लौकडाउन: बुआ के घर आखिर क्या हुआ अर्जुन के साथ?

लौकडाउन- भाग 1 : जब बिछड़े प्यार को मिलवाया तपेश के दोस्त ने

लेखिका- सावित्री रानी

2020का मार्च का महीना था. मौसम काफी सुहाना था. गुरुग्राम में अपने अपार्टमैंट के शानदार शयनकक्ष में तपेश आराम से सो रहा था. तभी उस के फोन की घंटी बजी. नींद में ही जरा सी आंख खोल कर उस ने टाइम देखा. रात के 2 बज रहे थे.

‘‘इस वक्त किस का फोन आ गया यार,’’  वह बड़बड़ाया और हाथ बढ़ा कर साइड टेबल से फोन उठाया. बोला, ‘‘हैलो.’’

‘‘जी क्या आप तपेश बोल रहे हैं?’’

‘‘जी, तपेश बोल रहा हूं. आप कौन?’’

‘‘सर मैं मेदांता अस्पताल से बोल रहा हूं. क्या आप पीयूष को जानते हैं? आप का नंबर हमें उन के इमरजैंसी कौंटैक्ट से मिला है.’’

‘‘जी, पीयूष मेरा दोस्त है. क्या हुआ उस को?’’ बैड से उठते हुए तपेश घबरा कर बोला.

‘‘तपेशजी आप के दोस्त को हार्टअटैक हुआ है.’’

‘‘उफ… कैसा है वह?’’

‘‘वह अभी ठीक है. स्थिति कंट्रोल में है.’’

‘‘मैं अभी आता हूं.’’

‘‘नहीं, अभी आने की जरूरत नहीं है. हम ने उसे नींद का इंजैक्शन दिया है. वह सुबह से पहले नहीं उठेगा, तो आप सुबह 11 बजे आ जाना. उस वक्त तक डाक्टर भी आ जाएंगे. आप की उन से भी बात हो जाएगी.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर तपेश ने फोन रख दिया और बैड पर लेट कर सोने की कोशिश करने लगा. लेकिन नींद उस की आंखों से कोसों दूर जा चुकी थी. उस का मन बेचैन हो गया था. बराबर में चैन से सोती हुई शालू को जगाने का भी उस का मन नहीं हुआ.

वह आंखें बंद कर के एक बार फिर सोने की कोशिश करने लगा, लेकिन नींद की जगह उस की आंखों में आ बसे थे 20 साल पुराने यूनिवर्सिटी के वे दिन जब तपेश रुड़की यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग करने गया था.

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निम्नमध्यम वर्गीय परिवार का बड़ा बेटा होने के नाते तपेश से उस के मातापिता को बहुत उम्मीदें थीं. उस का उद्देश्य अच्छी शिक्षा ले कर जल्द से जल्द अपने पैरों पर खड़ा हो कर अपने छोटे भाईबहनों की पढ़ाई में मातापिता की मदद करना था.

इसी योजना के तहत उस ने अपनेआप को इंजीनियरिंग के ऐंट्रैंस ऐग्जाम्स की तैयारियों में   झोंक दिया था. उस की कड़ी मेहनत का ही फल था कि पहली ट्राई में ही उस को अच्छी यूनिवर्सिटी में एडमिशन मिल गया.

यूनिवर्सिटी में आ कर पहली बार उस का पाला उस तबके के छात्रों से पड़ा, जिन्हें कुदरत ने दौलत की नेमत से नवाजा था. उन छात्रों में से एक छात्र था पीयूष. लंबा कद, गोरा रंग और घुंघराले घने बालों से घिरा खूबसूरत चेहरा.

पीयूष जहां एक ओर आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक था वहीं दूसरी ओर पढ़ाईलिखाई में भी अव्वल था. अमीर मातापिता और उन की सब से छोटी संतान पीयूष. इस नाते उसे दौलत का सुख और पूरे परिवार का अतिरिक्त प्यार हमेशा ही मिला था. हर प्रकार की कला के प्रति पारखी नजर भी उसे विरासत में मिली थी, जो उस के व्यक्तित्व को एक अलग ही निखार देती थी. अपनी तमाम खूबियों के कारण वह लड़कियों में भी खासा पौपुलर था. कालेज की सब से सुंदर और स्मार्ट लड़की रिया एक डिफैंस औफिसर की बेटी थी और कालेज के शुरू के दिनों से ही पीयूष को बहुत पसंद करती थी.

