Relationship : मेरे बौयफ्रेंड की शादी हो चुकी है, लेकिन अब वह मुझसे दोबारा मिलना चाहता है

Relationship :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 33 साल की विवाहिता हूं. पति और 2 बच्चों के साथ खुशहाल जीवन जी रही हूं. शादी से पहले मेरी जिंदगी में एक युवक आया थाजिस से मैं प्यार करती थीपर किन्हीं वजहों से हमारी शादी नहीं हो पाई थी. अब उस का भी अपना परिवारपत्नी व बच्चे हैं. इधर कुछ दिनों पहले फेसबुक पर हम दोनों मिले. मोबाइल नंबरों का आदानप्रदान हुआ और अब हम घंटों बातचीतचैटिंग करते हैं. वह मु?ा से मिलना चाहता है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

वह आप का अतीत था. अब आप दोनों के ही रास्ते अलग हैं. पतिपरिवारबच्चे व सुखद जीवन है. पुरानी यादों को ताजा कर आप दोनों की नजदीकियां दोनों ही परिवारों की खुशियों पर ग्रहण लगा सकती हैं. इसलिए बेहतर यही होगा कि इस रिश्ते को अब आगे न बढ़ाया जाए.

हांअगर वह एक दोस्त के नाते आप से मिलना चाहता हैतो इस में कोई बुराई नहीं. आप घर से बाहर किसी रेस्तरांपार्क आदि में उस से मिल सकती हैं. बुनियाद दोस्ती की हो तो मिलने में हरज नहींबशर्ते मुलाकात मर्यादित रहे. हद न पार की जाए.

सवाल

मैं 24 साल की युवती हूं. 3-4 महीने बाद मेरी शादी होने वाली है. मैं ने अभी तक किसी के साथ सैक्स संबंध नहीं बनाए पर नियमित मास्टरबेशन करती हूं. मुझे लगता है कि इस से प्राइवेट पार्ट की स्किन ढीली हो गई है. इस वजह से बहुत तनाव में रह रही हूं. मैं क्या करूं?

जवाब

जिस तरह सैक्स करने से प्राइवेट पार्ट की स्किन लूज नहीं होतीउसी तरह मास्टरबेशन से भी स्किन पर कोई फर्क नहीं पड़ता और वह ढीली भी नहीं होती है. यह आप का एक भ्रम है.

हकीकत तो यह है कि किसी अंग के कम उपयोग से ही उस में शिथिलता आती है न कि नियमित उपयोग से. आप अपनी शादी की तैयारियां जोरशोर से करें और मन में व्याप्त भय को पूरी तरह निकाल दें. आप की वैवाहिक जिंदगी पर इस का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा.

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Love Marriage : मैं लव मैरिज के लिए घरवालों को कैसे मनाऊं?

सवाल

Love Marriage : मैं एक लड़की से प्यार करता हूं. लड़की भी मुझे दिलोजान से चाहती है. वह हर रोज देर रात को मुझे फोन कर कहती है कि वह सिर्फ मुझ से ही शादी करेगी. उधर मेरे घर वालों को ऐतराज है कि लड़की की दादी की जाति और हमारी जाति एक है. फिर भी कहते हैं कि यदि लड़की वाले हमें फोन कर के बुलाएंगे तो हम उन के घर लड़की देखने जा सकते हैं. मुझे स्टेटस, घरबार से कुछ लेनादेना नहीं है. मैं तो बस उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाना चाहता हूं.

जवाब
लड़की की दादी की जाति के लिए आप के घर वालों का ऐतराज बेमानी और दकियानूसी है. पर क्या आप उस का घरबार देख चुके हैं? यदि आप को सब अच्छा लगता है तो आप अपने घर वालों को अपना दृढ़ निश्चय बता दें कि आप उस लड़की से प्यार करते हैं और उसी से शादी करेंगे. इसलिए वे जब लड़की देखने जाएं तो अपने मानदंडों को दरकिनार कर जाएं.

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सच्चा प्यार

‘‘उर्मी,अब बताओ मैं लड़के वालों को क्या जवाब दूं? लड़के के पिताजी 3 बार फोन कर चुके हैं. उन्हें तुम पसंद आ गई हो… लड़का मनोहर भी तुम से शादी करने के लिए तैयार है… वे हमारे लायक हैं. दहेज में भी कुछ नहीं मांग रहे हैं. अब हम सब तुम्हारी हां सुनने के लिए बेचैनी से इंतजार कर रहे हैं. तुम्हारी क्या राय है?’’ मां ने चाय का प्याला मेरे पास रखते हुए पूछा.

मैं बिना कुछ बोले चाय पीने लगी. मां मेरे जवाब के इंतजार में मेरी ओर देखती रहीं. सच कहूं तो मैं ने इस बारे में अब तक कुछ सोचा ही नहीं था. अगर आप सोच रहे हैं कि मैं कोई 21-22 साल की युवती हूं तो आप गलतफहमी में हैं. मेरी उम्र अब 33 साल है और जो मुझ से ब्याह करना चाहते हैं उन की 40 साल है. अगर आप मन ही मन सोच रहे हैं कि यह शादी करने की उम्र थोड़ी है तो आप से मैं कोई शिकायत नहीं करूंगी, क्योंकि मेरे मन में भी यह सवाल उठ चुका है और इस का जवाब मुझे भी अब तक नहीं मिला. इसलिए मैं चुपचाप चाय पी रही हूं.

सभी को अपनीअपनी जिंदगी से कुछ उम्मीदें जरूर होती हैं, इस बात को कोई नकार नहीं सकता. हर चीज को पाने के लिए सही वक्त तो होता ही है. जैसे पढ़ाई के लिए सही समय होता है उसी तरह शादी करने के लिए भी सही समय होता है. मेरे खयाल से लड़कियों को 20 और 25 साल की उम्र के बीच शादी कर लेनी चाहिए. तभी तो वे अपनी शादीशुदा जिंदगी का पूरा आनंद उठा सकेंगी. प्यारमुहब्बत आदि जज्बातों के लिए यही सही उम्र है. इस उम्र में दिमाग कम और दिल ज्यादा काम करता है और फिर प्यार को अनुभव करने के लिए दिमाग से ज्यादा दिल की ही जरूरत होती है. लेकिन मेरी जिंदगी की परिस्थितियां कुछ ऐसी थीं कि मेरे जीवन में 20 से 25 साल की उम्र संघर्षों से भरी थी. हम खानदानी रईस नहीं थे. शुक्र है कि मैं अपने मातापिता की इकलौती संतान थी. यदि एक से अधिक बच्चे होते तो हमारी जिंदगी और मुश्किल में पड़ जाती. मेरे पापा एक कंपनी में काम करते थे और मां स्कूल अध्यापिका थीं. दोनों की आमदनी को मिला कर हमारे परिवार का गुजारा चल रहा था.

एक विषय में मेरे मातापिता दोनों ही बड़े निश्चिंत थे कि मेरी पढ़ाई को किसी भी हाल में रोकना नहीं. मैं भी बड़ी लगन से पढ़ती रही. लेकिन हमारी और कुदरत की सोच का एक होना अनिवार्य नहीं है न? इसीलिए मेरी जिंदगी में भी एक ऐसी घटना घटी, जिस से जिंदगी से मेरा पूरा विश्वास ही उठ गया.

एक दिन दफ्तर में दोपहर के समय मेरे पिताजी अचानक अपनी छाती पकड़े नीचे गिर गए. साथ काम करने वालों ने उन्हें अस्पताल में भरती करा कर मेरी मां के स्कूल फोन कर दिया. मेरे पिताजी को दिल का दौरा पड़ा था. मेरे पिताजी किसी भी बुरी आदत के शिकार नहीं थे, फिर भी उन्हें 40 वर्ष की उम्र में यह दिल की बीमारी कैसी लगी, यह मैं नहीं समझ पाई. 3 दिन आईसीयू में रह कर मेरे पिताजी ने अपनी आंखें खोलीं और फिर मेरी मां और मुझे देख कर उन की आंखों में आंसू आ गए. मेरा हाथ पकड़ कर उन्होंने बहुत ही धीमी आवाज में कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो बेटी… मैं अपना फर्ज पूरा किए बिना जा रहा हूं… मगर तुम अपनी पढ़ाई को किसी भी कीमत पर बीच में न छोड़ना… वही कठिन समय में तुम्हारे काम आएगी,’’ वे ही मेरे पिताजी के अंतिम शब्द थे.

पिताजी की मौत के बाद मैं और मेरी मां दोनों बिलकुल अकेली पड़ गईं. मेरी मां इकलौती बेटी थीं. उन के मातापिता भी इस दुनिया से चल बसे थे. मेरे पापा के एक भाई थे, मगर वे भी बहुत ही साधारण जीवन बिता रहे थे. उन की 2 बेटियां थीं. वे भी हमारी कुछ मदद नहीं कर सके. अन्य रिश्तेदार भी एक लड़की की शादी का बोझ उठाने के लिए तैयार नहीं थे. मैं उन्हें दोषी नहीं ठहराना चाहती, क्योंकि एक कुंआरी लड़की की जिम्मेदारी लेना आज कोई आसान काम नहीं है. मेरी मां ने अपनी कम तनख्वाह से मुझे अंगरेजी साहित्य में एम.ए. तक पढ़ाया. मैं ने एम.ए. अव्वल दर्जे में पास किया और उस के बाद अमेरिका में स्कौलरशिप के साथ पीएच.डी. की. उसी दौरान मेरी पहचान शेखर से हुई. अमेरिका में भारतवासियों की एक पार्टी में पहली बार मेरी सहेली ने मुझे शेखर से मिलवाया. पहली मुलाकात में ही शेखर ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया. वह बहुत ही सरलता से मुझ से बात करने लगा. जैसे मुझे बहुत दिनों से जानता हो. पूरी पार्टी में उस ने मेरा साथ दिया.

मुझे शेखर के बोलने का अंदाज बहुत पसंद आया. वह लड़कियों से बातें करने में माहिर था और कई लड़कियां इसी कारण उस पर फिदा हो गई थीं, क्योंकि जब वह मुझ से बातें कर रहा था, तो उस 2 घंटे के समय में कई लड़कियां खुद आ कर उस से बात कर गई थीं. सभी उसे डार्लिंग, स्वीट हार्ट आदि पुकार कर उस के गाल पर चुंबन कर गईं. इस से मुझे मालूम हुआ कि वह लड़कियों के बीच बहुत मशहूर है. वह काफी सुंदर था… लंबाचौड़ा और गोरे रंग का… उस की आंखों में शरारत और होंठों में हसीन मुसकराहट थी. हमारे ही विश्वविद्यालय से एमबीए कर रहा था. उस के पिताजी भारत में दिल्ली शहर के बड़े व्यवसायी थे. शेखर एमबीए करने के बाद अपने पिताजी के कार्यालय में उच्च पद पर बैठने वाला था. ये सब उसी ने मुझे बताया था.

मैं विश्वविद्यालय के होस्टल में रहती थी और वह किराए पर फ्लैट ले कर रहता था. उसी से मुझे मालूम हुआ कि उस के पिता कितने बड़े आदमी हैं. हमारे एकदूसरे से विदा लेते समय शेखर ने मेरा सैल नंबर मांग लिया. सच कहूं तो उस पार्टी से वापस आने के बाद मैं शेखर को भूल गई थी. मेरे खयाल से वह बड़े रईस पिता की औलाद है और वह मुझ जैसी साधारण परिवार की लड़की से दोस्ती नहीं करेगा. उस शुक्रवार शाम 6 बजे मेरे सैल फोन की घंटी बजी.

‘‘हैलो,’’ मैं ने कहा.

‘‘हाय,’’ दूसरी तरफ से एक पुरुष की आवाज सुनाई दी.

मैं ने तुरंत उस आवाज को पहचान लिया. हां वह और कोई नहीं शेखर ही था.

‘‘कैसी हैं आप? उम्मीद है आप मुझे याद करती हैं?’’

मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘कोई आप को भूल सकता है क्या? बताइए, क्या हालचाल हैं? कैसे याद किया मुझे आप ने अपनी इतनी सारी गर्लफ्रैंड्स में?’’

‘‘आप के ऊपर एक इलजाम है और उस के लिए जो सजा मैं दूंगा वह आप को माननी पड़ेगी. मंजूर है?’’ उस की आवाज में शरारत उमड़ रही थी.

‘‘इलजाम? मैं ने ऐसी क्या गलती की जो सजा के लायक है… आप ही बताइए,’’ मैं भी हंस कर बोली.

शेखर ने कहा, ‘‘पिछले 1 हफ्ते से न मैं ठीक से खा पाया हूं और न ही सो पाया… मेरी आंखों के सामने सिर्फ आप का ही चेहरा दिखाई देता है… मेरी इस बेकरारी का कारण आप हैं, इसलिए आप को दोषी ठहरा कर आप को सजा सुना रहा हूं… सुनेंगी आप?’’

‘‘हां, बोलिए क्या सजा है मेरी?’’

‘‘आप को इस शनिवार मेरे फ्लैट पर मेरा मेहमान बन कर आना होगा और पूरा दिन मेरे साथ बिताना होगा… मंजूर है आप को?’’

‘‘जी, मंजूर है,’’ कह मैं भी खूब हंसी.

उस शनिवार मुझे अपने फ्लैट में ले जाने के लिए खुद शेखर आया. मेरी खूब खातिरदारी की. एक लड़की को अति महत्त्वपूर्ण महसूस कैसे करवाना है यह बात हर मर्द को शेखर से सीखनी चाहिए. शाम को जब वह मुझे होस्टल छोड़ने आया तब हम दोनों को एहसास हुआ कि हम एकदूसरे को सदियों से जानते… यही शेखर की खूबी थी. उस के बाद अगले 6 महीने हर शनिवार मैं उस के फ्लैट पर जाती और फिर रविवार को ही लौटती. हम दोनों एकदूसरे के बहुत करीब हो गए थे. मगर मैं एक विषय में बहुत ही स्पष्ट थी. मुझे मालूम था कि हम दोनों भारत से हैं. इस के अलावा हमारे बीच कुछ भी मिलताजुलता नहीं. हमारी बिरादरी अलग थी. हमारी आर्थिक स्थिति भी बिलकुल भिन्न थी, जो बड़ी दीवार बन कर हम दोनों के बीच खड़ी रहती थी.

शुरू से ही जब मैं ने इस रिश्ते में अपनेआप को जोड़ा उसी वक्त से मेरे मन में कोई उम्मीद नहीं थी. मुझे मालूम था कि इस रिश्ते का कोई भविष्य नहीं है. मगर जो समय मैं ने शेखर के साथ व्यतीत किया वह मेरे लिए अनमोल था और मैं उसे खोना नहीं चाहती थी. इसलिए मुझे हैरानी नहीं हुई जब शेखर ने बड़ी ही सरलता से मुझे अपनी शादी का निमंत्रण दिया, क्योंकि उस रिश्ते से मुझे यही उम्मीद थी. अगले हफ्ते ही वह भारत चला गया और उस के बाद हम कभी नहीं मिले. कभीकभी उस की याद मुझे आती थी, मगर मैं उस के बारे में सोच कर परेशान नहीं होती थी. मेरे लिए शेखर एक खत्म हुए किस्से के अलावा कुछ नहीं था.

