Hindi Love Stories : क्या मानसी अपने पति को धोखा दे रही थी?

Hindi Love Stories : अचानक शुरू हुई रिमझिम ने मौसम खुशगवार कर दिया था. मानसी ने एक नजर खिड़की के बाहर डाली. पेड़पौधों पर झरझर गिरता पानी उन का रूप संवार रहा था. इस मदमाते मौसम में मानसी का मन हुआ कि इस रिमझिम में वह भी अपना तनमन भिगो ले.

मगर उस की दिनचर्या ने उसे रोकना चाहा. मानो कह रही हो हमें छोड़ कर कहां चली. पहले हम से तो रूबरू हो लो.

रोज वही ढाक के तीन पात. मैं ऊब गई हूं इन सब से. सुबहशाम बंधन ही बंधन. कभी तन के, कभी मन के. जाओ मैं अभी नहीं मिलूंगी तुम से. मन ही मन निश्चय कर मानसी ने कामकाज छोड़ कर बारिश में भीगने का मन बना लिया.

क्षितिज औफिस जा चुका था और मानसी घर में अकेली थी. जब तक क्षितिज घर पर रहता था वह कुछ न कुछ हलचल मचाए रखता था और अपने साथसाथ मानसी को भी उसी में उलझाए रखता था. हालांकि मानसी को इस बात से कोई आपत्ति नहीं थी और वह सहर्ष क्षितिज का साथ निभाती थी. फिर भी वह क्षितिज के औफिस जाते ही स्वयं को बंधनमुक्त महसूस करती थी और मनमानी करने को मचल उठती थी.

इस समय भी मानसी एक स्वच्छंद पंछी की तरह उड़ने को तैयार थी. उस ने बालों से कल्चर निकाल उन्हें खुला लहराने के लिए छोड़ दिया जो क्षितिज को बिलकुल पसंद नहीं था. अपने मोबाइल को स्पीकर से अटैच कर मनपसंद फिल्मी संगीत लगा दिया जो क्षितिज की नजरों में बिलकुल बेकार और फूहड़ था.

अत: जब तक वह घर में रहता था, नहीं बजाया जा सकता था. यानी अब मानसी अपनी आजादी के सुख को पूरी तरह भोग रही थी.

अब बारी थी मौसम का आनंद उठाने की. उस के लिए वह बारिश में भीगने के लिए आंगन में जाने ही वाली थी कि दरवाजा खटखटाने की आवाज आई.

इस भरी बरसात में कौन हो सकता है. पोस्टमैन के आने में तो अभी देरी है. धोबी नहीं हो सकता. दूध वाला भी नहीं. तो फिर कौन है? सोचतीसोचती मानसी दरवाजे तक जा पहुंची.

दरवाजे पर वह व्यक्ति था जिस की वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी.

‘‘आइए,’’ उस ने दरवाजा खोलते हुए कुछ संकोच से कहा और फिर जैसे ही वह आगंतुक अंदर आने को हुआ बोली, ‘‘पर वे तो औफिस चले गए हैं.’’

‘‘हां, मुझे पता है. मैं ने उन की गाड़ी निकलते देख ली थी,’’ आगंतुक जोकि उन के महल्ले का ही था ने अंदर आ कर सोफे पर बैठते हुए कहा.

यह सुन कर मानसी मन ही मन बड़बड़ाई कि जब देख ही लिया था तो फिर क्यों चले आए हो… वह मन ही मन आकाश के बेवक्त यहां आने पर कु्रद्ध थी, क्योंकि उन के आने से उस का बारिश में भीगने का बनाबनाया प्रोग्राम चौपट हो रहा था. मगर मन मार कर वह भी वहीं सोफे पर बैठ गई.

शिष्टाचारवश मानसी ने बातचीत का सिलसिला शुरू किया, ‘‘कैसे हैं आप? काफी दिनों बाद नजर आए.’’

‘‘जैसा कि आप देख ही रहीं… बिलकुल ठीक हूं. काम पर जाने के लिए निकला ही था कि बरसात शुरू हो गई. सोचा यहीं रुक जाऊं. इस बहाने आप से मुलाकात भी हो जाएगी.’’

‘‘ठीक किया जो चले आए. अपना ही घर है. चायकौफी क्या लेंगे आप?’’

‘‘जो भी आप पिला दें. आप का साथ और आप के हाथ हर चीज मंजूर है,’’ आकाश ने मुसकरा कर कहा तो मानसी का बिगड़ा मूड कुछ हद तक सामान्य हो गया, क्योंकि उस मुस्कराहट में अपनापन था.

मानसी जल्दी 2 कप चाय बना लाई. चाय के दौरान भी कुछ औपचारिक बातें होती रहीं. इसी बीच बूंदाबांदी कम हो गई.

‘‘आप की इजाजत हो तो अब मैं चलूं?’’ फिर आकाश के चेहरे पर वही मुसकराहट थी.

‘‘जी,’’ मानसी ने कहा, ‘‘फिर कभी फुरसत से आइएगा भाभीजी के साथ.’’

‘‘अवश्य यदि वह आना चाहेगी तो उसे भी ले आऊंगा. आप तो जानती ही हैं कि उसे कहीं आनाजाना पसंद नहीं,’’ कहतेकहते आकाश के चेहरे पर उदासी छा गई.

मानसी को लगा कि उस ने आकाश की दुखती रग पर हाथ रख दिया हो, क्योंकि वह जानती थी कि आकाश की पत्नी मानसिक रूप से अस्वस्थ है और इसी कारण लोगों से बात करने में हिचकिचाती है.

‘‘क्या मैं अंदर आ सकता हूं?’’ अगले दिन भी जब उसी मुसकराहट के साथ आकाश ने पूछा तो जवाब में मानसी भी मुसकरा दी और दरवाजा खोल दिया.

‘‘चाय या कौफी?’’

‘‘कुछ नहीं… औपचारिकता करने की आवश्यकता नहीं. आज भी तुम से दो घड़ी बात करने की इच्छा हुई तो फिर चला आया.’’

‘‘अच्छा किया. मैं भी बोर ही हो रही थी,’’ मानसी जानती थी कि उन्हें यह बताने की आवश्यकता नहीं थी कि क्षितिज कहां है, क्योंकि निश्चय ही वे जानते थे कि वे घर पर नहीं हैं.

इस तरह आकाश के आनेजाने का सिलसिला शुरू हो गया वरना इस महल्ले में किसी के घर आनेजाने का रिवाज कम ही था. यहां अधिकांश स्त्रियां नौकरीपेशा थीं या फिर छोटे बालबच्चों वाली. एक वही अपवाद थी जो न तो कोई जौब करती थी और न ही छोटे बच्चों वाली थी.

मानसी का एकमात्र बेटा 10वीं कक्षा में बोर्डिंग स्कूल में पढ़ता था. अपने अकेलेपन से जूझती मानसी को अकसर अपने लिए एक मित्र की आवश्यकता महसूस होती थी और अब वह आवश्यकता आकाश के आने से पूरी होने लगी थी, क्योंकि वे घरगृहस्थी की बातों से ले कर फिल्मों, राजनीति, साहित्य सभी तरह की चर्चा कर लेते थे.

आकाश लगभग रोज ही आफिस जाने से पूर्व मानसी से मिलते हुए जाते थे और अब स्थिति यह थी कि मानसी क्षितिज के जाते ही आकाश के आने का इंतजार करने लग जाती थी.

एक दिन जब आकाश नहीं आए तो अगले दिन उन के आते ही मानसी ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, कल क्यों नहीं आए? मैं ने कितना इंतजार किया.’’

आकाश ने हैरानी से मानसी की ओर देखा और फिर बोले, ‘‘क्या मतलब? मैं ने रोज आने का वादा ही कब किया है?’’

‘‘सभी वादे किए नहीं जाते… कुछ स्वयं ही हो जाते हैं. अब मुझे आप के रोज आने की आदत जो हो गई है.’’

‘‘आदत या मुहब्बत?’’ आकाश ने मुसकरा कर पूछा तो मानसी चौंकी, उस ने देखा कि आज उन की मुसकराहट अन्य दिनों से कुछ अलग है.

मानसी सकपका गई. पर फिर उसे लगा कि शायद वे मजाक कर रहे हैं. अपनी सकपकाहट से अनभिज्ञता का उपक्रम करते हुए वह सदा की भांति बोली, ‘‘बैठिए, आज क्षितिज का जन्मदिन है. मैं ने केक बनाया है. अभी ले कर आती हूं.’’

‘‘तुम ने मेरी बात का जवाब नहीं दिया.’’ आकाश फिर बोले तो उसे बात की गंभीरता का एहसास हुआ.

‘‘क्या जवाब देती.’’

‘‘कह दो कि तुम मेरा इंतजार इसलिए करती हो कि तुम मुझे पसंद करती हो.’’

‘‘हां दोनों ही बातें सही हैं.’’

‘‘यानी मुहब्बत है.’’

‘‘नहीं, मित्रता.’’

‘‘एक ही बात है. स्त्री और पुरुष की मित्रता को यही नाम दिया जाता है,’’ आकाश ने मानसी की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा.

‘‘हां दिया जाता है,’’ मानसी ने हाथ को हटाते हुए कहा, ‘‘क्योंकि साधारण स्त्रीपुरुष मित्रता का अर्थ इसी रूप में जानते हैं और मित्रता के नाम पर वही करते हैं जो मुहब्बत में होता है.’’

‘‘हम भी तो साधारण स्त्रीपुरुष ही हैं.’’

‘‘हां हैं, परंतु मेरी सोच कुछ अलग है.’’

‘‘सोच या डर?’’

‘‘डर किस बात का?’’

‘‘क्षितिज का. तुम डरती हो कि कहीं उसे पता चल गया तो?’’

‘‘नहीं, प्यार, वफा और समर्पण को डर नहीं कहते. सच तो यह है कि क्षितिज तो अपने काम में इतना व्यस्त है कि मैं उस के पीछे क्या करती हूं, वह नहीं जानता और यदि मैं न चाहूं तो वह कभी जान भी नहीं पाएगा.’’

‘‘फिर अड़चन क्या है?’’

‘‘अड़चन मानसिकता की है, विचारधारा की है.’’

‘‘मानसिकता बदली जा सकती है.’’

‘‘हां, यदि आवश्यकता हो तो… परंतु मैं इस की आवश्यकता नहीं समझती.’’

‘‘इस में बुराई ही क्या है?’’

‘‘बुराई है… आकाश, आप नहीं जानते हमारे समाज में स्त्रीपुरुष की दोस्ती को उपेक्षा की दृष्टि से देखने का यही मुख्य कारण है. जानते हो एक स्त्री और पुरुष बहुत अच्छे मित्र हो सकते हैं, क्योंकि उन के सोचने का दृष्टिकोण अलग होता है. इस से विचारों में विभिन्नता आती है. ऐसे में बातचीत का आनंद आता है, परंतु ऐसा नहीं होता.’’

‘‘अकसर एक स्त्री और पुरुष अच्छे मित्र बनने के बजाय प्रेमी बन कर रह जाते हैं और फिर कई बार हालात के वशीभूत हो कर एक ऐसी अंतहीन दिशा में बहने लगते हैं जिस की कोई मंजिल नहीं होती.’’

‘‘परंतु यह स्वाभाविक है, प्राकृतिक है, इसे क्यों और कैसे रोका जाए?’’

‘‘अपने हित के लिए ठीक उसी प्रकार जैसे हम ने अन्य प्राकृतिक चीजों, जिन से हमें नुकसान हो सकता है, पर नियंत्रण पा लिया है.’’

‘‘यानी तुम्हारा इनकार है,’’ ऐसा लगता था आकाश कुछ बुझ से गए थे.

‘‘इस में इनकार या इकरार का प्रश्न ही कहां है? मुझे आप की मित्रता पर अभी भी कोई आपति नहीं है बशर्ते आप मुझ से अन्य कोई अपेक्षा न रखें.’’

‘‘दोनों बातों का समानांतर चलना बहुत मुश्किल है.’’

‘‘जानती हूं फिर भी कोशिश कीजिएगा.’’

‘‘चलता हूं.’’

‘‘कल आओगे?’’

‘‘कुछ कह नहीं सकता.’’

सुबह के 10 बजे हैं. क्षितिज औफिस चला गया है पर आकाश अभी तक नहीं आए. मानसी को फिर से अकेलापन महसूस होने लगा है.

‘लगता है आकाश आज नहीं आएंगे. शायद मेरा व्यवहार उन के लिए अप्रत्याशित था, उन्हें मेरी बातें अवश्य बुरी लगी होंगी. काश वे मुझे समझ पाते,’ सोच मानसी ने म्यूजिक औन कर दिया और फिर सोफे पर बैठ कर एक पत्रिका के पन्ने पलटने लगीं.

सहसा किसी ने दरवाजा खटखटाया. मानसी दरवाजे की ओर लपकी. देखा दरवाजे पर सदा की तरह मुसकराते हुए आकाश ही थे. मानसी ने भी मुसकरा कर दरवाजा खोल दिया. उस ने आकाश की ओर देखा. आज उन की वही पुरानी चिरपरिचित मुसकान फिर लौट आई थी.

इसी के साथ आज मानसी को विश्वास हो गया कि अब समाज में स्त्रीपुरुष के रिश्ते की उड़ान को नई दिशाएं अवश्य मिल जाएंगी, क्योंकि उन्हें वहां एक आकाश और मिल गया है.

Hindi Story Collection : नसीहत – अरुण और संगीता के बीच क्या संबंध था?

Hindi Story Collection  : कालबेल की आवाज सुन कर दीपू ने दरवाजा खोला. दरवाजे पर एक औरत खड़ी थी. उस औरत ने बताया कि वह अरुण से मिलना चाहती है. औरत को वहीं रोक कर दीपू अरुण को बताने चला गया.

‘‘साहब, दरवाजे पर एक औरत खड़ी है, जो आप से मिलना चाहती है,’’ दीपू ने अरुण से कहा.

‘‘कौन है?’’ अरुण ने पूछा.

‘‘मैं नहीं जानता साहब, लेकिन देखने में भली लगती है,’’ दीपू ने जवाब दिया.

‘‘बुला लो उसे. देखें, किस काम से आई है?’’ अरुण ने कहा.

दीपू उस औरत को अंदर बुला लाया.

अरुण उसे देखते ही हैरत से बोला, ‘‘अरे संगीता, तुम हो. कहो, कैसे आना हुआ? आओ बैठो.’’

संगीता सोफे पर बैठते हुए बोली, ‘‘बहुत मुश्किल से तुम्हें ढूंढ़ पाई हूं. एक तुम हो जो इतने दिनों से इस शहर में हो, पर मेरी याद नहीं आई.

‘‘तुम ने कहा था कि जब कानपुर आओगे, तो मुझ से मिलोगे. मगर तुम तो बड़े साहब हो. इन सब बातों के लिए तुम्हारे पास फुरसत ही कहां है?’’

‘‘संगीता, ऐसी बात नहीं है. दरअसल, मैं हाल ही में कानपुर आया हूं. औफिस के काम से फुरसत ही नहीं मिलती. अभी तक तो मैं ने इस शहर को ठीक से देखा भी नहीं है.

‘‘अब छोड़ो इन बातों को. पहले यह बताओ कि मेरे यहां आने की जानकारी तुम्हें कैसे मिली?’’ अरुण ने संगीता से पूछा.

‘‘मेरे पति संतोष से, जो तुम्हारे औफिस में ही काम करते हैं,’’ संगीता ने चहकते हुए बताया.

‘‘तो संतोषजी हैं तुम्हारे पति. मैं तो उन्हें अच्छी तरह जानता हूं. वे मेरे औफिस के अच्छे वर्कर हैं,’’ अरुण ने कहा.

अरुण के औफिस जाने का समय हो चुका था, इसलिए संगीता जल्दी ही अपने घर आने की कह कर लौट गई.

औफिस के कामों से फुरसत पा कर अरुण आराम से बैठा था. उस के मन में अचानक संगीता की बातें आ गईं.

5 साल पहले की बात है. अरुण अपनी दीदी की बीमारी के दौरान उस के घर गया था. वह इंजीनियरिंग का इम्तिहान दे चुका था.

संगीता उस की दीदी की ननद की लड़की थी. उस की उम्र 18 साल की रही होगी. देखने में वह अच्छी थी. किसी तरह वह 10वीं पास कर चुकी थी. पढ़ाई से ज्यादा वह अपनेआप पर ध्यान देती थी.

संगीता दीदी के घर में ही रहती थी. दीदी की लंबी बीमारी के कारण अरुण को वहां तकरीबन एक महीने तक रुकना पड़ा. जीजाजी दिनभर औफिस में रहते थे. घर में दीदी की बूढ़ी सास थी. बुढ़ापे के कारण उन का शरीर तो कमजोर था, पर नजरें काफी पैनी थीं.

अरुण ऊपर के कमरे में रहता था. अरुण को समय पर नाश्ता व खाना देने के साथसाथ उस के ज्यादातर काम संगीता ही करती थी.

संगीता जब भी खाली रहती, तो ज्यादा समय अरुण के पास ही बिताने की कोशिश करती.

संगीता की बातों में कीमती गहने, साडि़यां, अच्छा घर व आधुनिक सामानों को पाने की ख्वाहिश रहती थी. उस के साथ बैठ कर बातें करना अरुण को अच्छा लगता था.

संगीता भी अरुण के करीब आती जा रही थी. वह मन ही मन अरुण को चाहने लगी थी. लेकिन दीदी की सास दोनों की हालत समझ गईं और एक दिन उन्होंने दीदी के सामने ही कहा, ‘अरुण, अभी तुम्हारी उम्र कैरियर बनाने की है. जज्बातों में बह कर अपनी जिंदगी से खेलना तुम्हारे लिए अच्छा नहीं है.’

दीदी की सास की बातें सुन कर अरुण को अपराधबोध का अहसास हुआ. वह कुछ दिनों बाद ही दीदी के घर से वापस आ गया. तब तक दीदी भी ठीक हो चुकी थीं.

एक साल बाद अरुण गजटेड अफसर बन गया. इस बीच संगीता की शादी तय हो गई थी. जीजाजी शादी का बुलावा देने घर आए थे.

लौटते समय वे शादी के कामों में हाथ बंटाने के लिए अरुण को साथ लेते गए. दीदी के घर में शादी की चहलपहल थी.

एक शाम अरुण घर के पास बाग में यों ही टहल रहा था, तभी अचानक संगीता आई और बोली, ‘अरुण, समय मिल जाए, तो कभी याद कर लेना.’

संगीता की शादी हो गई. वह ससुराल चली गई. अरुण ने भी शादी कर ली.

आज संगीता अरुण के घर आई, तो अरुण ने भी कभी संगीता के घर जाने का इरादा कर लिया. पर औफिस के कामों में बिजी रहने के कारण वह चाह कर भी संगीता के घर नहीं जा सका. मगर संगीता अरुण के घर अब रोज जाने लगी.

कभीकभी संगीता अरुण के साथ उस के लिए शौपिंग करने स्टोर में चली जाती. स्टोर का मालिक अरुण के साथ संगीता को भी खास दर्जा देता था.

एकाध बार तो ऐसा भी होता कि अरुण की गैरहाजिरी में संगीता स्टोर में जा कर अरुण व अपनी जरूरत की चीजें खरीद लाती, जिस का भुगतान अरुण बाद में कर देता.

अरुण संगीता के साथ काफी घुलमिल गया था. संगीता अरुण को खाली समय का अहसास नहीं होने देती थी.

एक दिन संगीता अरुण को साथ ले कर साड़ी की दुकान पर गई. अरुण की पसंद से उस ने 3 साडि़यां पैक कराईं.

काउंटर पर आ कर साड़ी का बिल ले कर अरुण को देती हुई चुपके से बोली, ‘‘अभी तुम भुगतान कर दो, बाद में मैं तुम्हें दे दूंगी.’’

अरुण ने बिल का भुगतान कर दिया और संगीता के साथ आ कर गाड़ी में बैठ गया.

गाड़ी थोड़ी दूर ही चली थी कि संगीता ने कहा, ‘‘जानते हो अरुण, संतोषजी के चाचा की लड़की की शादी है. मेरे पास शादी में पहनने के लिए कोई ढंग की साड़ी नहीं है, इसीलिए मुझे नई साडि़यां लेनी पड़ीं.

‘‘मेरी शादी में मां ने वही पुराने जमाने वाला हार दिया था, जो टूटा पड़ा है. शादी में पहनने के लिए मैं एक अच्छा सा हार लेना चाहती हूं, पर क्या करूं. पैसे की इतनी तंगी है कि चाह कर भी मैं कुछ नहीं कर पाती हूं. मैं चाहती थी कि तुम से पैसा उधार ले कर एक हार ले लूं. बाद में मैं तुम्हें पैसा लौटा दूंगी.’’

अरुण चुपचाप संगीता की बातें सुनता हुआ गाड़ी चलाए जा रहा था.

उसे चुप देख कर संगीता ने पूछा, ‘‘अरुण, तो क्या तुम चल रहे हो ज्वैलरी की दुकान में?’’

‘‘तुम कहती हो, तो चलते हैं,’’ न चाहते हुए भी अरुण ने कहा.

संगीता ने ज्वैलरी की दुकान में 15 हजार का हार पसंद किया.

अरुण ने हार की कीमत का चैक काट कर दुकानदार को दे दिया. फिर दोनों वापस आ गए.

अरुण को संगीता के साथ समय बिताने में एक अनोखा मजा मिलता था.

आज शाम को उस ने रोटरी क्लब जाने का मूड बनाया. वह जाने की तैयारी कर ही रहा था, तभी संगीता आ गई.

संगीता काफी सजीसंवरी थी. उस ने साड़ी से मैच करता हुआ ब्लाउज पहन रखा था. उस ने अपने लंबे बालों को काफी सलीके से सजाया था. उस के होंठों की लिपस्टिक व माथे पर लगी बिंदी ने उस के रूप को काफी निखार दिया था.

देखने से लगता था कि संगीता ने सजने में काफी समय लगाया था. उस के आते ही परफ्यूम की खुशबू ने अरुण को मदहोश कर दिया. वह कुछ पलों तक ठगा सा उसे देखता रहा.

तभी संगीता ने अरुण को फिल्म के 2 टिकट देते हुए कहा, ‘‘अरुण, तुम्हें आज मेरे साथ फिल्म देखने चलना होगा. इस में कोई बहाना नहीं चलेगा.’’

अरुण संगीता की बात को टाल न सका और वह संगीता के साथ फिल्म देखने चला गया.

फिल्म देखते हुए बीचबीच में संगीता अरुण से सट जाती, जिस से उस के उभरे अंग अरुण को छूने लगते.

फिल्म खत्म होने के बाद संगीता ने होटल में चल कर खाना खाने की इच्छा जाहिर की. अरुण मान गया.

खाना खा कर होटल से निकलते समय रात के डेढ़ बज रहे थे. अरुण ने संगीता को उस के घर छोड़ने की बात कही, तो संगीता ने उसे बताया कि चाची की लड़की का तिलक आया है. उस में संतोष भी गए हैं. वह घर में अकेली ही रहेगी. रात काफी हो चुकी है. इतनी रात को गाड़ी से घर जाना ठीक नहीं है. आज रात वह उस के घर पर ही रहेगी.

अरुण संगीता को साथ लिए अपने घर आ गया. वह उस के लिए अपना बैडरूम खाली कर खुद ड्राइंगरूम में सोने चला गया. वह काफी थका हुआ था, इसलिए दीवान पर लुढ़कते ही उसे गहरी नींद आ गई.

रात गहरी हो चुकी थी. अचानक अरुण को अपने ऊपर बोझ का अहसास हुआ. उस की नाक में परफ्यूम की खुशबू भर गई. वह हड़बड़ा कर उठ बैठा. उस ने देखा कि संगीता उस के ऊपर झुकी हुई थी.

उस ने संगीता को हटाया, तो वह उस के बगल में बैठ गई. अरुण ने देखा कि संगीता की आंखों में अजीब सी प्यास थी. मामला समझ कर अरुण दीवान से उठ कर खड़ा हो गया.

बेचैनी की हालत में संगीता अपनी दोनों बांहें फैला कर बोली, ‘‘सालों बाद मैं ने यह मौका पाया है अरुण, मुझे निराश न करो.’’

लेकिन अरुण ने संगीता को लताड़ते हुए कहा, ‘‘लानत है तुम पर संगीता. औरत तो हमेशा पति के प्रति वफादार रहती है और तुम हो, जो संतोष को धोखा देने पर तुली हुई हो.

‘‘तुम ने कैसे समझ लिया कि मेरा चरित्र तिनके का बना है, जो हवा के झोंके से उड़ जाएगा.

‘‘तुम्हें पता होना चाहिए कि मेरा शरीर मेरी बीवी की अमानत है. इस पर केवल उसी का हक बनता है. मैं इसे तुम्हें दे कर उस के साथ धोखा नहीं करूंगा.

