Hindi Stories Online : मुसाफिर – चांदनी ने क्या किया था

Hindi Stories Online : गर्भवती चांदनी को रहरह कर पेट में दर्द हो रहा था. इसी वजह से उस का पति भीमा उसे सरकारी अस्पताल में भरती कराने ले गया. उस ने लेडी डाक्टर से बड़ी चिरौरी कर जैसेतैसे एक पलंग का इंतजाम करवा लिया. नर्स के हाथ पर 10 रुपए का नोट रख कर उस ने उसे खुश करने का वचन भी दे दिया, ताकि बच्चा पैदा होने के समय वह चांदनी की ठीक से देखभाल करे.

चांदनी के परिवार में 4 बेटियां रानी, पिंकी, गुडि़या और लल्ली के अलावा पति भीमा था, जो सीधा और थोड़ा कमअक्ल था.

भीमा मरियल देह का मेहनती इनसान था. ढाबे पर सुबह से रात तक डट कर मेहनत से दो पैसे कमाना और बीवीबच्चों का पेट भरना ही उस की जिंदगी का मकसद था. जब कभी बारिश के दिनों में तालतलैया में मछलियां भर जातीं, तब भीमा की जीभ लालच से लार टपकाने लगती थी और वह जाल ले कर मछली पकड़ने दोस्तों के साथ घर से निकल पड़ता था.

गांव में मजदूरी न मिलने पर वह कई बार दिहाड़ी मजदूरी करने आसपास के शहर में भी चला जाता था. तब चांदनी अकेले ही सुबह से रात तक ढाबे पर रहती थी.

गठीले बदन और तीखे नाकनक्श की चांदनी 30 साल की हो कर भी गजब की लगती थी. जब वह ढाबे पर बैठ कर खनकती हंसी हंसती, तो रास्ता चलते लोगों के सीने में तीर से चुभ जाते थे. कितने तो मन न होते हुए भी एक कप चाय जरूर पी लेते थे.

अस्पताल में तनहाई में लेटी चांदनी कमरे की दीवारों को बिना पलक झपकाए देख रही थी. उसे याद आया, जब एक बार मूसलाधार बारिश में उस के गांव भगवानपुर से आगे 4 मील दूर बहती नदी चढ़ आई थी. सारे ट्रक नदी के दोनों तरफ रुक गए थे. तकरीबन एक मील लंबा रास्ता ट्रकों से जाम हो गया था.

तब न कोई ट्रक आता था, न जाता था. सड़क सुनसान पड़ी थी. इस कारण चांदनी का ढाबा पूरी तरह से ठप हो चुका था. वह रोज सवेरे ग्राहक के इंतजार में पलकपांवड़े बिछा कर बैठ जाती, पर एकएक कर के 5 दिन निकल गए और एक भी ग्राहक न फटका था. बोहनी तो हुई ही नहीं, उलटे गांठ के पैसे और निकल गए थे.

ऐसे में चांदनी एकएक पैसे के लिए मुहताज हो गई थी. चांदनी मन ही मन खुद पर बरसती कि चौमासे का भी इंतजाम नहीं किया. उधर भीमा भी 15 दिनों से गायब था. जाने कसबे की तरफ चला गया था या कहीं उफनती नदी में मछलियां खंगाल रहा था.

भीमा का ध्यान आते ही चांदनी सोचने लगी कि किसी जमाने में वह कितना गठीला और गबरू जवान था. आग लगे इस नासपिटी दारू में कि उस की देह दीमक लगे पेड़ की तरह खड़ीखड़ी सूख गई. अब नशा कर के आता है और उसे बेकार ही झकझोर कर आग लगाता है. खुद तो पटाके की तरह फुस हो जाता है और वह रातदिन भीतर ही भीतर सुलगती रहती है.

कभीकभी तो भीमा खुद ही कह देता है कि चांदनी अब मुझ में पहले वाली जान नहीं रही, तू तलाश ले कोई गबरू जवान, जिस से हमारे खानदान को एक चिराग तो मिल जाए.

तब चांदनी भीमा के मुंह पर हाथ रख देती और नाराज हो कर कहती कि चुप हो जा. शर्म नहीं आती ऐसी बातें कहते हुए. तब भीमा बोलता, ‘अरी, शास्त्रों में लिखा है कि बेटा पैदा करने के लिए घड़ी दो घड़ी किसी ताकतवर मर्द का संग कर लेना गलत नहीं होता. कितनों ने ही किया है. पंडित से पूछ लेना.’

चांदनी अपने घुटनों में सिर दे कर चुप रह जाती थी. रास्ता रुके हुए छठा दिन था कि रात के अंधेरे को चीरती एक टौर्च की रोशनी उस के ढाबे पर पड़ी. चांदनी आंखें मिचमिचाते हुए उधर देखने लगी. पास आने पर देखा कि टौर्च हाथ में लिए कोई आदमी ढाबे की तरफ चला आ रहा था.

वह टौर्च वाला आदमी ट्रक ड्राइवर बलभद्र था. बलभद्र आ कर ढाबे के बाहर बिछी चारपाई पर बैठ गया. बरसात अभी रुकी थी और आबोहवा में कुछ उमस थी.

बलभद्र ने बेझिझक अपनी कमीज उतार कर एक तरफ फेंक दी. वह एक गठीले बदन का मर्द था. पैट्रोमैक्स की रोशनी में उस का गोरा बदन चमक छोड़ रहा था. बेचैनी और उम्मीद में डूबती चांदनी कनखियों से उसे ताक रही थी.

थकान और गरमी से जब बलभद्र को कुछ छुटकारा मिला, तब उस का ध्यान चांदनी की ओर गया.

वह आवाज लगा कर बोला, ‘‘क्या बाई, कुछ रोटी वगैरह मिलेगी?’’

‘‘हां,’’ चांदनी बोली.

‘‘तो लगा दाल फ्राई और रोटी.’’

चांदनी में जैसे बिजली सी चमकी. उस ने भट्ठी पर फटाफट दाल फ्राई कर दी और कुछ ही देर में वह गरम तवे पर मोटीमोटी रोटियां पलट रही थी.

चारपाई पर पटरा लगा कर चांदनी ने खाना लगा दिया. खाना खाते समय बलभद्र कह रहा था, ‘‘5 दिनों में भूख से बेहाल हो गया.’’

जाने चांदनी के हाथों का स्वाद था या बलभद्र की पुरानी भूख, उसे ढाबे का खाना अच्छा लगा. वह 14 रोटी खा गया. पानी पी कर उस ने अंगड़ाई ली और वहीं चारपाई पर पसर गया. बरतन उठाती चांदनी को जेब से निकाल कर उस ने सौ रुपए का एक नोट दिया और बोला, ‘‘पूरा पैसा रख ले बाई.’’

चांदनी को जैसे पैर में पंख लग गए थे. उसे बलभद्र की बातों पर यकीन नहीं हो रहा था. बरतन नाली पर रख कर चांदनी फिर भट्ठी के पास आ बैठी. बलभद्र लेटेलेटे ही गुनगुना रहा था.

गीत गुनगुनाने के बाद बलभद्र बोला, ‘‘बाई, आज यहां रुकने की इच्छा है. आधी रात को कहां ट्रक के पास जाऊंगा. क्लीनर ही गाड़ी की रखवाली कर लेगा. क्यों बाई, तुम्हें कोई एतराज तो नहीं?’’

चांदनी को भला क्या एतराज होता. उस ने कह दिया कि उसे कोई एतराज नहीं है. अगर रुकना चाहो तो रुक जाओ और बलभद्र गहरी तान कर सो गया.

चांदनी की चारों बेटियां ढाबे के पिछले कमरे में बेसुध सोई पड़ी थीं. रात गहरी हो रही थी. बादलों से घिरे आसमान में बिजली की चमक और गड़गड़ाहट रहरह कर गूंज रही थी.

तब रात के 12 बजे होंगे. किसी और ग्राहक के आने की उम्मीद छोड़ कर चांदनी वहां से हटी. देखा तो बलभद्र धनुष बना गुड़ीमुड़ी हुआ चारपाई पर पड़ा था.

चांदनी भीतर गई और एक कंबल उठा लाई. बलभद्र को कंबल डालते समय चांदनी का हाथ उस के माथे से टकराया, तो उसे लगा कि उसे तेज बुखार है.

चांदनी ने अचानक अपनी हथेली बलभद्र के माथे पर रखी. वह टुकुरटुकुर उसे ही ताक रहा था. उन आंखों में चांदनी ने अपने लिए एक चाहत देखी.

तभी अचानक तेज हवा चली और पैट्रोमैक्स भभक कर बुझ गया. हड़बड़ा कर उठती चांदनी का हाथ सकुचाते हुए बलभद्र ने थाम लिया. थोड़ी देर कसमसाने के बाद चांदनी अपने बदन में छा गए नशे से बेसुध हो कर उस के ऊपर ढेर हो गई थी. सालों बाद चांदनी को बड़ा सुख मिला था.

भोर होने से पहले ही वह उठी और पिछले कमरे की ओर चल पड़ी थी. उस ने सोचा कि खुद भीमा ने ही तो इस के लिए उस से कहा था, और फिर इस काली गहरी अंधेरी रात में भला किस ने देखा था. यही सब सोचतेसोचते वह नींद में लुढ़क गई.

सूरज कितना चढ़ आया था, तब बड़ी बेटी ने उसे जगाया और बोली, ‘‘रात का मुसाफिर 5 सौ रुपए दे गया है.’’

वह चौंकती सी उठी, तो देखा बलभद्र जा चुका था. चारपाई पर पड़ा हुआ कंबल उसे बड़ा घिनौना लगा. वह देर तक बैठी रात के बारे में सोचती रही.

15 दिन बाद बलभद्र फिर लौटा और भीमा के साथ उस ने खूब खायापीया. नशे में डूबा भीमा बलभद्र का गुण गाता भीतर जा कर लुढ़क गया और चांदनी ने इस बार जानबूझ कर पैट्रोमैक्स बुझा दिया.

बलभद्र का अपना ट्रक था और खुद ही उसे चलाता था, इसलिए उस के हाथ में खूब पैसा भी रहता था. चांदनी का सांचे में ढला बदन और उस की चुप रहने की आदत बहुत भाई थी उसे. चांदनी अपने शरीर के आगे मजबूर होती जा रही थी और बलभद्र के जाते ही हर बार खुद को मन ही मन कोसती रहती थी.

अब बलभद्र के कारण भीमा की माली हालत सुधरने लगी. वह उस का भी गहरा दोस्त हो गया था. 3 लड़कों का बाप बलभद्र बताता था कि कितना अजीब है कि वह लड़की पैदा करना चाहता है और भीमा लड़के की अभिलाषा रखता है.

चांदनी चुप जरूर थी, लेकिन अंदर ही अंदर खुश रहती थी. उस का सातवां महीना था. भीमा के साथ आसपास के जानने वाले लोग भी बेचैनी से इस बच्चे के जन्म का इंतजार कर रहे थे.

तब पूरे 9 महीने हो गए थे. एक दिन अचानक बलभद्र खाली ट्रक ले कर वहां आ धमका और उदास होता हुआ बोला, ‘‘अब वह पंजाब में ही ट्रक चलाएगा, क्योंकि घर के लोगों ने नाराज हो कर उसे वापस बुलाया है.’’

यह सुन कर भीमा और चांदनी बेहद उदास हो गए थे. आखिरी बार चांदनी ने उसे अच्छा खाना खिलाया और दुखी मन से विदा किया. अगले ही दिन उसे अस्पताल आना पड़ा था. तब से वह बच्चा पैदा होने के इंतजार में थे.

उसे दर्द बढ़ गया, तो उस ने नर्स को बुलाया. आननफानन उसे भीतर ले जाया गया. आखिरकार उस ने बच्चे को जन्म दिया और बेहोश हो गई.

कुछ देर बाद होश में आने पर चांदनी ने जाना कि उस ने एक बेटे को  न्म दिया है. वह जल्दी से बच्चे को घूरने लगी कि लड़के की शक्ल किस से मिलती है… भीमा से या बलभद्र से?

लेखक- डा. ओम पंकज

Hindi Fiction Stories : वशीकरण मंत्र – क्या हुआ था रवि के साथ

Hindi Fiction Stories :  रवि अपने दोस्त दिनेश के साथ पठान बस्ती की 2-3 गलियों को पार कर जब बंद गली के दाईं ओर के छोटे से मकान के सामने पहुंचा, तो वह उदास लहजे में बोला, ‘‘भाई, ऐसा लगता है, जैसे सालों से यह मकान खाली पड़ा है.’’

‘‘अरे, यह भी तो सोचो कि इस का किराया महज एक हजार रुपए महीना है. शहर की अच्छी कालोनियों में 3 हजार रुपए से कम में तो आजकल कमरा नहीं मिलेगा. यहां तो साथ में रसोई भी है.’’

‘‘हां, यह बात तो ठीक है. अभी यहीं रह लेते हैं, बाद में देख लेंगे.’’

दूसरे दिन शाम को थोड़ा सा सामान एक रिकशे पर लाद कर रवि वहां आ पहुंचा. ताला खोल कर कमरे में आया. उदास मन से फोल्डिंग चारपाई बिछा कर कमरे और रसोईघर में झाड़ू लगाई.

कुछ देर बाद रवि दरवाजे को ताला लगा कर गली के नुक्कड़ वाली चाय की दुकान की ओर जाने ही लगा था कि उस की नजर सामने वाले दोमंजिला मकान के बाहर टंगे बोर्ड की ओर उठी, जिस पर लिखा था : पंडित अवधकिशोर शास्त्री : 5 पुश्तों से ज्योतिष शास्त्र विशेषज्ञ : तंत्रमंत्र साधना द्वारा वशीकरण करवाना : रोग निवारण : बंधे कारोबार में उन्नति : प्रेम विवाह करवाने के लिए शीघ्र मिलें. फोन नं…

रवि ने अपने कदम आगे बढ़ाए ही थे कि तभी सामने वाला दरवाजा खुला. 24-25 साल की सांवले रंग की एक औरत ने बाहर झांका, तो रवि के मुरझाए चेहरे पर मुसकान उभर आई. वह बोला, ‘‘नमस्ते, मैं ने यह सामने वाला कमरा किराए पर लिया है.’’

‘‘नमस्ते,’’ वह औरत थोड़ा शरमाते हुए मुसकराई.

‘‘यह बोर्ड… यह नाम मैं ने कहीं और भी पढ़ा है,’’ रवि ने उस औरत के चेहरे पर नजरें टिकाते हुए पूछा.

‘‘जरूर पढ़ा होगा. मेरे पति का दफ्तर बसअड्डे के सामने है… ज्यादातर लोग उन से वहीं मिलते हैं,’’ कह कर वह औरत फिर मुसकराई, ‘‘क्या आप की भी कोई समस्या है? रात को या सुबह यहीं पंडितजी से बात कर लीजिएगा. वैसे, आप का नाम?’’

‘‘रवि… और आप का?’’

‘‘सुधा.’’

‘‘अच्छा, चलता हूं… फिर मिलेंगे,’’ कहता हुआ रवि आगे बढ़ गया. नुक्कड़ की दुकान पर चाय पीते समय रवि की उदासी काफी हद तक दूर हो चुकी थी. अपने सामने वाले मकान की उस औरत को देखने के बाद वह काफी खुश नजर आ रहा था. रात को रवि दरवाजे पर ताला लगा रहा था कि सामने वाले मकान के समीप एक मोटरसाइकिल आ कर रुकी, जिस से एक चोटीधारी, पंडितनुमा अधेड़ उम्र का शख्स नीचे उतरा. उसी समय 10-11 साल का एक लड़का और उस से 2-3 साल बड़ी एक लड़की बाहर निकल कर आई. दोनों एकसाथ बोल उठे, ‘पापाजी, नमस्ते.’ उस शख्स ने उन दोनों बच्चों के गाल थपथपाते हुए पीछे मुड़ कर रवि की ओर देखा, तो मुसकराते हुए बोला, ‘‘इस मकान में आप ही नए किराएदार आए हैं… इस के मालिक तेजपाल का मुझे फोन आया था. अच्छा हुआ, आप आ गए… काफी समय से यह घर खाली पड़ा था. आइए, भीतर बैठते हैं… सुधा, 2 कप चाय लाना.’’

बिना किसी नानुकर के रवि उस शख्स के पीछेपीछे भीतर जा पहुंचा. दोनों एक सजेधजे कमरे में जा कर बैठ गए. रवि ने पूछा, ‘‘आप ही पंडित अवधकिशोरजी हैं?’’

‘‘हां…हां… वैसे, मेरा दफ्तर बसअड्डे के सामने है.’’

तभी सुधा चाय ले कर आ गई, तो पंडितजी ने परिचय कराया, ‘‘यह मेरी पत्नी सुधा है… और ये सामने वाले मकान में नए किराएदार आए हैं.’’

‘‘नमस्ते…’’ दोनों ने मुसकराते हुए एकदूसरे का अभिवादन किया. सुधा के बाहर जाते ही पंडितजी ने पूछा, ‘‘आप का परिवार कहां रहता है?’’

‘‘जी… क्या कहूं… मांबाप बचपन में ही गुजर गए. चाचाचाची ने घरेलू नौकर बना कर पालापोसा. गांव में मेरे हिस्से की जो थोड़ी सी जमीन थी, वह भी उन्होंने हड़प ली. बस यही समझिए कि दरदर की ठोकरें खाता हुआ न जाने कैसे आप के शहर में आ पहुंचा हूं.’’

‘‘किसी फैक्टरी में नौकरी करते हो?’’ पंडितजी ने पूछा.

‘‘जी, भानु सैनेटरी उद्योग में.’’

‘‘देखो, इनसान को घर जरूर बसाना चाहिए. अकेले आदमी की जिंदगी भी भला कोई जिंदगी होती है.

‘‘अब मुझे देखो, 5-6 साल पहले पत्नी गुजर गई. दोनों बच्चों के पालने की समस्या मुंहबाए खड़ी थी. फिर घर की जिम्मेदारियां भी थीं और जीवनसाथी की जरूरत का एहसास भी था. सो, 42 साल की उम्र में दूसरी शादी कर ली… ढूंढ़ने पर गरीब घर की सुधा मिल गई, जो हर लिहाज से नेक पत्नी साबित हो रही है. वैसे, तुम्हारी उम्र कितनी है?’’

‘‘27-28 साल होगी…’’ रवि उदास लहजे में बोला, ‘‘पहले मैं नूरां बस्ती में रहता था. वहां एक लड़की पसंद भी आई थी, पर वह किसी पढ़ेलिखे बाबू की पत्नी बनना चाहती थी. हालांकि उस का बाप हमारी फैक्टरी में ही नौकरी करता है, लेकिन उस  लड़की को अपनी खूबसूरती पर घमंड है.’’

‘‘अरे भाई, देखने में तो तुम भी हट्टेकट्टे और तंदुरुस्त नौजवान हो…’’ पंडितजी हंसते हुए बोले, ‘‘कहो तो उसी लड़की से तुम्हारे फेरे डलवा दें?’’

‘‘क्या… ऐसा मुमकिन है क्या?’’ रवि को तो जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई.

‘‘बेटा, मैं ज्योतिष का ही नहीं, तंत्रमंत्र का भी अच्छा माहिर हूं. ऐसा वशीकरण मंत्र दूंगा कि वह लड़की तुम्हारे कदमों में लिपटती नजर आएगी.’’

‘‘सच…?’’ रवि ने खुशी से झूमते हुए पूछा, ‘‘क्या आप आज यानी जल्दी ही वह वशीकरण मंत्र मुझे दे सकेंगे? कहीं ऐसा न हो कि देर हो जाने पर वह किसी दूसरे शख्स की दुलहन बन जाए.’’

‘‘अरे, मैं ने तो अभी तक तुम्हारा नाम भी नहीं पूछा?’’ पंडितजी ने उस की ओर देखा.

‘‘जी… रवि.’’

‘‘बहुत अच्छा… अभी कहां जा रहे हो?’’

‘‘मैं ढाबे पर खाना खाने… घर पर खाना नहीं बना सकता मैं.’’

‘‘चलो, आज हमारे साथ ही खा लेना…’’ पंडितजी ने पत्नी सुधा को आवाज लगाई, ‘‘थोड़ी देर में भोजन की 2 थालियां ले आना. रवि भी मेरे साथ ही खाना खाएंगे.’’