शेखर के चले जाने के बाद मैं 1 साल के लिए अमेरिका में ही रही. इस दौरान मेरी मां भी अपनी अध्यापिका के पद से सेवानिवृत्त हो चुकी थीं. उन्हें अमेरिका आना पसंद नहीं था, क्योंकि वहां का सर्दी का मौसम उन के लिए अच्छा नहीं था. इसलिए मैं अपनी पीएच.डी. खत्म कर के भारत लौट आई. अमेरिका में जो पैसे मैं ने जमा किए और मेरी मां के पीएफ से मिले उन से मुंबई में 2 बैडरूम वाला फ्लैट खरीद लिया. बाद में मुझे क्व30 हजार मासिक वेतन पर एक कालेज में लैक्चरर की नौकरी मिल गई. मेरे मुंबई लौटने के बाद मेरी मां मेरी शादी करवाना चाहती थीं. उन्हें डर था कि अगर उन्हें कुछ हो जाए तो मैं इस दुनिया में अकेली हो जाऊंगी. मगर शादी इतनी आसान नहीं थी. शादी के बाजार में हर दूल्हे के लिए एक तय रेट होता था. हमारे पास मेरी तनख्वाह के अलावा कुछ भी नहीं था. ऊपर से मेरी मां का बोझ उठाने के लिए लड़के वाले तैयार नहीं थे.

जब मैं अमेरिका से मुंबई आई थी तब मेरी उम्र 25 साल थी. शादी के लिए सही उम्र थी. मैं भी एक सुंदर सा राजकुमार जो मेरा हाथ थामेगा उसी के सपने देखती रही. सपने को हकीकत में बदलना संभव नहीं हुआ. दिन हफ्तों में और हफ्ते महीनों में और महीने सालों में बदलते हुए 3 साल निकल गए. मेरी जिंदगी में दोबारा एक आदमी का प्रवेश हुआ. उस का नाम ललित था. वह भी अंगरेजी का लैक्चरर था. मगर उस ने पीएचडी नहीं की थी. सिर्फ एमफिल किया था. पहली मुलाकात में ही मुझे मालूम हो गया कि वह भी मेरी तरह मध्यवर्गीय परिवार का है और उस की एक मां और बहन है. उस ने कहा कि उस के पिता कई साल पहले इस दुनिया से जा चुके हैं और मां और बहन दोनों की जिम्मेदारी उसी पर है.

पहले कुछ महीने हमारे बीच दोस्ती थी. हमारे कालेज के पास एक अच्छा कैफे था. हम दोनों रोज वहां कौफी पीने जाते. इसी दौरान एक दिन उस ने मुझे अपने घर बुलाया. वह एक छोटे से फ्लैट में रहता था. उस की मां ने मेरी खूब खातिरदारी की और उस की बहन जो कालेज में पढ़ती थी वह भी मेरे से बड़ी इज्जत से पेश आई. इसी दौरान एक दिन ललित ने मुझ से कहा, ‘‘उर्मी, क्या आप मेरे साथ कौफी पीने के लिए आएंगी?’’उस का इस तरह पूछना मुझे थोड़ा अजीब सा लगा, मगर फिर मैं ने हंस कर पूछा, ‘‘कोई खास बात है जो मुझे कौफी पीने को बुला रहे हो?’’

उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘हां, बस ऐसा ही समझ लीजिए.’’

शाम कालेज खत्म होने के बाद हम दोनों कौफी शौप में गए और एक कोने में जा कर बैठ गए. मैं ने उस के चेहरे को देख कर कहा, ‘‘हां, बोलो ललित क्या बात करनी है मुझ से?’’ ललित ने बिना किसी हिचकिचाहट के कहा, ‘‘उर्मी, मैं बातों को घुमाना नहीं चाहता हूं. मैं तुम से प्यार करता हूं. अगर तुम्हें भी मंजूर है, तो मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’ यह सुन कर मुझे सच में झटका लगा. मुझे जरा सा भी अंदाजा नहीं था कि ललित इस तरह मुझ से पूछेगा.

मैं ने ललित के बारे में बहुत सोचा. मुझे तब तक मालूम हो चुका कि मेरे पास जो पैसे हैं वे मेरी शादी के लिए बहुत कम हैं और फिर मेरी मां को भी अपनाने वाला दूल्हा मिलना लगभग नामुमकिन ही था. इस बारे में मेरे दिल ने नहीं दिमाग ने निर्णय लिया और मैं ने ललित को अपनी मंजूरी दे दी. उस के बाद हर हफ्ते हम रविवार को हमारे घर के सामने वाले पार्क में मिलते. इसी बीच यकायक ललित 3 दिन की छुट्टी पर चला गया. ललित चौथे दिन कालेज आया. उस का चेहरा उतरा हुआ था. शाम को हम दोनों पार्क में जा कर बैठ गए. मुझे मालूम था कि ललित मुझ से कुछ कहना चाह रहा, मगर कह नहीं पा रहा.  फिर उस ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो उर्मी… मैं ने खुद ही तुम से प्यार का इजहार किया था और अब मैं ही इस रिश्ते से पीछे हट रहा हूं. तुम्हें मालूम है कि मेरी एक बहन है. वह किसी लड़के से प्यार करती है और उस लड़के की एक बिन ब्याही बहन है. उन लोगों ने साफ कह दिया कि अगर मैं उन की लड़की से शादी करूं तो ही वे मेरी बहन को अपनाएंगे. मेरे पास अब कोई रास्ता नहीं रहा.’’

मैं 1 मिनट के लिए चुप रही. फिर कहा, ‘‘फैसला ले ही लिया तो अब किस बात का डर… शादी मुबारक हो ललित,’’ और फिर घर चली आई. 1 महीने में ललित और उस की बहन की शादी धूमधाम से हो गई. अब ललित कालेज की नौकरी छोड़ कर अपनी ससुराल की कंपनी में काम करने लगा. अब मनोहर से मेरी शादी हुए 1 महीना हो गया है. मेरी ससुराल वालों ने मेरे पति को मेरे साथ मेरे फ्लैट में रहने की इजाजत दे दी ताकि मेरी मां को भी हमारा सहारा मिल सके. इस नई जिंदगी से मुझे कोई शिकायत नहीं. मेरे पति एक अच्छे इनसान हैं. मुझे किसी भी बात को ले कर परेशान नहीं करते हैं. मेरी बहुत इज्जत करते हैं. औरतों को पूरा सम्मान देते हैं. उन का यह स्वभाव मुझे बहुत अच्छा लगा. ‘‘उर्मी जल्दी से तैयार हो जाओ. हमारी शादी के बाद तुम पहली बार मेरे दफ्तर की पार्टी में चल रही हो. आज की पार्टी खास है, क्योंकि हमारे मालिक के बेटे दिल्ली से मुंबई आ रहे हैं. तुम उन से भी मिलोगी.’’

जब हम पार्टी में पहुंचे तो कई लोग आ चुके थे. मेरे पति ने मुझे सब से मिलवाया. इतने में किसी ने कहा चेयरमैन साहब आ गए. उन्हें देख कर एक क्षण के लिए मेरी सांस रुक गई. चेयरमैन कोई और नहीं शेखर ही था. तभी सभी को नमस्कार कहते हुए शेखर मुझे देख कर 1 मिनट के लिए चौंक गया.

मेरे पति ने उस से कहा, ‘‘मेरी बीवी है सर.’’

शेखर ने हंसते हुए कहा, ‘‘मुबारक हो… शादी कब हुई?’’ मेरे पति उस के सवालों के जवाब देते रहे और फिर वह चला गया. कुछ देर बाद शेखर के पी.ए. ने आ कर कहा, ‘‘मैडम, चेयरमैन साहब आप को बुला रहे हैं अकेले.’’ मैं ने चुपके से अपने पति के चेहरे को देखा. पति ने भी सिर हिला कर मुझे जाने का इशारा किया. शेखर एक बड़ी मेज के सामने बैठा था. मैं उस के सामने जा कर खड़ी हो गई.

शेखर ने मुझे देख कर कहा, ‘‘आओ उर्मी, प्लीज बैठो.’’

मैं उस के सामने बैठ गई. शेखर ने कहा, ‘‘मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं. मैं सीधे मुद्दे पर आ जाऊंगा… मैं हमारी पुरानी दोस्ती को फिर से शुरू करना चाहता हूं बिलकुल पहले जैसे. मैं तुम्हारे पति का दिल्ली में तबादला कर दूंगा. अगर तुम चाहती हो तो तुम्हें दिल्ली के किसी कालेज में लैक्चरर की नौकरी दिला दूंगा.’’ वह ऐसे बोलता रहा जैसे मैं ने उस की बात मान ली. मगर मैं उस वक्त कुछ नहीं कह सकी. चुपचाप लौट कर पति के सामने आ कर बैठ गई. कुछ भी नहीं बोली. टैक्सी से लौटते समय भी कुछ नहीं पूछा उन्होंने. घर लौटने के बाद मेरे पति ने मुझ से कुछ भी नहीं पूछा. मगर मैं ने उन से सारी बातें कहने का फैसला कर लिया. पति ने मेरी सारी बातें चुपचाप सुनीं. मैं ने उन से कुछ नहीं छिपाया.

मेरी आंखों से आंसू आने लगे. मेरे पति ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘उर्मी, तुम ने कुछ गलत नहीं किया. हम सब के अतीत में कुछ न कुछ हुआ होगा. अतीत के पन्नों को दोबारा खोल कर देखना बेकार की बात है. कभीकभी न चाहते हुए भी हमारा अतीत हमारे सामने खड़ा हो जाता है, तो हमें उसे महत्त्व नहीं देना चाहिए. हमेशा आगे की सोच रखनी चाहिए. शेखर की बातों को छोड़ो. उस का रुपया बोल रहा है… हम कभी उस का मुकाबला नहीं कर सकते… मैं कल ही अपना इस्तीफा दे दूंगा. दूसरी नौकरी ढूंढ़ लूंगा. तुम चिंता करना छोड़ो और सो जाओ. हर कदम मैं तुम्हारे साथ हूं,’’ और फिर मुझे बांहों में भर लिया. उन की बांहों में मुझे फील हुआ कि मैं महफूज हूं. इस के अलावा और क्या चाहिए एक पत्नी को?

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जब पैरेंट्स लव मैरिज के लिए न हो तैयार, तो इस शादी के लिए मनाएं कैसे?

शादी एक खूबसूरत रिश्ता है जो प्यार और भरोसे की नींव पर टिका रहता है. जब यह शादी दो प्यार करने वाले आपस में करते हैं तो जिंदगी को सारे रंग मिल जाते हैं. अपने प्रेमी के साथ उम्र गुजारने का अहसास ही अलग होता है. मगर अक्सर समाज, परिवार और खासकर रिश्तेदार प्यार के मामले में थोड़े कंजर्वेटिव हो जाते हैं. जहां युवा अपने साथी को चुनने और प्यार के आसमान में ऊंची उड़ान भरने की आज़ादी चाहते हैं वहीं उनके माता पिता अक्सर खुद को समाज, परंपराओं, जाति ,धर्म , हैसियत जैसे मानदंडों में फंसा हुआ पाते हैं और यहीं से असली टकराहट शुरू होती है. ऐसे में सवाल उठता है कि पैरेंट्स को इस शादी के लिए कैसे मनाया जाए;

आप किसी से दिल से प्यार करती हैं और उस के साथ अपनी पूरी जिंदगी बिताना चाहती हैं. वह भी आप से बहुत प्यार करता है मगर आप के पेरेंट्स इस प्यार के खिलाफ हैं और वह नहीं चाहते कि आप उस लड़के से शादी करें. पैरेंट्स अपने हिसाब से आप की शादी कराना चाहते हैं. ऐसे में आप क्या करेंगी? चुपचाप अपने सपनों का गला घोटकर पैरेंट्स की बात मान लेंगी या फिर पैरेंट्स को छोड़ कर उस लड़के के साथ अपना घर बसाएंगी?

जैसा कि हम जानते हैं आज के समय में लड़कियां अपने सपनों को और अपनी जिंदगी को अपने हिसाब से जीना चाहती है. ऐसी बहुत सी लड़कियां हैं जो अपनी जिंदगी के बड़े फैसले खुद करती हैं. उन्हें अगर पैरेंट्स की बात सही नहीं लगती तो वे अपने लिए आवाज उठाती हैं. कई दफा ऐसी हालत में लड़कियों को अपने पैरेंट्स का घर छोड़ने का फैसला लेना पड़ता है. मगर जो भी हो कोई बड़ा फैसला लेने से पहले अपनी तरफ से पैरेंट्स को इस शादी के लिए मनाने कर प्रयास जरूर करना चाहिए.

किन कारणों से तैयार नहीं होते पेरेंट्स

परिवार – लव मैरिज के लिए मना परिवार के कारण भी होता है. लड़की या लड़के के परिवार का कोई आपराधिक रिकॉर्ड रहा हो या फिर उन्हें गुंडागर्दी के लिए जाना जाता हो तो प्रेम विवाह में अड़चन आ सकती है.

अलग जाति और धर्म – भारत में शादी से पहले जाति और धर्म पर परिवार जरूर गौर करती है. धार्मिक ठेकेदारों और धर्मग्रंथों ने लोगों के दिलों में अलग धर्म या जाति  के लोगों के प्रति कड़वाहट और वैमनस्य की जड़ें इतनी गहरी खोद दी हैं कि ज्यादार लोग एकदूसरे से ही नफरत करने लगे हैं. ऊंच नीच और छुआछूत की दीवारें मजबूती से खड़ी कर दी गईं हैं जिन का खामियाजा युवा प्रेमियों को भुगतना पड़ता है. ऐसे में अलग धर्म और जाति के व्यक्ति से रिश्ते के लिए पेरेंट्स बिल्कुल राजी नहीं होते हैं.

समाज का डर – कई परिवार वालों के लिए अपने बच्चे की खुशी ही सबसे ज्यादा मायने रखती है इसलिए वो जाति, धर्म और परिवार के इतिहास के बारे में ज्यादा नहीं सोचते. लेकिन समाज का डर उनके मन में बना रहता है. सामाजिक बहिष्कार का डर और बदनामी के डर से वो अपने बच्चे के प्रेम विवाह के खिलाफ हो जाते हैं.

