कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न

यौन उत्पीड़न एक तरह का व्यवहार है. इसे यौन प्रकृति के एक अवांछित व्यवहार के रूप में परिभाषित किया गया है. कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न दुनिया में एक व्यापक समस्या है चाहे वह विकसित राष्ट्र हो या विकासशील राष्ट्र या अविकसित राष्ट्र, महिलाओं के खिलाफ अत्याचार हर जगह आम है. यह पुरुषों और महिलाओं दोनों पर नकारात्मक प्रभाव देने वाली एक सार्वभौमिक समस्या है. यह विशेष रूप से महिला लिंग के साथ अधिक हो रहा है.

कोई कितना भी बचाव, निषेध, रोकथाम और उपचार देने का प्रयास करता है, फिर भी ऐसा उल्लंघन हमेशा होता रहता है. यह महिलाओं के खिलाफ अपराध है, जिन्हें समाज का सबसे कमजोर तबका माना जाता है. इसलिए उन्हें कन्या भ्रूण हत्या, मानव तस्करी, पीछा करना, यौन शोषण, यौन उत्पीड़न से लेकर सबसे जघन्य अपराध बलात्कार तक, इन सभी प्रतिरक्षाओं को सहना पड़ता है. किसी व्यक्ति को उसके लिंग के कारण परेशान करना गैरकानूनी है.

 

यौन उत्पीड़न अवांछित यौन व्यवहार है, जिससे किसी ऐसे व्यक्ति से मिलने की उम्मीद की जा सकती है जो आहत, अपमानित या डरा हुआ महसूस करता है. यह शारीरिक, मौखिक और लिखित भी हो सकता है.

यौन उत्पीड़न में कई चीज़ें शामिल हैं:

  • वास्तविक या बलात्कार का प्रयास या यौन हमला.
  • जानबूझकर छूना, झुकना, मुड़ना या चुटकी बजाना.
  • चिढ़ाना, चुटकुले, टिप्पणी, या प्रश्न.
  • किसी पर सीटी बजाना.
  • किसी कर्मचारी के कपड़े, बाल या शरीर को छूना.
  • किसी अन्य व्यक्ति के आसपास खुद को यौन रूप से छूना या रगड़ना.

कार्यस्थल छोड़ने का मुख्य कारण :

सितंबर 2022 में जारी यूएनडीपी जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत में काम करने वाली महिलाओं का प्रतिशत 2021 में लगभग 36% से घटकर 2022 में 33% हो गया। कई प्रकाशनों ने कई मूल कारणों की पहचान की, जिनमें महामारी, घरेलू दायित्वों में वृद्धि और शादी एक बाधा के रूप में शामिल है. लेकिन क्या यही एकमात्र कारण हैं? नहीं, जिन अंतर्निहित कारणों पर हम अक्सर विचार करने में विफल रहे हैं उनमें से एक कार्यस्थल में उत्पीड़न है, जिसके कारण महिलाएं या तो कार्यबल छोड़ देती हैं या इसमें प्रवेश करने के लिए अनिच्छुक होती हैं.

महिलाओं ने वित्तीय रूप से स्वतंत्र बनकर, सरकारी, निजी और गैर-लाभकारी क्षेत्रों में काम करके समाज के मानकों को तोड़ने की कोशिश की है, जो उन्हें मालिकों, सहकर्मियों और तीसरे पक्ष से उत्पीड़न के लिए उजागर करता है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, कार्यस्थल या कार्यालय में यौन उत्पीड़न के 418 मामले दर्ज किए गए. लेकिन ये संख्या केवल एक उत्पीड़न को इंगित करती है. अधिकांश लोगों का मानना है कि कार्यस्थल उत्पीड़न केवल यौन प्रकृति का हो सकता है लेकिन वास्तव में, विभिन्न प्रकार के उत्पीड़न से संबंधित विभिन्न श्रेणियां हैं, जो सभी कर्मचारी को मानसिक रूप से प्रभावित करती हैं, जिससे अपमान और मानसिक यातना होती है जिसके परिणामस्वरूप उनकी कार्य क्षमता में कमी आती है और काम से छूटना होता है.