पीयूष को देख कर कभीकभी सामान्य रंगरूप वाले तपेश को ईर्ष्या होती.  उसे लगता जैसे कुदरत ने सारी नेमतें पीयूष की ही   झोली में डाल दी हैं. तपेश ने सुना था कि कुदरत ने हरेक के हिस्से में जिंदगी की सभी फील्ड्स जैसे रूप, दौलत, शिक्षा, परिवार आदि में कुल मिला कर 100 नंबर लिखे हैं.

इसलिए अगर जिंदगी की किसी एक फील्ड में किसी को 80 नंबर मिल गए. तो सम  झो बाकी फील्डस के लिए उस के पास बीस ही बचे हैं, लेकिन पीयूष को देख कर तपेश को यह फिलौसफी कन्विनसिंग नहीं लगती थी. उस के नंबर जिंदगी की किसी भी फील्ड में कटे हुए नहीं लगते थे, बल्कि हर फील्ड में पूरे सौ दिखते थे. शायद इसी को मुकम्मल जहान कहते होंगे, जो किसी को मिले न मिले पीयूष को तो मिला था.

‘‘पीयूष और तपेश में कहीं कोई समानता नहीं थी. लेकिन वह फिजिक्स का रूल है न ‘अप्पोजिट्स अट्रैक’ शायद इसीलिए इन दोनों की अच्छी दोस्ती हो गई थी. पहले साल दोनों रूममेट्स थे, क्योंकि फर्स्ट ईयर में रूम शेयर करना होता था. उन्हीं दिनों में इन दोनों की दोस्ती कुछ ऐसी गहराई कि बाकी के 3 साल अगलबगल के कमरों में ही रहे.

तपेश, पीयूष की दोस्ती बड़ी अनोखी थी. एक अगर सोता रह गया तो मैस बंद होने के पहले दूसरा उस का खाना रूम पर पहुंचा देता. एक का प्रोजैक्ट अधूरा देख कर दूसरा उसे बिना कहे ही पूरा कर देता. अगर एक का मैथ स्ट्रौंग था तो दूसरे की ड्राइंग.

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दोनों एकदूसरे को सपोर्ट करते. अगर एक पढ़ाई में ढीला पड़ता तो दूसरा उसे पुश करता. कभी कोई   झगड़ा नहीं, कोई गलतफहमी नहीं. उन के सितारे कालेज के शुरू के दिनों से ही कुछ ऐसे अलाइन हुए थे कि आर्थिक, सामाजिक या रूपरंग, कोई भी असमानता कभी आई ही नहीं. वे दोनों अपने बाकी मित्रों के साथ भी समय बिताते, घूमतेफिरते लेकिन तपेश पीयूष की दोस्ती कुछ अलग ही थी. कभी दोनों एकदूसरे के साथ घंटों बैठे रहते और एक शब्द भी न बोलते तो कभी बातें खत्म होने का नाम ही नहीं लेतीं. एक को दूसरे की कब जरूरत है यह कभी बताना नहीं पड़ता था.

एक बार गरमी की छुट्टियों में तपेश को पीयूष के घर जाने का अवसर मिला. पहली बार उस के परिवार से मिलने का मौका मिला था. उस के मातापिता और 2 बड़े भाइयों के साथ 2 दिन तक तपेश एक परिवारिक सदस्य की तरह रहा. खूब मस्ती की और पहली बार पता चला कि समाज के इतने खास लोगों का व्यवहार इतना सामान्य भी हो सकता है.

तपेश ने देखा कि पैसों के पंखों के बावजूद पीयूष के परिवार वालों के पांव जमीन पर ही टिके थे. उस की दोस्ती पीयूष के साथ क्यों फूलफल रही थी यह बात उसे अब सम  झ आई थी. वापस आने के बाद भी तपेश उस के परिवार के साथ खासकर उस की मां के साथ फोन पर जुड़ा रहा.