‘‘पंडितजी, आप बेकार में तकलीफ कर रहे हैं… मुझे तो ढाबे पर खाने की आदत ही है. वैसे, आप ने जो वशीकरण मंत्र की बात कही है, उस की फीस कितनी होगी?’’

‘‘कल शाम को मेरे दफ्तर आ जाना, वहीं फीस की बात कर लेंगे… तुम तो अब हमारे पड़ोसी हो… काम हो जाने पर मुंहमांगा इनाम लेंगे.

‘‘भाई, तुम्हें मनपसंद पत्नी मिल जाए… यही हमारी फीस होगी. वैसे ज्यादा क्या, शगुन के तौर पर 11 सौ रुपए दे देना.’’ तभी सुधा भोजन की 2 थालियां ले कर आ गई. स्वादिष्ठ भोजन करने के बाद रवि को उस रात गहरी नींद आई. अगले दिन शाम के 6 बजे रवि पंडितजी के दफ्तर जा पहुंचा. उन्होंने उस के लिए फौरन चाय मंगवाई. बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. थोड़ी देर बाद कागज का एक टुकड़ा पंडितजी ने रवि के सामने रखा, ‘‘मैं ने वशीकरण मंत्र पहले ही लिख रखा था… इसे ठीक से पढ़ लो.’’

‘‘यह तो साधारण सा मंत्र है…’’ रवि ने खुशी जाहिर करते हुए कहा, ‘‘अब इस के जाप की विधि…?’’

‘‘हां…हां, वही बताने जा रहा हूं. इस खाली जगह पर उस लड़की का नाम लिख देना… वही बोलना है.’’ रवि ने मंत्र पढ़ना शुरू किया और खाली जगह पर ‘मधु’ का नाम लिया, तो पंडितजी मुसकराए, ‘‘लड़की का नाम तो काफी अच्छा है. अब तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं… वैसे, तुम्हारी ड्यूटी तो शिफ्ट में होगी?’’

‘‘नहीं, आजकल मैं मैनेजर साहब के दफ्तर में चपरासी की ड्यूटी बजा रहा हूं… सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक… इस में कोई समस्या तो नहीं है?’’

‘‘नहीं… नहीं… अब ध्यान से सुनो. हर रोज रात को सोने से पहले एक माला फेरनी होगी. 40 दिनों तक इसी क्रम को दोहराना है. तुम ने क्या बताया था, वह लड़की नूरां बस्ती में रहती है?’’

‘‘जी हां.’’

‘‘जब भी रात को माला फेरने बैठो, तो तुम्हारा चेहरा उस लड़की के घर की दिशा में ही होना चाहिए. दिशा का ठीकठीक अंदाजा है न?’’

‘‘जी हां…’’

‘‘बस, अब तुम एकदम बेफिक्र हो जाओ… हर दूसरेचौथे दिन मधु की गली के चक्कर लगाते रहना. तुम खुद अपनी आंखों से देखोगे कि तुम्हारे प्रति उस की चाहत किस कदर बढ़ती चली जा रही है. यह लो तावीज… जरा ठहरो… मैं इस पर गंगाजल छिड़क देता हूं.’’ पंडितजी ने कोई मंत्र बुदबुदाते हुए बोतल में से पानी के कुछ छींटे तावीज पर फेंके और फिर उसे रवि के बाएं बाजू पर बांध दिया, ‘‘जाओ, तुम्हारी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी.’’ रवि ने जेब से 11 सौ रुपए निकाल कर पंडितजी के हाथ पर रख दिए.

‘‘बेटा, 40 दिन के बाद पंडित अवधकिशोर का चमत्कार देखना. अच्छा, मुझे अभी एक यजमान के यहां जाना है…’’ रवि अपने कमरे का ताला खोल रहा था कि सामने से सुधा की आवाज सुनाई दी, ‘‘नमस्कार… पंडितजी ने सुबह मुझे सबकुछ बता दिया था. मंत्रजाप की विधि सीख ली और तावीज भी बंधवा लाए. कितने दे आए?’’

‘‘11 सौ रुपए,’’ रवि ने मुसकराते हुए बताया.

‘‘गनीमत है कि 21 सौ या 31 सौ रुपए नहीं ऐंठ लिए…’’ सुधा ने मजाकिया लहजे में कहा, ‘‘अब तो पूरे 40 दिन बाद ही प्रेमिका आप के पीछेपीछे चल रही होगी. खैर, चाय पीएंगे आप?’’

‘‘रहने दो… बच्चे बेकार में शक करेंगे,’’ रवि ने सुधा की आंखों में झांका.

‘‘दोनों ट्यूशन पढ़ने गए हैं… घंटेभर बाद लौटेंगे.’’ उस दिन चाय पीते समय रवि ने महसूस किया कि सुधा उस की तरफ खिंच रही है. उस की हर अदा में छिपे न्योते को वह साफसाफ समझ रहा था. हफ्तेभर बाद एक दिन रवि शाम को 5 बजे ही अपने कमरे पर लौट आया. दरवाजा खुलने की आवाज सुनते ही सुधा ने बाहर झांका. फिर बाहर सुनसान गली का मुआयना करने के बाद वह तेज कदमों से रवि के कमरे में आ पहुंची, ‘‘जल्दी से यहां आ जाओ. मैं चाय बनाती हूं.’’

‘‘चाय तो बाद में पी लेंगे… पहले जरा मुंह तो मीठा कराओ,’’ कहते हुए रवि ने सुधा को बांहों में कसते हुए उस के होंठों पर चुंबनों की झड़ी सी लगा दी. ‘‘अरेअरे, क्या करते हो… दरवाजा खुला है, कोई आ जाएगा,’’ सुधा ने नाटकीय अंदाज में खुद को छुड़ाने की कोशिश की.

‘‘ठीक है, चलो… मैं अभी आता हूं,’’ रवि की बांहों से छूटते ही सुधा अपने कमरे में जा पहुंची. उस दिन चाय पीते समय रवि और सुधा के बीच काफी बातें होती रहीं. सुधा ने बताया कि उस के मातापिता भी जल्दी ही चल बसे थे. मौसामौसी ने नौकरानी की तरह उसे घर में रखा. विधुर पंडितजी ने उन्हीं के गांव के रहने वाले एक जानने वाले के जरीए शराबी मौसा पर अपने रुतबे और दौलत का चारा फेंका. 50 हजार रुपए में सौदा तय हुआ और फिर 20 साला सुधा अधेड़, विधुर के पल्ले बांध दी गई.

‘‘सुधा, अब जल्दी ही तुम्हारी सब समस्याओं का समाधान हो जाएगा… चिंता मत करो,’’ रवि हौले से बोला.

‘‘क्या कह रहे हो? तुम तो खुद ही अपनी प्रेमिका की समस्या से परेशान हो… मेरे लिए तुम क्या कर पाओगे?’’

‘‘मेरी बात गौर से सुनो, पंडितजी के तंत्रमंत्र से कुछ होने वाला नहीं… ये सब तांत्रिकों के ठगी के तरीके मात्र हैं. अंधविश्वासी, आलसी और टोनेटोटकों के चक्कर में पड़ने वाले लोग ही आसानी से इन के शिकार होते हैं. ‘‘मैं ने तुम्हारे नजदीक आने के लिए ही पंडितजी के साथ एक चाल चली है. वे या बच्चे किसी तरह का शक न करें, इसलिए उन से मेलजोल बढ़ाने के लिए तुम्हारी खातिर 11 सौ रुपए देने पडे़.

‘‘सुनो, इस तरह बात करते हुए हम कभी भी पकड़े जा सकते हैं. जल्दी ही मैं तुम्हें एक चिट्ठी दूंगा, तुम भी चिट्ठी द्वारा ही जवाब देना,’’ कहते हुए रवि अपने कमरे की ओर चल दिया. हालांकि रवि को जरा भी भरोसा नहीं था, पर फिर भी वह हर रोज मधु के नाम की एक माला का जाप जरूर करता था कि शायद इस बार पंडितजी का वशीकरण मंत्र कुछ काम कर जाए. 20-22 दिन बाद जब वह नूरां बस्ती में मधु का दीदार करने पहुंचा, तो एक परिचित ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘कहो दोस्त, कहां भटक रहे हो? चिडि़या तो फुर्र हो गई… तुम्हारी मधु तो पिछले हफ्ते ही ब्याह रचा कर विदा हो गई.’’

‘‘सच कह रहे हो तुम?’’ रवि के दिल को धक्का लगा.

‘‘अरे भाई, मैं झूठ क्यों बोलूंगा. उस के घर वालों से जा कर पूछ लो,’’ उस आदमी ने कहा. अब थकेहारे कदमों से उस गली से लौटने के अलावा रवि के पास कोई चारा ही न था. एक दिन पंडितजी ने सुबहसुबह रवि का दरवाजा खटाखटाया, ‘‘क्या बात है, आजकल तुम नजर ही नहीं आ रहे? मेरे खयाल से वशीकरण मंत्र जाप के 40-50 दिन तो हो ही गए होंगे… तुम ने खुशखबरी नहीं सुनाई?’’ पंडितजी ने खड़ेखड़े ही पूछा.

‘‘जी हां…’’ रवि ने मुसकराते हुए  कहा, ‘‘आप के आशीर्वाद से मधु पूरी तरह मेरे वश में हो गई है. धन्य हैं आप और धन्य है आप का वशीकरण मंत्र.’’

‘‘बहुत अच्छे…’’ कहते हुए पंडितजी बाहर चले गए. उसी दिन शाम को जब बच्चे ट्यूशन से लौटे, तो सुधा को घर में न पा कर उन्होंने पंडितजी को फोन किया. वह फौरन ही घर आ पहुंचे. उन्होंने सामने देखा कि रवि के कमरे के बाहर भी ताला लगा हुआ था. 4-5 पड़ोसियों से पूछा, पर सभी ने न में सिर हिला दिया.  फिर एक वकील दोस्त को साथ ले कर नजदीकी थाने में पत्नी सुधा की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई और रवि की गैरमौजूदगी के कारण पत्नी के संग उस की मिलीभगत का शक भी जाहिर किया. तकरीबन एक हफ्ते तक जगहजगह पूछताछ करने और ठोकरें खाने के बाद पंडितजी का शक पक्का हो गया कि रवि ही सुधा को भगा कर ले गया है.

इसी सिलसिले में पंडितजी अपने साथ वाले दफ्तर के बंगाली तांत्रिक से बातचीत कर रहे थे, तो उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘पंडितजी, आप खुद को ज्योतिष शास्त्र का माहिर कहते हो… क्या कभी आप ने अपनी पत्नी का भविष्यफल नहीं देखा, उस की हस्तरेखाएं नहीं देखीं कि वह किस शुभ घड़ी में, किस दिन, किस आशिक के संग भागने जा रही है?’’

‘‘चुप भी रहो यार, क्यों जले पर नमक छिड़कते हो,’’ पंडितजी गुस्से से बोले.

‘‘तुम ने उस नौजवान का क्या नाम बताया था, जिस के साथ उस ने भागने….?’’

‘‘रवि.’’

‘‘तुम ने जो उसे वशीकरण मंत्र दिया था, लगता है, उस ने उस का जाप अपनी प्रेमिका का नाम ले कर नहीं, तुम्हारी पत्नी सुधा का नाम ले कर किया होगा,’’ बंगाली तांत्रिक ने ठहाका लगाया, तो पंडितजी आगबबूला होते हुए बोले, ‘‘तुम्हारी ठग विद्या से भी मैं अच्छी तरह वाकिफ हूं. जबान संभाल कर बोलो… इस हमाम में हम सभी नंगे हैं…’’

Hindi Kahaniyan : बह गया जहर – मुग्धा से क्यों माफी मांग रहा था अमर

Hindi Kahaniyan : रात के 9 बज रहे थे. बाहर हो रही तेज बारिश से बेपरवाह अमर अपने कमरे में चुपचाप बैठा था. दीवार पर उस की पत्नी शोभना और उस का फोटो टंगा था जिस पर अमर ने किसी की न सुनते हुए माला लगा दी थी. उस का कहना था कि शोभना के साथ वह भी मर चुका है.

आज घर तकरीबन खाली था. ज्यादातर सदस्य और अमर का 4 साल का बेटा रोहित किसी रिश्तेदार की शादी में बाहर गए हुए थे और अगले दिन शाम तक लौटने की बात थी. केवल अमर की भाभी मुग्धा अपने 9 महीने के बेटे विक्की के साथ यहीं रुक गई थी. आखिर उसे अपने जेठ अमर का खयाल भी तो रखना था.

मुग्धा अपनी जिम्मेदारियां अच्छी तरह समझती थी. उसे अमर से एक खास लगाव था. अमर का हमेशा अपनों की मदद के लिए खड़े हो जाने वाला रवैया उस के दिल में अमर को खास जगह दिला चुका था.

अमर के यों तनाव में जाने से सब से ज्यादा वही दुखी थी. 2 दिन पहले अमर के पैर में चोट लगी थी और डाक्टर ने रात को नींद की गोली और पेन किलर खाने को दी थी.

गोलियां खाने के बाद उस ने मुग्धा की दी हुई सर्दीखांसी की दवा भी ली और कुछ देर तक शोभना और अपनी तसवीर के सामने भरी आंखें ले कर खड़ा रहा.

उसे शोभना की याद आज कुछ ज्यादा ही सताने लगी थी. जब भी उस की तबीयत बिगड़ती थी तो शोभना सब काम छोड़ कर उस की सेवा में लग जाती थी.

‘आज मेरा खयाल नहीं रखोगी शोभना?’ जैसे अमर के मन ने कहा. खुद को समझाने की कोशिश करते हुए अमर ने पालने में सो रहे विक्की के सिर पर हाथ फेरा और बिस्तर पर लेट गया. दवाओं की वजह से उस की खुमारी बढ़ गई थी.

गहरी नींद की हालत में अमर न जाने क्या अनापशनाप बड़बड़ाए जा रहा था, तभी उस का हाथ किसी चीज से टकराया और कुछ गिरने की आवाज आई. शायद वह पानी का जग था. मगर अमर की आंखें खुल नहीं सकीं. तभी उसे लगा कि शोभना उसे बुला रही है. अमर का कलेजा गरम हो उठा. उस की सांसें तेज हो गईं. उसे जितना पता चल सका, उस के मुताबिक शोभना बिलकुल उस के करीब खड़ी थी. उस ने उसे बुलाना चाहा.

‘‘शोभना…’’ टूटीफूटी आवाज उस के गले से निकल सकी. अमर को महसूस हुआ कि शोभना ने उस के सिर पर हाथ फेरा लेकिन वह वापस जाने लगी. अमर ने किसी तरह उस का हाथ पकड़ लिया और बुरी तरह रो पड़ा, ‘‘नहींनहीं शोभना… अब मत जाओ मुझ से दूर… मैं मर जाऊंगा… शोभना…’’

अमर की आंखें अब भी बंद थीं. उस ने अनुभव किया कि शोभना ने उस के आंसू पोंछे और उस के बगल में लेट गई. अमर उस से लिपटता चला गया. उसे कहीं न कहीं लग रहा था कि वह सपना देख रहा है जो उस की नींद के साथ ही टूट जाएगा. उस के दिल में जमा प्यार बाहर आने को बेताब हो उठा. उस ने एकएक कर उन के बीच पड़ने वाली हर दीवार तोड़ दी. उस के हाथ शोभना के जिस्म को सहलाने, दबाने लगे.

इस के बाद शोभना की कोमल उंगलियों की छुअन अमर को अपनी पीठ पर मिलने लगी. अरसे से अमर के अंदर भरा दहकता लावा रहरह के बह पड़ता. 1, 2, 3… न जाने कितनी बार अमर अपना सबकुछ शोभना पर लुटाता रहा.

शोभना अमर के शरीर से दबी पिसती रही. अमर को किसी बात का डर सता रहा था तो बस अपने जागने का लेकिन समय कब किसी के रोके रुका है.

सुबह की रोशनी खिड़की से कमरे में आने लगी. साथ ही, अमर की चेतना भी. तभी उसे अपनी बांहों में कैद किसी असली औरत की देह महसूस हुई. उस ने चौंक कर आंखें खोलीं तो देखा कि उस ने मुग्धा को ही अपने आगोश में ले रखा था. दोनों में से किसी के बदन पर एक भी कपड़ा नहीं.

अमर को तो जैसे बिजली का तेज झटका लगा. वह छिटक कर मुग्धा से दूर कमरे के कोने में जा खड़ा हुआ.

‘‘मुग्धा… यह सब… क्या हुआ… मैं ने कैसे कर दिया…’’ कहता हुआ अमर उसी हालत में अपना सिर पकड़ कर वहीं जमीन पर बैठ गया. उस का दिल बेतहाशा धड़कने लगा. पास ही पालने में विक्की इस सब से निश्चिंत सो रहा था. पास में उस के दूध की खाली बोतल पड़ी थी. जमीन पर पानी का वही जग गिरा हुआ था जो रात उस के हाथ से टकराया था.

कुछ पलों तक यह सब देखते रहने के बाद मुग्धा धीरेधीरे खुद को संभालते हुए उठी और बिस्तर पर पड़ी साड़ी अपने शरीर से लपेट कर वहां से चली गई.

अमर उसी हालत में वहीं बैठा था. उस का दिमाग काम नहीं कर रहा था. रात का नशा अब तक हावी था. सो, वह चुपचाप मुग्धा के अगले कदम का इंतजार करने लगा. समाज के सामने लगने वाला बदनामी का धब्बा उसे अपने माथे पर महसूस हो रहा था और कानों में मातापिता और भाई विक्रम द्वारा कहे जाने वाले शब्द गूंजने लगे जो सारी बात जानने के बाद कहेंगे ‘पापी, बेहया, कर दिया न सारे खानदान का नाम खराब.

‘कितना समझाते रहे हम सब इसे, लेकिन सुने कौन? बीवी क्या किसी और की मरती है. एक इसी की स्पैशल बीवी मरी थी जो भाभी के साथ सोना पड़ गया नशे में…’

अमर के हाथ अपने कानों पर जमते गए तभी उसे मुग्धा की आवाज सुनाई दी, ‘‘अमर, मैं फ्रैश होने जा रही हूं, आप भी हो लीजिए, नाश्ता तुरंत बन जाएगा.’’

अमर उस की तरफ देखने की हिम्मत नहीं जुटा सका. मुग्धा के जाने के बाद वह भी फ्रैश होने चला गया. नाश्ता परोसते समय मुग्धा का चेहरा सामान्य था, लेकिन अमर अपनी नजरें नीची किए रहा और आज समय पर अपनी दुकान के लिए निकल गया.

शोभना के गुजरने के बाद से उस का दुकान पर जाना अनियमित सा हो गया था. आज भी वहां जाने का मकसद कमाई न हो कर मुग्धा के सामने से हटा रहना था.

शाम होने को आई. दोपहर के खाने के लिए भी अमर घर नहीं लौटा. पापा का फोन आया कि वे लोग लौट आए हैं.

अमर का दिमाग फिर सन्नसन्न करने लगा. रात को विक्रम का फोन आने पर वह घर के लिए चला.

घर आते ही रोहित उस से लिपट गया. अमर सब से नजरें चुरा रहा था लेकिन घर का माहौल बिलकुल सही लगा.

उस रात नींद आंखों से दूर रही. इसी तरह तकरीबन पूरा हफ्ता बीत गया. अमर का मन अपनी उस रात की गलती के लिए कचोटता रहता था.

एक शाम उस ने मौका पा कर छत पर मुग्धा को बुलाया और सिर झुका कर कहने लगा, ‘‘मुग्धा, मैं बहुत कमजोर निकला. मैं इस घर के हर सदस्य के साथसाथ शोभना का भी अपराधी हूं. मेरी कमजोरी मुझे किसी से कुछ कहने नहीं दे रही, लेकिन मैं जानता हूं कि तुम कमजोर नहीं हो, तुम चुप मत रहो, सच बता दो सब को, मुझे सजा मिलनी ही चाहिए.’’

मुग्धा गौर से अमर को देखती रही, फिर मुसकरा कर बोली, ‘‘अमर, बीमारी तन की हो या मन की, वह केवल कमजोर करना ही जानती है. शोभना दीदी के जाने के बाद आप का मन बीमार हो गया था. आप टूटते जा रहे थे. उस रात मैं ने महसूस किया कि आप के अंदर के मर्द को एक औरत के सहारे की जरूरत है.’’

