Serial Story: मौन प्रेम (भाग-3)

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समय बीतता जा रहा था. मैं ने बीए कर लिया और प्रसून पीसीएस में कंपीट कर चुका था. इस खुशी में प्रसून ने ट्रीट दिया. मैं और मधुर उस के साथ होटल में थे. हम तीनों में कोई भी ड्रिंक नहीं लेता था. उस दिन होटल के डाइनिंगहॉल में औरकैस्ट्रा के गायक ने बौलीवुड के रोमांटिक गानों से सब को प्रसन्न किया. उस का आखिरी गाना था, ‘‘किसी न किसी से कभी न कभी कहीं न कहीं दिल लगाना पड़ेगा…’’

मैं अब उन के बीच फ्रैंक हो चुकी थी. मैं ने प्रसून से पूछा, ‘‘तब तुम्हारा दिल किस पर आया है?’’

वह गंभीर हो गया और बोला, ‘‘मेरी छोड़ो, तुम बोलो शादी कब कर रही हो? अपनी शादी में मुझे बुलाना नहीं भूलना.’’

मुझे उस का जवाब सुन कर अच्छा नहीं लगा. मैं सोच रही थी कि शायद अब अच्छी नौकरी मिल जाने के बाद यह मेरे साथ घर बसाने की बात सोच रहा होगा. उस दिन के बाद तो प्रसून से मेरी कोई बात नहीं हुई. वह किसी दूसरे शहर में राज्य सरकार का बड़ा अफसर था. मेरे मातापिता मेरी शादी की बात भी चला रहे थे. मधुर इसी शहर में था और कभीकभी हमारी मुलाकात हो जाती थी.

एक दिन मधुर मिला. मैं ने उस से प्रसून के बारे में पूछा तो वह बोला, ‘‘वैसे तो प्रसून देखने में बहुत खुश और सदा मुसकराते रहता है पर वह एक अंतर्मुखी लड़का है. अपना दर्द दूसरों से नहीं बांटता है. मुझे भी अपनी पर्सनल जिंदगी के बारे में कुछ नहीं बताया है. पर अभी कुछ दिन पहले ही मुझे उस की हकीकत का पता चला है.’’

‘‘ऐसी कौन सी बात है?’’

‘‘कुछ दिन पहले मुझे उस ने अपने गांव में बुलाया था. मैं उस से मिलने उस के गांव गया पर वह तब तक शहर जा चुका था. मैं उस की बूढ़ी मां और उस की 5 साल की बेटी से मिला.’’

‘‘बेटी?’’

‘‘हां, उस की शादी तो 12वीं कक्षा में ही हो गई थी. उस के पिता नहीं थे और उस की अस्वस्थ मां की देखभाल के लिए कोई भरोसेमंद औरत घर में चाहिए थी. उस ने शादी की. कुछ दिनों तक सब ठीक रहा. उसे एक बच्ची भी हुई. फिर उस की पत्नी उसे और बच्ची को छोड़ कर भाग गई.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘जैसा कि प्रसून की मां ने कहा वह गांव में नहीं रहना चाहती थी उसे शहर में रहना था. प्रसून ने कहा था कि जब तक उसे शहर में नौकरी नहीं मिलती उसे गांव में ही रहना होगा. पर वह नहीं मानी और बेटी को छोड़ कर चली गई. सुना है बाद में उस ने शादी भी कर ली. प्रसून अब कुछ ही दिनों के अंदर अपनी मां और बेटी को शहर शिफ्ट कर रहा है?’’

मैं ने मन में सोचा कि इतनी बड़ी बात उस ने कभी किसी से शेयर नहीं की. करीब 1 सप्ताह बीता होगा बरसात का मौसम था. 3 दिनों से पूरे राज्य और पड़ोसी राज्य में बारिश हो रही थी. हर तरफ बाढ़ और अफरातफरी का माहौल था. टीवी न्यूज से पता चला कि बाढ़ में डैम के गेट खोलने के चलते प्रसून का गांव जलमग्न हो गया था.

मधुर ने मुझ से फोन कर कहा, उस की मां को बचाया न जा सका पर उस की बेटी शिविर में बीमार है. प्रसून वहां पहुंचने ही वाला है. मैं वहीं जा रहा हूं.

मैं ने बिना देर किए कहा, ‘‘मुझे भी साथ ले चलो, मैं भी चलूंगी.’’

‘‘वहां बहुत दिक्कत होगी तुम्हें.’’

‘‘ये बेकार की बातें हैं, तुम नहीं ले जा सकते तो मैं अकेली ही चली जाऊंगी.’’

‘‘अच्छा रुको, मैं आ रहा हूं.’’