कुछ महिलाएं अभी भी कार्यस्थल में उत्पीड़न के खिलाफ कारवाही करने से डरती हैं. उन्ही महिलाओं के लिए कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की कुछ उल्लेखनीय शिकायतें जो राष्ट्रीय सुर्खियों में आईं, निम्नलिखित द्वारा दायर की गईं:

  1. रूपन देव बजाज, (आईएएस अधिकारी), चंडीगढ़ ने ‘सुपर कॉप’ के.पी.एस. गिल के खिलाफ की शिकायत.
  2. देहरादून में पर्यावरण मंत्री के खिलाफ अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ की एक कार्यकर्ता ने शिकायत की दर्ज.
  3. मुंबई में अपने सहयोगी महेश कुमार लाला के खिलाफ एक एयरहोस्टेस ने की कंप्लेन.

शिकायत कैसे दर्ज कर सकते हैं :

  • शिकायत घटना के 3 महीने के भीतर लिखित रूप में की जानी चाहिए. घटनाओं की श्रृंखला के मामले में, पिछली घटना के 3 महीने के भीतर रिपोर्ट तैयार की जानी चाहिए. वैध परिस्थितियों पर समय सीमा को और तीन महीने तक बढ़ाया जा सकता है.
  • शिकायतकर्ताओं के अनुरोध पर, जांच शुरू करने से पहले समिति सुलह में मध्यस्थता करने के लिए कदम उठा सकती है. शारीरिक/मानसिक अक्षमता, मृत्यु या अन्य किसी स्थिति में कानूनी उत्तराधिकारी महिला की ओर से शिकायत कर सकता है.
  • शिकायतकर्ता जांच अवधि के दौरान स्थानांतरण (स्वयं या प्रतिवादी के लिए) 3 महीने की छुट्टी या अन्य राहत के लिए कह सकता है.
  • जांच शिकायत के दिन से 90 दिनों की अवधि के भीतर पूरी की जानी चाहिए। गैर-अनुपालन दंडनीय है.

क्या है 2 बहनों का अनोखा मीटू

पिछले कुछ समय में देशविदेश की बहुत सी नामचीन औरतों ने मर्दों द्वारा सताए जाने के बरसों पुराने रिश्तों के गड़े मुरदे उखाड़े तो यह एक मुहिम बन गई जिसे मीटू का नाम दिया गया और उन औरतों की इस बेबाकी के लिए समाज द्वारा उन का हौसला भी बढ़ाया गया. मगर क्या मीटू का यही एक विकृत रूप हो सकता है? क्या कोई औरत किसी दूसरी औरत के साथ मीटू जैसा कुछ नहीं कर सकती है?

फर्ज कीजिए अगर कोई औरत दूसरी औरत के सैक्सुअल रिलेशंस की पोल खोलने की धमकी दे और ऐसा न करने के एवज में उसे ब्लैकमेल करे और पीडि़ता सब को यह बात बता दे तो क्या उसे भी मीटू के दायरे में नहीं लाना चाहिए?

एक खुलासा

ऐसा ही कुछ खुलासा भारत की एक नामचीन खिलाड़ी ने किया है, जो रेसिंग ट्रैक पर तो फर्राटा भरते हुए दौड़ती है, पर मन में एक भारी बोझ लिए हुए, जो उस के किसी अपने ने ही उस पर लादा है.

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यह दर्द है 100 मीटर में राष्ट्रीय रिकौर्ड बनाने वाली और एशियाई खेलों में 2 सिल्वर मैडल जीत चुकी स्टार महिला धावक 23 साल की दुती चंद का जो भारत की अब तक की तीसरी ऐसी महिला खिलाड़ी हैं, जिन्होंने 2016 के रियो ओलिंपिक खेलों के 100 मीटर के इवेंट में क्वालीफाई किया था. उन्होंने हाल ही में खुलासा किया कि वे समलैंगिक हैं. उन के पिछले 3 साल से एक लड़की के साथ संबंध हैं.