एक बार सेमैस्टर की फाइनल परीक्षा आने वाली थी. हर विद्यार्थी मस्ती भूल कर किताबों से चिपका हुआ था. तपेश पढ़तेपढ़ते पीयूष के कमरे से कोई किताब उठाने गया तो देखा कि वह बेहोश पड़ा था. माथा छूआ तो पता चला कि वह तो बुखार में तप रहा था.

तपेश ने बिना वक्त गंवाए, तुरंत कुछ और फ्रैंड्स को सहायता के लिए बुलाया और सब ने मिल कर उसे हौस्पिटल पहुचाया. कंपाउंडर ने जाते ही इंजैक्शन दिया और कहा, ‘‘अभी इसे ऐडमिट करना पड़ेगा. बुखार काफी ज्यादा है, इसलिए एक रात अंडर औब्जर्वेशन में रखना होगा. सुबह तक हर घंटे में बुखार चैक करना होगा. मैं इस का ध्यान रखूंगा और जरूरत पड़ने पर डाक्टर को भी बुला लूंगा. अब तुम लोग जा सकते हो.’’

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लौकडाउन- भाग 2 : जब बिछड़े प्यार को मिलवाया तपेश के दोस्त ने

लेखिका- सावित्री रानी

सभी दोस्त वापस होस्टल चले गए.

सुबह जब पीयूष की आंख खुली तो देखा कि तपेश भी वहीं बराबर वाले बैड पर सो रहा था.

‘‘अरे, तू यहां क्या कर रहा है? तु  झे तो रात भर पढ़ना था न?’’ पीयूष ने हैरानी से पूछा

‘‘अरे नहीं यार. सोना ही था, तो यहीं सो गया.’’

तभी कंपाउंडर और डाक्टर दोनों साथ में दाखिल हुए. कंपाउंडर डाक्टर से बोला, ‘‘सौरी डाक्टर साहब रात को नींद लग गई तो

हर घंटे पर बुखार चैक नहीं कर सका, लेकिन मैं ने इंजैक्शन दे दिया था.’’

डाक्टर ने पीयूष के बैड साइड से चार्ट उठाते हुए कहा, ‘‘लेकिन चार्ट में तो हर घंटे की रीडिंग है.’’

इस के साथ ही पीयूष की निगाहें तपेश की ओर घूमीं तो वह आंखें मिचका कर मुसकरा दिया.

थोड़ी देर में पीयूष की मां का फोन आया, ‘‘बेटा अब कैसी तबीयत है?’’

‘‘ठीक है मां.’’

‘‘तपेश तेरे पास ही था न?’’

‘‘हां मां, लेकिन आप को कैसे पता?’’

‘‘मैं ने ही उसे तेरा ध्यान रखने को बोला था, जब वह हमारे घर आया था. बहुत प्यारा लड़का है. आज तु  झे भी बोल रही हूं. हमेशा उस का ध्यान रखना. प्रौब्लम में उसे कभी अकेला मत छोड़ना.’’

‘‘कभी नहीं मां.’’

वक्त की रफ्तार यूनिवर्सिटी में कुछ ज्यादा ही तेज होती है. 4 साल पलक   झपकते ही बीत गये. कालेज के इन 4 सालों ने सभी दोस्तों को इंजीनियरिंग की डिगरी दे कर उन के पंखों को नई उड़ान के लिए मजबूत कर दिया था और उन्हें एक नए आकाश पर अपने नाम लिखने के लिए खुला छोड़ दिया था.

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पीयूष और रिया की खूबसूरत जोड़ी के प्यार का पौधा भी अब तक एक विशाल वृक्ष का रूप ले चुका था.

फिर हरकोई अपने कैरियर के चलते कहांकहां जा बसा, हिसाब रखना भी मुश्किल हो गया. इन की उड़ान देश के हर शहर से ले कर विदेशों तक उड़ चली थी.

धीरेधीरे सब की शादियां होने लगीं. तपेश की शादी एक मध्यवर्गीय  परिवार की पढ़ीलिखी लड़की शालू से हो गई. जाहिर है अरेंज्ड मैरिज थी, लेकिन दोनों की अच्छी निभ रही थी. 1 साल बाद शालू ने बेटे को जन्म दिया तो ऐसा लगा कि घर खुशियों से भर गया.

