मां-बाप की लड़ाई में पिसते बच्चे

“आज  फिर मम्मी-पापा में लड़ाई शुरू हो गई.  पता नहीं किस बात पर पापा चिल्लाने लगें, तो मम्मी ने बर्तन उठाकर नीचे फेंक दिया और दोनों चिल्लाने लगें. पापा कहने लगें मम्मी की गलती है और मम्मी पापा पर इल्जाम लगाने लगी. मैं बहुत डर गई, क्योंकि पापा मम्मी को मारने लगें। और मम्मी ‘और मारो मुझे और मारो’ बोल कर ज़ोर-ज़ोर से चीखने लगी। मैं डर कर अपने कमरे में जाकर छुप गई. मेरे मम्मी-पापा हरदम छोटी-छोटी बातों पर झगड़ने लगते हैं. तभी समझ में नहीं आता मैं क्या करूँ इसलिए कमरे में जाकर रोते-रोते सो जाती हूँ” यह कहना है 8 साल की श्रेया का. दरअसल, ज्यादा बिजली बिल को लेकर उसके मम्मी-पापा में बहुत झगड़ा हुआ. उसके पापा ने उसकी मम्मी को मारा और बाहर चले गए.  गुस्से में उसकी मम्मी ने पूरे घर की लाइट और पंखा बंद कर दिया. लेकिन लड़ते वक़्त दोनों यह भूल गए कि उसका बहुत ही प्रतिकूल असर श्रेया पर पड़ रहा है. लड़ते समय उन्हें यह भी ख्याल नहीं रहा कि आस-पास कौन हैं ?  बेचारी श्रेया, माँ-बाप की लड़ाई के बीच पीस रही थी. वह इतनी डरपोक बन चुकी है कि उसके माँ-पापा का बातें करना भी उसे झगड़ा ही लगता है. डर जाती है कि पता नहीं कब दोनों झगड़ने लग जाएँ.   

हर बच्चे के माता-पिता में थोड़ी बहुत लड़ाई झगड़े होते ही हैं, यह कोई बड़ी बात नहीं है. लेकिन जब छोटे-मोटे झगड़े भयंकर लड़ाई में तब्दील होने लगते हैं, बच्चों के सामने ही एक पार्टनर दूसरे पर प्रहार करने लगते हैं, तो बच्चे आहात हो उठते है. उनमें नकारात्मक सोच गहराने लगती है. पति-पत्नी के लिए लड़ाई-झगड़े भले ही सामान्य बात हो या फिर दोनों को इस बात से कोई खास फर्क न पड़ता हो, लेकिन बच्चे के कोमल मन पर इसका बहुत गहरा और निगेटिव प्रभाव पड़ता है. कई बार देखा गया है कि जिन माता-पिता की अपने बच्चों के सामने अक्सर लड़ाई होती है, पति पत्नी पर हाथ उठता है, उनके बच्चे स्वभाव से दब्बू, उग्र, गुस्सैल या चिड़चिड़ा होता है. 

एक शोध के अनुसार, बच्चे का व्यवहार 91% माता-पिता के व्यवहार से प्रेरित होता है. बच्चे के स्वभाव में इस बात की झलक मिलती है कि उसने कैसा बचपन बिताया है. मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि अगर हम बच्चे को लड़ाई-झगड़े वाला माहौल देंगे तो बच्चे का स्वभाव भी लड़ाई-झगड़े वाला ही होता है. इस माहौल के हिसाब से बच्चा गुस्से वाला या चिड़चिड़ा ईर्ष्यालु बनता है. उसको अपनी बात मनवाने के लिए झगड़ा करना आएगा, शेयर करना नहीं आएगा.   

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वर्ष 2012 में अमेरिकन जर्नल चाइल्ड डवलपमेंट में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, जो बच्चे चार से पाँच साल की उम्र से ही पेरेंट्स के बीच झगड़ा होते देखते हैं, उनमें शॉर्ट टर्म प्रभाव तो पड़ते ही हैं, लेकिन लॉन्ग टर्म प्रभाव उससे भी ज्यादा खतरनाक होते हैं. बड़े और थोड़े समझदार होने पर ऐसे बच्चों में एंजाइटी, डिप्रेशन और बिहेवरियल इश्यू सामने आने लगते हैं.  बच्चों के सामने पति-पत्नी के लड़ाई-झगड़े, मारपीट का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है, आइए जानते हैं.  

