सप्ताह में है, तो हर हिंदुस्तानी एक दूसरे से यही सवाल पूछ रहा है. जो यह सवाल किसी और से नहीं पूछता उसके भी जहन में इस समय यही सवाल घूम रहा है, क्या 21 दिनों के बाद 15 अप्रैल से Lockdown डाउन खुल जायेगा? सच बात तो यह है कि इस सवाल का अंतिम जवाब 15 अप्रैल को ही मिलेगा. उसकी वजह यह है कि पिछले 15 दिनों में इस सवाल का जवाब हर दिन ‘हां’ और ‘न’ के दायरे में झूलता रहा है. हालांकि पीएमओ ने पिछले हफ्ते पूरी दृढ़ता से इस बात से इंकार कर दिया था कि Lockdown डाउन 21 दिन के बाद भी जायेगा. पीएमओ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मीडिया से आकर कहा था कि सरकार का फिलहाल Lockdown डाउन आगे बढ़ाने का इरादा नहीं है. लेकिन पिछले तीन दिनों से जिस तरह से हर गुजरते दिन के साथ कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है, उससे लगातार यह आशंका मजबूत हो रही है कि अव्वल तो 14 अप्रैल के बाद शायद ही Lockdown डाउन खत्म हो, अगर होगा भी तो बहुत कम दिनों के लिए, बहुत सारी शर्तों के साथ.

निश्चित रूप से इसकी वजह यही है कि Lockdown डाउन जिस मकसद से किया गया था, वह मकसद अभी पूरी तरह से हासिल नहीं हुआ है. हालांकि यह भी अंदरखाने से खबरें आ रही हैं कि Lockdown डाउन खत्म करने के तमाम उपाय किये जा रहे हैं. इसकी तमाम संभावनाओं पर काम हो रहा है. लेकिन अगर संक्रमित लोगों की संख्या में स्थिरता या पिछले संक्रमित लोगों के मुकाबले, नये लोगों की संख्या में कुछ कमी नहीं आती तो शायद ही Lockdown डाउन खत्म किया जा सके. वैसे भी Lockdown डाउन तो आगे बढ़ना ही है, अब सवाल यह है कि सूत्रों के जरिये जो बातें बाहर आ रही हैं, उनमें कई फार्मूले हैं. एक तो यह कि 15 अप्रैल से 5 दिनों के लिए हिदायतों के साथ Lockdown डाउन खोल दिया जाए और 5 दिनों के बाद इसे फिर 28 दिन के लिए लगा दिया जाए.

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कुल मिलाकर जो तमाम किंतु परंतु सामने हैं, उनसे मिलकर जो एक समीकरण बन रहा है, उससे तो यही लग रहा है कि Lockdown डाउन में थोड़ी बहुत ढील या कुछ दिनों की ढील जरूर मिले लेकिन

Lockdown डाउन फिलहाल अगले 2 महीने तक आंख-मिचैली करता रहेगा. इसकी भनक सरकार के विभिन्न कार्यक्रमों में लिये गये समयावधि से भी मिलती है. मसलन- रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया ने बैंकों से ईएमआई पर जो छूट देने के लिए कही थी, वे छूटें 31 मई तक हैं. सरकार के अगर एफसीआई द्वारा खाद्यान्न वितरण योजना पर ध्यान दें तो वहां पर भी 2 महीने का खाद्यान्न वितरण की बात हो रही है. कुछ जानकार कह रहे हैं Lockdown डाउन तीन किस्तों का होगा. पहली किस्त पूरी होने के बाद पांच दिन की मोहलत मिलेगी. फिर 28 दिन का Lockdown डाउन होगा, 28 दिन खत्म होने के बाद फिर पांच की मोहलत मिलेगी. फिर उसके बाद 18 दिनों का Lockdown डाउन होगा.

