महायोग: धारावाहिक उपन्यास, भाग-7

कामिनी यश की मनोदशा समझ रही थी परंतु उस समय कुछ भी बोलने का औचित्य नहीं था, सो चुप ही रही. यश का स्वभाव था यह. वे अपने और मांपिता के सामने किसी की नहीं सुनते थे. लेकिन जब अपनी गलती का एहसास करते तो स्वयं बेचैन हो जाते और अपनेआप को सजा देने लगते. कामिनी अजीब सी स्थिति में हो जाती है. ऐसे समय में न वह यश से यह कह पाती है कि उन्होंने उन की बात नहीं मानी, यह उसी का परिणाम है. और न ही वह यश की दुखती रग पर मलहम लगा पाती है. ऐसी स्थिति में शिष्ट व सभ्य, सुसंस्कृत कामिनी अपनी ही मनोदशा में झूलती रहती है. यश रातभर करवटें बदलते रहे. कामिनी भी स्वाभाविक रूप से बेचैन थी. आखिर कामिनी से नहीं रहा गया.

‘‘इतना बेचैन क्यों हो रहे हो यश? सब ठीक हो जाएगा,’’ कामिनी ने यश के बालों को सहलाते हुए धीरे से कहा.

‘‘यह छोटी बात नहीं है, कामिनी. कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. यह मेरी बिटिया के भविष्य का प्रश्न है,’’ और अचानक यश ने पास में रखे फोन को उठा कर नंबर मिलाना शुरू कर दिया.

कामिनी ने घड़ी देखी. सुबह के 5 बजे थे यानी लंदन में रात के 12 बजे होंगे.

उधर से उनींदी आवाज  आई, ‘‘हैलो, कौन?’’

‘‘मैं, यश, इंडिया से,’’ यश ने स्पीकर औन कर दिया था. शायद कामिनी को भी संवाद सुनाना चाहते थे.

‘‘अरे, नमस्कार यशजी, इस समय कैसे? सब ठीक तो है?’’ नील की मां की उनींदी आवाज फोन पर थी.

कामिनी ने बड़ी आजिजी से यश को इशारा किया कि वे बिना बात, बात को न बिगाड़ें. आखिर उन की बेटी का सवाल है. यश को शायद कामिनी की बात कुछ जंच गई. थोड़े धीमे लहजे

में बोले, ‘‘आप ने नील की चोट के बारे में नहीं बताया?’’ यश के लहजे में शिकायत थी.

‘‘मैं ने और नील ने सोचा था यशजी कि आप चोट की बात सुन कर बेकार परेशान हो जाएंगे इसलिए…’’

यश चिढ़ गया. ‘मानो बड़ी हमदर्दी है इन्हें हमारी परेशानी से’, बहुत धीमी आवाज में उस के मुंह से निकल गया.

‘‘आप जानती हैं कि कितनी परेशान रहती है हमारी बेटी. उधर, नील भी कईकई दिनों तक फोन नहीं करते और न ही कुछ प्रोग्राम के बारे में बताते हैं?’’

‘‘क्या करें यशजी, परिस्थिति ही ऐसी थी कि जल्दी आना पड़ा.’’

‘‘क्या परिस्थिति? उस पंडित के कहने से आप ने नील और दिया को 2 दिन भी साथ रहने नहीं दिया और जानती हैं इस से हमारी बेटी पर कितना खराब असर पड़ रहा है?’’

‘‘ऐसी तो कोई बड़ी बात नहीं हो गई. हम ने तो यह ही सोचा कि आप लोग परेशान हो जाएंगे. वैसे भी न तो दिया तैयार थी इस शादी के लिए और न ही कामिनी बहनजी,’’ नील की मां की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या कहें. फिर कुछ रुक कर बोलीं, ‘‘हमारे नील की भी तो शादी हुई है. वह भी तो अपनी पत्नी को मिस कर रहा होगा.’’

‘‘ममा, किस से बात कर रही हैं, इस समय?’’ नील शायद नींद से जागा था.

‘‘तुम्हारे ससुर हैं, इंडिया से.’’

‘‘अरे, इस समय,’’ नील ने शायद घड़ी देखी होगी.

‘‘नमस्ते, डैडी. क्या बात है, इस समय फोन किया? सब ठीक है न?’’

यश नमस्ते का उत्तर दिए बिना ही असली बात पर जा पहुंचे, ‘‘आप को चोट लग गई, नील? किसी ने बताया भी नहीं. मैं टिकट का इंतजाम कर के जल्दी से जल्दी आने की कोशिश करता हूं.’’

