असम की खूबसूरती से जुडी है पोशाक मेखला चादोर, जानें कैसे

असम की हरी-भरी वादियाँ और सुंदर पर्वत श्रृंखला अनायास ही किसी को आकर्षित करती है. वहां की रहन-सहन, खान-पान और मौसम बहुत ही मनोरम होता है. वहां की महिलाओं का खास परिधान मेखला चादोर है. पारंपरिक इस परिधान अधिकतर सिल्क या कॉटन होते है. उस पर खुबसूरत डिजाईन की बुनाई कर सुंदर रूप दिया जाता है, लेकिन ऐसी खूबसूरत परिधानों का चलन पहले की अपेक्षा कम होने लगी है, क्योंकि नए जेनरेशन को पुरानी डिजाईन आकर्षित नहीं करती, जिससे इन्हें बनाने वाले बुनकरों का पेट भरना भी मुश्किल होने लगा. इनके बच्चे घर छोड़कर बाहर काम की तलाश में जाने लगे.

फैला रही है विश्व में

असम की राजधानी गौहाटी में रहने वाली डिज़ाइनर संयुक्ता दत्ता ने इन्ही कारीगरों को जोड़कर उनके काम को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही है और उनके द्वारा बनाये गए आसाम सिल्क और मूंगा सिल्क के काम को मार्केट तक पहुंचाकर उनके काम को विश्व में फैला रही है. यही वजह है कि आज इन बुनकरों के बच्चे भी धीरे-धीरे इस काम की ओर रुख कर रहे है. आज मेखला चादोर विश्व में बहुत स्टाइलिस्ट और चर्चित पहनावा बन चुका है. लक्मे फैशन वीक विंटर कलेक्शन में संयुक्ता ने कांसेप्ट ‘चिकी-मिकी’ को रैम्प पर उतारी और उनकी शो स्टॉपर अभिनेत्री दिव्या खोसला कुमार ने ब्लैक मेखला चादोर बेल्टेड साडी स्ट्रेपिंग चोली के साथ पहन रखी थी.

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विलुप्त होती कला कोबचाने की कोशिश

इस कला के बारें में संयुक्ता कहती है कि हैंडलूम कपड़ों को लोगों तक पहुँचाना बहुत कठिन होता है, क्योंकि ये कपडे महंगे होते है.पॉवरलूम को अधिक अहमियत इसलिए मिल रही है, क्योंकि इनके कपडे जल्दी बन जाने की वजह से सस्ते होते है, जबकि पारंपरिक असम सिल्क हाथ से बुनाई कर तैयार किये जाते है इसलिए थोड़े महंगे होते है,लेकिन सालों तक इसकी खूबसूरती बनी रहती है. पॉवरलूम पर वे आसाम सिल्क की खूबसूरती को नहीं ला पाते. इसी वजह से आज भी इन कारीगरों की चाह लोगों में है और मेरी ये कोशिश है कि इन कारीगरों की कारीगरी को विलुप्त होने से बचाई जाय और मेखला चादोर को सब लोग जाने. पहले मैं जब असम से दूर किसी दूसरी जगह जाती थी, तो लोग हर प्रकार के कपड़ों को जानते है, लेकिन आसाम सिल्क और मेखला चादोर से परिचित नहीं थे. मैं हर फैशन शो में मेखला चादोर को ही शो केस करती हूँ, क्योंकि वहां हर तरह के व्यवसायी से लेकर ब्लॉगर सभी आते है और इसे लोगों तक पहुँचाना आसान होता है.

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छोड़नी पडीजॉब 

संयुक्ता ने अपनी जर्नी सरकारी नौकरी, एक इंजिनीयर के रूप में शुरू की थी. 10 साल काम करने के बाद उन्होंने जॉब छोड़ दिया और आसाम सिल्क को पोपुलर करने का बीड़ा उठाया. ये निर्णय लेना उनके लिए आसान नहीं था, क्योंकि संयुक्ता के पिता की मृत्यु के बाद उनकी माँ ने पूरे परिवार का पालन-पोषण बहुत मुश्किल से किया था, ऐसे में माँ ने संयुक्ता को नौकरी न छोड़ने की सलाह दी थी. संयुक्ता आगे कहती है कि माँ के मना करने की वजह मेरा डिज़ाइनर के क्षेत्र में ज्ञान का न होना है, पर मुझे विश्वास था कि मैं कुछ अच्छा कर सकूँगी.पति ने सपोर्ट दिया और दिल की बात सुनने की सलाह दी. नौकरी छोड़ मैं डिज़ाइनर बन गयी. तब मेरे पास कोई फैक्ट्री नहीं थी और बुनकर किसी काम के लिए एडवांस में पैसे लेते थे, पर उन्हें मेरी डिजाईन को बनाना पसंद नहीं था, क्योंकि उन्हें मार्केट की जानकारी नहीं थी. गांव में रहकर वे एक ही डिजाईन को बार-बार बनाते थे. वे किसी नयी डिजाईन को एक्सपेरिमेंट करना नहीं चाहते थे. मेरे लिए ये सबसे बड़ी चुनौती थी.