‘‘संगीता, होश में आओ. सुनो, औरत जब एक बार गिरती है, तो उस की बरबादी तय हो जाती है,’’ अपनी बात कहते हुए अरुण ने संगीता को अपने कमरे से बाहर कर के दरवाजा बंद कर लिया.

सुबह देर से उठने के बाद अरुण को पता चला कि संगीता तो तड़के ही वहां से चली गई थी.

अरुण ने अपनी समझदारी से खुद को तो गिरने से बचाया ही, संगीता को भी भटकने नहीं दिया.

Hindi Kahaniyan : उजाले की ओर – नीरजा और निल की अटूट प्रेम कहानी

Hindi Kahaniyan : राशी कनाट प्लेस में खरीदारी के दौरान एक आवाज सुन कर चौंक गई. उस ने पलट कर इधरउधर देखा, लेकिन कोई नजर नहीं आया. उसे लगा, शायद गलतफहमी हुई है. उस ने ज्योंही दुकानदार को पैसे दिए, दोबारा ‘राशी’ पुकारने की आवाज आई. इस बार वह घूमी तो देखा कि धानी रंग के सूट में लगभग दौड़ती हुई कोई लड़की उस की तरफ आ रही थी.

राशी ने दिमाग पर जोर डाला तो पहचान लिया उसे. चीखती हुई सी वह बोली, ‘‘नीरजा, तू यहां कैसे?’’

दरअसल, वह अपनी पुरानी सखी नीरजा को सामने देख हैरान थी. फिर तो दोनों सहेलियां यों गले मिलीं, मानो कब की बिछड़ी हों.

‘‘हमें बिछड़े पूरे 5 साल हो गए हैं, तू यहां कैसे?’’ नीरजा हैरानी से बोली.

‘‘बस एक सेमिनार अटैंड करने आई थी. कल वापस जाना है. तुझे यहां देख कर तो विश्वास ही नहीं हो रहा है. मैं ने तो सोचा भी न था कि हम दोनों इस तरह मिलेंगे,’’ राशी सुखद आश्चर्य से बोली, ‘‘अभी तो बहुत सी बातें करनी हैं. तुझे कोई जरूरी काम तो नहीं है? चल, किसी कौफीहाउस में चलते हैं.’’

‘‘नहीं राशी, तू मेरे घर चल. वहां आराम से गप्पें मारेंगे. अरसे बाद तो मिले हैं,’’ नीरजा ने कहा.

राशी नीरजा से गप्पें मारने का मोह छोड़ नहीं पाई. उस ने अपनी बूआ को फोन कर दिया कि वह शाम तक घर पहुंचेगी. तब तक नीरजा ने एक टैक्सी रोक ली. बातोंबातों में कब नीरजा का घर आ गया पता ही नहीं चला.

‘‘अरे वाह नीरजा, तू ने दिल्ली में फ्लैट ले लिया.’’

‘‘किराए का है यार,’’ नीरजा बोली.

तीसरी मंजिल पर नीरजा का छोटा सा फ्लैट देख कर राशी काफी प्रभावित हुई. फ्लैट को सलीके से सजाया गया था. बैठक गुजराती शैली में सजा था.

नीरजा शुरू से ही रिजर्व रहने वाली लड़की थी, पर राशी बिंदास व मस्तमौला थी. स्कूल से कालेज तक के सफर के दौरान दोनों सहेलियों की दोस्ती परवान चढ़ी थी. राशी का लखनऊ में ही मैडिकल कालेज में दाखिला हो गया था और नीरजा दिल्ली चली गई थी. शुरूशुरू में तो दोनों सहेलियां फोन व पत्रों के माध्यम से एकदूसरे के संपर्क में रहीं. फिर धीरेधीरे दोनों ही अपनी दुनिया में ऐसी उलझीं कि सालों बाद आज मुलाकात हुई.

राशी ने उत्साह से घर आतेआते अपने कैरियर व शादी तय होने की जानकारी नीरजा को दे दी थी, परंतु नीरजा ऐसे सवालों के जवाबों से बच रही थी.

राशी ने सोफे पर बैठने के बाद उत्साह से पूछा, ‘‘नीरजा, शादी के बारे में तू ने अब तक कुछ सोचा या नहीं?’’

‘‘अभी कुछ नहीं सोचा,’’ नीरजा बोली, ‘‘तू बैठ, मैं कौफी ले कर आती हूं.’’

राशी उस के घर का अवलोकन करने लगी. बैठक ढंग से सजाया गया था. एक शैल्फ में किताबें ही किताबें थीं. नीरजा ने आते वक्त बताया था कि वह किसी पब्लिकेशन हाउस में काम कर रही थी. राशी बैठक में लगे सभी चित्रों को ध्यान से देखती रही. उस की नीरजा से जुड़ी बहुत सी पुरानी यादें धीरेधीरे ताजा हो रही थीं. उस ने सोचा भी नहीं था कि उस की नीरजा से अचानक मुलाकात हो जाएगी.

राशी बैठक से उस के दूसरे कमरे की तरफ चल पड़ी. छोटा सा बैडरूम था, जो सलीके से सजा हुआ था. राशी को वह सुकून भरा लगा. थकी हुई राशी आरामदायक बैड पर आराम से सैंडल उतार कर बैठ गई.

‘‘नीरजा यार, कुछ खाने को भी ले कर आना,’’ वह वहीं से चिल्लाई.

नीरजा हंस पड़ी. वह सैंडविच बना ही रही थी. किचन से ही वह बोली, ‘‘राशी, तू अभी कितने दिन है दिल्ली में?’’

‘‘मुझे तो आज रात ही 10 बजे की ट्रेन से लौटना है.’’

‘‘कुछ दिन और नहीं रुक सकती है क्या?’’

‘‘नीरजा… मां ने बहुत मुश्किल से सेमिनार अटैंड करने की इजाजत दी है. कल लड़के वाले आ रहे हैं मुझे देखने,’’ राशी चहकते हुए बोली.

‘‘राशी, तू अरेंज मैरिज करेगी, विश्वास नहीं होता,’’ नीरजा हंस पड़ी.

‘‘इंदर अच्छा लड़का है, हैंडसम भी है. फोटो देखेगी उस की?’’ राशी ने कहा उस से. फिर अचानक उस ने उत्सुकतावश नीरजा की एक डायरी उठा ली और बोली उस से, ‘‘ओह, तो मैडम को अभी भी डायरी लिखने का समय मिल जाता है.’’

तभी कुछ तसवीरें डायरी से नीचे गिरीं. राशी ने वे तसवीरें उठा लीं और ध्यानपूर्वक उन्हें देखने लगी. तसवीरों में नीरजा किसी पुरुष के साथ थी. वे अंतरंग तसवीरें साफ बयां कर रही थीं कि नीरजा का रिश्ता उस शख्स से बेहद गहरा था. राशी बारबार उन तसवीरों को देख रही थी. उस के चेहरे पर कई रंग आ जा रहे थे. उसे कमरे की दीवारें घूमती सी नजर आईं.

तभी नीरजा आ गई. उस ने जल्दी से ट्रे रख कर राशी के हाथ से वे तसवीरें लगभग छीन लीं.

राशी ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘नीरजा, बात क्या है?’’

नीरजा उस से आंखें चुरा कर विषय बदलने की कोशिश करने लगी, परंतु नाकामयाब रही. राशी ने कड़े शब्दों में पूछा तो नीरजा की आंखें भर आईं. फिर जो कुछ उस ने बताया, उसे सुन कर राशी के पांव तले जमीन खिसक गई.

नीरजा ने बताया कि 4 साल पहले जब वह दिल्ली आई, तो उस की मुलाकात नील से हुई. दोनों स्ट्रगल कर रहे थे. कालसैंटर की एक नौकरी के इंटरव्यू में दोनों की मुलाकात हुई थी. धीरेधीरे उन की मुलाकात दोस्ती में बदल गई. नीरजा को नौकरी की सख्त जरूरत थी, क्योंकि दिल्ली में रहने का खर्च उठाने में उस के मातापिता असमर्थ थे. नीरजा ने इस नौकरी का प्रस्ताव यह सोच कर स्वीकार कर लिया कि बाद में किसी अच्छे औफर के बाद यह नौकरी छोड़ देगी. औफिस की वैन उसे लेने आती थी, लेकिन उस के मकानमालिक को यह पसंद नहीं था कि वह रात में बाहर जाए.

इधर नील को भी एक मामूली सी नौकरी मिल गई थी. वह अपने रहने के लिए एक सुविधाजनक जगह ढूंढ़ रहा था. एक दिन कनाट प्लेस में घूमते हुए अचानक नील ने एक साझा फ्लैट किराए पर लेने का प्रस्ताव नीरजा के आगे रखा. नीरजा उस के इस प्रस्ताव पर सकपका गई.

नील ने उस के चेहरे के भावों को भांप कर कहा, ‘‘नीरजा, तुम रात के 8 बजे जाती हो और सुबह 8 बजे आती हो. मैं सुबह साढ़े 8 बजे निकला करूंगा तथा शाम को साढ़े 7 बजे आया करूंगा. सुबह का नाश्ता मेरी जिम्मेदारी व रात का खाना तुम बनाना. इस तरह हम साथ रह कर भी अलगअलग रहेंगे.’’

नीरजा सोच में पड़ गई थी. संस्कारी नीरजा का मन उसे इस ऐडजस्टमैंट से रोक रहा था, परंतु नील का निश्छल व्यवहार उसे मना पाने में सफल हो गया. दोनों पूरी ईमानदारी से एकदूसरे का साथ देने लगे. 1 घंटे का जो समय मिलता, उस में दोनों दिन भर क्या हुआ एकदूसरे को बताते. दोनों की दोस्ती एकदूसरे के सुखदुख में काम आने लगी थी. नीरजा ने उस 2 कमरे के फ्लैट को घर बना दिया था. उस ने नील की पसंद के परदे लगवाए, तो नील ने भी रसोई जमाने में उस की पूरी सहायता की थी.

इतवार की छुट्टी का रास्ता भी नील ने ईमानदारी से निकाला. दिन भर दोनों घूमते. शाम को नीरजा घर आ जाती तो नील अपने दोस्त के यहां चला जाता. इंसानी रिश्ते बड़े अजीब होते हैं. वे कब एकदूसरे की जरूरत बन जाते हैं, यह उन्हें स्वयं भी पता नहीं चलता. नीरजा और नील शायद यह समझ ही नहीं पाए कि जिसे वे दोस्ती समझ रहे हैं वह दोस्ती अब प्यार में बदल चुकी है.

नीरजा अचानक रुकी. उस ने अपनी सांसें संयत कर राशी को बताया कि उस दिन बरसात हो रही थी. जोरों का तूफान था. टैक्सी या कोई भी सवारी मिलना लगभग असंभव था. वे दोनों यह सोच कर बाहर नहीं निकले कि बरसात थमने पर नील अपने दोस्त के यहां चला जाएगा. पर बरसात थमने का नाम ही नहीं ले रही थी.

नील शायद उस तूफानी रात में निकल भी जाता, पर नीरजा ने उसे रोक लिया. वह तूफानी रात नीरजा की जिंदगी में तूफान ला देगी, इस का अंदेशा नीरजा को नहीं था. तेज सर्द हवाएं उन के बदन को सिहरा जातीं. नीरजा व नील दोनों अंधेरे में चुपचाप बैठे थे. बिजली गुल थी. नीरजा को डर लग रहा था. नील ने मजबूती से उस का हाथ थाम लिया.

तभी जोर की बिजली कड़की और नीरजा नील के करीब आ गई. दोनों अपनी बढ़ी हुई धड़कनों के सामने कुछ और न सुन सके. दिल में उठे तूफान की आवाज के सामने बाहर के तूफान की आवाज दब गई थी. नीरजा के अंतर्मन में दबा नील के प्रति प्रेम समर्पण में परिवर्तित हो गया. नील ने नीरजा को अपनी बांहों में भर लिया. नीरजा प्रतिकार नहीं कर पाई. दोनों अपनी सीमारेखा का उल्लंघन यों कर गए, मानो उफनती नदी आसानी से बांध तोड़ कर आगे निकल गई हो.

तूफान सुबह तक थम गया था, लेकिन इस तूफान ने नीरजा की जिंदगी बदल दी थी. नीरजा ने अपने इस प्रेम को स्वीकार कर लिया था. नीरजा का प्रेम अमरबेल सा चढ़ता गया. उस के बाद किसी भी रविवार को नील अपने दोस्त के यहां नहीं गया. नीरजा को नील के प्रेम का बंधन सुरक्षा का एहसास कराता था.

एक दिन नीरजा ने नील को प्यार करते हुए कहा, ‘‘हमें अब शीघ्र ही विवाह कर लेना चाहिए.’’

नील ने प्यार से नीरजा का हाथ थामते हुए कहा, ‘‘नीरजा, मेरे प्यार पर भरोसा रखो. मैं अभी शादी के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हूं. ऐसा नहीं है कि मैं तुम्हारी जिम्मेदारी उठाने से डरता हूं. लेकिन इस वक्त मुझे तुम्हारा साथ और सहयोग दोनों ही अपेक्षित हैं.’’

उन दोनों के सीधेसुलझे प्यार के तार उस वक्त उलझने लगे, जब नीरजा की बड़ी बहन रमा दीदी व जीजाजी अचानक दिल्ली आ पहुंचे. नीरजा बेहद घबरा गई थी. उस ने नील से जुड़ी हर चीज को छिपाने की काफी कोशिश की, लेकिन रमा दीदी ने भांप लिया था. उन्होंने नील को बुलाया. नील इस परिस्थिति के लिए तैयार नहीं था. रमा ने नील पर विवाह के लिए दबाव बनाया, जो नील को मंजूर नहीं था.

रमा दीदी को भी उन के रिश्ते का कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा था. उन्होंने अपने देवर विपुल के साथ नीरजा की शादी का मन बना लिया था. नील इसे बरदाश्त न कर पाया. बिना कुछ कहेसुने उस ने दिल्ली छोड़ दी. नीरजा के नाम एक लंबा खत छोड़ कर नील मुंबई चला गया.

नीरजा अंदर से टूट गई थी. उस ने रमा दीदी को सब सचसच बता दिया. उस दिन से नीरजा के रिश्ते अपने घर वालों से भी टूट गए. नीरजा फिर कभी कालसैंटर नहीं गई. वह इस का दोष नील को नहीं देना चाहती थी. उस ने नील के साथ बिताए लमहों को एक गुनाह की तरह नहीं, एक मीठी याद बना कर अपने दिल में बसा लिया.

कुछ दिनों बाद उसे एक पब्लिकेशन में नौकरी मिल गई. वह दिन भर किताबों में डूबी रहती, ताकि नील उसे याद न आए. उम्मीद का एक दीया उस ने अपने मन के आंगन में जलाए रखा कि कभी न कभी उस का नील लौट कर जरूर आएगा. उस का अवचेतन मन शायद आज भी नील का इंतजार कर रहा था. इसी कारण उस ने घर भी नहीं बदला. हर चीज वैसी ही थी, जैसी नील छोड़ कर गया था.

नीरजा का अतीत एक खुली किताब की तरह राशी के सामने आ चुका था. वह हतप्रभ बैठी थी. रात 10 बजे राशी की ट्रेन थी. नीरजा के अतीत पर कोई टिप्पणी किए बगैर राशी ने उस से विदा ली. सफर के दौरान राशी की आंखों में नींद नहीं थी. वह नीरजा की उलझी जिंदगी के बारे में सोचती रही.

अगले दिन शाम को इंदर अपनी मां व बहन के साथ आया. राशी ने ज्योंही बैठक में प्रवेश किया, सब से पहले लड़के की मां को शिष्टता के साथ नमस्ते किया. फिर वह लड़के की तरफ पलटी और अपना हाथ बढ़ा कर परिचय दिया, ‘‘हेलो, आई एम डा. राशी.’’

इंदर ने भी खड़े हो कर हाथ मिलाया, ‘‘हैलो, आई एम इंद्रनील.’’

कुछ औपचारिक बातों के बाद राशी ने इंदर की मां से कहा, ‘‘आंटी, आप बुरा न मानें तो मैं इंद्रनील से कुछ बातें करना चाहती हूं.’’

‘‘हांहां क्यों नहीं,’’ इंद्रनील की मां अचकचा कर बोलीं.

वे दोनों ऊपर टैरेस पर चले गए. कुछ चुप्पी के बाद राशी बोली, ‘‘मुंबई से पहले तुम कहां थे?’’

अचानक इस प्रश्न से इंद्रनील चौंक उठा, ‘‘दिल्ली.’’

‘‘इंद्रनील, मैं तुम्हें नील बुला सकती हूं? नीरजा भी तो इसी नाम से बुलाती थी तुम्हें,’’ राशी ने कुछ तल्ख आवाज में कहा.

इंद्रनील के चेहरे के भाव अचानक बदल गए. वह चौंक गया था, मानो उस की चोरी पकड़ी गई हो.

राशी आगे बोली, ‘‘तुम ने नीरजा के साथ ऐसा क्यों किया? अच्छा हुआ कि तुम से शादी होने से पहले मेरी मुलाकात नीरजा से हो गई. तुम्हारी फोटो नीरजा के साथ न देखती तो पता ही न चलता कि तुम ही नीरजा के नील हो.’’

नील के पास कोई जवाब न था. वह हैरानी से राशी को देखे जा रहा था, जिस ने उस के जख्मों को कुरेद कर फिर हरा कर दिया था, ‘‘लेकिन तुम नीरजा को कैसे…’’ आधी बात नील के हलक में ही फंसी रह गई.

‘‘क्योंकि नीरजा मेरे बचपन की सहेली है,’’ राशी ने कहा.

नील मानो आकाश से नीचे गिरा हो, ‘‘लेकिन वह तो सिर्फ एक दोस्त की तरह…’’ उस की बात बीच में काट कर राशी बोली, ‘‘अगर तुम एक दोस्त के साथ ऐसा कर सकते हो, तो मैं तो तुम्हारी कुछ भी नहीं. नील, तुम्हें नीरजा का जरा भी खयाल नहीं आया. कहीं तुम्हारी यह मानसिकता तो नहीं कि नीरजा ने शादी से पहले तुम से संबंध बनाए. अगर तुम्हारी यह सोच है, तो तुम ने मुझ से शादी का प्रस्ताव मान कर मुझे धोखा देने की कैसे सोची. जो अनैतिक संबंध तुम्हारे लिए सही है, वह नीरजा के लिए गलत कैसे हो सकता है. तुम नीरजा को भुला कर किसी और से शादी के लिए कैसे राजी हुए? नीरजा आज तक तुम्हारा इंतजार कर रही है.’’

कुछ चुप्पी के बाद नील बोला, ‘‘मैं ने कई बार सोचा कि नीरजा के पास लौट जाऊं, लेकिन मेरे कदम आगे न बढ़ सके. उस के पास वापस जाने के सारे दरवाजे मैं ने खुद ही बंद कर दिए थे.’’

‘‘नीरजा आज भी तुम्हारा शिद्दत से इंतजार कर रही है. जानते हो नील, जब मुझे तुम्हारे और नीरजा के संबंध का पता चला, तो मुझे बहुत गुस्सा आया था. फिर सोचा कि मैं तो तुम्हारी जिंदगी में बहुत बाद में आई हूं, पर नीरजा और तुम्हारा रिश्ता कच्चे धागों की डोर से बहुत पहले ही बुन चुका था. अभी देर नहीं हुई है नील, नीरजा के पास वापस चले जाओ. मैं जानती हूं कि तुम्हारा दिल भी यही चाहता है. जिस रिश्ते को सालों पहले तुम तोड़ आए थे, उसे जोड़ने की पहल तो तुम्हें ही करनी होगी,’’ राशी ने नील को समझाते हुए कहा.

नील कुछ कहता इस से पहले ही राशी ने अपने मोबाइल से नीरजा का नंबर मिलाया. ‘‘हैलो राशी,’’ नीरजा बोली, तो जवाब में नील की भीगी सी आवाज आई, ‘‘कैसी हो नीरजा?’’

नील की आवाज सुन कर नीरजा चौंक गई.

‘‘नीरजा, क्या तुम मुझे कभी माफ कर पाओगी?’’ नील ने गुजारिश की तो नीरजा की रुलाई फूट पड़ी. उस की सिसकियों में नील के प्रति प्यार, उलाहना, गिलेशिकवे, दुख, अवसाद सब कुछ था.

‘‘बस, अब और नहीं नीरजा, मुझे माफ कर दो. मैं कल ही तुम्हें लेने आ रहा हूं. रोने से मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा. मैं चाहता हूं तुम्हारा सारा गम आंसू बन कर बह जाए, क्योंकि उन का सामना शायद मैं नहीं कर पाऊंगा.’’

फोन पर बात खत्म हुई तो नील की आंखें नम थीं. वह राशी के दोनों हाथ पकड़ कर कृतज्ञता से बोला, ‘‘थैंक्यू राशी, मुझे इस बात का एहसास कराने के लिए कि मैं क्या चाहता हूं, वरना नीरजा के बगैर मैं कैसे अपना जीवन निर्वाह करता.’’

नील व नीरजा की जिंदगियों ने अंधेरी गलियों को पार कर उजाले की ओर कदम रख दिया था.

Hindi Love Story : हाशिया – क्या महेश के प्रेम को नीता समझ पाई ?

Hindi Love Story :  घंटी की आवाज सुन कर मनीषा ने दरवाजा खोला. सामने महेश और नीता को देख कर हैरान रह गई. मुंह से निकल पड़ा, ‘‘अरे, तुम लोग कब आए, कहां रुके हो. बहुत दिनों से कोई समाचार भी नहीं मिला.’’

‘‘दीदी, काफी दिनों से आप से मिली नहीं थी, इन्हें दिल्ली एक सेमिनार में जाना है, आप से मिलने की चाह लिए मैं भी इन के साथ चली आई. ब्रेक जर्नी की है. शाम को 6 बजे ट्रेन पकड़नी है. हालांकि समय कम है पर मिलने की इच्छा तो पूरी हो ही गई,’’ नीता ने मनीषा के पैर छूते हुए कहा.

‘‘अच्छा किया. सच में काफी दिनों से मिले नहीं थे पर कुछ और समय ले कर आते तो और भी अच्छा लगता,’’ मनीषा ने उसे गले लगाते हुए कहा और मन ही मन उस का अपने लिए प्रेम देख कर गद्गद हो उठी.

आवाज सुन कर सुरेंद्र भी बाहर निकल आए. पहचानते ही गर्मजोशी से स्वागत करते हुए बातों में मशगूल हो गए.

नीता तो जब तक रही उस के ही आगेपीछे घूमती रही, मानो उस की छोटी बहन हो. बारबार अपने सुखी जीवन के लिए उसे धन्यवाद देती हुई अनेक बार की तरह ही उस ने अब भी उस से यही कहा था, ‘‘इंसान अपना भविष्य खुद बनाताबिगाड़ता है, बाकी लोग तो सिर्फ जरिया ही होते हैं. यह तुम्हारा बड़प्पन है कि तुम अभी तक उस समय को नहीं भूली हो.’’

‘‘दीदी, बड़प्पन मेरा नहीं आप का है. आप उन लोगों में से हैं जो किसी के लिए बहुत कुछ करने के बाद भूल जाने में विश्वास रखते हैं. असल में आप ही थीं जिन्होंने मेरी टूटी नैया को पार लगाने में मदद की थी, जिन्होंने मुझे जीने की नई राह दिखाई. मेरी जिंदगी को नया आयाम दिया. वरना पता नहीं आज मैं कहां होती…’’

जातेजाते भी महेश और नीता बारबार यही कहते रहे, ‘‘कभी कोई आवश्यकता पड़े तो हमें जरूर याद कीजिएगा.’’ उन्हें इस बात का बहुत अफसोस था कि सुरेंद्र की बीमारी की सूचना उन्हें नहीं दी गई. वैसे सुनील और प्रिया के विवाह में वे आए थे और एक घर के सदस्य की तरह नीता ने पूरी जिम्मेदारी संभाल ली थी.

उन के जाने के बाद सुरेंद्र तो इंटरनैट खोल कर बैठ गए. शाम को उन की यही दिनचर्या बन गई थी. देशविदेश की खबरों को इंटरनैट के जरिए जानना या विदेश में बसे पुत्र सुनील और पुत्री प्रिया से चैटिंग करना. अगर वह भी नहीं तो कंप्यूटर पर ही घंटों बैठे चैस खेलना. उन्हें सासबहू वाले सीरियल्स में बिलकुल दिलचस्पी नहीं थी.

