प्यार की भी भाषा होती है

साल 1993 में शाहरुख खान की मशहूर थ्रिलर फिल्म ‘बाजीगर’ आई थी. इस फिल्म के नायक और खलनायक शाहरुख ही बने थे. फिल्म ब्लौकबस्टर साबित हुई और शाहरुख खान रातोंरात सुपरस्टार बन गए, जिस के बाद उन के पांव कभी थमे नहीं. इस फिल्म का जिक्र करने का मकसद शाहरुख की बुलंदियों को बताने का नहीं है, बल्कि फिल्म के एक खूबसूरत गाने, ‘छिपाना भी नहीं आता, जताना भी नहीं आता…’ से है जो एक पार्टी में बज रहा होता है. यह गाना आशिकों की साइकोलौजी को दर्शाता है. अब इस गाने के बोल और उस में दिखाए कैरेक्टर हैं ही इतने दिलचस्प कि बात बननी लाजिमी है.
मामला यह है कि इस फिल्म में इंस्पैक्टर करण की भूमिका निभा रहे सिद्धार्थ रे कालेज के दिनों से ही प्रिया (काजोल) से प्यार करते थे. अपनी हथेलियों में प्रिया का नाम गुदवाए जहांतहां घूमा करते थे, चोरीचुपके उसे देखा करते थे, अंदर ही अंदर उसे अपनी प्रियतमा बना चुके थे, लेकिन जनाब कभी समय पर हाल ए दिल का इजहार ही नहीं कर पाए. फिर क्या, अजय शर्मा (शाहरुख) इतने में एंट्री मारते हैं और प्रिया के प्रेम की बाजी मार ले जाते हैं. अब ये करण जनाब पछताते हुए पूरी पार्टी में यही गाना गाते फिर रहे हैं. अजय के हाथों में प्रिया का हाथ देख रहे हैं तो खुद पर अफसोस जताते रह जाते हैं. यह तो है कि अगर करण साहब समय पर प्रिया से प्रेम का इजहार कर देते तो शायद पार्टी में अपना दुखड़ा न सुना रहे होते. हो सकता था इंस्पैक्टर करण ही बाजीगर कहलाए जाते.

खैर, यह तो रही फिल्म की बात. असल जिंदगी में क्या ऐसा नहीं होता कि फीलिंग्स और इमोशन तो गहरे होते हैं लेकिन जता ही नहीं पाते. खुल कर अपनी भावनाओं को उड़ेल ही नहीं पाते. यह बता नहीं पाते कि इस पल या किसी पल उन्हें कैसा एहसास हुआ था. बस, छिपतेछिपाते मन मसोस कर रह जाते हैं.
अपनी फीलिंग्स और इमोशंस को न जता पाना क्या यह सचाई नहीं? खासकर बात जब भारत की हो, तो यह और भी मुश्किल हो जाता है. लड़का, लड़की से प्यार करता है लेकिन जीवनभर कह नहीं पाता. यह समस्या सिर्फ जोड़ों से अधिक शादी के बाद पतिपत्नी के रिश्तों में भी दिखाई देती है, खासकर तब जब शादी अरेंज मैरिज हो. पति, पत्नी से प्यार करता है लेकिन कभी अपने प्यार, अपनी भावनाओं को खुल कर जता नहीं पाता. वहीं परिवार में यह भी देखा जाता है कि बाप, बेटे से प्यार करता है, उस की जरूरतों का खयाल तो रखता है, लेकिन मजाल है कि ठीक से गले लगा पाए. आम घरों में अकसर प्यार, इमोशन, फीलिंग जताने में एक असहजता सी महसूस होती है. प्यार में इन सब बुनियादी चीजों को न समझने से आपसी अंडरस्टैंडिंग में समस्या आने लगती है. रिश्ते बिखरने लगते हैं. तारतम्य नहीं बैठ पाता. भावनाएं व्यक्त नहीं हो पातीं. अब सवाल यह कि कहीं अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्दों की कमी तो नहीं या उन माध्यमों की कमी है जिन से प्रेम व्यक्त किया जा सके.

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द फाइव लव लैंग्वेजेज

भारत में रिश्तों के बीच यह सब से आम समस्या है कि हम अपने इमोशन और फीलिंग्स को सामने वाले से जाहिर ही नहीं कर पाते. लोग रिश्तों की परवा तो करते हैं लेकिन फिर भी अधिकतर प्यार दिखाते समय जूझते दिखाई देते हैं. क्या यह सामान्य नहीं कि एक आम परिवार में जन्मदिन का प्रोग्राम तो कर लिया जाता है लेकिन जन्मदिन विश करते समय असहजता आड़े आने लगती है.

