माफी: क्या थी प्रमोद की गलती

दस साल हो गए थे शादी को मग़र साथ 6 साल ही रह पाए थे. चार साल तो तलाक की कार्यवाही में ही बीत गये गए.

शेफाली के हाथ मे दहेज के समान की लिस्ट थी जो अभी प्रमोद के घर से लेना था और प्रमोद के हाथ मे गहनों की लिस्ट थी जो उसने शेफाली से लेने थे.

साथ मे कोर्ट का यह आदेश भी था कि प्रमोद शेफाली को  दस लाख रुपये की राशि एकमुश्त देगा.शेफाली और प्रमोद दोनो एक ही  औटो में बैठकर प्रमोद के घर आये.  आज ठीक 4 साल बाद आखिरी बार ससुराल जा रही थी शेफाली, अब वह कभी इन रास्तों से इस घर तक नहीं आएगी. यह बात भी उसे कचोट रही थी कि जहां वह 4 साल तक रही आज उस घर से उसका नाता टूट गया है. वह  दहेज के सामान की लिस्ट लेकर आई थी, क्योंकि सामान की निशानदेही तो उसे ही करनी थी.

सभी रिश्तेदार अपनेअपने घर जा चुके थे. बस, तीन प्राणी बचे थे. प्रमोद,शेफाली और उस की मां. प्रमोद यहां अकेला ही रहता था, क्योंकि उसके पेरेंट्स गांव में ही रहते थे.

शेफाली और प्रमोद की इकलौती 5 साल की बेटी जो कोर्ट के फैसले के अनुसार बालिग होने तक शेफाली के पास ही रहेगी. प्रमोद महीने में एक बार उससे मिल सकता है.

घर में  घुसते ही पुरानी यादें ताज़ी हो गईं. कितनी मेहनत से सजाया था शेफाली ने इसे. एक एक चीज में उसकी जान बसती थी. सबकुछ उसकी आंखों के सामने बना था. एकएक ईंट से उसने धीरेधीरे बनते घरौदे को पूरा होते देखा था. यह उसका सपनो का घर था. कितनी शिद्दत से प्रमोद ने उसके सपने को पूरे किए थे.

प्रमोद थकाहारा सा सोफे पर पसर गया और शेफाली से बोला, “ले लो जो कुछ भी तुम्हें लेना है, मैं तुम्हें नही रोकूंगा.”

शेफाली बड़े गौर से प्रमोद को देखा और सोचने लगी 4 साल में कितना बदल गया है प्रमोद. उसके बालों में  अब हल्की हल्की सफेदी झांकने लगी थी. शरीर पहले से आधा रह गया है. चार साल में चेहरे की रौनक गायब हो गई थी.

शेफाली स्टोर रूम की तरफ बढ़ी, जहां उसके दहेज का समान पड़ा था. कितना था उसका सामान. प्रेम विवाह था दोनो का. घर वाले तो मजबूरी में साथ हुए थे.

प्रेम विवाह था तभी तो नजर लग गई किसी की. क्योंकि प्रेमी जोड़ी को हर कोई टूटता हुआ देखना चाहता है.

बस एक बार पीकर बहक गया था प्रमोद. हाथ उठा बैठा था उस पर. बस तभी वो गुस्से में मायके चली गई थी.

फिर चला था लगाने सिखाने का दौर. इधर प्रमोद के भाईभाभी और उधर शेफाली की माँ. नौबत कोर्ट तक जा पहुंची और आखिर तलाक हो गया. न शेफाली लौटी और न ही प्रमोद लेने गया.

शेफाली की मां जो उसके साथ ही गई थीं,बोली, ” कहां है तेरा सामान? इधर तो नही दिखता. बेच दिया होगा इस शराबी ने ?”

“चुप रहो मां,” शेफाली को न जाने क्यों प्रमोद को उसके मुँह पर शराबी कहना अच्छा नही लगा.

फिर स्टोर रूम में पड़े सामान को एक एक कर लिस्ट से मिलाया गया.

बाकी कमरों से भी लिस्ट का सामान उठा लिया गया.

शेफाली ने सिर्फ अपना सामान लिया प्रमोद के समान को छुआ तक नही.  फिर शेफाली ने प्रमोद को गहनों से भरा बैग पकड़ा दिया.

प्रमोद ने बैग वापस शेफाली को ही दे दिया, ” रखलो, मुझे नही चाहिए काम आएगें तेरे मुसीबत में .”

गहनों की किम्मत 15 लाख रुपये से कम नही थी.

“क्यों, कोर्ट में तो तुम्हरा वकील कितनी दफा गहने-गहने चिल्ला रहा था.”