उधर पीयूष और रिया दोनों को भी अच्छी नौकरी मिल गई थीं. लेकिन वे दोनों अभी शादी नहीं करना चाहते थे. कुछ और दिन अपनी बैचलर लाइफ ऐंजौय करना चाहते थे. कभीकभी तपेश को लगता कि पीयूष यहां भी बाजी मार गया. जहां वह घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां निभा रहा था वहीं पीयूष अभी भी बैचलर लाइफ की मस्ती ले रहा था.

लेकिन अपने प्यारे से बेटे को गोद में ले कर जब तपेश उसे प्यार करता तो उस के सामने दुनिया की हर नेमत छोटी लगती थी. जब उस ने अपना पहला शब्द ‘पप्पा’ बोला तो तपेश उसे गोद में उठा कर खुशी से   झूम उठा और जैसे खुद से ही बोला कि इस एक पल पर सारी मस्तियां वारी जा सकती हैं.

अगले साल बड़ी धूमधाम से पीयूष और रिया की भी शादी हो गई. शादी के कुछ दिन बाद ही पीयूष को किसी असाइनमैंट के लिए विदेश जाना पड़ा. फिर पता नहीं क्यों और कैसे, लेकिन वापस आते ही रिया ने उस के सामने तलाक की मांग रख दी.

पीयूष का प्यार आज तक उस की किसी मांग को नकार नहीं सका था लिहाजा, इस मांग को भी उस की खुशी मान कर न नहीं कर पाया. म्युचुअल कंसर्न से तलाक हो गया. यह शादी उतने दिन भी नहीं चली जितने दिन उस की तैयारियां चली थीं. गलती किस की थी या क्या थी, इन सब बातों की फैसले के बाद कोई अहमियत नहीं रह जाती. कुछ दिन बाद उड़ती सी खबर सुनी कि रिया ने उस से शादी कर ली, जिस के लिए उस ने पीयूष को छोड़ा था.

इधर तपेश की पत्नी शालू ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया. परिवार में इस इजाफे के साथ ही उन का परिवार भी पूरा हो गया और हर अरमान भी.

उधर पीयूष का तलाक हुए काफी वक्त बीत चुका था. सभी के सम  झानेबु  झाने के बाद भी फिर उस का मन किसी की ओर नहीं   झुका. रिया से टूटे हुए रिश्ते ने उस को इस कद्र तोड़ दिया कि फिर वह किसी से जुड़ ही नहीं सका.

अब तपेश को साफ दिखाई दे रहा था कि पीयूष के नंबर कहां कटे हैं. अब वह सौ नंबर वाली फिलौसफी उसे पूरी तरह कन्विनसिंग लग रही थी.

पीयूष की उम्र पैसा कमाने और दोस्तों से मिलनेमिलाने में ही बीत रही थी. उस का मिलनसार व्यवहार और गाने का शौक हर महफिल में जान डाल देता था. अपने हर दोस्त के घर उस का स्वागत प्यार से होता था. हर परिवार में उस के दिए गए तोहफे न सिर्फ यूजर मैनुअल के साथ आते, बल्कि इस इंस्ट्रक्शन के साथ भी आते कि घर में उन को कहां रखना है.

अपने कलात्मक सु  झाव और मस्तमौला अंदाज के कारण वह दोस्तों की पत्नियों के बीच भी उतना ही पौपुलर था जितना दोस्तों के बीच. दुनिया के न जाने कितने देशों में अपने काम के सिलसिले में पीयूष का जाना हुआ, लेकिन हर बार अपने नीड़ में पंछी अकेला ही लौटा.

अब 45 साल की उम्र में गुरुग्राम के एक लग्जरी अपार्टमैंट में वह अकेला रह रहा था.

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सारी रात तपेश इन्हीं यादों में डूबतातैरता रहा. तभी सूरज की एक किरण ने उस के बैडरूम की खिड़की पर दस्तक दी. शालू की आंख खुली तो वह तपेश की ओर देख कर बोली, ‘‘अरे आज तो बड़ी जल्दी उठ गए.’’

‘‘नहीं, असल में मैं सोया ही नहीं,’’ कह कर उस ने शालू को पीयूष के बारे में सब बताया.

‘‘उफ, सो सैड…’’ तो चलो फिर हम अस्पताल चलते हैं.