मनीषा ने टीवी खोला पर उस में भी उस का मन नहीं लगा. टीवी बंद कर के पास पड़ी मैगजीन उठाई. वह भी उस की पढ़ी हुई थी. आंखें बंद कर के सोफे पर ही रिलैक्स होना चाहा पर वह भी संभव नहीं हो पाया. उस के मन में 22 साल पहले की घटनाएं चलचित्र की भांति मंडराने लगीं.

उस समय वे बलिया में थे. पड़ोस में एक एसडीओ महेश रहते थे जो अकसर उन के घर आते रहते थे लेकिन जब भी वह उन से विवाह के लिए कहती तो मुसकरा कर रह जाते.

एक दिन उस ने देखा कि एक बुजुर्ग व्यक्ति एक बच्चे को ले कर घूम रहे हैं. नौकर से पता चला कि वे साहब के पिताजी हैं जो उन की पत्नी और बच्चे को ले कर आए हैं.

सुन कर अजीब लगा. महेश अकसर उन के घर आते थे लेकिन उन्होंने कभी उन से अपनी पत्नी और बच्चे का जिक्र ही नहीं किया. यहां तक कि उन्हें कुंआरा समझ कर जबजब भी उस ने उन से विवाह की बात की तो वे कुछ कहने के बजाय सिर्फ मुसकरा कर रह गए. यह तो उसे पता था कि वे गांव के हैं, हो सकता है बचपन में विवाह हो गया हो लेकिन अगर वे विवाहित थे तो वे बताना क्यों नहीं चाह रहे थे.

दूसरों के निजी मामलों में दखलंदाजी करना उस के स्वभाव में नहीं था. उन्होंने नहीं बताया तो हो सकता है उन की कोई मजबूरी रही हो, सोच कर दिमाग में चल रही उथलपुथल पर रोक लगाई.

जब तक महेश के पिताजी रहे तब तक तो सब ठीक चलता रहा पर उन के जाते ही दिलों में बंद चिनगारी भड़कने लगी. घरों के बीच की दीवार एक होने के कारण कभीकभी उन के असंतोष की आग का भभका हमारे घर भी आ जाता था. मन करता कि जा कर उन से बात करूंगी. आखिर इस असंतोष का कारण क्या है. हमारे भी बच्चे हैं, उन के झगड़े का असर हमारे ऊपर भी पड़ रहा है पर दूसरों के मामले में दखलंदाजी न करने के अपने स्वभाव के कारण चुप ही रही.

एक दिन महेश के औफिस जाने के बाद उन की पत्नी हमारे घर आई और अपना परिचय देती हुई बोली, ‘दीदी, आप हमें पहचानते नहीं हो, हमारा नाम नीता है. हम आप के पड़ोसी हैं. आप के अलावा हम किसी और को नहीं जानते हैं. इसीलिए आप के पास आए हैं. हम बहुत दुखी हैं, समझ में नहीं आ रहा क्या करब.’

‘क्यों, क्या बात है. हम से जितनी मदद होगी, करेंगे,’ उसे दिलासा देते हुए मैं ने कहा.

‘यह कहत हैं कि हम तोय से तलाक ले लेव, लड़का को तू ले जाना चाह तो ले जाव. तेरे साथ हमारा निबाह नहीं हो सकत. हम दूसर ब्याह करन चाहत हैं,’ कहते हुए उस की आंखों से बड़ेबड़े आंसू बहने लगे थे.

‘ऐसे कैसे दूसरा विवाह कर लेंगे. सरकारी नौकरी में एक पत्नी के होते हुए दूसरा विवाह करना संभव ही नहीं है. फिर तलाक लेना इतना आसान थोड़े ही है कि मुंह से निकला नहीं और तलाक मिल गया,’ पानी का गिलास पकड़ा कर उसे समझते हुए मैं ने कहा.

अनजान शहर में किसी के मीठे बोल सुन कर उस का रोना रुक गया. मेरे आग्रह करने पर उस ने पानी पिया. उस के सहज होने पर मैं ने उस से फिर पूछा, ‘लेकिन वे तलाक क्यों लेना चाहते हैं.’

मेरा सवाल सुन कर वह बोली, ‘कहत हैं, तू पढ़ीलिखी नहीं है, हमारी सोसाइटी के लायक नहीं है. दीदी, आज हम उन्हें अच्छा नाही लागत हैं लेकिन जब हम इन के मायबाप के साथ खेतन में काम करत रहे, गांव की गृहस्थी को संभालते रहे तब इन्हें यह सब नाहीं सूझत रहा. आज जब डिप्टी बन गए हैं तब कह रहे हैं कि हम इन के लायक नाहीं. 10 बरस के थे जब हमारा इन से ब्याह हुआ था. गांव के एक स्कूल से ही 4 जमात तक पढ़े हैं. यह तो हमें गांव से ला ही नहीं रहे थे, वह तो इन की आनाकानी देख कर एक दिन ससुरजी खुद ही हमें यहां छोड़ गए. लेकिन यह तो हम से ढंग से बात भी नहीं करत.’ कहते हुए फिर उस की आंखों से आंसू बहने लगे थे.

माथे पर बड़ी सी गोल बिंदी, गले में चांदी की मोटी हंसुली, बालों में रचरच कर लगाया तेल, मोटी गुंथी चोटी में चटक लाल रंग का रिबन तथा वैसी ही चटक रंग की साड़ी. गांव वाले ढीलेढीले ब्लाउज में वह ठेठ गंवार तो लग रही थी लेकिन सांवले रंग में भी एक कशिश थी. बड़ीबड़ी आंखें अनायास ही किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने में समर्थ थीं. इस के अलावा गठीला बदन, ढीलेढाले ब्लाउज से झंकता यौवन किसी को मदहोश करने के लिए काफी था. अगर वह अपने पहननेओढ़ने के ढंग तथा बातचीत करने के तरीके में थोड़ा सुधार ले आए तो निश्चय ही कायाकल्प हो सकती थी.

यह सोच कर मैं ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, ‘अगर तुम उन के दिल में अपनी जगह बनाना चाहती हो तो तुम्हें अपनी पढ़ाई फिर से शुरू करनी होगी और अपने पहननेओढ़ने तथा बातचीत के लहजे में भी परिवर्तन लाना होगा.’

‘दीदी, आप जैसा कहेंगी हम वैसा करने को तैयार हैं. बस, हमारी जिंदगी संवर जाए,’ उस ने मेरे पैर छूते हुए कहा.

‘अरे, यह क्या कर रही हो. बड़ी हूं इसलिए बस, इतना चाहूंगी कि तुम्हारा जीवन सुखी रहे. मैं तुम्हें सहयोग तो दे सकती हूं पर कोशिश तुम्हें खुद ही करनी होगी. पहले तो यह कि वे चाहे कितना भी गुस्सा हों तुम चुप रहो. वे एक बच्चे के पिता हैं. वे खुद भी अपने बच्चे को अपने से दूर नहीं करना चाहेंगे. इसलिए अगर तुम अपनेआप में परिवर्तन ला पाओ तो कोई कारण नहीं कि वे तुम्हें स्वीकार न करें.’

‘आप ठीक कहत हैं, दीदी. वह अनूप को बेहद चाहत हैं. उन्होंने उस का एक अच्छे स्कूल में नाम भी लिखा दिया है. कल से वह स्कूल भी जाने लगा है. तभी आज हम समय निकाल कर आप के पास आए हैं.’

‘तुम्हें अक्षरज्ञान तो है ही, अब कुछ किताबें मैं तुम्हें दे रही हूं, उन्हें तुम पढ़ो. अगर कुछ समझ में न आए तो इस पैंसिल से वहां निशान बना देना. मैं समझ दूंगी, सुबह 11 से 1 बजे तक खाली रहती हूं. कल आ जाना,’ कुछ पारिवारिक पत्रिकाएं पकड़ाते हुए मैं ने नीता से कहा.

‘दीदी, अब हम चलें. अनूप स्कूल से आने वाला होव’ कहते हुए उस के चेहरे पर संतोष की छाया थी.

एक बार फिर उस ने मेरे पैर छू लिए थे. मेरे प्यारभरे वचन सुन कर वह काफी व्यवस्थित हो गई थी पर फिर भी मन में भविष्य के प्रति अनिश्चितता थी. वैसे भी उस के चेहरे पर छिपी व्यथा ने मेरा मन कसैला कर दिया. पहली मुलाकात में महेश हमें काफी भले, हाजिरजवाब और मिलनसार लगे थे पर पत्नी के साथ ऐसा बुरा व्यवहार, यहां तक कि दूसरे विवाह में कोई बाधा उत्पन्न न हो इसलिए अपने पुत्र से भी नजात पाना चाहते हैं. कैसे इंसान हैं वे. सच है, दुलहन वही जो पिया मन भाए पर विवाह कोई खेल तो नहीं. फिर इस में इस मासूम का क्या दोष. अपने छोटे मासूम बच्चे के साथ अकेले वह अपनी जिंदगी कैसे गुजारेगी. आखिर, एक पुरुष यह क्यों नहीं सोच पाता.

कहीं उन का किसी और के साथ चक्कर तो नहीं है, एक आशंका मेरे मन में उमड़ी. नहींनहीं, महेश ऐसे नहीं हो सकते. अगर ऐसा होता तो अनूप का दाखिला यहां नहीं करवाते. शायद अपनी अनपढ़, गंवार बीवी को देख कर वे हीनभावना के शिकार हो गए हैं और इस से उपजी कुंठा उन से वह सब कहलवा देती है जो शायद आमतौर से वे न कहते. लेकिन अगर ऐसा है तो वे खुद कुछ कोशिश कर उस में परिवर्तन ला सकते हैं, उसे पढ़ा सकते हैं. कई अनुत्तरित सवाल लिए मैं किचन में चली गई क्योंकि बच्चों का स्कूल से आने का समय हो रहा था.

दूसरे दिन नीता आई तो काफी उत्साहित थी. उस ने एक कहानी पढ़ी थी. हालांकि वह उसे पूरी तरह समझ नहीं पाई थी पर उस के लिए इतना ही काफी था कि उस ने पढ़ने का प्रयत्न किया. कुछ शब्द या भाव जो वह समझ नहीं पाई थी वहां उस ने मेरे कहे मुताबिक पैंसिल से निशान बना दिए थे. उन्हें मैं ने उसे समझया.

उस के सीखने का उत्साह देख मैं हैरान थी. कुछ ही दिनों में बातचीत में परिवर्तन स्पष्ट नजर आने लगा था. थोड़ा आत्मविश्वास भी उस में झलकने लगा था.

एक दिन उस को साथ ले कर मैं ब्यूटीपार्लर गई. फिर कुछ साडि़यां खरीदवा कर ब्लाउज सिलने दे आई. कुछ आर्टीफिशियल ज्वैलरी भी खरीदवाई. मेकअप का सामान खरीदवाने के साथ उन्हें उपयोग करना बताया. साड़ी बांधने का तरीका बताया. जूड़ा बांधने का तरीका बताते हुए तेल कम लगाने का सुझव दिया. खुशी तो इस बात की थी कि वह मेरे सारे सुझवों को ध्यान से सुनती और उन पर अमल करती. वैसे भी अगर शिष्य को सीखने की इच्छा होती है तो गुरु को भी उसे सिखाने में आनंद आता है.

एक दिन वह आई तो बेहद खुश थी. कारण पूछा तो बोली, ‘दीदी, कल हम आप की खरीदवाई साड़ी पहन कर इन का इंतजार कर रहे थे. अंदर घुसे तो पहली बार ये हमें देखते ही रह गए, फिर पूछा कि इतना परिवर्तन तुम्हारे अंदर कैसे आया. जब आप का नाम बताया तो गद्गद हो उठे. कल इन्होंने हमें प्यार भी किया,’ कहतेकहते वह शरमा उठी थी.

नैननक्श तो कंटीले थे ही, हलके मेकअप तथा सलीके से पहने कपड़ों में उस के व्यक्तित्व में निखार आता जा रहा था. महेश भी उस में आते परिवर्तन से खुश थे. अब वह हर रोज शाम को ढंग से सजसंवर कर उन का इंतजार करती. यही कारण था कि जहां पहले वे उस की ओर ध्यान ही नहीं देते थे, अब उन्होंने उस के लिए अनेक साडि़यां खरीदवा दी थीं. एक बार महेश स्वयं मेरे पास आ कर कृतज्ञता जाहिर करते हुए, मुझे धन्यवाद देते हुए बोले थे, ‘दीदी, मैं आप का एहसान जिंदगीभर नहीं भूलूंगा, मैं तो सोच भी नहीं सकता था कि किसी इंसान में इतना परिवर्तन आ सकता है.’

‘महेश भाई, दरअसल मुझ से ज्यादा धन्यवाद की पात्र नीता है. उस ने यह सब तुम्हें पाने के लिए किया. वह तुम्हें बहुत चाहती है.’

इस के बाद दोनों के बीच की दूरी घटती गई. कभीकभी वे घूमने भी जाने लगे थे. मैं यह सब देख कर बहुत खुश थी.

एक दिन अपने पुत्र अनूप की अंगरेजी की पुस्तक ला कर वह बोली, ‘दीदी, इन से पूछने में शरम आती है. अगर आप ही थोड़ी देर पढ़ा दिया करें.’

मेरे ‘हां’ कहने पर वह प्रसन्नता से पागल हो उठी, बोली, ‘दीदी, आप ने मेरे जीवन में खुशियां ही खुशियां बिखेर दी हैं, न जाने आप की गुरुदक्षिणा कैसे चुका पाऊंगी.’

‘अरी पगली, अगर सचमुच मुझे अपना गुरु मानती है तो अपनी पढ़ाई पर ध्यान लगा. एक गुरु के लिए यही काफी है कि उस का शिष्य जीवन में सफल रहे.’

सचमुच 6 महीने के अंदर ही उस ने सामान्य बोलचाल के शब्द लिखनापढ़ना सीख लिए थे. कहींकहीं अंगरेजी के शब्दों तथा वाक्यों का प्रयोग भी करने लगी थी. वैसे भी भाषा इस्तेमाल करने से ही सजतीसंवरती और निखरती है.

तभी सुरेंद्र का ट्रांसफर हो गया. पत्रों के माध्यम से संपर्क सदा बना रहा. वह बराबर लिखती रहती थी. अनूप के विवाह में हफ्तेभर पहले आने का आग्रह उस का सदा रहा था. बेटी रिया का कन्यादान भी वह मेरे हाथों से कराना चाहती थी. नीता के पत्रों में छिपी भावनाएं मुझे भी पत्र का उत्तर देने के लिए प्रेरित करती रही थीं. यही कारण था कि पिछले 10 वर्षों से न मिल पाने पर भी उस के परिवार की एकएक बात मुझे पता थी. आज के युग में लोग अपनों से भी इतनी आत्मीयता, विश्वास की कल्पना नहीं कर सकते, फिर हम तो पराए थे.

‘‘सुनो, कहां हो. सुनील का मैसेज आया है,’’ सुरेंद्र ने मनीषा को पुकारते हुए कहा तो उस की तंद्रा टूटी.

‘‘सुनील का मैसेज, क्या लिखा है. सब ठीक तो है न.’’ मनीषा ने अंदर जाते हुए पूछा. पिछले 15 दिनों से उस का कोई समाचार न आने के कारण वे चिंतित थे. 1-2 बार फोन किया पर किसी ने भी नहीं उठाया, आंसरिंग मशीन पर मैसेज छोड़ने के बाद भी हफ्तेभर से किसी ने कौंटैक्ट करने की कोशिश नहीं की.

‘‘लिखा है, हम कल ही स्विट्जरलैंड से आए हैं. प्रोग्राम अचानक बना, इसलिए सूचित नहीं कर पाए. इस बार भी शायद हमारा इंडिया आना न हो पाए. बारबार छुट्टी नहीं मिल पाएगी. अगर आप लोग आना चाहें तो टिकट भेज दिए जाएं.’’

इस के बाद उस से कुछ भी सुना नहीं गया. ‘सब बहाना है बाहर घूमने के लिए. छुट्टी तो मिल सकती है पर मातापिता से मिलने के लिए नहीं. दरअसल वे यहां आना ही नहीं चाहते हैं. मांबाप के प्यार की उन के लिए कोई कीमत ही नहीं रही है. पिछले 4 वर्षों से कोई न कोई बहाना बना कर आना टाल रहे हैं. उस पर भी एहसान दिखा रहे हैं. अगर आना चाहें तो टिकट भिजवा दूं, एक बार तो जा कर देख ही आए हैं,’ बड़बड़ा उठी थी मनीषा.

पर जल्दी ही उस ने अपने नकारात्मक विचारों को झटका. उस को यह क्या होता जा रहा है. वह पहले तो कभी ऐसी न थी. बच्चों के अवगुणों में गुण ढूंढ़ना ही तो बड़प्पन है. हो सकता है कि सच में उसे छुट्टी न मिल रही हो, वह स्वयं नहीं आ पा रहा तो उन्हें बुला तो रहा है, बात तो एक ही है, मिलजुल कर रहना. अब वहां का जीवन ही इतना व्यस्त है कि लोगों के पास अपने लिए ही समय नहीं है तो उस में उन का क्या दोष.

फिर भी उसे न जाने क्यों लगने लगा था कि सच में कभीकभी कुछ लोग अपने न होते हुए भी बेहद अपने बन जाते हैं और कुछ लोग अपनी व्यस्तता की आड़ में अपनों को ही हाशिए पर खिसका देते हैं, खिसकाने का प्रयास करते हैं. उस ने निश्चय किया, ‘उस ने कभी किसी की हाशिए पर खिसकती जिंदगी को नया आयाम दिया था. चाहे कुछ भी हो जाए वह अपनी जिंदगी को हाशिए पर खिसकने नहीं देगी.’ इस विचार ने उसे तनावमुक्त कर दिया. माथे पर लटक आई लट को झटका, पास पड़ा रिमोट उठाया और टीवी औन कर दिया.

Hindi Love Stories : सम्मोहन – विश्वास और प्रेम की एक खूबसूरत कहानी

Hindi Love Stories :  : “रुचि, आज शाम चलो न कहीं घूमते हैं. विम्मी भी गई है. तुम्हारा पति भी एक हफ़्ते के लिए बाहर गया है. क्या कहती हो, बोलो ?” व्योम ने अपनी दोस्त से कहा.

कल सैमिनार है. “शाम को बता पाऊंगी,”

“ठीक है, मन करे तो चलना. विम्मी  घर पर नहीं है, मेरा जाने का मन नहीं करता…

“ओके बाबा, देखती हूं” कह कर रुचि ने फ़ोन काट दिया.

दिन का मौसम उमड़घुमड़ कर सिसकियां ले रहा था, कभी हवा का झोंका पत्तियों की आपस में सरसराहट,  कभी शांत सी घुमस जो बिसूरती सी जान पड़ती थी. व्योम को आज घर जाने का मन नहीं था, पत्नी विम्मी डिलीवरी के लिए मायके गई हुई थी और दोस्त रोहन  विदेश गया हुआ था, उस की पत्नी थी रुचि.

रुचि, रुचि का पति रोहन, व्योम और व्योम की पत्नी  विम्मी चारों कालेज समय से गहरे दोस्त थे. पिकनिक हो पार्टी या कोई स्कूल का फंक्शन, यह चौकड़ी मशहूर थी. एकदूसरे के बिना ये चारों ही अधूरे थे. रोज़ ही मिलतेजुलते. रुचि कब रोहन के नज़दीक आ गई, खुद इन दोनों को भी पता नहीं चला. दोनों के मातापिता आधुनिक विचारों के थे, इसलिए शादी में कोई दिक़्क़त नहीं हुई.

रुचि का पति विदेश गया था, उसे  रोहन की याद आ रही थी. आ रहा था गुजरा खूबसूरत लमहा, वो शादी की तैयारी, उस की शादी के बाद फिर व्योम व विम्मी का एक हो जाना. यादों ने दस्तक दी तो एक मुसकान होंठों पर आ गई. यादें जाने कब कहां गिरफ़्त में ले लें.

कालेज से लौट ख़ाना ले कर  बैठी तो यादों के पन्ने पलटने लगे,

रुचि, रोहन  शादी की तैयारी व अन्य व्यस्तताओं में व्यस्त थे. दोनों व्योम और विम्मी से नहीं मिल  पा रहे थे. नए जीवन की सुनहरी भोर में मगन, तानाबाना बुन रहे  थे. न वक्त की खबर न औरों की. जीवन में ऐसे सुनहरे पल होते भी हैं भरपूर जीने के लिए.

विम्मी ने रुचि को फ़ोन किया, ‘रुचि क्या कर रही है?’

‘अरे यार विम्मी, क्या बताऊं, तेरे साथ जो लहंगा लिया था, सिल कर आया, तो टाइट है. वही नाप लेने टेलर आया है. मेरी कजन भी आई है, कह रही है, उसे भी कपड़े दिलवा दूं. वह बाहर से आई है. तू ऐसा कर, व्योम के साथ चली जा.’

‘ओके, गुड लक,’ कह कर विम्मी ने फ़ोन काट दिया.

“व्योम, चल कहीं डिनर करने  चलते हैं. रुचि तो अपनी शादी की तैयारी में व्यस्त है,” विम्मी ने व्योम से कहा.

व्योम भी रोहन के शादी की तैयारी में व्यस्त होने से एकाकी महसूस कर रहा था. उस ने उत्साहित होते हुए कहा, ‘पहले थिएटर चलते हैं, एक नया नाटक बहुत अच्छा  लगा है, फिर डिनर करेंगे.’

व्योम विम्मी अब ज़्यादा मिलने लगे. पहले मिलते थे तो चारों ही. लेकिन अब रोहन और रुचि अपनी शादी की तैयारी में व्यस्त थे, इसलिए व्योम और विम्मी अकसर मिलने लगे, कभी पिक्चर, कभी शौपिंग, कभी थिएटर. कई बार ऐसा मिलना एकदूसरे के क़रीब ले आता है. व्योम विम्मी भी बह गए समय की खूबसूरत धारा में जिस के  प्रवाह का रुख़ एक ही था. नज़दीकियां दिलों में हलचल मचा गईं. परिचय ने प्रगाढ़ता का आंचल ओढ़ लिया.

एकदूसरे की आंखों में खुद के ख़्वाब पढ़ने लगे. साथ बैठे सांझ तले, तो डूबते सूरज की लालिमा के सौंदर्य को निहारते एकदूसरे के हो बैठे.

‘यार रुचि,  तुझे कुछ बताना था. विम्मी अपनी सब से प्रिय सहेली रुचि के साथ प्यार के खूबसूरत एहसास को बांटना चाहती थी.

“बोल, बोल, क्या तीर मारा, बता जल्दी, कहीं यह वह तो नहीं, ज़रा सी आहट होती है तो दिल…’

रुचि ने फ़ोन पर ही प्यारी सी धुन विम्मी को सुनाई.

विम्मी  बोली, ‘तू तो हमेशा ही  तूफ़ान बनी रहती है. तो सुन, तू हमेशा कहती थी न, मैं और व्योम भी लवबर्ड बन जाएं, तो चल, हम ने भी अपनी ख़्वाबों की दुनिया में रंग भर लिया. तेरे साथसाथ हम भी फेरे कर लेंगे.’

‘नोनो, पहले मैं शादी करूंगी, फिर तुम और व्योम करोगे, जिस से एकदूसरे की शादी को एंजौय तो कर सकें. अरे, न तेरे कोई बहन न मेरे, साली बन कर जूता छिपाई कौन करेगा?’

‘ओके, चल यह भी ठीक है.’

रोहन रुचि भी ख़ुशियों की  नई डगर में खिलते फूलों की ख़ुशबुओं संग तैरने लगे. अब प्यार ने यथार्थ का रुख़ किया. कुछ दिनों बाद विम्मी  व्योम ने भी गृहस्थी के नवजीवन में प्रवेश किया. इन चारों दोस्तों ने एक ही शहर मद्रास में रहने का निर्णय किया. रोहन आईआईटी में प्रोफैसर  और व्योम  मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी करता था.

अब शादी हुई तो सपनीली दुनिया में ज़िम्मेदारियों ने थपकी देनी शुरू कर दी.

अब रोहन को अपने देश से बाहर जा कर अमेरिका के कालेज  में लैक्चर देने का अवसर मिला, जिस की उसे कब से तमन्ना थी. रुचि एक कालेज में पढ़ाती थी, साथ ही, पीएचडी भी कर रही थी. विम्मी और व्योम के घर नन्हे मेहमान ने आने की दस्तक दी. प्रैग्नैंसी की कुछ परेशानियों की वजह से विम्मी को मायके आना पड़ा.

इन का आपस में विश्वास बहुत गहरा था. चारों मित्रता के मजबूत व पवित्र धागे में बंधे थे.