जब 21 दिनों का Lockdown डाउन शुरु हुआ था तो कम से कम मेडिकल एक्सपर्ट को लग रहा था कि इससे कोरोना के संक्रमण में काफी कमी आयेगी. संक्रमण की चेन टूट जायेगी. लेकिन दुर्भाग्य से जिस तरह से मरकज फैक्टर इस योजना के आडे़ आ गया, उसके चलते लग रहा है कि पुरानी सारी सोच बदल चुकी है. लेकिन इसका एक दूसरा और कहना चाहिए भयावह पहलू यह भी है कि हर गुजरते दिन के साथ देश की बहुत बड़ी जनसंख्या का आर्थिक जीवन बहुत दूभर हो जायेगा. लगातार लोगों की आर्थिक परेशानियां बढ़  रही हैं. सरकार ने जितनी घोषणाएं की हैं, वे आमतौर पर या तो महज भोजन तक सीमित हैं या महज तात्कालिक कर्ज देनदारियों तक. देश की 92 फीसदी वर्कफोर्स अनआर्गेनाइज्ड क्षेत्र से रोजगार पाती है और Lockdown डाउन के चलते हर दिन यह असंगठित क्षेत्र भयानक रूप से चिंताग्रस्त होता जा रहा है.

अगर अर्थशास्त्रियों के अलग अलग अनुमानों को आपस में जोड़कर एक औसत निष्कर्ष निकालें तो अब तक के Lockdown डाउन से यानी 5 अप्रैल 2020 तक Lockdown डाउन से ढाई करोड़ नौकरियां खत्म हो गई हैं. ऐसा नहीं है कि ये ढाई करोड़ लोग इस Lockdown डाउन की अवधि में काम कर रहे थे और अब इन्हें नौकरी से निकाल दिया गया है. नहीं, यह आंकलन 14 अप्रैल के बाद नौकरी न पाने वाले आशंकित कामगारों का है. भले कहा जा रहा हो कि हर ठीक ठाक आर्थिक स्थिति वाला व्यक्ति 40 लोगों की जिम्मेदारी ले, लेकिन यह न तो व्यवहारिक रूप से संभव है और न ही सैद्धांतिक रूप से भी. आखिरकार देश दान या खैरात से स्थायी व्यवस्थाओं की कल्पना नहीं कर सकते.

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दरअसल अब तक के लौक डाउन के चलते ही करीब 10 लाख करोड़ रुपये की मैन्यूफैक्चरिंग और दूसरे आर्थिक क्षेत्र ध्वस्त हो चुके हैं. जब एक दिन की तालाबंदी होती है तभी औसतन एक लाख काम के घंटों का नुकसान होता है और अब तो पूरी तरह से Lockdown डाउन है. इसलिए हर दिन 3 करोड़ 20 लाख काम के घंटे बर्बाद हो रहे हैं. हर दिन करीब 60 हजार करोड़ रुपये की बनने वाली संपत्ति इस समय शून्य पर नहीं बल्कि नकारात्मक दिशा में है. इस सबके चलते इस बात पर भी सबकी नजर है कि क्या भारत की अर्थव्यवस्था इतना भयानक आर्थिक नुकसान झेलने की स्थिति में है? सच बात तो यही है कि Lockdown डाउन के बारे में सोचते समय हमारी स्थिति, आगे कुआं और पीछे खाईं वाली है. इसलिए 14 अप्रैल की रात या 15 अप्रैल की सुबह ही पता चलेगा कि Lockdown डाउन खुलेगा या नहीं खुलेगा? तब तक हम सब आपस में ही इस यक्ष प्रश्न को एक दूसरे से पूछेंगे और अपने-अपने मन के हिसाब से इसका जवाब देंगे.

#lockdown: ऐसा देश जिसे कोरोनावायरस की चिंता नहीं

यूरोप आजकल कोरोनावायरस के फैलाव का केन्द्र बना हुआ है. लेकिन इसी यूरोप में एक ऐसा देश भी है जिसे कोरोना के फैलाव की चिंता बिल्कुल नहीं है, लेकिन इसकी वजह  लापरवाही बिल्कुल नहीं है.

