मैंस्ट्रुअल हाइजीन के लिए 5 बातें

मासिकधर्म यानी पीरियड्स के दौरान हाइजीन का ध्यान रखना हर महिला के के लिए बेहद जरूरी है. वूमन हैल्थ और्गेनाइजेशन द्वारा कराए गए सर्वे में भारत में सभी तरह की प्रजनन संबंधी बीमारियों के पीछे मेन कारण पीरियड्स के दौरान साफसफाई का ध्यान न रखना पाया गया.

देश के देहातों में मासिकधर्म को ले कर कई तरह के भ्रम फैले हैं. ग्रामीण इलाकों में तो आज भी मासिकधर्म पर बात करना मना सा है, जिस से मासिकधर्म के दौरान साफसफाई की कमी रह जाती है, जो कई बीमारियों का कारण बनती है.

आज भी गिनीचुनी महिलाओं की ही पहुंच उन साधनों तक है, जिन से संपूर्ण हाइजीन तय होती है. ज्यादातर महिलाएं मासिकधर्म और हाइजीनिक हैल्थ प्रैक्टिस के वैज्ञानिक पहलुओं से अनजान हैं. मासिकधर्म के बारे में जानकारी की कमी के कारण न सिर्फ सेहत पर असर पड़ता है, बल्कि यह महिलाओं की मासिक सेहत के लिए भी खतरा हो सकता है. वे तनाव, विश्वास में कमी जैसी परेशानियों से घिर सकती हैं.

मासिकधर्म के दौरान बेसिक हाइजीन को ले कर हर लड़की, महिला को इन बातों का जरूर ध्यान रखना चाहिए:

सैनिटेशन का तरीका: आज बाजार में कई तरह के साधन मुहैया हैं जैसे सैनिटरी नैपकिन, टैंपून्स और मैंस्ट्रुअल कप जिन से मासिकधर्म के दौरान साफसफाई तय होती है. कुछ महिलाएं अपने पीरियड्स के दौरान अलगअलग दिनों पर अलगअलग प्रकार के सैनिटरी नैपकिन इस्तेमाल करती हैं या फिर अलग प्रकार के उपायों को अपनाती हैं जैसे टैंपून और सैनिटरी नैपकिन. लेकिन कुछ किसी एक प्रकार और ब्रैंड को अपनाती हैं. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि वह आप की जरूरतों के हिसाब से सही है या नहीं.

रोज नहाएं: कुछ समाजों में यह मान्यता है कि पीरियड्स के दौरान महिलाओं को नहाना नहीं चाहिए. इस सोच के पीछे का कारण यह है कि पुराने जमाने में महिलाओं को खुले में या फिर किसी नदी अथवा झील के किनारे खुले में नहाना पड़ता था. नहाने से बदन की सफाई होती है. नहाने से मासिकधर्म के दौरान ऐंठन, दर्द, पीठ दर्द, मूड में सुधार होने के साथसाथ पेट फूलना जैसी परेशानी से भी राहत मिलती है. इस के लिए कुनकुने पानी से नहाएं.

साबुन इस्तेमाल न करें: मासिकधर्म के दौरान साबुन का प्रयोग न करें. योनि की साबुन से सफाई करने पर अच्छे बैक्टीरिया के नष्ट होने का खतरा रहता है, जो इन्फैक्शन का कारण बन सकता है. लिहाजा, इस दौरान योनि की सफाई के लिए कुनकुना पानी ही काफी है. हां, बाहरी भाग की सफाई के लिए साबुन का इस्तेमाल कर सकती हैं. इस दौरान वैजाइनल केयर लिक्विड वाश का इस्तेमाल करना चाहिए और इस का इस्तेमाल सिर्फ मासिकधर्म के दौरान ही नहीं, बल्कि बाकी दिनों में भी करना चाहिए.

हाथ अवश्य धोएं: सैनिटरी पैड या टैंपून या फिर मैंस्ट्रुअल कप बदलने के बाद हाथ जरूर धोएं. हाइजीन की इस आदत का हमेशा पालन करें. इस के अलावा इस्तेमाल किए गए पैड या टैंपून को डस्टबिन में ही डालें, फ्लश न करें.