“कोर्ट की बात कोर्ट में खत्म हो गई, शेफाली. वहाँ तो मुझे भी दुनिया का सबसे बुरा जानवर और शराबी साबित किया गया है.”

सुनकर शेफाली की मां ने नाकभों चढ़ा दीं.

“मुझे नही चाहिए.

वो दस लाख रुपये भी नही चाहिए.”

“क्यों?” कह कर प्रमोद सोफे से खड़ा हो गया.

“बस यूं ही” शेफाली ने मुंह फेर लिया.

“इतनी बड़ी जिंदगी पड़ी है कैसे काटोगी? ले जाओ,,, काम आएंगे.”

इतना कह कर प्रमोद ने भी मुंह फेर लिया और दूसरे कमरे में चला गया. शायद आंखों में कुछ उमड़ा होगा जिसे छुपाना भी जरूरी था.

शेफाली की मां गाड़ी वाले को फोन करने में व्यस्त थी.

शेफाली को मौका मिल गया. वो प्रमोद के पीछे उस कमरे में चली गई.

वो रो रहा था. अजीब सा मुंह बना कर.  जैसे भीतर के सैलाब को दबाने  की जद्दोजहद कर रहा हो. शेफाली ने उसे कभी रोते हुए नही देखा था. आज पहली बार देखा न जाने क्यों दिल को कुछ सुकून सा मिला.

मग़र वह ज्यादा भावुक नही हुई.

सधे अंदाज में बोली, “इतनी फिक्र थी तो क्यों दिया तलाक प्रमोद?”

“मैंने नही तलाक तुमने दिया.”

“दस्तखत तो तुमने भी किए.”

“माफी नही मांग सकते थे?”

“मौका कब दिया तुम्हारे घर वालों ने. जब भी फोन किया काट दिया.”

“घर भी तो आ सकते थे”?

“मेरी हिम्मत नही हुई थी आने की?”

शेफाली की मां आ गई. वो उसका हाथ पकड़ कर बाहर ले गई. “अब क्यों मुंह लग रही है इसके? अब तो रिश्ता भी खत्म हो गया.”

मां-बेटी बाहर बरामदे में सोफे पर बैठकर गाड़ी का इंतजार करने लगी.

शेफाली के भीतर भी कुछ टूट रहा था. उसका दिल बैठा जा रहा था. वो सुन्न सी पड़ती जा रही थी. जिस सोफे पर बैठी थी उसे गौर से देखने लगी. कैसे कैसे बचत कर के उसने और प्रमोद ने वो सोफा खरीदा था. पूरे शहर में घूमी तब यह पसन्द आया था.”

फिर उसकी नजर सामने तुलसी के सूखे पौधे पर गई. कितनी शिद्दत से देखभाल किया करती थी. उसके साथ तुलसी भी घर छोड़ गई.

घबराहट और बढ़ी तो वह फिर से उठ कर भीतर चली गई. माँ ने पीछे से पुकारा मग़र उसने अनसुना कर दिया. प्रमोद बेड पर उल्टे मुंह पड़ा था. एक बार तो उसे दया आई उस पर. मग़र  वह जानती थी कि अब तो सब कुछ खत्म हो चुका है इसलिए उसे भावुक नही होना है.

उसने सरसरी नजर से कमरे को देखा. अस्त व्यस्त हो गया था पूरा कमरा. कहीं कंही तो मकड़ी के जाले झूल रहे थे.

कभी कितनी नफरत थी उसे मकड़ी के जालों से?

फिर उसकी नजर चारों और लगी उन फोटो पर गई जिनमे वह प्रमोद से लिपट कर मुस्करा रही थी.

कितने सुनहरे दिन थे वो.

इतने में मां फिर आ गई. हाथ पकड़ कर फिर उसे बाहर ले गई.

बाहर गाड़ी आ गई थी. सामान गाड़ी में डाला जा रहा था. शेफाली सुन सी बैठी थी. प्रमोद गाड़ी की आवाज सुनकर बाहर आ गया.

अचानक प्रमोद कान पकड़ कर घुटनो के बल बैठ गया.

बोला,” मत जाओ…माफ कर दो.”

शायद यही वो शब्द थे जिन्हें सुनने के लिए चार साल से तड़प रही थी. सब्र के सारे बांध एक साथ टूट गए. शेफाली ने कोर्ट के फैसले का कागज निकाला और फाड़ दिया .

और मां कुछ कहती उससे पहले ही लिपट गई प्रमोद से. साथ मे दोनो बुरी तरह रोते जा रहे थे.