‘‘नहीं, तुम घर पर बच्चों के पास रुको, मैं जाता हूं.’’

तपेश तैयार हो कर वक्त से कुछ पहले ही अस्पताल पहुंच गया और आईसीयू की विंडो से पीयूष को देखता रहा. डाक्टर ने उसे बताया, बात कर के उसे पता चला कि रात को करीब 1 बजे उसे अस्पताल लाया गया था. हार्टअटैक सीवियर था, लेकिन कुदरत का शुक्र है कि समय पर सहायता मिल गई. अब स्थिति काबू में है. बाकी अपडेट्स शाम को दे पाऊंगा,’’ कह कर डाक्टर जल्दी से चला गया.

तपेश पूछता ही रह गया. अरे, लेकिन डाक्टर उसे अस्पताल लाया कौन था?

तभी उस ने देखा कि एक औरत उसी डाक्टर को आवाज लगाती हुई आई और उस  से पीयूष के बारे में पूछताछ करने लगी. तपेश हैरानी से उस की ओर देख रहा था. वह करीब 35-40 साल की खूबसूरत औरत थी, जो इंडियन तो नहीं थी. वह फ्रैंच एकसैंट में इंग्लिश बोल रही थी, उस से साफ जाहिर था कि वह किसी इंग्लिश स्पीकिंग देश से भी नहीं है.

पहनावे से तो वह काफी कुछ आजकल की मौडर्न औरतों जैसी ही लग रही थी, लेकिन नैननक्श से कुछकुछ अरबी लग रही थी. लेकिन उस की फ्रैंच एकसैंट में इंग्लिश सुन कर तपेश को लगा कि शायद वह लैबनान या ईजिप्ट से हो सकती है.

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लौकडाउन- भाग 3 : जब बिछड़े प्यार को मिलवाया तपेश के दोस्त ने

लेखिका- सावित्री रानी

तपेश खुद काम के सिलसिले में कई देशों में रह चुका था. इसलिए उसे इंग्लिश के भिन्नभिन्न एकसैंट्स की पहचान थी. उसे पता था कि लैबनान और ईजिप्ट जैसे देशों में पैसे वाले लोग अपनी पढ़ाई फ्रैंच माध्यम में भी करते हैं. तभी तपेश को कुछ दिन पहले पीयूष से फोन पर हुई बात याद आई. जब तपेश के घर पार्टी थी और पीयूष भी आमंत्रित था. लेकिन पार्टी वाले दिन पीयूष का फोन आया था, ‘‘आज मैं तेरे यहां पार्टी में नहीं आ सकूंगा. सारी यार.’’

‘‘क्या हुआ? तबीयत तो ठीक है?’’

‘‘तबीयत बिलकुल ठीक है. दरअसल, आज ईजिप्ट से मेरा एक दोस्त आ रहा है तो उसे रिसीव करने जाना है.’’

‘‘ ठीक है.’’

‘‘उफ, तो यही दोस्त था जो ईजिप्ट से आया था,’’ तपेश अकेले ही बैठाबैठा बुदबुदा रहा था.

तभी नर्स ने आ कर सूचना दी कि आप पीयूष से मिल सकते हैं. उसे रूम में शिफ्ट कर दिया गया है.

तपेश रूम में पहुंचा तो वह महिला पहले से पीयूष के बैड के पास पड़ी कुरसी पर बैठी थी. पीयूष की हालत ठीक लग रही थी. उस ने उस महिला से मिलवाते हुए कहा, ‘‘तपेश, यह मेरी दोस्त नाहिद है. ईजिप्ट से आई है और नाहिद यह मेरा दोस्त तपेश.’’

‘‘हाई नाहिद.’’

‘‘हाई तपेश.’’

नाहिद की आंखों में पीयूष के लिए   झलकता चिंता का भाव काफी कुछ कह रहा था. पीयूष की हालत अब ठीक लग रही थी. तपेश उन दोनों को अकेला छोड़ कर डाक्टर से बात करने के बहाने वहां से चला गया. पता चला कि डाक्टर तो अभी व्यस्त हैं, तो वह रूम के बाहर बैंच पर बैठ गया.