अमर अब तक अपना सिर उठा नहीं पाया था. मुग्धा कहती रही, ‘‘मेरे अंदर की औरत आप को वह सहारा देने से खुद को रोक नहीं पाई. आप के अंदर मैं ने हमेशा अपना बड़ा भाई, कभी पिता, तो कभी दोस्त देखा है. इस के साथसाथ मैं ने अकसर आप के अंदर अपने प्रेमी को भी देखा, प्रेम किसी शरीर पर आश्रित नहीं होता, उस की सीमा अनंत होती है.’’

इतना कह कर मुग्धा ने अमर का चेहरा पकड़ कर उस की आंखों में आंखें डालीं और कहा, ‘‘मर्द टूटा हुआ और कमजोर अच्छा नहीं लगता, फिर आप तो मेरे कंप्लीट मैन हैं. आप को जोड़ने के लिए मैं ने अपना थोड़ा सा कुछ हिस्सा न्योछावर कर दिया, अब मेरा मान रखिए.’’

‘‘लेकिन, मुग्धा…’’ अमर ने कुछ कहना चाहा, लेकिन मुग्धा ने उसे रोक दिया और बोली, ‘‘आप यही कहना चाहते हैं न कि जब आप के छोटे भाई को यह सब पता चलेगा तो क्या होगा? इस का जवाब यही है कि मैं अपने पति की थी, हूं और हमेशा उन्हीं की रहूंगी, आप के और मेरे बीच जो भी हुआ, वह एक बिखरी हुई जिंदगी को जोड़ने की मेरी कोशिश थी, कोई दैहिक खिंचाव नहीं…

‘‘हां, यह भी सच है कि मेरी यह भावना शायद हर कोई न समझ सके, इसलिए उस रात की बात दीवारों के दायरे में ही रहने दीजिए.’’

इतना कह कर मुग्धा नीचे को चल पड़ी. अमर के मन में भरा तनाव का जहर आंखों के रास्ते बाहर बहने लगा.

Famous Hindi Stories : कलंक – एक गलत फैसले ने बदल दी तीन जिंदगियां

Famous Hindi Stories : उस रात 9 बजे ही ठंड बहुत बढ़ गई थी. संजय, नरेश और आलोक ने गरमाहट पाने के लिए सड़क के किनारे कार रोक कर शराब पी. नशे के चलते सामने आती अकेली लड़की को देख कर उन के भीतर का शैतान जागा तो वे उस लड़की को छेड़ने से खुद को रोक नहीं पाए.

‘‘जानेमन, इतनी रात को अकेली क्यों घूम रही हो? किसी प्यार करने वाले की तलाश है तो हमें आजमा लो,’’ आसपास किसी को न देख कर नरेश ने उस लड़की को ऊंची आवाज में छेड़ा.

‘‘शटअप एंड गो टू हैल, यू बास्टर्ड,’’ उस लड़की ने बिना देर किए अपनी नाराजगी जाहिर की.

‘‘तुम साथ चलो तो ‘हैल’ में भी मौजमस्ती रहेगी, स्वीटहार्ट.’’

‘‘तेरे साथ जाने को पुलिस को बुलाऊं?’’ लड़की ने अपना मोबाइल फोन उन्हें दिखा कर सवाल पूछा.

‘‘पुलिस को बीच में क्यों ला रही हो मेरी जान?’’

‘‘पुलिस नहीं चाहिए तो अपनी मां या बहनों…’’

वह लड़की चीख पाती उस से पहले ही संजय ने उस का मुंह दबोच लिया और झटके से उस लड़की को गोद में उठा कर कार की तरफ बढ़ते हुए अपने दोस्तों को गुस्से से निर्देश दिए, ‘‘इस ‘बिच’ को अब सबक सिखा कर ही छोड़ेंगे. कार स्टार्ट करो. मैं इस की बोटीबोटी कर दूंगा अगर इस ने अपने मुंह से ‘चूं’ भी की.’’

आलोक कूद कर ड्राइवर की सीट पर बैठा और नरेश ने लड़की को काबू में रखने के लिए संजय की मदद की. कार झटके से चल पड़ी.

उस चौड़ी सड़क पर कार सरपट भाग रही थी. संजय ने उस लड़की का मुंह दबा रखा था और नरेश उसे हाथपैर नहीं हिलाने दे रहा था.

‘‘अगर अब जरा भी हिली या चिल्लाई तो तेरा गला दबा दूंगा.’’

संजय की आंखों में उभरी हिंसा को पढ़ कर वह लड़की इतना ज्यादा डरी कि उस का पूरा शरीर बेजान हो गया.

‘‘अब कोई किसी का नाम नहीं लेगा और इस की आंखें भी बंद कर दो,’’ आलोक ने उन दोनों को हिदायत दी और कार को तेज गति से शहर की बाहरी सीमा की तरफ दौड़ाता रहा.

एक उजाड़ पड़े ढाबे के पीछे ले जा कर आलोक ने कार रोकी. उन की धमकियों से डरी लड़की के साथ मारपीट कर के उन तीनों ने बारीबारी से उस लड़की के साथ बलात्कार किया.

लड़की किसी भी तरह का विरोध करने की स्थिति में नहीं थी. बस, हादसे के दौरान उस की बड़ीबड़ी आंखों से आंसू बहते रहे थे.

लौटते हुए संजय ने लड़की को धमकाते हुए कहा, ‘‘अगर पुलिस में रिपोर्ट करने गई, तो हम तुझे फिर ढूंढ़ लेंगे, स्वीटहार्ट. अगर हमारी फिर मुलाकात हुई तो तेजाब की शीशी होगी हमारे हाथ में तेरा यह सुंदर चेहरा बिगाड़ने के लिए.’’

तीनों ने जहां उस लड़की को सड़क पर उतारा. वहीं पास की दीवार के पास 4 दोस्त लघुशंका करने को रुके थे. अंधेरा होने के कारण उन तीनों को वे चारों दिखाई नहीं दिए थे.

उन में से एक की ऊंची आवाज ने इन तीनों को बुरी तरह चौंका दिया, ‘‘हे… कौन हो तुम लोग? इस लड़की को यहां फेंक कर क्यों भाग रहे हो?’’

‘‘रुको जर…सोनू, तू कार का नंबर नोट कर, मुझे सारा मामला गड़बड़ लग रहा है,’’ एक दूसरे आदमी की आवाज उन तक पहुंची तो वे फटाफट कार में वापस घुसे और आलोक ने झटके से कार सड़क पर दौड़ा दी.

‘‘संजय, तुझे तो मैं जिंदा नहीं छोड़ूंगी,’’ उस लड़की की क्रोध से भरी यह चेतावनी उन तीनों के मन में डर और चिंता की तेज लहर उठा गई.

‘‘उसे मेरा नाम कैसे पता लगा?’’ संजय ने डर से कांपती आवाज में सवाल पूछा.

‘‘शायद हम दोनों में से किसी के मुंह से अनजाने में निकल गया होगा,’’ नरेश ने चिंतित लहजे में जवाब दिया.

‘‘आज मारे गए हमसब. मैं ने उन आदमियों में से एक को अपनी हथेली पर कार का नंबर लिखते हुए देखा है. उस लड़की को ‘संजय’ नाम पता है. पुलिस को हमें ढूंढ़ने में दिक्कत नहीं आएगी,’’ आलोक की इस बात को सुन कर उन दोनों का चेहरा पीला पड़ चुका था.

नरेश ने अचानक सहनशक्ति खो कर संजय से चिढ़े लहजे में पूछा, ‘‘बेवकूफ इनसान, क्या जरूरत थी तुझे उस लड़की को उठा कर कार में डालने की?’’

‘‘यार, उस ने हमारी मांबहन…तो मैं ने अपना आपा खो दिया,’’ संजय ने दबे स्वर में जवाब दिया.

‘‘तो उसे उलटी हजार गालियां दे लेता…दोचार थप्पड़ मार लेता. तू उसे उठा कर कार में न डालता, तो हमारी इस गंभीर मुसीबत की जड़ तो न उगती.’’

‘‘अरे, अब आपस में लड़ने के बजाय यह सोचो कि अपनी जान बचाने को हमें क्या करना चाहिए,’’ आलोक की इस सलाह को सुन कर उन दोनों ने अपनेअपने दिमाग को इस गंभीर मुसीबत का समाधान ढूंढ़ने में लगा दिया.

पुलिस उन तक पहुंचे, इस से पहले ही उन्हें अपने बचाव के लिए कदम उठाने होंगे, इस महत्त्वपूर्ण पहलू को समझ कर उन तीनों ने आपस में कार में बैठ कर सलाहमशविरा किया.

अपनी जान बचाने के लिए वे तीनों सब से पहले आलोक के चाचा रामनाथ के पास पहुंचे. वे 2 फैक्टरियों के मालिक थे और राजनीतिबाजों से उन की काफी जानपहचान थी.

रामनाथ ने अकेले में उन तीनों से पूरी घटना की जानकारी ली. आलोक को ही अधिकतर उन के सवालों के जवाब देने पड़े. शर्मिंदा तो वे तीनों ही नजर आ रहे थे, पर सब बताते हुए आलोक ने खुद को मारे शर्म और बेइज्जती के एहसास से जमीन में गड़ता हुआ महसूस किया.

‘‘अंकल, हम मानते हैं कि हम से गलती हुई है पर ऐसा गलत काम हम जिंदगी में फिर कभी नहीं करेंगे. बस, इस बार हमारी जान बचा लीजिए.’’

‘‘दिल तो ऐसा कर रहा है कि तुम सब को जूते मारते हुए मैं खुद पुलिस स्टेशन ले जाऊं, लेकिन मजबूर हूं. अपने बड़े भैया को मैं ने वचन दिया था कि उन के परिवार का पूरा खयाल रखूंगा. तुम तीनों के लिए किसी से कुछ सहायता मांगते हुए मुझे बहुत शर्म आएगी,’’ संजय को आग्नेय दृष्टि से घूरने के बाद रामनाथ ने मोबाइल पर अपने एक वकील दोस्त राकेश मिश्रा का नंबर मिलाया.

राकेश मिश्रा को बुखार ने जकड़ा हुआ था. सारी बात उन को संक्षेप में बता कर रामनाथ ने उन से अगले कदम के बारे में सलाह मांगी.

‘‘जिस इलाके से उस लड़की को तुम्हारे भतीजे और उस के दोनों दोस्तों ने उठाया था, वहां के एसएचओ से जानपहचान निकालनी होगी. रामनाथ, मैं तुम्हें 10-15 मिनट बाद फोन करता हूं,’’ बारबार खांसी होने के कारण वकील साहब को बोलने में कठिनाई हो रही थी.

‘‘इन तीनों को अब क्या करना चाहिए?’’

‘‘इन्हें घर मत भेजो. ये एक बार पुलिस के हाथ में आ गए तो मामला टेढ़ा हो जाएगा.’’

‘‘इन्हें मैं अपने फार्म हाउस में भेज देता हूं.’’

‘‘उस कार में इन्हें मत भेजना जिसे इन्होंने रेप के लिए इस्तेमाल किया था बल्कि कार को कहीं छिपा दो.’’

‘‘थैंक्यू, माई फ्रैंड.’’

‘‘मुझे थैंक्यू मत बोलो, रामनाथ. उस थाना अध्यक्ष को अपने पक्ष में करना बहुत जरूरी है. तुम्हें रुपयों का इंतजाम रखना होगा.’’

‘‘कितने रुपयों का?’’

‘‘मामला लाखों में ही निबटेगा मेरे दोस्त.’’

‘‘जो जरूरी है वह खर्चा तो अब करेंगे ही. इन तीनों की जलील हरकत का दंड तो भुगतना ही पड़ेगा. तुम मुझे जल्दी से दोबारा फोन करो,’’ रामनाथ ने फोन काटा और परेशान अंदाज में अपनी कनपटियां मसलने लगे थे.

उन की खामोशी से इन तीनों की घबराहट व चिंता और भी ज्यादा बढ़ गई. संजय के पिता की माली हालत अच्छी नहीं थी. इसलिए रुपए खर्च करने की बात सुन कर उस के माथे पर पसीना झलक उठा था.

‘‘फोन कर के तुम दोनों अपनेअपने पिता को यहीं बुला लो. सब मिल कर ही अब इस मामले को निबटाने की कोशिश करेंगे,’’ रामनाथ की इस सलाह पर अमल करने में सब से ज्यादा परेशानी नरेश ने महसूस की थी.

नरेश का रिश्ता कुछ सप्ताह पहले ही तय हुआ था. अगले महीने उस की शादी होने की तारीख भी तय हो चुकी थी. वह रेप के मामले में फंस सकता है, यह जानकारी वह अपने मातापिता व छोटी बहन तक बिलकुल भी नहीं पहुंचने देना चाहता था. उन तीनों की नजरों में गिर कर उन की खुशियां नष्ट करने की कल्पना ही उस के मन को कंपा रही थी. मन के किसी कोने में रिश्ता टूट जाने का भय भी अपनी जड़ें जमाने लगा था.

नरेश अपने पिता को सूचित न करे, यह बात रामनाथ ने स्वीकार नहीं की. मजबूरन उसे अपने पिता को फौरन वहां पहुंचने के लिए फोन करना पड़ा. ऐसा करते हुए उसे संजय अपना सब से बड़ा दुश्मन प्रतीत हो रहा था.

करीब घंटे भर बाद वकील राकेश का फोन आया.

‘‘रामनाथ, उस इलाके के थानाप्रभारी का नाम सतीश है. मैं ने थानेदार को सब समझा दिया है. वह हमारी मदद करेगा पर इस काम के लिए 10 लाख मांग रहा है.’’

‘‘क्या उस लड़की ने रिपोर्ट लिखवा दी है?’’ रामनाथ ने चिंतित स्वर में सवाल पूछा.

‘‘अभी तो रिपोर्ट करने थाने में कोई नहीं आया है. वैसे भी रिपोर्ट लिखाने की नौबत न आए, इसी में हमारा फायदा है. थानेदार सतीश तुम से फोन पर बात करेगा. लड़की का मुंह फौरन रुपयों से बंद करना पड़ेगा. तुम 4-5 लाख कैश का इंतजाम तो तुरंत कर लो.’’

‘‘ठीक है. मैं रुपयों का इंतजाम कर के रखता हूं.’’

संजय के लिए 2 लाख की रकम जुटा पाना नामुमकिन सा ही था. उस के पिता साधारण सी नौकरी कर रहे थे. वह तो अपने दोस्तों की दौलत के बल पर ही ऐश करता आया था. जहां कभी मारपीट करने या किसी को डरानेधमकाने की नौबत आती, वह सब से आगे हो जाता. उस के इसी गुण के कारण उस की मित्रमंडली उसे अपने साथ रखती थी.

वह इस वक्त मामूली रकम भी नहीं जुटा पाएगा, इस सच ने आलोक, नरेश और रामनाथ से उसे बड़ी कड़वी बातें सुनवा दीं.

कुछ देर तो संजय उन की चुभने वाली बातें खामोशी से सुनता रहा, पर अचानक उस के सब्र का घड़ा फूटा और वह बुरी तरह से भड़क उठा था.

‘‘मेरे पीछे हाथ धो कर मत पड़ो तुम सब. जिंदगी में कभी न कभी मैं तुम लोगों को अपने हिस्से की रकम लौटा दूंगा. वैसे मुझे जेल जाने से डर नहीं लगता. हां, तुम दोनों अपने बारे में जरूर सोच लो कि जेल में सड़ना कैसा लगेगा?’’ यों गुस्सा दिखा कर संजय ने उन्हें अपने पीछे पड़ने से रोक दिया था.

थानेदार ने कुछ देर बाद रामनाथ से फोन पर बात की और पैसे के इंतजाम पर जोर डालते हुए कहा कि जरूरत पड़ी तो रात में आप को बुला लूंगा या सुबह मैं खुद ही आ जाऊंगा.

नरेश के पिता विजय कपूर ने जब रामनाथ की कोठी में कदम रखा तो उन के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं.

रामनाथ ने उन्हें जब उन तीनों की करतूत बताई तो उन की आंखों में आंसू भर आए थे.

अपने बेटे की तरफ देखे बिना विजय कपूर ने भरे गले से रामनाथ से प्रार्थना की, ‘‘सर, आप इस समस्या को सुलझवाइए, प्लीज. अगले महीने मेरे घर में शादी है. उस में कुछ व्यवधान पड़ा तो मेरी पत्नी जीतेजी मर जाएगी.’’

अपने पिता की आंखों में आंसू देख कर नरेश इतना शर्मिंदा हुआ कि वह उन के सामने से उठ कर बाहर बगीचे में निकल आया.

अब संजय व आलोेक के लिए भी उन दोनों के सामने बैठना असह्य हो गया तो वे भी वहां से उठे और बगीचे में नरेश के पास आ गए.

चिंता और घबराहट ने उन तीनों के मन को जकड़ रखा था. आपस में बातें करने का मन नहीं किया तो वे कुरसियों पर बैठ कर सोचविचार की दुनिया में खो गए.

उस अनजान लड़की के रेप करने से जुड़ी यादें उन के जेहन में रहरह कर उभर आतीं. कई तसवीरें उन के मन में उभरतीं और कई बातें ध्यान में आतीं.

इस वक्त तो बलात्कार से जुड़ी उन की हर याद उन्हें पुलिस के शिकंजे में फंस जाने की आशंका की याद दिला रही थी. जेल जाने के डर के साथसाथ अपने घर वालों और समाज की नजरों में सदा के लिए गिर जाने का भय उन तीनों के दिलों को डरा रहा था. डर और चिंता के ऐसे भावों के चलते वे तीनों ही अब अपने किए पर पछता रहे थे.

संजय का व्यक्तित्व इन दोनों से अलग था. इसलिए सब से पहले उस ने ही इस समस्या को अलग ढंग से देखना शुरू किया.

‘‘हो सकता है कि वह लड़की पुलिस के पास जाए ही नहीं,’’ संजय के मुंह से निकले इस वाक्य को सुन कर नरेश और आलोक चौंक कर सीधे बैठ गए.

‘‘वह रिपोर्ट जरूर करेगी…’’ नरेश ने परेशान लहजे में अपनी राय बताई.

‘‘तुम्हारी बात ठीक है, पर बलात्कार होने का ढिंढोरा पीट कर हमेशा के लिए लोगों की सहानुभूति दिखाने या मजाक उड़ाने वाली नजरों का सामना करना किसी भी लड़की के लिए आसान नहीं होगा,’’ आलोक ने अपने मन की बात कही.

‘‘वह रिपोर्ट करना भी चाहे तो भी उस के घर वाले उसे ऐसा करने से रोक सकते हैं. अगर रिपोर्ट लिखाने को तैयार होते तो अब तक उन्हें ऐसा कर देना चाहिए था,’’ संजय ने अपनी राय के पक्ष में एक और बात कही.

‘‘मुझे तो एक अजीब सा डर सता रहा है,’’ नरेश ने सहमी सी आवाज में वार्त्तालाप को नया मोड़ दिया.

‘‘कैसा डर?’’

‘‘अगर उस लड़की ने कहीं आत्महत्या कर ली तो हमें फांसी के फंदे से कोई नहीं बचा सकेगा.’’

‘‘उस लड़की का मर जाना उलटे हमारे हक में होगा. तब रेप हम ने किया है, इस का कोई गवाह नहीं रहेगा,’’ संजय ने क्रूर मुसकान होंठों पर ला कर उन दोनों का हौसला बढ़ाने की कोशिश की.

‘‘लड़की आत्महत्या कर के मर गई तो उस के पोस्टमार्टम की रिपोर्ट रेप दिखलाएगी. पुलिस की तहकीकात होगी और हम जरूर पकड़े जाएंगे. यह एसएचओ भी तब हमें नहीं बचा पाएगा. इसलिए उस लड़की के आत्महत्या करने की कामना मत करो बेवकूफो,’’ आलोक ने उन दोनों को डपट दिया.

‘‘मुझे लगता है एसएचओ को इतनी जल्दी बीच में ला कर हम ने भयंकर भूल की है, वह अब हमारा पिंड नहीं छोड़ेगा. लड़की ने रिपोर्ट न भी की तो भी वह रुपए जरूर खाएगा,’’ संजय ने अपनी खीज जाहिर की.

‘‘तू इस बात की फिक्र क्यों कर रहा है? रेप करने में सब से आगे था और अब रुपए निकालने में तू सब से पीछे है.’’

आलोक के इस कथन ने संजय के तनबदन में आग सी लगा दी. उस ने गुस्से में कहा, ‘‘अपना हिस्सा मैं दूंगा. मुझे चाहे लूटपाट करनी पड़े या चोरी, पर तुम लोगों को मेरा हिस्सा मिल जाएगा.’’

