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राजीव को समझनेबुझने का एक नया दौर फिर से शुरू हुआ. वे सब की बातें सिर झका कर सुनता रहा, पर उदासी का कुहरा उस के चेहरे पर से आखिर तक नहीं हटा.

अचानक कार से निकल कर राजीव ने नए कुरतेपजामे का जोड़ा राजेंद्रजी के हाथों में पकड़ाते हुए सुस्त लहजे में कहा, ‘‘सर, आप ने इसे स्वीकार नहीं किया तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर सकूंगा.’’

‘‘इस की कोई जरूरत नहीं है, बेटा. माफी तो मैं ने तुम्हें वैसे ही दे दी है,’’ राजेंद्र जी को

यों उपहार स्वीकार करना बड़ा अटपटा सा लग रहा था.

उन का जवाब सुन कर राजीव का चेहरा एकदम से बुझ गया. तब सरला ने हस्तक्षेप कर के कुरतेपजामे का सैट अपने पति के हाथ में जबरदस्ती पकड़ा कर उन्हें राजीव का उपहार स्वीकार करने को बाध्य कर दिया.

विदा होने तक राजीव के चेहरे पर किसी तरह की मुसकान नहीं उभरी थी. वह बुझबुझ सा ही चला गया. कैलाश और मीना की आंखों में चिंता के भावों को बरकरार देख कर राजेंद्रजी व सरला का मन भी बेचैनी व तनाव का शिकार बने रहे.

राजेंद्रजी ने वंदना के कमरे में जाकर उसे भी समझया, ‘‘गलती इंसान से हो जाती है, बेटी. मेरे अनुमान के विपरीत यह राजीव भावुक और संवेदनशील इंसान निकला है. उस के मन को और दुखी करना ठीक नहीं है. तुम भी उस के साथ अपना व्यवहार सहज व सामान्य कर ले. उस का डिप्रैशन से जल्दी निकलना बेहद जरूरी है,’’ राजेंद्रजी की आवाज में चिंता के भाव साफ झलक रहे थे.

‘‘मैं उस से जबरदस्ती बात कभी नहीं करूंगी. उस की बदतमीजी के लिए मैं उसे कभी माफ करने वाली नहीं हूं,’’ वंदना को गुस्सा अपनी जगह कायम रहा.

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