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अब तपेश की कल्पना की उड़ान इस कहानी के सिरे ढूंढ़ने  लगी. उसे यह तो पता था कि पीयूष करीब 4 साल पहले किसी फौरेन असाइनमैंट पर ईजिप्ट गया था और वहां 2 साल रहा था. पर यह नाहिद की क्या कहानी है, इस बारे में उसे बिलकुल भी भनक नहीं थी.

तभी सामने से डाक्टर को आते देख कर तपेश उन से पीयूष के अपडेट्स लेने लगा.

डाक्टर ने बताया, ‘‘हम करोना के चलते पीयूष को यहां और ज्यादा दिन नहीं रखना चाहते. उस की हालत अब ठीक है. आप उसे घर ले जा सकते हैं. कुछ समय बाद उन को ऐंजिओप्लास्टी की जरूरत पड़ सकती है. हो सकता है न भी पड़े. फिर दवाइयों और इंस्ट्रक्शंस की लंबी लिस्ट दे कर डाक्टर चले गए.

तपेश ने पीयूष को अपने घर ले जाने की पेशकश करते हुए कहा, ‘‘मैं तु  झे अकेले नहीं छोड़ सकता यार. तू मेरे घर चल, वहां मैं और शालू मिल कर तेरी अच्छी देखभाल कर सकेंगे.’’

पीयूष ने सवालिया निगाहों से नाहिद की ओर देखा तो वह अपनी फ्रैंच इंग्लिश में बोली, ‘‘तपेश आप पीयूष की चिंता बिलकुल भी न करें. मैं उस का ध्यान रखूंगी. कोई जरूरत हुई तो आप को कौल कर लूंगी.’’

तपेश ने हैरानी और परेशानी से पीयूष की ओर देखा, ‘‘यार यह कैसे संभालेगी? न तो यह यहां की भाषा जानती है न ही इसे यहां का सिस्टम सम  झ आएगा.’’

नाहिद उन की हिंदी में हो रही बातचीत को न सम  झ पाने के कारण कुछ असमंजस में थी, सो बोली, ‘‘तपेश आप पीयूष के पास बैठो तब तक मैं डाक्टर से मिल कर आती हूं.’’

उस के जाते ही तपेश ने अपनी प्रश्नों से भरी निगाहें पीयूष की तरफ मोड़ी.

पीयूष अपनी सफाई देता सा बोला, ‘‘वह तु  झे पता है न कि मैं कुछ साल पहले ईजिप्ट गया था और वहां 2 साल रहा था?’’ पीयूष ने नजरें   झुका कर थोड़ा शरमाते हुए कहा.

‘‘हां, तो?’’

‘‘तो नाहिद वहां मेरी ही कंपनी में काम करती थी. यह ईजिप्ट के काफी जानेमाने परिवार की लड़की है, लेकिन जरा मनमौजी है. उसी दौरान इस का तलाक हुआ था. इसीलिए इस का नौकरी से भी मन उचट गया था. यह काफी परेशान रहने लगी थी.’’

‘‘फिर?’’

‘‘फिर इस ने नौकरी भी छोड़ दी थी.’’

‘‘तो फिर करती क्या है?’’

‘‘फिर इस ने वहीं ईजिप्ट के ऐलैक्जैंडरिया शहर में अपनी एक सोविनियर की शौप खोल ली थी. कला और कलाकृतियों की इसे काफी परख थी और यही उस का शौक भी था. तु  झे तो पता ही है कि मु  झे भी कला से काफी लगाव है.’’

‘‘हांहां, यह कौन नहीं जानता?’’

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‘‘तो बस इस के नौकरी छोड़ने के बाद भी हमारे शौक समान होने के कारण हमारी दोस्ती बरकरार रही. फिर मेरी सलाह पर इस ने इंडियन सोविनियर्स भी रखने शुरू कर दिए.’’

‘‘हां, पर तु  झे तो इंडिया वापस आए 2 साल हो गए, फिर अब यह यहां कैसे?’’

‘‘वह क्या है न मैं यहां से सोविनियर्स भेजता रहता हूं, जिन की वहां अब काफी मांग बढ़ गई है. तो इस बार नाहिद ने सोचा कि क्यों न इस बार अपनी पसंद से और ज्यादा मात्रा में सोविनियर खरीदे जाएं.’’

‘‘फिर?’’

