माता पिता की असमय मृत्यु के बाद ऐसे रखें बच्चों का ख्याल

जब हम किसी से प्यार करते हैं तो हमारे लिए उस इंसान के बगैर जीना मुश्किल सा हो जाता है. क्योंकि वो नुकसान इतना बड़ा होता है की उसकी भरपाई दुनिया की कोई भी चीज़ नहीं कर सकती. पर इससे भी बड़ी मुश्किल तब जन्म लेती है जब किसी बच्चे के माता पिता की युवावस्था में ही मृत्यु हो जाए.
वयस्कों की तरह, बच्चे भी उसी भयावह दुख की प्रक्रिया से गुजरते हैं. और जैसे माता-पिता के होने के लिए कोई नियम पुस्तिका नहीं है, वैसे ही अपने माता पिता के बगैर बच्चे कैसे प्रतिक्रिया करेंगे,इसके लिए भी कोई नियम पुस्तिका नहीं है.

बच्चे कभी-कभी बहुत दुखी और परेशान हो सकते हैं, कभी-कभी वे शरारती या क्रोधित हो सकते हैं, और हो सकता है की आपको कभी-कभी यह प्रतीत हो की वो भूल गए हैं. लेकिन सच कहूँ तो वे भूलते नहीं है ,एक बच्चा शायद ही कभी मौखिक रूप से अपने दुख को व्यक्त कर सकता है. इसी कारण से कम उम्र के बच्चे अक्सर डिप्रेशन का शिकार हो रहे है.

अवसाद के संकेतों को कैसे पहचाने-

बच्चे और वयस्कों में अवसाद के समान लक्षण हो सकते हैं: हो सकता है वो दूसरों से बात करने से कतराएँ,हो सकता है वो अकेला रहना चाहे, या ये भी हो सकता है की वो कुछ भी नहीं करना चाहे .
वैसे तो यह दु: ख की प्रक्रिया का एक सामान्य हिस्सा हो सकता है. लेकिन अगर यह लंबे समय तक चलता है तो आप मनोचिक्त्सक से कन्सल्ट कर सकते है.

बच्चो को इस अवसाद से बचाने के लिए ये समझना जरूरी है की बच्चे और किशोर मृत्यु को कैसे देखते है?

क्योंकि उम्र के हर पड़ाव में बच्चे का सोचने और समझने का तरीका बहुत अलग होता है.

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1- जन्म से 2 वर्ष तक के बच्चे-

इस उम्र के बच्चो में मृत्यु की कोई समझ नहीं होती.वो सिर्फ अपने माता पिता की अनुपस्थिति का अनुभव कर सकते हैं.

माता-पिता की अनुपस्थिति में बच्चो में रोने, प्रतिक्रियाशीलता में कमी और खाने या सोने में बदलाव जैसी प्रतिक्रिया हो सकती है.

2- 3 वर्ष से 6 वर्ष तक के बच्चे-

इस उम्र के बच्चे मृत्यु के बारे में जानेने के लिए बहुत उत्सुक होते हैं. इस उम्र के बच्चो को मृत्यु की स्थायी स्थिति को समझने में परेशानी हो सकती है. “वे कहेंगे कि पापा चले गए हैं और एक घंटे बाद पापा के घर आने के लिए खिड़की पर प्रतीक्षा करेंगे ”

अक्सर कुछ बच्चे अपने आपको दोषी समझते हैं और मानते हैं कि वे अपने माता पिता की मृत्यु के लिए जिम्मेदार हैं, वे “बुरे” थे इसीलिए उनके माता-पिता चले गए.

“(शायद ऐसा इसलिए होता है की जब वो अपने माता पिता के साथ थे तब कभी कभार हंसी-मज़ाक या गुस्से में माता पिता अक्सर बोलते है की ,मै आपको छोड़ कर चला जाऊंगा या जब मेरे जाने के बाद आपको कोई भी प्यार नहीं करेगा. )

ऐसे बच्चे अकसर अपनी भावनाओं को शब्दों में बयां नहीं कर पाते. और इसी कारण उनके अंदर चिड़चिड़ापन, आक्रामकता, सोने में कठिनाई, या प्रतिगमन जैसे व्यवहार पाये जाते हैं.