असुरक्षा का भाव 

घर किसी भी बच्चे के लिए सबसे सुरक्षित जगह होता है, जहां पर उसे प्यार व केयरिंग मिलती है. लेकिन जब उसी घर में वह अपने माता-पिता को रोज झगड़ते देखते हैं, पिता को बार-बार माँ पर हाथ उठाते देखते हैं, गाली-गलौज करते देखते हैं, तो बच्चे के मन में डर, चिंता व असहाय होने का भाव समा जाता है, जो उसके पूरे व्यक्तित्व को प्रभावित करता है. ऐसे बच्चे जीवन भर असुरक्षा के भाव में जीते हैं. 

मानसिक रूप से परेशान 

माता-पिता की गलतियों की सजा अक्सर बच्चों को भुगतनी पड़ती है. बचपन से ही ऐसे माहौल में रहने से बच्चों का मानसिक विकास अच्छे से नहीं हो पाता है. वह हरदम डरा-सहमा रहता है कि पता नहीं कब माँ-बाप फिर लड़ने लगें. कभी-कभी तो बच्चा खुद को ही उन झगड़ों की वजह मनाने लगता है. 

कम उम्र के बच्चे और शिशुओं पर भी पड़ता है प्रभाव 

छोटे बच्चे भले ही माता पिता के लड़ाई-झगड़ों को नहीं समझ पाते, लेकिन उनके हाव-भाव से उसकी भावनाओं को जरूर समझ लेते हैं. कितनी बार देखा गया है, जब माता-पिता में लड़ाइयाँ होती है तो बच्चे रोरो उन्हें शांत रहने को बोलते है, लेकिन जब ऐसा नहीं होता तब वह खुद ही शांत हो जाते हैं,  क्योंकि उन्हें लगने लगता है कि अब उसके माँ-पापा अलग हो जाएंगे. अपनी माँ को मार खाते देख बच्चा सहम उठता है. वह असुरक्षा से घिरने लगता है, क्योंकि जो माँ उसे प्यार करती है, वह खुद को ही नहीं बचा पा रही है, तो उसका क्या होगा? यह सोचकर बच्चा भयभीत होने लगता है. ऐसे बच्चे खेल-कूद पढ़ाई-लिखाई में भी पीछे रहते हैं. ऐसे बच्चे स्कूल या अन्य जगहों पर भी जाने से कतराने लगते हैं. 

अल्पकालिक प्रभाव

पिता के हाथों माँ को हर हमेशा मार खाते देख, बच्चे पर बुरा असर पड़ने लगता है. वह क्रोधित होता है पिता पर तो कभी डर कर शांत बैठ जाता है. समझ नहीं आता उसे की क्या करें. वह असुरक्षा की भावना से घिरने लगता है. माता-पिता की लड़ाई के बाद जो तनाव और चिंता की स्थिति बनती है वह बच्चों के शारीरिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक विकास पर तो असर करती ही है, इससे उसके रोज़मर्रा के कामों में भी बाधा डालती है. 

अपराधबोध के शिकार होते बच्चे 

कई बार बच्चों के कारण भी पति-पत्नी के बीच झगड़े होने लगते हैं. जब बच्चे को यह बात पता चलती है कि माता-पिता उनकी वजह से लड़ रहे हैं, तो बच्चे को बहुत बुरा लगता है. उस बच्चे के मन में एक अपराधबोध और दोषी होने का भाव पनपने लगता है. मन ही मन उसे लगता है माता-पिता के झगड़े की वजह वही है, उसकी वजह से ही पिता माँ को मार रहा है. इसके चलते कई बार बच्चा खुद को ही नुकसान पहुंचा लेता है. पिछले साल ही, हैदराबाद के तेलंगाना में माता पिता के झगड़े से तंग आकर एक बच्चे ने कीटनाशक पी लिया था. वहीं एक और जगह, माता पिता के रोज-रोज की लड़ाई से नौ और दस साल के दो भाइयों ने घर छोड़ दिया और कई सप्ताह तक फुटपाथ पर भीख मांगकर दिन गुजारें. एक 16 साल की बच्ची का कहना है कि उसके पापा छोटी-छोटी बात पर गुस्सा करते हैं. घर का समान फेंकने लगते हैं. उसकी माँ को प्रताड़ित करते हैं. पिता के गुस्से और माँ को मार खाते देख वह तनाव का शिकार हो रही है. 