दूर खड़ी शेफाली की माँ समझ गई कि कोर्ट का आदेश दिलों के सामने कागज से ज्यादा कुछ नही.

काश, उनको पहले मिलने दिया होता?

अगर माफी मांगने से ही रिश्ते टूटने से बच  जाएं, तो माफ़ी मांग लेनी चाहिए.

माफी: क्या परिवार ने स्वीकार की राजीव-वंदना की शादी

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माफी- भाग 3: क्या परिवार ने स्वीकार की राजीव-वंदना की शादी

सरला और सविता ने फौरन उन्हें शांत किया. वंदना ने खामोशी की चादर ओढ़ ली.

‘‘राजीव के मन में जो अपराधबोध का भाव बैठ गया है, उसे जल्दी से हटाना बेहद जरूरी है, जीजाजी. उस की उदासी की जड़े गहरी हो कर उस के व्यक्तित्व को बिगाड़ती जा रही है,’’ सविता ने चिंतित लहजे में अपनी राय प्रकट करी.

‘‘तुम्ही सलाह दो कि  हम क्या करें,’’ सरला ने अपनी छोटी बहन की तरफ आशा भरी नजरों से देखा.

‘‘मेरे खयाल से हमें राजीव और उस के मातापिता को आज शाम को यहां खाने पर आमंत्रित करना चाहिए. पार्टी के माहौल में आप दोनों उस के मन की परेशानी जरूर दूर कर सकेंगे.’’

‘‘हां, यह ठीक सलाह दी है, तुम ने,’’ राजेंद्रजी ने सविता के प्रस्ताव को फौरन मंजूरी

दे दी.

किसी से कुछ भी कहे बिना वंदना वहां से उठ कर अपने कमरे में चली गई.

उस के ऐसा करने से घर का माहौल कुछ भारी ही बना रहा.

राजेंद्रजी ने फोन पर कैलाशजी को सपरिवार अपने घर रात का खाना खाने का निमंत्रण दे दिया. उन की आवाज में राजीव को ले कर व्याप्त चिंता व दुख को राजेंद्रजी ने साफ महसूस किया.

राजेंद्र, मीना और राजीव रात 8 बजे के करीब उन के घर आ गए. राजीव का मुरझाया चेहरा किसी की आंखों से छिपा नहीं रहा.

राजेंद्रजी के सामने आ कर राजीव कुछ कहता, उस से पहले ही उन्होंने उस से कहा, ‘‘बरखुरदार, तुम आज ‘माफी’ शब्द को अपनी जबान पर लाओगे ही नहीं. मेरा मन बिलकुल साफ है. तुम मुझे उस दिन की सारी घटना सदा के लिए भूल जाने का आश्वासन दो, तो यह मेरे लिए सब से अच्छा उपहार होगा.’’

राजीव ने उन की बात का कोई जवाब देने के बजाय झक कर उन के पैर छू लिए. राजेंद्रजी ने भावुक हो कर उसे गले से लगाया, तो वंदना को छोड़ वहां उपस्थित तीनों महिलाओं की पलकें गीली हो उठीं.

‘‘आज खूब हंसतेमुसकराते हुए पार्टी का आनंद लो, राजीव,’’ सरला ने पास आ कर उस की पीठ को प्यार से थपथपाया.

‘‘जब वंदना मुझ से हंस कर नहीं बोलती है, तो मैं वैसा कैसे कर सकूंगा?’’ राजीव ने तनावग्रस्त लहजे में वंदना की तरफ देखते हुए सवाल पूछा.

सब की नजरों का केंद्र एकाएक वंदना

बन गई. उस ने खामोश रहते हुए अपनी नजरें झका लीं.

‘‘तुम वंदना की तरफ ध्यान ही मत दो, राजीव,’’ सविता ने उसे मुसकराते हुए सलाह दी.

‘‘मैं उस का दोस्त बने रहना चाहता हूं, आंटी.’’

‘‘वह धीरेधीरे सहज हो जाएगी, राजीव.’’

‘‘वह मुझे शायद कभी माफ नहीं करेगी, आंटी,’’ राजीव भावुक हो उठा.

‘‘क्या यह तुम्हारे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है कि वह तुम्हें माफ करें?’’

‘‘वह मुझे माफ  करेगी, तभी तो मैं खुद को माफ कर पाऊंगा आंटी.’’

सविता ने वंदना की तरफ घूम कर कहा, ‘‘वंदना, तुम इसे दिल से माफ कर दो.’’

वंदना ने न अपनी खामोशी भंग करी और न ही नजरें उठाई.

‘‘यह मामला तो पेचीदा हो गया है, पर इस का एक हल मेरी समझ में आ रहा है,’’ सविता एकाएक गंभीर हो गई.

