मुझे इंडस्ट्री एक गैम्बल लगती है : कार्तिक आर्यन

फिल्म ‘प्यार का पंचनामा’ से फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखने वाले अभिनेता कार्तिक आर्यन मध्यप्रदेश के ग्वालियर के हैं. बचपन से ही वे शरारती थे और पढाई में बिल्कुल मन नहीं लगता था, जिससे उन्हें कई बार अपने माता-पिता से डांट भी पड़ती थी, लेकिन अभिनय करना उन्हें पसंद था और वे स्कूल कौलेज में अधिकतर नाटकों में भाग लिया करते थे. स्कूल की पढाई के बाद वे दिल्ली और फिर मुंबई पढाई के लिए आए और यहां पर पढ़ाई के साथ – साथ फिल्मों में काम के लिए औडिशन भी देने लगे. ऐसे ही उन्हें पहली फिल्म मिली और वे पढाई छोड़कर अभिनय के क्षेत्र में आ गए. पहली फिल्म की सफलता के बाद उनकी पहचान बनी और उन्होंने कई फिल्मों में काम किया. विनम्र और हंसमुख स्वभाव के कार्तिक से फिल्म ‘लुकाछिपी’ के प्रमोशन पर बात करना रोचक था, पेश है कुछ अंश.

ये फिल्म लिव इन रिलेशनशिप पर आधारित है, आप इस पर कितना विश्वास करते हैं?

मैंने कभी इस बारें में सोचा नहीं है कि ये सही है या गलत. मेरे हिसाब से जब दो लोग साथ रहने का निश्चय लेते हैं तो उसमें कुछ गलत नहीं होता. हां ये सही है कि जिस समाज में हम रहते हैं वहां इसे सही नहीं कहा जाता. असल में ये सब आपकी सोच पर निर्भर करता है. मेरे साथ शादी करने वाली लड़की अगर शादी से पहले मेरे साथ रहकर देखना चाहे कि वह मेरे साथ शादी कर रह सकती है या नहीं, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी.

अभी आपको अच्छी फिल्में मिल रही हैं, सभी निर्देशक आपको नोटिस कर रहे हैं, आपका इस बारें में क्या कहना है?

मैं बहुत खुश हूं कि केवल इंडस्ट्री ही नहीं, बल्कि दर्शक भी मेरे काम की सराहना कर रहे हैं. सालों बाद फिल्म ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ की सफलता के बाद वह रात आई है, जिसकी मेरी इच्छा थी. 7 साल के संघर्ष के बाद मुझे स्टारडम मिला है. भविष्य में भी ऐसा रहे, लोग मुझे नयी-नयी भूमिका में देखें, ऐसा कोशिश करता रहूंगा.

एक्टिंग एक इत्तफाक था या बचपन से ही आप इस क्षेत्र में आना चाहते थे?

बचपन से मुझे अभिनय का शौक था. मैं तब फिल्में बहुत देखता था और मेरा रुझान ग्लैमर की तरफ अधिक था. उस समय मैं ग्वालियर में एक साधारण परिवार से था, एक्टिंग क्या होती है, कुछ भी पता नहीं था, लेकिन ये करना है इसकी सोच मेरे अंदर कक्षा नौ से आ चुकी थी.

स्टारडम मिलने के बाद आपने कुछ मानक तैयार किये हैं, ताकि आप ग्राउंडेड रहें ?

ऐसा कुछ तय नहीं किया है. मैं एक साधारण परिवार से हूं, जहां बचपन की तरह आज भी कुछ गलत करने पर माता-पिता डांटते हैं. मुझे इंडस्ट्री एक गैम्बल लगती है. जहां हर दिन एक नया संघर्ष रहता है.

आउटसाइडर होने की वजह से मुश्किलें क्या रहीं?