साल 1992 में गैरी चैपमैन की एक किताब आई थी, नाम था- ‘द 5 लव लैंग्वेजेज’. यह किताब इतनी फेमस हुई थी कि पहले एडिशन करोड़ों कौपियां बिक चुकी हैं. पुस्तक लिखने से पहले डा. चैपमैन ने अपने रुझन बनाने के लिए जोड़ों के साथ वर्षों का समय बिताया. उन्हें पता चला कि जोड़े एकदूसरे को व एकदूसरे की जरूरतों को गलत समझ रहे थे. अपने बनाए नोट्स के जरिए उन्होंने पाया कि प्रेम की भाषा होती है. जिसे उन्होंने ‘5 प्रेम भाषाएं’ कह कर संकलित किया.

चैपमैन के अनुसार, प्रेम भाषाएं आप के बच्चों, मातापिता, आप के सहकर्मियों और यहां तक कि आप के मित्रों के साथ आप के रिलेशन पर लागू होती हैं. हालांकि रिश्तों के अनुसार वे कुछ हद तक भिन्न हो सकती हैं. साथ ही, आप की प्रेमभाषा भी कभीकभी बदल सकती है. उदाहरण के लिए, यदि आप के लिए औफिस में एक बुरा दिन था तो आप एक निराशाजनक शब्द कहने के बजाय अपने साथी से गले मिलना पसंद कर सकते हैं. दुखी हैं तो बात शेयर करने और समय बिताने जैसा काम कर सकते हैं. प्रेम की असल चाबी आप का हमेशा संवाद में बने रहना होता है. प्रेम का कोई अंतबिंदु नहीं होता, यह सतत व निरंतर गतिमान रहता है.

प्रेम की भाषा कौन सी है

बोल प्रशंसा के : प्रशंसा व प्रोत्साहन के माध्यम से प्रेम को खूबसूरती से व्यक्त किया जा सकता है. यह एक प्रकार से अपनी सहमति व्यक्त करने जैसा भी होता है. आमतौर पर 2 लोगों के बीच काफीकुछ चीजें घटती हैं. कई चीजें ऐसी होती हैं जो प्रोत्साहन की हकदार होती हैं. लेकिन पार्टनर से अच्छा रिस्पौंस न मिलने के चलते निराशा हाथ लगती है, जिस के कारण रिश्ते में नीरसता आने लगती है. अच्छे रिश्तों को गढ़ने के लिए कौम्प्लीमैंट, एन्करेजमैंट, प्रेज की जरूरत होती है. आप प्यार जताने के लिए अपने पार्टनर की तारीफ कर के या उन्हें बता सकते हैं कि वे क्या अच्छा करते हैं, जिस से उन का कौन्फिडैंट बूस्ट होगा.

क्वालिटी टाइम : एक बड़ी समस्या यह बनी रहती है कि आज के समय में ध्यान भटकाने वाली कई चीजें आ चुकी हैं. सीधी नजरों से वार्त्तालाप सिमटता जा रहा है. इस का मतलब है, जब आप का पार्टनर आप से बात करे तो सैलफोन को नीचे रखना और टेबलैट, लैपटौप को बंद करना, सीधा आंखों से संपर्क बनाना और सक्रिय रूप से सुनना आदि ‘प्रेमभाषा’ का मजबूत बिंदु है. इसलिए जब आप अपने नजदीकी के साथ हों, जिसे आप अपना महसूस करते हों, तो कोशिश करें कि क्वालिटी टाइम बिताएं. क्वालिटी टाइम के लिए अलग से समय निकालें. सुनिश्चित करें कि जब आप अपने पार्टनर से बात करें तो सीधे कौन्टैक्ट बनाबना कर बात हो, ध्यान से सुनें कि दूसरा व्यक्ति क्या कह रहा है. हो सकता है वह आप को बात बताते समय ऐसी बात बता जाए जिस में आप की प्रतिक्रिया जरूरी हो और आप वह अनसुना कर दें, तो यह आप को गैरजिम्मेदार ही साबित करेगा.