‘‘फिर बस यह इसीलिए यहां आई थी, लेकिन 2 दिन बाद ही कोरोना की वजह से लौकडाउन हो गया और यह यहीं फंस गई.

‘‘लेकिन फंसी अच्छी,’’ मैं ने मजाक करते हुए एक आंख दबाई.

‘‘अरे नहीं यार, ऐसा कुछ भी नहीं है,’’ पीयूष नजरें   झुका कर बोला.

पीयूष और नाहिद पीयूष के घर लौट गए. 1-2 बार तपेश उस से मिलने पीयूष के घर गया और उस के चेहरे की लौटती रौनक देख कर नाहिद द्वारा की जा रही देखभाल से आश्वस्त हो कर लौट आया.

एक दिन तपेश के पास सुबहसुबह पीयूष का फोन आया, ‘‘क्या तू कल सुबह 9 बजे मेरे घर आ सकता है? मु  झे अस्पताल जाना है.’’

‘‘क्या हुआ? सब ठीक तो है न?’’

‘‘हांहां सब ठीक है. चैकअप के लिए बुलाया है.’’

‘‘ठीक है.’’

जब तपेश अगले दिन उस के घर पहुंचा तो उसे नाहिद और पीयूष दोनों कुछ ज्यादा ही ड्रैसअप से लगे. वह सम  झ न पाया कि

अस्पताल जाने के लिए इतना तैयार होने की भला क्या जरूरत थी. फिर सोचा छोड़ो यार जैसी उन की मरजी.

बाहर निकले तो पीयूष बोला, ‘‘गाड़ी मैं चलाऊंगा.’’

‘‘अरे लेकिन मैं हूं न.’’

‘‘नहीं मैं ही चलाऊंगा. अब तो मैं ठीक हूं,’’ वह जिद करने लगा.

हार कर तपेश ने उसे गाड़ी की चाबी देते हुए कहा, ‘‘ओके.’’

मगर थोड़ी देर में गाड़ी को अस्पताल की तरफ न मुड़ते देख तपेश बोला, ‘‘अरे यार, अस्पताल का कट तो पीछे रह गया. तेरा ध्यान कहां है?’’

पीयूष मुसकराते हुए बोला, ‘‘ध्यान सीधा मंजिल पर है.’’

‘‘मंजिल, कौन सी…’’ तपेश का वाक्य पूरा भी नहीं हो पाया था कि उस ने देखा गाड़ी मैरिज रजिस्ट्रार के औफिस के सामने जा रुकी.

‘‘पीयूष यार यहां क्यों, कैसे…’’

‘‘अरे यार मैरिज के लिए और कहां जाते हैं, मु  झे नहीं पता,’’ पीयूष ने गाड़ी से निकलते हुए ठहाका लगाया.

‘‘मैरिज, किस की, कैसे?’’

गाड़ी से निकल कर पीयूष और नाहिद ने एकदूसरे की बांहों में बांहें डालते हुए  एकसाथ कहा, ‘‘ऐसे,’’ और दोनों खिलखिला उठे.

तपेश ने नाहिद की ओर देखा तो उस के शर्म से लाल चेहरे से नईनवेली दुलहन   झलक रही थी.

‘‘अच्छा तो यह बात है. तो फिर यह भी बता दो कि इस गरीब की दौड़ क्यों लगवाई सुबहसुबह?’’

‘‘तो क्या गवाह हम खुद ही बन जाते?’’ अदा से मुसकराते हुए पीयूष बोला.

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तपेश खफा हुआ सोच रहा था, कितनी अजीब बात है मेरे दोस्त की भी. जिस की किश्ती किनारे पर डूब गई थी, उसे पार भी लगाया तो किस ने? तूफानों ने?

जिस करोना ने सारी दुनिया को हिला दिया, सब को घरों में बैठा दिया, सब की बड़ीबड़ी योजनाओं पर पानी फेर दिया, मिले हुओं को हमेशा के लिए बिछड़वा दिया, उस ने मेरे दोस्त की वह योजना भी सफल करवा दी, जो उस ने बनाई भी नहीं थी और उन्हें मिलवा दिया जिन्हें पता ही नहीं था कि उन्हें मिलना भी है. वाह रे करोना. वाह रे लौकडाउन.

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