अपनी पहचान बनाना बहुत मुश्किल था. मुझे इंडस्ट्री और विज्ञापनों के बारें में कुछ भी पता नहीं था. एक लम्बा सफर था. मैं बेलापुर से रोज अंधेरी जाता था और फिर रिजेक्ट होकर वापस आता था. ढाई से तीन साल तक मैं औडिशन की लाइन में लगता था और बाहर से अनफिट सुनकर ही रिजेक्ट हो जाता था. ये सही है कि परिवार का कोई भी इंडस्ट्री से न होने पर पहला चांस मिलना ही मुश्किल हो जाता है. काफी औडिशन के बाद पहला काम मिलने पर भी संघर्ष था, क्योंकि फिल्म इंडस्ट्री एक व्यवसाय है और यहां उन्हें ही काम मिलता है, जिनकी फैन फोलोइंग अधिक हो, जिसे लोग देखना चाहे. इससे लोग आप पर पैसा लगाना चाहते हैं. मेरे साथ पहली फिल्म के बाद भी वैसा नहीं था. मुझे कम लोग जानते थे. फिल्म ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ के बाद मुझे काम मिलना शुरू हुआ.

आपके यहां तक पहुंचने में माता-पिता का सहयोग कैसा रहा?

पहले वे सहयोग नहीं करते थे, लेकिन आज खुश हैं. जब मैं ग्वालियर से मुंबई आया तो माता-पिता को बताकर नहीं आया था, क्योंकि मुझे डर था कि मेरे बताने पर वे मुझे ये काम करने नहीं देंगे. वे चाहते थे कि में पढ़ाई करूं. मैंने मुंबई और आस-पास के सभी कौलेजों के लिए परीक्षा दी, ताकि मैं मुंबई पहुंच जाऊं. नवी मुंबई के एक कौलेज में मुझे इंजीनियरिंग पढ़ने का चांस मिला और मैं यहां आकर 10 से 12 छात्रों के बीच में रहा. पैसे नहीं थे और मैंने अपने रूम मेट को भी नहीं बताया था, कि मैं एक्टर बनना चाहता हूं, क्योंकि वे भी एक्टर ही बनना चाहते थे. जब मैं फिल्म ‘प्यार का पंचनामा’ के औडिशन पर पहुंचा और 6 महीने बाद मुझे पता लगा कि मुझे फिल्म मिली है, तब मैंने रोते हुए मां को बताया था कि मैं अभिनय के लिए ही यहां आया हूं और इंजीनियरिंग की पढाई नहीं करना चाहता. मां को अभी भी मेरे काम की चिंता है, पर पिता बहुत खुश हैं.

आप किस तरह की लड़की को अपना जीवन साथी बनाना पसंद करेंगे?

जो लड़की अपने काम को लेकर ‘पैशनेट’ हो, साथ ही एक दूसरे पर विश्वास और इमानदार रहने की भी जरुरत है.

आपका ड्रीम प्रोजेक्ट क्या है?

मुझे डार्क चरित्र बहुत अच्छे लगते हैं. निर्देशक श्रीराम राघवन के साथ काम करने की इच्छा है. मैं बहुत सकारात्मक हूं, पर ऐसे चरित्र बहुत पसंद है.

मैं हमेशा शादी में विश्वास करती हूं : कृति सेनन

तेलगू फिल्म से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री कृति सेनन दिल्ली की हैं. उन्हें हिंदी फिल्मों में काम करने का मौका फिल्म ‘हिरोपंती’ से मिला, जिसमें उनके काम को तारीफे मिली और उन्हें पुरस्कार भी मिला. कृति ने जो भी फिल्में की, कमोबेश सफल रहीं, इसलिए आज उन्हें हर तरह की फिल्मों में काम करने का अवसर मिल रहा है. शांत और हंसमुख स्वभाव की कृति से उनकी फिल्म ‘लुकाछिपी’ के प्रमोशन के दौरान बात हुई, पेश है कुछ अंश.

इस फिल्म को चुनने की खास वजह क्या है?

मुझे छोटे शहरों की कहानियां अच्छी लगती है और इससे पहले फिल्म ‘बरेली की बर्फी’ को भी लोगों ने पसंद किया था. आजकल छोटे शहरों के लिए कहानियां लिखी जा रही हैं. ये कहानियां सबके लिए रिलेटेबल होती हैं. ऐसी कहानियां सभी को प्रेरित करती है.

लिव इन रिलेशनशिप’ को इसमें दिखाने की कोशिश की गयी है, आप इस पर कितना विश्वास करती हैं?