मत जाओ रोहन, मैं अकेली कैसे रहूंगी, 3 वर्षों का लंबा समय, यह कहना चाहती थी लेकिन नहीं कह पाई. मायूसी ने चेहरे पर पांव पसार दिया. रोहन को विदेश जाना था, रुचि परेशान हो गई, कैसे रहेगी रोहन के बिना. मन दुविधा में था. ऐसे मौक़े कैरियर को ऊंचाइयों पर ले जाते हैं, तो भला रोहन के पांव की बेड़ी कैसे बनती.

रोहन ने रुचि का उतरा चेहरा देखा तो समझ गया कि वह परेशान है, बोला, “अरे 3 साल का समय होता ही कितना है, चुटकियों में ही निकल जाएगा. और फिर, विम्मी, व्योम भी तो साथ हैं. कोई दिक़्क़त हो तो उन्हें बुला लेना. और डियर, अब तुम तो इस घर की रानी हो, रानियां तो बहादुर होती हैं.”

रोहन ने रुचि का मूड हलका करने के उद्देश्य से मज़ाक़ किया. वह जानता था रुचि को थोड़ी दिक़्क़त होगी लेकिन उसे विम्मी, व्योम पर पूरा भरोसा था. जीवन की डगर में कभी ऐसी उलझनें भी आती हैं. आगे की ओर बढ़ते कदम जाने क्यों मुड़ कर  रुकते  हैं.

भरेमन से रुचि ने रोहन को अमेरिकी यूनिवर्सिटी में लैक्चररशिप के लिए भेज दिया. मन तो रोहन का भी टूट रहा था लेकिन भविष्य सामने खड़ा था. एयरपोर्ट से लौट कर आई, तो घर का ख़ालीपन और भी स्याह हो कर उसे डराने लगा. वैसे भी, उसे शुरू से अकेले अच्छा नहीं लगता था. फिर आज तो उस का प्यार, जो अब जीवनसाथी है, लंबे अंतराल के लिए जा रहा है.

एक तरफ़ उस का मन यह भी कह रहा था जीवन में बारबार अवसर नहीं मिलते, उस की वजह से कहीं रोहन की तरक़्क़ी में रुकावट न आए. रुचि मन को समझाने लगी. वह यह भी जानती थी कि अगर बहुत ज़्यादा दबाव डालती तो रोहन रुक जाता इसलिए उस ने एक बार के बाद  मना नहीं किया. लेकिन ख़ुद को संभालने की कोशिश में नाकाम रही.

मन का क्या करे, मातापिता की अकेली संतान. अब तो मम्मीपापा भी रहे नहीं. हिचकियां ले कर रो पड़ी. शाम से ही घना कुहरा, बादलों का साया था जैसे मौसम भी उस से आज आंखमिचौली खेल रहा हो. मन की धरती गीली हो धंसने लगी. बिजली कड़की तो रुचि ने भाग कर खिड़कियां बंद कर दीं. खिड़की से दिखते बादलों से बनने वाली अजीब आकृतियां उसे डराने लगी थीं.

रोते हुए बिस्तर में घुस उस ने चादर सिर तक खींच ली. अभी तो रोहन गया है, पहाड़ जैसे 3 साल का समय कैसे काटेगी?

तभी दरवाज़े की घंटी बजी. उस ने डर कर दरवाज़ा नहीं खोला. फिर फ़ोन बज उठा. उस ने चौंक कर फ़ोन देखा, तैरता हुआ व्योम का नाम उस के मन में स्फूर्ति देने लगा.

“क्या बात है, तुम दरवाज़ा क्यों नहीं खोल रही हो?”

“अच्छा, घंटी तुम ने बजाई थी.”

रुचि ने दौड़ कर दरवाज़ा खोला और व्योम से लिपट गई . घबराहट में पसीने से तर रुचि को व्योम ने कंधे से पकड़ सोफ़े पर बिठाया, पानी पीने को दिया.

रुचि थोड़ा नौर्मल हुई तो व्योम बोला, ”अरे, तुम इतनी परेशान क्यों  हो? मैं और विम्मी हैं. थोड़े समय की ही तो बात है, बच्चा होने के बाद तो विम्मी भी मायके से आ जाएगी. कोई दिक़्क़त हो, तो मुझे फ़ोन करना, मैं तुरंत आ जाऊंगा. मैं अब चलता हूं, थोड़ा काम है औफिस  का, सोचा, तुम अकेली होगी तो हालचाल लेने आया था. वैसे भी रुचि, तेरा ध्यान नहीं रखा तो रोहन मुझे मार डालेगा,” व्योम ने मज़ाक़ करते हुए कहा.

“नहीं, प्लीज़ व्योम, आज मत जाओ. मुझे अकेले में डर लगता है.”

अभी व्योम रुचि से बात कर ही रहा था कि व्योम का फोन बजा.

”कहां हो व्योम?” विम्मी का फ़ोन था.

”तुम तो जानती हो, रोहन विदेश चला गया, मैं रुचि के पास आया हूं, वह अकेले डरती है न.”

“अच्छा किया, वहीं रुक जाओ. कुछ समय में रुचि को आदत हो जाएगी अकेले रहने की. बेबी होने के बाद तो मैं भी आ ही जाऊंगी.”

उस दिन व्योम को रुकना पड़ा.

समय अपनी चाल चलता रहा. लेकिन समय जैसे बीत नहीं रहा था रुचि के लिए.

विम्मी जबतब रुचि को फोन करती रहती थी. दिन तो रुचि का स्कूल में पढ़ाने में  निकल जाता था लेकिन शाम के बाद उसे डर लगता था. बाहर जाने का मौक़ा आसानी से कहां मिलता है, इसलिए उस ने रोहन को जाने दिया था. लेकिन बचपन से अपने अंदर बैठे डर से आज तक नहीं जीत पाई थी वह.

रोहन अकसर रुचि को समझाता, ‘हमारे डर का 80 प्रतिशत केवल काल्पनिक होता है. तुम अपने डर को समझो, तुम से कितना कहा था डाक्टर को दिखा दो लेकिन तुम मानी नहीं. अगर समय मिले तो व्योम या विम्मी के साथ चली जाना.’

व्योम को भी रोहन फोन करता, ‘देख, मेरी बीवी का ध्यान रखना वरना आ कर बहुत मारूंगा’ और कह कर दोनों दोस्त खिलखिला कर हंस देते.

एक दिन रुचि औफ़िस से आई, तो उस के बदन में बहुत तेज दर्द था. रात होते उसे तेज बुख़ार हो गया. व्योम को पता लगा, तुरंत पहुंच गया. रातभर  व्योम रुचि के सिर पर  ठंडे पानी की पट्टी रखता रहा.

जब बुख़ार हलका हुआ तो व्योम ने सोचा सामने सोफ़े पर ही लेट जाता हूं लेकिन बुख़ार में  रुचि ने उस का हाथ कस कर पकड़ रखा था. व्योम की  निगाह अचानक उस के चेहरे पर पड़ी. रुचि के चेहरे का भोलापन उस के अंदर समाने लगा. अचानक उस ने सिर झटका, कहीं कुछ उसे खींचने लगा था. नहीं, ऐसे कैसे सोच सकता है. उस की तो प्यारी सी बीवी है जिस के प्रति उस का कर्तव्य भी है. उस ने ह्रदयतल से प्यार  किया है. पर मन  भटकन के रास्ते के सारे पत्थर सपनों की आंधी से उड़ा देता है.

उस ने आहिस्ता से अपना हाथ छुड़ाया और सामने जा कर सोफ़े पर लेट गया. सुबह उस का सिर भारी था. रुचि की तबीयत भी अब ठीक थी. बुख़ार उतर चुका था.

मन में आई कोमल संवेदनाएं उसे मथने लगीं. दिल भी अजीब है. मन की कशिश इतनी मज़बूत होती है जिस के साए पैरों को अनगिनत रस्सियों से जकड़ लेते हैं. अपनी सोच में डूबे व्योम को अगले दिन  रुचि  के घर जाने में  झिझक महसूस होने लगी.

”व्योम, तुम आए नहीं, क्या हुआ?” रुचि ने शाम होते ही व्योम को फ़ोन मिला दिया.

व्योम ने जिस तरह देखभाल की थी, रुचि को बहुत अच्छा लगा था. उसे आज व्योम का बेसब्री से इंतज़ार था. लेकिन आज व्योम अपनी भावनाओं को समेटे बैठा रहा. क्या समझाता, दिल ने बग़ावत कर दी है. वह रुचि के पास नहीं गया. व्योम नहीं आया तो  रुचि इंतज़ार में बाहर बालकनी में बैठ गई. उस की उदासी बढ़ती जा रही थी. शाम धीरे से रात का आंचल ओढ़ने लगी, इतने दिनों से लगातार मिलने से अब रुचि को  भी मिलने की आदत होने लगी थी. अच्छा लगने लगा था. मिलती तो पहले भी थी पर उसे भी शायद कुछ नया फील हो रहा था जो खींच रहा था. शायद अकेलापन और सान्निध्य जीवन में कोमल भावनाओं के प्रस्फुटन का कारण बन गया था.

ज़रूरत में साथ आए, अब बिना ज़रूरत भी मिलने लगे. वैसे, पहले भी तो मिलते थे. लेकिन तब इस साथ का मतलब केवल दोस्ती था. लेकिन अब साथ का अर्थ बदल रहा था. रुचि और व्योम अनजाने ही खिंचे जा रहे थे. उन्हें नहीं पता था उन के दिलों में उठता ज्वार उन्हें किस दिशा ले जाएगा.

रुचि को  व्योम का मजबूरी में मिला साथ अब अच्छा लग रहा था. शाम होते ही उस के आने का इंतज़ार रहता. वह खुद सोचती कि उसे अब क्या हो रहा है. रोहन के फोन से ज़्यादा व्योम के आने का इंतज़ार रहता. घंटों दोनों साथ बिताते. अब शौपिंग व पिक्चर भी चले जाते. एक अनजानी कशिश  में बंधे अनजान राहों पर बढ़ने लगे दोनों.

समय ने करवट ली, विम्मी ने प्यारी गुड़िया को जन्म दिया. व्योम को जैसे ही पिता बनने की खबर मिली, वह ख़ुशी से झूम उठा. उस ने रुचि को फ़ोन किया, “रुचि, ख़ुशख़बरी सुनो, जिस का इतने दिनों से इंतज़ार था. मैं पिता बन गया हूं, अभी फ़ोन आया है. मुझे जाना होगा अपनी नन्ही गुडिया को देखने.”

वो कुछ और भी कहना चाहता था लेकिन शायद शब्द साथ नहीं दे रहे थे.

फोन पर व्योम से यह खबर सुन दो मिनट को तो मौन रह गई, समझ ही नहीं पाई जिस स्वप्न में जीने लगी थी, जल्दी यथार्थ के झोंके से टूटने वाला है. वह भूल गई थी यथार्थ और स्वप्न का अंतर. शायद मानवमन कल्पना के सुखद पलों में डूब यथार्थ को परे धकेल देता है. यही हो रहा था रुचि व व्योम के साथ.

”क्या हुआ कुछ बोल क्यों नहीं रही रुचि, तुम ठीक तो हो?”

लेकिन रुचि का मौन वो अनकहा सच मुखर कर रहा था जो दोनों के दिल महसूस करने लगे थे. वह अपनी दोस्त विम्मी की प्यारी बिटिया होने पर ख़ुश थी लेकिन व्योम के जाने की बात सुन परेशान भी.

“वो मैं मैं यह कह…”

इस के बाद उस की आवाज़ भीग सी गई. भाव चाह कर भी शब्द नहीं ले पाए. उस ने फ़ोन काट दिया.

उस की आंखों  से निकल बूंदें दिल का दर्द समेटे गालों पर लिखने लगीं. इस अजीब परेशानी की शिकायत हो भी तो किस से? वो व्योम को विम्मी के पास जाने से मना भी तो नहीं कर सकती थी.

व्योम खुद मजबूर था. उस ने विम्मी से भी तो प्यार किया है. और अब,

आज फिर दिल की कशमकश उसे तोड़ रही थी. वह 2 भागों में बंट रहा था. भटकन और यथार्थ की लड़ाई में. रुचि की कशमकश आंधी की तरह उसे झिंझोड़ रही थी.

तभी रोहन का फोन आ गया. रुचि बिलख पड़ी. बिखरते एहसासों को जैसे किनारा मिल गया हो.

“रोहन, प्लीज़ आ जाओ. अब परेशान हो गई हूं. बहुत अकेलापन लगता है तुम्हारे बिना.”

“क्यों परेशान होती हो, मेरे पास अभी तो फ़ोन आया था विम्मी के प्यारी सी गुड़िया हुई है. अब तो विम्मी भी आ जाएगी. उस की प्यारी सी बिटिया से तुम्हारा मन भी लग जाएगा. इसी खबर की ख़ुशी बांटने के लिए मैं ने तुम्हें फ़ोन किया है. और देखो, तुम भी आदत डाल लो, लौट कर तो हमें भी तैयारी करनी है.”

रोहन की दिल लुभाने वाली बातों से रुचि थोड़ी शांत हुई. ऐसे लगा जैसे घाव पर मलहम लगा हो. उस की विचारतंद्रा सही मार्ग का अनुसरण करने लगी. रोहन से बात करते विचारों की आंधियों ने उसे घेर लिया. उस ने अपने मन को समझाया. नहीं, मैं अपनी दोस्त विम्मी और अपने पति से धोखा नहीं कर सकती. संभालना होगा मुझे खुद को. दोस्ती के प्यारे रिश्ते को कलंकित नही करूंगी मैं, वरना अपनी ही नज़रों में गिर जाऊंगी. पर विडंबना दुस्वप्न से जागने पर कुछ देर टूटन भ्रम का आवरण उतारना नहीं चाहती. पैर धंसते जाते हैं गहरे समंदर की रेतीले धरती पर, पांव संभालना कब आसान होता है.

कोई आवाज़ ना सुनकर रोहन बोला, “तुम ठीक तो हो, कुछ बोल क्यों नहीं रही? अच्छा सुनो, जैसे इतने दिन निकले और भी निकल जाएंगे, मैं कुछ दिनों की छुट्टी ले कर जल्दी आने की कोशिश करता हूं.“

“प्लीज़, जल्दी आ जाओ, कह कर रुचि सिसक पड़ी और फ़ोन काट दिया.

रुचि ने व्योम से बात करते हुए बिना जवाब दिए फ़ोन काट दिया था, इसलिए   व्योम तुरंत रुचि के घर आ गया. वह सोच रहा था, नए पनपते भाव जो रुचि की आंखें भी बोलती हैं, उस के खुद के दिल में भी हैं, आज कह दूंगा.

उस ने दोतीन बार बेल बजाई. रुचि को थोड़ा समय खुद को संयत करने में लगा.

व्योम ने फ़ोन कर दिया, “रुचि, दरवाज़ा खोलो, क्या हुआ?”

“नहीं व्योम, तुम जाओ. अब हम अकेले नहीं मिलेंगे. जिस रिश्ते से बेकुसूर अपने लोग टूटें उसे वहीं ख़त्म होना ज़रूरी है. वापस चले जाओ, व्योम.”

‘अवांछित प्रेम बल्लरी को समय रहते उखाड़ फेंकना ज़रूरी था,’ यह बुदबुदाने के साथ मुंह में दुपट्टा दबा रो पड़ी रूचि. कहीं उस की आवाज़ व्योम न सुन ले, इसलिए कुछ अनकहा ही रह जाए तो बेहतर है. संभलने में वक्त तो लगता है, संभाल लेगी खुद को, भटकने नहीं देगी न खुद को और न व्योम को. संभालना ही तो होता है समय पर सही दिशा में खुद को. सम्मोहन का भ्रमजाल जितनी जल्दी टूट जाए, अच्छा है.

Short Stories In Hindi : फैसला – क्या अंकुर को खुद से दूर कर पाई अंजलि

Short Stories In Hindi : अंकुर मेरा नैनीताल जाना बहुत जरूरी है. एक प्रोजैक्ट के सिलसिले में कल ही जाना है. बट सोच रही हूं अकेली कैसे जाऊंगी?’’

‘‘कोई नहीं मैं चलता हूं साथ,’’ 1 मिनट की भी देरी किए बिना अंकुर ने तुरंत कहा.

अंजलि थोड़ी चकित हो कर बोली, ‘‘मगर औफिस में क्या कहोगे? बौस नाराज नहीं होंगे?’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं है. मैं कह दूंगा कि तबीयत सही नहीं. इस तरह 2-4 दिन आराम से छुट्टी मिल जाएगी.’’

‘‘ओके फिर आ जाना. हम कैब से चलेंगे. मैं ने कैब वाले से बात कर ली है. कल सुबहसुबह निकलते हैं,’’ अंजलि निश्चित हो कर अपने काम में लग गई.

अंकुर और अंजलि करीब 1 साल से संपर्क में हैं. दोनों औफिस में मिले थे. अंजलि को अच्छी कंपनी से जौब औफर हुई तो वह वहां चली गई मगर अंकुर ने उस से संपर्क बनाए रखा. अब समय के साथ दोनों के बीच एक अच्छी दोस्ती डैवलप हो गई थी. इस दोस्ती की वजह अंकुर का केयरिंग नेचर था जो अंजलि को बहुत पसंद था. अंजलि को जब भी कोई समस्या होती या किसी का साथ चाहिए होता वह अंकुर को कौल करती और उसे कभी निराश नहीं होना पड़ता. अंकुर हमेशा उस का साथ देने के लिए आ जाता.

अंजलि का कोई भाई नहीं था इसलिए वह चाहती थी कि उस का पति उस के घर वालों की भी परवाह करने वाला हो. अंकुर इस माने में बिलकुल फिट बैठता था. वह अकसर अंजलि के घर जाता और उस की मम्मी की हैल्प करने की कोशिश में रहता. कभी मार्किट से कुछ लाना है, कभी शौपिंग के लिए साथ जाना है, कभी कोई खास डिश बनानी है तो वह हमेशा आगे रहता.

हाल ही में जब रात के 11 बजे अचानक अंजलि के पापा को हार्ट प्रौब्लम हुई तो उस ने अंकुर को ही फोन किया. अंकुर तुरंत अपनी बाइक ले कर हाजिर हो गया. आननफानन में ऐंबुलैंस बुलाई गई और दोनों पिता को ले कर सिटी हौस्पिटल पहुंचे. डाक्टर ने सर्जरी के लिए

2 दिन बाद की डेट दे दी. अंजलि को अगले दिन औफिस में जरूरी प्रेजैंटेशन देना था इसलिए किसी भी हाल में औफिस पहुंचना था. अंकुर को जब यह बात पता चली तो उस ने अंजलि से औफिस जाने को कहा. वह खुद  4 दिन की छुट्टी ले कर अस्पताल में रुक कर सब काम देखने लगा. अंजलि अंकुर के इस व्यवहार और प्यार से अभिभूत हो उठी. उसे यकीन नहीं आ रहा था कि अंकुर जैसा दोस्त उस के पास है. वह किसी भी तरह उसे हमेशा के लिए अपनी जिंदगी में शामिल करने को उत्सुक थी. 2-3 बार वह उस की दोनों बहनों से भी मिल चुकी थी. अंकुर अंजलि को बहनों से मिलाने उन के कालेज ले गया था.

एक नजर में अंकुर बहुत हैंडसम या आकर्षक नहीं दिखता था मगर उस का व्यवहार अच्छा था. कपड़े बहुत महंगे नहीं होते थे मगर वे कपड़े उस पर जंचते थे. वह सौम्य, शालीन और दूसरों की प्रौब्लम्स सम?ाने वाला बंदा था खासकर अंजलि के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता.

इधर अंजलि काफी खूबसूरत और स्मार्ट थी. 5 फुट 4 इंच का कद, गोरा रंग, घुंघराले बाल और सधी हुई खूबसूरत फिगर. वह अपने काम के प्रति भी बहुत सिंसियर रहती थी. उस ने बेहतर सैलरी पैकेज में नई कंपनी जौइन की थी और बहुत जल्दी उसे प्रमोशन भी मिलने वाली थी. उसे अपनी जिंदगी में बहुत आगे बढ़ना था और इस के लिए वह हमेशा मेहनत करती थी.

अंजलि के घर में मातापिता के अलावा दादाजी थे जिन्हें वह बहुत प्यार करती थी. पिता 5-6 साल बाद रिटायर होने वाले थे और उस से पहले वह अंजलि के लिए एक अच्छा लड़का ढूंढ़ कर शादी करना चाहते थे.

इधर अंजलि के दिल में धीरेधीरे अंकुर जगह बनाने लगा था. उस के सिवा किसी लड़के के बारे में वह सोच ही नहीं सकती थी. मगर वह इंतजार कर रही थी जब अंकुर उसे प्रपोज करे.

उस दिन भी सुबहसुबह अंकुर हाजिर हो गया और अंजलि के साथ नैनीताल के ट्रिप पर निकल पड़ा. नैनीताल में काम खत्म होने के बाद दोनों ने कुछ अच्छा समय साथ बिताया. वहां अंजलि की मौसी रहती थी सो दोनों उन्हीं के घर ठहरे.

एक दिन में ही अपने अच्छे व्यवहार की वजह से अंकुर ने अंजलि की मौसी का दिल भी जीत लिया. मौसी ने इशारोंइशारों में अंजलि से दोनों के रिश्ते के बारे में कन्फर्म भी किया. अगले दिन लौटने का प्लान था मगर अंजलि ने यह प्लान एक दिन आगे बढ़ा दिया. आज वह अंकुर के दिल की बात जानना चाहती थी. इसलिए उस ने सारा दिन अंकुर के साथ नैनीताल घूमने का प्लान बनाया.

शाम में जब दोनों नैनीताल की वादियों में घूम रहे थे तो अचानक अंकुर का हाथ थामते हुए अंजलि ने पूछा, ‘‘अंकुर क्या हम हमेशा दोस्त ही रहेंगे?’’

‘‘हां, हम हमेशा दोस्त रहेंगे,’’  जल्दी में अंकुर ने कह दिया मगर जब उस ने अंजलि की आंखों में देखा तो उसे समझ आ गया कि अंजलि क्या सुनना चाहती है.

अंकुर ने अंजलि की आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘अगर तुम चाहो तो हम कुछ और भी बन सकते हैं.’’

‘‘कुछ और बन सकते हैं? मगर कुछ और क्या?’’ अनजान बनते हुए अंजलि मुसकराई.

‘‘मसलन, शौहरबीवी या पतिपत्नी या हस्बैंडवाइफ या फिर तुम कहो तो…’’

‘‘बस करो. कभी प्यार का इजहार तो किया नहीं और चले पतिपत्नी बनने,’’ मुंह बनाते हुए अंजलि बोली तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ. बोला, ‘‘यार हर धड़कन में तुम हो. हमेशा आंख खुलते ही तुम्हारी याद और नींद लगने से पहले तक बस तुम्हारी बातें,’’ कहते हुए अंकुर ने अंजलि को बाहों में लेना चाहा तो वह दूर भागती हुई बोली, ‘‘इतना फिल्मी बनने की जरूरत नहीं. प्यार है तो वे 3 शब्द बोलो और प्रौमिस करो कि यह प्यार कभी खत्म नहीं होगा.’’

‘‘आई लव यू,’’ कहते हुए अंकुर थोड़ा शरमा गया.

अंजलि इस बात का मजा लेती हुई उसे चिढ़ाने लगी. फिर बोली, ‘‘चलो अपनी जेब ढीली करो और मु?ो कहीं कुछ खिलाओपिलाओ.’’

अंकुर उसे एक ढाबे में ले गया और समोसेचाय और्डर करता हुआ बोला, ‘‘इस से ज्यादा रोमांटिक डिश और कुछ नहीं हो सकती.’’

अंजलि उस के भोलेपन और सादगी पर फिदा हुए जा रही थी. उस ने मन ही मन तय किया कि वह इस रिश्ते को आगे ले जाएगी क्योंकि इस से बेहतर लड़का उसे फिर नहीं मिलेगा.

अब दोनों की दोस्ती ने प्यार का रंग ले लिया था. वे डेट पर जाने लगे. जब भी अंजलि की तरफ से ट्रीट होती तो वह अच्छे रैस्टोरैंट में ले कर जाती मगर अंकुर किसी ढाबे या चाय की दुकान पर ले जाता और कभी चाऊमीन, कभी समोसे या कभी गोलगप्पे खिला देता. अंजलि को अंकुर के इस अंदाज पर प्यार आता.

करीब 6 महीने डेटिंग करने के बाद एक दिन दोनों ने तय किया कि इस रिश्ते को आगे बढ़ाने का समय आ गया है. दोनों के घर वालों ने सगाई की तारीख तय कर दी. छोटेमोटे समारोह के रूप में अंजलि के घर में ही करीबी रिश्तेदारों के बीच सगाई संपन्न हो गई.