बेलारूस, यूरोप का वह एकमात्र देश है जहां के अधिकारी अपने देश की जनता को कोरोना की वजह से असामान्य स्थिति में डालने के इच्छुक नहीं हैं.

बेलारूस कई पहलुओं से एक असाधारण देश है, शायद यही वजह है कि उसने कोरोना से मुक़ाबले के लिए भी अपने बेहद निकटवर्ती पड़ोसियों, रूस और यूक्रेन से भी हट कर नया रास्ता अपनाया है.

यूक्रेन में किसी भी समय अपातकाल की घोषणा की जा सकती है जबकि रूस ने‌ स्कूल बंद किए, सार्वाजनिक  कार्यक्रम रद्द किए और सभी  उड़ानें रोक कर कोरोना वायरस से मुक़ाबले की तैयारी कर ली है. लेकिन बेलारूस में कई पहलुओं से जन जीवन सामान्य है, सीमाएं खुली हुई हैं, लोग काम पर जा रहे हैं और कोई भी डर की वजह से टॉयलेट पेपर का भंडारण नहीं कर रहा.

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बेलारूस के राष्ट्रपति एलेक्ज़ेंडर लोकान्शो का कहना है कि उनके देश को कोरोना वायरस से नहीं डरना चाहिए और न ही उनके देश को कोरोना से बचाव के लिए इतनी अधिक सतर्कता की ज़रूे चीनी राजदूत के साथ एक बैठक में कहा कि ” यह सब होता रहता है , महत्वपूर्ण बात यह है कि हम डरें न.”

बेलारूस की सरकार ने सेनेमा हॉल बंद नहीं किये, थियेटर भी खुले हैं और सार्वाजिनक कार्यक्रमों पर भी कोई प्रतिबंध नहीं है. बेलारूस दुनिया के उन गिनेचुने देशों में है जहां आज भी फुटबाल मैच हो रहे हैं. बेलारूस की फुटबॉल लीग यथावत चल रही है और पड़ोस में रूस के फुटबालप्रेमी भी  उसके मैचों से आनंद उठा रहे हैं.

राष्टृपति ने कहा कि ” ट्रेक्टर कोरोना की समस्या को खत्म करेगा”. उनके इस बयान में बाद सोशल मीडिया पर उनका काफी मज़ाक़ भी उड़ाया गया. उनका आशय यह था कि खेतों में कड़ी मेहनत करने से कोरोना वायरस से बचा जा सकता है. उन्होंने यह  भी सलाह दी कि वोदका शराब की कुछ घूंट भी कोरोना से बचा सकती है हालांकि उन्होंने कहा कि वे शराब नहीं पीते.

बेलारूस से बाहर कोरोना के फैलाव और उसके बाद विभिन्न देशों की हालत देख कर हालांकि इस देश में भी कुछ लोग चिंतित हैं और उन्होंने सरकार से मांग की है कि वह बचाव का उपाय करे लेकिन बेलारूस के राष्ट्रपति का कहना है कि चिंता की ज़रूरत नहीं क्योंकि बेलारूस में घुसने वाले हर यात्री का पहले कोरोना का टेस्ट लिया जाता है.

उन्होंने बताया कि पूरे दिन के टेस्ट में दो या तीन लोग पौजिटिव पाए जाते हैं जिन्हें आइसोलेट किया जाता है और फिर एकदो हफ्ते में हम उन्हें छोड़ देते हैं.

बेलारूस के राष्ट्रपति ने बौखलाहट और चिंता को कोरोना वायरस से अधिक खतरनाक बताया है. उन्होंने खुफिया एजेन्सी को आदेश दिया है कि वह देशवासियों को डराने वालों को पकड़े और सख्त सज़ा दे.