बच्चों पर पड़ती गलत आदतें

यह बात हम सभी जानते हैं कि बच्चे के लिए उनके माता-पिता ही दुनिया के सबसे अच्छे इंसान होते हैं. वे ही उनके पहले शिक्षक होते हैं. लेकिन जब वही अच्छे इंसान और शिक्षक आपस में बच्चों के सामने ही लड़ने-झगड़ने और हाथापाई पर उतर आते हैं तो बच्चा समझ नहीं पाता कि यह क्या हो रहा है और क्यों ? बाद में वह भी धीरे-धीरे वही सब सीखने लगता है. वह भी अपने पिता की तरह चीखता-चिल्लता और गुस्सा करता है. वह अपने छोटे भाई बहनों के साथ ही नहीं, बल्कि स्कूल के दोस्तों के साथ भी वैसे ही व्यवहार करने लगता है. कुछ बच्चे तो बड़े होने पर विवाह के पश्चात अपने पार्टनर के साथ भी वैसा ही व्यवहार करने लगता है, क्योंकि उसे लगता है उसके पिता भी तो उसकी माँ के साथ ऐसा ही करते थे और यह व्यवहार बिल्कुल ठीक है.

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बच्चे में तनाव 

घर में अक्सर माता-पिता की लड़ाई से बच्चा इमोशनली तनाव में रहने लगता है. बच्चा अपना ध्यान कहीं भी केन्द्रित नहीं कर पता.  न पढ़ाई में और न ही खेल कूद में उसका मन लगता है . वह गुमसुम उदास रहने लगता है जो उसके शरीर पर पड़ने लगता है.  कुछ बच्चे इस चलते इमोशनल ईटिंग करने लग जाते हैं तो कुछ बच्चों को नींद संबंधी समस्याएँ हो जाती है. अत्यधिक अस्थिर वातावरण में बढ़ते हुए बच्चे कई बार डिप्रेशन, एडीएचडी, ओसिडी जैसे मानसिक विकारों से ग्रस्त हो जाते हैं. 

एक आंकड़ों के मुताबिक, अपने माता-पिता की लड़ाई-झगड़ों से परेशान होकर करीब 280 बच्चों ने घर छोड़ दिया. उन्हें काउन्सलिन्ग के बाद फिर से घर भेजा गया. काउन्सलिन्ग में बच्चों ने बताया कि वे अपने माता-पिता के झगड़े देख बहुत डर जाते हैं. बच्चों का कहना था कि माता-पिता की लड़ाइयों का डर उनके दिमाग पर हावी हो जाता है, इससे वे बाहरी दुनिया की तरह आकर्षित होकर घर छोड़ देते हैं. कई माता-पिता अपने ईगो के चलते बच्चों पर गुस्सा निकालते हैं जिससे बच्चे अवसाद में चले जाते हैं.   