अब तक अंकुर ही अंजलि के घर आताजाता रहता था. सगाई के बाद पहली बार अंजलि एक दिन बिना बताए अचानक यह देखने के लिए अंकुर के घर पहुंच गई कि उस की ससुराल कैसी है. अंकुर ने उसे बता रखा था कि लक्ष्मी नगर में उस का 2 कमरों का घर है. मगर आज वह यह देख कर चौंक गई कि उस का घर तो बहुत छोटा और तंग सा है. एक हौल के अलावा 2 छोटेछोटे से कमरे थे जिन में मुश्किल से 1 बैड और 1 टेबल लगी हुई थी. हाल में पुराने जमाने का एक सोफा सैट था और किचन के बाहर एक मध्यम साइज का फ्रिज था. घर बिलकुल साफसुथरा नहीं था खासकर जिस कमरे को अंकुर ने अपना कमरा बताया वह तो और भी ज्यादा अव्यवस्थित और गंदा था. अंकुर की बहनें जो उसे कालेज में अच्छे कपड़े पहने नजर आई थीं आज मैले से फालतू कपड़ों में घूम रही थीं. अंकुर का भी यही हाल था.

घर में साफसफाई की कमी के साथ साफ हवा के आवागमन यानी वैंटिलेशन की भी सही व्यवस्था नहीं थी. ऐसे घर में रहने की कल्पना से उस का दम घुटने लगा. अंकुर आज तक उसे अपनी माली हालत के बारे में गलत जानकारी देता था. उस ने कहा था कि उस के पापा बड़े अधिकारी हैं जबकि वह एक छोटी सी कंपनी में प्राइवेट जौब करते थे. खुद अंकुर की नौकरी 4 महीने पहले छूट चुकी थी. बाद में एक महीने के लिए उस ने दूसरी नौकरी पकड़ी मगर वहां से भी निकाल दिया गया था. अब वह फिर से जौब के लिए इंटरव्यू दे रहा था.

अंकुर के घर में सब उस से बहुत प्यार से पेश आ रहे थे मगर घर से निकलते ही अंजलि ने अंकुर से पहला सवाल किया, ‘‘हम अलग एक नया घर ले कर रहेंगे न?’’

अंकुर ने हैरानी से पूछा, ‘‘नया घर मगर क्यों?’’

‘‘क्योंकि यहां रहना मेरे लिए पौसिबल नहीं,’’ अंजलि ने साफ जवाब दिया.

सुन कर अंकुर की गरदन ?ाक गई. उसे समझ आ गया कि अंजलि इतने छोटे घर में सब के साथ नहीं रहना चाहती. उस ने मजबूर नजरों से उस की तरफ देखा और बोला, ‘‘मगर मम्मीपापा को छोड़ कर मैं कहीं और कैसे रह सकता हूं?’’

‘‘जैसे मैं रहूंगी,’’ अंजलि ने तुरंत कहा, ‘‘मैं भी तो अपने मम्मीडैडी को छोड़ कर आऊंगी न अंकुर.’’

‘‘ओके मैं बात करूंगा घर में,’’ अंकुर ने बुझे मन से कहा.

इधर अंजलि भी बहुत परेशान सी घर लौटी. उसे अपने फैसले पर संदेह होने लगा था कि अंकुर को जीवनसाथी बनाने का उस का फैसला सही है या नहीं. उस ने मां से सारी बात कही तो वे भी सोच में पढ़ गईं. फिर उन्होंने बेटी को समझाया कि इंसान सही होना चाहिए घर और पैसा तो बाद में भी आ सकता है. उन्होंने उसे इस रिश्ते को थोड़ा वक्त देने की सलाह दी और कुछ समय अंकुर को और परखने को कहा.

अंजलि ने मां की बात पर अमल किया और अंकुर से पहले की तरह मिलती रही ताकि उसे बेहतर ढंग से समझ सके.

अंजलि ने अंकुर को सलाह दी कि वह जल्दी कोई अच्छी जौब ढूंढे़ और लाइफ में सैटल होने की कोशिश करे तभी शादी करने का मतलब है. अंकुर ने इस के बाद जौब की तलाश में एड़ीचोटी का दम लगा दिया और वाकई उसे एक अच्छी जौब मिल भी गई.

यह खबर सुन कर अंजलि को थोड़ी राहत मिली मगर अंकुर के स्वभाव में बदलाव नहीं आया. वह अभी भी अपनी जौब को बहुत हलके में ले रहा था. अकसर अंजलि से मिलने या उसे ड्रौप करने के चक्कर में वह औफिस देर से पहुंचता या फिर जल्दी निकल आता. अपनी बहन को इंटरव्यू दिलाने को ले जाने के लिए उस ने नई जौब में 4 दिन की छुट्टी ले ली. उस दिन अंजलि का बर्थडे सैलिब्रेट करने के लिए भी उस ने छुट्टी ले ली. अंजलि समझती थी कि वह दूसरों की खुशी या जरूरत के लिए ही छुट्टियां लेता है मगर कहीं न कहीं उसे अंकुर का यह व्यवहार गैरजिम्मेदाराना भी लगता.

एक दिन औफिस में जब बाहर से गैस्ट आने वाले थे तब भी अंकुर सोता रह गया और औफिस देर से पहुंचा. उस के बौस को गुस्सा आ गया और उन्होंने अंकुर को सस्पैंड कर दिया. यह बात उसे अंकुर की बहन से पता चली.

अंजलि सम?ा गई कि अंकुर में मैच्योरिटी बिलकुल नहीं है. उस का फ्यूचर ब्राइट नहीं. वह अपने काम में बिजी रहने लगी और अंकुर को इग्नोर करने लगी. अंकुर बारबार फोन कर उस से मिलने की कोशिश करता मगर वह व्यस्त होने का बहाना बना देती.

इधर एक दिन अंकुर की मौसी मिलने आई. अंकुर और अंजलि की सगाई के बाद वह पहली दफा आईं थीं. आते ही वे अंकुर के साथ अंजलि से मिलने उस के घर पहुंच गईं. संडे का दिन था इसलिए अंजलि ने उन के लिए अपने हाथों से अच्छा खाना तैयार किया और सब साथ में खाना खाने लगे. बातचीत के दौरान मौसी ने अंजलि की कास्ट पूछी. अंजलि सुनार थी जबकि अंकुर राजपूत घराने से था.

मौसी उस की कास्ट सुनते ही चौंक सी गईं और मुंह बनाती हुई बोलीं, ‘‘पुराने समय में हमारे यहां तो सुनार के घर का खाना भी नहीं खाते थे. शादी की तो बात ही दूर है. मगर अंकुर आज का बच्चा है. क्या पता उस ने इस बारे में कुछ सोचा भी या नहीं.’’

‘‘मौसी मुझे अंजलि पसंद है इस के सिवा क्या सोचना?’’ अंकुर ने कहा.

‘‘हां ठीक है. तुम दोनों जानो. बाकी तुम्हारा परिवार जाने. मुझे क्या करना,’’ मौसी मुंह बनाती हुई बोलीं.

मौसी तो चली गईं मगर अंजलि को उन की बात बहुत बुरी लगी कि सुनार के घर का खाते भी नहीं. 2 दिन तक उस के दिमाग में यही सब घूमता रहा. सगाई और शादी के बीच का यह समय अंजलि के लिए काफी कठिन गुजर रहा था. उस का दिमाग शादी के इस फैसले से लगातार बगावत कर रहा था.

एक दिन अंजलि मम्मीडैडी के पास बैठ कर बोली, ‘‘मैं एक बात सोच रही हूं. सम?ा नहीं आ रहा कि क्या फैसला लूं?’’

‘‘क्या हुआ बेटा सब ठीक तो है?’’ वे चिंतित हो कर पूछने लगे.

‘‘ऐक्चुअली मैं सोच रही थी कि अंकुर अच्छा लड़का है. उस के परिवार के लोग भी अच्छे हैं. अंकुर मु?ा से प्यार भी बहुत करता है और मेरी केयर भी करता है. कई मौकों पर उस ने मेरी मदद भी की है. किसी से शादी करने के लिए यह सब बहुत अच्छी क्वालिटीज हैं. मगर क्या सिर्फ इतना काफी है? क्या उस के गैरजिम्मेदाराना रवैए की अनदेखी की जा सकती है? क्या भविष्य में मु?ो पछताना नहीं पड़ेगा?’’

अंजलि के मम्मीपापा नि:शब्द रह गए. वाकई यह उन की बेटी के भविष्य का मसला था. सिर्फ अच्छे व्यवहार या केयरिंग नेचर की वजह से उस  से शादी कर लेना कहां तक उचित होगा? उन्होंने बेटी का कंधा थपथपाते हुए कहा, ‘‘बेटा यह तेरे जीवन की बात है. इस से जुड़े फैसले तेरे अपने होने चाहिए ताकि बाद में तुझे पछताना न पड़े. वह तुझे प्यार करता है. इतना प्यार करने वाला शायद तु?ो फिर न मिले. इसलिए तू अपने दिल की सुन मगर साथ में अपने दिमाग की भी सुन. दिमाग की बातें भी नजरअंदाज करना सही नहीं होगा. फैसला तुझे खुद लेना है. हम हर हाल में तेरे साथ हैं.’’

अंजलि फैसला ले चुकी थी. अगले दिन रोज डे था. अंजलि ने अंकुर को अपने औफिस के पास वाले रैस्टोरैंट में बुलाया. वह अपने हाथों में गुलाब का फूल ले कर आया था. उस ने बहुत प्यार से रोज थमाते हुए उस के हाथों को किस किया.

अंजलि भी उतने ही प्यार से उस की तरफ देखती हुई बोली, ‘‘हैप्पी रोज डे अंकुर. मु?ो तुम बहुत अच्छे लगते हो. आई रियली लव यू.’’

‘‘मुझे पता है. तभी तो हमारा प्यार इतना खूबसूरत है.’’

‘‘प्यार खूबसूरत है मगर रास्ते जुदा हैं. अंकुर मैं तुम से अब रोज नहीं मिल सकती. ऐक्चुअली मैं आज तुम्हें हमारे रिश्ते से आजाद करती हूं. यह कहते हुए मुझे बहुत तकलीफ हो रही है मगर हम दोनों के लिए यही सही होगा.’’

‘‘मगर ऐसा क्यों कह रही हो?’’ अंकुर की आवाज कांप उठी.

‘‘देखो अंकुर, हमारी कास्ट अलग है, हमारी सोच अलग है और हमारे जीने का तरीका भी अलग है. यानी हमारी दुनिया ही अलग है. हम शादी कर लेंगे मगर हम रोज लड़ते रहेंगे. उस से बेहतर है कि हम अपने लिए अपने जैसा कोई ढूंढ़ें ताकि हम रोज खुश रह सकें. तुम मेरी बात समझ रहे हो न?’’ कहते हुए अंजलि की आंखें भीग गईं.

फिर तुरंत चेहरे पर मुसकान लाती हुई वह उठ खड़ी हुई और बोली, ‘‘आई ऐम सौरी अंकुर. मैं तुम्हारा दिल नहीं तोड़ना चाहती थी. मगर जिंदगीभर एकदूसरे का दिल तोड़ने से अच्छा है हम आज यह तकलीफ सह लें,’’ कह कर अंजलि चली गई. रोज डे के दिन अंकुर को शौक दे कर. अंकुर कुछ कह नहीं सका मगर अंजलि के फैसले की वजह वह समझ रहा था.

शक का संक्रमण: आखिर किस वजह से दूर हो गए कृति और वैभव

‘‘मैं मैं इस घर में एक भी दिन नहीं रह सकती. मुझे बस तलाक चाहिए,’’ कृति के मुंह से निकले इन शब्दों को सुन वकील ने मौन साध लिया.

जवाब न सुन कृति का गुस्सा 7वें आसमान पर पहुंच गया, ‘‘आप बोल क्यों नहीं रहे वकील साहब? देखिए मुझे नहीं पता कि कोरोना की क्या गाइडलाइंस हैं. आप ने कहा था कि 1 महीना पूरा होते ही मेरी अर्जी पर कोर्ट फैसला दे देगा,’’ कृति के चेहरे पर परेशानी उभर आई.

‘‘देखिए कृतिजी. कोर्ट बंद हैं और अभी खुलने के आसार भी नहीं तो केस की सुनवाई तो अभी नहीं हो सकती और मैं जज नहीं जो डिसीजन दे कर आप के तलाक को मंजूर कर दूं,’’ वकील ने समझते हुए कहा.

‘‘पर मैं यहां से जाना चाहती हूं. 1 महीने के चक्कर में फंस गई हूं मैं. मुझ से उस आदमी की शक्ल नहीं देखी जा रही जिस ने मुझे धोखा दिया. मैं नहीं रह सकती वैभव के साथ.’’

कृति के शब्दों की झंझलाहट और मन में छिपे दर्द को वकील ने साफ महसूस किया. 2 पल की खामोशी के बाद वह फिर बोला, ‘‘आप अपनी मां के घर चली जाएं.’’

‘‘अरे नहीं जा सकती. इस इलाके को कारोना जोन घोषित कर दिया है. यहां से निकली तो 40 दिन के लिए क्वारंटीन कर दी जाऊंगी,’’ कृति ने हांफते हुए कहा.

‘‘तो बताओ मैं क्या कर सकता हूं?’’ वकील ने कहा.

‘‘आप बस इतना करें कि इस लौकडाउन के बाद मुझे तलाक दिला दें,’’ और कृति ने फोन काट दिया. फिर किचन की ओर मुड़ गई. उस के गले में हलका दर्द था और सिर भारी हो रहा था. एक कप चाय बनाने के लिए जैसे ही उस ने किचन के दरवाजे पर कदम रखा वैभव को अंदर देख कृति के सिर पर गुस्से का बादल जैसे फट पड़ा. पैर पटकते वापस बैडरूम में आ कर लेट गई.

छत पर घूमते पंखे के साथ पिछली यादें उस की आंखों के सामने तैरने लगीं…

दीयाबाती के नाम से मशहूर वैभव और कृति अपने कालेज की सब से हाट जोड़ी थी. दोनों के बीच की कैमिस्ट्री को देख कर न जाने कितने दिल जल कर खाक हुए जाते थे.

कृति के चेहरे पर मुसकान लाने के लिए वैभव रोज नए ट्रिक्स अपनाता. दोनों की दीवानगी कोई वक्ती न थी. अपने कैरियर के मुकाम पर पहुंच वैभव और कृति परिवार की रजामंदी से विवाह के बंधन में बंध गए.

सबकुछ बेहद खूबसूरत चल रहा था लेकिन वह एक शाम दोनों की जिंदगी में बिजली बन कर कौंध गई. प्रेम की मजबूत दीवार पर शक के हथौड़े का वार गहरा पड़ा. वैभव ने लाख सफाई दी कि उस का मेघना के साथ सिर्फ मित्रता का संबंध है लेकिन शक की आग में जलती कृति कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी. 15 दिन बाद दोनों की शादी को 2 साल पूरे हो जाएंगे लेकिन कृति उस से पहले ही वैभव से तलाक चाहती थी. कोर्ट ने एक बार दोबारा विचार करने के लिए दोनों को कुछ समय साथ रहने का फैसला सुनाया था.

वैभव के लाख प्रयासों के बाद भी कृति का मन नहीं बदला बल्कि वैभव की हर कोशिश उसे सफाई नजर आती. नफरत और गुस्से से वह वैभव को शब्दबाणों से घायल करती रहती. वैभव का संयम अभी टूटा नहीं था इसलिए उस ने मौन ओढ़ लिया. केस की अगली सुनवाई तक दोनों को साथ ही रहना था इसलिए मजबूरन कृति वैभव को बरदाश्त कर रही थी.

समय बीत रहा था लेकिन अचानक आए कोरोना के वायरस ने जिंदगी की रफ्तार को जैसे थाम लिया. लौकडाउन लग चुका था. चारों ओर डर और अफरातफरी का माहौल था. कृति अपने मायके जाना चाहती थी लेकिन उन की सोसायटी सील कर दी गई थी क्योंकि उस में कोरोना के केस लगातार बढ़ रहे थे. मन मार कर एक ही छत के नीचे रहती कृति अंदर ही अंदर घुल रही थी.

कृति अपने खयालों में खोई कमरे में चहलकदमी कर रही थी कि ऐंबुलैंस की तेज आवाज से उस का ध्यान भटका. वह भाग कर बालकनी की ओर भागी. सामने वाली बिल्डिंग

के नीचे ऐंबुलैंस खड़ी थी. उस के आसपास पीपीई किट पहने 4 लोग खड़े थे. कृति ने ध्यान दिया तो उसे सामने वाली बिल्डिंग के 4 नंबर फ्लैट की बालकनी में सुधा आंटी रोती नजर आई. ऐंबुलैंस के अंदर एक बौडी को डाला जा रहा था. थोड़ी देर में ऐंबुलैंस सायरन बजाते निकल गई. सुधा आंटी के रोने की आवाज अब साफ नजर आ रही थीं.

ऐंबुलैंस में उन के एकलौते बेटे रजत को ले जाया गया था.

‘‘रजत नहीं रहा,’’ बगल की बालकनी में मुंह लपेटे पारुल खड़ी थी. उस की बात सुन कर कृति का दिल धक से रह गया.

‘‘क्या बोल रही हो पारुल. यार एक ही बेटा था आंटी का… कोई नहीं है उन के पास तो… कैसे बरदाश्त करेंगी वे यह दुख,’’ कृति दुखी स्वर में बोली.

‘‘कारोना जाने कितनों को अपने साथ ले जाएगा. तुम ने मास्क नहीं पहना और तुम बाहर खड़ी हो. इतनी लापरवाही ठीक नहीं कृति,’’

कह कर पारुल अंदर चली गई और दरवाजा बंद कर लिया. घबराई कृति कमरे में आ कर अपने चेहरे और हाथों को साबुन से रगड़ने लगी. सुधा आंटी का विलाप चारों तरफ फैले सन्नाटे में डर पैदा कर रहा था. कृति अपने कमरे को सैनिटाइज कर बिस्तर पर लेट गई. सिर में दर्द और गले की खराश मन में भय की तरंगें बनाने लगी. नाक से बहता पानी मस्तिष्क को बारबार झंझड़ रहा था. लेकिन आंटी और रजत के बारे में सोचतेसोचते उसे गहरी नींद आ गई.

कृति को कमरे से बाहर न निकलते देख वैभव को चिंता हो रही थी. कृति कभी इतनी देर नहीं सोती. रात के 8 बज रहे थे और कृति 4 बजे से कमरे के अंदर थी. रजत के जाने का दुख वैभव को अंदर तक हिला गया. उस पर कृति का कमरे में बंद होना वैभव के मन में हजार आशंकाओं को जन्म दे रहा था. घड़ी की सूई बढ़ती जा रही थी. 9 बज चुके थे. अब वैभव उस के कमरे के दरवाजे के पर जा कर खड़ा हो गया.

‘‘कृति, तुम ठीक हो न? कृतिकृति,’’ दरवाजे को थपथपा कर वह बोला. लेकिन कृति की कोई आवाज नहीं आई. वैभव ने दरवाजे को हलके से धकेला तो कृति को बिस्तर पर बेसुध पाया. उस ने करीब जा कर उस के माथे को छूआ माथा तप रहा था.

‘‘कृतिकृति उठो आंखें खोलो,’’ वैभव उसे झंझड़ कर बोला.

कृति ने अपनी आंखें खोलने की कोशिश की लेकिन खोल नहीं पाई. वैभव तुरंत अपना मास्क चेहरे पर लगा कर ठंडे पानी का कटोरा ले कर उस के सिरहाने बैठ गया. ठंडे पानी की पट्टियां सिर पर रख उस की हथेलियां रगड़ने लगा.

कृति को कुछ होश आया. आंखें खोलीं तो वैभव सामने था. कृति की आंखें लाल थीं. वैभव उसे होश में आया देख तुरंत पैरासिटामोल ले आया और सहारा दे कर दवा उस के मुंह में डाल दी.

कृति को अपना शरीर बिलकुल निष्क्रिय लग रहा था. वह उठ नहीं पा रही थी.

कोरोना उस के शरीर को जकड़ चुका था लेकिन वैभव उस के करीब खड़ा था. यह देख कृति बोली, ‘‘तुम दूर रहो वैभव, मुझे कारोना… तुम भी बीमार हो जाओ,’’ और फिर खांसने लगी. उसे सांस लेने में तकलीफ महसूस हुई.

‘‘तुम शांत रहो. मुझे कुछ नहीं होगा. मैं ने मास्क और दस्ताने पहने हैं और तुम्हें बस वायरल बुखार है कारोना नहीं. घबराओ नहीं. मैं चाय लाता हूं,’’ कह वैभव रसोई में चला गया. थोड़ी देर में चाय और स्टीमर उस के साथ था. कृति को चाय दे कर वैभव ने स्टीमर का प्लग लगाया और उसे गरम करने लगा. कृति चाय पी कर स्टीम लेने लगी. वैभव वहीं खड़ा था.

‘‘तुम जाओ बीमार हो जाओगे. जाओ प्लीज,’’ कृति ने जोर दे कर कहा.

‘‘मैं ठीक हूं. सुबह कोरोना का टैस्ट होगा हमारा. तुम रिलैक्स रहना कृति,’’ वैभव उसे समझते हुए बोला.

कृति ने हां में सिर हिलाया. थोड़ी देर में वह फिर सो गई. कोरोना के लक्षण अभी इतने नहीं दिखाई दे रहे थे लेकिन वैभव डर गया. कृति के मायके फोन कर खबर देने के बाद वैभव ने सारे घर को सैनिटाइज किया. चाय का कप ले कर कृति के कमरे के बाहर ही बैठ गया.

कृति बीचबीच में खांस रही थी और बेचैनी से अपने सीने को रगड़ रही थी. अस्पताल ले जाना खतरनाक था क्योंकि अस्पताल से आती मौत की खबरों ने दहशत फैला रखी थी. वैभव की आंखों में नींद नहीं थी. वह एकटक कृति को देख रहा था. कृति बारबार अपनी गरदन पर हाथ फेर रही थी. बाहर फैला सन्नाटा कोरोना के साथ मिल कर सब के दिलों से खेल रहा था जैसे.

‘‘पा… पानी,’’ कृति के होंठ बुदबुदाए.

वैभव ने भाग कर कुनकुना पानी ला कर कृति के होंठों से लगा दिया. लिटा कर टेम्प्रेचर लेता है. बुखार कुछ कम हुआ था, लेकिन अब भी 102 पर अटका था.

रात भी जाने कितनी लंबी थी जो सरक ही नहीं रही थी. वह कृति के कमरे के बाहर दरवाजे पर टेक लगाए बैठा था. बीचबीच में पुलिस की गाड़ी की आवाज सुनाई देती.

सूरज अपने समय पर उगा. खिड़की से आती सूरज की रोशनी कृति के चेहरे पर पड़ने लगी तो वह जाग गई. शरीर में टूटन थी. सहारा

ले बिस्तर से उठ कर बाथरूम में घुस गई. वैभव दरवाजे के पास ही जमीन पर बेखबर सो रहा था. बाथरूम से बाहर आकर कृति की नजर जमीन पर लेटे वैभव पर पड़ी. वह कसमसा कर रह गई.

2 कदम चलने की हिम्मत भी कृति की नहीं हो रही थी. सांस लेने में तकलीफ होने लगी.वह वैभव को बुलाना चाहती थी लेकिन खांसी के तेज उफान से यह नहीं हो सका. उस के खांसने की आवाज से वैभव की नींद टूट गई. वह हड़बड़ा कर उठा तो देखा कि कृति बिस्तर पर सिकुड़ कर लेटी हुई है. वह अपना मास्क ठीक करता है और उस के पास जा कर उसे सीधा करता है. कृति गले में रुकावट का इशारा करती है. वैभव कुनकुना पानी उस के गले में उतार देता है. कृति को कुछ राहत महसूस होती है.

वैभव की घबराहट कृति के लिए बढ़ती जा रही थी. वह लगातार व्हाट्सऐप पर औक्सीजन सिलैंडर के इंतजाम के लिए मैसेज कर रहा था. औक्सीमीटर और्डर कर वैभव कोरोना हैल्पलाइन सैंटर में कौल कर कृति की स्थिति बताई. वहां से वैभव को कुछ निर्देश मिले. कोरोना टैस्ट के लिए पीपीई किट पहने 2 लोग आए और उन के सैंपल ले गए. मौत का भय कैसे मस्तिष्क को शून्य कर देता है यह वैभव और कृति महसूस कर रहे थे.

बिस्तर पर पड़ी कृति वैभव की उस के लिए चिंता साफ महसूस कर रही थी. प्यार जो स्याहीचूस की तरह कहीं सारी भावनाओं को चूस रहा था एक बार फिर वापस तरल होने लगा.

घर के काम और कृति की देखभाल में वैभव भूल गया था कि कृति उस के साथ बस कुछ दिनों के लिए है. औक्सीमीटर से रोज औक्सीजन नापने से ले कर कृति को नहलाने तक का काम वैभव कर रहा था और कृति उस के प्रेम को धीरेधीरे पी रही थी.