बेलारूस कई पहलुओं से यूरोप का अनोखा देश है. मिसाल के तौर पर बेलारूस युरोप का एकमात्र देश है जहां अब भी मृत्युदंड दिया जाता है. इसी तरह यह यूरोप का एकमात्र देश है जहां के अधिकारियों पर कोरोना वायरस की वजह से बौखलाहट नहीं छायी है.

रोचक बात तो यह है कि हर बात में सरकार और राष्ट्रपति का विरोध करने वाले कड़े सरकारविरोधी आंद्रे कीम ने भी बेलारूस के राष्ट्रपति के इन विचारों का समर्थन किया है. उन्होंने कहा कि उनका मानना है कि देश में लॉकडाउन, बेलारूस की आर्थिक मौत लिख देगा. बेलारूस वह एकमात्र देश है जहां के अधिकारी जनवाद से प्रभावित नहीं हैं और अपने देश की जनता के लिए सब से अच्छा रास्ता चुनते हैं. वे आगे कहते हैं, “ मुझे पता है कि जो मैं कह रहा हूं वह सुन कर कुछ लोग मुझे ज़िंदा ही निगल जाना चाहेंगे लेकिन मैं सार्वाजनिक पागलपन के प्रति चुप नहीं रह सकता.“

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सार्वाजनिक पागलपन से उनका आशय कोरोना से बचने के लिए पूरी दुनिया में उठाए जाने वाले कद़म थे.

#lockdown: आग से निकले कढ़ाई में गिरे, गांव पहुंचे लोग हो रहे भेदभाव का शिकार

बड़े शहरों से लौट कर अपने गांव घर पहुचने वॉले लोगो के सामने आग से निकले कढ़ाई में गिरे वॉले हालत बन गए है. गांव तक पहुचने के लिए सैकड़ो किलोमीटर पैदल चलना पड़ा, ट्रक, बस या दूसरी सवारी गाड़ियों  में जानवरों की तरह ठूंस ठूंस कर सफर करना पड़ा. भूखे प्यासे रह कर जब यह लोग गांव पहुचे तक इनके और परिवार के लोगो के बीच प्रशासन और गांव के दूसरे जागरूक लोग खड़े हो गए. कुछ लोग इनकी करोना वायरस से जांच की मांग करने लगे तो कुछ लोग इनको अस्पताल में रखने की मांग कर रहे थे . वंही कुछ लोग चाहते थे कि यह 14 दिन अपने घर मे ही अलग थलग रहे. शहरों को छोड़ अपने गांव पहुचे इन लोगो को लग रहा था कि यह अछूत जैसे हो गए है. करोना वायरस के खिलाफ जागरूकता अभियान एक डर की तरह पूरे समाज के दिलो में बैठ गया है. उसे बाहर से आने वाला हर कोई करोना का मरीज लगता है और उससे वो जान का खतरा महसूस करता है.

अजनबियों सा व्यवहार

मोहनलालगंज के टिकरा गांव में रहने वाला आलोक रावत उत्तराखंड नोकरी करने गया था. लॉक डाउन होने के बाद वो किसी तरह तमाम मुश्किलों का सामना करता 30 मार्च को अपने गांव पहुचा. गांव में घुसने के पहले ही गांव के कुछ जागरूक लोगो ने उसको रोक लिया. इसके बाद पुलिस और डायल 112 पर फोन करके पुलिस को खबर कर दी कि एक आदमी बाहर से आया है. अब आलोक को घर जाने की जगह गांव के बाहर स्कूल में ही रहना पड़ा. बाद में पुलिस डॉक्टर  आये तो लगा कि उसको कोई दिक्क्क्त नही है. इसके बाद भी आलोक को हिदायत दी गई कि 14 दिन वो अपने घर के अलग कमरे में रहे किसी से ना मिले ना जुले.