आर्थिक स्थिति – अमीर परिवार के लड़के या लड़की खुद से कम पैसे वाले परिवार की लड़की या लड़के से प्यार करता है तो भी पैरेंट्स का लव मैरिज के लिए मानना मुश्किल हो जाता है.

उम्र का अंतर – प्रेम विवाह में एक मुश्किल उम्र भी है. अगर आपकी उम्र का अंतर प्रेम विवाह करने वाले से ज्यादा या कम है तो भी माता-पिता को प्रेम विवाह के लिए राजी करना कठिन हो सकता है.

प्रेम विवाह के लिए अपने पैरेंट्स को कैसे करें तैयार

कुछ समय पहले ‘2 स्टेट्स’ फिल्म आई थी जो चेतन भगत द्वारा लिखित उपन्यास  ‘2 स्टेट्स’ पर आधारित थी. इस फिल्म में भी इसी समस्या को उठाया गया था. आलिया भट्ट और अर्जुन कपूर दो अलग राज्य, अलग संस्कृति और भाषा वाले घरों से थे. आलिया साउथ इंडियन तो अर्जुन पंजाबी. दोनों को अपने पेरेंट्स को मनाने के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़े थे मगर अंत में दोनों परिवारों ने इस रिश्ते को मंजूरी दे दी थी. आप भी कोशिश करें तो संभव है कि आप के पेरेंट्स शादी के लिए तैयार हो जाएं मगर इस के लिए कोशिशें आप को करनी होंगी. अपने माता-पिता को प्रेम विवाह के लिए मनाने के कुछ टिप्स और ट्रिक्स ये हैं;

आर्थिक स्वावलंबन जरूरी

सब से पहले अगर आप आर्थिक रूप से शादी करने मैं सक्षम हैं तो आप को माँ बाप को मनाने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी. अक्सर पेरेंट्स किसी बेरोजगार या निठल्ले इंसान को अपनी बेटी देने से कतराते हैं. लड़का कामयाब है तो कोई माँ बाप मना नहीं करेंगे लेकिन अगर लड़का बेरोजगार है कमाता नहीं है तो लड़की वाले रिस्क नहीं उठाना चाहेंगे और आप जैसे तैसे मना भी लेंगे तो भविष्य मैं आप दोनों को आर्थिक संकट से जूझना पड़ेगा. हर माँ बाप चाहते है कि लड़की अच्छे घर मैं जाये उसे आर्थिक संकट का सामना ना करना पड़े. आप दोनों पहले अपना करियर बनाये ताकि आप पूरी हिम्मत के साथ पेरेंट्स के आगे शादी की बात रख सकें.

अपने रिश्ते को लेकर आश्वस्त हो जाएं

प्रेम विवाह जैसे बड़े फैसले के बारे में अपने मातापिता से बात करने से पहले अपने रिश्ते के बारे में पहले से सुनिश्चित होना बहुत जरूरी है. अपने साथी से बात करें और पूछें कि क्या आप दोनों अपने रिश्ते और शादी के बारे में एक ही राय रखते हैं. अगर आप में से कोई भी कमिटमेंट से डरता है तो यह आपके माता पिता को मनाने की सारी कोशिशों को बेकार कर सकता है.

सही समय देख कर अपने मातापिता को उस ख़ास व्यक्ति के बारे में बताएं

अपने साथी को अपने घर बुलाकर और उन्हें अपने दोस्त के रूप में पेश करके अपने माता पिता को प्रेम विवाह के अपने विचार के लिए तैयार करें. त्यौहार और विशेष अवसर हमेशा ऐसे मिलन के लिए मददगार होते हैं. छोटी छोटी मुलाकातें आपके माता पिता और साथी को एक-दूसरे से घुलने मिलने का समय देंगी जिससे असहजता दूर होगी. एक बार जब वे एक दूसरे के साथ घुल मिल जाएंगे तो उनके बीच की उलझन को दूर करना आसान हो जाएगा.

सफल प्रेम विवाह के उदाहरण दें

अगर आप अपने मातापिता को मनाना चाहते हैं तो उन्हें सफल प्रेम विवाह के जीवंत उदाहरण दिखाएं. आप के जिस दोस्त ने ऐसा किया है उस के बारे में बताएं. उन्हें समझाएं कि जब आप विवाह के बारे में सोचते हैं तो आपके लिए सबसे ज़्यादा क्या मायने रखता है जैसे कि उनका स्वभाव, उदारता, शिक्षा, योग्यता, अनुकूलता इत्यादि.

अपने माता पिता के आगे अपनी परिपक्वता साबित करें

अपने माता पिता के लिए हम हमेशा बच्चे ही रहेंगे चाहे हम कितने भी बड़े हो जाएँ. उन्हें यह साबित करने के लिए कि आप अब बच्चे नहीं हैं और परिवार के लिए सही निर्णय और जिम्मेदारी ले सकते हैं. पारिवारिक समस्याओं में शामिल हों और उन्हें हल करने का प्रयास करें. ज़िम्मेदारी और समझदारी से काम लें. ऐसे निर्णय लें जो आपकी परिपक्वता को दर्शाते हों. इससे आपको फायदा होगा और आपके माता पिता को लगेगा कि आप काफी परिपक्व हैं और अपने जीवन के लिए अच्छे निर्णय ले सकते हैं.

अपने माता पिता की बात सुनें

यदि आप चाहते हैं कि आपके मातापिता आपकी बात सुनें तो उन्हें भी अपने विचार आपके साथ साझा करने का मौका दें. उनके विचारों और चिंताओं को सुनें. उन्हें जल्दबाजी में न लें उन्हें पूरी स्थिति को समझने के लिए कुछ समय दें. तार्किक शर्तों पर सहमत होने का प्रयास करें.

उन्हें अपने साथी के अच्छे गुणों के बारे में बताएं

उन्हें अपने साथी के आपके लिए सबसे अच्छे होने के पीछे के कारणों को बताएँ. रिश्ते के प्रति उस की ईमानदारी और कमिटमेंट का जिक्र करें. साथी के सर्वोत्तम गुणों के बारे में बताते हुए समझाएं कि आप और आपका साथी हर तरह से एक-दूसरे के अनुकूल क्यों हैं भले ही आपकी जाति या धर्म अलग हो.

दोस्तों या रिश्तेदारों से मदद मांगें

अपने माता पिता को प्रेम विवाह के लिए राजी करने के लिए आपको किसी ऐसे व्यक्ति की मदद की ज़रूरत है जिसे वे पसंद करते हों और जिस पर भरोसा करते हों. यह आपके परिवार/रिश्तेदारों में से कोई हो . यह आपका कोई दोस्त हो सकता है जो उन्हें बहुत प्रिय हो या आपके परिवार का कोई बुजुर्ग जिसका वे बहुत सम्मान करते हों और जिसे वे ‘ना’ नहीं कह सकते.

कम से कम एक अभिभावक को समझाने का प्रयास करें

यह ध्यान देने और देखने का समय है कि आपके माता पिता में से कौन आप से अधिक ओपन और फ्रेंडली हैं ताकि वे यह माता-पिता आपके चुने हुए साथी के साथ आपके विवाह में मध्यस्थ होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें. अगर आपको लगता है कि आपके माता पिता में से किसी एक को आपके प्रेम विवाह के लिए मनाना आसान है तो उस पैरेंट पर ज्यादा ध्यान दें और उन्हें पूरी तरह से मनाने की कोशिश करें. उन को अपने साथी से मिलने दें और एक-दूसरे को थोड़ा जानने दें. एक बार जब वह राजी हो जाएं तो दूसरे पैरेंट भी जल्द राजी हो ही जाएंगे.

दोनों परिवारों की मीटिंग करवाएं

इससे पहले कि आप दोनों परिवारों के बीच मुलाकात तय करें अपने ससुराल वालों से मिलना, उनकी परंपराओं, संस्कृतियों और मूल्यों के बारे में जानने की कोशिश करना और अपने परिवार की परंपराओं, पारिवारिक पृष्ठभूमि और संस्कृतियों के साथ-साथ अपने माता-पिता के बारे में कुछ विवरण साझा करना ज़रूरी है. इस के बाद दोनों परिवारों को भी मिलाने की कोशिश करें.

 
पैरेंट्स पर दबाव बनाएं

पेरेंट्स पर दबाव बनाने के लिए आप तीन दिन का भूख हड़ताल कर सकती हैं. अपने बच्चे को भूखा देना किसी भी पेरेंट्स के लिए आसान नहीं. इसी तरह आप पेरेंट्स से कह सकती हैं कि इस लड़के से शादी न हुई तो आप किसी और से भी कभी शादी नहीं करेंगी. आप पेरेंट्स से बातचीत करना बंद कर सकती हैं. आप घर से निकलना बंद कर सकती हैं. आप उन पर दबाव डालने के लिए अपनी सहेलियों को बुला सकती हैं.

जल्दबाजी में फैसला न लें

जब आपके माता पिता लाख कोशिशों के बावजूद आप के रिश्ते का समर्थन नहीं करते हैं तो धैर्य न खोएं. यह एक कठिन स्थिति है लेकिन याद रखें कि जल्दबाजी में निर्णय न लें. इस निष्कर्ष पर न पहुंचे कि आपके माता पिता सही हैं और तुरंत अपने साथी से रिश्ता तोड़ दें या तुरंत ही भाग कर शादी करने का फैसला ले लें. हर पहलू पर अच्छे से विचार करें. अपने माता पिता को स्थिति के अनुकूल ढलने के लिए कुछ समय दें. यह उनके लिए भी एक बड़ी बात है इसलिए थोड़ा धैर्य रखना बहुत मददगार हो सकता है. उन्हें आपके नजरिए से चीजों को समझने में कुछ महीने लग सकते हैं. इस दौरान बातचीत करते रहने की कोशिश करें और उन्हें अहसास दिलाएं कि आपका रिश्ता आपके लिए महत्वपूर्ण और सार्थक है.

सुनिश्चित करें कि आप आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं

अगर आप प्रेमी के साथ शादी करने का फैसला करते हैं तो यह जरूरी है कि आप और आपका साथी दोनों ही खुद का खर्च उठाने के लिए तैयार हों. कोई भी फैसला करने से पहले अपनी वित्तीय स्थिति का आकलन करने के लिए कुछ समय निकालें. अगर आप किराए और राशन जैसे बुनियादी खर्च उठाने में असमर्थ हैं तो यह इस बात का संकेत हो सकता है कि आप शादी के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं. अपने साथी के साथ उनकी वित्तीय स्थिति के बारे में ईमानदारी से बातचीत करें. यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि शादी के बाद आप घर खर्च कैसे मैनेज करेंगे.  क्योंकि जब आप भाग कर शादी करते हैं तो पेरेंट्स का आर्थिक सहयोग नहीं मिलेगा. शादी के बाद पैसे के लिए पार्टनर से झगड़े हों और आप टूट जाएं या रिश्ता संभाल न पाएं उस से बेहतर है कि शादी का फैसला तभी लें जब आप एक किराए का घर और जीवन के संभावित  खर्चे उठाने में अच्छी तरह सक्षम हों.

खुद को सही साबित करें

अगर आप के पेरेंट्स अंत तक नहीं मानते और आप को भाग कर या उन की नाराजगी के साथ शादी करनी पड़ती है तो भी निराश न हों. सही समय का इन्तजार करें और उन्हें आशीर्वाद देने के लिए राजी करने का प्रयास करते रहे. दो एक साल में जब वे देखेंगे कि आप आत्मनिर्भर और खूबसूरत और  जिंदगी जी रही हैं, आप को कोई परेशानी नहीं और आप दोनों ने मिलकर अपनी जिंदगी अच्छी तरह मैनेज कर ली है तो धीरे धीरे उन का रुख भी बदलता जाएगा. उन्हें यह अहसास दिलाएं कि आप का फैसला सही था और आप पार्टनर के साथ बहुत खुश और संतुष्ट हैं. आप की गृहस्थी की गाड़ी बिना किसी परेशानी अच्छे से चल रही है और वाकई आप का पार्टनर आप का बहुत ख़याल रखता है तो कहीं न कहीं आप के पेरेंट्स का दिल भी पिघलने लगेगा और वे ज्यादा समय तक आप से मुंह मोड़ कर नहीं रह पाएंगे.

मैं एक लड़के से प्यार करती हूं,जाति अलग होने की वजह से हमारे घर वाले शादी के लिए तैयार नहीं हो रहे,क्या करूं?

सवाल

मैं 19 साल की हूं और अपने से 2 साल बड़े लड़के से प्यार करती हूं. हम ने कई बार सैक्स का आनंद भी उठाया है. वह मुझे बहुत प्यार करता है और मुझसे शादी करना चाहता है. उस के घर वालों को भी कोई ऐतराज नहीं है पर मेरे घर वाले तैयार नहीं हो रहेक्योंकि वह अलग जाति का है और मैं अलग जाति की. हमारे रिश्ते के बारे में घर वालों को पता चला तो मेरी पढ़ाई छुड़वा दी और मोबाइल भी ले लिया. फिर भी मैं लड़के से चोरीछिपे बात कर लेती हूं. बौयफ्रैंड मुझसे बिना बात किए नहीं रह सकता. इस की वजह से उस की पढ़ाई भी डिस्टर्ब हो रही है. वह कह रहा है कि अगर घर वाले नहीं मान रहे तो अभी रुको4 साल बाद जब मेरी पढ़ाई पूरी हो जाएगी तो हम शादी कर लेंगे. मगर इस दिल को कैसे तसल्ली दूंजो दिनरात उसी के लिए धड़क रहा हैबताएं मैं क्या करूं?

जवाब 

अभी आप की उम्र काफी छोटी है. यह उम्र पढ़लिख कर कुछ बनने की होती है. मगर आप कच्ची उम्र में ही गलती कर बैठीं. यहां तक कि जिस्मानी संबंध भी बना लिए. आप के पेरैंट्स का सोचना सही है. वे भी यही चाहते होंगे कि पहले आप अपने पैरों पर अच्छी तरह खड़ी हो जाएंकैरियर बना लें तभी शादी की सोचेंगे.

खैरजो होना था सो हो गया. अब सम?ादारी इसी में है कि आप पहले अपने घर वालों को विश्वास में ले कर अपनी पढ़ाई जारी रखें. बौयफ्रैंड को भी अपना कैरियर बनाने दें.

अगर वह 4 साल इंतजार करने को कह रहा है तो उस का सोचना भी सही है. अगर वह आप से सच्ची मुहब्बत करता है तो 4 साल बाद ही सहीआप से जरूर विवाह करेगा. रही बात एकदूसरे की जाति अलगअलग होने कीतो आज के समय में ये सब दकियानूसी बातें हैं. समाज में ऐसी शादियां खूब हो रही हैं.

देरसवेर आप के पेरैंट्स भी मान जाएंगे. अगर न मानें तो आप दोनों कोर्ट मैरिज कर सकते हैं. फिलहाल यही जरूरी है कि आप दोनों ही अपनेअपने कैरियर पर ध्यान दें.