मन में अजीब सी ग्लानि महसूस कर कृति अकसर रो पड़ती. लेकिन वैभव के सामने सामान्य बनी रहती. कृति तकलीफ में थी. मन से भी और शरीर से भी. लेकिन उस के अपनों ने उस से दूरी ही रखी. शायद भय था कि कहीं

कृति उन से कोई मदद न मांग ले. वैभव कोरोना को ले कर औनलाइन सर्च करता रहता. कृति के इलाज के साथ सावधानी और उस की डाइट पर वैभव कोई लापरवाही नहीं करना चाहता था. दिन बीत रहे थे और कृति तेजी से रिकवर कर रही थी लेकिन कमजोरी इतनी थी कि वह खुद के काम करने में भी सक्षम महसूस नहीं कर रही थी. बालकनी में कुरसी पर बैठी कृति शहर के सन्नाटे को महसूस कर रही थी. आसपास के फ्लैट्स की बालकनियों के दरवाजे कस कर बंद पड़े थे शायद सब को उस का कोरोना पौजिटिव होना पता चल गया था. इंसानों के बीच आई यह दूरी कितनी पीड़ादायक थी.

कृति अपने खयालों में खोई थी कि रसोई से आती तेज आवाज से उस का ध्यान भंग हुआ. वह दीवार का सहारा ले कर कमरे से बाहर निकली. रसोई में वैभव अपना हाथ झटक रहा था. फर्श पर दूध का बरतन पड़ा था जिस में से भाप उठ रही थी. माजरा सम?ाते उसे देर न लगी.

कृति बेचैनी से चिल्लाई, ‘‘वैभव ठंडा पानी डालो हाथ पर… जल्दी करो वैभव.’’

‘‘ठीक है. लेकिन तुम जाओ आराम करो परेशान न हो,’’ वैभव ने फ्रिज खोलते हुए कहा.

‘‘मेरी चिंता न करो. मैं ठीक हूं. अपना हाथ दिखाओ,’’ वह चिल्लाई.

वैभव का हाथ लाल हो गया था.

‘‘क्या किया तुम ने यह क्या हाथ से बरतन उठा रहे थे? बरतन गरम है यह तो देख लेते?’’ कृति गुस्से से बोली.

‘‘मेरी चिंता मत करो. वैसे भी अकेले ही रहना है मुझे,’’ अपनी हथेली को कृति की हथेलियों से. छुड़ा कर वह बोला.

‘‘तो तुम क्यों चिंता कर रहे थे मेरी? रातदिन मेरे लिए दौड़ रहे थे… मेरे लिए अपनी नींद खो रहे थे… मरने देते मुझे,’’ कृति की आवाज में दर्द था.

‘‘प्यार करता हूं तुम से. तुम्हारे लिए तो जान भी दे सकता हूं,’’ वैभव न कहा.

‘‘तो क्यों नहीं मुझे रोक लेते?’’ सुबकते हुए कृति बोली.

‘‘मैं ने तो कभी तुम से दूर होने की कल्पना नहीं की. तुम ही मुझ से नफरत करती हो,’’ वैभव रसोई के फर्श पर बैठ गया.

‘‘नफरत. तुमतुम वह मेघना… मैं ने तुम्हें उस के साथ… तुम ने मुझे धोखा क्यों दिया वैभव?’’ कृति तड़प उठी.

‘‘मैं तुम्हें धोखा देने की कल्पना भी नहीं कर सकता. उस रात मेघना को अस्थमा का अटैक आया था. मैं सिर्फ उसे गोद में उठा कर पार्किंग में कार में बैठा रहा था लेकिन तुमने सिर्फ यही देख मु?ा पर शक किया. मेघना को भी अपराधी बना दिया जबकि उस समय वह खतरे में थी,’’ वैभव एक सांस में बोल गया.

कृति खामोश हो नीचे बैठ गई. उस की आंखों से बहता पानी अपनी गलती का एहसास करा रहा था. वैभव उस के गालों पर आंसू देख परेशान हो गया.

‘‘तुम रो क्यों रही हो कृति? देखो अभी तुम्हारी तबीयत पूरी तरह ठीक नहीं.

सांस लेने में दिक्कत हो जायेगी,’’ वैभव बोला.

‘‘कुछ नहीं होगा मुझे. इस कांरोना संक्रमण ने मेरे शक के संक्रमण को मार दिया है वैभव. मुझे माफ कर दो मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. तुम्हें किसी और के करीब देख मेरी चेतना शून्य हो गई थी. मैं जलन में गलती कर गई. तुम्हारा अपमान किया, तुम पर आरोप लगाए. मुझे माफ कर दो वैभव,’’ कृति हाथ जोड़ कर बिलखने लगी.

‘‘तुम्हारी आंखों में अपने लिए नफरत देख मैं कितना तड़पा हूं तुम नहीं समझ सकती. अब ऐसे रो कर मुझे और तड़पा रही हो. कैसे सोच लिया था तुम ने कि तुम्हारे बिना मैं जिंदा रह पाता. मर जाता मैं,’’ कह कर वैभव ने कृति को बांहों में भींच लिया. दोनों की आंखों से बहता पानी प्रेम के सागर को और गहरा करने लगा.

अगली तारीख पर अपना फैसला सुनाने के लिए कृति ने वैभव के सीने पर चुंबन अंकित कर दिया.

Hindi Story Collection : रब ने बना दी जोड़ी

Hindi Story Collection : डांस एकैडमी से वापस आने पर नमिता ने देखा घर जैसा बिखरा हुआ छोड़ गई थी, उसी तरह पड़ा था. लगता है मेड दुलारी ने आज फिर से छुट्टी मार ली. उफ, अब क्या करूं, कैसे इस बिखरे घर को समेटूं. समेटना तो पड़ेगा उसे ही क्योंकि अभी यहां किसी को ज्यादा जानती भी तो नहीं है, नईनई तो आई है इस सोसायटी में रहने. सारा दिन तो काम की तलाश में ही निकल जाता है. वह तो अच्छा है कि दुलारी उसे मिल गई जो उस के लिए खाना बनाने से ले कर घर की साफसफाई तक मन लगा कर कर देती है.

मगर आज तो घर उसे ही साफ करना पड़ेगा. नमिता ने बड़बड़ाते हुए चाय बना कर पी और फिर ?ाड़ू लगाने लगी, साथ ही म्यूजिक भी औन कर लिया.

म्यूजिक व डांस बस 2 ही तो शौक थे उस के, जिन्हें वह भरपूर जीना चाहती थी, परंतु हमेशा मनचाहा पूरा हो ही जाए ऐसा संभव तो नहीं. वैसे भी उस के डांस व म्यूजिक के शौक को उस के मिडल क्लास मांबाबूजी अहमियत ही कहां देते थे. उस के उम्र के 28 वसंत पूरा करते उन का एक ही टेप चालू रहता, शादी कर के घर बसा लो, इस बेकार की उछलकूद व गानेबजाने से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है. डांस ऐकैडमी से जब भी वापस आती, वही घिसापिटा रिकौर्ड चालू हो जाता. बहुत इरिटेट हो चुकी थी यह सब सुनसुन कर, शादीवादी कर के घर बसाने का कहीं दूर तक प्लान नहीं था उस की विश लिस्ट में, उसे तो बस डांस में ऐसा कुछ कर दिखाना था जो शायद अभी तक किसी ने न किया हो.

अपने इन्हीं सपनों को अंजाम देने के लिए ही लखनऊ से मुंबई आने का निर्णय कर लिया था नमिता ने मन में. मांबाबूजी को जब इस फैसले के बारे में बताया तो एकदम भड़क उठे थे कि पगला गई हो क्या, इतने बड़े शहर में अकेली रहोगी? कहीं कुछ ऊंचनीच हो गई तो लोगों को क्या मुंह दिखाएंगे हम लोग? घर वालों के विरोध के बावजूद उस ने अपना मुंबई का टिकट बुक कर लिया था. यहां मुंबई में उस की बचपन की दोस्त मिताली रहती थी. वह भी नमिता की तरह अकेली थी लेकिन उस के पास किसी मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छी जौब थी. अपने मुंबई आने की खबर नमिता ने मिताली को फोन पर दे दी थी.

मिताली उसे स्टेशन पर रिसीव करने आ गई थी. मिताली ने काफी गरमजोशी से उस का स्वागत किया. कुछ टाइम दोनों सखियों ने अगलीपिछली यादें ताजा कर के खूब मस्ती की.

‘‘अच्छा बता तेरा प्लान क्या है, इस तरह अचानक घर छोड़ कर आने का कुछ तो कारण होगा. मिताली ने पूछा.

‘‘हां प्लान तो एकदम सौलिड है. यू नो, बिना किसी प्लान के तो मैं एक कदम भी आगे नहीं रखती. तु?ो तो याद ही होगा कि स्कूल में जब भी कोई कल्चरल प्रोग्राम होता था तो मैं उस में हमेशा डांस में परफौर्मैंस देती थी और मेरे डांस को टीचर्स बहुत ऐप्रीशिएट भी करती थीं. बस तभी से डांस मेरा पैशन बन गया.

‘‘यहां मुंबई में रह कर एक डांस ऐकैडमी खोलने का विचार है परंतु पहले यहां रह कर इस क्षेत्र में कुछ अनुभव जमा कर लूं.’’

मिताली ने उसे हौसला दिया कि मुंबई में काम हरेक को जरूर मिल जाता है बस हौसला बुलंद होना चाहिए. इतना ही नहीं मिताली ने तो उसे कुछ ऐसे लोगों से भी मिलवा दिया जो उस की मदद कर सकते थे.

मुंबई आने के 2 महीने के बाद ही नमिता को एक डांस ऐकैडमी में डांस सिखाने का औफर मिल गया. पैकेज भी अच्छा था सो नमिता ने तुरंत जौइन कर लिया

आखिर मिताली पर कब तक बोझ बनी रहती. अत: नमिता ने इस बीच अपने लिए एक फ्लैट का भी जुगाड़ कर लिया. पहले जौब फिर फ्लैट का मिलना इन दोनों समस्याओं के दूर होते ही उस के आत्मविश्वास में भी कुछ इजाफा हो गया. वह खुश थी अपने मुंबई आने के निर्णय को ले कर.

बस कुछ ही दिन हुए थे उसे इस फ्लैट में शिफ्ट हुए. दुलारी के मिलने से  घर के काम की समस्या भी सुलझ गई थी.

आज के दिन की शुरुआत भी हर रोज की तरह डांस व म्यूजिक के धूमधड़ाके के साथ ही हुई. नमिता अपना मनपसंद म्यूजिक लगा कर डांस करने में मगन थी कि तभी उस के दरवाजे की घंटी बजी. इस समय कौन डिस्टर्ब करने चला आया बड़बड़ाते हुए दरवाजे तक आई. दरवाजा खोला तो सामने एक छोटा बच्चा खड़ा था जिस की उम्र करीब 3-4 साल के बीच की रही होगी, दरवाजा खुलते ही बोला, ‘‘आंटी प्लीज म्यूजिक का वौल्यूम थोड़ा कम कर लीजिए.

उस बच्चे के आंटी कहने से नमिता बुरी तरह चिढ़ गई थी, बच्चा झटपट सीढि़यां उतर गया था. नमिता ने अपनी ही धुन में म्यूजिक और तेज कर दिया, तभी डोरबेल फिर से बजी, गुस्से में भुनभुनाती हुई दरवाजे तक आई, दरवाजा खोलते ही उस का मुंह खुला का खुला रह गया, उस के सामने एक 32-35 की उम्र का शख्स खड़ा था.

जी, मैं कल रात को ही आप के नीचे वाले फ्लैट में शिफ्ट हुआ हूं, पूरी रात सामान जमाने में ही बीत गई, अब कुछ देर सोना चाहता हूं, अगर आप को कोई तकलीफ न हो तो म्यूजिक का वौल्यूम थोड़ा कम कर लीजिए प्लीज.

नमिता ने म्यूजिक तुरंत बंद कर दिया और सोफे पर आ कर बैठ गई, उस सख्स की आवाज अभी तक उस के कानों में गूंज रही थी, उस की आवाज का जादू व चेहरे का आकर्षण उसे अनजाने ही अपनी ओर खींचने लगा गुजरे हुए पल का रीकैप उस के दिमाग में किसी चलचित्र सा घूमने लगा.

पहले वह बच्चा अव यह आदमी, क्या इन के घर में कोई फीमेल मेंबर नहीं है, उस की उत्सुकता इस फैमिली के बारे में जानने की बढ़ती जा रही थी.

फिर दिमाग को झटका, हुंह मुझे क्या? सोफे से उठी, शेष काम निबटाए और एकेडमी जाने को तैयार होने लगी. परंतु उस का मन न जाने क्यों आज अंदर से खुशी महसूस कर रहा था, मन में विचारों की उठापटक बराबर चल रही थी. नमिता ने अपने मन में उठ रहे विचारों को विराम दिया और एकेडमी जाने को सीढि़यां उतरने लगी, सीढि़यां उतरते ही नीचे वाले फ्लोर पर पहुंचते ही उस के पैरों की रफ्तार थम सी गई, वही सख्स खड़ा अपने दरवाजे को लौक कर रहा था.

तेज म्यूजिक की वजह से आप की नींद डिस्टर्ब हुई, उस के लिए सौरी, एक्चुअली, मुझे पता नहीं था कि इस फ्लोर पर कोई रहने आया है, आगे से ऐसी गलती नहीं होगी. फिर नमिता कुछ देर वहीं खड़ी रही

शायद सामने वाला सख्स कुछ कहे, उस की सौरी के जवाब में, लेकिन कोई जवाब न मिलने पर नमिता ने देखा वह सख्स सीढि़यों की तरफ बढ़ रहा था कि नमिता ने टोका, ‘‘सुनिए आप का नाम जान सकती हूं. वह बिना रूके सीढि़यों की तरफ बढ़ने लगा, हां जातेजाते अपना नाम जरूर बता गया था, निखिल. नमिता को ?ाल्लाहट महसूस हुई, उस ने सोचा अजीव इंसान है, न हाय न हैलो, बस अपनी ही धुन में मगन. जानपहचान बढ़ाने की नमिता की उम्मीदों पर पानी फिर गया.

नमिता अपनी डांस एकेडमी के लिए निकल गई. डांस क्लास में पैर तो उस के डांस की ताल पर थिरक रहे थे, परंतु उसका मन तो एक नई ताल पर ही थिरक रहा था, उस के मन में उस सख्स को ले कर अजीब सी हलचल मची हुई थी.

शाम को नमिता घर लौटी तो सोसाइटी के नीचे बने कंपाउंड में कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे, नमिता कानों में ईयरफोन लगाए गाना सुनते हुए गेट तक पहुंची ही थी कि एक बौल तेजी से आई और उस के हाथ पर लगी. हाथ में पकड़ा उस का मोबाइल गिर कर टूट गया.

नमिता अपना टूटा मोबाइल फोन व बाल हाथ में ले कर जैसे ही बच्चों की तरफ मुड़ी तो सारे बच्चे डर कर भाग गये, बस एक छोटा सा बच्चा डरा सहमा सा हाथ में बैट पकड़े खड़ा था, नमिता ने गुस्से से उसे घूरा, कहां भाग गये तुम्हारे नाटी दोस्त. फिर उस ने ध्यान से उस बच्चे की तरफ देखा, ‘‘अरे, तुम तो वही हो न जो कल मेरे घर म्यूजिक का वौल्यूम कम करवाने आए थे.’’

चलो तुम्हारी मम्मी से तुम्हारी शिकायत करती हूं, नमिता ने उस बच्चे का हाथ पकड़ा और उस के घर ले जाने लगी, डरे सहमे बच्चे ने अचानक जोरजोर से रोना शुरू कर दिया और बैट पटक कर दौड़ता हुआ उसी बिल्डिंग में घुसा जहां नमिता रहती हैं.

जब नमिता पहले फ्लोर पर पहुंची तो देखा बच्चा, निखिल के दरवाजे के पास खड़े हो कर रो रहा था. नमिता को पास आते देख कर वह और जोरजोर से रोने लगा, बच्चे की रोने की आवाज सुन कर जैसे ही निखिल ने दरवाजा खोला बच्चा दौड़ कर उस से लिपट गया.

चिंटू बेटा क्या हुआ, किसी ने तुम को मारा है या किसी ने कुछ कहा है, ‘‘निखिल के बारबार पूछने पर उस ने नमिता की ओर इशारा किया, तब निखिल का ध्यान नमिता की ओर गया जो हाथ में अपना टूटा मोबाइल ले कर खड़ी थी.

माफ कीजिएगा, मैं ने आप को देखा नहीं, क्या आप को मालूम है कि चिंटू क्यों रो रहा है? निखिल ने नमिता से सवाल पूछा, परंतु नमिता तो कहीं और ही खोई हुई थी उस वक्त, शायद अपने दिल को कोस रही थी जो बिना सोचेसमझे एक ऐसे इंसान की ओर खिंचा चला जा रहा था, जो एक बच्चे का पिता था, जाहिर है किसी का पति भी होगा.

आई एम सौरी, आप का मोबाइल टूट गया है, क्या मैं इसे ठीक करने की कोशिश कर सकता हूं, तब तक आप मेरे पास जो एक नया सैट हैं उस से काम चला लीजिए, आप प्लीज बैठिए, हो सकता है मैं इसे अभी ठीक कर के आप को दे दूं.

नमिता ड्राइंगरूम में पड़े सोफे पर बैठ गई, उस की नजर दीवारों पर सजी ढेर सारी फोटोज पर पड़ीं, अधिकतर फोटो चिंटू व उस के पापा की ही थीं. नमिता के दिमाग की उलझन और बढ़ गई, बिना किसी लाग लपेट के उस ने निखिल की तरफ यह प्रश्न उछाल ही दिया, चिंटू आप का ही का बेटा है न और आप की वाइफ  नहीं है, बस निखिल ने छोटा सा जवाब पकड़ा दिया.

ओह, आई एम सौरी, वैसे क्या हुआ था उन्हें ‘‘नमिता, निखिल की पर्सनल लाइफ के पन्ने खंगालने की कोशिश कर रही थी.

नहींनहीं जैसा आप सम?ा रहीं हैं वैसा कुछ भी नहीं है, निखिल ने नमिता की सोच के घोड़ों को वही रोक दिया, ओह, आई एम सौरी अगेन ‘‘मुझे कुछ और ही लगा था, अच्छा शायद मायके गई हैं और चिंटू शायद स्कूल की छुट्टियां न होने के कारण उन के साथ नहीं जा पाया होगा,’’ पता नहीं क्यों नमिता निखिल के बारे में सबकुछ जान लेने को उत्सुक हो रही थी. उसे खुद भी समझ नहीं आ रहा था कि उस का मन निखिल की तरफ क्यों खिंचा चला जा रहा है. शायद इसे ही पहली नजर का प्यार कहते हैं.

तभी निखिल के स्वर ने उसे उस की सोच से बाहर निकाला, ‘‘मैं आप का मोबाइल रिपेयर करवा कर कल आप के पास पहुंचा दूंगा. बस, आप 1 मिनट रुकिए, मैं आप के लिए फोन ले कर आता हूं और चाय भी. चाय का तो टाइम भी हो चला है.’’

निखिल ने नमिता को फोन पकड़ाया और चाय बनाने किचन की ओर जाने लगा.

तभी नमिता की आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘जी, फोन के लिए शुक्रिया और परंतु चाय तो मैं सिर्फ अपने हाथ की ही बनाई हुई पीती हूं,’’ और फोन ले कर नमिता दरवाजे की तरफ बढ़ गईं. मगर उस के कदम उस का साथ नहीं दे रहे थे. उस के मन में निखिल के प्रति अजीब सा आकर्षण महसूस हो रहा था.

घर पंहुच घर जैसे ही फ्रैश हुई, मां का फोन आ गया, ‘‘कैसी हो बेटा? कोई जौब मिली या नहीं?’’

‘‘हां मां जौब भी मिल गई है और मैं ने यहां एक फ्लैट भी खरीद लिया है आप लोगों के आशीर्वाद से. सबकुछ बहुत अच्छा चल रहा है मां,’’ नमिता ने चहकते हुए कहा.

‘‘अरे बेटा जब सबकुछ ठीक है तो अब तो शादी के लिए सोचो.’’

‘‘हां मां मैं भी यही सोच रही थी.’’

‘‘तो हम लोग तुम्हारे लिए एक अच्छे घर, वर की तलाश करते हैं.’’

‘‘नहीं मां आप लोगों को परेशान होने की जरूरत नहीं है, मुझे लगता है मेरी पसंद का पार्टनर मु?ो मिल गया है.’’

‘‘यह क्या कह रही हो तुम? मुंबई जा कर तुम्हारे अंदर ऐसे कौन से सुरखाब के पर लग गए कि शादी जैसे मुद्दे का फैसला तुम खुद ही करने लगी. लड़का कौन है, किस जाति का है, उस का घर खानदान कैसा है आदिआदि बातें शादी के लिए जाननी जरूरी हैं.’’

‘‘अरे मेरी प्यारी मां, आप किस जमाने में जी रही हैं? आप के कितने सवाल हैं शादी को ले कर… आप की शादी तो नानाजी ने सबकुछ देख कर ही की होगी लेकिन जब से मैं ने होश संभाला है आप व बावूजी में आपसी मतभेद ही पाया है विचारों का. इंसान दिल का अच्छा होना चाहिए, जाति आदि आजकल कुछ माने नहीं रखता. अच्छा मां फोन रखती हूं, शायद चिंटू आ गया है. मुझे उसे ट्यूशन देनी है.’’

‘‘अब यह चिंटू कौन है?’’

‘‘चिंटू निखिल का बेटा है. अब आप पूछोगी कि यह निखिल कौन है? सो आप की जानकारी के लिए बता दूं कि निखिल मेरा होने वाला लाइफ पार्टनर है. हम लोग कई बार एकदूसरे से मिल चुके हैं. सच मां निखिल व चिंटू दोनों ही बहुत प्यारे हैं. आप भी जब उन दोनों से मिलोगी तो आप को भी उन से प्यार हो जाएगा.’’

‘‘तो क्या तुम अब 1 बच्चे के बाप से शादी करने की सोच रही हो?’’

‘‘अरे मां आजकल इंस्टैंट का जमाना है, जब सबकुछ मनचाहा मिल रहा हो तो बेवजह क्यों मीनमेख लिकालना.’’

‘‘जब तुम ने सबकुछ डिसाइड कर ही लिया है तो जो दिल में आए करो. वैसे भी आजकल की नई पीढ़ी के बच्चे बड़ों की सुनते ही कहां हैं.’’

सब से बड़ी बात निखिल बहुत कम बोलता है लेकिन उस की खामोशी उस की आंखों

से झलकती है. मैं ने उस की आंखों में अपने लिए प्यार देखा है.

नमिता निखिल से शादी करने का मन बना चुकी थी, बस उसे इंतजार था तो निखिल की हां का.

मां से बात कर के उस का मन हलका हो गया, जानती थी मांबाबूजी उस की पसंद को जरूर पसंद करेंगे.

1-2 छोटी सी मुलाकातों में ही निखिल उसे सदियों से जानापहचाना सा लग रहा था. उस रात नमिता की नींद पूरी तरह उड़ चुकी थी. पूरी रात वह सिर्फ निखिल के खयालों में ही खोई रही. यह जानते हुए भी कि निखिल शादीशुदा है और उस का 1 बेटा भी है, फिर भी उस के खयालों को अपने मन से दूर नहीं कर पा रही थी.

कई बार कुछ खास पल दिल व दिमाग दोनों को विचारों के ऐसे भंवर में बहां ले जाते हैं कि सहीगलत का ध्यान नहीं रहता.

नमिता भी सहीगलत की भी परवाह किए बिना उन पलों के साथ जीने लगी. नमिता की पूरी रात आंखों में ही बीती थी सो सुबह देर तक सोती रही. डोरबैल की आवाज से उस की नींद टूटी. शायद दुलारी होगी, यह सोचती हुई अलसाई सी उठी और दरवाजा खोला तो सामने निखिल को देखते ही नमिता की अधखुली आंखों में चमक आ गई, ‘‘अरे, गुडमौर्निंग, आप? आइए अंदर आइए,’’ नमिता ने आग्रह करते हुए कहा.

‘‘वह मैं आप का फोन लौटाने आया हूं,’’ निखिल ने साथ लाए मोबाइल को टेबल पर रखते हुए कहा, ‘‘अच्छा अब मैं चलता हूं, दरअसल, मुझे चिंटू के लिए एक ट्यूशन टीचर की तलाश है और औफिस भी जाना है.’’