‘‘अरे नहीं, डैडी. वह लगी थी चोट, अब तो ठीक भी हो गई. अब कल या परसों से तो मैं औफिस जाना शुरू कर दूंगा,’’ नील हड़बड़ाहट में बोला.

‘‘एक बार मिल लूंगा तो तसल्ली हो जाएगी. इधर, दिया भी बहुत उदास रहती है. उस के पेपर्स कब तक तैयार हो रहे हैं?’’

‘‘बस, अब औफिस जाने लगूंगा तो जल्दी ही तैयार करवा कर भेज देता हूं. और हां, आप बेकार में यहां आने की तकलीफ न करें.’’

नील की भाषा इतनी साफ व मधुर थी कि यश उस से पहली बार में ही प्रभावित हो गए थे. अच्छा लगा था उन्हें परदेस में रह कर अपनी भाषा व संस्कारों की तहजीब बनाए रखना.

‘‘तकलीफ की क्या बात है? मैं तो वैसे भी काम के सिलसिले में बाहर जाता ही रहता हूं. वीजा की कोई तकलीफ नहीं है मुझे. मेरे पास लंदन का 10 साल का वीजा है.’’

‘‘नहीं, आप तब आइएगा न, जब दिया यहां पर होगी. अभी बिलकुल तकलीफ न करें. मैं बिलकुल ठीक हूं. मम्मी को बोलूंगा जल्दी ही पंडितजी से दिया को लाने की तारीख निकलवा लेंगी.’’

यश ने फोन रख दिया. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें. आखिर, वे बेटी के पिता हैं. न तो अब उगलते बनता है और न निगलते. फिर भी उन्हें भरोसा था कि कहीं न कहीं समझनेसमझाने में ही भूल हुई होगी. हां, यह बात जरूर कचोट रही थी कि मां ने इतनी बड़ी बात उन से छिपाई. आज उन्हें महसूस हुआ कि उन के घर पर पंडित का कितना प्रभाव है. यश भी कोई कम विश्वास नहीं रखते थे इन मान्यताओं में परंतु जब मां ने छिपाया तब वे सहन नहीं कर सके. कामिनी के सामने मां के विरुद्ध कुछ बोल नहीं सकते थे. सो, मन ही मन कुढ़ते रहे.

मन में संदेहों के बीज बोए जा चुके थे. उन के अंकुर फूट कर यश के मन में चुभ रहे थे. यश स्थिर नहीं रह पा रहे थे. एक बेचैनी सी हर समय उन्हें कुरेदती रहती. कहीं भीतर से लग रहा था कुछ बहुत बड़ी गड़बड़ है.

कामिनी तो विवाह से पूर्व ही असहज ही थी. उस का कुछ वश नहीं था इसलिए वह सदा से ही सब कुछ वक्त पर छोड़ कर चुप रहती थी. परंतु वह मां थी. लाड़ से पली हुई बेटी की मां, जिस ने अपनी बिटिया के सुनहरे भविष्य के लिए न जाने कितने जिंदा स्वप्न अपनी आंखों में समेटे थे.

यश की बेचैनी भी कहां छिपी थी उस से? परंतु दोनों में से कोई भी अपने मन की बात एकदूसरे से खुल कर नहीं कह पा रहा था. मां से तो अब कुछ बोलने का फायदा ही नहीं था. हां, वे भी अब बेचैन तो थीं परंतु ताउम्र इस घर पर राज किया था उन्होंने. एक तरह की ऐंठ से सदा भरी रहीं. आसानी से अपनी बात को छोटा कैसे कर सकती थीं?

कामिनी ने मन में कई बार सोचा, ‘इस उम्र में भी मां इतनी अधिक क्यों चिपकी हुई हैं इस भौतिक, दिखावटी दुनिया से. अब यदि इस उम्र में भी वे इन सब से छूट नहीं पाएंगी तो कब स्वयं को मुक्त कर पाएंगी इन सांसारिक झंझटों से? सुबहशाम आरती गा लेना, पंडितजी को बुला कर पूजाअर्चना की क्रियाएं करना, कुछ भजन और पूजा करवा कर आमंत्रित लोगों की वाहवाही लूट लेना…’ ये सब बातें उसे विचलित करती रहती थीं. अंतर्मुखी होने के कारण जीवनभर वह अपने विचारों से ही जूझती रही. जानती थी कि इस सब में यश भी उस से भागीदारी नहीं कर पाएंगे. उस ने तो स्वयं को समय पर छोड़ दिया था. उस के हाथ में कुछ है ही नहीं. तब व्यर्थ का युद्ध कर के स्वयं को थकाने से लाभ क्या?