अलग अंडरवियर का इस्तेमाल करें: मासिकधर्म के दौरान अलग अंडरवियर्स का इस्तेमाल करें. इन्हें सिर्फ पीरियड्स के दौरान ही इस्तेमाल करें और अलग से कुनकुने पानी और साबुन से धोएं. एक ऐक्स्ट्रा पैंटी साथ जरूर रखें ताकि रिसाव होने पर उस का इस्तेमाल किया जा सके. यदि पैंटी पर दाग लग जाए तो नीबू या ब्लीचिंग पाउडर से हटा लें.

-अमोल प्रकाश (संस्थापक, डिया कौर्प)

जरूरी है मैंस्ट्रुअल हाइजीन

पीरियड्स यानी माहवारी महिला के शरीर में होने वाली एक सामान्य प्रक्रिया होती है. फिर भी इस बारे में अधिकांश महिलाओं को सही जानकारी नहीं होती है और कुछ महिलाएं इस बारे में बात करने में भी संकोच महसूस करती हैं. इस कारण वे पीरियड्स में हाइजीन से सम झौता कर के खुद की हैल्थ के साथ खिलवाड़ करती हैं, जो सही नहीं है.

‘ससटैनेबल सैनिटेशन ऐंड वाटर मैनेजमैंट नामक संस्था के अनुसार, दुनियाभर में 52% महिलाएं रिप्रोडक्टिव ऐज में हैं, लेकिन बहुत कम महिलाएं ही पीरियड्स के दौरान हाइजीन का ध्यान रखती हैं, जो काफी चौंकाने वाली बात है.

आज मैंस्ट्रुअल हाइजीन को बनाए रखने के लिए मार्केट में सैनिटरी पैड, टैंपोंस, मैंस्ट्रुअल कप आदि सबकुछ उपलब्ध है, फिर भी भारत में आज भी 80% महिलाएं इन का उपयोग नहीं करती हैं, बल्कि इन की जगह पुराने तरीके जैसे पुराने कपड़े, पत्तियां आदि का इस्तेमाल करती हैं, जो उन के लिए जानलेवा भी साबित हो सकता है. ग्रामीण क्षेत्रों में सालों से चली आ रही दकियानूसी प्रथाऐ मैंस्ट्रुअल हाइजीन के सामने सब से बड़ा रोड़ा हैं.

क्यों जरूरी है मैंस्ट्रुअल हाइजीन

यूटीआई के खतरे को करे कम

अकसर जब भी महिलाएं लंबे समय तक गंदे, गीले कपड़े या फिर गंदे सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं, तो वहां पैदा हुई नमी के कारण बैक्टीरिया को पनपने के लिए अनुकूल वातावरण मिल जाता है, जो यूरिनरी ट्रैक्ट इंफैक्शन का कारण बनता है. पैड या कपड़े में नमी के कारण उस में माइक्रोब्स जैसे इ कोली, कैंडिडा ऐल्बीकंस पैदा हो जाते हैं, जिन के परिणामस्वरूप पेशाब करने में जलन, पेट के निचले हिस्से में दर्द, बुखार, यहां तक कि बौडी में दर्द की समस्या भी हो सकती है. इन से बचने के लिए हर 4 घंटे में पैड को बदलना चाहिए. साथ ही जब भी पैड को बदलें तब साफ पानी से उस जगह को जरूर साफ करें. ऐसा करने से महिला खुद को इंफैक्शन से बचा पाएगी.

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स्किन रैशेज से बचाव

स्किन पर रैशेज होने का मुख्य कारण स्किन हाइजीन का ध्यान नहीं रखना होता है. ऐसा अकसर तब होता हैजब पैड या कपड़ा गीला हो जाता है और आप उसे नहीं बदलतीं, जिस के कारण वैजाइना में इन्फैक्शन होने से स्किन इरिटेशन के कारण जांघों पर रैशेज पड़ जाते हैं. जिन में जलन, खुजली होने लगती है.

इन से आप हाइजीन का ध्यान रख कर बच सकती हैं.

एक रिसर्च के अनुसार, पैड में इस्तेमाल की गई ऐडहैसिव के कारण भी रैशेज की समस्या होती है. यह एक तरह की ग्लू होती है, जो पैड की बैक साइड पर लगाई जाती है, ताकि पैड अंडरवियर के साथ चिपक जाए, साथ ही कुछ पैड में खुशबू का भी इस्तेमाल किया जाता है.