मोहनलालगंज तहसील के गनियार गांव का शुभम उड़ीसा में रहता था. वो 29 मार्च को अपने गांव आया तो गांव वालों ने इसकी सूचना पुलिस को दे दी. पुलिस समय पर नही पहुची तो पूरा दिन और एक रात शुभम को अपने गांव आने के बाद भी अपने घर जाने की जगह पर गांव के बाहर स्कूल में किसी अछूत की तरह रहना पड़ा. उसके घर के लोग चाहते थे कि वो वँहा ना रहे पर पुलिस के डर से वो लोग भी कुछ नही कर सके.

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सुल्तानपुर जिले के भवानीपुर में रहने वाला दीपक पंजाब में मजदूरी करता था. दिल्ली के रास्ते किसी तरह 3 दिन में अपने गांव पहुच गया. रात में उसे किसी ने देखा नहीं. सुबह वो अपने खेत पर काम करने गया. इसी समय गांव वालों ने उसको देख लिए और इसकी सूचना पुलिस को दे दी. पुलिस उसको पहले थाने ले गई. उसके घर वालो को बुरा भला भी बोला. 3 घण्टे थाने में बैठने के बाद डाक्टर आये तो उसको ठीक पाया गया. इसके बाद भी उसको 14 दिन घर से बाहर नहीं निकलने को कहा गया.

पुलिस का डर

असल मे कोविड 19 से बचाव के लिए प्रशासन के स्तर पर हर गांव वालों को कहा गया है कि कोई भी जब बाहर से आये तो उसकी सघन तलाशी ली जाए. उसका स्वाथ्य परीक्षण किया जाए. अगर उसको कोई सर्दी जुखाम बुखार की परेशानी नही है तो उसको 14 दिन के लिए अलग रहने को कहा जाए. अगर कोई इस बात को नही मानता है तो उसके खिलाफ संक्रमण अधिनियम का उलंघन करने के लिए मुकदमा लिखा जाए. पुलिस इसमे उन लोगो को भी जिम्मेदार मॉन रही है जो बाहर से आने वाले कि सूचना पुलिस को नही देते है.

जेल के कैदियों सी मुहर

कई जगहों पर बाहर से आने वाले लोगो के हाथ पर एक मुहर लगा दी जाती है जिसको देंखने के बाद पता चलता है कि यह आदमी किस दिन बाहर से अपने गांव आया है.

झारखंड और दूसरे प्रदेशों में यह हालत सबसे अधिक है. जिन लोगो के हाथ मे यह मुहर लगी होती है उनको किसी से मिलना जुलना नही होता और उनको अपने घर मे भी कैदियों की तरह अलग रहना पड़ता है.

पत्नी बच्चे तक दूर रहते है

प्रतापगढ़ के रहने वाले रमेश कुमार अपने घर वापस आये तो उनको उनकी पत्नी और बच्चो से दूर कर दिया गया. रमेश की पत्नी को कुछ दिन पहले ही बेटा हुआ था. बेटा होने की खुशी में वो अपने घर आया तो वँहा उस पर यह प्रतिबंध लगा दिया गया कि वो 14 दिन सबसे दूर रहेगा. रमेश  को घर के बाहर उस कमरे में रहना पड़ा जंहा जानवरो के लिए चारा रखा जाता था.

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करोना वायरस से अधिक डर पुलिस और प्रशासन का लोगो को है. वो मुकदमा कायम करने की धमकी दे कर डराते है. इसके अलावा गांव के लोग जागरूकता की आड़ में लोगो की सूचना पुलिस को देकर अपनी दुश्मनी भी निकाल रहे है.

#lockdown: कोरोना वायरस लगा रहा बैंक अकाउंट में सेंध

पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव के रहने वाले मदीन की आंखों से बारबार आंसू छलक पङता है. मेहनतमजदूरी से जमा किए उस के 33 हजार रूपए  धोखे से किसी ने उस के अकाउंट से निकाल लिए. कुछ ही महीनों पहले वह महाराष्ट्र से अपने गांव आया था और सोचा था कि इन रुपयों से वह एक भैंस खरीदेगा. थोङेथोङे कर के उस ने पैसे बचाए थे.