समय के व्यतीत होने के साथ ही दिया कुछ अधिक ही चिड़चिड़ी सी होती जा रही थी. परिवार के वातावरण में बदलाव आने लगा. कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर क्या कारण होंगे जो नील या उस की मां का कुछ स्पष्ट उत्तर प्राप्त नहीं हो रहा था.

दिया कालेज जाने में भी आनाकानी करने लगी थी. यश जब अपनी फूल सी बिटिया को मुरझाते हुए देखते तो उन का कलेजा मुंह को आ जाता. उधर, मां ने फिर पंडितजी को बुला भेजा था और 3 दिन से न जाने उन्हें किस अनुष्ठान पर बैठा दिया था. 2 नौकर उन की सेवा में हर पल 1 टांग से मंदिर के बाहर खड़े रहते. पंडितजी ने महीनेभर का अनुष्ठान बता दिया था और मां थीं कि उन के समक्ष कोई आज तक मुंह खोलने का साहस नहीं कर पाया था तो आज तो घर की बेटी के सुख का बहाना था उन के पास.

बहाने, बहाने और बस बहाने. कामिनी का मन चीत्कार करने लगा. क्या होगा इस पूजापाठ से? अगर घंटियां बजाने से समय बदल जाता तो बात ही क्या थी? मां तो जिंदगीभर पंडितों के साथ मिल कर घंटियां ही बजाती रही थीं फिर क्यों यह अरुचिकर घटना घटी? उस का मन वितृष्णा से भर उठा. मां चाहतीं कि दिया भी इस पूजा

में सम्मिलित हो. उसे बुलाया जाता परंतु वह स्पष्ट रूप से न कह देती. कामिनी को भी बुलाया जाता फिर वह और पंडितजी मिल कर उसे सुंदर शब्दों में संस्कारहीनता की दुहाई देने लगते. वह सदा चुप रही थी, अब भी चुप रहती. हां, उस में एक बदलाव यह आया था कि अब वह कोई न कोई बहाना बना कर पूजा में सम्मिलित होने से इनकार करने लगी थी. वह अधिक से अधिक दिया के पास रहने लगी थी. नील के फोन आते परंतु कुछ स्पष्टता न होने के कारण दिया ‘हां’, ‘हूं’ कर के फोन पटक देती.

यश ने कई बार नील की मां से बात कर ली थी परंतु वही उत्तर ‘हां, बस जल्दी ही हो जाएगा.’ यश ने सोच लिया कि वे स्वयं दिया को ले कर लंदन जाएंगे. इसी सोच के तहत यश ने दिया के वीजा के लिए पूछताछ प्रारंभ कर दी थी. दिया के ससुराल जाने में समय लग सकता है, इस बात से किसी को कोई परेशानी नहीं थी. सब इस के लिए मानसिक रूप से तैयार ही थे परंतु चिंता इस बात की थी कि विवाह के बाद से तो नील और उस की मां का व्यवहार ही बदला हुआ सा प्रतीत हो रहा था.

इसी ऊहापोह में गाड़ी पार्क कर के यश वीजा औफिस जाने के लिए सड़क पार कर रहे थे कि अचानक ट्रक की चपेट में आ गए. ट्रक वाला भलामानुष था उस ने ट्रक रोक कर इकट्ठी हुई भीड़ में से कुछ लोगों की सहायता से यश को उन की कार में डाला और गाड़ी अस्पताल की ओर भगा दी.

डाक्टर यश के परिवार से परिचित थे. उन की सहायता से यश के मोबाइल से नंबर तलाश कर कैसे न कैसे दुर्घटना की खबर यश के घर वालों तक पहुंचा दी गई. यश बेहोश हो गए थे. डाक्टर ने पुलिस को खबर करने की फौर्मेलिटी भी पूरी कर दी. ट्रक ड्राइवर वहीं खड़ा रहा. उस ने अपने सेठ को भी दुर्घटना की जानकारी दे दी थी. कुछ ही देर में वहां सब लोग जमा हो गए. डाक्टर अपने काम में लग गए थे. थोड़ी देर में ड्राइवर का सेठ भी वहां पहुंच गया.

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