मगर जिन महिलाओं की स्किन बहुत सैंसिटिव होती है, उन्हें इस के कारण भी रैशेज की समस्या हो जाती है. इसलिए जल्दीजल्दी सैनिटरी पैड चेंज करने के साथसाथ बायोडिग्रेडेबल पैड का ही इस्तेमाल करें. क्योंकि यह फाइबर से बना होने के कारण स्किन को किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है. जबकि अन्य 90% पैड्स प्लास्टिक और क्लोरीन ग्लीच वुड पल्प से बने होने के साथ उन में कैमिकल्स का बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है, जो स्किन को नुकसान पहुंचाने का ही काम करते हैं. इसलिए हाइजीन के लिए बायोडिग्रेडेबल पैड्स बैस्ट हैं.

रिप्रोडक्टिव हैल्थ को रखें मैंटेन

हर महिला के जीवन में मां बनने का अनुभव सब से बेहतरीन अनुभव होता है और इस सुख से कोई भी महिला वंचित नहीं रहना चाहती है. ऐसे में अगर पीरियड्स के दौरान साफसफाई का ध्यान नहीं रखा जाता तो यह सीधेसीधे उन की रिप्रोडक्टिव हैल्थ को नुकसान पहुंचाने का ही काम करता है, क्योंकि अगर इस दौरान गंदे पैड, कपड़े का इस्तेमाल किया या समय पर नहीं बदला जाता तो इन्फैक्शन होने से यह हमारे गुप्तांग तक पहुंच कर इनर लेयर को प्रभावित कर देता है, जिस से यूटरस की दीवार, ओवरीज चाहिए, यहां तक कि ट्यूब भी खराब हो सकती है. इसलिए हमेशा साफसफाई का खास ध्यान रखें.

सर्वाइकल कैंसर से बचाव

यह सर्विक्स का यानी गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर होता है. यह कैंसर ह्यूमन पैपीलोमा वायरस की वजह से होता है. यह वायरस सैक्स के दौरान या फिर पीरियड्स के दौरान हाइजीन का ध्यान नहीं रखने की वजह से भी होता है. इसलिए पीरियड्स के दौरान स्वच्छताका खास ध्यान रखें. पैड को जल्दीजल्दी बदलें, पैड चेंज करने के बाद हाथों को जरूर साफ करें. इस से काफी हद तक आप सर्वाइकल कैंसर से बच पाएंगी.

स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा किए गए सर्वेक्षण में पाया गया कि भारत में हर साल सर्वाइकल कैंसर से होने वाली मौतों के लगभग 60 हजार मामले सामने आते हैं, जिन में से दोतिहाई मामले पीरियड्स में स्वच्छता न रखने की वजह से होते हैं. इसलिए मैंस्ट्रुअल हाइजीन का खास ध्यान रखना चाहिए और इस दौरान कपड़े आदि के प्रयोग से बचना चाहिए.

आप को रखे कौन्फिडैंट भी

जब भी हम पीरियड्स के दौरान कपड़े बगैरा का इस्तेमाल करती हैं तो हर समय यही डर सताता रहता है कि कहीं कपड़ा खराब न हो जाए. उठनेबैठने में भी दिक्कत होती है. लेकिन जब पैड, टैंपोन का इस्तेमाल करते हैं और उन्हें समयसमय पर बदलती रहती हैं तो उस से न सिर्फ खुद की हाइजीन का ध्यान रखती हैं, बल्कि इस से कौन्फिडैंस भी बढ़ता है, क्योंकि कपड़े खराब होने की टैंशन जो नहीं होती.

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पैड और टैंपोन के इस्तेमाल का समय

पी सेफ की सहसंस्थापक श्रीजना बगारिया बताती हैं कि लाइट और हैवी फ्लो के लिए पैड्स भी विभिन्न आकारों में आते हैं. ऐसे में पैड या टैंपोन कितनी देर में बदलना चाहिए यह इस पर निर्भर करता है कि आप के पीरियड्स में निकलने वाले ब्लड का फ्लो कितना हलका या कितना तेज है. बात करें इसे बदलने के समय की तो कम से कम 3-4 घंटे बाद पैड को बदलना चाहिए. वहीं टैंपोन को बदलने का वक्त 4-6 घंटे होता है.

इस बात को ले कर चिंतित न रहें कि टैंपोन वैजाइना के अंदर ही न फंस जाए, क्योंकि ऐसा नहीं होता. टैंपोन में एक छोर से जुड़ा स्ट्रिंग होता है, जो शरीर के बाहर ही रहता है और किसी भी टैंपून को हटाने के लिए उस का इस्तेमाल होता है. इसलिए ये काफी सेफ है. बस खुद की हाइजीन के साथ कोई सम झौता न करें.

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