बिहारबंगाल बौर्डर पर बसे एक गांव की निशा देवी उस दिन को याद कर फफक पङती है जब किसी ने उसे फोन कर खुद को अधिकारी बताया और कहा,”हैलो, मैं स्वास्थ्य विभाग से बोल रहा हूं. कोरोना महामारी के बीच सरकार की ओर से दी जाने वाली सहायता राशि आप के खाते में भेजनी है. कृपया अपने बैंक खाते का विवरण व एटीएम का पिन नंबर जल्द बताइए.”

निशा से पूरी जानकारी लेते ही फोन डिस्कनैक्ट हो गया और और कुछ ही देर बात उस के मोबाइल पर एक मैसेज आया तो वह बदहवास सी अपने पति को जानकारी देने लगी. उस के अकाउंट से 7,850 रूपए किसी ने निकाल लिए थे जबकि एटीएम कार्ड उसी के पास था. दरअसल, ये दोनों ही साइबर ठगी के शिकार हो गए.

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सोशल मीडिया के जरीए बना रहे शिकार

कोरोना वायरस को महामारी बता कर साइबर अपराधियों ने भोलेभाले लोगों को अपना शिकार बनाना शुरू कर दिया है. फर्जी वेब पेज, फर्जी ईमेल, फर्जी सोशल मीडिया और फोन के जरीए साइबर ठग लोगों के अकाउंट को बङी शातिराना अंदाज में साफ कर रहे हैं. पुलिस को ऐसे कई मामले मिले हैं जिस में आरोपी खुद को स्वास्थ्य विभाग का अधिकारी बता कर, तो कभी बैंककर्मी बता कर लोगों से ठगी कर रहे हैं. कुछ मामलों में तो ये इलाज के नाम पर चंदा मांग कर भी लोगों को चूना लगा रहे हैं.

सावधान रहें

पिछले दिनों बिहार की राजधानी पटना के साइबर सेल को साइबर क्राइम की कई शिकायतें मिलीं, जिन की जांच करने पर पता चला कि काल करने वाले अधिकतर नंबर विदेशी हैं.

साइबर सेल ने लोगों को ऐसे काल्स से सावधान रहने को कहा है और आगाह किया है किसी भी हालत में किसी अनजान फोन आने पर उसे अपने बैंक खातों, पिन नंबर, आधार कार्ड नंबर अथवा ओटीपी आदि शेयर न करें.

देश के तमाम बैंक भी लगातार अपने ग्राहकों को बैंक खाते से जुङी कोई भी जानकारी साझा करने से मना करते रहे हैं.

ऐसे बचें साइबर अपराध से

साइबर सेल के एक्सपर्ट्स का मानना है कि ऐसा कोई भी ईमेल, लिंक व वैब पेज को किसी भी हालत में न ओपन करें न ही उत्तर दें. औनलाइन लेनदेन करते वक्त सावधानी बरतें और मुश्किल पासवर्ड लगाएं. इस से फर्जीवाङा करने वालों को आप के खाते तक पहुंचना आसान नहीं होगा. साथ ही ऐंटी वायरस ऐप से मोबाइल को अपडेट करते रहें.

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एक्सपर्ट्स का मानना है कि फर्जीवाङा से बचने के लिए जागरूक रहना भी बेहद जरूरी है और इस के लिए जरूरी है शुरूआत से ही बच्चों को साइबर अपराध से बचने के बारे में बताते रहें.

#coronavirus: लौकडाउन के बीच…

लॉकडाउन‌‌ की खामोशी के लम्हों में नेचर की गुनगुनाहट को ध्यान से सुनो… फिर फील करो कि — लौकडाउन मुसीबत है या सेहत के लिए तोहफा.

घर में लोग परिवार के साथ समय बिता रहे हैं. हां,  कुछ लोग जरूर घर परिवार से दूर हैं. ऐसा भी लॉकडाउन की वजह से ही है. जो जहां था उसे वही ठहरना पड़ा .

