मुझे फ्लाई करना बहुत  पसंद है- मेघा सिंघानिया

मेघा सिंघानिया, हैड, कैबिन क्रू डिपार्टमैंट, एअर एशिया, इंडिया.

एअर एशिया इंडिया के कैबिन क्रू डिपार्टमैंट की हैड मेघा सिंघानिया की शख्सियत अनूठी है. 10 साल से अधिक ऐविएशन इंडस्ट्री में काम करने वाली मेघा को हमेशा चुनौतियां पसंद हैं.

मेघा से उन की सफल जर्नी और काम की चुनौतियों के बारे में हुई बात के कुछ अंश पेश हैं:

ऐविएशन के क्षेत्र में आने की वजह क्या है?

मुझे शुरू से शो विज वाले काम पसंद हैं. मसलन, ग्रूमिंग करना, कोचिंग करना और सेवा उद्योग आदि. मैं इन तीनों क्षेत्रों में काम करना चाहती थी और हमेशा कुछ अलग करने की इच्छा रही है ताकि सामने वालों को चुनौती दे सकूं. 2004 में मिस इंडिया के इवेंट में 30 महिलाओं के साथ फाइनल राउंड तक पहुंचना मेरे लिए एक बड़ी बात थी.

इस के बाद लोग मुझे पहचानने लगे और मुझे एअर एशिया में काम करने का मौका मिला. यहां मैं ने जाना कि एअरलाइंस सिर्फ रोजगार ही नहीं देतीं, बल्कि उन में बहुत कुछ सीखने का मौका भी मिलता है. 10 साल यहां काम करने के बाद पता चला ग्लैमर, कोचिंग और सर्विस यहां है. यहां काफी कुछ सीखने के अलावा अच्छी ग्रोथ भी होती है. यहां मैं करीब 700 लड़कों और लड़कियों को ट्रेनिंग देती हूं और यह काम करते हुए मुझे बहुत अच्छा लगता है.

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इस क्षेत्र में चुनौतियां कितनी हैं और उन से कैसे निकलीं?

शुरू में मैं ने भी कैबिन कू्र की तरह काम किया और काम को समझ, क्योंकि घर पर काम करना और हवाईजहाज में काम करने में बहुत अंतर है, क्योंकि यहां अलगअलग जगहों से अलगअलग स्वभाव और मानसिकता के लोग आते हैं. ऐसे में सर्विस को संभाल कर बात करना पड़ता है, जो आसान नहीं होता. लोगों में यह धारणा है कि कैबिन क्रू सजधज कर सिर्फ खाना परोसतीं और सामान रखती हैं, जबकि यहां फार्स्ट ऐड, सैफ्टी, सिक्यूरिटी आदि सब उन्हें सीखना पड़ता है.

वे एक फायर फाइटर का काम करती हैं, क्योंकि इमरजैंसी में उन्हें सही निर्णय लेना पड़ता है. इस के लिए 3 महीने की ट्रेनिंग भी होती है. नई चीजों को सीखने के बाद मेरी आंखें खुलीं और मैं ने पाया कि एक यूनिफौर्म के अंदर कितनी सारी यूनिफौर्म होती हैं और इस का भार कैबिन क्रू पर भी बहुत होता है.

मेरे सामने कई बार चुनौतियां आईं, पर कंपनी ने बहुत साथ दिया. असल में फ्लाइट पर जाने में अच्छा लगता है और जब यात्रियों को उन के गंतव्य स्थल तक पहुंचा दिया जाता है, तो खुशी मिलती है.

क्या कभी आप को ग्लास सीलिंग का सामना करना पड़ा?

ऐविएशन इंडस्ट्री में ऐसी बात नहीं है, क्योंकि पायलट, इंजीनियर, गैस्ट सर्विस औफिसर, कैबिन क्रू आदि सब जगह महिलाएं काम कर रही हैं. यह इंडस्ट्री सर्विस रिलेटेड है, इसलिए यहां महिलाओं को ही अधिक प्राथमिकता दी जाती है. यहां कोई समस्या महिलाओं के प्रमोशन को ले कर नहीं होती. यहां महिलाएं पुरुषों की तुलना में 3 गुना ज्यादा हैं.

क्या महिलाओं के लिए इस फील्ड में कैरियर बनाना मुश्किल है?

मुश्किल नहीं, पर चैलेंजेस हैं, क्योंकि यह काम शिफ्ट में होता है, इसलिए सुबह, रात या दिन में ड्यूटी होती है, लेकिन मन बना लेने से काम करना आसान हो जाता है. इस क्षेत्र में किसी भी उम्र की महिलाएं अगर फिट है, तो काम कर सकती है. यहां महिलाओं को मैटरनिटी लीव भी दी जाती है.

कोविड 19 के समय में टीम को लीड करना कितना मुश्किल था?

टीम में कुछ लोगों का औफिस एअरक्राफ्ट है, क्योंकि वे रोज फ्लाई करते रहते हैं. कोविड-19 के समय उन लोगों को एअरक्राफ्ट से अलग कर लौकडाउन में घर पर बैठा दिया गया. यहां काम करने वाले कैबिन क्रू 18 से 25 वर्ष के बीच के होते हैं. घर पर बैठना उन के लिए मुश्किल था. वे अपने घर भी नहीं जा सकते थे, क्योंकि फ्लाइट्स बंद थी.

उस समय उन्हें सहयोग करना बहुत जरूरी था, क्योंकि ये सारे यंग हैं और काम न होने की वजह से घबराने लगे थे. इस के लिए मैं ने ट्रेनिंग की व्यवस्था की. रोज उन से बात करना, उन का हालचाल पूछना आदि करती थी. इस के अलावा कोविड की सारी जानकारी वर्चुअली दी गई ताकि वे पैनिक न हो जाए. उन के पेरैंट्स यहां नहीं थे, ऐसे में टीम को रोज मोटिवेशन देना पड़ता था. मानसिक रूप से मुझे उन का साथ देना पड़ा.

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कोरोना के दौरान किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा? क्या आप घर जा पाती थीं और यदि हां तो घर वालों की प्रतिक्रिया क्या होती थी?

कोरोना के दौरान पहले लौकडाउन हुआ, फिर औफिस खुला भी तो बहुत सारी रिस्ट्रिकशन थीं. घर से निकलने के बाद और औफिस से निकल कर घर पहुंचना एक चुनौती थी. औफिस में हर तरह की सावधानी बरती जा रही थी, इसलिए वहां काम करना मुश्किल नहीं था.

इस के अलावा हमें घर से काम करने की भी अनुमति दी गई थी. मैं औफिस अपनी गाड़ी से जाती थी और उसे दिन में कई बार सैनिटाइज करती थी. घर पहुंचने पर अपना सामान अलग रख कर उसे सैनिटाइज करना, नहाना आदि करना पड़ता था. इस के अलावा मैं ने एक औक्सिमीटर भी अपने पास रख लिया था, जिस से मैं अपना औक्सीजन लेवल देखती थी, 94 से नीचे होने पर डाक्टर से कैसे मिलना है, इस की जानकारी भी दे दी गई थी.

घर वालों ने मेरा बहुत साथ दिया है,  क्योंकि उन्हें पता है कि मैं ऐविएशन में हूं. उन्हें पता है कि मेरा रूटीन घर पहुंचने के बाद कैसा रहता है. मैं ने खुद सीख कर घर वालों को भी सिखा दिया था.

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