माता-पिता के लिए टिप्स 

शादी-शुदा ज़िंदगी में, पति-पत्नी के बीच तकरार, असहमति और लड़ाई-झगड़े तो होते ही रहते हैं. कई बार आपसी मतभेदों को सुलझाते हुए ज़िंदगी भी गुजारनी होती है. अगर हर कोई सौ फीसदी अंडरस्टैंडिंग की दलीले लेकर अड़ जाए, तो कोई घर ही न बसे फिर. अंडरस्टैंडिंग एक प्रक्रिया है, जो एक अवस्था के बाद साथ-साथ धूप-छाँव झेलने से ही अपना स्वरूप लेती है. इसमें दोनों ही पक्षों को एडजस्ट करना होता है. और यही जब नहीं हो पाता तो पति-पत्नी के बीच तकरार शुरू हो जाती है. लेकिन कम-से-कम आपको यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि बच्चों के सामने  न झगड़ें.  बच्चों के पहले शिक्षक और उनके आदर्श उनके पेरेंट्स ही होते हैं. आपको देखकर ही बच्चे दुनियादारी समझते हैं, लोगों से अच्छा-बुरा बिहेव करना सीखते हैं. इसलिए बच्चों के सामने आपको लड़ाई-झगड़ा करने से बचना चाहिए.  अगर आपके बीच किसी बात को लेकर मन-मुटाव है या आप दोनों किसी भी बात पर सहमत नहीं हैं, तो आप अपनी समस्या बंद कमरे में ही सुलझाने की कोशिश करें. बच्चों के सामने ऐसी-वैसी बातें न करें जो उन्हें तनाव दे. बच्चों को अपनी लड़ाई-झगड़ों से दूर रखें. बच्चों के सामने कभी भी अपशब्द या नकारात्मक भाषा का प्रयोग न करें. बच्चों के सामने चीख-चिल्लाकर कर बात करने से बचें. जहां तक हो सके अपने बच्चों को खुशनुमा माहौल देने की कोशिश करें.

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पत्नी से परेशान, क्या करें श्रीमान

यों तो हमारा समाज पुरुषप्रधान समाज है और यही समझा जाता है कि पति ही पत्नियों को प्रताडि़त करते हैं, लेकिन ऐसी पत्नियों की संख्या भी कम नहीं है जिन्होंने पतियों की नाक  में दम कर रखा होता है.

पत्नियां किसकिस तरह पतियों को प्रताडि़त करती हैं और उन्हें पतियों से क्याक्या शिकायतें होती हैं:

कई पत्नियों को तो पतियों से इतनी शिकायतें होती हैं कि अगर उन्हें रूप में कामदेव, मर्यादा में राम और प्रेम में कृष्ण भी मिल जाए तो भी जरा सा भी मौका मिलते ही सखियों से, पड़ोसियों से पतिपुराण शुरू हो जाएगा.

उच्चशिक्षित व उच्च पद पर आसीन पत्नियां तो नजरों व हावभाव से भी पतियों का अपमान कर देती हैं. मसलन, उन के अंगरेजी के उच्चारण, रहनसहन, पहननेओढ़ने के तरीकों व पसंद का सब के सामने मजाक उड़ा देती हैं और पति बेचारा अपमान का घूंट पी कर रह जाता है और अंदर ही अंदर अपना आत्मविश्वास खोने लगता है. बाहरी तौर पर कुछ दिखाई न देने पर भी पति के लिए ये सब बहुत कष्टदायक होता है.

मानसिक प्रताड़ना

सोनाली उच्च शिक्षित है और उस का पति नीरज भी बहुत अच्छी नौकरी पर है. पर सीधेसाधे नीरज के व्यक्तित्व से यह सब नहीं झलकता. वह बात करने में भी बहुत सीधा है. उस के कुछ भी गड़गड़ बोलने या गड़बड़ हरकत करने पर सोनाली सब के सामने नाटकीय अंदाज में व्यंग्य से कह देती है कि भई माफ करना मेरे पति को, उन की तो यह आदत है. आदत से मजबूर हैं बेचारे. सुनने वाले कभी उसे तो कभी उस के पति को देखते रह जाते.

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पत्नियां कई बार पतियों को मानसिक रूप से वे सब करने के लिए मजबूर कर देती हैं, जो वे बिलकुल नहीं करना चाहते. पति के मातापिता, भाईबहन के विरुद्ध बोलना, उन की छोटी से छोटी बात को बढ़ाचढ़ा कर बोल कर पति के कान भरना, घर से अलग हो जाने के लिए मजबूर करना आदि. लेकिन इन्हीं बातों में वे मायके में अपने भाईभाभी या बहनों के साथ तालमेल बैठाने की कोशिश करती हैं या उन की बातों को छिपा लेती हैं, पर ससुराल की बातों को नजरअंदाज करना ज्यादातर पत्नियों को नहीं आता.