निखिल वापस जाने को मुड़ा ही था कि नमिता का स्वर उस के कानों में पड़ा, ‘‘यदि मैं आप की यह समस्या हल कर दूं तो? यदि आप चाहें तो चिंटू को ट्यूशन मैं दे सकती हूं, मैं डांस ऐकैडमी से शाम 5 बजे तक वापस आ जाती हूं. उस के बाद खाली समय रहता है मेरे पास.’’

‘‘ठीक है चिंटू से कह दूंगा, आज शाम से ही आ जाएगा,’’ कह कर दरवाजे की तरफ मुड़ा.

‘‘अरे सुनिए, 1 कप चाय तो पीते जाइए.’’

‘‘जी, शुक्रिया, चाय तो मैं भी सिर्फ अपने हाथ की ही बनाई हुई पसंद करता हूं.’’

चिंटू रोज शाम को ट्यूशन के लिए आने लगा और कुछ ही दिनों में नमिता के साथ घुलमिल भी गया. एक दिन ट्यूशन के बाद नमिता ने चिंटू से पूछ ही लिया, ‘‘क्या तुम्हें अपनी मां की याद नहीं आती?’’

तब चिंटू ने कहा कि उस ने तो अपनी मां को कभी देखा ही नहीं है. यह जान कर नमिता के मन की उल?ान और बढ़ गई.

चिंटू के पास घर की एक चाबी रहती थी. वह नमिता के यहां जाते समय लैच खींच कर दरबाजा बंद कर देता और ट्यूशन से वापस आ कर ताला खोल कर घर के अंदर आ जाता. निखिल ने चिंटू को अच्छी तरह समझा दिया था कि घर से बाहर निकलते समय चाबी हमेशा अपने साथ रखनी है ताकि वापस आने पर दरवाजा खोल सके.

एक दिन चिंटू चाबी साथ लिए बिना ही बाहर निकला और लैच खींच कर दरवाजा बंद कर दिया. ट्यूशन से वापस जब दरवाजा खोलना चाहा तो एहसास हुआ कि चाबी तो आज उस से घर के अंदर ही छूट गई है. वापस नमिता के घर गया और सारी बात बताई.

नमिता ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं, जब तक तुम्हारे पापा नहीं आते तुम यहीं मेरे घर पर रहो.’’

उस दिन निखिल को भी औफिस से आने में काफी देर हो गई. साथ ही आज वह अपने पास की चाबी भी औफिस में ही भूल आया. निखिल के औफिस से आ कर कई बार डोरबैल बजाने के वाबजूद जब चिंटू ने दरवाजा नहीं खोला तो उस ने नमिता को फोन किया तो मालूम हुआ कि चिंटू भी आज घर की चाबी घर के अंदर ही भूल गया है. अत: मेरे यहां ही सो गया है.

‘‘नमिता मैं चिंटू को लेने आ रहा हूं, हम आज रात किसी होटल में रुक जाएंगे.’’

चिंटू काफी गहरी नींद में था. निखिल के बहुत कोशिश करने पर भी जब नहीं उठा तो नमिता ने चिंटू को जगाने की कोशिश करते हुए निखिल का हाथ पकड़ लिया और कहा इसे यहीं सोने दीजिए.

‘‘ठीक है मैं भी यहीं टैरस पर सो जाता हूं, वैसे भी ठंड ज्यादा नहीं है,’’ निखिल ने अपना हाथ छुड़ाया और टैरस पर चला आया.

निखिल को नींद नहीं आ रही थी. पता नहीं ठंड के कारण या मन में घुमड़ते नमिता के बारे में सोचते खयालों के कारण. वह टैरस पर ही टहलने लगा. तभी उस ने देखा सामने नमिता खड़ी थी हाथ में चादर ले कर, ‘‘ठंड इतनी भी कम नहीं हैं, इस की जरूरत पड़ेगी,’’ चादर पकड़ा कर नमिता जैसे ही वापस जाने को मुड़ी निखिल के स्वर ने उसे रोक लिया.

निखिल टैरस की जमीन पर बैठ गया. नमिता भी उस से कुछ दूरी पर बैठ गई. निखिल ने बोलना शुरू किया, ‘‘तुम चिंटू की मां के बारे में जानना चाहती थी न, तो सुनो, वह मुझ से उम्र में कई साल बड़ी थी, प्यार हुआ, घर वालों के विरुद्ध जा कर हम दोनों ने शादी कर ली, सबकुछ ठीक ही चल रहा था, हम दोनों बहुत खुश थे, लेकिन जब चिंटू आने वाला था, तब अचानक सबकुछ बदल गया. वह खुश नहीं थी, चिंटू के आने की खबर जान कर, शायद वह तैयार नहीं थी इस सब के लिए. जिंदगी उसे कैद लगने लगी थी. मैं ने उसे बहुत सम?ाया लेकिन नाकाम रहा.

‘‘जिस दिन चिंटू का जन्म हुआ, मैं बहुत खुश था परंतु वह कुछ परेशान सी लग रही थी. जब हौस्पिटल से डिस्चार्ज मिला तो घर आने तक एकदम नौर्मल लग रही थी. औफिस से अर्जेंट कौल आने पर मु?ो कुछ देर के लिए औफिस जाना पड़ा. जब लौट कर आया तो वह घर छोड़ कर जा चुकी थी. हां, जाने से पहले एक पत्र जरूर छोड़ा था कि मुझे वापस लाने की कोशिश मत करना प्लीज. कुछ सालों बाद पता चला कि उस ने शादी कर ली है और विदेश में सैटल है अपने ने पति के साथ.

‘‘उम्र चाहे कितनी भी हो, जीवनसाथी का जाना लाइफ में खालीपन लिख ही जाता है, काम नहीं रुकते, मौसम भी बदलते हैं, दिनरात आतेजाते हैं रोज की तरह लेकिन जिंदगी का सूनापन काटे नहीं कटता.

‘‘हां चिंटू तुम से काफी घुलमिल गया है, हमेशा तुम्हारी ही बातें करता है, शायद आप में वह अपनी मां की छवि महसूस करता है. मैं चिंटू को ले कर कहीं बाहर भी नहीं जा पाता. अब 2 दिनों की छुट्टी आ रही है सोचा है कहीं बाहर घूमने का प्रोग्राम बना लूं, क्या आप भी हमारे साथ चलना पसंद करोगी?’’

‘‘अरे वाह, आप ने तो मेरे दिल की बात कह दी, मैं भी अकेले कहीं नहीं जा पाती हूं.’’

‘‘तो फिर ठीक है हम लोग यहां पास में एक पिकनिक सौपट है वहीं चलते हैं, लंच बाहर से और्डर कर देंगे, शाम तक वापस आ जाएंगे, ठीक रहेगा न?’’

दूसरे दिन चिंटू, निखिल व नमिता सुबह ही निकल गए. घर से बाहर आने पर चिंटू बेहद खुश था. निखिल व नमिता ने भी खूब गप्पों कीं. इस बीच दोनों ने एकदूसरे की पसंदनापसंद के बारे में भी जाना. निखिल ने पूछा, ‘‘अब आगे आप का क्या प्लान है?’’

‘‘हां आप ने एकदम सही प्रश्न किया, मांबाप शादी के लिए दबाव बना रहे हैं. चिंटू से मिलती हूं तो मेरे दिल में भी इस बात का खयाल आता है कि घरपरिवार का सुख अलग ही होता है. पैसे से इस कमी को पूरा नहीं किया जा सकता.’’

मगर परिवार पूरा तो पतिपत्नी व बच्चों से होता है, सोचता हूं चिंटू के लिए नई मां ले ही आऊं. क्या आप इस में मेरी मदद करेंगी?’’

‘‘यह सुन कर नमिता के दिल की धड़कनें तेज हो गईं. अपनी धड़कनों पर काबू पाते हुए उस ने पूछा, ‘‘मैं भला इस में आप की मदद किस तरह कर सकती हूं?’’

‘‘चिंटू की मां बन कर,’’ कह कर निखिल कुछ देर चुप रहा नमिता के जबाव के इंतजार में.

कुछ पलों के बाद नमिता ने ही चुप्पी तोडी, ‘‘ठंड बढ़ती जा रही है. मेरे हाथों की चाय पीएंगे?’’

‘‘हां अब तो रोज चलेगी तुम्हारे हाथों की चाय,’’ कहते हुए निखिल ने नमिता की हथेली अपने हाथों में भींच ली. नमिता ने भी उस के कंधे पर अपना सिर टिका दिया.

Hindi Love Stories : लव ट्राइऐंगल

Hindi Love Stories : आज निकिता लाइट पिंक कलर के वनपीस में कमाल की लग रही थी. टपोरी अंदाज में कहूं तो एकदम माल लग रही थी. उसे देखते ही मेरा दिल किया कि मैं एक रोमांटिक सा गाना गाऊं. वह मुसकराती हुई मेरे घर के अंदर घुसी और

मुझे आंख मारते हुए सुषमा के कमरे की तरफ बढ़ गई.

मेरे दिल के अरमान मचल उठे. मैं उस पर फिट बैठता कोई गाना सोचने लगा कि तब तक सुषमा उस का हाथ थामते हुए गुनगुना उठी, ‘‘बड़ी सुंदर लगती हो. बड़ी अच्छी दिखती हो…’’

निकिता ने भी तुरंत गाने की लाइनें पूरी कीं, ‘‘कहते रहो, कहते रहो अच्छा लगता है. जीवन का हर सपना अब सच्चा लगता है…’’

मुझे लगा जैसे मेरे अरमानों की जलती आग पर किसी ने ठंडे पानी की बौछार कर दी हो और मैं अपने मायूस हो चुके मासूम दिल को संभालने की नाकाम कोशिश कर रहा हूं.

दरअसल, निकिता मेरी दोस्त है. दोस्त नहीं बल्कि प्रेमिका है ऐसा वह खुद कई बार कह चुकी है और वह भी मेरी पत्नी सुषमा के आगे. मगर मैं यह देख कर दंग रह जाता हूं कि सुषमा को निकिता से कभी कोई जलन नहीं हुई. उलटा निकिता मुझ से कहीं ज्यादा सुषमा से क्लोज हो चुकी थी यानी हम तीनों का रिश्ता एक तरह का लव ट्राइऐंगल बन गया था जहां एक कोने में मचलते दिल को लिए मैं खड़ा हूं, दूसरे कोने में मेरी बीवी सुषमा और बीच में है हम दोनों की डार्लिंग निकिता. अब आप ही कहिए यह भी भला कोई लव ऐंगल हुआ?

शुरूशुरू में जब निकिता को मैं ने औफिस में देखा था तो एकदम फिदा हो गया था. उस का अपने घुंघराले बालों में बारबार हाथ फेरते हुए लटों को सुलझना, हर समय मुसकराते हुए बातें करना, बड़ीबड़ी आंखों से मस्ती भरे इशारे करना, बेबाक अंदाज से मिलना सबकुछ बहुत अच्छा लगता था.

1-2 मुलाकातों में ही हम काफी फ्रैंडली हो गए थे. उस वक्त मैं ने उसे यह नहीं बताया था कि मैं शादीशुदा हूं. मैं यह बात छिपा कर उस के करीब जाने की कोशिश में था. हमारी वाइब्स मिलती थीं इसलिए बहुत जल्दी वह मेरे साथ बाहर निकलने लगी. हम साथ में मूवी देखने जाते, घूमतेफिरते, बाहर खाना खाते. मेरे लिए वह मेरी प्रेमिका बन गई थी मगर उस के लिए मैं क्या था आज भी सम?ा नहीं आता. मैं अकसर उस से फ्लर्ट करता था. वैसे इस काम में वह खुद मुझ से आगे थी. जानेअनजाने वह अकसर मु?ो हिंट देती कि वह भी मुझे  चाहने लगी है.

उस दिन शाम में वह मेरे कैबिन में आई थी. हाथों में एक गुलाब का फूल और बड़ा सा गिफ्ट पैक लिए. मैं ने उस की तरफ देखा तो मुसकराते हुए उस ने मुझे गुलाब का फूल दिया. मेरा दिल खुशी से बागबाग हो उठा. मैं खयाली पुलाव बनाने लगा कि लगता है यह मुझे वाकई प्यार करने लगी है. मैं सोचने लगा कि क्या इसे सुषमा के बारे में बता दूं या नहीं? क्या शादीशुदा होने की बात सुन कर निकिता मुझ से दूर हो जाएगी?

मैं अभी सोच ही रहा था कि उस ने मुझे गले लगाते हुए कहा, ‘‘हैप्पी मैरिज ऐनिवर्सरी माई लव.’’

मेरे दिलोदिमाग में एक धमाका सा हुआ. एक तरफ माई लव सुन कर दिल की कलियां खिलीं तो वहीं मैरिज ऐनिवर्सरी सुन कर समझ आया कि इसे तो सब पता है.

मैं बस इतना ही कह सका, ‘‘तुम्हें कैसे पता?’’

‘‘पता तो हो ही जाता है मेरी जान. तुम बस यह बताओ कि पार्टी कब दे रहे हो? घर में या बाहर? सुषमा के साथ या उस के बिना?’’

‘‘तो तुम सुषमा से भी मिल चुकी हो?’’ मैं ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘अरे नहीं. तुम ने मिलाया कहां अब तक?’’ वह हंसती हुई बोली.

‘‘ओके फिर आज रात घर पर पार्टी.’’

मैं पूरा वाक्य भी नहीं बोल पाया था. शब्द गले में अटक कर रह गए थे. कहां तो मैं प्यारव्यार के सपने देख रहा था और कहां उस ने मुझे हकीकत के फर्श पर ला पटका जहां एक अदद पत्नी मेरा इंतजार कर रही थी. निकिता गिफ्ट पैक थमा कर चली गई और मैं एक वफादार पति की तरह सुषमा को फोन करने लगा. सुबह मैं सुषमा को विश करना जो भूल गया था.

सुषमा से मैं ने निकिता के बारे में बता दिया कि वह शाम में घर आ रही है. सुषमा ने पार्टी की तैयारी कर ली. शाम में निकिता मेरे साथ ही मेरे घर आ गई. यहीं से सुषमा और निकिता की दोस्ती की शुरुआत हुई थी. आज इस दोस्ती ने अपने पर काफी ज्यादा फैला लिए थे.

मैं जब भी सुषमा से निकिता की बात करता तो वह उस की तारीफ करते न थकती. पहले मु?ो लगता था कि सुषमा को मेरी और निकिता की दोस्ती को ले कर मन में सवाल होंगे या शक का कीड़ा कुलबुलाएगा मगर ऐसा कुछ नहीं था. उलटा वह तो कई दफा मजाक के अंदाज में मुझे और निकिता को ले कर बातें भी बनाया करती थी. मसलन, एक बार एक औफिस प्रोजैक्ट के सिलसिले में मुझे और निकिता को इलाहाबाद जाना पड़ा था. हम दोनों कैब से गए और वहां एक दिन रुके भी थे. वैसे तो हमारे लिए 2 अलगअलग कमरों की व्यवस्था की गई थी मगर उस बात को ले कर बाद में सुषमा ने कई दफा मस्ती में कहा कि क्या पता तुम दोनों उस रात एक ही कमरे में रहे होंगे. कोई और तो वहां था नहीं.. जरूर बात आगे बढ़ी होगी और बढ़नी भी चाहिए. एक खूबसूरत लड़की और एक नौजवान दिल एकसाथ होंगे तो…

वह बात आधी छोड़ कर जाने क्या जताना चाहती थी. मगर उस के चेहरे पर कभी शिकवा नहीं होता था बल्कि प्यार होता था मेरे लिए भी और निकिता के लिए भी.

कई दफा निकिता भी सुषमा के आगे मुझ से फ्लर्ट करने लगती. कभी कहती कि बड़े हौट लग रहे हो. कभी कहती आज रात यहीं तुम्हारे पास रुक जाती हूं तो कभी मेरे बनाए खाने की तारीफ करती हुई कहती कि बस तुम मिल जाओ मुझे पति परमेश्वर के रूप में तो मजा आ जाए. मैं दोनों के बीच बस मुस्कुरा कर रह जाता.

एक दिन तो हद ही हो गई. होली की वजह से 3-4 दिनों की छुट्टी थी. मैं देर तक सोता रहा. फिर सो कर उठा तो देखा सुषमा कहीं बाहर गई हुई थी. मैं घर पर बोर हो रहा था. निकिता हमारे घर से ज्यादा दूर नहीं रहती. मैं ने सोच क्यों न उसे ही बुला लूं. कुछ हंसीमजाक होगा तो दिल लग जाएगा.

मैं ने उसे कौल की, ‘‘क्या कर रही हो डियर? आज सुषमा नहीं है घर में. तुम आ जाओ बातें करेंगे कुछ इधरउधर की,’’ मेरे दिल में फुलझाडि़यां फूट रही थीं.

वह हंसती हुई बोली, ‘‘मैं तो अभी बहुत व्यस्त हूं. पहले गोलगप्पे और फिर छोलेकुलचे खाने हैं. वैसे आप की मैडम के साथ ही हूं. हम दोनों फुल ऐंजौय कर रहे हैं. अभी शाम तक शौपिंगवौपिंग कर के ही लौटेंगे.’’

‘‘अच्छा मगर तुम लोग हो कहां?’’ मैं ने मन मसोस कर पूछा.

‘‘अरे यार हम सिटी मौल में हैं. मन नहीं लग रहा तो आ जाओ तुम भी. तीनों मिल कर…’’

‘‘नहींनहीं तुम दोनों ऐंजौय करो. मुझे कहीं जाना है,’’ कह कर मैं ने फोन रख दिया और अपना सा मुंह बना कर सोचने लगा कि ये दोनों तो अब एकदूसरे के साथ इतनी क्लोज हो गई हैं कि मैं ही बीच में से निकल गया.

सुषमा भी कम नहीं थी. एक बार 3 छुट्टियां एकसाथ पड़ीं तो हम ने ऋ षिकेश घूमने जाने का प्लान बनाया.

मैं अभी टिकट्स बुक करने की सोच ही रहा था कि सुषमा ने टोका, ‘‘क्या हम दोनों के ही टिकट बुक कर रहे हो?’’

‘‘हां और क्या? तुम्हें किसी और को भी लेना है साथ में?’’ मैं ने पूछा.

वह मुसकराती हुई बोली, ‘‘निकिता को ले लेते हैं.’’

‘‘क्या? मगर उसे क्यों साथ ले जाना

चाहती हो?’’

‘‘इस में हरज ही क्या है? मजेदार लड़की है. मन लगेगा वरना तुम्हारे साथ तो मैं बोर ही हो जाती हूं.’’

‘‘फिर ऐसा करो, तुम उसी के साथ चली जाओ,’’ मैं ने चिढ़ कर कहा.

‘‘अरे तुम्हें समस्या क्या है? तुम्हारी भी

तो दोस्त है न और वह भी खास वाली. मुझे तो लगा था तुम्हें खुशी होगी मगर तुम तो नाराज

हो गए.’’

‘‘मेरी खास दोस्त है या नहीं वह मैं नहीं जानता. मगर तुम्हारी कुछ ज्यादा ही खास दोस्त बन चुकी है यह जरूर नजर आता है,’’ मैं ने अपने मन की भड़ास निकालते हुए कहा.

‘‘हां बिलकुल. मुझे इनकार नहीं. अगर वह लड़का होती तो पक्का मेरी डार्लिंग होती,’’ कह कर वह हंस पड़ी.

मुझे समझ नहीं आया कि क्या सुषमा मुझे ताने मार रही है या वाकई वह उसे इतना

पसंद करने लगी है. शायद मुझे यह जलन भी होने लगी थी कि सुषमा और निकिता मेरे लिए आपस में लड़ने के बजाय एकदूसरे की डार्लिंग बन चुकी थीं.

चलिए निकिता की सुषमा से नजदीकियां तो मैं फिर भी सह सकता था मगर आजकल

कोई और भी निकिता पर लाइन मारने लगा था और यह मुझे बरदाश्त नहीं था.

दरअसल, एक नया लड़का तन्मय औफिस में आया था. वह शादीशुदा था मगर उसे निकिता में ज्यादा ही इंटरैस्ट डैवलप होने लगा था. तन्मय वैसे हम दोनों का सीनियर बन कर आया था मगर मेरी

नजर में वह मेरा जूनियर था. एक तो उस की उम्र मु?ा से कम थी, उस पर उस से ज्यादा ऐक्सपीरियंस मेरे पास था. वह बौस के किसी दोस्त का लड़का था इसलिए औफिस में उसे थोड़ी सीनियर पोस्ट दी गई थी.

1-2 दिन मैं ने देखा कि वह निकिता के ज्यादा ही करीब हो कर हंसीमजाक की बातें कर रहा था. सिर्फ निकिता ही नहीं उसे मैं ने औफिस की 1-2 और लड़कियों के साथ भी ज्यादा ही घुलमिल कर बातें करते देखा था.

मैं ने अपना गुस्सा निकिता के आगे निकालते हुए कहा, ‘‘यह तन्मय मुझे सही लड़का नहीं लगता. आते ही सारी लड़कियों से फ्लर्ट करने में लगा है जबकि शादीशुदा है वह.’’

‘‘अरे बाबा मैं सब जानती हूं. तुम क्यों टैंशन ले रहे हो?’’ निकिता ने जवाब दिया.

‘‘बस तुम्हें आगाह कर रहा था. उस के जाल में फंसना नहीं.’’

‘‘अच्छा तो मैं क्या कोई मछली हूं कि वह जाल फेंकेगा और मैं फंस जाऊंगी?’’

‘‘नहीं ऐसी बात नहीं. बस तुम्हें ले कर थोड़ा सैंसिटिव हूं. तुम्हें ?ांसे में ले कर चोट न पहुंचाए इसलिए…’’

मेरी बात बीच में काटते हुए वह बोली, ‘‘अरे यार मुझे उस से कैसे निबटना है, कब

सीमा दिखानी है, क्या बात करनी है, कैसे

हैंडल करना है यह सब मु?ा पर छोड़ दो. मेरी जिंदगी है न,’’ कह कर उस ने मुझे कुछ अजीब नजरों से देखा.

मैं सकपका गया, ‘‘हां बिलकुल. सौरी,’’ कह कर मैं वहां से चला आया.

दिल में देर तक बेचैनी बनी रही. ऐसा लगा जैसे कुछ टूट गया है. शायद मैं ज्यादा ही सोच रहा था. वह तो केवल एक अच्छी दोस्त है. सच में ऐसा ही तो था. वैसे भी आज शायद निकिता ने मुझे मेरी सीमा दिखा दी थी. सही भी है उस की जिंदगी में दखल देने का हक भला मुझे कहां था.

Hindi Love Stories : वादा रहा प्यार से प्यार का

Hindi Love Stories : आर्या आजकल अजीब ही बिहेव करने लगी है. कुछ पूछो तो कैसे इरिटेट हो कर जबाव देती है. पहले ऐसी नहीं थी वह. पहले तो कितनी हंसमुख और चुलबुली हुआ करती थी. मगर अब तो जैसे वह हंसनामुसकराना ही भूल गई है. न किसी से मिलतीजुलती है, न ही किसी का फोन उठाती है. उस के दिमाग में पता नहीं क्या चलता रहता है. उसे लगता है उस के पीठ पीछे लोग बातें बनाते होंगे. कितना समझाया उसे कि ऐसा कुछ भी नहीं है, तू बेकार में कुछ भी सोचती है. लेकिन कहती है, तू नहीं समझेगी. अब क्या समझूं मैं. हद है अब तो मुझ से भी ठीक से बात नहीं करती. फोन करो तो एक छोटा सा मैसेज छोड़ देती है ‘कुछ अरर्जैंट है?’

अरे, अब अरजैंट होगा तभी कोई किसी से बात करेगा क्या? इसलिए फिर मैं ने भी उसे फोन करना छोड़ दिया. तब एक दिन उस ने खुद ही मुझे कौल की और सौरी बोल कर रोने लगी. दया भी आई उस पर. कहने लगी कि उस के मम्मीपापा भी उस से ठीक से बात नहीं करते. कोई नहीं समझता उसे. कम से कम मैं तो उसे समझूं. लेकिन बहन तूने ही तो किनारा कर लिया हम से, तो कैसे समझूं और समझाऊं तु, मन किया बोल दे. पर लगा जब इंसान का मूड अच्छा नहीं होता है तो अच्छी बातें भी बुरी लगती हैं. इसलिए कुछ नहीं बोला और उस की ही सुनती रही. अरे, वही सब बातें और क्या कि उस ने मेरे साथ ऐसा किया, वैसा किया वगैरहवगैरह.