‘‘वह हल क्या है?’’ अपने बेटे के मानसिक स्वास्थ्य के प्रति चिंतित मीना ने फौरन उत्सुकता जाहिर करी.

‘‘जीजाजी, सरला दीदी, क्या आप दोनों राजीव को अब नेकदिल इंसान मानते हो?’’ मीना को जवाब न दे कर सविता अपनी दीदी व जीजाजी की तरफ घूमी.

‘‘हां,’’ उन दोनों ने एक साथ जवाब दिया.

‘‘और आप दोनों राजीव को हंसीखुशी से भरा देखने के इच्छुक हैं न?’’ वह फिर मीना व कैलाशजी की तरफ घूमी.

‘‘अपने बेटे की हंसीखुशी से ज्यादा हमारे लिए कुछ भी महत्त्वपूर्ण नहीं है,’’ कैलाशजी ने भावुक हो कर जवाब दिया.

‘‘और राजीव की हंसीखुशी अब वंदना के हाथों में है. मुझे लगता है कि अगर हम इन दोनों को दोस्ती से कहीं ज्यादा मजबूत रिश्ते में बांध दें, तो सारी समस्या का समाधान खुदबखुद हो जाएगा.’’

सविता का इशारा किस तरफ है, इसे समझने में किसी को भी ज्यादा समय नहीं लगा.

‘‘मैं वंदना को अपनी बहू बनाने को बिलकुल तैयार हूं. सारी समस्या का इस से बढि़या समाधान हो ही नहीं सकता है,’’ मीना की ममता ने अपने बेटे की खुशियों की खातिर इस निर्णय पर पहुंचने में कैलाशजी से कोई सहायता नहीं ली.

कैलाशजी ने अपने बेटे राजीव को पिछले कई हफ्तों में पहली बार खुशी से मुसकराते देखा, तो वे भी खुश हो उठे.

‘‘आप के घर से रिश्ता जोड़ कर हमें बेहद प्रसन्नता होगी,’’ कैलाशजी ने आगे बढ़ कर राजेंद्रजी के कंधों पर दोस्ताना अंदाज में हाथ रखा.

‘‘भाई साहब, मैं दहेज में ज्यादा…’’

‘‘हमें दहेज नहीं अपने बेटे का अच्छा स्वास्थ्य व खुशियां चाहिए,’’ कैलाशजी ने उन के मुंह पर हाथ रख कर उन्हें खामोश कर दिया.

‘‘हम छोटी जाति के…’’ सरला को आगे बोलने से मीना ने रोका और अपने गले से लगा लिया.

‘‘राजीव की ‘हां’ तो उस की मुसकराहट से ही जाहिर हो रही थी. वंदना, अब तुम भी अपना जवाब सुना दो,’’ सविता की इस पेशकश ने वंदना को फिर से सब की नजरों का केंद्र बना दिया.

वंदना धीरेधीरे चल कर सविता के पास आईर् और उन के कान में बेहद धीमे

से फुसफुसा कर बोली, ‘‘मेरी प्यारी मौसी, बधाई. आप का मार्गदर्शन पा कर मैं अपना मनपसंद जीवनसाथी पा गई हूं. माना कि राजीव ने उदास दिखने का बढि़या अभिनय लंबे समय तक किया, पर सारी योजना तो आप की ही थी. दहेज व जातपांत के झंझट से बचा कर हमारी शादी पक्की कराने के लिए आप का फिर से धन्यवाद.’’

अपनी मौसी का गाल चूम कर वंदना अपने कमरे में भाग गई.

‘‘वह कह रही है कि अगर भविष्य में कभी ‘माफी’ न मांगने का वादा राजीव करे, तो वह इस शादी को हां करती है,’’ सविता की इस बात पर सब का सम्मिलित ठहाका ड्राइंगरूम में गूंज उठा और सब एकदूसरे को नए रिश्ते में बंधने की शुभकामनाएं देने लगे.

यह राज तो बाद में कई महीनों बाद खुला कि न राजीव के पिता तैयार होते कि यादव घर में शादी हो, न वंदना के मातापिता की हिम्मत होती कि वे उस घर में संबंध मांगने जाए जहां उन की बिरादरी को कम समझ जाता हो. वंदना के पिता हैड मास्टर ही थे पर वे अपने छात्रों में बेहद लोकप्रिय थे और उन से पढ़े बच्चे अब आईएएस, एमबीए, सीईओ बन गए थे. सब ने तय कर रखा था कि राजेंद्रजी के रिटायर होते ही एक बड़ा कोचिंग सैंटर खोला जाएगा जिस की सारे देश में ब्रांचें होंगी.