ओडिशा की रहने वाली दुती चंद ने 19 मई, 2019 को इस सिलसिले में भुवनेश्वर में एक प्रैस कौन्फ्रैंस में बताया, ‘‘जब सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 पर अपना फैसला सुनाया तब हम ने फैसला किया कि अब एकसाथ जिंदगी बिताने में किसी तरह का खतरा नहीं है. हम ने फैसला किया कि हम शादी करेंगी और खुद का एक छोटा सा परिवार बसाएंगी.

‘‘वह लड़की मेरे शहर की है और उसे भी खेल पसंद है. उस ने मेरे बारे में पढ़ा था कि मुझे खेल में अपना कैरियर बनाने के लिए कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. उस ने मुझे से कहा था कि वह मेरी कहानी से प्रेरित हुई है. इस तरह से हमारी मुलाकात हुई थी.’’

अपनी उस साथी का नाम न बताते हुए दुती चंद ने माना कि उन्होंने समलैंगिक होने की जानकारी को इसलिए सार्वजनिक किया, क्योंकि उन्हें अपनी जिंदगी को अपने हिसाब से जीने का हक है. वे जो कर रही हैं, वह कोई अपराध नहीं है. यह उन की जिंदगी है और वे इसे जैसे चाहें वैसे जी सकती हैं.

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दुती चंद ने आगे बताया, ‘‘मैं अभी लोगों की नजरों में हूं, क्योंकि मैं अपने देश के लिए खेल रही हूं, लेकिन खेल से अलग होने के बाद भी मुझे जिंदगी जीनी है.’’

मामला हुआ पेचीदा

दुती चंद ने यह हिम्मत भरा खुलासा तो कर दिया, पर इसे उजागर करने की वजह कुछ और ही थी. 21 मई, 2019 को दोबारा प्रैस कौन्फ्रैंस कर के दुती चंद ने बताया कि उन्होंने यह राज अपनी बड़ी बहन सरस्वती के चलते खोला है, क्योंकि वे उन्हें ब्लैकमेल कर के क्व25 लाख की मांग कर रही थीं.

दुती चंद ने कहा, ‘‘मेरे परिवार में मेरी बड़ी बहन सरस्वती का काफी दबदबा है. उन्होंने मेरे बड़े भाई को घर से बाहर कर दिया, क्योंकि उन्हें उस की पत्नी पसंद नहीं थी. उन्होंने मुझे धमकी दी है कि मेरे साथ भी ऐसा ही होगा. लेकिन मैं भी बालिग हूं जिस की निजी आजादी है, इसलिए मैं ने इस रिश्ते को उजागर करने का फैसला किया.’’

दूसरी तरफ दुती चंद की बड़ी बहन सरस्वती ने बताया, ‘‘मैं बहुत ही दुख के साथ कह रही हूं कि दुती ने जो फैसला लिया है, वह उस का अपना नहीं है. उस की पार्टनर लड़की और उस के परिवार ने दुती पर शादी के लिए दबाव डाला और ब्लैकमेल किया है. ये सब दुती की जायदाद और पैसा हड़पने के लिए किया गया है. दुती की जिंदगी और जायदाद खतरे में है, इसलिए मैं सरकार से उस की हिफाजत की गुहार लगाती हूं. मेरी बहन का ध्यान खेल से भटकाने के लिए उसे जाल में फंसाया गया है.

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‘‘वह बालिग है. यह उस का फैसला है कि वह लड़के से शादी करे या लड़की से, लेकिन दुती पर ये सब कहने के लिए दबाव डाला गया है. वरना शादी के बारे में बाद में चर्चा की जा सकती थी.’’

सरस्वती मानती हैं, ‘‘जब कोई बच्चा आगे बढ़ता है, तो उस के परिवार वाले खुश होते हैं. उन की समाज में इज्जत बढ़ती है और लोग मातापिता को भी बधाई देते हैं. इस के उलट अगर कोई बच्चा गलत काम करता है तब सिर्फ परिवार ही उस की जिम्मेदारी लेता है.’’