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हैंडलूम में लगती है अधिक श्रम

असल में एक मेखला चादोर को बनाने में 25 से 30 दिन की कठिन श्रम लगते है, लेकिन उनकी मजदूरी उनके मेहनत के हिसाब से नहीं थी. इसलिए वे इस काम को छोड़ दूसरे क्षेत्र में जाना चाह रहे थे. मैंने उनकी जरूरतों को देखते हुए उन्हें अच्छी मजदूरी के साथ-साथ मुफ्त में खाना, मुफ्त में ठहरने की व्यवस्था, मेडिकल की सुविधा देनी शुरू कर दी. तब उन्हें समझ में आया कि मैं कुछ अच्छा काम उनके लिए कर रही हूँ. अभी मेरे पास 150 लूम्स है और इन सभी बुनकरों को मैं हर तरीके की सपोर्ट करती हूँ. मैंने खुद की फैक्ट्री साल 2015 में शुरू की है. अभी मुझे कोई समस्या नहीं है, बुनकर खुद काम की तलाश में मेरे पास आते है. इसमें व्यस्क ही नहीं, यूथ भी आकर काम सीख रहे है, क्योंकि उनकी बेसिक जरूरतें यहाँ पूरी हो रही है. साथ ही अच्छे और अधिक काम के लिए उन्हें इन्सेन्टिव भी देती हूँ.

मिला बुनकरों का समर्थन

अभी ये बुनकर इस इंडस्ट्री की ओर अधिक से अधिक आकर्षित हो इसकी कोशिश चल रही है. मेरा काम आसाम की मलबरी सिल्क, मूंगा सिल्क और हैंडलूम है. मैं हैंडलूम को जिन्दा रखना चाहती हूँ, क्योंकि पॉवरलूम बहुत तेजी से इस पर हावी हो रहा है और यहाँ एक मेखला चादोर को बनाने में केवल एक दिन लगता है, इसलिए ये सस्ती होती है, पर सस्टेनेबल नहीं होती. बुनकरों को सपोर्ट न करने पर हैण्डलूम एक दिन मर जायेगी. सरकार की तरफ से किसी प्रकार की कोई सहायता नहीं मिलती. इसलिए मैं अधिक से अधिक फैशन शो कर इस कला को विलुप्त होने से बचाना चाहती हूँ. हर साल दो से तीन फैशन शो करती हूँ, जो काफी खर्चीला होता है, लेकिन इसका खर्चा मैं अपनी कमाई से पूरा करती हूँ. मैने जितना कमाया, उसे इन्ही चीजों पर खर्च कर किया है. आसाम सिल्क से बने मेखला चादोर को किसी भी अवसर पर पहना जा सकता है.

सोचनी पड़ती है नयी डिजाईन

डिजाईन में नयापन लाने के लिए वह खुद डिजाईन ड्रा करती है,इस काम में एक लम्बा प्रोसेस होता है. इसके लिए उन्हें बहुत सोचना पड़ता है, इसके बाद उस डिजाईन को कम्प्यूटर पर बनाकर कार्ड्सबनाये जाते है, जिसे लूम से जोड़ा जाता है फिर डिजाईन की बुनाई कपड़ों पर होती है. इस प्रकार कई प्रोसेस से गुजर कर ही ड्रेसेज बनती है. संयुक्ता को ख़ुशी इस बात से है कि उन्हें अगले साल न्यूयार्क फैशन वीक में उनकी यूनिक पोशाक के लिए  आमंत्रित किया गया है.

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विदेशों में है इसकी मांग

संयुक्ता आगे कहती है कि कोविड में पूरा देश लॉकडाउन में था, पर मेरे फैक्ट्री का काम चलता रहा, क्योंकि बुनकर फैक्ट्री में रहते और काम करते रहे. उन्हें बाहर जाने की जरुरत नहीं थी, उनकी देखभाल मैं करती थी. ऐसे में जब लॉकडाउन खुला तो मेरे पास ही केवल ड्रेसेज थे और मैंने 3 महीने का व्यवसाय एक महीने में किया.बांग्लादेश में बहुत सारे लोग मेरे इस काम की बहुत तारीफ़ करते है और मैं उन्हें अपनी ड्रेसेज भेजती हूँ. इसके अलावा यूके, अमेरिका, इंडोनेशिया, दोहा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि सभी जगहों पर मैं आसाम सिल्क को पहनना लोग चाहते है. ये लोग आसामीज नहीं, फिर भी मेखला चादोर को पहनना पसंद करते है.

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