लव मैरिज टूटने के ये हैं 10 कारण

विवाह से पहले एकदूसरे को पाने की चाह में जो युगल समाज तथा परिवार के विरुद्ध जाने से भी संकोच नहीं करते, अचानक विवाह होते ही या उम्र के किसी भी पड़ाव में एकदूसरे से आखिर अलग होने का निश्चय क्यों कर लेते हैं. यह बहुत चिंतनीय विषय है, क्योंकि पहले के जमाने के विपरीत आधुनिक समय में अधिकतर विवाह युवाओं द्वारा स्वेच्छा से किए जा रहे हैं. मातापिता द्वारा पारंपरिक सुनियोजित विवाह को उन के द्वारा नकारा जा रहा है. इन के असफल होने के कई ठोस कारण हैं:

– प्रेम विवाह बौलीवुड की ही देन है, जहां जीवनसाथी ढूंढ़ते समय न उम्र की परवाह होती है न जाति के बंधन की. जिस रफ्तार से प्रेम विवाह का फैसला यहां लिया जाता है उसी रफ्तार से तलाक भी हो जाता है. ‘तू नहीं और सही’ यह सोच पूरे बौलीवुड को अपनी गिरफ्त में लिए हुए है, जिस के प्रभाव से साधारण जनता भी अछूती नहीं है. यह तो सर्वविदित है ही कि फिल्मों के नायकनायिका की जीवनशैली आम जनता को बहुत जल्दी प्रभावित करती है, क्योंकि वे उन के आदर्श होते हैं.

– बौंबे हाई कोर्ट ने एक केस के संदर्भ में 2012 में बताया था कि अरेंज्ड मैरिज के बजाय प्रेम विवाहों में तलाकों की संख्या कहीं ज्यादा है. 1980 से प्रेम विवाह के चलन ने जोर पकड़ा. उस से पहले प्रेम की अभिव्यक्ति ही इतनी कठिन थी कि परिवार वालों के सामने जाहिर होने से पहले ही वह कहीं और रिश्ता जुड़ने के कारण दम तोड़ देती थी. यह चलन अभी महानगरों तक ही सीमित है. अभी छोटे शहरों और गांवों में इसे समाज द्वारा मान्यता नहीं मिली है. यह स्थिति भी देखने को मिल सकती है कि यदि परिवार वालों को पता लग जाता है, तो समाज में अपने मानसम्मान को ठेस न पहुंचे, इस से बचने के लिए वे अपने बच्चों की हत्या तक करने से भी गुरेज नहीं करते.

– प्रेम जिस की परिणति विवाह में होती है वह वास्तव में प्रेम नहीं होता, महज शारीरिक आकर्षण होता है. प्रेम और विवाह सिक्के के दो पहलू होते हैं. कोई जरूरी नहीं कि एक प्रेमी अच्छा पति भी साबित हो या एक प्रेमिका अच्छी पत्नी साबित हो. विवाह के पहले एक ही व्यक्ति के गुणों पर रीझ कर उस के साथ जीवनयापन का निर्णय करते हैं, लेकिन भारत में विवाह के बाद पत्नी को पति के सारे परिवार से तालमेल बना कर चलना पड़ता है, पति को भी पत्नी के साथ अपने परिवार की जिम्मेदारी निभानी होती है.

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प्रेम विवाह तभी सफल होता है जब इस का आधार त्याग, प्रतिबद्धता, समर्पण, समझौता हो जोकि प्राय: आधुनिक युवावर्ग में देखने को नहीं मिलता है, इसलिए विवाह के पहले देखे गए दिवास्वप्न विवाह के बाद धराशायी होते देख कर पत्नी विद्रोह करने लगती है, जिस का परिणाम तलाक होता है.

– आधुनिक लड़कियां पढ़लिख कर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो गई हैं. इस का सकारात्मक प्रभाव के साथ नकारात्मक प्रभाव यह पड़ रहा है कि वे असहनशील होने के साथसाथ अभिमानी भी हो रही हैं, जोकि सफल वैवाहिक जीवन के लिए घातक है.

– आधुनिक युवावर्ग अपनी वैयक्तिकता को प्राथमिकता देता है और किसी भी प्रकार का समझौता करने से कतराता है, जोकि वैवाहिक जीवन का आधार है. इसी कारण केरल राज्य में तलाकों की संख्या सब से अधिक है. वहां के लोगों की सोच है कि हर व्यक्ति को विवाह करना ही क्यों चाहिए?

– अमेरिका और कनाडा के साथसाथ कई पश्चिमी देशों के लोग भी अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्राथमिकता देते हैं. आजकल हमारे युवा भी या तो उन देशों में नौकरी के कारण वहां जा कर बस गए हैं या फिर भारत में रह कर विदेशी कंपनियों में नौकरी कर रहे हैं, इसलिए वहां के लोगों के वैवाहिक जीवन का हमारी युवा पीढ़ी पर भी बहुत प्रभाव पड़ रहा है. मगर वे भूल जाते हैं

कि भारत के विपरीत वहां के युवा न तो परिवार और न ही समाज के प्रति उत्तरदायी होते हैं.

15-16 साल की उम्र के बाद ही न वे मातापिता के प्रति कर्तव्यों के लिए बाध्य होते हैं और न ही मातापिता का उन के प्रति कोई कर्तव्य शेष रह जाता है. उन्हें समाज क्या कहेगा, इस का उन्हें कतई भय नहीं होता है.

– फिर अब तलाक लेना भी बहुत आसान हो गया है खासकर महिलाओं के लिए संविधान की धारा 498 के अंतर्गत वे ससुराल पक्ष पर शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगा कर बहुत आसानी से उन से छुटकारा पा सकती हैं. इस के लिए उन्हें कोई प्रमाण दिखाने की भी आवश्यकता नहीं होती है. हां, इस का महिलाओं द्वारा दुरुपयोग करने के कारण लोगों के दबाव डालने पर संविधान के इस कानून में अब संशोधन किया गया है.

– समाज में दिनप्रतिदिन तलाकों की संख्या में बढ़ोतरी भी युवावर्ग को तलाक लेने के लिए प्रेरित कर रही है. ‘दोस्त तलाक ले सकता है तो मैं क्यों नहीं? शायद दूसरा पार्टनर इस से बेहतर मिल जाए’, यह सोच युवावर्ग पर हावी है.

– प्रेम विवाह अधिकतर बिना सोचेसमझे, अपनी मरजी से होता है, इसलिए उसे अपनी मरजी से तोड़ना भी बहुत आसान लगता है, क्योंकि समाज या परिवार का उन पर किसी प्रकार का दबाव नहीं होता.

– लिव इन रिलेशनशिप भी प्रेम विवाह का ही एक रूप है. महानगरों में इस का चलन खूब जोर पकड़ रहा है. इस में लड़केलड़कियां अपने परिवार को सूचित किए बिना ही स्वेच्छा से एकदूसरे के साथ रहते हैं और आवश्यक नहीं कि साथ रहते हुए वे विवाह के बंधन में बंध ही जाएं. उन्हें रिश्ता टूटने पर तलाक लेने के लिए किसी कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की आवश्यकता नहीं होती है यानी बंधनरहित विवाह में यह बहुत सुखदायी रिश्ता लगता है. लेकिन यह तभी तक ठीक है, जब तक दोनों में तालमेल है, क्योंकि समाज और परिवार की मानसिकता इस रिश्ते की स्वीकृति नहीं देती और उन का सहयोग न मिलने के कारण एक के भी द्वारा रिश्ता तोड़ने पर दूसरा भावनात्मक रूप से आहत हो कर अवसाद में चला जाता है. आत्महत्या तक करने को मजबूर हो जाता है. अभिनेत्री प्रत्यूषा इस का ताजा उदाहरण हैं. उन से पहले जिया खान ने भी यह कदम उठाया था.

2005 में साउथ की प्रसिद्ध अभिनेत्री खुशबू के लिव इन रिलेशनशिप और विवाह से पहले शारीरिक रिश्ता रखने के समर्थन में साक्षात्कार में खुलेआम बोलने पर विरोधियों का कहना था कि इस से हमारे समाज की लड़कियों पर बुरा असर पड़ेगा. अत: उन के विरोध में 22 एफआईआर दर्ज होने के बाद खुशबू द्वारा केस दर्ज करने के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि कोई स्त्री और पुरुष साथ रहना चाहते हैं तो उस का विरोध क्यों हो? ऐसा कर के वे क्या अपराध कर रहे हैं? यह लोगों की मानसिकता के अनुसार गलत हो सकता है, लेकिन गैरकानूनी नहीं. संविधान के आर्टिकल 21 में दिए गए मौलिक अधिकार ‘स्वतंत्रता से जीने का अधिकार’ के अंतर्गत यह आता है. यह उन का व्यक्तिगत मामला है.

प्रेम विवाह की तरह 22 मई, 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप को भी विवाहित रिश्ते के समान वैधानिक घोषित कर दिया था.

तलाक लेने के लिए कानून हमारे हित को ध्यान में रख कर ही बनाया गया है, लेकिन उपयोग के स्थान पर उस का दुरुपयोग भी धड़ल्ले से हो रहा है. मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताडि़त होने पर ही तलाक लेना उचित है. छोटीछोटी बातों को तूल दे कर या कोई दूसरा पसंद आ जाए तो तलाक लेने का परिणाम कभी सुखद नहीं हो सकता. विवाह चाहे किसी भी प्रकार का हो उस की नींव आपसी समझदारी और समझौते पर ही टिकी होती है.

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पश्चिमी देशों के विपरीत हमारे देश में वैवाहिक जीवन में परिवार का जो सहयोग मिलता है वह उसे सफल बनाने के लिए बहुत आवश्यक है.

विवाह सामाजिक बंधन के रूप में ही ठीक है, बिना बंधन के वह बिना पतवार की नौका के समान है, जिस की कोई मंजिल नहीं होती. यहां प्रेम विवाह का विरोध नहीं कर रहे, लेकिन इसे सफल बनाने के लिए सुधारात्मक कदम उठाने अति आवश्यक हैं.

मातापिता को अपने बच्चों की भावनाओं को समझ कर उन की पसंद को स्वीकार करते हुए सहयोगात्मक प्रतिक्रिया देनी चाहिए. उन के मार्गदर्शन से ही बच्चों के वैवाहिक जीवन में ठहराव और अनुशासन की कल्पना की जा सकती है.

लव मैरिज हो अरेंज, आसान नहीं है शादी निभाना

मध्य प्रदेश के विष्णुपुरी इलाके के शिवम अपार्टमैंट में रहने वाली 32 वर्षीया आकांक्षा के दिलोदिमाग में एक सवाल रहरह कर बेचैन किए जा रहा था कि आखिर उपेंद्र से शादी कर उसे क्या मिला? तन्हाई, रुसवाइयां और अकेलापन? क्या इसी दिन के लिए मैं सईदा से आकांक्षा बनी थी? अपना वजूद, अपनी पहचान सबकुछ तो मैं ने उपेंद्र के प्यार पर न्योछावर कर दिया था और वह है कि अब फोन पर बात तक करना गंवारा नहीं कर रहा. क्या मैं ने उपेंद्र से प्रेम विवाह कर गलती की थी? उस के लिए धर्म तो धर्म, परिवार, नातेरिश्तेदार सब छोड़ दिए और वह बेरुखी दिखाता सैकड़ों किलोमीटर दूर बालाघाट में अपनी बीवी के साथ बैठा सुकून भरी जिंदगी जी रहा है. क्या मैं उस के लिए महज जिस्म भर थी?

पर उपेंद्र ने आकांक्षा को जिंदा रहने के लिए एक मकसद दिया था और वह मकसद पास ही बैठा 11 साल का बेटा वेदांत था. वेदांत काफी कुछ समझने लगा था. मम्मी और पापा के बीच फोन पर हुई बातचीत से वह इतना जरूर समझ गया था कि मम्मी अभी गुस्से में हैं इसलिए भूख लगने के बावजूद वह यह कह नहीं पा रहा था कि मुझे भूख लगी है, खाना दे दो. लेकिन जब भूख बढ़ गई तो उस से रहा नहीं गया और काफी इंतजार के बाद उसे कहना पड़ा कि मम्मी, भूख लगी है.

बेटे की इस बात पर मां की ममता थोड़ी जागी और आकांक्षा ने फोन पर खाना और्डर कर वेदांत को छाती से भींच लिया तो हलकी सी उम्मीद वेदांत को बंधी कि अब सबकुछ ठीक हो जाएगा. थोड़ी देर बाद खाना आ गया. खाने के बाद आकांक्षा फिर विचारों के भंवर में फंस गई और सोचतेसोचते उस ने एक सख्त फैसला ले लिया.

आकांक्षा के जेहन में फिर उपेंद्र आ गया था-हट्टाकट्टा स्मार्ट पुलिस वाला जो खुशमिजाज भी था और रोमांटिक भी. उस के व्यक्तित्व पर सईदा ऐसी मरमिटी थी कि दोनों प्यार के बाद शादी के अटूट बंधन में बंध गए. उपेंद्र ने भी अपनी पहली पत्नी की परवा नहीं की और सईदा को पत्नी का दरजा दिया लेकिन चूंकि परिवार और समाज के लिहाज के चलते उसे साथ नहीं रख सकता था इसीलिए अलग इंदौर में रहने की व्यवस्था कर दी थी और हर महीने पर्याप्त पैसे भी भेजा करता था.

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दर्दनाक अंत

शुरूशुरू में तो वक्त आरजू और इंतजार में कट गया लेकिन धीरेधीरे उपेंद्र का इंदौर आनाजाना कम होता गया. आकांक्षा जब भी इस बाबत शिकायत करती तो उस का रटारटाया जवाब होता था कि तुम तो सब जानती हो और यह बात शादी के पहले ही मैं ने तुम्हें बता दी थी. इसलिए आकांक्षा ज्यादा सवाल नहीं कर पाती थी. लेकिन अब आकांक्षा के लिए समय काटना मुश्किल हो रहा था. लिहाजा, रोजरोज फोन पर कलह होने लगी. एक दफा तो बात इतनी बढ़ गई कि उस ने गुस्से मेें गले में फांसी का फंदा मासूम वेदांत के सामने ही डाल लिया था. तब से वेदांत मां से खौफ खाने लगा था.

वेदांत अपने कमरे में जा कर सो गया.  रात डेढ़ बजे के लगभग खटपट की आवाज सुन कर वेदांत की नींद खुली तो वह उठ कर आकांक्षा के कमरे की तरफ आया. वहां का नजारा देख वह सन्न रह गया. आकांक्षा कुरसी पर चढ़ी पंखे से दुपट्टा बांध रही थी यानी अपने लिए फांसी का फंदा तैयार कर रही थी. बेटे को आते देख उस के चेहरे पर किसी तरह के भाव नहीं आए, न ही ममता जागी और वह मशीन की तरह फंदा कसती रही. वेदांत की जान हलक में आ रही थी फिर भी वह हिम्मत जुटा कर बोला, ‘मम्मी प्लीज फांसी मत लगाओ.’