वंदना जानती थी कि उस के पिता के गुण क्या है और वह नहीं चाहती थी कि राजीव के पिता कभी उन्हें हीन समझें. तभी तो उन की मौसी की बात से बात बनी.                     द्य

माफी- भाग 2: क्या परिवार ने स्वीकार की राजीव-वंदना की शादी

राजीव को समझनेबुझने का एक नया दौर फिर से शुरू हुआ. वे सब की बातें सिर झका कर सुनता रहा, पर उदासी का कुहरा उस के चेहरे पर से आखिर तक नहीं हटा.

अचानक कार से निकल कर राजीव ने नए कुरतेपजामे का जोड़ा राजेंद्रजी के हाथों में पकड़ाते हुए सुस्त लहजे में कहा, ‘‘सर, आप ने इसे स्वीकार नहीं किया तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर सकूंगा.’’

‘‘इस की कोई जरूरत नहीं है, बेटा. माफी तो मैं ने तुम्हें वैसे ही दे दी है,’’ राजेंद्र जी को

यों उपहार स्वीकार करना बड़ा अटपटा सा लग रहा था.

उन का जवाब सुन कर राजीव का चेहरा एकदम से बुझ गया. तब सरला ने हस्तक्षेप कर के कुरतेपजामे का सैट अपने पति के हाथ में जबरदस्ती पकड़ा कर उन्हें राजीव का उपहार स्वीकार करने को बाध्य कर दिया.

विदा होने तक राजीव के चेहरे पर किसी तरह की मुसकान नहीं उभरी थी. वह बुझबुझ सा ही चला गया. कैलाश और मीना की आंखों में चिंता के भावों को बरकरार देख कर राजेंद्रजी व सरला का मन भी बेचैनी व तनाव का शिकार बने रहे.

राजेंद्रजी ने वंदना के कमरे में जाकर उसे भी समझया, ‘‘गलती इंसान से हो जाती है, बेटी. मेरे अनुमान के विपरीत यह राजीव भावुक और संवेदनशील इंसान निकला है. उस के मन को और दुखी करना ठीक नहीं है. तुम भी उस के साथ अपना व्यवहार सहज व सामान्य कर ले. उस का डिप्रैशन से जल्दी निकलना बेहद जरूरी है,’’ राजेंद्रजी की आवाज में चिंता के भाव साफ झलक रहे थे.

‘‘मैं उस से जबरदस्ती बात कभी नहीं करूंगी. उस की बदतमीजी के लिए मैं उसे कभी माफ करने वाली नहीं हूं,’’ वंदना को गुस्सा अपनी जगह कायम रहा.

‘‘इतना ज्यादा गुस्सा करना ठीक  नहीं है, बिटिया रानी. वह मेरा कुसूरवार था. अब मैं ने उसे माफ कर दिया है, तो तुम भी उस के साथ सहज व्यवहार करो.’’

‘‘यह मुझ से नहीं होगा, पापा.’’

‘‘बेटी, वह दिल का बुरा नहीं निकला. मुझे नया कुरतापजामा भी गिफ्ट कर गया है. अपनी जिद पर अड़ी रह कर तुम उस के दिल को और तकलीफ मत पहुंचाओ.’’

‘‘मुझे उस के दिल की तकलीफ की चिंता नहीं है, पापा.’’

वंदना का रूखा जवाब सुन कर राजेंद्रजी को गुस्सा आ गया. बेटी को समझने की बात भूल कर वो उसे डांटनेडपटने लगे.

वंदना जवाब में खामोश रही, पर उस का मुंह नाराजगी से सूज गया. राजीव को माफी देने का मामला इन के घर का माहौल तनावग्रस्त कर गया था.

राजीव अभी भी उदास और गुमसुम बना हुआ है, 2 दिन बाद कैलाशजी से फोन पर यह खबर सुन कर राजेंद्रजी परेशान हो उठे. इस विषय पर उन्होंने सरला से देर तक बातें कीं. उन दोनों की सहानुभूति अब राजीव व उस के मातापिता के साथ थी. सारे मामले की खलनायिका उन्हें अपनी बेटी प्रतीत हो रही थी जिस ने राजीव के साथ सीधे मुंह वार्त्तालाप करना अभी भी आरंभ नहीं किया था.

राजीव की उदास हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है, इस की खबर इन दोनों को योगेश साहब के द्वारा आगामी रविवार को मालूम पड़ी. वे राजीव और वंदना के बौस थे.