कार्यभाव से प्रेमभाव : यह प्रेमभाषा का सब से जरूरी माध्यम है. कार्यभाव को समझना हो तो सब से बेहतर तरीके से मां के रूप में इसे समझ जा सकता है. जब मां अपने बच्चों के लिए कुछ करती है तो वह प्यार व सराहना महसूस करती है. क्या ऐसा भाव प्रेम का उत्तम स्थान नहीं? जब किसी के लिए स्वयं कार्य करने का मन करता है तो भीतर से प्यार उमड़ने लगता है. एकदूसरे के लिए दिल से काम करना, चाहे वह छोटा काम ही क्यों न हो, प्रेम की कसौटी को दिखाता है. लेकिन यहां समस्या यह है कि इस कसौटी पर खरा उतरने की जिम्मेदारी सामान्यतौर पर सिर्फ महिलाओं के पल्ले ही बांध दी जाती है. कार्यभाव म्यूचुअल होना जरूरी है वरना टकराव पैदा होने लगते हैं.

फिजिकल टच : इस प्रेमभाषा वाला व्यक्ति फिजिकल टच के माध्यम से प्यार महसूस कर/करा सकता है. यह टच जरूरी नहीं कि सैक्स का ही माध्यम बने. फिजिकल टच का मतलब अपने साथी/रिश्ते को किसी तरह से शारीरिक स्नेह दिखाना है, जैसे हाथ पकड़ना, बांह को छूना या सहलाना इत्यादि. यह एक प्रकार से ऐसा है जैसे, बस, शारीरिक रूप से अपने सहयोगियों/रिश्तों के करीब होना हो.

आप किसी समय दिखाते हैं कि आप किसी की केयर कर रहे हैं, इस के लिए फिजिकल टच सब से जरूरी भूमिका अदा करता है. मान लीजिए, कोई बहुत दुखी है. उसे उस समय किसी के कंधे का सहारा चाहिए, किसी करीबी से टाइट हग चाहिए. आप उस के करीबी हैं, आप अपने कंधे का सहारा देते हैं, गले लगाते हैं तो उसे यह सुकून देता है.

कपल्स के लिए फिजिकल टच की ‘प्रेमभाषा’ बहुत अहमियत रखती है. यह सुखदुख में प्यार जताने मात्र के लिए ही नहीं, बल्कि रोमांस, सैक्स और कामोत्तेजना में भरपूर काम आती है. सैक्स कपल्स के प्रेम को बनाए रखने का सब से इंपौर्टैंट पार्ट होता है. इस में किसिंग, फोरप्ले, इंटरकोर्स इत्यादि आते हैं. किसी कपल्स के लिए इस की जरूरत इस से समझ जा सकती है कि रिश्तों के टूटने या बिखरने में इस का बहुत महत्त्व होता है. यहां तक कि शादीशुदा जोड़ों में तलाक होने का इस की कमी को बड़ा आधार बनाया जाता है.

गिफ्ट्स : गिफ्ट्स एक बहुत ही सरल प्रेमभाषा है. आप प्यार महसूस करते हैं जब लोग आप को ‘प्यार के प्रतीक’ के तौर पर गिफ्ट देते हैं, जैसा कि चैपमैन कहते हैं, ‘‘यह किसी महंगेसस्ते उपहारों के बारे में नहीं है, बल्कि गिफ्ट देने के पीछे प्रतीकात्मक सोच के बारे में है जिसे प्रेमी को जताया जाता है. इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि गिफ्ट महंगा है या सस्ता, बल्कि फर्क इस से पड़ता है कि गिफ्ट देने के लिए पार्टनर ने अपना समय, अपना विचार और इच्छा जताई है. यह चीज पार्टनर को भीतर से बेहद खुश करती है.

प्रेमभाषा प्रेम सिखाती है

प्यार एकदूसरे के लिए जीना सिखाता है. जब आप किसी से प्रेम में हों, चाहे उस का आप से किसी प्रकार का रिश्ता हो, आप को उस के प्रति जिम्मेदार बनाता है. यह सैल्फ की भावना को खत्म करता है. यह सहानुभूति रखना सिखाता है. यह इस बात पर ध्यान देना सिखाता है कि दूसरे व्यक्ति को क्या महत्त्वपूर्ण और अच्छा लगता है. जोड़े प्रेम भाषाओं को सीखने और उन्हें अपनाने के लिए कमिटेड होते हैं, तो वे सीखते हैं कि किसी और की जरूरतों को अपने से ऊपर कैसे रखा जाए.