संजय ने उसी समय मन ही मन जल्द से जल्द अमीर बनने का निर्णय लिया. उस का एक चचेरा भाई लूटपाट और चोरी करने वाले गिरोह का सदस्य था. उस ने उस के गिरोह में शामिल होने का पक्का मन उसी पल बना लिया. उस ने अभावों व जिल्लत की जिंदगी और न जीने की सौगंध खा ली.

नरेश उस वक्त का सामना करने से डर रहा था जब वह अपनी मां व जवान बहन के सामने होगा. एक बलात्कारी होने का ठप्पा माथे पर लगा कर इन दोनों के सामने खड़े होने की कल्पना कर के ही उस की रूह कांप रही थी. जब आंतरिक तनाव बहुत ज्यादा बढ़ गया तो अचानक उस की रुलाई फूट पड़ी.

रामनाथ ने अब उन्हें अपने फार्महाउस में भेजने का विचार बदल दिया क्योंकि एसएचओ उन से सवाल करने का इच्छुक था. उन के सोने का इंतजाम उन्होंने मेहमानों के कमरे में किया.

विजय कपूर अपने बेटे नरेश का इंतजार करतेकरते सो गए, पर वह कमरे में नहीं आया. उस की अपने पिता के सवालों का सामना करने की हिम्मत ही नहीं हुई थी.

सारी रात उन तीनों की आंखों से नींद कोसों दूर रही. उस अनजान लड़की से बलात्कार करना ज्यादा मुश्किल साबित नहीं हुआ था, पर अब पकड़े जाने व परिवार व समाज की नजरों में अपमानित होने के डर ने उन तीनों की हालत खराब कर रखी थी.

सुबह 7 बजे के करीब थानेदार सतीश श्रीवास्तव रामनाथ की कोठी पर अपनी कार से अकेला मिलने आया.

उस का सामना इन तीनों ने डरते हुए किया. थाने में बलात्कार की रिपोर्ट लिखवाने वह अनजान लड़की रातभर नहीं आई थी, लेकिन थानेदार फिर भी 50 हजार रुपए रामनाथ से ले गया.

‘‘मैं अपनी वरदी को दांव पर लगा कर आप के भतीजे और उस के दोस्तों की सहायता को तैयार हुआ हूं,’’ थानेदार ने रामनाथ से कहा, ‘‘मेरे रजामंद होने की फीस है यह 50 हजार रुपए. वह लड़की थाने न आई तो इन तीनों की खुशकिस्मती, नहीं तो 10 लाख का इंतजाम रखिएगा,’’ इतना कह कर वह उन को घूरता हुआ बोला, ‘‘और तुम तीनों पर मैं भविष्य में नजर रखूंगा. अपनी जवानी को काबू में रखना सीखो, नहीं तो एक दिन बुरी तरह पछताओगे,’’ कठोर स्वर में ऐसी चेतावनी दे कर थानेदार चला गया था.

वे तीनों 9 बजे के आसपास रामनाथ की कोठी से अपनेअपने घरों को जाने के लिए बाहर आए. उस लड़की का रेप करने के बाद करीब 1 दिन गुजर गया था. उसे रेप करने का मजा उन्हें सोचने पर भी याद नहीं आ रहा था.

इस वक्त उन तीनों के दिमाग में कई तरह के भय घूम रहे थे. कटे बालों वाली लंबे कद की किसी भी लड़की पर नजर पड़ते ही पहचाने जाने का डर उन में उभर आता. खाकी वरदी वाले पर नजर पड़ते ही जेल जाने का भय सताता. अपने घर वालों का सामना करने से वे मन ही मन डर रहे थे. उस वक्त की कल्पना कर के उन की रूह कांप जाती जब समाज की नजरों में वे बलात्कारी बन कर सदा जिल्लत भरी जिंदगी जीने को मजबूर होंगे.

अगर तीनों का बस चलता तो वे वक्त को उलटा घुमा कर उस लड़की को रेप करने की घटना घटने से जरूर रोक देते. सिर्फ 12 घंटे में उन की हालत भय, चिंता, तनाव और समाज में बेइज्जती होने के एहसास से खस्ता हो गई थी. इस तरह की मानसिक यंत्रणा उन्हें जिंदगी भर भोगनी पड़ सकती है, इस एहसास के चलते वे तीनों अपनेआप और एकदूसरे को बारबार कोस रहे थे.

Hindi Story Collection : बड़ा जिन्न

Hindi Story Collection : सकीना बी.ए. पास थी और शक्ल ऐसी कि लाखों में एक. कई जगह से उस की शादी के पैगाम आए परंतु उस के मांबाप ने सब नामंजूर कर दिए. कारण यह था कि सभी लड़के साधारण घरानों के थे. कुछ नौकरी करते थे तो कुछ का छोटामोटा व्यापार था. उन का रहनसहन भी साधारण था.

सकीना के बाप कुरबान अली चाहते थे कि सकीना को ऊंचे खानदान, धनी लड़का और ऊंचा घर मिले. ऐसा लड़का उन्हें जल्दी ही मिल गया. हालांकि समाज की मंडियों में ऐसे लड़कों के ग्राहकों की कमी नहीं होती, मगर कुरबान अली की बोली इस नीलामी में सब से ऊंची थी.

कुरबान अली बेटी के लिए जो लड़का लाए, वह खरा सैयद था. लड़के के बाप ठेकेदार थे, लंबाचौड़ा मकान था और हजारों की आमदनी थी. लड़का कुछ भी नहीं करता था. बस, बाप के धन पर मौज उड़ाता था.

वह लड़का भी कुरबान अली को 80 हजार रुपए का पड़ा. स्कूटर, रंगीन टीवी, वी.सी.आर., फ्रिज सबकुछ ही देना पड़ा. कुरबान अली का दिवाला निकल गया. उन के होंठों पर से वर्षों के लिए मुसकराहट गायब हो गई. ऊंचे लड़के के लिए ऊंची कीमत देनी पड़ी थी. छोटू ठेकेदार का एक ही बेटा था. अच्छे पैसे बना लिए उस के. क्यों न बनाते? जब देने वाले हजार हों तो लेने वाले क्यों तकल्लुफ करें? बब्बन मियां एक बीवी के मालिक हो गए और 80 हजार रुपए के भी.

एक वर्ष बीत गया. स्कूटर भी पुराना हो गया और बीवी भी. पुरानी वस्तुओं पर इतना ध्यान नहीं दिया जाता, जितना नई पर दिया जाता है. बब्बन मियां की दिलचस्पी सकीना में न होने के बराबर रह गई.

सकीना सबकुछ सह लेती परंतु उस की गोद खाली थी. सासननदों ने शोर मचाना शुरू कर दिया. बच्चा होने के दूरदूर तक आसार नहीं थे. सकीना जानती थी कि औरत का पहला फर्ज बच्चा पैदा करना है.

आसपास की बूढि़यों ने सकीना की सास से कहा, ‘‘बहू पर असर है. इसे जलालशाह के पास ले जाओ.’’

सकीना स्वयं पढ़ीलिखी थी और उस का घराना भी जाहिल नहीं था. ससुराल में तो अंधेरा ही अंधेरा था, जहालत और अंधविश्वास का.

उस ने बहुत सिर मारा. ससुराल वालों को समझाया, ‘‘जिन्नआसेब, भूतप्रेत, असर, जादूटोना ये सब जहालत की बातें हैं. जिस का जो काम है उसे ही करना चाहिए. घड़ी में खराबी हो जाए तो उसे घड़ीसाज ही ठीक करता है. टूटे हुए जूतों को मोची संभालते हैं. मोटरकार की मरम्मत मिस्तरी करता है परंतु मेरा इलाज डाक्टर की जगह पीर क्यों करेगा?’’

सास खीज कर बोलीं, ‘‘जबान बंद कर. क्या इसीलिए पढ़ालिखा है तू ने कि पीरफकीरों पर भी कीचड़ उछाले? जानती नहीं कि हजारों लोग पीर जलालशाह की खानकाह में हाजिरी दे कर अपनी खाली झोलियां मुरादों से भर कर लौटते हैं? क्या वे सब पागल हैं?’’

एक बूढ़ी ने सास के कान में कहा, ‘‘यह सकीना नहीं बोल रही है, यह तो इस पर सवार जिन्न की आवाज है. इस पर न बिगड़ो.’’

सकीना ने मजबूर हो कर बब्बन मियां से कहा, ‘‘यह क्या जहालत है? मुझे पीर साहब के पास खानकाह भेजा जा रहा है. वैसे तो औरतों से इतना सख्त परदा कराया जाता है, लेकिन पीर साहब भी तो गैर आदमी हैं. आप शायद नहीं जानते कि ये लोग खुद भी किसी जिन्न से कम नहीं होते. मुझे किसी डाक्टर को दिखा दीजिए या फिर मुझे घर भिजवा दीजिए.’’

बब्बन मियां ने साफसाफ कह दिया, ‘‘पीर साहब को खुदा ने खास ताकत दी है. उन्होंने सैकड़ों जिन्न उतारे हैं. वह किसी औरत के लिए भी गैरमर्द नहीं हैं क्योंकि उन की आंखें औरत के बदन को नहीं, उस की रूह को देखती हैं. तुम पर असर है, इसलिए तुम अपने घर भी नहीं जा सकतीं. कान खोल कर सुन लो, तुम्हें पीर साहब से इलाज कराना ही होगा. अगर तुम्हारे बच्चा न हुआ तो फिर मुझे इस खानदान के वारिस के लिए दूसरी शादी करनी पड़ेगी.’’

सकीना कांप उठी.

जुमेरात के दिन वही औरतें खानकाह में जाती थीं जो बच्चे की मुराद मानती थीं. पीर साहब की यह पाबंदी थी कि उन के साथ कोई मर्द नहीं जा सकता था.

जब सकीना बुरका ओढ़ कर खानकाह पहुंची तो दिन छिप रहा था. रास्ते के दोनों तरफ मर्द और औरतें हाथों में सुलगते हुए फलीते लिए बैठे थे. एक ओर फकीरों की भीड़ थी. वहां हार, फूल और मिठाई की दुकानें भी थीं. हवा में लोबान और अगरबत्तियों की खुशबू बिखरी पड़ी थी.

खानकाह की बड़ी सी इमारत औरतों से भरी पड़ी थी. चौड़े मुंह वाले भारीभरकम पीर साहब कालीन पर बैठे थे. घनी दाढ़ी और लाललाल आंखें. वह औरतों को देखदेख कर उन्हें फलीते पकड़ा रहे थे.

सकीना की बारी आई तो उन की लाल आंखों में चमक आ गई.

‘‘बहुत बड़ा जिन्न है,’’ वह दाढ़ी पर हाथ फेर कर बोले, ‘‘2 घंटे बाद सामने वाले दरवाजे से अंदर चली जाना. एक आदमी तुम्हें बता देगा.’’

सकीना यह सुन कर और भी परेशान हो गई.

‘न जाने क्या चक्कर है?’ वह सोच रही थी, ‘अगर कोई ऐसीवैसी बात हुई तो मैं अपनी जान तो दे ही सकती हूं.’

और उस ने गिरेबान में रखे चाकू को फिर टटोल कर देखा.

2 घंटे बीतने पर एक भयंकर शक्ल वाले आदमी ने सकीना के पास आ कर कहा, ‘‘उस दरवाजे में से अंदर चली जाओ. वहां अंधेरा है, जिस में पीर साहब जिन्न से लड़ेंगे. डरना नहीं.’’

सकीना कांपती हुई अंदर दाखिल हुई. घुप अंधेरा था.

उस के कानों में सरसराहट की सी आवाज आई और फिर घोड़े की टापों की सी धमक के बाद सन्नाटा छा गया.

उस के कानों के पास किसी ने कहा, ‘‘मैं जिन्न हूं और तुझे उस दिन से चाहता हूं जब तू छत पर खड़ी बाल सुखा रही थी. मैं ने ही तेरे बच्चे होने बंद कर रखे हैं. सुन, मैं तो हवा हूं. मुझ से डर कैसा?’’

सकीना पसीने में नहा गई. उसे किसी की सांसों की गरमी महसूस हो रही थी.

उस ने थरथर कांपते हुए गिरेबान से चाकू निकाल लिया.

किसी ने सकीना से लिपटना चाहा. मगर अगले ही पल उस का सीधा हाथ ऊपर उठा. चाकू ‘खचाक’ से किसी नरम वस्तु में धंस गया. उलटा हाथ बालों से टकराया. उस ने झटका दिया. बालों का गुच्छा मुट्ठी में आ गया. उसी के साथ एक करुणा भरी चीख कमरे में गूंज गई.

सकीना पागलों के समान उलटे पैरों भाग खड़ी हुई, भागती ही रही.

अगले दिन वह पुलिस थाने में अपना बयान लिखवा रही थी और पीर साहब अस्पताल में पड़े थे. उन के पेट में गहरा घाव था और दाढ़ी खुसटी हुई थी.

शाम को देखते ही देखते खानकाह पर पत्रकारों की भीड़ लग गई थी.

Hindi Kahaniyan : जुल्म की सजा

Hindi Kahaniyan :  उत्तर प्रदेश के बदायूं, शाहजहांपुर और फर्रुखाबाद जिलों की सीमाओं को छूता, रामगंगा नदी के किनारे पर बसा हुआ गांव पिरथीपुर यों तो बदायूं जिले का अंग है, पर जिले तक इस की पहुंच उतनी ही मुश्किल है, जितनी मुश्किल शाहजहांपुर और फर्रुखाबाद जिला हैडक्वार्टर तक की है.

कभी इस गांव की दक्षिण दिशा में बहने वाली रामगंगा ने जब साल 1917 में कटान किया और नदी की धार पिरथीपुर के उत्तर जा पहुंची, तो पिरथीपुर बदायूं जिले से पूरी तरह कट गया. गांव के लोगों द्वारा नदी पार करने के लिए गांव के पूरब और पश्चिम में 10-10 कोस तक कोई पुल नहीं था, इसलिए उन की दुनिया पिरथीपुर और आसपास के गांवों तक ही सिमटी थी, जिस में 3 किलोमीटर पर एक प्राइमरी स्कूल, 5 किलोमीटर पर एक पुलिस चौकी और हफ्ते में 2 दिन लगने वाला बाजार था.

सड़क, बिजली और अस्पताल पिरथीपुर वालों के लिए दूसरी दुनिया के शब्द थे. सरकारी अमला भी इस गांव में सालों तक नहीं आता था.

देश और प्रदेश में चाहे जिस राजनीतिक पार्टी की सरकार हो, पर पिरथीपुर में तो समरथ सिंह का ही राज चलता था. आम चुनाव के दिनों में राजनीतिक पार्टियों के जो नुमाइंदे पिरथीपुर गांव तक पहुंचने की हिम्मत जुटा पाते थे, वे भी समरथ सिंह को ही अपनी पार्टी का झंडा दे कर और वोट दिलाने की अपील कर के लौट जाते थे, क्योंकि वे जानते थे कि पूरे गांव के वोट उसी को मिलेंगे, जिस की ओर ठाकुर समरथ सिंह इशारा कर देंगे.

पिरथीपुर गांव की ज्यादातर जमीन रेतीली और कम उपजाऊ थी. समरथ सिंह ने उपजाऊ जमीनें चकबंदी में अपने नाम करवा ली थीं. जो कम उपजाऊ जमीन दूसरे गांव वालों के नाम थी, उस का भी ज्यादातर भाग समरथ सिंह के पास गिरवी रखा था.

समरथ सिंह के पास साहूकारी का लाइसैंस था और गांव का कोई बाशिंदा ऐसा नहीं था, जिस ने सारे कागजात पर अपने दस्तखत कर के या अंगूठा लगा कर समरथ सिंह के हवाले न कर दिया हो. इस तरह सभी गांव वालों की गरदनें समरथ सिंह के मजबूत हाथों में थीं.

पिरथीपुर गांव में समरथ सिंह से आंख मिला कर बात करने की हिम्मत किसी में भी नहीं थी. पासपड़ोस के ज्यादातर लोग भी समरथ सिंह के ही कर्जदार थे.

समरथ सिंह की पहुंच शासन तक थी. क्षेत्र के विधायक और सांसद से ले कर उपजिलाधिकारी तक पहुंच रखने वाले समरथ सिंह के खिलाफ जाने की हिम्मत पुलिस वाले भी नहीं करते थे.

समरथ सिंह के 3 बेटे थे. तीनों बेटों की शादी कर के उन्हें 10-10 एकड़ जमीन और रहने लायक अलग मकान दे कर समरथ सिंह ने उन्हें अपने राजपाट से दूर कर दिया था. उन की अपनी कोठी में पत्नी सीता देवी और बेटी गरिमा रहते थे.

गरिमा समरथ सिंह की आखिरी औलाद थी. वह अपने पिता की बहुत दुलारी थी. पूरे पिरथीपुर में ठाकुर समरथ सिंह से कोई बेखौफ था, तो वह गरिमा ही थी.

सीता देवी को समरथ सिंह ने उन के बैडरूम से ले कर रसोईघर तक सिमटा दिया था. घर में उन का दखल भी रसोई और बेटी तक ही था. इस के आगे की बात करना तो दूर, सोचना भी उन के लिए बैन था.

कोठी के पश्चिमी भाग के एक कमरे में समरथ सिंह सोते थे और उसी कमरे में वे जमींदारी, साहूकारी, नेतागीरी व दादागीरी के काम चलाते थे. वहां जाने की इजाजत सीता देवी को भी नहीं थी.

समरथ सरकार के नाम से पूरे पिरथीपुर में मशहूर समरथ सिंह की कोठी में बाहरी लोगों का आनाजाना पश्चिमी दरवाजे से ही होता था. इस दरवाजे से बरामदे में होते हुए उन के दफ्तर और बैडरूम तक पहुंचा जा सकता था.

कोठी के पश्चिमी भाग में दखल देना परिवार वालों के लिए ही नहीं, बल्कि नौकरचाकरों के लिए भी मना था.

अपने पिता की दुलारी गरिमा बचपन से ही कोठी के उस भाग में दौड़तीखेलती रही थी, इसलिए बहुत टोकाटाकी के बाद भी वह कभीकभार उधर चली ही जाती थी.

गांव की हर नई बहू को ‘समरथ सरकार’ से आशीर्वाद लेने जाने की प्रथा थी. कोठी के इसी पश्चिमी हिस्से में समरथ सिंह जितने दिन चाहते, उसे आशीर्वाद देते थे और जब उन का जी भर जाता था, तो उपहार के तौर पर गहने दे कर उसे पश्चिमी दरवाजे से निकाल कर उस के घर पहुंचा दिया जाता था.

आतेजाते हुए कभी गांव की किसी बहूबेटी पर समरथ सिंह की नजर पड़ जाती, तो उसे भी कोठी देखने का न्योता भिजवा देते, जिसे पा कर उसे कोठी में हर हाल में आना ही होता था.

समरथ सिंह की इमेज भले ही कठोर और बेरहम रहनुमा की थी, पर वे दयालु भी कम नहीं थे. खुशीखुशी आशीर्वाद लेने वालों पर उन की कृपा बरसती थी. अनेक औरतें जबतब उन का आशीर्वाद लेने के लिए कोठी का पश्चिमी दरवाजा खटखटाती रहती थीं, ताकि उन के

पति को फसल उपजाने के लिए अच्छी जमीन मिल सके, दवा व इलाज और शादीब्याह के खर्च वगैरह को पूरा करने हेतु नकद रुपए मिल सकें.

लेकिन बात न मानने से समरथ सिंह को सख्त चिढ़ थी. राधे ने अपनी बहू को आशीर्वाद लेने के लिए कोठी पर भेजने से मना कर दिया था. उस की बहू को समरथ के आदमी रात के अंधेरे में घर से उठा ले गए और तीसरे दिन उस की लाश कुएं में तैरती मिली थी.

अपनी नईनवेली पत्नी की लाश देख कर राधे का बेटा सुनील अपना आपा खो बैठा और पूरे गांव के सामने समरथ सिंह पर हत्या का आरोप लगाते हुए गालियां बकने लगा.

2 घंटे के अंदर पुलिस उसे गांव से उठा ले गई और पत्नी की हत्या के आरोप में जेल भेज दिया. बाद में ठाकुर के आदमियों की गवाही पर उसे उम्रकैद की सजा हो गई.