यह नजारा कलात्मक फिल्मों के दृश्यों को भी मात करता हुआ था. आकांक्षा ने बेहद सर्द आवाज में जवाब दिया, ‘तू भी आ जा बेटा, दोनों साथ फांसी लगा लेते हैं.’ वेदांत आकांक्षा की तरफ दौड़ा लेकिन उस के पहुंचने से पहले ही आकांक्षा ने कुरसी पैरों से खिसका दी. मां को फांसी पर झूलता देख वह बाहर गया और सिक्योरिटी गार्ड को आवाज दी. थोड़ी देर ही में शिवम अपार्टमैंट में हलचल मच गई.

आकांक्षा उर्फ सईदा मर चुकी थी. पुलिस आई. फंदा काट कर आकांक्षा का शव नीचे उतारा और कागजी कार्यवाही पूरी की. यह घटना 2 जुलाई की रात की है. जिस ने भी सुना या देखा उस के रोंगटे खड़े हो गए.

प्यार और अव्यावहारिकता

इस तरह एक ऐसी कहानी खत्म हुई जिस में मां की आत्महत्या के अपराध की सजा बेटा अब जिंदगीभर भुगतेगा. कहने या सोचने की कोई वजह नहीं कि  2 जुलाई, 2014 की रात का खौफनाक दिल दहला देने वाला दृश्य देखने के बाद वेदांत सामान्य जीवन जी पाएगा. कम पढ़ीलिखी आकांक्षा जैसी युवतियां दरअसल दूसरी जाति या धर्म में शादी तो कर लेती हैं पर उस के माहौल और रंगढंग में खुद को ढाल नहीं पातीं तो सारा दोष दूसरे तरीकों से पति के सिर मढ़ने की और साबित करने की गलती गुनाह की शक्ल में कर बैठती हैं.

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परिवार और समाज के स्वीकारने, न स्वीकारने की परवा इन दोनों ने भी नहीं की थी पर आकांक्षा हकीकत का सामना ज्यादा वक्त तक नहीं कर पाई. जिंदगी के प्रति उस का नजरिया नितांत अव्यावहारिक और अतार्किक था जो उस की मौत की वजह भी बना पर इस से किसी को कुछ हासिल नहीं हुआ. उपेंद्र जिंदगीभर खुद को कोसता रहेगा और वेदांत पर क्या गुजरेगी इस की कल्पना भर की जा सकती है. आजकल हिम्मत और बगावत कर प्रेम विवाह करना पहले के मुकाबले आसान हो गया है पर निभाना कठिन होता जा रहा है जिस की वजह पुरुष कम और महिलाएं ज्यादा शर्तें थोपती हैं.

देखा जाए तो आकांक्षा और उपेंद्र के बीच कोई खास समस्या नहीं थी. परंपरागत ढंग से और रीतिरिवाजों से शादी करने वाली महिलाओं को भी पति से वक्त न देने की शिकायत रहती है पर वे खुदकुशी नहीं कर लेतीं, हालात के प्रति व्यावहारिक नजरिया रखते हुए समस्या का हल ढूंढ़ लेती हैं और जब बच्चे हो जाते हैं तो उन की परवरिश और कैरियर बनाने में व्यस्त हो जाती हैं या फिर खुद को व्यस्त रखने के लिए दूसरे तरीके खोज लेती हैं. मसलन, पार्ट टाइम जौब या अपने शौक पूरे करना आदि. और जब वे ऐसा नहीं करतीं या कर पातीं तो खासी परेशानियां पति और बच्चों के लिए खड़ी करने लगती हैं. इसे स्त्रियोचित जिद और नादानी ही कहा जा सकता है. पति की नौकरी या व्यवसाय और उस की व्यस्तताओं व परेशानियों से वास्ता रखना तो दूर की बात है उलटे जब पत्नियां इस पर कलह करने लगती हैं तो बात बिगड़ना तय होता है.

गैरजातीय प्रेम विवाह

दूसरी जाति और धर्म में शादी करने वाली महिलाओं को तो और संभल कर व समझौते कर रहना जरूरी होता है. परिवार और समाज किसी भी विद्रोह को अब शर्तों पर स्वीकारते हैं. जब प्यार होता है तो प्रेमियों की हिम्मत और दुसाहस देखते बनता है पर शादी के बाद उन के रंगढंग बदलने लगते हैं. वजहें बाहरी कम अंदरूनी ज्यादा होती हैं. एक स्त्री अपने प्रेमी से वादा करती है कि शादी कर लो, मैं सबकुछ बरदाश्त कर लूंगी, धर्म के कोई खास माने नहीं, तुम्हारे मुताबिक चलूंगी, अलग रह लूंगी और कोई शिकवाशिकायत नहीं करूंगी. शादी के बाद ये सारी बातें हवा हो जाती हैं. आकांक्षा इस की ताजा मिसाल है. वह पति की हदें और मजबूरियां भूल गई थी. लिहाजा, उस ने खुद को सही साबित करने के लिए पति के कान खाने शुरू कर दिए. इस पर भी बात नहीं बनी तो खुदकुशी कर ली.

यह टकराव और शिकायतें समस्या का हल नहीं थे जो अकसर खुद पत्नियां पैदा करती हैं. समझदार पत्नी वास्तविकता को स्वीकारती है और हर हाल में सुख से रहती है. वह जानतीसमझती है कि बेवजह की कलह और टकराव से सिवा अलगाव और तलाक के कुछ हासिल नहीं होने वाला क्योंकि पति के बरदाश्त करने की भी हदें होती हैं जो जिंदगी में कई मोरचों पर लड़ रहा होता है. मैं ने उन के लिए धर्म या जाति छोड़ कर अहसान किया है यह मानसिकता ही सारे फसाद की जड़ है जो ममता और दूसरी जिम्मेदारियों पर भी भारी पड़ती है.

इस का इकलौता हल है बेवजह शिकायतों का पिटारा खोले न बैठे रहना, शिकवे और तानों से दूर रहना और यह याद रखना कि पति ने भी काफी कुछ छोड़ा है, त्यागा है. इस के बाद भी वह खयाल रखता है, खर्च देता है और वक्त मिलने पर आताजाता है  कई नामीगिरामी व्यक्तियों ने दूसरे धर्मों में शादी की है और 2-2 भी की हैं लेकिन यह पत्नियों की समझदारी है कि वे पति को कोसती नहीं रहतीं और खुदकुशी कर पति व बच्चों को बिलखता नहीं छोड़ जातीं बल्कि अपने फैसले को सही साबित कर के दांपत्य में अपनी तरफ से खलल नहीं डालतीं. वक्त रहते लोग इस तरह की शादियों को मान्यता भी देते हैं और स्वीकार भी कर लेते हैं लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने के लिए पत्नियों को लंबे इम्तिहान से गुजरते खुद को समझदार और व्यावहारिक साबित करना पड़ता है नहीं तो खुद वे ही अपने फैसले को गलत साबित करती हैं जिस का खमियाजा पति और बच्चों को भुगतना पड़ता है.

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प्यार पर पहरा क्यों?

दिल्ली के पश्चिम विहार इलाके में रहने वाले प्रतीक (29) ने जब अपने घर  में सिया (25) के बारे में बताया तो मानो घर पर पहाड़ टूट पड़ा हो. सिया के बारे में सुनते ही प्रतीक के घरवाले खुद को दोतरफा चोट खाया महसूस करने लगे. सिया उन के अपने राज्य उत्तराखंड से नहीं थी, वह यूपी से तअल्लुक रखती थी. बड़ी बात यह कि वह जाति से भी अलग थी.

दरअसल, प्रतीक और सिया काफी समय से एकदूसरे से प्रेम कर रहे थे. साथ समय बिताते हुए दोनों के बीच आपसी अंडरस्टैंडिंग काफी अच्छी हो गई थी. दोनों ने शादी करने का फैसला किया. लेकिन उन दोनों के प्रेम संबंध और शादी के बंधन के बीच उन की जाति आड़े आ रही थी. जहां प्रतीक ऊंची जाति था वहीं सिया कथित नीची जाति की थी.

प्रतीक के घर में काफी हंगामा बरपा. शहरी रहनसहन होने के बावजूद जाति की खनक परिवार के कामों में शोर मचा रही थी. यह वही खनक थी, जिस में खुद की जातीय श्रेष्ठता का झठा गौरव ऊंचनीच के भेदभाव की नींव को सदियों से मजबूत कर रहा है. प्रतीक के घर में शादी के लिए नानुकुर हुई. ऐसे में सगेसंबंधी कहां पीछे रहने वाले थे. उन्होंने तो खासकर ताने मारने ही थे.

बात परिवार की इज्जत पर आ गई. लेदे कर परिवार की सहमति बनी कि यह शादी हरगिज नहीं होनी चाहिए. बारबार प्रतीक के समझने के बाद भी घर वाले नहीं माने तो अंत में दोनों ने सहमति बनाई और कोर्ट मैरिज कर ली.

फिलहाल वे परिवार से अलग अच्छी जिंदगी जी रहे हैं. लेकिन उम्मीद इसी बात की करते हैं कि एक दिन प्रतीक के मातापिता जरूर सिया को बहू के रूप में स्वीकार लेंगे.

जाति ने न जाने कितने रिश्तों की भेंट चढ़ा दी

यह तो शहरी मामला रहा जहां प्रतीक और सिया ने कानून का सहारा ले कर शादी रचाई और खुद की इच्छा का जीवनसाथी चुना.

लेकिन क्या भारत में ऐसा हर जगह हो पाना आज भी संभव है? अगर बात गांवदेहातों की हो तो वहां ऐसा करना तो दूर, सोचना भी पाप माना जाता है. यदि ऐसा कोई मामला सामने आ जाए तो अगले दिन ‘ओनर किलिंग’ की खबर देश की शोभा बढ़ाने में चार चांद लगाने को तैयार रहती है.

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भारत में जाति व्यवस्था सदियों से अस्तित्व में है, जो न सिर्फ समाज में घृणा फैलाती रही है, बल्कि कई लोगों के मौत का भी कारण बनी है. ऐसे में जातीय शुद्धता के चलते अंतर्जातीय प्रेमी युगलों/विवाहितों को समाज द्वारा खास टारगेट किया जाता रहा है.

शर्मसार कर देने वाली घटनाएं

अक्तूबर, 2020 में कर्नाटका के रामनगरा जिला (मगदी तुलक) में ओनर किलिंग की घटना घटी. बकौल पुलिस, एक पिता ने अपनी बेटी को इसी के चलते मार दिया कि उस की बेटी का किसी गैरजातीय लड़के के साथ प्रेम संबंध चल रहा था और दोनों शादी करने वाले थे. हैरानी की बात यह कि गांव वाले घटना की हकीकत जानने के बावजूद पुलिस के आगे मूक बने रहे.

जाहिर है इस में उन की भी सामाजिक स्वीकृति रही. यही कारण है कि बहुत सी ऐसी घटनाएं सामने आ भी नहीं पातीं. बहुत बार यदि प्रेमी युगल के परिवार बच्चों की खुशी के लिए शादी करने को तैयार हो भी जाएं तो गांव का खाप उन्हें ऐसा करने से रोक देता है और दंडित करता है.

एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2014-17 के बीच भारत में कुल 300 ओनर किलिंग की घटनाएं सामने आईं. देश में अधिकाधिक ओनर किलिंग की शर्मशार कर देने वाली घटनाएं उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से अधिक देखने को मिलती हैं.

गोत्र एक होना भी समस्या

भारत में 2 प्रेमी जोड़ों की स्वेच्छा से शादी में रुकावट डालने का समाज के पास सिर्फ यही तंत्र नहीं है. ऐसा ही एक मामला अमित और प्रिया के साथ हुआ. यहां समस्या उन की जाति नहीं, बल्कि उन का एक गोत्र होना था. हिंदू धर्म में 3 गोत्र (खुद का, मां का और दादी व नानी का) में शादी करने को गलत माना जाता है.

आमतौर पर माना जाता है कि एक गोत्र होने पर गुणसूत्र एक से हो जाते हैं, फिर आगे समस्याएं पैदा होने जाती हैं. लेकिन अमित के लिए प्रिया से प्यार न करने की यह दलील नाकाफी थी. प्रिया, अमित के ननिहाल गांव से थी, जहां अमित का अकसर आनाजाना रहता था. जाहिर है जहां उठनाबैठना व बातचीत का सिलसिला चलता है वहां आपसी समझदारी भी बनने लगती है.

यही कारण है कि अमित और प्रिया को आपस में प्रेम हुआ. वे एकदूसरे के करीब आए और शादी का फैसला कर लिया. बात घर में पता चली तो इस रिश्ते का पुरजोर विरोध हुआ. उन के घर वालों ने एक गोत्र होने की अड़चन खड़ी कर दी और एकदूसरे से न मिलने का फरमान जारी कर दिया.

यहां बात गांव की थी, स्थानीय समाज भी उन दोनों के खिलाफ खड़ा हो गया, जिस का अंत यह हुआ कि जोरजबरन आननफानन में प्रिया की शादी ऐसे व्यक्ति से कर दी गई जो उस के लिए बिलकुल अजनबी था, जिस के प्रति उस की चाहत शून्य थी.

भाषा और संस्कृति का झमेला

भारत में ऐसे कई मामले सामने आते हैं जहां प्रेमी युगलों को सामाजिक दबाव के चलते अपनी इच्छाओं की आहुति देनी पड़ती है. यह न सिर्फ जाति या गोत्र के चलते होता है, बल्कि ऐसे ही कुछ मामले तब भी देखने को मिलते हैं जब 2 परिवारों के रहनसहन, भाषा और संस्कृति में अंतर होता है.

यह विडंबना है कि भारत में शादी 2 व्यक्तियों का आपसी मसला नहीं, बल्कि 2 परिवारों और उन के सगेसंबंधियों का आपसी मसला बन जाता है.

यहां राज्यों के भीतर ही भाषा और संस्कृति में कई तरह की विविधताएं देखने को मिल जाती हैं तो फिर दूसरे राज्य की विविधता की तो बात ही अलग है. यही कारण है कि जब हिमाचल प्रदेश के विक्रम ने अपनी प्रेमिका आभा के बारे में घर वालों को बताया तो परिवार सन्न रह गया. दरअसल, 8 साल पहले आभा और विक्रम की मुलाकात दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैंपस राम लाल कालेज में साथ पढ़ते हुए हुई थी.