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जब लोग एकदूसरे से प्रेमभाषा में डील शुरू करते हैं, तो वे ज्यादा ईमानदार होते हैं. जब यह भाषा आप अपने इर्दगिर्द बना रहे होते हैं तो आप के रिश्ते संतुष्ट और मजबूत बनते हैं. एक बार जब आप एकदूसरे की प्रेमभाषा को समझ गए तो आप देखेंगे कि चीजें पहले से कितनी आसान हो जाएंगी. याद रखें, हैल्दी रिश्ते पैदा नहीं होते हैं, वे सही केयर और कोशिशों के जरिए डैवलप किए जाते हैं. अगर आप एकदूसरे से प्यार करने के लिए कमिटेड हैं और अपनी प्रेमभाषा डैवलप कर चुके हैं, तो आप खुद को न केवल प्यार में और अधिक गहरा पाएंगे, बल्कि एक खुशहाल और अच्छे रिश्ते में भी आप खुद को देख पाएंगे. इसलिए प्यार को भीतर में दबा कर नहीं, उसे जता कर और बढ़ाया जा सकता है. इसे जताने के लिए पोलाइट तरीका अपनाए जाने की जरूरत है जिस से प्रेम सार्थक बन सके.

चढ़ावे के बदले प्यार पाने का धार्मिक तरीका

पुराणों, गीता, कुरान, बाइबिल जैसे धर्म ग्रंथों को व्यापार का माध्यम कहा जाए या कोई नैतिक शिक्षा ग्रहण करने का माध्यम? आज देखा जाए तो हमारे देश में ईश्वर के नाम पर सब से बड़ा धंधा पनप रहा है. अगर व्यापार करना ही है तो धर्म के नाम पर क्यों? क्यों लोग इन ग्रंथों को पढ़ते और सुनते हैं, जब आज के युग से इस का कोई मतलब ही नहीं है. ईश्वर के नाम पर एक इंसान दूसरे इंसान को लूट कर चला जाता है. धर्म के नाम पर मारापीटा जाता है. हमारे ग्रंथों में असल में यही लिखा गया है.

दरअसल, एक धार्मिक कथा जिस में एक पत्नी ने अपने पति का प्रेम पाने के लिए अपने पति का ही दान कर दिया, यह कथा पौराणिक है पर आज भी सुनाई जा रही है. फेसबुक पर आध्यात्मिक कहानियों के पेज पर पोस्ट इन कथाओं को काफी लाइक्स भी मिले हैं. क्या आज के युग, आज के समय, आज के लोगों से उस युग की कथा का कोई संबंध है?

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यह कहानी कृष्ण लीला से संबंधित है, उसी कृष्ण से जिस ने गोपियों के साथ रासलीला कर के स्नान के वक्त गोपियों के कपड़े चुरा लिए थे. कहानी का प्रारंभ का वाक्य है कि कृष्ण की 16008 पत्नियों में रानी होने का दर्जा सिर्फ

‘8’ को ही था. यह किसी भी युग में स्वीकार न होगा पर आज के समय उस का बखान इस तरह के वाक्य से करना गलत है.

लालच और ईर्ष्या

आज के युग में अगर एक पत्नी के होते हुए भी आप दूसरा विवाह करते हैं तो हमारा समाज और कानून भी उसे गुनहगार मानता है, क्योंकि आज के समय में समाज और कानून दोनों ही इस के विरुद्ध हैं. आज तो पहली पत्नी भी पुलिस थानेदार से ज्यादा उग्र हो बैठेगी, ऐसे में सत्यभामा की कहानी को कहकह कर एक से ज्यादा औरतों से संबंध को महिमामंडित क्यों किया जा रहा है?

कहानी में कहा गया है कि कृष्ण की 2 रानियों का नाम था सत्यभामा और रुक्मिणी. सत्यभामा को घमंड था कि कृष्ण उस से ही सब से अधिक प्रेम करते हैं. लेकिन जहां प्रेम है वहां सिर्फ सकारात्मकता ही होती है, जहां नकारात्मकता आ जाए वह प्रेम सच्चा हो ही नहीं सकता. वैसे यह गर्व की बात है घमंड की नहीं. पर कहानी में लेखक कहते हैं कि कृष्ण के इतने प्रेम करने के बावजूद भी सत्यभामा को और प्रेम चाहिए था और यह प्रेम सत्यभामा के जीवन में लालच और ईर्ष्या का रूप ले चुका था जो इतना बढ़ गया था कि सत्यभामा ने कृष्ण को ही दान में दे दिया.

कहानी में लेखक कहता है कि नारद को जब इस बारे में पता चला तो उस का काम तो वैसे ही पूरे देवलोक में संचार करना था, अब वह चुगली के रूप में हो या संचार के रूप में, क्या फर्क पड़ता है? नारद जैसे चरित्र की आज के युग में प्रशंसा करना ही गलत है पर कहानियों के माध्यम से उसे ऊंचा दर्जा दिया जाता है. नारद ने सत्यभामा को अपने जाल में फंसा ही लिया और कहा कि उसे तुलाभ्राम व्रत करना चाहिए, जिस से श्रीकृष्ण का प्रेम सत्यभामा के प्रति कई गुणा बढ़ जाएगा.