‘‘मैं मधुर के साथ प्रसून के गांव आई. प्रसून 2 दिन बाद ही पहुंच सकता था, क्योंकि खुद वह जहां था वहां भी बाढ़ थी और बिना दूसरे को चार्ज दिए वह नहीं आ सकता था. मधुर ने उसे बता दिया था कि हम दोनों उस की बेटी के पास पहुंचने ही वाले हैं.

मैं शिविर में प्रसून की बेटी से मिली. उसे कौलरा हुआ था. मैं ने उस का नाम पूछा तो उस का छोटा सा जवाब था, ‘‘मिनी.’’ मैं ने उसे प्यार से गोद में ले लिया. वह मुझ से लिपट गई और बोली, ‘‘आप मेरी मम्मी हो न?’’

‘‘नहीं बेटे मम्मी तो नहीं, पर मम्मी जैसी ही हूं.’’मधुर मिनी और मेरा फोटो ले रहा था. मैं ने डाक्टर की सलाह के अनुसार मिनी के खानेपीने का इंतजाम किया. अब मिनी की स्थिति काफी सुधर चुकी थी. प्रसून भी आ गया. मुझे और मधुर को देख कर उसे खुशी और संतोष हुआ कि उस की बेटी सुरक्षित है.

मिनी दौड़ कर प्रसून के सीने से जा लगी और बोली ‘‘पापा, आप इतनी देर से क्यों आए. कहीं मैं मर जाती तो?’’

प्रसून ने उस के मुंह पर हाथ रख कर कहा, ‘‘ऐसा नहीं बोलते बेटा. तेरे बिना तो पापा भी जिंदा नहीं रह सकते हैं. तेरे ही लिए मधुर अंकल और भावना आंटी यहां आए हैं.’’

हम चारों 3 दिन तक वहां एकसाथ रहे. तब तक पानी भी बहुत कम हो गया और स्थिति बेहतर हो गई थी. मधुर बोला, ‘‘अब बाढ़ का असर भी करीबकरीब खत्म हो चला है. मिनी बिटिया भी ठीक हो गई है. अब मैं चलता हूं.’’

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मैं बोल उठी, ‘‘मैं चलता हूं, वाह क्या कमाल की बात करते हो. मुझे यहां तक लाने वाले तुम हो और यों ही छोड़ कर चले जाने को तैयार हो.’’

‘‘तुम यहां स्वेच्छा से आई थी, मेरे कहने से नहीं.’’

‘‘ठीक है, तुम जा सकते हो. मैं अकेली भी जा सकती हूं.’’

‘‘भावना, तुम बुरा मान गईं, मैं ने सोचा शायद तुम कुछ दिन और यहां रुकना चाहो.’’

मैं ने एक नजर प्रसून की तरफ देखा. वह बेटी को प्यार किए जा रहा था, उस ने नजर उठा कर मेरी तरफ देखा. पर उस की आंखों की भाषा में मेरे रुकने का कोई आशय नहीं था. मुझे अच्छा नहीं लगा. अत: मैं मधुर से बोली, ‘‘नहीं, अब मेरा यहां क्या काम. मैं भी चलती हूं.’’

मैं मधुर के साथ लौट आई. नौकरी लगने के बाद प्रसून अपने गांव की ज्यादातर जमीन बेच चुका था, जो थोड़ीबहुत संपत्ति बची थी उसे अपने चाचा के हवाले कर वह मिनी के साथ शहर आ गया.

एक दिन प्रसून ने मुझे एक वीडियो क्लिप और मैसेज फोन पर भेजा. उस वीडियो क्लिप को मधुर ने गांव में लिया था, जिस में मैं मिनी को समझा रही थी कि मैं उस की मम्मी जैसी ही हूं. मैसेज में लिखा गया था. ‘मिनी, तुम्हें बहुत याद करती है. क्या उस की मम्मी जैसी से सिर्फ मम्मी नहीं बन सकती हो? मैं तुम्हारे जवाब का इंतजार करूंगा. मैं ने तुम्हारे घर में पहले ही बात कर ली है, उम्मीद है तुम निराश नहीं करोगी.’’

प्रसून के मुंह से ऐसी बात सुनने का तो मैं इंतजार ही कर रही थी. अभी तक उस के मौन से मैं निराश हो चली थी. अब आस की किरण फूटने लगी. उस ने इस बात के लिए मिनी का सहारा क्यों लिया? खुद भी तो कह सकता था?मैं सोच रही थी. फिर भी मैं बेहद खुश थी. इतनी खुश कि मेरी आंखों से आंसू टपक पड़े. मैं ने प्रसून को टैक्स्ट किया, ‘मुझे इस दिन का बेसब्री से इंतजार था.’

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