‘‘राजेंद्रजी, वंदना मेरी तो सुनती नहीं है… अब आप ही उसे समझइए कि वह राजीव से ठीक तरह से पेश आने लगे. बातबात पर उसे ताने देना… उसे बेइज्जत करना वंदना के लिए ठीक नहीं है,’’ योगेश साहब ने पिता से बेटी की शिकायत करी.

‘‘इस विषय पर मैं उसे कई बार डांट चुका हूं… कपूर साहब. पता नहीं क्यों वह सारी बात भूलने को तैयार नहीं है?’’ राजेंद्रजी परेशान हो उठे.

‘‘क्या आपने राजीव को माफ कर दिया

है, सर?’’

‘‘बिलकुल कर दिया है,  योगेश साहब.’’

‘‘दिल से?’’

‘‘जी, हां.’’

‘‘लेकिन न राजीव आप के माफ कर देने से संतुष्ट है, न वंदना. राजीव अपने को अब भी गुनहगार मानता है और वंदना उसे इस बात को भूलने नहीं देती.’’

‘‘राजीव अच्छा, समझदार और अपने काम में कुशल आदमी होता था. उस की अगली प्रमोशन का समय बिलकुल सिर पर आ पहुंचा है और वह है कि सारा दिल खोयाखोया सा रहता है. मैं उस की मनोदशा को ले कर सचमुच बेहद चिंतित हूं.’’

‘‘मैं वंदना को फिर से समझऊगा,’’ राजेंद्रजी ने योगेश साहब को आश्वासन दिया.

‘‘ये दोनों बड़े अच्छे दोस्त होते थे. अब वंदना उसे झिड़कती रहती है. दोनों की दोस्ती को किसी की नजर लग गई,’’ योगेश साहब का यह वाक्य राजेंद्र जी को बाद में भी बारबार याद आता रहा. उन्हें हैरानी इस बात की थी कि वंदना ने कभी पहले राजीव से अपनी अच्छी दोस्ती की चर्चा घर में नहीं करी थी.

‘‘कहीं राजीव और वंदना जरूरत से ज्यादा गहरे दोस्त तो नहीं थे? मेरा मतलब तुम समझ रही हो न?’’ रात को सोते समय राजेंद्रजी ने अपने मन की चिंता सरला से कही.

‘‘मुझे नहीं लगता उन के बीच प्रेम का कोई चक्कर चल रहा होगा. राजीव अमीर खानदान का बेटा है. वे लोग ब्राह्मण हैं और हम यादव. एक स्कूल हैंडमास्टर की बेटी में राजीव की क्यों दिलचस्पी होगी?’’ सरला की इस दलील ने राजेंद्रजी के मन में बनी बेचैनी को बड़ी हद तक शांत कर दिया.

अगले रविवार की सुबह वंदना की सविता  मौसी उन के घर आ पहुंची. उन के

हाथ में खूबसूरत गुलदस्ता देख इन तीनों को याद आया कि आज राजेंद्रजी और सरला की शादी की 26वीं सालगिरह है.

‘‘साली साहिबा, अब तक तो तुम आज के दिन कभी गुलदस्ता नहीं लाई थीं. आज क्या खास बात है जो इतना सुंदर गुलदस्ता भेंट कर रही हो?’’ राजेंद्रजी ने अपने साली को छेड़ते हुए सवाल पूछा.

‘‘जीजाजी, मैं तो इस बार भी आप के लिए स्वैटर ही लाई हूं. ये फूल तो राजीव ने भेजें हैं,’’ सविता ने रहस्यमयी अंदाज में मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘राजीव ने?’’ राजेंद्रजी चौंके, ‘‘तुम उसे कैसे जानती हो?’’

‘‘वह हमारी कालोनी में ही तो रहता है, जीजाजी.’’

‘‘अच्छा. पर तुम ने कभी जिक्र तो नहीं किया उस का?’’

‘‘उस का मौका ही नहीं पड़ा. अच्छा, यह बताइए कि आप उसे माफ क्यों नहीं कर देते हो? वह अपनी गलती मान तो चुका है जीजाजी.’’

राजेंद्रजी ने अपने माथे पर हाथ मारते हुए कहा, ‘‘अरे, मैं अपने उस चाचा को सैकड़ों बार माफ कर चुका हूं, अब कैसे समझऊं मैं उसे यह बात?’’

‘‘वह बेचारा बड़ा दुखी नजर आ रहा था. वंदना तुम उस से सीधे मुंह बात क्यों नहीं करती हो?’’ सविता ने उसे प्यार भरे गुस्से से घूरा.

‘‘मौसी, मैं तो उस से बात ही नहीं करती हूं,’’ वंदना ने मुंह बना कर

जवाब दिया.