इतना ही नहीं, दुती चंद की मां अखूजी ने एक समाचार एजेंसी को बताया कि दुती एक लड़की से शादी करना चाहती है. वह लड़की मेरी भानजी की बेटी है, इसलिए वह मेरी पोती हुई. ऐसे में दुती उस लड़की के लिए मां जैसी हुई. इस रिश्ते को कैसे स्वीकारा जा सकता है?

अब आगे यह मामला कोई भी मोड़ ले, लेकिन एक इंटरनैशनल लैवल की खिलाड़ी का अपनी बड़ी बहन पर यों इलजाम लगाना चौकाने वाला है, पर साथ ही यह सवाल भी खड़ा करता है कि अगर दुती चंद को वाकई उस की बड़ी बहन ने बदनाम करने की साजिश रची है, तो महिला आयोग इस पर क्या कदम उठाएगा?

साधारण औरतों की कौन सुनेगा

‘मीटू’ कैंपेन का एक दुखद पक्ष यह है कि इस में चर्चा केवल जानेमाने नामों की हो रही है. सैकड़ों नहीं हजारों या फिर लाखों ऐसी लड़कियां होंगी जो जवानी में पुरुषों की ज्यादतियों की शिकार हुई होंगी पर अब सालों गुजर जाने के बाद, अपने घर में सुरक्षा होने के बावजूद वे रिस्क नहीं ले सकतीं कि अपने साथ हुए जुर्म की पोलपट्टी खोल सकें.

‘मीटू’ का लाभ उन्हीं को मिल रहा है जो दुनिया में अपना आजाद स्थान बना सकी हैं और अगर अपने पति और बच्चे हैं तो उन की टेढ़ी निगाहों का सामना कर सकती हैं. आम घरों की या साधारण पदों पर काम करने वाली औरतों के बस का यह जोखिम लेना नहीं है, क्योंकि न तो सोशल मीडिया उन का साथ देगा और न ही पुलिस कोई सुरक्षा देगी.

एक युवा होती लड़की किसकिस तरह का आतंक सहने को मजबूर हो सकती है, यह तो खुद भुक्तभोगी ही जानती है. उसे न तब कहने का अधिकार होता है जब वह अबोध, कमजोर या आश्रित हो और न तब जब वह पूरे घर की मालकिन, पति व बच्चों के साथ हो. समाज ने सक्षम व चर्चित लोगों को तो रिस्क लेने का अवसर भी दे दिया है और उन की बातों को सहजता से लेना भी स्वीकारना शुरू कर दिया है पर साधारण औरतों को यह छूट कहां है?

‘मीटू’ आंदोलन तब तक अधूरा और बिना धारदार चाकू ही रहेगा जब तक यह शक्ति हरेक के पास न हो ताकि हर पुरुष तब भी लिबर्टी न ले जब युवती साधारण और कमजोर है.

अब ‘मीटू’ केवल कुछ के लिए ही न्याय की आस पाने का साधन बना है पर यह औरतों की पूरी जमात को कोई सुरक्षा दे पाएगा, इस में संदेह है. अमेरिका में भी अब तक ‘मीटू’ के आरोपी मजे में हैं.

दशकों पहले हुए अपराधों को अदालतों में साबित करना कठिन रहेगा और संबंध सैक्स के या सैक्स से थोड़े कम के सहमति से नहीं बने थे यह कभी साबित न हो पाएगा.

जैसे पुरुषों को यह डर नहीं होता कि उन्हें सिर्फ कमजोर मान कर कोई लूटेगा नहीं और अगर लूटने का प्रयास किया तो वे तभी कानून की सहायता ले सकते हैं. यही हक समाज को औरतों को देना होगा. कौमार्य, संस्कृति, सम्मान, शालीनता के झूठे नारों से औरतों को बचाना होगा. ये समाज को सुव्यवस्थित नहीं रखते, औरतों की जबान बंद रखते हैं.

 

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