दोनों का आपस में खास लगाव हो गया, तो उसी समय दोनों ने अंत तक साथ रहने का विचार भी मजबूत कर लिया. इस बीच दोनों ने खुद के कैरियर को मजबूत किया, जिस के चलते उन्होंने परिवार से बात करने की हिम्मत जुटाई.

भाषा और संस्कृति के नाम पर

विक्रम के घर वालों का फिलहाल यही मानना है कि दोनों परिवारों की भाषा, संस्कृति और रहनसहन में काफी  अंतर है वे आपस में मेल नहीं खा पाएंगे. ऊपर से डर है कि बंगाल के लोग चालाक होते हैं. अत: आभा विक्रम को अपने वश में कर लेगी.

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जाहिर सी बात है जब दो वयस्क लोग आपस में शादी के लिए पूरी तरह तैयार हैं तो उस स्थिति में बाकी लोगों को शादी कराने की पौसिब्लिटी की तरफ बढ़ना चाहिए न कि रोकने की. ऐसे में उचित यही होता कि विक्रम के मातापिता देखें कि विक्रम को आभा के साथ जीवन बिताना है.

ऐसे में उस की पसंद प्राथमिक होनी चाहिए. दूसरा, अगर संस्कृति आपस में मेल नहीं खा रही तो यह समस्या आभा के लिए ज्यादा होनी चाहिए, जिसे अपना घर छोड़ कर ससुराल आना है. ऐसे में अगर वह तैयार है तो उन्हें भी एक कदम आगे बढ़ाना चाहिए. बाकी किसी के गलत और सही को ऐसे जज तो बिलकुल भी नहीं किया जा सकता.

अंतरधार्मिक विवाह बड़ा बवाल

मौजूदा समय में जिस तरह से सामाजिक और राजनीतिक हवा बह रही है वह प्रेम विवाहों पर तरहतरह से रोड़े अटकाए जाने को ले कर है, किंतु इस हवा के सीधे रडार पर वे जोड़े आ रहे हैं, जो धर्म के इतर जा कर अपने प्यार की बुनियाद मजबूत कर रहे थे.

भारत में अंतरधार्मिक विवाहों को समाज द्वारा सब से ज्यादा हिराकत भरी नजरों से देखा जाता रहा है. परिवार, रिश्तेदार और समाज द्वारा अंतरधार्मिक विवाहों का खुल कर विरोध किया जाता रहा है. ऐसे में इन प्रेम विवाहों को जहां सरकार को प्रोत्साहन देने की जरूरत थी व हर संभव मदद करने की जरूरत थी, वहां खुद भाजपा शासित सरकारें तथाकथित धर्मांतरण विरोधी कानून के नाम पर इन प्रेम विवाहों पर अड़चनें डालने में जुट गई हैं, जिस के बाद कई शादीशुदा जोड़ों को इस कानून के नाम पर उत्पीडि़त किया जा रहा है.

स्थिति यह है कि ऐसे प्रेमी व विवाहित जोड़ों को असामाजिक तत्त्वों द्वारा ढूंढ़ढूंढ़ कर पीटा जा रहा है. इस में संविधान की कसम खाने वाले पुलिस भी पीछे नहीं है. वह लाठी के बल पर इन जोड़ों को अलग व गिरफ्तार कर रही है. उन के ऊपर झठे मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं, जबरन विवाहित महिला को उस के पिता की कस्टडी में भेजा जा रहा है.

ऐसे में वयस्क प्रेमी युगलों के पास न सिर्फ घरपरिवार, सगेसंबंधी और समाज को मनाने का चैलेंज है बल्कि इस के बाद सरकार के सामने भी यह साबित करना चैलेंज हो गया है कि प्यार और शादी उन की खुद की मरजी से हुई है.

विवादित कानून की आड़ में

विवादित धर्मांतरण निषेध कानून के यूपी में पास होने के बाद से ही इलाहाबाद हाई कोर्ट के समक्ष कई अंतरधार्मिक विवाह के मामले आने लगे हैं. ऐसा ही हालिया मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट में सामने आया. झठे आरोपों में फंसाए बालिग सिखा (21) और सलमान को पहले परिवार, नातेरिश्तेदारों और समाज से लड़ना पड़ा. फिर जब वे शादी करने में कामयाब हुए तो अब उन्हें सरकार से भी संघर्ष करना पड़ रहा है.

गत 18 दिसंबर को जस्टिस पंकज नकवी और विवेक अग्रवाल की बैंच ने कहा, ‘‘शिखा अपने पति के साथ रहना चाहती है और वह आजाद है कि अपनी इच्छानुसार अपना जीवन जीए.’’

वहीं इस से पहले 7 दिसंबर को कोर्ट ने सिखा की जबरन पिता की कस्टडी में भेजे जाने की सिफारिश पर सीडब्ल्यूसी को कहा था कि बिना उस की इच्छा के सीडब्ल्यूसी द्वारा इसा किया गया.

ये चीजें दिखाती हैं कि किस प्रकार से विवादित कानून की आड़ में अंतरधार्मिक वैवाहिक जोड़ों को परेशान किया जा रहा है. इस से पहले कोलकाता हाई कोर्ट ने भी दोहराया, ‘‘अगर कोई वयस्क अपनी पसंद के अनुसार शादी करता है और धर्मपरिवर्तन कर अपने पिता के घर नहीं जाना चाहता है, तो मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं हो सकता है.’’

अब स्थिति यह है कि इन सब फसादों के चलते कई प्रेमी जोड़े डर रहे हैं कि वे शादी के लिए आगे बढ़ें या नहीं.

कानून क्या कहता है

भारत में वयस्कों की शादी करने की न्यूनतम उम्र पुरुष की 21 और महिला की 18 साल है. ऐसे में दोनों स्वतंत्र हैं कि अपनी मरजी से जिस से चाहे शादी कर सकते हैं. भारत में अधिकतर शादियां अलगअलग धार्मिक कानूनों और ‘पर्सनल लौ’ बोर्ड के तहत होती हैं. इस के लिए शर्त यह कि दोनों का उसी धर्म का होना जरूरी है.

‘नैशनल कौंसिल औफ एप्लाइड इकनौमिक रिसर्च’ (एनसीएईआर) द्वारा 2014 में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 5% ही अंतरजातीय व अंतरधार्मिक विवाह होते हैं और 95% अपनी जाति/समुदाय के भीतर होते हैं.

हिंदू विवाह अधिनियम-1955, में यह प्रावधान है कि हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध आपस में शादी कर सकते हैं. कुछ इसी प्रकार मुसलिम पर्सनल लौ बोर्ड-1937, भारतीय इसाई विवाह अधिनियम-1872, पारसी विवाह और निषेध अधिनियम-1936 है, जहां एक ही धर्म के लोग आपस में शादी कर सकते हैं. ऐसे में अगर किसी गैरधार्मिक व्यक्ति को इन नियमकानूनों के तहत शादी करनी हो तो उसे अपना धर्म बदलना ही पड़ता है.

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ऐसे में भारत सरकार साल 1954 में विशेष विवाह अधिनियम-1954 ले कर आई ताकि किसी भी पार्टी को धर्म बदलने की जरूरत न पड़े. इस अधिनियम के तहत दोनों में से कोई भी पार्टी बिना धर्म परिवर्तन के एक वैध शादी कर सकती है. साफ है कि यह अधिनियम अनुच्छेद 21 के जीवन जीने के अधिकार के तहत अपना जीवनसाथी स्वयं चुनने की स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है.

कानूनी खामियां

किंतु उस के बावजूद इस कानून की कुछ खामियां रही हैं, जिस के चलते इस प्रक्रिया से प्रेमी जोड़े को शादी करना पेचीदा महसूस होने लगता है. जाहिर है, इस में घरपरिवार की सहमति हो तब तो ठीक है (अलबता बजरंग दल या युवावाहिनी होहल्ला न करे तो), लेकिन अगर वे असहमत हैं और नोटिस लगने के 30 दिन के भीतर औब्जैक्ट करते हैं तो शादी में रुकावट पैदा की जा सकता है.

यही कारण है कि इन पेचीदगियों से बचने के लिए प्रेमी जोड़ा धार्मिक कानूनों में सरल प्रक्रिया के चलते धर्म परिवर्तन के लिए भी तैयार हो जाता है. ऐसे में धर्म प्रेमी युगलों के लिए बहुत बड़ा मसला है भी नहीं, जितना हौआ कट्टरपंथी लगातार खड़ा कर रहे हैं.

अब मुख्य मामला यह कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 संविधान के मौलिक अधिकार का एक हिस्सा है, जिस में यह स्पष्ट कहा गया है कि भारत में कानून द्वारा स्थापित किसी भी प्रक्रिया के अलावा कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को उस के जीवित रहने के अधिकार और निजी स्वतंत्रता से वंचित नहीं कर सकता है.

इस का अर्थ वह चाहे जिस से प्रेम करे, चाहे जिसे माने यह उस की निजी स्वतंत्रता और हक है. ऐसे में इन दिनों इन्हीं वाक्यों को बारबार इलाहाबाद हाई कोर्ट सामने आ रहे फर्जी मुकदमों के खिलाफ कहते भी आ रहा है. फिर सवाल यह कि जब संविधान हामी भरता है तो ऐसी शादियों से समस्या किसे और क्यों है?

मिक्स्ड कल्चर का खौफ

दुनिया के किसी भी कोने में समाज को अगर किसी चीज का डर सताता है तो वह कल्चर के मिक्स होने का है. हजारों सालों से लोगों ने खुद को मानसिक दासता की बेडि़यों में बांध कर डब्बों में देखने की आदत डाल ली है. ये डब्बे धर्म के हैं, जाति के हैं, अमीरीगरीबी के हैं, नस्ल के हैं. यही कारण है कि थोड़े से सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव से भी यह समाज विचलित हो उठता है. ऐसे ही इस मानसिक दासता को चोट पहुंचाने का तीखा काम इसी प्रकार के प्रेम विवाह करते हैं, जहां लोगों के हजारों सालों से जमे अंधविश्वासों पर गहरी चोट पड़ती है. जाति और धर्म के बाहर जा कर शादी करना रूढि़वाद पर तीखा प्रहार करने के समान है. सिर्फ एक मामला और सबकुछ कुहरे की तरह साफ होने जैसा है. अंतरजातीय और अंतरधार्मिक शादियों के बाद होने वाले बच्चे मुसलमान, हिंदू, ब्राह्मण, हरिजन नहीं बनते बल्कि वे इंसान बनते हैं.

यही चीज समाज के अव्वल दुश्मन, रूढि़वादी और धार्मिक कट्टरपंथी नहीं होने देना चाहते. उन्हें डर होता है अपनी विरासत चले जाने का. यह डर होता है कि कहीं उन के खिलाफ बगावत न उठ खड़ी हो जाए. वे ताकत को अपने हाथों में ही केंद्रित रखना चाहते हैं. लोगों को बंटा हुआ देखना ही उन के राजपाट को मजबूत करता है. उन की तमाम राजनीतिक शुरुआत और अंत एकदूसरे की विभिन्नता को कुरेदने से होती है. यह लोग जानते हैं कि इस प्रकार की शादियों से लोग धार्मिक अंधविश्वासों के बनाए भ्रम को मानने से इनकार करेंगे. मिक्स्ड कल्चर से पैदा हुए बच्चे कभी इन के धार्मिक और जातीय उकसावे में नहीं आएंगे. यही कारण है कि सत्ता में बैठे लोगों की कोशिश यही रहती है कि जितना हो सके इन की भिन्नता को और गाढ़ा किया जाए.

आमतौर पर मिक्स्ड कल्चर के लोग समानता और मानव अधिकारों के पक्ष में अधिक उदार होते हैं. ऐसे में वे धर्म के पाखंडों के फरेब में आसानी से नहीं फंसते हैं. उन का ध्येय धर्म की सिरखपाई से अधिक कर्म की कमाई होता है, जिस कारण इन कट्टरपंथियों को इस प्रकार के लोग खासा रास नहीं आते हैं, इसलिए इन की मूल कोशिश यही रहती है कि ऐसी स्थिति बनने से पहले इन पर रोक लगा दी जाए. किंतु प्रेम को कोई रोक पाया है भला. इस तरह के लोग अपने घरपरिवारों में ही इसे रोक न सके तो समाज को क्या रोकेंगे.

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अगर आपको भी पसंद नहीं पार्टनर की आदतें तो अपनाए ये टिप्स

बंटी और रोशनी कुछ समय पहले ही दोस्त बने थे. हर मुलाकात के दौरान रोशनी को बंटी का व्यक्तित्व और साथ बहुत भला लगता. हर मुलाकात में बंटी वैलडै्रस्ड दिखता, जिस से रोशनी बहुत प्रभावित होती. धीरेधीरे दोनों का प्रेम परवान चढ़ा और फिर उन के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए. बंटी हमेशा रोशनी से स्त्रीपुरुष समानता की बातें करता. अंतत: रोशनी ने बंटी से शादी करने का फैसला कर लिया.

शादी हुए साल भर भी नहीं बीता था कि रोशनी के सामने बंटी की कई बुरी आदतें उजागर होने लगीं. उसे पता चला कि बंटी तो रोज नहाता भी नहीं है और जब नहाता है, तो नहाने के बाद गीले तौलिए को कभी दीवान पर तो कभी सोफे पर फेंक देता है. रात को सोते समय ब्रश भी नहीं करता है. रोशनी को बंटी से ज्यादा फोन करने की भी शिकायत रहने लगी. अब बंटी की स्त्रीपुरुष समानता की बातें भी हवा हो गईं. शादी के तीसरे ही साल दोनों अलग हो गए.

लव मैरिज की खास बातें

जब भी लव मैरिज की बात होती है तो उस के समर्थन में सब से बड़ा और ठोस तर्क यही दिया जाता है कि इस में दोनों पक्ष यानी लड़का-लड़की एकदूसरे को अच्छी तरह जान लेते हैं. लेकिन क्या हकीकत में ऐसा हो पाता है? वास्तव में दूर रह कर यानी अलगअलग रह कर किया जाने वाला प्रेम बनावटी, अधूरा और भ्रमित करने वाला हो सकता है. ऐसा प्रेम करना किसी भी युवा के लिए काफी आसान होता है, क्योंकि इस में उसे अपने व्यक्तित्व का हर पक्ष नहीं दिखाना पड़ता. वह बड़ी आसानी से अपनी बुरी आदतें छिपा सकता है. इस प्रकार के प्रेम में ज्यादातर मुलाकातें पहले से तय होती हैं और घर से बाहर होती हैं, इसलिए दोनों ही पक्षों के पास तैयारी करने और दूसरे को प्रभावित करने का काफी समय होता है.