‘‘मुझे अब राजीव से नहीं बल्कि अपनी बेटी से कहीं

ज्यादा शिकायत है. यहउस से कहीं ज्यादा बड़ी बदतमीज साबित हो रही है,’’ राजेंद्रजी को एकदम गुस्सा आ गया.

माफी- भाग 1: क्या परिवार ने स्वीकार की राजीव-वंदना की शादी

जब वंदना 5 मिनट पहले ब्रैडअंडे खरीदने दुकान में घुसी थी, तब उस के पिता राजेंद्रजी फुटपाथ पर अकेले खड़े थे. अब वह बाहर आईर् तो देखा उन के इर्दगिर्द 15-20 आदमियों की भीड़ इकट्ठी थी.

अपने पिता की ऊंची, गुस्से से भरी आवाज सुन कर उस ने समझ लिया कि वे किसी से झगड़ रहे हैं.

‘‘अंधा… बेवकूफ… गधा… इडियट… रास्कल…’’ राजेंद्रजी के मुंह से निकले ऐसे कई शब्द वंदना के कानों में पड़ गए थे.

उन से उलझ हुआ युवक मोटरसाइकिल पर बैठा था. वी हर वाक्य के बाद राजेंद्रजी के लिए बुड्ढे बुढ़ऊ और सठिया गया इंसान जैसे विशेषणों का प्रयोग कर उन के गुस्से को बारबार भड़का रहा था.

अपने पिता के सफेद कुरतेपजामे पर

कीचड़ के निशानों को देख वंदना झगड़े का कारण फौरन समझ गई, ‘‘राजीव,’’ वंदना ने मोटरसाइकिल पर बैठे युवक को पहचान कर जोर से डांटा, ‘‘इतनी बदतमीजी से बात करते हुए तुम्हें शर्म आनी चाहिए.’’

राजीव ने चौंक कर उस की तरफ देखा. एक सुंदर युवती को झगड़े में

हिस्सेदार बनते देख भीड़ की दिलचस्पी और ज्यादा बढ़ गई.

‘‘वंदना, तुम्हें इन के मुंह से निकलने वाली गालियों को भी सुनना चाहिए,’’ राजीव ने उत्तेजित लहजे में सफाई दी, ‘‘अरे, बारिश का मौसम है तो छींटें पड़ सकते हैं. ये बुढ़ऊ न हो कर कम उम्र के होते तो अब तक मैं ने इन के दांत तोड़ कर इन के हाथ में…’’

‘‘तुम जिन के दांत तोड़ने की बात कर रहे हो, वे मेरे पिता हैं.’’

‘‘अरे, नहीं,’’ राजीव का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया.

‘‘मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि तुम एक बुजुर्ग इंसान से इतनी गंदी तरह से बोल सकते हो.’’

‘‘सर, मुझे माफ कर दीजिए. गुस्से में मैं ने जो गलत शब्द…’’

‘‘माफी और तुम जैसे घटिया, बदतमीज इंसान को. कभी नहीं.’’ राजेंद्रजी ने गुस्से से लाल हो कर अपना फैसला सुना दिया.

‘‘सर, आप ने भी मुझे खूब डांटा है और अपशब्द…’’

‘‘मुझे तुम से एक शब्द भी नहीं बोलना है. तुम इस नालायक इंसान को कैसे जानती हो, बेटी?’’ राजेंद्रजी ने वंदना से पूछा.

‘‘पापा, ये मेरे साथ औफिस में काम करते हैं.’’

‘‘तुम इस बदमाश से अब कोई संबंध

नहीं रखोगी.’’

‘‘राजीव, तुम ने मेरे पापा के लिए जो अपशब्द मुंह से निकाले हैं, उन के लिए मैं तुम्हें कभी माफ नहीं करूंगी,’’ कह वंदना अपने पिता का हाथ थाम कर वहां से चलने लगी.

‘‘वंदना, मैं माफी मांग तो रह हूं,’’ राजीव अब परेशान व घबराया सा नजर आ रहा था.

‘‘मैं तुम्हें कभी माफ नहीं करूंगी,’’ वंदना मुंह फेर कर चल दी.

‘‘मैं तो चाहता हूं कि तुम्हारे जैसे बदतमीज इंसान का मुंह काला कर उसे सड़कों पर घुमाया जाए,’’ कह राजीव को कुछ पल गुस्से से घूरने के बाद राजेंद्रजी अपनी बेटी के साथ चल पड़े.

राजीव के मोटरसाइकिल स्टार्ट करते ही भीड़ ने छंटना शुरू कर दिया. घटनास्थल से विदा होते समय वह काफी गंभीर नजर आ रहा था.