राधे की पत्नी अपने एकलौते बेटे की यह हालत बरदाश्त न कर सकी और पागल हो गई. इस घटना से घबरा कर कई इज्जतदार परिवार पिरथीपुर गांव से भाग गए.

समरथ सिंह ने भी बचेखुचे लोगों से साफसाफ कह दिया कि पिरथीपुर में समरथ सिंह की मरजी ही चलेगी. जिसे उन की मरजी के मुताबिक जीने में एतराज हो, वह गांव छोड़ कर चला जाए. इसी में उस की भलाई है.

समरथ सिंह की बेटी गरिमा जब थोड़ी बड़ी हुई, तो समरथ सिंह ने उस का स्कूल जाना बंद करा दिया. अब वह दिनरात घर में ही रहती थी.

गरमी के मौसम में एक दिन दोपहर में उसे नींद नहीं आ रही थी. वह लेटेलेटे ऊब गई, तो अपने कमरे से बाहर निकल कर छत पर चली गई और टहलने लगी.

अचानक उसे कोठी के पश्चिमी दरवाजे पर कुछ आहट सुनाई दी. उस ने झांक कर देखा, तो दंग रह गई. समरथ सिंह का खास लठैत भरोसे एक औरत को ले कर आया था. कुछ देर बाद कोठी का पश्चिमी दरवाजा बंद हो गया और भरोसे दरवाजे के पास ही चारपाई डाल कर कोठी के बाहर सो गया.

गरिमा छत से उतर कर दबे पैर कोठी के बैन इलाके में चली गई. अपने पिता के बैडरूम की खिड़की के बंद दरवाजे के बीच से उस ने कमरे के अंदर झांका, तो दंग रह गई. उस के पिता नशे में धुत्त एक लड़की के कपड़े उतार रहे थे. वह लड़की सिसकते हुए कपड़े उतारे जाने का विरोध कर रही थी.

जबरन उस के सारे कपड़े उतार कर उन्होंने उस लड़की को किसी बच्चे की तरह अपनी बांहों में उठा कर चूमना शुरू कर दिया. फिर वे पलंग की ओर बढ़े और उसे पलंग पर लिटा कर किसी राक्षस की तरह उछल कर उस पर सवार हो गए.

गरिमा सांस रोके यह सब देखती रही और पिता का शरीर ढीला पड़ते ही दबे पैर वहां से निकल कर अपने कमरे में आ गई. उसे यह देख कर बहुत अच्छा लगा और बेचैनी भी महसूस हुई.

अब गरिमा दिनभर सोती और रात को अपने पिता की करतूत देखने के लिए बेचैन रहती.

अपने पिता की रासलीला देखदेख कर गरिमा भी काम की आग से भभक उठती थी.

एक दिन समरथ सिंह भरोसे को ले कर किसी काम से जिला हैडक्वार्टर गए हुए थे. दोपहर एकडेढ़ बजे उन का कारिंदा भूरे, जिस की उम्र तकरीबन 20 साल होगी, हलबैल ले कर आया.

बैलों को बांध कर वह पशुशाला के बाहर लगे नल पर नहाने लगा, तभी गरिमा की निगाह उस पर पड़ गई. वह देर तक उस की गठीली देह देखती रही.

जब भूरे कपड़े पहन कर अपने घर जाने लगा, तो गरिमा ने उसे बुलाया. भूरे कोठरी के दरवाजे पर आया, तो गरिमा ने उसे अपने साथ आने को कहा.

गरिमा को पता था कि उस की मां भोजन कर के आराम करने के लिए अपने कमरे में जा चुकी है.

गरिमा भूरे को ले कर कोठी के पश्चिमी दरवाजे की ओर बढ़ी, तो भूरे ठिठक कर खड़ा हो गया. गरिमा ने लपक कर उस का गरीबान पकड़ लिया और घसीटते हुए अपने पिता के कमरे की ओर ले जाने लगी.

भूरे कसाई के पीछेपीछे बूचड़खाने की ओर जाती हुई गाय के समान ही गरिमा के पीछेपीछे चल पड़ा.

पिता के कमरे में पहुंच कर गरिमा ने दरवाजा बंद कर लिया और भूरे को कपड़े उतारने का आदेश दिया. भूरे उस का आदेश सुन कर हैरान रह गया.

उसे चुप खड़ा देख कर गरिमा ने खूंटी पर टंगा हंटर उतार लिया और दांत पीसते हुए कहा, ‘‘अगर अपना भला चाहते हो, तो जैसा मैं कह रही हूं, वैसा ही चुपचाप करते जाओ.’’

भूरे ने अपने कपड़े उतार दिए, तो गरिमा ने अपने पिता की ही तरह उसे चूमनाचाटना शुरू कर दिया. फिर पलंग पर ढकेल कर अपने पिता की तरह उस पर सवार हो गई.

भूरे कहां तक खुद पर काबू रखता? वह गरिमा पर उसी तरह टूट पड़ा, जिस तरह समरथ सिंह अपने शिकार पर टूटते थे.

गरिमा ने कोठी के पश्चिमी दरवाजे से भूरे को इस हिदायत के साथ बाहर निकाल दिया कि कल फिर इसी समय कोठी के पश्चिमी दरवाजे पर आ जाए. साथ ही, यह धमकी भी दी कि अगर वह समय पर नहीं आया, तो उसकी शिकायत समरथ सिंह तक पहुंच जाएगी कि उस ने उन की बेटी के साथ जबरदस्ती की है.

भूरे के लिए एक ओर कुआं था, तो दूसरी ओर खाई. उस ने सोचा कि अगर वह गरिमा के कहे मुताबिक दोपहर में कोठी के अंदर गया, तो वह फिर अगले दिन आने को कहेगी और एक न एक दिन यह राज समरथ सिंह पर खुल जाएगा और तब उस की जान पर बन आएगी. मगर वह गरिमा का आदेश नहीं मानेगा, तो वह भूखी शेरनी उसे सजा दिलाने के लिए उस पर झूठा आरोप लगाएगी और उस दशा में भी उसे जान से हाथ धोना पड़ेगा.

मजबूरन भूरे न चाहते हुए भी अगले दिन तय समय पर कोठी के पश्चिमी दरवाजे पर हाजिर हो गया, जहां गरिमा उस का इंतजार करती मिली.

अब यह खेल रोज खेला जाने लगा. 6 महीने बीततेबीतते गरिमा पेट से हो गई. भूरे को जिस दिन इस बात का पता चला. वह रात में ही अपना पूरा परिवार ले कर पिरथीपुर से गायब हो गया.

गरिमा 3-4 महीने से ज्यादा यह राज छिपाए न रख सकी और शक होने पर जब सीता देवी ने उस से कड़ाई से पूछताछ की, तो उस ने अपनी मां के सामने पेट से होना मान लिया. फिर भी उस ने भूरे का नाम नहीं लिया.

सीता देवी ने नौकरानी से समरथ सिंह को बुलवाया और उन्हें गरिमा के पेट से होने की जानकारी दी, तो वे पागल हो उठे और सीता देवी को ही पीटने लगे. जब वे उन्हें पीटपीट कर थक गए, तो गरिमा को आवाज दी.

2-3 बार आवाज देने पर गरिमा डरते हुए समरथ सिंह के सामने आई. उन्होंने रिवाल्वर निकाल कर गरिमा को गोली मार दी.

कुछ देर तक समरथ सिंह बेटी की लाश के पास बैठे रहे, फिर सीता देवी से पानी मांग कर पिया. तभी फायर की आवाज सुन कर उन के तीनों बेटे और लठैत भरोसे दौड़े हुए आए.

समरथ सिंह ने उन्हें शांत रहने का इशारा किया, फिर जेब से रुपए निकाल कर बड़े बेटे को देते हुए कहा, ‘‘जल्दी से जल्दी कफन का इंतजाम करो और 2 लोगों को लकड़ी ले कर नदी किनारे भेजो. खुद भी वहीं पहुंचो.’’

समरथ सिंह के बेटे पिता की बात सुन कर आंसू पोंछते हुए भरोसे के साथ बाहर निकल गए.

एक घंटे के अंदर लाश ले कर वे लोग नदी किनारे पहुंचे. चिता के ऊपर बेटी को लिटा कर समरथ सिंह जैसे ही आग लगाने के लिए बढ़े, तभी वहां पुलिस आ गई और दारोगा ने उन्हें चिता में आग लगाने से रोक दिया.

यह सुनते ही समरथ सिंह गुस्से से आगबबूला हो गए और तकरीबन चीखते हुए बोले, ‘‘तुम अपनी हद से आगे बढ़ रहे हो दारोगा.’’

‘‘नहीं, मैं अपना फर्ज निभा रहा हूं. राधे ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई है कि आप ने अपनी बेटी की गोली मार कर हत्या कर दी है, इसलिए पोस्टमार्टम कराए बिना लाश को जलाया नहीं जा सकता.’’

समरथ सिंह ने दारोगा के पीछे खड़े राधे को जलती आंखों से देखा.

वे कुछ देर गंभीर चिंता में खड़े रहे, फिर रिवाल्वर से अपने सिर में गोली मार ली.

इस घटना को देख कर वहां मौजूद लोग सन्न रह गए, तभी पगली दौड़ती हुई आई और दम तोड़ रहे समरथ सिंह के पास घुटनों के बल बैठ कर ताली बजाते हुए बोली, ‘‘देखो ठाकुर, तेरे जुल्मों की सजा तेरे साथ तेरी औलाद को भी भोगनी पड़ी. खुद ही जला कर अपनी सोने की लंका राख कर ली.’’

जैसेजैसे समरथ सिंह की सांस धीमी पड़ रही थी, वहां मौजूद लोगों में गुलामी से छुटकारा पाने का एहसास तेज होता जा रहा था.

Hindi Stories Online : मैं पुरुष हूं – क्यों माधवी को छोड़ना चाहता था तरुण

Hindi Stories Online :  मिसेज मेहता 20 साल की बेटी आलिया के साथ व्यस्त थीं. वे आज अपनी साड़ियों को अलमारी से बाहर निकाल रही थीं. साड़ियों को एक बार धूप में सुखाने का इरादा था उन का.

““क्या मम्मी, आप ने तो सारा घर ही कबाड़ कर रखा है,”” मिसेज मेहता का 24-वर्षीय बेटा तरुण बोला.

““अरे बेटे, मैं अपनी अलमारी सही कर रही हूं. मेरी इतनी महंगीमहंगी साड़ियां हैं, इन्हें भी तो देखरेख चाहिए.””

““ये इतनी भारी साड़ियां आप लोग कैसे संभाल लेती हो भला?”” तरुण ने कहा.

““यह सब हमारी संस्कृति की निशानी है,” मिसेज मेहता ने इठलाते हुए कहा.

““अब भला साड़ियों से हमारी संस्कृति का क्या लेनादेना मां? एक बदन ढकने के लिए 5 मीटर लंबी साड़ी लपेटने में भला कौन सी संस्कृति साबित होती है?”” तरुण ने चिढ़ते हु

““अब तुम्हारे मुंह कौन लगे. जब तेरी घरवाली आएगी तब बात करूंगी तुझ से,” ”मां ने हंसते हुए कहा.

तरुण बैंक में कैशियर के पद पर काम कर रहा था और अपनी सहकर्मी माधवी से प्यार करता था. दोनों ने साथ जीनेमरने की कसमें भी खा ली थीं. पर माधवी से शादी को ले कर तरूण हमेशा ही शंकालु रहता था क्योंकि माधवी नए जमाने की लड़की थी जो बिंदास अंदाज में जीती थी. उसे मोटरसाइकिल चलाना पसंद था और अपनी आवाज को बुलंद करना भी उसे अच्छी तरह आता था. उस की यही बात तरुण को संशय में डालती थी कि हो सकता है कि माधवी मां की पसंद पर खरी न उतरे.

“आजकल की लड़कियों को देखो, टौप के अंदर से ब्रा की पट्टी दिखाने से उन्हें कोई परहेज नहीं है. हमारे समय में तो मजाल है कि कोई जान भी पाता कि हम ने अंदर क्या पहन रखा है.”

मां की इस तरह की बातें सुन कर तो तरुण का मन और भी फीका हो जाता था.

माधवी के पापा को लास्ट स्टेज का कैंसर था, इसलिए वे माधवी की शादी जल्द से जल्द कर देना चाहते थे. माधवी भी तरुण पर दबाव बना रही थी कि वह भी घर में अपनी शादी की बात चलाए.

माधवी के बारबार कहने पर एक दिन तरुण ने मां को माधवी के बारे में बताया और माधवी का फोटो भी दिखा दिया.

फोटो देख कर तो मां ने कुछ नहीं कहा पर ऐसा लगा कि माधवी जैसी मौडर्न लड़की को वे अपनी बहू नहीं बनाना चाहती हैं.

““मां, वैसे माधवी घरेलू लड़की ही है. हां, उस के नैननक्श जरूर ऐसे हैं जिन से वह मौडर्न और अकड़ू टाइप की लगती है,”” माधवी की तारीफ का समा बांध दिया था तरुण ने.

तरुण के पिता तो बचपन में ही गुजर गए थे. तब से ले कर आज तक मिसेज मेहता अपना जीवन आलिया और तरुण के लिए ही तो गुजार रही हैं.

तरुण की मां उस की हर पसंद व नापसंद का ध्यान रखती थीं. जवान होते बच्चों की भावनाएं बहुत तीव्र होती हैं और अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए वे कोई भी कदम उठाने से पीछे नहीं हटते.

मां ने आलिया से सवालिया नजरों में ही पूछ लिया कि “यह लड़की तेरी भाभी के रूप में कैसी लगेगी?” आलिया ने भी इशारों में ही बता दिया. आलिया के इस खामोश जवाब का मतलब मां अच्छी तरह समझ गई थीं.

आलिया वैसे भी अकसर खामोश ही रहती थी. उस की इस खामोशी को लोग घमंडी की उपमा देते थे.

आलिया की सहज और मूक स्वीकृति पा कर मां ने भी माधवी से तरुण की शादी करने की इच्छा जाहिर की.

तरुण खुशीखुशी 2 दिनों बाद ही माधवी को घर ले आया. माधवी आज पीले रंग के सलवार सूट में थी. उस ने अपने बालों को खुला छोड़ा हुआ था जो बारबार उस के माथे पर गिर जाते थे और जिन्हें बड़ी अदा से सही करती थी वह.

माधवी से मां ने दोचार सवालजवाब किए और उस के घरेलू हालात के बारे में जानकारी हासिल की. माधवी ने उन्हें बताया कि घर में उस के मांबाप और माधवी ही रहते हैं और पापा कैंसर से पीड़ित हैं, इसलिए घर चलाने का जिम्मा भी उसी पर आ पड़ा है.

इसी प्रकार की औपचारिक बातों के बाद माधवी ने मां और आलिया से विदा ली.

माधवी के जाने के बाद तरुण अपनी मां का निर्णय जानने के लिए मचला जा रहा था. मां ने इस सस्पैंस को थोड़ी देर बनाए रखना उचित समझा. लेकिन तरुण की हालत देख कर उन्होंने हंसते हुए इस रिश्ते के लिए हामी भर दी थी.

तरुण ने तुरंत ही माधवी के मोबाइल पर व्हाट्सऐप मैसेज कर दिया कि मां शादी के लिए तैयार हो गई हैं. अब, बस, जल्दी से तारीख तय कर लेते हैं. मैसेज देख कर माधवी भी खुशी से फूले नहीं समा रही थी. उस की शादी से उस के मांबाप के मन से एक बोझ भी हट जाने वाला था.

अगले दिन बैंक से निकलने के बाद तरुण और माधवी कैफे में गए और अपने भविष्य की तमाम योजनाओं पर विचार करने लगे. दोनों की आंखों में रोमांस और रोमांच का सागर लहरा रहा था.

वापसी में शाम ज्यादा हो गई थी और अंधेरा घिर आया था. तरुण ने माधवी को खुद ही उस के घर तक छोड़ने का मन बनाया और अपनी बाइक पर उस को बैठा कर चल दिया.

बैंक से माधवी के घर की ओर जाते हुए एक पुलिया पड़ती थी जहां पर आवागमन कुछ कम हो जाता था. वहां पर पहुंचते ही तरुण की बाइक पंक्चर हो गई.

“शिट मैन…..पंक्चर हो गई. मेकैनिक देखना पड़ेगा.” इधरउधर नजर दौड़ाने लगा था तरुण. ठीक उसी समय वहां पर 3-4 मुस्टंडे कहीं से प्रकट हो गए. वे सब शराब के नशे में थे. तरुण चौकन्ना हो गया था कि तभी उस के सिर के पीछे किसी ने डंडे से वार किया. बेहोश होने लगा था तरुण. इसी बीच, बाकी के 2 मुस्टंडों ने माधवी को पकड़ लिया और सड़क के किनारे खड़ी एक कार में ले जा कर जबरन उस के साथ बारीबारी मुंह काला करने लगे.

तरुण बेहोश था. माधवी उन गुंडों की हवस का शिकार बनती रही और उस के बाद वे गुंडे उन दोनों को उसी अवस्था में सड़क के किनारे छोड़ कर चले गए. जब उसे होश आया, तब तक माधवी का सबकुछ लुट चुका था. आतेजाते लोगों ने उन दोनों पर नजर डाली. कुछ ने उन के वीडियो भी बनाए. पर मदद किसी ने भी नहीं की. उन्हें मदद तब ही मिल पाई जब पुलिस की पैट्रोलिंग जीप वहां से गुजरी.

तमाम सवालात के बाद पुलिस ने माधवी को अस्पताल में भरती कराया और तरुण को प्राथमिक उपचार के बाद घर जाने दिया गया.

तरुण के दिलोदिमाग पर जोरदार झटका लगा था पर 10 दिनों तक घर में रुकने के बाद उस ने पहले की तरह ही अपने काम पर जाना शुरू कर दिया. पर उस ने माधवी की खोजखबर लेना उचित नहीं समझा.

माधवी सदमे में थी. पर घर की जिम्मेदारियां निभाने के लिए वह बैंक भी आने लगी और पहले की तरह ही काम भी संभाल लिया. माधवी ने जिंदगी की पुरानी लय पाने की दिशा में कदम बढ़ाने शुरू कर दिए. पर इस सफर में उसे अब तरुण का साथ नहीं मिल पा रहा था. वह माधवी की तरफ देखता भी नहीं था, बात करना तो बहुत दूर की बात थी.

माधवी के स्त्रीमन ने बहुत जल्दी ताड़ लिया कि तरुण उस के साथ ऐसा रूखा व्यवहार क्यों कर रहा है, पर बेचारी कर क्या सकती थी. वह अब एक बलात्कार पीड़िता थी. चुपचाप अपने को काम में बिजी कर लिया था माधवी ने.

कुछ समय बीता, तो मां ने तरुण से माधवी के बारे में पूछा, ““आजकल तू माधवी की बात नहीं करता. तुम लोगों ने शादी की तारीख फाइनल की या नहीं?””

““कैसी बातें करती हो मां. अब क्या मैं उस के साथ शादी करूंगा? मेरा मतलब है कि उस का बलात्कार हो चुका है. बलात्कार पीड़िता से कहीं कोई शादी भी करता है भला? म….मैं समाज से कुछ अलग तो नहीं? ”

मां के चेहरे पर कई रंग आनेजाने लगे. उन की आंखों में कई सवाल उमड़ आए थे.

“लगता है मेरी परवरिश में ही कुछ कमी रह गई. ”मन ही मन बुदबुदा उठी थी मां. उन की आंखों की कोर नम हो चली थी जिसे उन्होंने तरुण से बड़ी सफाई से छिपा लिया और बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली गईं.

“बलात्कार किसी के भी साथ हो सकता है मेरे साथ, आलिया के साथ… तो क्या तब भी तरुण उसे ऐसे ही त्याग देगा जैसे उस ने माधवी को छोड़ दिया है? हां, एक पुरुष ही तो है वह, जो हमेशा ही दूध का धुला होता है.”

कई तरह के सवाल मां के जेहन में उमड़ आए और कुछ कसैली यादें उन के मन को खट्टा करने लगीं.

5 साल पहले की ही तो बात है. उन दिनों तरुण ट्रेनिंग करने के लिए शहर से बाहर गया हुआ था. आलिया को अचानक बुखार आ गया था. डाक्टर को दिखा कर दवा तो ले आई थीं मिसेज मेहता पर आज सुबह से फिर बुखार तेज हो गया था. डाक्टर से फोन पर उन्होंने संपर्क किया तो उस ने एक दूसरी टेबलेट का नाम बताते हुए कहा कि यह टेबलेट आसपास के मैडिकल स्टोर से ले कर खिला दीजिए, आराम मिल जाएगा.