और क्या मैं आर्या के मम्मीपापा को नहीं जानती? बहुत अच्छे इंसान हैं वे लोग. देखा है मैं ने वे अपनी बेटी को कितना प्यार करते हैं. लेकिन उसे लगता है कि उस के मम्मीपापा भी उसे नहीं समझते. उस का कोई दोस्त भी उसे नहीं समझाता. अरे, पहले तुम खुद को तो समझ लो, खुद से प्यार करो, खुश रहने की कोशिश करो तो खुशियां अपनेआप तुम्हारे दामन में भर जाएंगी. मगर मेरी बात समझाने के बजाय उलटे कहेगी कि लोगों के लिए फिलौसपी झड़ना बहुत आसान है. लेकिन जिस पर गुजरती है वही जानता है.

वैसे कह तो सही ही रही है वह कि जिस पर गुजरती है वही जानता है. बेचारी का समय ही खराब चल रहा है. पहले तो बौयफ्रैंड से उस का ब्रेकअप हो गया और उस के बाद उस की जौब पर भी आफत आ गई. खैर, जौब तो दूसरी लग गई, लेकिन बौयफ्रैंड से ब्रेकअप का दर्द वह भुला नहीं पा रही है. कहती है, बहुत अकेलापन महसूस होता है. कुछ अच्छा नहीं लगता. लगता है मर जाऊं.

‘‘पागल, ऐसे क्यों बोल रही है तू?’’ मैं ने उसे समझने की कोशिश की, ‘‘एक ब्रेकअप ही तो हुआ है. ऐसा कौन सा तूफान आ गया तेरे जीवन में जो तू अपनी जान देने की बात कर रही है? अपने मांपापा के बारे में तो सोच कि तुम्हारे बिना उन का क्या होगा?’’

मेरी बात पर आर्या सिसकने लगी फिर कहने लगी, ‘‘मेरी क्या गलती थी? यही न की मैं ने उस लड़के से प्यार किया? लेकिन उस ने मेरे प्यार के बदले धोखा दिया.’’

‘‘अरे तो अच्छा ही हुआ न जो समय रहते तुझे उस की असलियत मालूम पड़ गई? चल, अब अपने आंसू पोंछ और हंस दे एक बार,’’ लेकिन उस ने तो मेरा फोन ही काट दिया. मैं ने भी फिर उसे यह सोच कर फोन नहीं किया कि रो लेने देते हैं उसे. मन हलका हो जाएगा तो खुद ही फोन करेगी.

मैं खुशी उस के बचपन की दोस्त. हम ने एक ही स्कूल से पढ़ाई पूरी की है और कालेज भी साथ ही कंप्लीट किया. जहां उस ने आर्किट्रैक्चर बनना चुना, वहीं मैं ने ग्रैजुएशन के बाद एमबीए कर एक बड़ी कंपनी में जौब ले ली. आर्या और मेरी दोस्ती इतनी पक्की है कि हम कहीं पर भी रहें पर एकदूसरी के टच में होती हैं. आज भी हम एकदूसरे से अपनी छोटी से छोटी बात भी शेयर करती हैं.

आर्या के प्यार के बारे में भी मुझे 1-1 बात पता है कि वह और उस का बौयफ्रैंड धु्रव कब और कैसे मिले, कैसे उन की दोस्ती हुई और फिर कैसे उन की दोस्ती प्यार में बदल गई. यह भी बताया था आर्या ने कि उस ने नहीं बल्कि ध्रुव ने ही उसे प्रपोज किया था. वैसे इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि किस ने किसे पहले प्रपोज किया. धु्रव कोडिंग में है. महीने के वह डेढ़ से 2 लाख रुपए कमाता है. ऊपर से वह अपने मातापिता का एकलौता बेटा है. बहुत ही अमीर परिवार से है. पैसों की कोई कमी नहीं है उस के पास.यह सब आर्या ने ही मुझे बताया था. वैसे आर्या भी कोई ऐसेवैसे परिवार से नहीं है. उस के पापा एक सफल बिजनैसमैन हैं. आर्या खुद आर्किटैक्ट है. महीने के वह भी लाख रुपए से कम नहीं कमाती है. उस का एक छोटा भाई भी है जो बैंगलुरु में मैडिकल की पढ़ाई कर रहा है.

आर्या मुझे फोन पर बताती रहती कि उस की और धु्रव की लवलाइफ कितने मजे से चल रही है. कैसे दोनों छुट्टियों में लौंग ड्राइव पर निकल पड़ते हैं. धु्रव उसे खूब शौपिंग करवाता है. महंगेमहंगे गिफ्ट देता है. वह अपने और धु्रव के फोटो भी शेयर करती मुझ से और मैं ध्रुव को ले कर उसे छेड़ती तो वह शरमा कर ‘धत’ बोल कर फोन रख देती थी. यह भी बताती कि जब कभी उस में और धु्रव में किसी बात को ले कर बहस हो जाती है और वह रूठ कर बैठ जाती है तो धु्रव ही उसे मनाने आता है भले ही गलती आर्या की हो. दीवानों की तरह वह उस के आगेपीछे तब तक डोलता जब तक आर्या उसे माफ नहीं कर देती.

सच कहूं तो कभीकभी तो मुझे आर्या से जलन होने लगती थी कि उसे धु्रव जैसा प्यार करने वाला इतना अच्छा जीवनसाथी मिला. इतने अच्छे पेरैंट्स, जिन्होंने धु्रव और उस के रिश्ते पर अपनी मुहर लगा दी. और क्या चाहिए उसे जीवन में? सबकुछ तो मिल गया उसे.

दिन इसी प्रकार हंसीखुशी बीत रहे थे हमारे. रोज हम फोन पर कुछ देर बात करते और फिर फोन करने का वादा कर अपनीअपनी दिनचर्या में व्यस्त हो जाते थे. एक रोज रात के 2 बजे आर्या का फोन आया. बहुत परेशान लग रही थी. पूछने पर कहने लगी, ‘‘अब धु्रव उसे पहले जैसा प्यार नहीं करता.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ? लड़ाई हुई क्या तुम दोनों के बीच?’’

मेरी बात पर वह बोली, ‘‘नहीं, कोई लड़ाई नहीं हुई. लेकिन इधर कुछ दिनों से बेवजह ही धु्रव मुझ से खीजने, ऊबने लगा है. मेरी जिन अदाओं पर वह कभी री?ा उठता था, वही अब उसे बोरिंग लगने लगी हैं. एक दिन में 20 बार फोन करने वाला धु्रव अब मुझे 2-2 दिनों तक फोन नहीं करता. पूछने पर दोटूक जबाव देता है कि उसे और कोई काम नहीं है क्या? बातबात पर अब मुझे झिड़कने लगा है.’’

‘‘तो तू पूछती क्यों नहीं कि वह ऐसा क्यों कर रहा है?’’

मेरी बात पर वह बोली, ‘‘पूछा तो उस ने सारी बातें खोल कर रख दी और कहा कि उस के औफिस में उस के साथ काम करने वाली एक लड़की कनक से उसे प्यार हो गया और वह उस से शादी करना चाहता है.’’

‘‘क्या ऐसा कहा उस ने तुम से? नहींनहीं यह नहीं हो सकता है वह तुम से मजाक कर रहा होगा.’’

मेरी बात पर वह सिसक पड़ी और कहने लगी, ‘‘नहीं यह कोई मजाक नहीं है. सच में धु्रव की जिंदगी में कोई और लड़की आ गई है और वह उस से शादी करना चाहता है.’’

‘‘अरे, बड़ा ही दोगला इंसान निकला वह,’’ गुस्सा आ गया मुझे कि प्यार किसी और से और शादी किसी और से.

आर्या फिर कहने लगी, ‘‘यह बात सुन कर उसे लगा जैसे किसी ने मेरे दिल पर हजारों मन का पत्थर रख दिया हो. मुझे लगा मैं चक्कर खा कर वहीं पर गिर पड़ूंगी. लेकिन मैं ने खुद को संभाला और सवाल किया कि उसे शादी के सपने दिखाने के बाद आज वह ऐसा कैसे कह सकता है कि उसे किसी और लड़की से प्यार हो गया और वह उस से शादी करना चाहता है? अब मैं ने अपने मांपापा को क्या जबाव दूंगी? क्या कहेगी कि जिस लड़के पर मैं ने खुद से ज्यादा भरोसा  किया, उस ने ही मुझे धोखा दे दिया? उस पर ध्रुव ने पता है क्या कहा? कहा कि वह उसे भी साथ रखना चाहता है, प्रेमिका बना कर. ‘‘प्रेमिका या रखैल?’’ चीख पड़ी थी मैं. उस रोज घिन्न हो आई थी मुझे ध्रुव से. उस के दिए सारे उपहार, कार्ड्स, जला दिए और उस का फोन नंबर भी अपने फोन से डिलीट कर दिया. अपना ट्रांसफर भी दूसरे शहर में करवा लिया ताकि कभी धु्रव का मुंह न देखना पड़े.’’

ब्रेकअप के बाद आर्या बिलकुल ही बदल गई. वह पहले जैसी रही ही नहीं क्योंकि लोगों पर से उस का विश्वास जो उठ गया. सारे रिश्तेनाते, दोस्त उसे छलावा लगने लगे. इसलिए उस ने सब से बात करना ही छोड़ दिया. चिड़चिड़ी और उदास रहने लगी थी वह. कभी चीखतीचिल्लाती, तो कभी रो कर शांत पड़ जाती. सोचती हूं, अगर मैं आर्या की जगह होती न तो बताती उस धु्रव के बच्चे को. ऐसा मजा चखाती उसे कि फिर किसी से प्यार करना ही भूल जाता. ऐसे लोग आखिर समझाते क्या है लड़कियों को? हाथ का खिलौना? जब मन किया खेल लिया वरना फेंक दिया. प्यार का नाटक करता रहा आर्या से और सगाई कर ली किसी और से. ऐसा कैसे कर सकता है कोई किसी के साथ? और यह बेचारी आर्या… उस के साथ शादी के सपने ही देखती रह गई.

अभी परसों जब उस ने मुझ से वीडियो कौल पर बात की, तो उसे देख कर मैं शौक्ड रह गई. उस के चेहरे पर जगहजगह रिंकल्स दिखाई देने लगी थीं. उस का गोरा रंग मलिन पड़ गया था. अभी इतनी तो उम्र नहीं हुई है उस की जो चेहरे पर रिंकल्स दिखाई पड़ने लगें. सिर्फ 25 की तो है अभी. लेकिन टैंशन, डिप्रैशन के कारण उस ने खुद को ऐसा बना लिया है. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं अपनी दोस्त के लिए ऐसा क्या करूं जिस से उस के चेहरे पर खुशी लौट आए?

फिर मेरे दिमाग में एक आइडिया आया. मैं ने उसी वक्त उसे फोन लगाया और फिर अपने स्कूल के सारे पुराने दोस्तों से भी बात की. प्लान बना कि हम सब किसी हिल स्टेशन पर घूमने चलेंगे और सारी पुरानी यादें ताजा करेंगे? सब के टाइम का खयाल रखते हुए हम ने कहीं अच्छी शांत जगह पर एक बढि़या सा ‘होम स्टे’ कौटेज में छुट्टी मनाने का प्लान बनाया. लेकिन यह बात हम ने आर्या को नहीं बताई अभी क्योंकि पता है वह सीधे न कर देगी.

‘‘हैलो, क्या कर रही हो मैडम?’’ मैं बोली.

‘‘कुछ नहीं, तू बता?’’ अनमने ढंग से आर्या ने जबाव दिया.

‘‘कैसी मरीमरी सी आवाज निकल रही है तेरी. कुछ खायापीया नहीं है क्या सुबह से? आंटी ने कुछ खाने को नहीं दिया क्या तुझे?’’ बोल कर मैं खिलखिला पड़ी, फिर बोली, ‘‘अच्छा छोड़ ये सब. एक खुशखबरी देनी है तुझे. स्कूल के हम सारे दोस्त एक जगह पर मिल रहे हैं, तू भी आ जा. मजे करेंगे. बचपन की यादें ताजा करेंगे.’’

मेरी बात पर वह चुप रही.

‘‘अच्छा, सुन न, वह मोटा अतुल याद है तुझे? जिसे हम अमूल घी की फैक्टरी कह कर चिढ़ाया करते थे? अरे, जिस का कद्दू सा पेट निकला था? लो, महारानी यह भी भूल गई. अरे, वह हमारे स्कूल का दोस्त. याद आया? जो छिपा कर हमारा भी लंच का डब्बा साफ कर दिया करता था? हां, वही. उस की शादी हो गई.’’

मेरी बात पर वह धीरे से बोली, ‘‘अच्छा, लेकिन किस से?’’

‘‘यह तो नहीं पता. लेकिन अब वह पहले की तरह मोटा नहीं रहा. काफी स्मार्ट हो गया है. देखना, पहचान ही नहीं पाएगी तू तो.’’

मेरी बातें वह गौर सुन भी रही थी और जबाव भी दे रही थी. उसे नौर्मली बात करते देख मुझे राहत मिली वरना तो हमेशा ही तनाव में होती है. हम काफी देर तक फोन पर बातें करते रहें. ‘‘अच्छा तो चल, अब मैं फोन रखती हूं और सुन, दिन और जगह तुम्हें फोन पर बता दूंगी, आ जाना.’’

मगर आर्या कहने लगी, ‘‘मैं नहीं आ पाऊंगी. आप लोग ऐंजौय करें.’’

‘‘नहीं आएगी? तो फिर ठीक है, आज से तेरी और मेरी कुट्टी. दोस्ती खत्म समझ हमारी. दोस्त की कोई वैल्यू ही नहीं रह गई तेरी नजर में अब तो.’’

मेरी बात पर वह घबरा उठी. उसे लगा कहीं मैं सच में उस से कुट्टीन कर लूं.

‘‘खुशी, सुन न, गुस्सा मत हो यार. अच्छा मैं आऊंगी. बता कहां और कब आना है?’’

‘‘यह हुई न बात. मेरी क्यूटी पाई,’’ मैं ने फोन पर ही उसे एक प्यारा सा मीठा सा चुम्मा दिया और फोन रख कर सोचने लगी कि इसे क्या पता, मैं ने इस के लिए कितना बड़ा सरप्राइज रखा है. खुश नहीं हो गई, तो कहना. वैसे आप को तो बता ही सकती हूं क्या सरप्राइज है? वह सरप्राइज है शिखर हां वही शिखर, जिस से कभी आर्या प्यार करती थी और दोनों जुदा हो गए.

याद है मुझे. शिखर जब स्कूल से चला गया था तब आया कितना रोई थी. कई दिनों तक स्कूल नहीं आई थी क्योंकि उस स्कूल में अब रखा ही क्या था उस के लिए? शिखर भी उसी स्कूल में पढ़ता था, जिस में मैं और आर्या. वह भी उसी वैन से स्कूल आताजाता था जिस में मैं और आर्या. बहुत नजदीक से देखा है मैं ने आर्या की आंखों में शिखर के लिए प्यार. आर्या मेरी जितनी ही थी, 15-16 साल की. सपनों और उमंगों के पंख लगा कर इस डाल से उस डाल उड़ती हुई उम्र. जिसे पहली नजर में प्यार हो जाना कहते हैं. वैसा ही प्यार हो गया था आर्या को शिखर से.

पूरे स्कूल में आर्या की आंखें शिखर के पीछेपीछे ही घूमती थीं. शिखर को भी मालूम था कि आर्या की आंखें उस का ही पीछा कर रही हैं क्योंकि उस ने आर्या की आंखों के रास्ते उस के मन की आकुलता को पढ़ लिया था. जैसे ही आर्या से उस की आंखें मिलतीं, वह नजरें झुका लेता और आगे बढ़ जाता. आर्या के लिए कसक तो उस के दिल में भी थी. महसूस किया मैं ने और सिर्फ मैं ने ही क्यों बल्कि क्लास के सारे बच्चों को पता थी उन दोनों की लवस्टोरी. तभी तो पूरे स्कूल में सब उन्हें लैलामजनूं कह कर चिढ़ाते थे. उन का वह मासूम प्यार आज भी याद है मुझे, जब हमारे स्कूल में ड्रामा कंपीटिशन हुआ था. तब आर्या और शिखर हीररांझा बने थे और उस वक्त उन दोनों ने आंखों ही आंखों में अपने दिल की सारी बातें कह डाली थीं एकदूसरे से.

आर्य जब शिखर को ले कर अपनी फिलिंग्स शेयर करती तो मैं उसे सम?ाती, ‘‘देख, यह प्यार नहीं आकर्षण है केवल और यह बात मेरी मम्मी ने मुझे समझाई है. इसलिए कह रही हूं, तू अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे नहीं तो फेल हो जाएगी और फिर तेरे मम्मीपापा से तुझे डांट पड़ेगी.’’

मेरी बात पर वह मुंह बिचकाती हुए कहती, ‘‘ज्यादा मेरी दादी बनने की कोशिश मत कर समझ ? बड़ी आई मम्मी वाली. सुना नहीं क्या, प्यार पर किसी का जोर नहीं चलता.’’

इतनी छोटी सी उम्र में आर्या बड़ीबड़ी बातें करने लगी थी, प्यार, मुहब्बत की बातें.

16 साल की छोटी सी उम्र में ही आर्या छलांग लगा कर शिखर के साथ प्यार का भी मिलों का सफर तय कर लेना चाहती थी. हर बात की जल्दबाजी थी उस में. लेकिन शिखर स्थिर माइंड का था, बहुत ही शांत. शिखर हमारी तरह दिल्ली का रहने वाला नहीं था. चूंकि उस के पापा आर्मी में थे, इसलिए हर 3-4 साल पर उन का तबादला एक से दूसरी जगह होता रहता था. इस बार उस के पापा का तबादला जम्मू हो गया. 10वीं कक्षा के बाद शिखर भी अपने पापा के पास जम्मू चला गया. शिखर के चले जाने से आर्या का दिल टूट गया. उस ने ठीक से खानापीना यहां तक कि दोस्तों से मिलना भी कम कर दिया. हरदम उदास, खोईखोई सी रहती. उस का उतावलापन, शोखियां सब खत्म हो चुकी थीं.

खैर, स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद कालेज की पढ़ाई भी मैं ने और आर्य ने साथ ही कंप्लीट की. जौब भी लग गई हमारी. फिर आर्या की जिंदगी में एक लड़के धु्रव ने ऐंट्री ली. धु्रव के साथ उसे खुश देख कर मु?ो लगा वह शिखर को भूल गई. लेकिन भूली नहीं थी वह. बल्कि अपने जीवन में थोड़ा आगे बढ़ गई थी. और शिखर भी तो अपनी जिंदगी में आगे बढ़ गया था. उस के जीवन में भी एक लड़की आई जिस से उस की सगाई भी हो गई. अपनी सगाई का फोटो भी भेजा था उस ने मुझे. काफी खुश लग रहा था वह. इधर आर्या भी अपने ध्रुव के साथ खुश थी.

एक रोज शिखर का मन टटोलते हुए मैं ने पूछा भी कि क्या उसे कभी आर्या की याद नहीं आती? प्यार तो उसे भी था आर्या से? मेरी बात पर वह कुछ देर चुप रहा, फिर बोला कि हां, आती है, बहुत आती है. तो फिर तुम ने उसे एक बार भी कौल क्यों नहीं किया? मेरी बात पर वह बोला कि इसलिए उसे कौल नहीं किया क्योंकि वह अपने ध्रुव के साथ खुश थी. लेकिन जब मैं ने उसे आर्या का ध्रुव के साथ हुए ब्रेकअप के बारे में बताया तो वह बहुत दुखी हुआ. मिलना चाहता था वह आर्या से पर डरता था कि पता नहीं वह कैसे रिएक्ट करेगी.

अब अकसर मेरी शिखर से बातें होने लगीं और उस की बातों में केवल और केवल आर्या का ही जिक्र होता था. एक दिन उस ने कहा कि उस ने अपने मम्मीडैडी से आर्या और अपने रिश्ते के बारे में सब बता दिया है और उन्हें उन के रिश्ते पर कोई एतराज नहीं है. वह आर्या से मिलने के लिए बहुत उतावला था. इसलिए ही हम ने केरल घूमने का प्रोग्राम बनाया. लेकिन आर्या को यह नहीं बताया कि वहां शिखर भी आने वाला है.

फोन की घंटी से मैं अतीत की यादों से बाहर आ गई. देखा तो शिखर का फोन था. केरल में कौटेज बुक हो चुका था और उस का नाम था ‘अम्मां होम स्टे’ जिस में 24 घंटे रूम सर्विस, कार किराए पर लेने की सुविधा, कार पार्किंग और वैलेट सेवाओं के साथसाथ केरल का घरेलू भोजन, दक्षिण भारतीय व्यंजन, इंटरनैट की सुविधा, परिवहन और गाइड सेवाएं उपलब्ध थीं.

हम सारे दोस्त और आर्या भी केरल पहुंच चुके थे सिवा शिखर के. डर लग रहा था कि शिखर आएगा भी या नहीं क्योंकि वह कह रहा था न कि छुट्टी की बहुत प्रौब्लम चल रही है. लेकिन वह आया. जैसे ही शिखर से आर्या का सामना हुआ वह शौकड रह गई. उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उस के सामने शिखर, उस का प्यार खड़ा है. वह एकटक शिखर को निहार रही थी और शिखर उसे.

जब शिखर ने अपनी बांहें फैलाईं तो आर्या दौड़ कर उस के सीने से लिपट गई और रो पड़ी. उस के आंखों से ऐसे आंसू बहे जैसे धरती का सीना फोड़ कर अचानक कोई जलस्रोत फूट पड़ा हो. उन के बीच की सारी दूरियां और जो भी गिलेशिकवे थे मिट गए. हम सारे दोस्त भी एकदूसरे से गले मिल कर बहुत खुश हुए. सच कहें तो हम यहां अपना बचपनजी रहे थे. बहुत मजा आ रहा था हमें.

यह कौटेज 2 हिस्सों में बंटा था. आगे के हिस्से में 2 बैडरूम, 1 लिविंगरूम और सामने बरामदा और फूलों से सजा लौन था. पीछे की ओर 1 बैडरूम, 1 लिविंगरूम और छोटा सा बरामदा और सामने लौन था, जिस में फूलों की क्यारियां लगी थीं. और भी बहुत कुछ था जिस का वर्णन करना मुश्किल है. मतलब सुंदरता का खजाना था यहां.

सुबह ब्रेकफास्ट के बाद हम सारे दोस्त एक गाड़ी कर के घूमने निकल पड़े. मुन्नार, वर्कला, फोर्ट कोच्चि, आदि सभी जगहों पर हम घूमें और खूब मस्ती की. मगर आर्या और शिखर ज्यादातर एकदूसरे में ही खोए रहे. हमें तो लग रहा था कि कहीं हम उन्हें कबाब में हड्डी तो नहीं लगने लगे? हम ने मजाक में कहा भी, पर दोनों झेंप गए. खैर, जो भी हो पर हम यहां पर बहुत ऐंजौय कर रहे थे. हम चाय और गरममसाले के बगानों में भी घूमे और वहां से अपनेअपने घर के लिए गरममसाला और तरहतरह की चाय खरीदी. हमारा समय कब बीत गया पता ही नहीं चला. 2 दिन हवा की तरह निकल गए.

कल 12 बजे की हमारी वापसी की फ्लाइट थी, इसलिए रात 2 बजे तक हम सब ने खूब मस्ती की. 1-2 फिल्में देखीं, बातें कीं. पता नहीं क्याक्या खाया भी. मतलब फुल मस्ती की हम ने. मगर इस बात का दुख भी हो रहा था कि कल हम सब फिर बिछड़ जाएंगे. लेकिन हम ने एकदूसरे से यह वादा लिया कि अपने जीवन में हम कितने भी बिजी क्यों न हों, साल में 1 बार इस तरह जरूर मिला करेंगे.

सुबह जब मेरी नींद खुली तो देखा आर्या अपने शिखर के बांहों में लिपटी हुई चैन की नींद सो रही थी और शिखर उसे एकटक निहारे जा रहा था. जुल्फों से झांक रहा उस का गोरा चेहरा जैसे दूध में ईगुर घोल दिया हो किसी ने. नींद में भी दीप्ति से भरा हुआ. उस की बड़ीबड़ी आंखों के बंद पटों पर झालर सी टंकी बरौनियां. छोटी सी प्यारी सी नाक, गुलाब की पंखुडि़यों से लाललाल होंठ और उस के अधखुले कपड़ों से ?झांकते 2 अमृतकलश देख शिखर सम्मोहन में डूब ही रहा था कि मैं जोर से खांसी तो वह अचकचा गया और आर्या भी उठ बैठी. पीछे से सारे दोस्त ‘हो हो’ कर हंसने लगे तो वे दोनों भी मुसकरा उठे.

‘‘भाई, सब अपनाअपना समान समेट लो. निकलना होगा हमें,’’ कह कर जैसे ही मैं पीछे मुड़ी देखा दोनों की आंखें एकदूसरे में डूबी हुई थीं जैसे वे एकदूसरे से कह रहे हों कि वादा रहा प्यार से प्यार का… अब हम न होंगे जुदा.

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