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असली परीक्षा साथ रह कर

घर से बाहर प्रेमीप्रेमिका को एकदूसरे की अच्छी बातें ही नजर आती हैं. विभिन्न समस्याओं के अभाव में कुछ तो नजरिया भी सकारात्मक होता है, तो सामने वाला भी अपना सकारात्मक पक्ष ही पेश करता है. प्रेमी सैंट, पाउडर लगा कर इस तरह घर से निकलता है कि प्रेमिका को पता ही नहीं चल पाता कि वह आज 2 दिन बाद नहाया है. प्रेमिका को यह भी नहीं पता चलता कि उस का प्रेमी अपने अंडरगारमैंट्स रोज बदलता भी है या नहीं. और पिछली मुलाकात में उस के प्रेमी ने जो शानदार ड्रैस पहनी थी वह उसी की थी या किसी दोस्त से मांग कर पहनी थी.

कुल मिला कर लव मैरिज हो या अरेंज्ड मैरिज, किसी भी जोड़े की असली परीक्षा तो साथ रह कर ही होती है. इस लिहाज से विवाह के स्थायित्व की गारंटी को ले कर लव मैरिज या अरेंज्ड मैरिज में ज्यादा अंतर नहीं है, क्योंकि दोनों ही मामलों में साथी का असली रूप तो साथ रह कर ही पता चलता है. दोनों ही तरह की शादियों में यह दावा नहीं किया जा सकता कि जीवनसाथी कैसा निकलेगा?

सामंजस्य भी जरूरी

हम यहां इस बहस में नहीं पड़ रहे कि दोनों तरह की शादियों में कौन सी शादी सही है, लेकिन इतना जरूर कह रहे हैं कि शादी से पहले किया गया प्रेम शादी के बाद किए जाने वाले प्रेम से आसान होता है. शादी के बाद जोड़े को एकदूसरे के बारे में सब पता चल जाता है. एकदूसरे की असलियत खुल जाती है. अच्छीबुरी सब आदतें पता चल जाती हैं. जिंदगी की छोटीबड़ी समस्याएं भी साथ चलने लगती हैं.

इस के बाद भी यदि उन में प्रेम बना रहता है तो हम उसे असली प्रेम कह सकते हैं. बेशक कुछ लोग इसे समझौता भी कहते हैं, मगर हर रिश्ते का यह अनिवार्य सच है कि कुछ समझौते किए बिना कोई भी, किसी के भी साथ, लंबे समय तक या जिंदगी भर नहीं रह सकता.

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जानें कैसे करें लव मैरिज

राशि और अमन का अफेयर पिछले 2 साल से चल रहा है. अब उन्होंने शादी करने का फैसला ले लिया, लेकिन वे इस बात को अच्छी तरह जानते थे कि उन के पेरैंट्स इस रिश्ते के सख्त खिलाफ होंगे और वे चाह कर भी घर वालों की रजामंदी से शादी नहीं कर पाएंगे. इसलिए उन्होंने कोर्टमैरिज के बारे में सोचा, लेकिन कोर्ट में शादी की क्या औपचारिकताएं होती हैं, इस बारे में उन्हें कुछ पता नहीं था. उन्होंने अपने एक कौमन फ्रैंड राजेश से बात की जिस ने अभी कुछ साल पहले ही कोर्टमैरिज की थी, लेकिन उस से भी उन्हें आधीअधूरी जानकारी ही मिली.

ऐसा कई जोड़ों के साथ होता है, वे शादी करना तो चाहते हैं, लेकिन उस का क्या प्रोसीजर है, इस के बारे में उन्हें कुछ पता नहीं होता और संकोचवश वे खुद इस की जांचपड़ताल करने से हिचकिचाते हैं. आइए जानें कि अगर पेरैंट्स राजी नहीं हैं और आप शादी के फैसले तक पहुंच गए हैं, तो आप विवाह कैसे कर सकते हैं.

1. आर्य समाज मंदिर में विवाह प्रक्रिया

आर्य समाज मंदिर में जो विवाह होते हैं, वे सभी हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत होते हैं. आर्य समाज मंदिर आमतौर पर विवाह की पंजिका रखते हैं और प्रमाणपत्र जारी करते हैं. विवाह से पहले यह भी जानकारी लेते हैं कि दोनों पक्ष विवाह के योग्य हैं भी या नहीं और विवाह दोनों की पूर्ण सहमति से हो रहा है.

  • आर्य समाज मंदिर वही विवाह कराते हैं जोकि कानूनन वैध हों. वहां दोनों की आयु के प्रमाणपत्र देखे जाते हैं. विवाह सूत्र में बंधने जा रहे युवकयुवती में कोई ऐसा संबंध तो नहीं जिस से विवाह अवैध हो, साथ ही यह भी देखा जाता है कि उन में से कोई विवाह के अयोग्य तो नहीं है. इस तरह हिंदू विवाह के लिए आवश्यक बातों को देखते हुए आर्य समाज मंदिर एक वैध विवाह संपन्न कराता है. वहां विवाह के साक्षी भी होते हैं. आर्य समाज मंदिर अपने रजिस्टर में इन सभी तथ्यों को अंकित करते हुए विवाह के बाद विवाह प्रमाणपत्र भी जारी करते हैं.
  • आर्य समाज मंदिर में शादी करने के लिए युवती की उम्र 18 साल और युवक की उम्र 21 साल होनी चाहिए.
  • युवकयुवती की डेट औफ बर्थ का पू्रफ होना चाहिए जैसे कि उन का 10वीं का सर्टिफिकेट या बर्थ सर्टिफिकेट आदि.
  • एड्रैस प्रूफ होना चाहिए.
  • 2 गवाह होने चाहिए.
  • शादी से 2 दिन पहले एक आवेदनपत्र भरना होगा और उस के साथ डेट औफ बर्थ सर्टिफिकेट अटैच करना होगा. इस तरह सभी औपचारिकताएं पूरी कर आवेदन करने के 2 दिन बाद आप वहां जा कर शादी कर सकते हैं.

लेकिन आर्य समाज मंदिर में विवाह के बारे में गे्रटर नोएडा आर्य समाज मंदिर के धर्माचार्य जनमेजय शास्त्रीजी का कहना है कि मई, 2013 में हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने एक मामले की सुनवाई के दौरान राज्य के आर्य समाज मंदिरों के लिए एक गाइडलाइन तैयार की है. अपने फैसले में जस्टिस एन के मोदी ने कहा कि कई युवतियां किशोरावस्था पार करते ही अचानक घर छोड़ कर गायब हो जाती हैं और आर्य समाज मंदिर में शादी कर के आसानी से शादी का प्रमाणपत्र ले लेती हैं. बिना मांबाप की सहमति और उन्हें पूर्व सूचना दिए होने वाले इस तरह के विवाह के कारण ही सामाजिक परेशानियां खड़ी हो रही हैं. इसी वजह से हाईकोर्ट ने ऐसी शादियों के नियम कड़े कर दिए हैं. अब आर्य समाज पद्धति से विवाह करना आसान नहीं होगा.

आर्य समाज मंदिर में शादी कराने से 6 दिन पहले युवकयुवती के पेरैंट्स को सूचना देनी होगी. इस के साथ ही संबंधित थाने में भी जानकारी देनी होगी. आर्य समाज मंदिर को शादी कराने से पहले युवकयुवती से लिखित में स्वीकृति लेनी होगी साथ ही यह भी तय करना होगा कि शादी के समय युवक और युवती की ओर से 5-5 परिजन मौजूद रहें. अदालत ने इस आदेश की कौपी थाने में चिपकाने के भी आदेश दिए हैं. यह आदेश पंजाब, राजस्थान और मध्य प्रदेश में लागू हो चुका है, लेकिन दिल्ली एनसीआर में अभी यह नियम लागू नहीं है, इसलिए यहां अभी पुराने तरीकों से ही विवाह संपन्न हो रहे हैं.

2. बिना धर्म बदले हो सकती है शादी

स्पेशल मैरिज ऐक्ट के तहत बिना धर्म बदले भी शादी हो सकती है. इस के लिए आप को अपने क्षेत्र के मैरिज अधिकारी, एसडीएम, डीएम, मैरिज पंजीयक या किसी भी सक्षम अधिकारी के पास अर्जी लगानी पड़ेगी. इस के लिए अधिकारी 30 दिन का नोटिस जारी कर आपत्ति मंगवाएंगे कि कहीं कोई पार्टी नाबालिग या शादीशुदा तो नहीं है. इस के 30 दिन बाद आप शादी कर सकते हैं, क्योंकि अगर आप 21 साल के हैं, तो शादी हो सकती है. हां, यदि युवती के मातापिता राजी नहीं हैं तो आर्य समाज मंदिर में जा कर शुद्धिकरण यज्ञ के बाद शादी कर सकते हैं, जो बाद में हिंदू मैरिज ऐक्ट के तहत रजिस्टर हो सकती है. इस में कोई नोटिस नहीं दिया जाता है.

अमूमन आर्य समाज मंदिर में शादी के तुरंत बाद प्रमाणपत्र मिल जाता है और उस के बाद 2-3 दिन में ही आप हिंदू मैरिज ऐक्ट के तहत अपनी शादी रजिस्टर करवा सकते हैं. उस के बाद आप के खिलाफ यदि कोई मामला दर्ज कराता है, तो वह खारिज हो जाएगा. लेकिन ध्यान रहे कि शादी रजिस्टर्ड आर्य समाज मंदिर जो सार्वदेशिक आर्य सभा से संबंधित हो, से ही करवाएं. अन्य संस्थाएं फर्जी हैं, जिन के शादी के पू्रफ मान्य नहीं होते हैं. आप अपने किसी बालिग मित्र जो पैनकार्ड व पासपोर्ट धारक हो, को साथ ले जाएं ताकि आसानी से उन का रजिस्टे्रशन हो जाए. अब राजपत्रित अधिकारी या पारिवारिक सदस्य की आवश्यकता नहीं होती.

3. मुसलिम लौ जान लें

15 वर्ष या उस से ज्यादा उम्र की मुसलिम युवती अगर प्यूबर्टी यानी शारीरिक रूप से बालिग है, तो वह शादी कर सकती है. ऐसी शादी को अवैध नहीं ठहराया जा सकता. मुसलिम ला के तहत निकाह सिविल कौंटैक्ट है और निकाह के लिए प्रस्ताव दिया जाता है, जिसे युवती स्वीकार करती है. इस के तहत मेहर की रकम तय होती है, जो युवती को दी जाती है. निकाह कबूल करने के बाद यह पूरा माना जाता है. काजी और गवाह की मौजूदगी में यह निकाह होता है. यह निकाह मौलवी साहब कहीं भी पढ़वा सकते हैं, फिर चाहे वह घर ही क्यों न हो. इस के लिए युवक और युवती का मुसलिम होना जरूरी है.

4. हिंदू मैरिज एक्ट में ये है औप्शन

हिंदू मैरिज ऐक्ट 1955 के तहत 18 साल से कम उम्र की युवती की अगर शादी होती है, तो वह भी अमान्य नहीं है. हिंदू मैरिज ऐक्ट के तहत हिंदू रीतिरिवाज से शादी होनी चाहिए. इस के तहत हिंदू युवक और युवती जो प्रोहिबिटेड रिलेशन यानी नजदीकी रिश्तेदार और स्पिंडा रिलेशन यानी पिता की 5 पीढ़ी और मां की 3 पीढ़ी में होना न हो, शादी कर सकते हैं. इस के लिए अग्नि के सामने फेरे और वचन के साथसाथ अन्य कई रीतिरिवाजों का पालन होता है. इस के बाद ही शादी पूर्ण मानी जाती है, लेकिन अगर कोई शख्स 18 साल से कम उम्र का है और वह शादी करता है, तो बालिग होने के बाद ऐसी शादी को अमान्य करार देने के लिए गुहार लगा सकता है. अगर शादी को अमान्य करने के लिए गुहार नहीं लगाई जाती, तो शादी मान्य मानी जाती है.

5. वकीलों का प्रेमी जोड़ों के लिए मैरिज पैकेज

जून, 2013 में अखबार में छपी एक खबर के अनुसार हाईटैक होती शादियों के बीच अब प्रेमी जोड़ों के विवाहबंधन में बंधने का नया ट्रैंड चल पड़ा है. परिजनों की मरजी के खिलाफ विवाह करने के इच्छुक जोड़ों को वकील बाकायदा मैरिज पैकेज दे रहे हैं. इस में मंदिर, पुजारी, फेरे, कोर्टमैरिज व सुरक्षा खर्च तक की व्यवस्था शामिल है. नए ट्रैंड का फायदा उठाते हुए पंडित भी वकीलों को ग्राहक लाने के लिए एसएमएस कर रहे हैं.

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की वकेशन बैंच के सामने इन दिनों आधे से ज्यादा केस प्रेमी जोड़ों की सुरक्षा से संबंधित हैं. जब कोई प्रेमी जोड़ा हाईकोर्ट में सुरक्षा लेने के लिए आता है, तो वकील विवाह कराने के लिए पंडितों की सेवा लेते हैं. विभिन्न मंदिरों के पुजारियों समेत कई अन्य धार्मिक संस्थानों के प्रतिनिधि हाईकोर्ट के वकीलों के संपर्क में रहते हैं.

6. भाग कर शादी करने वाले जोड़ों को मिलेगी शैल्टर होम्स की सुरक्षा

जून, 2013 में छपी एक खबर के अनुसार पेरैंट्स की इच्छा के विरुद्ध प्रेम विवाह करने वाले जोड़ों के लिए एक अच्छी खबर है. राजस्थान सरकार प्रेम विवाह करने वाले जोड़ों के लिए कपल शैल्टर होम्स बनाने जा रही है.

गैर सरकारी संगठनों की पहल पर पहले चरण में सरकार जयपुर में इस तरह के कपल शैल्टर होम की योजना बनाने जा रही है, जो बाद में संभाग मुख्यालयों पर भी बनाए जा सकते हैं. पड़ोसी राज्य हरियाणा में ब्लौक स्तर पर शैल्टर कपल होम बनाए गए हैं, जहां सरकारी खर्च पर प्रेम विवाह करने वाले जोड़ों के रहने का इंतजाम किया जाता है. प्रेमी युगल के खिलाफ खाप पंचायतों के फरमानों के मद्देनजर हरियाणा सरकार ने यह कदम उठाया. राज्य में पिछले कुछ वर्षों से प्रेम विवाह करने वाले जोड़ों के खिलाफ हिंसक घटनाएं हो रही हैं.

खासतौर पर दोनों के परिवार वाले और समाज की ओर से आएदिन उत्पीड़न की खबरें मिलती रहती हैं. पुलिस सूत्रों की मानें, तो पेरैंट्स की ओर से दर्ज कराए जाने वाले अपहरण से संबंधित करीब आधे मामले प्रेम विवाह से संबंधित होते हैं. जिन में युवकयुवती अपनी मरजी से या तो घर छोड़ कर चले जाते हैं या फिर भाग कर शादी रचा लेते हैं.