वे नुक्कड़ वाले मैडिकल स्टोर पर दवाई लेने ही तो गई थीं कि पीछे से किसी ने आलिया के कमरे का दरवाजा खटकाया था. आलिया ने अनमने मन से दरवाजा खोला, तो सामने बगल में रहने वाले 55 साल के अंकल थे. अंकल को यह पता था कि आलिया घर में अकेली है और इसी का लाभ उस ने उठाया, बुखार में तप रही आलिया का बलात्कार कर दिया. जब वे घर पहुंचीं तो आलिया फर्श पर पड़ी हुई थी. बड़ी मुश्किल से ही अपने ऊपर हुए अत्याचार को कह पाई थी आलिया. उन्होंने उसे सीने से लगा लिया और वे दोनों सुबकते रहे थे. पूरे 3 दिन तक फ्लैट का दरवाजा तक नहीं खुला. बदनामी के डर से पुलिस में भी रिपोर्ट नहीं लिखवाई. तरुण से भी नहीं बताया और आननफानन दूसरा फ्लैट तलाश कर लिया था और बगैर तरुण के आने का इंतजार किए ही फ्लैट बदल भी लिया था.

इस राज को अपने सीने में हमेशा के लिए दफन कर लिया था मिसेज मेहता ने. पर आज, तरुण की बातें सुन कर उन के घाव हरे हो गए थे और दर्द भी उभर आया था. पर वे चुप नहीं रहेंगी. उन्होंने आंसू पोछे और तरूण के सामने जा कर खड़ी हो गईं.

““अगर माधवी का रेप हो गया तो क्या वह जूठी हो गई? क्या वह अब माधवी नहीं रही?” मां तेज सांसें ले रही थीं.

““हां मां, भला मैं अपनेआप को ही किसी की जूठन क्यों खिलाऊं?” लापरवाही दिखा रहा था तरुण.

““पर भला इस में माधवी का क्या दोष है?”

““हो सकता है मां. पर ये सब बातें फिल्मों में ही अच्छी लगती हैं. मैं जानबूझ कर तो मक्खी नहीं निगल सकता न.””

““पर दोष तो उन लोगों का है जो इस घृणित कृत्य के लिए जिम्मेदार हैं, न कि माधवी का.””

मां और तरुण में बहस जारी थी. मां लगातार तरूण को समझाने की कोशिश कर रही थीं. पर तरुण की अपनी ही दलीलें थीं. काफी देर बाद भी जब तरुण टस से मस न हुआ तब मां ने उसे वह राज बताना जरूरी समझ लिया था जो अभी तक छिपाए रखा था.

““और अगर किसी ने तेरी बहन आलिया का बलात्कार किया हो तो क्या तब भी तेरी बातों में ऐसी ही कड़वाहट रहेगी? ”

““क्या मतलब है आप का, मां?”

““मतलब साफ है. आलिया का रेप हमारे फ्लैट के पड़ोस में रहने वाले उस 55 साल के बूढ़े ने किया और तब से आलिया किसी के साथ भी सहज नहीं हो पाती और गुमसुम रहती है. तुम्हें समझ नहीं आता वह इतनी चुप क्यों रहती है? अब क्या इस में आलिया का दोष था? क्या हम आलिया को सिर्फ इस बात के लिए छोड़ दें कि वह किसी पुरुष की वहशी मानसिकता का शिकार हो चुकी है?” ”मां लगातार बोलते जा रही थीं. इस समय वे सिर्फ तरुण की मां नहीं थीं बल्कि उन तमाम औरतों का प्रतिनिधित्व कर रही थीं जो बलात्कार का शिकार होती हैं.

तरुण कोने में खड़ी आलिया की तरफ बढ़ा. आलिया की आंखों से आंसू बह रहे थे. तरुण को आता देख वह झट से कमरे में घुस गई और भड़ाक से दरवाजा बंद कर लिया.

तरुण कभी रोती हुई मां की तरफ देखता, तो कभी आलिया के कमरे के बंद दरवाजे की तरफ. उस के दिमाग में माधवी का चेहरा घूमने लगा था.

अगले दिन शाम को बैंक से तरुण का फोन आया, ““मां मुझे आने में देर हो जाएगी. आज मैं और माधवी मैरिज प्लानर के पास जा रहे हैं अपनी शादी की तैयारी के लिए.

Hindi Kahaniyan : मुरदा – क्यों लावारिस थी वह लाश

Hindi Kahaniyan : भीड़ में से कोई चिल्लाया, ‘अरे जल्दी बुलाओ… 108 नंबर डायल करो… यह तो मर जाएगा…’

कुछ लोग वहां इकट्ठा हो गए थे. मैं ने अपनी गाड़ी के ब्रेक लगाए और लोगों से भीड़ की वजह पूछी, तो पता चला कि मामला सड़क हादसे का है.

मैं भी गाड़ी से उतर कर भीड़ में घुस कर देखने लगा. तकरीबन 50-55 साल का एक आदमी बुरी तरह घायल सड़क पर पड़ा तड़प रहा था.

लोग कह रहे थे कि वह कोई गरीब आदमी है, जो कुछ दिनों से इस इलाके में घूम रहा था. कोई कार वाला उसे टक्कर मार कर चला गया.

सब लोग इधरउधर की बातें कर रहे थे, पर जमीन पर पड़े उस आदमी के हक में कुछ भी नहीं हो रहा था. न अभी तक कोई एंबुलैस वहां आई थी, न ही पुलिस.

मैं ने फोन कर के पुलिस को बुलाया. हादसा हुए तकरीबन आधा घंटा बीत चुका था और उस आदमी का शरीर बेदम हुआ जा रहा था.

तभी सायरन बजाती एंबुलैंस वहां आ पहुंची और उसे अस्पताल ले जाने का इंतजाम हो गया.

एंबुलैंस में बैठे मुलाजिम ने किसी एक आदमी को उस घायल आदमी के साथ चलने के लिए कहा, लेकिन साथ जाने के लिए कोई तैयार न हुआ.

मुझे भी एक जरूरी मीटिंग में जाना था. उधर मन जज्बाती हुआ जा रहा था. मैं पसोपेश में था. मीटिंग में नहीं जाता, तो मुझे बहुत नुकसान होने वाला था. पर उस बेचारे आदमी के साथ नहीं जाता, तो बड़ा अफसोस रहता.

मैं ने मीटिंग में जाने का फैसला किया ही था कि पुलिस इंस्पैक्टर, जो मेरी ही दी गई खबर पर वहां पहुंचा था, ने मुझ से अस्पताल और थाने तक चलने की गुजारिश की. मुझ से टाला न गया. मैं ने अपनी गाड़ी वहीं खड़ी की और एंबुलैंस में बैठ गया.

अस्पताल पहुंचतेपहुंचते उस आदमी की मौत हो गई थी.

मरने वाले के हुलिएपहनावे से उस के धर्म का पता लगाना मुश्किल था. बढ़ी हुई दाढ़ी… दुबलापतला शरीर… थकाबुझा चेहरा… बस, यही सब उस की पहचान थी. उस की जेब से भी ऐसा कुछ न मिला, जिस से उस का नामपता मालूम हो पाता. अलबत्ता, 20 रुपए का एक गला हुआ सा नोट जरूर था.

अस्पताल ने तो उस आदमी को लेने से ही मना कर दिया. पुलिस भी अपनी जान छुड़ाना चाहती थी.

इंस्पैक्टर ने मेरी ओर देखते हुए कहा, ‘‘भाईसाहब, पंचनामा तो हम कर देते हैं, पर आप भी जानते हैं कि सरकारी इंतजाम में इस का अंतिम संस्कार करना कितना मुश्किल है. क्यों न आप ही अपने हाथों से यह पुण्य का काम लें और इस का अंतिम संस्कार करा दें?’’

‘‘क्यों नहीं… क्यों नहीं,’’ कहते हुए मैं ने हामी भर दी.

मन ही मन मैं ने इस काम पर आने वाले खर्च का ब्योरा भी तैयार कर लिया था. मेरे हिसाब से इस में कुछेक हजार रुपए का ही खर्चा था, जिसे मैं आसानी से उठा सकता था. सो, मैं इस काम के लिए तैयार हो गया.

इस तरह पुलिस और अस्पताल की जिम्मेदारी मैं ने अपने ही हाथों या कहें कि अपने कंधों पर डाल ली थी.

‘‘अब मुझे क्या करना होगा?’’ मैं ने इंस्पैक्टर से पूछा.

इंस्पैक्टर ने कहा कि मैं इस मुरदा शरीर को श्मशान घाट ले जाऊं. उन्होंने मुझे एक फोन नंबर भी दिया, जिस पर मैं ने बात की और यह सोच कर निश्चिंत हो गया कि अब सब जल्दी ही निबट जाएगा.

मेरे कहने पर ड्राइवर बताए हुए पते पर एंबुलैंस ले गया. श्मशान घाट पहुंचते ही मैं उस के संचालक से मिला और उस लाश के अंतिम संस्कार के लिए कहा.

पंचनामे में उस आदमी का कोई परिचय नहीं था, सिर्फ हुलिए का ही जिक्र था. संचालक ने मुझ से जब यह पूछा कि परची किस नाम से काटूं और कहा कि इस के आगे की जिम्मेदारी आप की होगी, तो मैं डर गया.

मैं ने उसे बताया, ‘‘यह मुरदा लावारिस है. मैं तो बस यह पुण्य का काम कर रहा हूं, ताकि इस की आत्मा को शांति मिल सके…’’

इस से आगे मैं कुछ बोलता, इस से पहले ही पीछे से आवाज आई, ‘‘भाई, यह लाश तो किसी मुसलिम की लगती है. इस की दाढ़ी है… इस का हुलिया कहता है कि यह मुसलिम है… इसे आग में जलाया नहीं जा सकता. बिना धर्म की पहचान किए हम यह काम नहीं करेंगे… आप इसे कब्रिस्तान ले जाइए.’’

यह बात सुनते ही वहां मौजूद तकरीबन सभी लोग एकराय हो गए.

समय बीतता जा रहा था. बहुत देर हो चुकी थी, इसलिए मैं ने भी उसे कब्रिस्तान ले जाना ही मुनासिब समझा.

मैं ने उन से कब्रिस्तान का पता पूछा और एंबुलैंस ड्राइवर से उस बेजान शरीर को नजदीक के कब्रिस्तान ले चलने को कहा.

मैं मन ही मन बहुत पछता रहा था. हर किसी ने इस मुसीबत से अपना पीछा छुड़ाया, फिर मैं ही क्यों यह बला मोल ले बैठा. खैर, अब ओखली में सिर दे ही दिया था, तो मूसल तो झेलना ही था.

कब्रिस्तान पहुंचते ही वहां मौजूद शख्स बोला, ‘‘पहले यह बताइए कि यह कौन सी मुसलिम बिरादरी का है? इस का नाम क्या है?’’

मैं सन्न था. यहां भी बिरादरी?

मैं ने उन्हें बताया, ‘‘मैं इन सब चीजों से नावाकिफ हूं और मेरा इस मुरदे से कोई वास्ता नहीं, सिवा इस के कि मैं इसे लावारिस नहीं छोड़ना चाहता.’’

पर इन सब बातों का उस आदमी पर कोई असर नहीं हुआ. मुझ से पीछा छुड़ाने के अंदाज में उस ने कहा, ‘‘भाईजान, मालूम हो कि यहां एक खास बिरादरी ही दफनाई जाती है, इसलिए पहले इस के बारे में मुकम्मल जानकारी हासिल कीजिए.’’

मैं ने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘यह मुरदा है और इसे मुसलिम बताया गया है. आप मेरी और इस बेजान की मदद कीजिए. आप को सवाब मिलेगा.’’

पर सवाब की चिंता किसे थी? उस आदमी ने लाश दफनाने से साफ मना कर दिया और इस तरह से एक बार फिर मुझे उस लाश को दूसरे कब्रिस्तान में ले जाने को मजबूर कर दिया गया.

इस बीच मुझे समाज की खेमेबाजी का चेहरा साफसाफ नजर आ गया था.

अब मैं दूसरे कब्रिस्तान पहुंच चुका था. वहां एक बुजुर्ग मिले. उन्हें मैं ने पूरा वाकिआ सुनाया. वे सभी बातें बड़े इतमीनान से सुन रहे थे और बस यही वह चीज थी, जो इस घड़ी मेरी हिम्मत बंधा रही थी, वरना रूह तो मेरी अब भी घबराई हुई थी.

जिस का डर था, वही हुआ. सबकुछ सुन कर आखिर में उन्होंने भी यही कहा, ‘‘मैं मजबूर हूं. अगर आदमी गैरमुसलिम हुआ और मेरे हाथों यह सुपुर्द ए खाक हो गया, तो यह मेरे लिए गुनाह होगा, इसलिए पहले मैं इस का शरीर जांच कर यह पुख्ता तो कर लूं कि यह मुसलिम है भी या नहीं.’’

उन्होंने जांच की और असहज हो कर मेरे पास आए. गहरी सांस छोड़ते हुए वे बोले, ‘‘माफी कीजिएगा जनाब, यह तो मुसलिम नहीं है.’’

उन के इन लफ्जों से मेरा सिर चकराने लगा था. एक तरफ रस्मों की कट्टरता पर गुस्सा आ रहा था, तो दूसरी तरफ अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार कर इस पुण्य कमाने की इच्छा पर मैं खूब पछता रहा था.

कितने आडंबर में जीते हैं हम. एक मरे हुए आदमी के धर्म के प्रति भी इतनी कट्टरता? काश, हम आम जिंदगी में ऐसे आदर्शों का लेशमात्र भी अपना पाते.

मैं थकान और गुस्से से भर चुका था. उस मुरदा शरीर के साथ मैं सीधा पुलिस स्टेशन पहुंचा और अपना गुस्सा उस इंस्पैक्टर के सामने उगल दिया, जिस ने मुझे तकरीबन फुसला कर यह जिम्मेदारी सौंपी थी.

इंस्पैक्टर ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोला, ‘‘एक ही दिन में थक गए आप? यहां तो यह हर रोज का तमाशा है. आप घर जाइए, इसे हम ही संभालेंगे.’’

मैं हैरान था कि यह खाकी वरदी सब्र और हिम्मत के रेशों से बनी है क्या? मैं माफी मांगते हुए वहां से विदा हुआ.

मैं अगले 2 दिन तक परेशान रहा कि उस लावारिस मुरदे का आखिर क्या हुआ होगा.

यह सोच कर मैं बेचैन होता रहा और तीसरे दिन फिर पुलिस स्टेशन पहुंच गया.

इंस्पैक्टर साहब मुझे देखते ही पहचान गए. शायद वे मेरी हालत और मेरी जरूरत समझ गए थे. उन्होंने अपने सिपाही की तरफ इशारा किया, ‘‘आप इन से जानकारी ले सकते हैं.’’

सिपाही ने बताया कि वह लाश अस्पताल के मुरदाघर में रखवा दी गई थी. उस ने एक कागज भी दिया, जिसे दिखा कर मुझे अस्पताल के मुरदाघर में जाने की इजाजत मिली.

मुरदाघर पहुंचने पर मैं ने देखा कि वहां ऐसी कई लाशें रखी थीं. उन सब के बीच मुझे अपने लाए हुए उस मुरदे को पहचानने में जरा भी समय नहीं लगा.

बदबू से भरे उस धुंधलके में वह मुरदा अभी भी एक मैली सी चादर की ओट में लावारिस ही पड़ा था. सरकारी नियम के हिसाब से उस लाश का उसी दिन दाह संस्कार किया जाना था. मैं तो यह भी पूछने की हिम्मत न कर पाया कि उसे दफनाया जाएगा या जलाया जाएगा.

मैं ठगा सा अपनी गाड़ी की तरफ चला जा रहा था.

Moral Stories in Hindi : हवस की मारी – रेशमा और विजय की कहानी

Moral Stories in Hindi :  ‘‘श्यामाचरन, तुम मेरी दौलत देख कर हैरान रह जाओगे. मेरे पास सोनेचांदी के गहनों के अलावा बैंक में रुपया भरा पड़ा है. अगर मैं खुल कर खर्च करूं, तो भी आगे आने वाली पीढ़ी के लिए कम न होगा. तुम मेरी हैसियत का मुकाबला नहीं कर सकोगे, क्योंकि तुम्हारी कोई हैसियत ही नहीं है.’’ श्यामाचरन सिर नीचा किए मन ही मन मुसकराता रहा. वह सोचने लगा, ‘विवेक राय अचानक ऐसी बातें क्यों कह रहे हैं?’

‘‘श्यामाचरन, मैं चाहूं तो अपनी एकलौती बेटी रेशमा को सोनेचांदी के गहने से लाद कर किसी ऊंचे करोड़पति के यहां उस के लड़के से ब्याह दूं. लेकिन जानबूझ कर फटे बोरे में पैबंद लगा रहा हूं, क्योंकि तुम्हारा बेटा विजय मुझे पसंद आ गया है, जो अभी ग्रेजुएशन ही कर रहा है. ‘‘मेरी दूर तक पहुंच है. तुम्हारा बेटा जहां भी नौकरी करना चाहेगा, लगवा दूंगा. तुम तो उस की जिंदगीभर कोई मदद नहीं कर पाओगे. तुम जितना दहेज मांगोगे, उस से दोगुनातिगुना मिलेगा…’’

थोड़ी देर बाद कुछ सोच कर विवेक राय आगे बोले, ‘‘क्या सोचा है तुम ने श्यामाचरन? मेरी बेटी खूबसूरत है, पढ़ीलिखी है, जवान है. इस से बढ़ कर तुम्हारे बेटे को क्या चाहिए? ‘‘वैसे, मैं ने तुम्हारे बेटे को अभी तक देखा नहीं है. वह तो मेरा मुनीम राघव इतनी ज्यादा तारीफ करने लगा, इसलिए तुम को बुलाया.

‘‘मैं चाहूंगा कि 2-4 दिन बाद उसे यहां ले कर आओ. खुद मेरी बेटी को देखो और उसे भी दिखला दो. समझो, रिश्ता पक्का हो गया.’’ ‘‘आप बहुत बड़े आदमी हैं सेठजी. गाजियाबाद के बड़े कारोबारियों में आप का नाम है, जैसा मैं ने सुना. आप की तारीफ करूंगा कि आप ने मेरे बेटे को देखे बिना ही रिश्ता पक्का करने का फैसला कर लिया. पर मुझे अपने बेटे और पत्नी से भी सलाहमशवरा करने का मौका दें, तो मेहरबानी होगी.’’

‘‘जाइए, लेकिन मना मत कीजिएगा. मेरी ओर से 2 हजार रुपए का नजराना लेते जाइए,’’ विजय राय कुटिल हंसी हंस दिए. बिंदकी गांव पहुंच कर श्यामाचरन ने विवेक राय की लच्छेदार बातें अपनी पत्नी सत्यवती को सुनाईं. वह बहुत खुश हुई, मानो उस के छोटे से मामूली मकान में पैसों की बरसात अचानक होने वाली हो.

जब सत्यवती ने अपने बेटे विजय के मन को टटोलना चाहा, तो वह

बिगड़ गया. ‘‘पैसे के लालच ने आप को इतना मजबूर कर दिया कि आप मेरी पढ़ाई बंद कराने पर उतारू हो गए. पढ़ाई पूरी करने के बाद मेरी जो कमाई होगी, उस पर पूरा हक आप का ही तो होगा. आप के लिए जल्दी दुलहन ला कर मैं अपना भविष्य खराब नहीं करना चाहूंगा,’’ विजय ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा.

‘‘इतने पैसे वाले आदमी की एकलौती बेटी तुम्हें ढूंढ़ने पर भी नहीं मिलेगी. तुम मुझे सौतेली मां समझते रहो, लेकिन मैं तो तुम्हें अपने छोटे लड़के राजू और बेटी लीला से भी ज्यादा समझती हूं. ‘‘तुम्हारा गरीब बाप मुझे एक अच्छी साड़ी नहीं खरीद सका, सोने की जंजीर नहीं दे सका. खाने के लाले पड़े रहते हैं. तुम्हारी पढ़ाई में ही सारा पैसा खर्च कर देता रहा है. कभी सोचा है कि मैं घर कैसे चला रही हूं. अमीर की बेटी यहां आ कर सोना बरसाएगी, तो सभी का भला हो जाएगा,’’ सत्यवती ने विजय को समझाया.