भारत, इंडिया, हिंदुस्तान नाम से मशहूर हमारे देश के प्रधानमंत्री की 21 दिनों की लॉकडाउन कॉल पर देशवासी सरकार के साथ हैं. राज्य सरकार या स्थानीय प्रशासन ने कुछ शहरों में कर्फ्यू भी लगा दिया है.

लॉकडाउन के दौरान जिंदगी का एक हफ्ते का समय गुजर गया. चेहरों पर चिंताएं हैं . देश की सड़कों पर जिंदगी बसर करने वाला कहां जाए, रैनबसेरा हर शहर में नहीं. रेहड़ी पटरी वाले 21 दिनों तक कैसे गुजर करें, हर गरीब तक मदद नहीं पहुंच रही. जरूरी चीजों के अलावा दूसरे सामानों के छोटे दुकानदारों की स्थिति भी रोज कुआं खोदने जैसी है. निचले स्तर के कर्मचारी के पास पैसा नहीं, घर में राशन नहीं. मध्यवर्ग की आय के स्रोत बंद है. वेतनभोगी वेतन पर निर्भर हैं.

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दिल्ली में मेरे निवास के करीबी इलाकों कृष्णानगर, चंद्रनगर, खुरेजी, जगतपुरी में हर कैटेगरी के लोग रहते हैं. लोग व्यक्तिगत तौर पर तो कुछ कमेटियां और क्षेत्र के विधायक जरूरतमंदों को खाना राशन, दाल, सब्जी मुहैया कराने के साथ नकद रुपए भी दे रहे हैं. ऐसा इन इलाकों में ही नहीं, बल्कि पूरी दिल्ली में और देश की हर बस्ती के सभी इलाकों में हो रहा होगा.

कृष्णानगर विधानसभा क्षेत्र की एक सड़क के किनारे झुग्गियों में रहने वाले महिपाल, चांदनी, रफीकन, कुणाल, फहीम, फरजाना वगैरह लौकडाउन पर कुछ नहीं कहते. हालांकि, अपनी जिंदगी के बारे में वे सबकुछ सुनने व सुनाने को तैयार हैं.

झुग्गियों में रहने वाले ये सभी कोशिश करते हैं कि एक मीटर की दूरी बनाए रखें ताकि वे सेफ रह सकें. वे अपनी बेचारगी पर कहते हैं कि उन्हें तो सालभर मदद की जरूरत रहती है. उन परिवारों के पुरुष वह महिलाएं जो भी काम करते हैं उस से जीविका चलाना ही मुश्किल है. और, अब तो लॉकडाउन ने कमर तोड़ दी है. मौजूदा मदद के बारे में उन का कहना है कि विधायक जी द्वारा सूचित किए गए स्थलों में से एक स्थल पर जा कर वे दोपहर व शाम का खाना ले आते हैं.

लॉकडाउन की जिंदगी का दूसरा रूप यह है कि साधन संपन्न लोग घरों में परिवार सहित तरह-तरह के पकवान के चटखारे ले रहे हैं. साथ ही, वे दूसरों को ये पकवान खिला भी रहे हैं सोशल मीडिया पर ही सही. ऐसा व्हाट्सएप ग्रुप में देखा जा रहा है. व्हाट्सएप पर सुबह फ्रेंच फ्राइज तो दोपहर छोले भटूरे और शाम पूरी हलवा के साथ हो रही है.

लॉकडाउन की जिंदगी का एक रुख और. लोगों को कहीं जाना नहीं है, इसलिए वे खानापीना बहुत ही संतुलित ले रहे हैं. पौष्टिक तत्वों पर वे बहुत ध्यान दे रहे हैं. साथ ही, समय-समय पर नाश्ता, लंच व डिनर कर रहे हैं.

कुल मिलाकर लॉकडाउन के दौर में जिंदगी मुसीबतभरी तो है, लेकिन किसी के लिए स्वादभरी भी है, वहीं, कुछ के लिए सेहतभरी भी.

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