राजेंद्रजी ने घर पहुंचते ही अपनी पत्नी सरला को सारी घटना का ब्योरा सुनाया. शाम को पार्क में घूमते हुए अपने हमउम्र दोस्तों से सारी बात कही. आज के युवावर्ग के गलत व्यवहार को ले कर दोनों जगह उन्होंने अपने मन की कड़वाहट खूब निकाली.

‘‘पापा, उस की मुझ से बात करने की हिम्मत नहीं होती है औफिस में. जो मेरे पापा की बेइज्जती करे, मैं उस की शक्ल भी देखना पसंद नहीं करूंगी,’’ वंदना के मुंह से यह बात 2 दिन बाद सुन कर राजेंद्रजी के मन को बड़ा चैन मिला.

उन का राजीव से झगड़ा रविवार के दिन हुआ था. अगले रविवार तक वे सारी बात को लगभग भूल चुके थे, लेकिन राजीव के मातापिता को अचानक अपने घर आया देख उन के मन में पूरी घटना की याद फिर से ताजा हो गई.

अपने यों अचानक आने का मकसद राजीव की मां मीना ने आंखों में आंसू भर कर उन तीनों के सामने बयां किया.

‘‘भाई साहब, राजीव सप्ताह भर से न ठीक से खा रहा है, न सो रहा है, ढंग से हंसनाबोलना पूरी तरह से भूल गया है. उस का उदास, मुरझया चेहरा हम से देखा नहीं जाता. बड़ा गहरा सदमा लगा है उसे,’’ अपने बेटे की दयनीय हालत बयां करते हुए मीना की आंखों से आंसू बह निकले.

‘‘आप की बातों पर विश्वास करना कठिन लग रहा है मुझे,’’ राजेंद्रजी हैरानपरेशान नजर आने लगे, ‘‘बुरा मत मानिएगा पर मुझे आप का बेटा संवेदनशील इंसान नहीं लगा था. उस ने बड़े गंदे ढंग से मुझ से बात करी थी.’’

‘‘राजेंद्रजी, वह सचमुच अपने व्यवहार के लिए बेहद शर्मिंदा और दुखी है. प्लीज, आप हम पर तरस खाइए और उसे माफ कर दीजिए,’’ राजीव के पिता कैलाशजी ने भावुक अंदाज में हाथ जोड़ कर कहा.

राजेंद्रजी ने फौरन कहा, ‘‘भाई साहब, आप यों दुखी न हों. बात इतनी बड़ी भी नहीं है कि माफी न दी जा सके. मेरा गुस्सा तो कभी का जा चुका है. आप राजीव को कहिएगा कि मैं ने उसे दिल से माफ कर दिया है.’’

‘‘वह बाहर कार में बैठा है. अंदर आने का हौसला अपने भीतर पैदा नहीं कर पा रहा था. अगर यह बात आप खुद उस से कह दें, तो उस का असर ज्यादा होगा.’’

‘‘अरे, उसे अंदर आना चाहिए था. वंदना, तुम उसे बुला लाओ,’’ राजेंद्रजी ने अपनी बेटी को आदेश दिया.

‘‘मैं अपने कमरे में जा रही हूं, पापा.

आप की जो मरजी हो करो, पर मैं उस से एक शब्द भी बोलना नहीं चाहती हूं,’’ गुस्से से पैर पटकती वंदना ड्राइंगरूम से उठ कर अपने कमरे में चली गई.

अपनी बेटी के व्यवहार पर शर्मिंदा से होते राजेंद्रजी खुद उठ कर राजीव को बुलाने चल पड़े. सरला भी उन के साथ चलीं, तो कैलाश और मीना भी साथ हो लिए.

बाहर सड़क पर ही राजेंद्रजी ने राजीव को पहले प्यार से बुजुर्गों के साथ सदा सही ढंग से पेश आने की बात समझईर् और फिर सिर पर हाथ फिराते हुए उसे माफ करने की बात कही.

‘‘सर, मेरा गंदा व्यवहार माफी के काबिल ही नहीं है,’’ राजीव का चेहरा उदास और मुरझया हुआ ही बना रहा, तो सब की बेचैनी व चिंता फौरन बढ़ गई.

सरला ने राजीव को घर के अंदर चलने का निमंत्रण दिया, पर वह राजी नहीं हुआ.

‘‘आंटी, वंदना की आंखों में मैं अपने लिए गुस्से व नफरत के जो भाव देखता हूं, वह मेरे लिए असहनीय है. उस का सामना करने की हिम्मत मुझ में नहीं है,’’ राजीव की दर्दभरी आवाज सब के दिल को छू गई.

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