श्यामाचरन की पहली औरत मर चुकी थी. उस ने दूसरी शादी सत्यवती से रचाई थी, जिस से 2 बच्चे हुए थे. ‘‘बेटा, एक बार चल कर उस लड़की को देख तो लो. पसंद आए, तो हां कर देना.

‘‘मैं विवेक राय के यहां रिश्ता मांगने नहीं गया था, बल्कि उन्होंने खुद बुलाया था. अगर उन की लड़की हमारी बहू बनने लायक है, तो घर में आने वाली लक्ष्मी को ठुकराया नहीं जाता,’’ श्यामाचरन ने अपने बेटे विजय को समझाते हुए कहा. ‘‘आप लोग समझते क्यों नहीं? मेरी पढ़ाई रुक जाएगी, तब क्या होगा. आजकल नौकरी भी इतनी जल्दी नहीं मिलती. आप को धनदौलत मिली, तो कितने दिन तक उसे इस्तेमाल कर पाएंगे? हर मांबाप लड़की को अपने घर से जल्दी निकालना चाहते हैं, इसलिए हम गरीब लोगों के पल्ले बांध कर वे भी फुरसत पा लेना चाहते होंगे.’’

‘‘उन के पास काफी पैसा है. अकेली लड़की है. सबकुछ तुम्हें ही मिलेगा, जिंदगीभर मौज से रहना.’’ ‘‘शादी के बाद अगर कल को उन्होंने मुझे घरजमाई बना कर रखना चाहा, तो क्या आप उम्मीद करते हैं कि उन का पैसा यहां पहुंच पाएगा? मुझे उन के यहां गुलाम बन कर रहना पड़ेगा, जो मैं कभी पसंद नहीं करूंगा.’’

‘‘ये सब बातें छोड़ो. ऐसा कुछ नहीं होगा. वे तुम्हारी तारीफ सुन कर, फोटो देखते ही शादी करने को तैयार हो गए.’’ ‘‘आगे उन की क्या मंसा है आप नहीं जानते. कोई लड़की वाला आज के जमाने में इस तरह अपनी बेटी किसी गरीब घराने में देने को तैयार नहीं हो जाता. मुमकिन है, इस के पीछे उन की कोई चाल हो.

‘‘शायद लड़की बुरे चरित्र की हो, जिसे जल्दी से जल्दी घर से निकालना चाहते हों. आप को पहले उन सब बातों का पता लगा लेना चाहिए.’’ ‘‘बेटा, मैं सब समझता हूं. विवेक राय मुंहमांगा दहेज देंगे, ऐसा रिश्ता मैं मना नहीं कर सकता.’’

‘‘आप जिद करेंगे, तो मैं इस घर को छोड़ कर कहीं और चला जाऊंगा,’’ गुस्से में विजय बोला. ‘‘तो तुम भी कान खोल कर सुन लो. अगर तुम ने ऐसा किया, तो मैं भी आत्महत्या कर लूंगा,’’ कहते हुए श्यामाचरन रोने लगे.

आखिरकार विजय को झुकना पड़ा. गाजियाबाद में विजय अपने पिता के साथ जा कर विवेक राय की बेटी रेशमा को देखने के लिए राजी हो गया. सच में श्यामाचरन पैसों का लालची था. उस ने रेशमा के बारे में किसी के द्वारा पूरी जानकारी हासिल करना जरूरी नहीं समझा.

सत्यवती ने भी अपने सौतेले बेटे विजय के भविष्य के बारे में सोचना जरूरी नहीं समझा. वह तो चाहती थी कि जल्द से जल्द उस के यहां छप्पर फाड़ कर रुपया बरसे, लड़की जैसी भी हो, उस से सरोकार नहीं. फिर भी उस के मन में शंका बनी थी कि बिना किसी ऐब के एक रईस अपनी बेटी को इतनी जल्दी गरीब घराने में शादी के लिए दबाव क्यों डालने लगा था? फिर उस ने सोचा, उसे लड़की से क्या लेनादेना, उसे तो गहने, धनदौलत से मतलब रहेगा, जिसे पा कर वह खुद राज करेगी. विवेक राय ने श्यामाचरन को यह भी बतला दिया था कि उन के पास केवल दौलत ही नहीं, बल्कि सत्ता की ताकत भी है. कई बड़े सरकारी अफसर, नेता, मंत्री और विधायकों से भी याराना है, जिस की वजह से उस का शहर में दबदबा है.

उन्होंने यह भी भरोसा दिलाया कि विजय को दामाद बनाते ही उसे अच्छी नौकरी दिलवा देंगे. विवेक राय चरित्रहीन था. उस ने 4 शादियां की थीं. पहली पत्नी से रेशमा हुई थी. जब रेशमा 4 साल की हुई, तो उस की मां मर गई. उस के बाद धीरेधीरे विवेक राय ने 3 शादियां और की थीं. पर वे तीनों ही संदिग्ध हालात में मर गई थीं.

रेशमा को उन तीनों की मौत के बारे में भनक थी, पर जान कर भी वह अनजान बनी रही और दब कर रहने की आदी हो चुकी थी. विवेक राय की सब से बड़ी कमजोरी बाजारू औरतें और शराब की लत थी. जब विवेक राय पर नशे का जुनून सवार हो जाता, तो वे भूखे भेडि़ए की तरह औरत पर टूट पड़ते और दरिंदे की तरह रौंद डालते.

विजय ने रेशमा को देखा. वह बहुत खूबसूरत थी. सजा कर बापबेटे के सामने ला कर बैठा दी गई थी. गले में मोतियों की माला, नाक में हीरे की नथ, बालों में जूही के फूल. उस खूबसूरती को देख कर विजय ठगा सा रह गया. रेशमा ने भी अपनी चितचोर निगाहों से विजय को देखा. वह रेशमा के मन को भा गया. लेकिन एक बार भी उस के होंठों पर मुसकराहट नहीं आई, जैसे वह किन्हीं खयालों में खोई थी.

विजय के कुछ पूछने पर सिर झुका देती, मानो उस में लाजशर्म हो. विवेक राय ने दोनों की भावनाओं को समझा. नाश्तापानी होने के बाद श्यामाचरन और विजय को एक महीने के अंदर रेशमा से शादी करने को विवेक राय मजबूर करते रहे कि वे लोग बरात ले कर गाजियाबाद में फलां तारीख की अमुक जगह पर पहुंच जाएं.

उसी समय विवेक राय ने 50 हजार रुपए श्यामाचरन के हाथ में नजराने की रस्म अदा कर दी और भरोसा दिलाया कि उन्हें मुंहमांगी कीमत मिलेगी. घर लौटने पर विजय ने शादी करने से मना कर दिया, लेकिन पिता की धमकी और जोर डालने पर उसे मजबूर होना पड़ा.

तय समय पर कुछ लोगों के साथ श्यामाचरन अपने बेटे विजय को दूल्हा बना कर बरात गाजियाबाद ले जाना पड़ा. वहां आलीशान होटल में उन लोगों के ठहरने का इंतजाम किया गया था. बरात की शोभा बढ़ाने के लिए उन्हीं की ओर से इंतजाम किया गया था, क्योंकि विवेक राय शहर के रुतबेदार शख्स थे. देखने वाले यह न समझें कि बेटी का रिश्ता ऐसेवैसे घर में जोड़ा था. बरात धूमधाम से उन के घर के पास पहुंची.

दुलहन की तरह उन की बड़ी सी कोठी को बिजली की तमाम रोशनी द्वारा सजाया गया था. शहनाइयों की आवाज गूंज रही थी, बड़ेबड़े लोग, नातेरिश्तेदार, विधायक, मंत्री और शहर के जानेमाने लोग वहां मौजूद थे. रेशमा को कमरे के अंदर बैठाया गया था. वह लाल सुर्ख लहंगे, दुपट्टे और गहनों से सजाई गई थी. सहेलियां तारीफ करते छेड़छाड़ कर रही थीं, पर वह शांत और गंभीर थी. शहनाई की आवाज मानो उस के दिल पर हथौड़े की तरह चोट कर रहे थे.

शादी के बाद तीसरे दिन बरात वापस लौटी. कीमती तोहफे, घरेलू सामान और दूसरी चीजों से कई बक्से भरे थे, जिसे देख कर नातेरिश्तेदार खुशी से सराबोर हो गए. बहू का भव्य स्वागत किया गया. रातभर के जागे दूल्हादुलहन थके थे, इसलिए दोनों को अलगअलग कमरों में आराम करने के लिए घरेलू रस्मअदाई के बाद छोड़ दिया गया. शाम तक दूसरे रिश्तेदार भी चले गए.

सुहागरात मनाने के लिए रेशमा को सजा कर पलंग पर बैठाया गया था. विजय कमरे में आया. उस ने अपनी लुभावनी बातों से रेशमा को खुश करना चाहा, हथेली सहलाई, अपने पास खींचना चाहा, तो उस ने मना किया. कई बार उस के छेड़ने पर रेशमा उस से कटती रही, उस की आंखों से आंसू निकलते देख विजय ने सोचा कि पिता की एकलौती औलाद है, उसे पिता से बिछुड़ने की पीड़ा सता रही होगी, क्योंकि उस की मां न थी. बड़े लाड़प्यार से पिता ने पालापोसा और मांबाप दोनों का फर्ज अदा किया था. बहुत पूछने पर रेशमा ने बतलाया कि उसे पीरियड आ रहा है. कुछ रोज तक रेशमा उस की मंसा पूरी नहीं कर सकेगी.

चौथे दिन विवेक राय का मुनीम बड़ी कार ले कर यह बतलाने पहुंचा कि रेशमा के पिता की हालत एकाएक बेटी के चले जाने से खराब हो गई. वे बेटी को देखना चाहते हैं. रेशमा की विदाई कर दी जाए. मजबूरी में बिना सुहागरात मनाए रेशमा को विदा करना पड़ा. विजय ने साथ जाना चाहा, तो मुनीम ने यह समझाते हुए मना कर दिया कि पहली बार उन्हें ससुराल में इज्जत के साथ बुलाया जाएगा.

एक महीने से ज्यादा हो चुका था. रेशमा को वापस भेजने के लिए श्यामाचरन गुजारिश करते रहे, पर विवेक राय ने अपनी बीमारी की बात कह कर मना कर दिया.

डेढ़ महीने बाद विवेक राय खुद अपनी कार से रेशमा को ले कर श्यामाचरन के यहां आए और बेटी को छोड़ कर चले गए. डेढ़ महीने बाद फिर वही सुहागरात आई, तो दोनों के मिलन के लिए कमरा सजाया गया. रेशमा घुटनों में सिर छिपाए सेज पर बैठी रही. उस की आंखों से झरझर आंसू गिर रहे थे. विजय के पूछने पर उस ने कुछ नहीं बताया, बस रोती ही रही.

इतने दिनों बाद पहली सुहागरात को विजय को रेशमा का बरताव बड़ा अटपटा सा लगा. उसे ऐसी उम्मीद जरा भी न थी. पहले सोचा कि रेशमा को अपने घर वालों से दूर होने का दुख सता रहा होगा, इसलिए याद कर के रोती होगी, कुछ देर बाद सामान्य हो जाएगी, पर वह नहीं हुई. जब रेशमा विजय की छेड़खानी से भी नहीं पिघली, तो उस ने पूछा, ‘‘रेशमा, सचसच बताओ, क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं हूं? अगर तुम्हें मेरे साथ सहयोग नहीं करना था, तो शादी क्यों की? पति होने के नाते अब मेरा तुम पर हक है कि तुम्हें खुश रख कर खुद भी खुश रह सकूं.’’

रेशमा के जवाब न देने पर विजय ने फिर पूछा, ‘‘रेशमा, डेढ़ महीने तुम्हारे तन से मिलने के लिए बेताबी से इंतजार करता रहा है. आज वह समय आया, तो तुम निराश करने लगी. सब्र की भी एक सीमा होती है, ऐसी शादी से क्या फायदा कि पतिपत्नी बिना वजह एकदूसरे से अलग हो कर रहें,’’ कहते हुए विजय ने रेशमा को अपनी बांहों में कस लिया और चूमने लगा. रेशमा कसमसाई और खुद को उस से अलग कर लिया. लेकिन जब विजय उसे बारबार परेशान करने लगा, तो वह चीख मार कर रो पड़ी.

‘‘आप मुझे परेशान मत कीजिए. मैं आप के काबिल नहीं हूं. मेरे दिल में जो पीड़ा दबी है, उसे दबी रहने दीजिए. मुझे इस घर में केवल दासी बन कर जीने दीजिए, नहीं तो मैं खुदकुशी कर लूंगी.’’ ‘‘खुदकुशी करना मानो एक रिवाज सा हो गया है. मैं शादी नहीं करना चाहता था, तो मेरे बाप ने खुदकुशी करने की धमकी देते हुए मुझे शादी करने को मजबूर कर दिया. शादी करने के बाद मेरी औरत भी खुदकुशी करने की बात करने लगी. अच्छा तो यही होगा कि सब की चाहत पूरी करने के लिए मैं ही कल सब के सामने खुदकुशी कर लूं.’’

‘‘नहीं… नहीं, आप ऐसा नहीं कर सकते. आप इस घर के चिराग हैं… पर आप मुझे मजबूर मत कीजिए. मैं आप के काबिल नहीं रह गई हूं. मुझे अपनों ने ही लूट लिया. मैं उस मुरझाए फूल की तरह हूं, जो आप जैसे अच्छे इनसान के गले का हार नहीं बन सकती. ‘‘मैं आप को अपने इस पापी शरीर के छूने की इजाजत नहीं दे सकती, क्योंकि इस शरीर में पाप का जहर भरा जा चुका है. मैं आप को कैसे बताऊं कि मेरे साथ जो घटना घटी, वह शायद दुनिया की किसी बेटी के साथ नहीं हुई होगी.

‘‘ऐसी शर्मनाक घटना को बताने से पहले मैं मर जाना बेहतर समझूंगी. मुझे मरने भी नहीं दिया गया. 2 बार खुदकुशी करने की कोशिश की, पर बचा ली गई, मानो मौत भी मुझे जीने के लिए तड़पाती छोड़ गई. ‘‘उफ, कितना बुरा दिन था वह, जब मैं आजाद हो कर अंगड़ाई भी न ले

सकी और किसी की बदनीयती का शिकार बन गई.’’ इतना कह कर रेशमा देर तक रोती रही. विजय ने उसे रोने से नहीं रोका. अपनी आपबीती सुनातेसुनाते वह पलंग पर ही बेहोश हो कर गिर पड़ी.

विजय ने रेशमा के मुंह पर पानी के छींटे मारे. उसे होश आया, तो वह उठ बैठी. ‘‘मेरी आपबीती सुन कर आप को दुख पहुंचा. मुझे माफ कर दीजिए,’’ कह कर रेशमा गिड़गिड़ाई.

‘‘तुम ने जो बताया, उस से यह साफ नहीं हुआ कि किस ने तुम पर जुल्म किया? ‘‘अच्छा होगा, तुम उस का खुलासा कर दो, तो तुम्हें सुकून मिलेगा.

‘‘लो, एक गिलास पानी पी लो. तुम्हारा गला सूख गया है, फिर अपनी आपबीती मुझे सुना दो. भरोसा रखो, मैं बुरा नहीं मानूंगा.’’ विजय के कहने पर आंखें पोंछती हुई रेशमा अपनी आपबीती सुनाने को मजबूर हो गई.

‘‘मेरे पिता मेरी मां को बहुत प्यार करते थे. मां की अचानक मौत से वे इतने दुखी हुए कि उन्होंने खूब शराब पीनी शुरू कर दी. मैं बड़ी होने लगी थी, मुझ में अच्छेबुरे की समझ भी आने लगी थी. ‘‘पिता ने एक के बाद एक 4 शादियां कर डालीं. पहली 2 बीवियों को वे अपने दोस्तों को सौंपते रहे, जिस से तंग आ कर उन्होंने नदी में डूब कर जिंदगी खत्म कर ली.

‘‘तीसरी से शादी रचा कर उस के साथ भी वही बुरा काम वे करते रहे. उस ने बहुत समझाया, पर पिता नहीं माने. ‘‘एक दिन उस ने भी अपने मायके में जा कर खुदकुशी कर ली.

‘‘मेरे पिता पर उन की खुदकुशी करने का कोई असर नहीं पड़ा. पैसे के बल पर उन के खिलाफ कोई केस नहीं बन पाया. ‘‘चौथी औरत इतनी खूबसूरत थी कि अपने प्रेमभाव से मेरे पिता को वश में करते हुए उन की बुरी आदतें कई महीने तक छुड़ा दीं. तब मैं 15 साल की उम्र पार कर चुकी थी.

‘‘चौथी मां भी मुझे अपनी सगी बेटी की तरह प्यार करती थी. 3 साल तक वह मुझे पालती रही, लेकिन उसे कोई ऐसी खतरनाक बीमारी लगी कि मर गई. ‘‘मेरे जल्लाद पिता फिर से शराब पीने लगे, बाजारू औरतों को घर में बुला कर ऐयाशी करने लगे. मैं अकसर देखती, तो आंखें बंद कर लेती.

‘‘उन के दोस्त भी अकसर घर पर आ कर शराब पीते और औरतों से ऐश करते. उन की गिद्ध जैसी नजरें मुझे भी देखतीं, मानो मौका पाते ही वे मुझे भी नहीं छोड़ेंगे. ‘‘मैं उन से दूर रहती थी. उन से बचने के लिए अकसर रात को अपनी सहेलियों के यहां सो जाती थी.

‘‘एक दिन मेरे पिता नशे में चूर किसी नाचगाने वाली के यहां से लौटे थे. उन की निगाह मुझ पर पड़ी. मैं मैक्सी पहने सो रही थी. शायद मेरा कपड़ा कुछ ज्यादा ही ऊपर तक खिसक गया था. ‘‘नशे में चूर वे अपने खून की ममता भूल गए और मेरे पलंग पर आ बैठे. छेड़ते हुए मेरे जिस्म को सहलाने लगे.

‘‘मेरी नींद खुली, तो वे बोले, ‘लेटी रहो. बिलकुल अपनी मां की सूरत पाई है तुम ने, कोई फर्क नहीं. उस की याद आ गई, तो तुम्हें गौर से देखने लगा.’ ‘‘उस के बाद मैं ने बहुत हाथपैर पटके, पर वे नहीं माने. उन्होंने मुझे अपनी हवस का शिकार बना डाला. मैं बहुत रोई, लेकिन उन पर कोई असर नहीं पड़ा.

‘‘उस दिन के बाद से वे अकसर मेरे साथ वही कुकर्म करते रहे. मैं उन के खिलाफ किस से क्या फरियाद करती. 2 बार खुदकुशी करने की कोशिश की, पर बचा ली गई.’’ इतना कह कर रेशमा रोने लगी. विजय चाहता था कि उस के रो लेने से उस का मन शांत हो जाएगा. सालों की आग जो दिल में छिपाए उसे तपा रही थी, आंसू बन कर निकल जाएगी.

‘‘मेरी शादी आप के यहां इसलिए खूब दहेज दे कर कर दी गई, जिस से सब का मुंह बंद रहेगा. मुझे शादी के चौथे दिन बाद उस पिता ने बुलवा लिया. उस का पाप मेरी कोख में पलने लगा था. अगर उजागर हो जाता, तो उस की बदनामी होती. मेरा पेट गिरवा दिया गया. डेढ़ महीने बाद ठीक हुई, तो मुझ फिर यहां पटका गया, ताकि जिंदगीभर उस कलंक को छिपा कर रखूं. ‘‘मैं नहीं चाहती कि मेरे इस पाप की छाया आप जैसे अच्छे इनसान पर पड़े. आप मुझे दासी समझ कर यहां पड़ी रहने दीजिए.

‘‘अगर आप ने मुझे घर से निकाल दिया, तो मेरे पिता आप को और आप के घर वालों पर मुकदमा चला कर परेशान कर डालेंगे. आप चुपचाप दूसरी शादी कर लें, मेरे पिता आप लोगों के खिलाफ कुछ नहीं कर पाएंगे. जब मैं चुप रहूंगी, तो कोई कोर्ट मेरे पिता की आवाज नहीं सुनेगा,’’ इतना कह कर रेशमा विजय के पैरों पर गिर पड़ी. ‘‘तुम ने अपनी आपबीती बता कर अपने मन को हलका कर लिया. समझ लो कि तुम्हारे साथ अनजाने में जो हुआ, वह एक डरावना सपना था.