अकसर ऐसे मामलों में पुलिस का व्यवहार भी प्रेमी युगल के खिलाफ ही होता है. यही वजह है कि इस तरह के कपल के लिए शैल्टर होम्स बनाए जा रहे हैं.

सैफ और करीना ने की कोर्टमैरिज

शादी से पहले करीना के धर्म बदलने की खबरों के बीच सैफ ने सुरक्षित रास्ता अपनाते हुए निकाह के लिए कानून का रास्ता अपनाया. इस के लिए सैफ और करीना बांद्रा स्थित रजिस्ट्रार औफिस गए और शादी के लिए जरूरी कागजात जमा किए व आवेदन के 30 दिन के भीतर कोर्टमैरिज कर ली.

चिरंजीवी की बेटी ने भाग कर शादी की

तेलुगु सुपरस्टार चिरंजीवी की दूसरी बेटी श्रीजा ने परिवार की मरजी के खिलाफ घर से भाग कर अपने प्रेमी श्रीश भारद्वाज से हैदराबाद के एक आर्य समाज मंदिर में शादी की.

नरगिस और सुनील दत्त ने आर्य समाज में किया था विवाह

11 मार्च, 1958 को जानेमाने फिल्मी कलाकार नरगिस और सुनील दत्त ने भी आर्य समाज मंदिर में शादी की थी.

कोर्टमैरिज भी है आसान रास्ता

अगर आप ने शादी का फैसला ले लिया है और आप के पास थोड़ा सा भी समय है, तो आप कोर्टमैरिज कर सकते हैं. दरअसल, विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत होने वाले विवाह को ही कोर्टमैरिज कहते हैं.

– इस के लिए युवकयुवती को निर्धारित प्रपत्र में विवाह करने के आशय की सूचना जिला विवाह अधिकारी को प्रस्तुत करनी होती है.

– साथ ही नोटिस जारी करने का शुल्क जमा करना होता है जोकि नाममात्र का होता है.

– इस आवेदन के साथ युवकयुवती के फोटो पहचानपत्र भी प्रस्तुत करने होते हैं. इस संबंध में पूरी जानकारी जिला कलैक्टर कार्यालय में विशेष विवाह अधिनियम के मामले देखने वाले लिपिक से प्राप्त की जा सकती है.

– यह आवेदन कलैक्टर के कार्यालय की नोटिस बुक में रहता है, जिसे कोई भी देख सकता है और उसे कार्यालय के किसी सार्वजनिक स्थान पर चिपकाया जाता है. यदि विवाह के इच्छुक दोनों व्यक्ति या दोनों में से कोई एक किसी दूसरे जिले का निवासी है, तो यह नोटिस उस जिले के कलैक्टर को भेजा जाता है और वहां सार्वजनिक स्थान पर चिपकाया जाता है. इस नोटिस का उद्देश्य यह जानना है कि युवकयुवती दोनों विवाह के लिए पात्रता रखते हैं या नहीं.

– यदि विवाह में कोई कानूनी बाधा न हो, तो नोटिस जारी करने के 30 दिन के अंदर या फिर आवेदन प्रस्तुत करने के 3 माह समाप्त होने से पहले कभी भी जिला विवाह अधिकारी के समक्ष विवाह संपन्न कराया जा सकता है, जिस के बाद जिला विवाह अधिकारी विवाह का प्रमाणपत्र जारी कर देता है.

– कोर्ट में युवकयुवती जाति और धर्म के अंतर के बावजूद विवाह कर सकते हैं.

12 टिप्स: लव मैरिज में न हो ‘लव’ का एंड

नीलम और मानव ने लव मैरिज की है. लेकिन अब नीलम का कहना है कि उन का जीवन बहुत सामान्य हो गया है. एक-दूसरे के प्रति पहले जैसा उत्साह नहीं रह गया है. पहले वे एकदूसरे की बातों को जितना समझते थे अब उतना नहीं समझ पाते. नीलम कहती हैं कि शादी से पहले की जिंदगी और बाद की जिंदगी में काफी बदलाव आ जाता है, जिसे अच्छी तरह मैनेज करना हर किसी के बस की बात नहीं. नीलम का अनुभव ऐसे लोगों से मेल खाता होगा, जिन्होंने लव मैरिज की है. आखिर क्यों लव मैरिज करने के बावजूद लव गुम होता दिखाई देता है?

1. आकर्षण और प्यार के फर्क को समझें

बहुत से लोग आकर्षण को प्यार समझ लेते हैं और शादी का फैसला कर लेते हैं. यही कारण है कि शादी के बाद वे एकदूसरे को दोषी ठहराते रहते हैं. आकर्षण किसी के बोलने के तरीके, उस के लुक्स, किसी के अंदाज, किसी की कंपनी को ऐंजौय करने में होता है, लेकिन प्यार इस से अलग होता है. प्यार का मतलब है हर परिस्थिति में एकदूसरे का साथ निभाना, उसे समझना, उसे सही गाइड करना और उस के लिए खुशी से त्याग करना. इसे निभाना काफी मुश्किल होता है. मात्र पसंद को प्यार न समझें.

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2. पहले और बाद का अंतर

अकसर लोगों को यही शिकायत रहती है कि उन के साथी के शादी से पहले और बाद के व्यवहार में काफी फर्क आ गया है. प्राइवेट बैंक में कार्यरत गरिमा की लव मैरिज हुए 1 साल हो गया है. उस ने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि उन्हें शादी के बाद अपने पति में बहुत से बदलाव देखने को मिले हैं. मसलन, उन को गुस्सा अधिक आने लगा है, जिस के चलते उन की लड़ाई कई बार बढ़ जाती है. थोड़ाबहुत गुस्सा पहले भी आता था, लेकिन वे जल्द ही शांत हो कर हमेशा उन्हें मना लेते थे. लेकिन अब वे उन्हें मनाते नहीं. ऐसी बहुत सी बातें होती हैं, जो पहले स्वभाव में कम नजर आती हैं और तब अकसर लोग इन्हें हलके से लेते हैं. लेकिन यही बातें बाद में रिश्ते में मुश्किल पैदा करती हैं जैसे अधिक गुस्सा आना, घुलमिल कर न रहना, एक्सप्रैसिव न होना, गैरजिम्मेदाराना व्यवहार आदि.

3. महत्त्वपूर्ण फैसलों पर विचारविमर्श

प्यार का मतलब अपनेआप को भूलना नहीं होता. अगर ऐसा करेंगे तो अपनी जिंदगी से संतुष्ट नहीं रहेंगे और जिस प्यार के लिए कर रहे होंगे उसे भी खुश नहीं रख पाएंगे, इसलिए अपने भावी लक्ष्य, अपनी इच्छाएं, अपने साथी से शेयर करें और उन्हें भी शेयर करने के लिए कहें. उन्हें ध्यान से सुनें और उन पर विचार करें, क्योंकि अकसर लोग लव मैरिज में प्यार को सब से ऊपर तो रखते हैं, लेकिन जब जिंदगी की हकीकत से सामना होता है, तो निभाना काफी मुश्किल हो जाता है, खासतौर पर लड़कियों के लिए. अत: अगर शादी के बाद भी आप कामकाजी बनी रहना चाहती हैं या पढ़ाई जारी रखना चाहती हैं, तो शादी से पहले इस संबंध में बात कर लें. इसी तरह अगर लड़का विदेश में सैटल होने की सोच रहा हो या उस का संयुक्त परिवार हो तो कुछ बातों के लिए पहले से तैयार रहना चाहिए.

4. आर्थिक आत्मनिर्भरता

प्यार में हमेशा यह परख लेना चाहिए कि आप का साथी कितना काबिल है. जहां प्यार करने से पहले प्यार के काबिल बनना जरूरी है, वहीं शादी से पहले आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर होना भी बहुत जरूरी है. खासतौर से लव मैरिज में, जहां फैसला आप ने लिया है. इसलिए परिवार की उतनी मदद नहीं मिल पाती. फिर आर्थिक तौर पर निर्भर होना न सिर्फ आप की शादी के लिए परिवार को मनाना आसान बनाएगा, आप के भविष्य के लिए भी यह बहुत जरूरी है ताकि आर्थिक कमी आप के रिश्तों में दरार न लाए.

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5. एकदूसरे की तारीफ करें

बहुत से लोगों की यह धारणा होती है कि अगर आप का पार्टनर आप के लिए कुछ अच्छा कर भी रहा है तो वह उस का कर्तव्य है, यह समझ कर आप उस की तारीफ नहीं करते. लेकिन इस से आप अपना रिश्ता फीका बना देंगे. आप को यदि अपने साथी का कोई काम अच्छा लगे तो उस की तारीफ करें. इस से आप का रिश्ता मजबूत बनेगा.

6. उपहार और चौंकाती खुशियां

शादी से पहले तो आप ने एकदूसरे को कई गिफ्ट दिए होंगे, पर शादी के बाद भी यह सिलसिला बरकरार रखना चाहिए. मगर यह जरूरी नहीं है कि गिफ्ट्स पर काफी पैसा खर्च किया जाए. बस, अपने साथी की पसंद के अनुसार छोटेछोटे गिफ्ट भी दिए जा सकते हैं. सरप्राइजेज हमें जवां बनाते हैं और जिंदगी में जोश भी लाते हैं, लेकिन शादी के बाद भी अगर आप सरप्राइजेज से अपने पार्टनर को खुश रखेंगे तो यकीन मानिए, आप की जिंदगी कभी बोरिंग नहीं होगी.

7. एकदूसरे को स्पेस दें

शादी से पहले आप की जिंदगी में हर जगह आप का पार्टनर छाया हुआ था और उस की पोजैसिवनैस अच्छी भी लगती थी, लेकिन जरूरी नहीं कि शादी के बाद भी यह ऐक्स्ट्रा केयरिंग नेचर अच्छा लगे. इसलिए रिश्ते में स्पेस बनाए रखना चाहिए. हर बात पर प्रश्न नहीं पूछना चाहिए न ही हर मामले में दखल देना चाहिए. एकदूसरे के निर्णयों पर भरोसा करना जरूरी है. हर किसी की अपनी निजी जिंदगी भी होती है. उसे बनाए रखने में सहयोग देना चाहिए वरना शादी का बंधन कैद लगने लगेगा.

8. खुद की पहचान

अकसर लोग शादी के बाद यही सोचते हैं कि उन की खुशियां तो सिर्फ उन के साथी से, उन के गम हैं तो उन के साथी से. खासतौर से लव मैरिज में जहां पहले से ही वे एकदूसरे में इतना खोए रहते थे तो शादी के बाद तो उम्मीदें और बढ़ जाती हैं. लेकिन यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हर किसी का अपना व्यक्तित्व, अपनी सोशल लाइफ, अपनी पसंद होती है, इसलिए अपनी चीजों को एकदम अनदेखा नहीं करना चाहिए. मसलन, शादी के बाद दोस्तों से मेलजोल एकदम से खत्म नहीं करना चाहिए. यह सही है कि समय की कमी के कारण दोस्त छूट जाते हैं, लेकिन कुछ दोस्तों का जिंदगी में बने रहना जरूरी होता है. इस से आप का सोशल सर्कल होगा तो आप अपनी लाइफ को भी ऐंजौय कर पाएंगे.

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9. सजनासवंरना

अकसर शादी के बाद पति हो या पत्नी अपनी तरफ ध्यान देना छोड़ देते हैं, जबकि शादी से पहले वे एकदूसरे के लुक्स से काफी प्रभावित हुए थे. हर कोई चाहता है कि उस का साथी देखने में अच्छा लगे, उसे डौमिनेट करने के बजाय अच्छा सुझाव देना चाहिए कि उस पर क्या अच्छा लगेगा. साथ ही अपनेआप को भी संवार कर रखना चाहिए ताकि सारी जिंदगी आप अपने साथी को अपनी अदाओं का कायल बना कर रख सकें.

10. अपनी अपेक्षाएं शेयर करें

अकसर दंपती यही सोचते हैं कि जैसे शादी से पहले उन का पार्टनर बिना कहे उस की बातों को समझ जाया करता था, शादी के बाद भी समझ जाएगा. लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि पहले उन की जिंदगी बहुत ही सीमित थी. अब उन की जिंदगी में बहुत से लोग जुड़ गए हैं. जिन्हें साथ ले कर उन्हें चलना है. इसलिए हर चीज समझने के लिए इतना समय नहीं मिल पाता. बेहतर यही होगा कि अपनी इच्छाएं या जो आप चाहते हैं, उसे अपने पार्टनर को बताएं. वह उन पर गौर जरूर करेगा. अंदर ही अंदर न घुटें. इस से आप अपने मन में सिर्फ गुस्सा ही पालेंगे. अपनी बात शेयर करने से आप अपनी मुश्किल का हल शुरू में ही निकाल लेंगे.

11. सुझाव दें मगर थोपें नहीं

अकसर लोगों में यह आदत होती है कि जब उन्हें अपनी कोई बात मनवानी होती है तो वे कसम दे देते हैं. मसलन, पत्नी नहीं चाहती उस का पति धूम्रपान करे तो वह कसम दे कर छुड़वाने की कोशिश करती है, जो सरासर बेवकूफी है. बेहतर है कि अगर आप अपने साथी की कोई आदत छुड़ाना चाहते हैं, तो उसे सिर्फ उस आदत के परिणामों से अवगत करवाएं. यकीनन वह उसे छोड़ने की कोशिश करेगा. अपने निर्णयों को दूसरे पर थोपना गलत है, क्योंकि ऐसे निर्णय ज्यादा दिन टिक नहीं पाते हैं.

12. लाइफस्टाइल के साथ दिल से ऐडजस्ट

शादी से पहले आप अलग परिवारों के हिस्से थे. दोनों के तौरतरीकों में फर्क था. पहले यह बुरा इसलिए नहीं लगता था, क्योंकि एक सीमित समय में साथ रहते थे, उस का खास फर्क दूसरे की जिंदगी पर नहीं पड़ता था. पर अब जब शादी हो चुकी है, तो उन के लाइफस्टाइल को स्वीकार करना चाहिए. मसलन, पति नानवेज खाता है. पहले वह आप के साथ नहीं खाता था, पर अब आप उस के परिवार का हिस्सा हैं तो हर वक्त इस स्थिति से बचना संभव नहीं. इसलिए इसे स्वीकार कर लेना चाहिए. हर किसी को उस का प्यार लाइफ पार्टनर के रूप में नहीं मिलता. अगर आप को यह हसीन तोहफा मिला है तो मनमुटाव में समय न बिताएं. अगर एकदूसरे की भावनाओं का ध्यान रखते हुए अपने रिश्ते को निभाने की उत्साहपूर्ण कोशिश करेंगे तो आप के ‘लव’ का मैरिज के बाद कतई एंड नहीं होगा.

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