झूठे मुकदमे की धमकियां

आजकल की आधुनिक नवयुवतियों ने तो हद ही कर डाली है. अब तो पत्नी के पक्ष में कई कानून बन गए हैं. इन कानूनों का फायदा ज्यादातर उन्हें नहीं मिल पाता जिन्हें वाकई उन की जरूरत होती है. इन कानूनों को हथियार बना कर कई मगरूर पत्नियां पति को कई तरह से प्रताडि़त करती हैं. इन अधिकारों के बल पर परिवारों में बड़ी तेजी से बिखराव आ रहा है. जो स्त्री दया, त्याग, नम्रता, भावुकता, वात्सल्य, समर्पण, सहनशीनता का प्रतिरूप थी वही एक एकल परिवार की पक्षधर हो कर उसी को अपना आदर्श मान रही है.

सारे कानून एकपक्षीय हैं. पति ने तलाक के पेपर पर दस्तखत नहीं किए तो उस पर दहेज या घरेलू हिंसा का केस दर्ज कर उसे फंसा लिया जाता है. फिर तो मजबूरन दस्तखत करने ही पड़ते हैं. अगर पत्नी की ज्यादातियों से तंग आ कर पति पत्नी को तलाक देना भी चाहे तो उसे अच्छीखासी रकम पत्नी की देनी पड़ती है. कई बार यह उस के बूते से बाहर की बात होती है.

हालांकि ऐसी भी पत्नियां हैं जो अपनी सहनशक्ति व कोमल स्वभाव से टूटे घर को भी बना देती हैं, पर उस की संख्या कम है. पति को बारबार टोकना, प्रताडि़त करना, मानसिक कष्ट देना जिंदगी के प्रति पति की खिन्नता को बढ़ाएगा. अंदर ही अंदर उस के आत्मविश्वास को तोड़ेगा, जिस से उस का व्यक्तित्व प्रभावित होगा.

तरहतरह की शिकायतें

इतिहास गवाह है कि उच्च शिक्षित पतियों ने अनपढ़ व कम शिक्षित पत्नियों के साथ भी निर्वाह किया, लेकिन उच्चशिक्षित व उच्च पद पर आसीन पत्नियां, यदि पति उन के अनुरूप नहीं है तो बरदाश्त नहींकर पातीं. वे सर्वगुण संपन्न पति ही चाहती हैं. पत्नियों को पतियों से तरहतरह की शिकायतें होती हैं और वे पति को अपनी बात मानने के लिए मजबूर करती हैं.

पौराणिक व ऐतिहासिक उदाहरणों से पता चलता है कि कैसे उस समय भी पत्नियां सामदामदंडभेद अपना कर पति से उस की इच्छा के विरुद्ध अपनी बात मनवा लेती थीं और कालांतर में उन की जिद्द और महत्त्वकांक्षा पति की मृत्यु और कुल के विनाश का कारण बनती थी. ऐसे बहुत से उदाहरण हैं इतिहास में जहां पत्नियों की महत्त्वकांक्षाओं ने राज्यों की नींवें हिला दीं और इतिहास की धारा मोड़ कर रख दी.

पत्नियों की अनगिनत शिकायतों का बोझ उठातेउठाते पति बूढ़े हो जाते हैं. मानव साधारण घर से था. लेकिन मेधावी मानव आईआईटी से इंजीनियरिंग और आईआईएम अमहमदाबाद से एमबीए कर के एक प्रतिष्ठित मल्टीनैशनल कंपनी में उच्च पद पर पदस्त हो गया. हालांकि सफलताओं ने, वातावरण ने उसे काफी कुछ सिखा दिया था, पर उस की साधारण परवरिश की छाप उस के व्यक्तित्व पर नजर आ ही जाती. उस की यह कमी उस की पत्नी जो देहरादून के प्रसिद्ध स्कूल से पढ़ी थी, को बरदाश्त नहीं होती थी. मानव के अंगरेजी के उच्चारण से तो उसे सख्त चिढ़ थी. जबतब कह देती, ‘‘तुम तो अंगरेजी बोलने की कोशिश मत किया करो मेरे सामने या फिर पहले ठीक से अंगरेजी सीख लो.’’