मैं शादी में हमेशा विश्वास करती हूं, लेकिन ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में जाना भी कोई गलत बात नहीं है. कई बार ऐसा होता है कि व्यक्ति समझ नहीं पाता है कि उसे अपने पार्टनर से शादी करनी है या नहीं, ऐसे में उसकी अनुकूलता को देखना जरुरी होता है, क्योंकि हर कोई एक बार ही शादी करना चाहता है. ऐसे में यह सही है, इसमें कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन मुंबई जैसे शहर में भी इसे स्वीकार करना मुश्किल होता है.

क्या लिव इन रिलेशनशिप में भी दायरे होने चाहिए?

लिव इन में आपको किसी की छोटी-छोटी बातों का पता चल जाता है. इसमें दायरे की जरुरत नहीं होती. हां इतना जरुर होता है कि आप ऐसा सोच लें कि अगर सब ठीक रहा, तो शादी तक बात पहुंच सकती है.

आप अपनी जर्नी को कैसे देखती हैं? स्क्रिप्ट चुनते समय किस बात का ध्यान रखती हैं?

मैं खुश हूं कि मेरी कई फिल्में अच्छी चली हैं. दर्शकों ने मेरे काम की सराहना की है. अच्छी फिल्म का कोई फार्मूला नहीं है. ऐसे में आपके दिल की बात सुननी चाहिए. किसी भी फिल्म को आप क्यों करना चाहते हैं उसे भी देखना पड़ता है, क्योंकि कोई भी खराब फिल्म बनाना नहीं चाहता. फिल्म की शूटिंग डेज आपको अच्छा लगना चाहिए. मुझे काम पर जाने में रोज मजा आना चाहिए साथ ही फिल्म की जर्नी अच्छी होने की जरुरत है. इसके लिए फिल्म में कुछ ऐसा होना चाहिए, जो आपको उत्साहित करें.

आपको सबसे अधिक काम करने की प्रेरणा कहां से मिलती है?

मेरा पूरा परिवार इसमें मेरा साथ देता है. जब मुझे कोई स्क्रिप्ट मिलती है तो मैं अपनी बहन या मां को पढ़ने के लिए देती हूं. उसके बाद मैं सबसे बात करती हूं. इंडस्ट्री में ऐसे कई हैं, जो चाहते हैं कि आप अच्छा काम करें, वे अच्छी सलाह देते हैं. मुझे अच्छा लगता है कि वैसे कुछ लोग मुझे मिले हैं.

क्या आपको आउटसाइडर होने का अनुभव अभी भी होता है?

आउटसाइडर होने पर थोड़े दिनों तक समस्या आती है. अभी मैं कुछ हद तक इस इंडस्ट्री का हिस्सा बन चुकी हूं. कभी-कभी मुश्किल आज भी होती है. कुछ बाधाएं हैं, जिसे मैं तोडना चाहती हूं. अच्छे निर्देशक के साथ काम करने का मौका अभी भी नहीं मिल पाया है. इससे आपको आगे बढ़ने में आसानी होती है और आप किस स्तर तक अभिनय कर सकते हैं, उसका भी पता चलता है. मेरी विश लिस्ट में निर्देशक इम्तियाज अली, अनुराग बासु, संजय लीला भंसाली, विशाल भारद्वाज, करण जौहर, जोया अख्तर, गौरी शिंदे, मेघना गुलजार आदि हैं. असल में आउटसाइडर होने पर आपको जानने और पहचानने में समय लगता है. कुछ हिट फिल्म उन्हें देने की जरुरत होती है, ताकि आप पर कहानियां लिखी जा सकें.

महिला दिवस पर आप महिलाओं को क्या संदेश देना चाहती हैं?

मैं महिला दिवस को नहीं मानती. पुरुषों के लिए दिन क्यों नहीं बना है? एक दिन महिलाओं को क्यों देना है? सशक्तिकरण की अगर मैं बात करूं, तो सब कुछ सोच से बदलती है. इसकी जिम्मेदारी माता-पिता की है. बचपन से बच्चों को वैसी शिक्षा देने की जरुरत है, तभी हमारा भविष्य अच्छा बनेगा. अगर आप लड़की को रात को बाहर जाने से मना करते हैं, तो लड़के को रात में बाहर न जाने दें. तभी सब बदलेगा और मैं चाहती हूं कि वो दिन आयें, जब हर महिला की सफलता के पीछे एक पुरुष का हाथ हो.

मेरे घर में हमेशा आजादी है और मैंने हमेशा अपनी इच्छानुसार काम किया है.

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