‘‘मैं तुम्हारे दर्द को महसूस करता हूं. उठो, रेशमा उठो, तुम ने कोई पाप नहीं किया. तुम्हारी जगह मेरे दिल में है. तुम्हारी चुनरी का दाग मिट गया. ‘‘आज से तुम्हारी जिंदगी का नया सवेरा शुरू हुआ, जो अंत तक सुखी रखेगा,’’ कहते हुए विजय ने उसे उठाया, उस की आंखें पोंछीं और सीने से लगा लिया.

रेशमा भी विजय का प्यार पा कर निहाल हो गई.

लेखक- कुंवर गुलाब सिंह

Hindi Moral Tales : एक और बलात्कारी – रूपा के बारे में क्या सोच रहा था सुमेर सिंह

Hindi Moral Tales : रूपा पगडंडी के रास्ते से हो कर अपने घर की ओर लौट रही थी. उस के सिर पर घास का एक बड़ा गट्ठर भी था. उस के पैरों की पायल की ‘छनछन’ दूर खड़े बिरजू के कानों में गूंजी, तो वह पेड़ की छाया छोड़ उस पगडंडी को देखने लगा.

रूपा को पास आता देख बिरजू के दिल की धड़कनें तेज हो गईं और उस का दिल उस से मिलने को मचलने लगा.

जब रूपा उस के पास आई, तो वह चट्टान की तरह उस के रास्ते में आ कर खड़ा हो गया.

‘‘बिरजू, हट मेरे रास्ते से. गाय को चारा देना है,’’ रूपा ने बिरजू को रास्ते से हटाते हुए कहा.

‘‘गाय को तो तू रोज चारा डालती है, पर मुझे तो तू घास तक नहीं डालती. तेरे बापू किसी ऐरेगैरे से शादी कर देंगे, इस से अच्छा है कि तू मुझ से शादी कर ले. रानी बना कर रखूंगा तुझे. तू सारा दिन काम करती रहती है, मुझे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘गांव में और भी कई लड़कियां हैं, तू उन से अपनी शादी की बात क्यों नहीं करता?’’

‘‘तू इतना भी नहीं समझती, मैं तो तुझ से प्यार करता हूं. फिर और किसी से अपनी शादी की बात क्यों करूं?’’

‘‘ये प्यारव्यार की बातें छोड़ो और मेरे रास्ते से हट जाओ, वरना घास का गट्ठर तुम्हारे ऊपर फेंक दूंगी,’’ इतना सुनते ही बिरजू एक तरफ हो लिया और रूपा अपने रास्ते बढ़ चली.

शाम को जब सुमेर सिंह की हवेली से रामदीन अपने घर लौट रहा था, तो वह अपने होश में नहीं था. गांव वालों ने रूपा को बताया कि उस का बापू नहर के पास शराब के नशे में चूर पड़ा है.

‘‘इस ने तो मेरा जीना हराम कर दिया है. मैं अभी इसे ठीक करती हूं,’’ रूपा की मां बड़बड़ाते हुए गई और थोड़ी देर में रामदीन को घर ला कर टूटीफूटी चारपाई पर पटक दिया और पास में ही चटाई बिछा कर सो गई.

सुबह होते ही रूपा की मां रामदीन पर भड़क उठी, ‘‘रोज शराब के नशे में चूर रहते हो. सारा दिन सुमेर सिंह की मजदूरी करते हो और शाम होते ही शराब में डूब जाते हो. आखिर यह सब कब तक चलता रहेगा? रूपा भी सयानी होती जा रही है, उस की भी कोई चिंता है कि नहीं?’’

रामदीन चुपचाप उस की बातें सुनता रहा, फिर मुंह फेर कर लेट गया. रामदीन कई महीनों से सुमेर सिंह के पास मजदूरी का काम करता था. खेतों की रखवाली करना और बागबगीचों में पानी देना उस का रोज का काम था.

दरअसल, कुछ महीने पहले रामदीन का छोटा बेटा निमोनिया का शिकार हो गया था. पूरा शरीर पीला पड़ चुका था. गरीबी और तंगहाली के चलते वह उस का सही इलाज नहीं करा पा रहा था. एक दिन उस के छोटे बेटे को दौरा पड़ा, तो रामदीन फौरन उसे अस्पताल ले गया.

डाक्टर ने उस से कहा कि बच्चे के शरीर में खून व पानी की कमी हो गई है. इस का तुरंत इलाज करना होगा. इस में 10 हजार रुपए तक का खर्चा आ सकता है.

किसी तरह उसे अस्पताल में भरती करा कर रामदीन पैसे जुटाने में लग गया. पासपड़ोस से मदद मांगी, पर किसी ने उस की मदद नहीं की.

आखिरकार वह सुमेर सिंह के पास पहुंचा और उस से मदद मांगी, ‘‘हुजूर, मेरा छोटा बेटा बहुत बीमार है. उसे निमोनिया हो गया था. मुझे अभी 10 हजार रुपए की जरूरत है. मैं मजदूरी कर के आप की पाईपाई चुका दूंगा. बस, आप मुझे अभी रुपए दे दीजिए.’’

‘‘मैं तुम्हें अभी रुपए दिए दे देता हूं, लेकिन अगर समय पर रुपए नहीं लौटा सके, तो मजदूरी की एक फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगा. बोलो, मंजूर है?’’

‘‘हां हुजूर, मुझे सब मंजूर है,’’ अपने बच्चे की जान की खातिर उस ने सबकुछ कबूल कर लिया.

पहले तो रामदीन कभीकभार ही अपनी थकावट दूर करने के लिए शराब पीता था, लेकिन सुमेर सिंह उसे रोज शराब के अड्डे पर ले जाता था और उसे मुफ्त में शराब पिलाता था. लेकिन अब तो शराब पीना एक आदत सी बन गई थी. शराब तो उसे मुफ्त में मिल जाती थी, लेकिन उस की मेहनत के पैसे सुमेर सिंह हजम कर जाता था. इस से उस के घर में गरीबी और तंगहाली और भी बढ़ती गई.

रामदीन शराब के नशे में यह भी भूल जाता था कि उस के ऊपर कितनी जिम्मेदारियां हैं. दिन पर दिन उस पर कर्ज भी बढ़ता जा रहा था. इस तरह कई महीने बीत गए. जब रामदीन ज्यादा नशे में होता, तो रूपा ही सुमेर सिंह का काम निबटा देती.

एक सुबह रामदीन सुमेर सिंह के पास पहुंचा, तो सुमेर सिंह ने हुक्का गुड़गुड़ाते हुए कहा, ‘‘रामदीन, आज तुम हमारे पास बैठो. हमें तुम से कुछ जरूरी बात करनी है.’’

‘‘हुजूर, आज कुछ खास काम है क्या?’’ रामदीन कहते हुए उस के पास बैठ गए.

‘‘देखो रामदीन, आज मैं तुम से घुमाफिरा कर बात नहीं करूंगा. तुम ने मुझ से जो कर्जा लिया है, वह तुम मुझे कब तक लौटा रहे हो? दिन पर दिन ब्याज भी तो बढ़ता जा रहा है. कुलमिला कर अब तक 15 हजार रुपए से भी ज्यादा हो गए हैं.’’

‘‘मेरी माली हालत तो बदतर है. आप की ही गुलामी करता हूं हुजूर, आप ही बताइए कि मैं क्या करूं?’’

सुमेर सिंह हुक्का गुड़गुड़ाते हुए कुछ सोचने लगा. फिर बोला, ‘‘देख रामदीन, तू जितनी मेरी मजदूरी करता है, उस से कहीं ज्यादा शराब पी जाता है. फिर बीचबीच में तुझे राशनपानी देता ही रहता हूं. इस तरह तो तुम जिंदगीभर मेरा कर्जा उतार नहीं पाओगे, इसलिए मैं ने फैसला किया है कि अब अपनी जोरू को भी काम पर भेजना शुरू कर दे.’’

‘‘लेकिन हुजूर, मेरी जोरू यहां आ कर करेगी क्या?’’ रामदीन ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘मुझे एक नौकरानी की जरूरत है. सुबहशाम यहां झाड़ूपोंछा करेगी. घर के कपड़ेलत्ते साफ करेगी. उस के महीने के हजार रुपए दूंगा. उस में से 5 सौ रुपए काट कर हर महीने तेरा कर्जा वसूल करूंगा.

‘‘अगर तुम यह भी न कर सके, तो तुम मुझे जानते ही हो कि मैं जोरू और जमीन सबकुछ अपने कब्जे में ले लूंगा.’’

‘‘लेकिन हुजूर, मेरी जोरू पेट से है और उस की कमर में भी हमेशा दर्द रहता है.’’

‘‘बच्चे पैदा करना नहीं भूलते, पर मेरे पैसे देना जरूर भूल जाते हो. ठीक है, जोरू न सही, तू अपनी बड़ी बेटी रूपा को ही भेज देना.

‘‘रूपा सुबहशाम यहां झाड़ूपोंछा करेगी और दोपहर को हमारे खेतों से जानवरों के लिए चारा लाएगी. घर जा कर उसे सारे काम समझा देना. फिर दोबारा तुझे ऐसा मौका नहीं दूंगा.’’

अब रामदीन को ऐसा लगने लगा था, जैसे वह उस के भंवर में धंसता चला जा रहा है. सुमेर सिंह की शर्त न मानने के अलावा उस के पास कोई चारा भी नहीं बचा था.

शाम को रामदीन अपने घर लौटा, तो उस ने सुमेर सिंह की सारी बातें अपने बीवीबच्चों को सुनाईं.

यह सुन कर बीवी भड़क उठी, ‘‘रूपा सुमेर सिंह की हवेली पर बिलकुल नहीं जाएगी. आप तो जानते ही हैं. वह पहले भी कई औरतों की इज्जत के साथ खिलवाड़ कर चुका है. मैं खुद सुमेर सिंह की हवेली पर जाऊंगी.’’

‘‘नहीं मां, तुम ऐसी हालत में कहीं नहीं जाओगी. जिंदगीभर की गुलामी से अच्छा है कि कुछ महीने उस की गुलामी कर के सारे कर्ज उतार दूं,’’ रूपा ने अपनी बेचैनी दिखाई.

दूसरे दिन से ही रूपा ने सुमेर सिंह की हवेली पर काम करना शुरू कर दिया. वह सुबहशाम उस की हवेली पर झाड़ूपोंछा करती और दोपहर में जानवरों के लिए चारा लाने चली जाती.

अब सुमेर सिंह की तिरछी निगाहें हमेशा रूपा पर ही होती थीं. उस की मदहोश कर देनी वाली जवानी सुमेर सिंह के सोए हुए शैतान को जगा रही थी. रूपा के सामने तो उस की अपनी बीवी उसे फीकी लगने लगी थी.

सुमेर सिंह की हवेली पर सारा दिन लोगों का जमावड़ा लगा रहता था, लेकिन शाम को उस की निगाहें रूपा पर ही टिकी होती थीं.

रूपा के जिस्म में गजब की फुरती थी. शाम को जल्दीजल्दी सारे काम निबटा कर अपने घर जाने के लिए तैयार रहती थी. लेकिन सुमेर सिंह देर शाम तक कुछ और छोटेमोटे कामों में उसे हमेशा उलझाए रखता था. एक दोपहर जब रूपा पगडंडी के रास्ते अपने गांव की ओर बढ़ रही थी, तभी उस के सामने बिरजू आ धमका. उसे देखते ही रूपा ने अपना मुंह फेर लिया.

बिरजू उस से कहने लगा, ‘‘मैं जब भी तेरे सामने आता हूं, तू अपना मुंह क्यों फेर लेती है?’’

‘‘तो मैं क्या करूं? तुम्हें सीने से लगा लूं? मैं तुम जैसे आवारागर्दों के मुंह नहीं लगना चाहती,’’ रूपा ने दोटूक जवाब दिया.

‘‘देख रूपा, तू भले ही मुझ से नफरत कर ले, लेकिन मैं तो तुझ को प्यार करता ही रहूंगा. आजकल तो मैं ने सुना है, तू ने सुमेर सिंह की हवेली पर काम करना शुरू कर दिया है. शायद तुझे सुमेर सिंह की हैवानियत के बारे में पता नहीं. वह बिलकुल अजगर की तरह है. वह कब शिकारी को अपने चंगुल में फंसा कर निगल जाए, यह किसी को पता नहीं.

‘‘मुझे तो अब यह भी डर सताने लगा है कि कहीं वह तुम्हें नौकरानी से रखैल न बना ले, इसलिए अभी भी कहता हूं, तू मुझ से शादी कर ले.’’ यह सुन कर रूपा का मन हुआ कि वह बिरजू को 2-4 झापड़ जड़ दे, पर फिर लगा कि कहीं न कहीं इस की बातों में सचाई भी हो सकती है.

रूपा पहले भी कई लोगों से सुमेर सिंह की हैवानियत के बारे में सुन चुकी थी. इस के बावजूद वह सुमेर सिंह की गुलामी के अलावा कर भी क्या सकती थी. इधर सुमेर सिंह रूपा की जवानी का रसपान करने के लिए बेचैन हो रहा था, लेकिन रूपा उस के झांसे में आसानी से आने वाली नहीं थी.

सुमेर सिंह के लिए रूपा कोई बड़ी मछली नहीं थी, जिस के लिए उसे जाल बुनना पड़े.

एक दिन सुमेर सिंह ने रूपा को अपने पास बुलाया और कहा, ‘‘देखो रूपा, तुम कई दिनों से मेरे यहां काम कर रही हो, लेकिन महीने के 5 सौ रुपए से मेरा कर्जा इतनी जल्दी उतरने वाला नहीं है, जितना तुम सोच रही हो. इस में तो कई साल लग सकते हैं.

‘‘मेरे पास एक सुझाव है. तुम अगर चाहो, तो कुछ ही दिनों में मेरा सारा कर्जा उतार सकती हो. तेरी उम्र अभी पढ़नेलिखने और कुछ करने की है, मेरी गुलामी करने की नहीं,’’ सुमेर सिंह के शब्दों में जैसे एक मीठा जहर था.

‘‘मैं आप की बात समझी नहीं?’’ रूपा ने सवालिया नजरों से उसे देखा.

सुमेर सिंह की निगाहें रूपा के जिस्म को भेदने लगीं. फिर वह कुछ सोच कर बोला, ‘‘मैं तुम से घुमाफिरा कर बात नहीं करूंगा. तुम्हें आज ही एक सौदा करना होगा. अगर तुम्हें मेरा सौदा मंजूर होगा, तो मैं तुम्हारा सारा कर्जा माफ कर दूंगा और इतना ही नहीं, तेरी शादी तक का खर्चा मैं ही दूंगा.’’

रूपा बोली, ‘‘मुझे क्या सौदा करना होगा?’’

‘‘बस, तू कुछ दिनों तक अपनी जवानी का रसपान मुझे करा दे. अगर तुम ने मेरी इच्छा पूरी की, तो मैं भी अपना वादा जरूर निभाऊंगा,’’ सुमेर सिंह के तीखे शब्दों ने जैसे रूपा के जिस्म में आग लगा दी थी.

‘‘आप को मेरे साथ ऐसी गंदी बातें करते हुए शर्म नहीं आई,’’ रूपा गुस्से में आते हुए बोली.

‘‘शर्म की बातें छोड़ और मेरा कहा मान ले. तू क्या समझती है, तेरा बापू तेरी शादी धूमधाम से कर पाएगा? कतई नहीं, क्योंकि तेरी शादी के लिए वह मुझ से ही उधार लेगा.

‘‘इस बार तो मैं तेरे पूरे परिवार को गुलाम बनाऊंगा. अगर ब्याह के बाद तू मदद के लिए दोबारा मेरे पास आई भी तो मैं तुझे रखैल तक नहीं बनाऊंगा. अच्छी तरह सोच ले. मैं तुझे इस बारे में सोचने के लिए कुछ दिन की मुहलत भी देता हूं. अगर इस के बावजूद भी तू ने मेरी बात नहीं मानी, तो मुझे दूसरा रास्ता भी अपनाना आता है.’’

सुमेर सिंह की कही गई हर बात रूपा के जिस्म में कांटों की तरह चुभती चली गई. सुमेर सिंह की नीयत का आभास तो उसे पहले से ही था, लेकिन वह इतना बदमाश भी हो सकता है, यह उसे बिलकुल नहीं पता था.

रूपा को अब बिरजू की बातें याद आने लगीं. अब उस के मन में बिरजू के लिए कोई शिकायत नहीं थी.

रूपा ने यह बात किसी को बताना ठीक नहीं समझा. रात को तो वह बिलकुल सो नहीं पाई. सारी रात अपने वजूद के बारे में ही वह सोचती रही.

रूपा को सुमेर सिंह की बातों पर तनिक भी भरोसा नहीं था. उसे इस बात की ज्यादा चिंता होने लगी थी कि अगर अपना तन उसे सौंप भी दिया, तो क्या वह भी अपना वादा पूरा करेगा? अगर ऐसा नहीं हुआ, तो अपना सबकुछ गंवा कर भी बदनामी के अलावा उसे कुछ नहीं मिलेगा.

इधर सुमेर सिंह भी रूपा की जवानी का रसपान करने के लिए उतावला हो रहा था. उसे तो बस रूपा की हां का इंतजार था. धीरेधीरे वक्त गुजर रहा था. लेकिन रूपा ने उसे अब तक कोई संकेत नहीं दिया था. सुमेर सिंह ने मन ही मन कुछ और सोच लिया था.

यह सोच कर रूपा की भी बेचैनी बढ़ती जा रही थी. उसे खुद को सुमेर सिंह से बचा पाना मुश्किल लग रहा था. एक दोपहर जब रूपा सुमेर सिंह के खेतों में जानवरों के लिए चारा लाने गई, तो सब से पहले उस की निगाहें बिरजू को तलाशने लगीं, पर बिरजू का कोई अतापता नहीं था. फिर वह अपने काम में लग गई. तभी किसी ने उस के मुंह पर पीछे से हाथ रख दिया.

रूपा को लगा शायद बिरजू होगा, लेकिन जब वह पीछे की ओर मुड़ी, तो दंग रह गई. वह कोई और नहीं, बल्कि सुमेर सिंह था. उस की आंखों में वासना की भूख नजर आ रही थी.

तभी सुमेर सिंह ने रूपा को अपनी मजबूत बांहों में जकड़ते हुए कहा, ‘‘हुं, आज तुझे मुझ से कोई बचाने वाला नहीं है. अब तेरा इंतजार भी करना बेकार है.’’

‘‘मैं तो बस आज रात आप के पास आने ही वाली थी. अभी आप मुझे छोड़ दीजिए, वरना मैं शोर मचाऊंगी,’’ रूपा ने उस के चंगुल से छूटने की नाकाम कोशिश की.

पर सुमेर सिंह के हौसले बुलंद थे. उस ने रूपा की एक न सुनी और घास की झाड़ी में उसे पूरी तरह से दबोच लिया.

रूपा ने उस से छूटने की भरपूर कोशिश की, पर रूपा की नाजुक कलाइयां उस के सामने कुछ खास कमाल न कर सकीं.

अब सुमेर सिंह का भारीभरकम बदन रूपा के जिस्म पर लोट रहा था, फिर धीरेधीरे उस ने रूपा के कपड़े फाड़ने शुरू किए.

जब रूपा ने शोर मचाने की कोशिश की, तो उस ने उस का मुंह उसी के दुपट्टे से बांध दिया, ताकि वह शोर भी न मचा सके.

अब तो रूपा पूरी तरह से सुमेर सिंह के शिकंजे में थी. वह आदमखोर की तरह उस पर झपट पड़ा. इस से पहले वह रूपा को अपनी हवस का शिकार बना पाता, तभी किसी ने उस के सिर पर किसी मजबूत डंडे से ताबड़तोड़ वार करना शुरू कर दिया. कुछ ही देर में वह ढेर हो गया.

रूपा ने जब गौर से देखा, तो वह कोई और नहीं, बल्कि बिरजू था. तभी वह उठ खड़ी हुई और बिरजू से लिपट गई. उस की आंखों में एक जीत नजर आ रही थी.

बिरजू ने उसे हौसला दिया और कहा, ‘‘तुम्हें अब डरने की कोई जरूरत नहीं है. मैं इसी तरह तेरी हिफाजत जिंदगीभर करता रहूंगा.’’ रूपा ने बिरजू का हाथ थाम लिया और अपने गांव की ओर चल दी.

लेखक- मनोज मांझी भुईयां

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