सरेआम बेइज्जती

राखी का अपने पति की पसंद पर कटाक्ष होता, ‘‘क्या गोविंदा टाइप कपड़े पसंद करते हो…वह तो कम से कम फिल्मों में ही पहनता है…तुम्हें तो कपड़े पसंद करने के लिए साथ ले जाना ही बेकार है.’’

रोहन जब सोफे पर टांग पर टांग रख कर बैठता तो पैंट या लोअर ऊपर चढ़ जाए या अस्तव्यस्त हो जाए वह परवाह नहीं करता था. वैसा ही अस्तव्यस्त सा बैठा रहता. उस की पत्नी मानसी को उस का नफासत से न बैठना घोर नागवार गुजरता. उस की मित्रमंडली की परवाह किए बिना बारबार उसे आंखें दिखाती रहती कि ठीक से बैठो. उस का ध्यान बातों में कम व रोहन की हरकतों पर अधिक होता.

नमन औफिस से आते ही जूतेमोजे एक तरफ फेंक कर बाथरूम में घुस जाता और फिर चप्पलों सहित पैर धो कर छपछप कर पूरे फर्श को गीला करता हुआ सोफे में धंस कर अधलेटा हो जाता. यह देख कर उस की पत्नी मीना का दिमाग खराब हो जाता और फिर उन में झगड़ा शुरू हो जाता.

इस के अलावा भी कई शिकायतें हैं उसे पति से. पति का अलमारी के कपड़े बेतरबीत कर देना, गीला तौलिया बिस्तर पर डाल देना, गंदे हाथों से कुछ भी खा लेना, खाना खातेखाते जूठे हाथ से फोन पकड़ लेना, जूठे हाथ से डोंगे से दालसब्जी निकाल लेना आदि.

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सामाजिक प्रतिष्ठा पर आंच

यदि पति का व्यक्तित्व तन और मन से यदि असंतुलित होगा तो पत्नी भी इस से अप्रभावित नहीं रहेगी. यदि पति की सामाजिक प्रतिष्ठा पर आंच आएगी तो मान पत्नी का भी न होगा. यदि बच्चे पिता का सम्मान नहीं करेंगे तो कालांतर में मां का भी नहीं करेंगे.

पति को बदलने व सुधारने की कोशिश में ही जीवन की खुशियों का गला घोट देना कहां की समझदारी है. जीवन तो एकदूसरे के अनुसार ढलने में है न कि ढालने में. पति कोई दूध पीता बच्चा है जिस की आदतें पत्नी अपने अनुसार ढाल लेगी? किसी का भी व्यक्तित्व एक दिन में नहीं बनता. अगर कोई बदलाव आएगा भी तो बहुत धीरेधीरे और वह भी आलोचना कर के या उस का मजाक उड़ा कर नहीं. आलोचना नकारात्मकता को बढ़ावा देती है.

कमजोर होता है मनोबल

आज विवाहित स्त्रियां हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं. कहा जाता है कि हर सफल पुरुष के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है. लेकिन आज के परिप्रेक्ष्य में यह बात भी सत्य है कि हर सफल स्त्री के पीछे एक पुरुष का हाथ होता है. पति के प्यार, संरक्षण, सहयोग के बिना कोई भी पत्नी अपने क्षेत्र में मनचाही सफलता प्राप्त नहीं कर सकती.

पति को भी छोटीमोटी बातों के कारण अपना आत्मविश्वास नहीं खोना चाहिए. आत्मविश्वास खोने से मनोबल कमजोर होता है. यदि पति को लगता है कि उस के अंदर वास्तव में कुछ ऐसी आदतें हैं, जो उन के सुखी वैवाहिक जीवन में दीवार बन रही है, तो खुद को बदलने की कोशिश करने में कोई बुराई नहीं है.

 

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