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बेसिरपैर की कहानी

अगर आप आज इस व्रत की पूरी विधि तार्किक मन से सुनेंगे तो चकित हो जाएंगे. इस व्रत की पूरी विधि में नारद ने बताया कि पहले कृष्ण को दान कर के और फिर वापस पाने के लिए कृष्ण के वजन के बराबर का सोना देना होगा. यदि सत्यभामा यह काम पूरा करने में असफल हुई तो कृष्ण नारद के गुलाम बन जाएंगे. प्रेम का सौदा करने का पाठ कौन पढ़ा सकता है? यह तो एक तरह का जुआ है. यहां पर पौराणिक कथा के रूप में यह भी दिमाग में बैठा दिया जाता है.

अगर नारद के इस खेल को दूसरे नजरिए से देखें तो इस युग में सच में सब मोहमाया है. आज भी नारद आप को हर घर, हर मंदिर, मसजिद में बैठा दिखेगा. कहीं फकीर के रूप में, कहीं पंडित बन कर, तो कहीं केसरिया चोला पहन कर. कोई चंदन का तिलक लगा कर टीवी पर सुबहसुबह ज्ञान बखेरता है.

इस तरह की कहानियों का इतना असर है कि किसी का कोई काम पूरा नहीं हो रहा. उस पर मेहनत करने के बजाय हम हाथों की रेखाएं दिखाना जरूरी समझते हैं और हाथ देख कर भविष्य बताने वाला आप का कल और साथ में हर तकलीफों का हल आसानी से बता कर झोला लिए गलीगली घूमता है. क्यों इन के जीवन में ठहराव नहीं है?

सत्यभामा को पे्रम कृष्ण ही दे सकते थे नारद नहीं, यह बात सत्यभामा समझ ही नहीं पाई. उस के लालच और अभिमान ने उसे सोचने ही नहीं दिया. वह नारद की बातों में आती गई और भूल गई कि हम जिस से प्रेम करते हैं वही हमारी तकलीफ दूर कर सकता है, कोई दूसरा व्यक्ति नहीं.

सच्चा प्रेम और सच्ची आस्था

कहानी में सत्यभामा के व्रत के अनुसार कृष्ण को दान में दे दिया गया. अब बारी थी उन्हें तराजू पर बैठा कर उन के वजन जितना सोना दान करने की. सत्यभामा ने पूरी कोशिश की पर वह असफल रही. वह उतना सोना जुटा ही नहीं पाई. अंत में रुक्मिणी के सच्चे प्रेम और आस्था की वजह से सोना हटा कर तुलसी का एक पत्ता दूसरे पलड़े पर रख दिया और उस का वजन कृष्ण जितना हो गया. सत्यभामा का घमंड वहीं चूरचूर हो गया. इस बहाने सोने को तुच्छ दिखा दिया गया, तुलसी पूजा को श्रेष्ठ. सोना दे दो प्रेम पा लो यह भी कह दिया और तुलसी पूजो यह भी.

इस कथा में उपदेश दिया गया कि सच्चा प्रेम दिखाने से नहीं होता. प्रेम कोई वस्तु नहीं है जिसे तौला जा सकता है, जिसे परखने के लिए योजना बन सकती है जबकि यथार्थ यह है कि यह एक एहसास है जिसे महसूस किया जाता है.

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इस कहानी में छिपा उद्देश्य यह है कि साधुपंडित पति का प्रेम लौटा भी सकते हैं और छीन भी सकते हैं. इसलिए पति को खुश करने के लिए उस का प्रेम पाने के लिए ढेर सारा चढ़ावा चढ़ाओ, अंधविश्वास की राह पर चलो, यों ही किसी की बातों में आ कर अपना सबकुछ खो दो जैसा सत्यभामा ने नारद की बातों में आ कर किया.

आज के युग में लोग अगर ईश्वर को ढेर सारा सोनाचांदी दान करते हैं तो इन्हीं कहानियों से प्रभवित हो कर. यह बारबार दोहराया जाता है कि ईश्वर तो लालची है. जब तक हम उसे कुछ देंगे नहीं, तब तक वह हमारी इच्छा पूरी नहीं करेगा. ईश्वर रिश्वत लेता है और उसे उस के एजेंट आ कर ले जाते हैं. इस तरह की गप भरी कहानियों का प्रसारप्रचार आज के युग में ऊंचनीच और लूट को पुनर्स्थापित कर रही है.

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