3- 6 वर्ष से 12 वर्ष तक के बच्चे –

इस उम्र के बच्चे मृत्यु को व्यक्ति या आत्मा के रूप में, भूत, परी या कंकाल की तरह समझ सकते हैं.
वो अक्सर मौत के विशिष्ट विवरण में रुचि रखते हैं जैसे मृत्यु के बाद शरीर का क्या होता है??
इस उम्र के बच्चे अपराधबोध, क्रोध, शर्म, चिंता, उदासी सहित कई भावनाओं का अनुभव कर सकते हैं और अपनी मृत्यु के बारे में चिंता कर सकते हैं.

4- 13 वर्ष से 18 वर्ष तक के बच्चे –

इस उम्र के बच्चो को ये नहीं पता होता की उन्हे इन परिस्थितियों में कैसे संभलना है.वो अक्सर परिवार के सदस्यों पर गुस्सा कर सकते हैं या आवेगी या लापरवाह व्यवहार दिखा सकते हैं, जैसे कि मादक द्रव्यों का सेवन, स्कूल में लड़ाई और यौन संकीर्णता.

कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने साल के हैं, परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु कठिन और अक्सर भारी भावनाओं की एक श्रृंखला ला सकती है: सदमे, गहरी उदासी, भ्रम, चिंता और क्रोध, सब कुछ बस नाम लेने के लिए है.पर फिर भी हम खुद को और उन बच्चो को जिनहोने अपने माता पिता को खो दिया है इस कठिन समय से उबारने की कोशिश तो कर सकते हैं.

यहां मैंने बच्चे को मृत्यु और नुकसान को समझाने में मदद करने के लिए कुछ सुझाव दिए हैं-
1-उन्हें आश्वस्त करें की उनकी गलती नहीं है-

जब किसी बच्चे के माता-पिता की असमय मृत्यु हो जाती है, तो बच्चे खुद को दोषी ठहरा सकते हैं. यह विशेष रूप से तब हो सकता है जब मृत्यु काफी अचानक हो.या बच्चे के माता पिता ने हंसी मज़ाक या गुस्से में कोई ऐसा तर्क दिया हो.
उन्हें यह आश्वस्त करना महत्वपूर्ण है कि मृत्यु एक स्वाभाविक प्रक्रिया है और उनका इसमे कोई दोष नहीं है.

2-उन्हें बताए की दुखी होना ठीक है-

बच्चे का व्यवहार इस बात पर बहुत निर्भर करता है कि उनके आसपास के लोग कैसे व्यवहार कर रहे हैं. अक्सर बच्चे एक प्रोटेक्टर की भूमिका निभाते हैं और वयस्कों से अपनी भावनाओं के बारे में बात नहीं करते क्योंकि उन्हें लगता है कि वयस्क परेशान हो जाएगा.
कभी कभी ऐसा भी होता है की आप उन्हें बता रहे हैं कि शोक करना ठीक है, लेकिन अपने दुःख को उनसे छिपाने की कोशिश कर रहे हैं, तो उन्हें लग सकता है कि उन्हें भी ‘मजबूत’ होने की आवश्यकता है.
इसलिए हर समय बच्चों को “मजबूत” होने के लिए दबाव महसूस न कराएं.
अगर बच्चे किसी से अपना दुख कह नहीं पाएंगे तो वो अंदर ही अंदर घुटते रहेंगे ,और यही घुटन एक दिन अवसाद का रूप ले लेगी.

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इसलिए सबसे अच्छा यही होगा कि आप जितना हो सके पूरी तरह से शोक करें, ताकि वे आपको दुखी देख सकें – और समझें कि दुखी होना या रोना ठीक है.

3-मृत्यु के बारे में बात करते समय, सरल, स्पष्ट शब्दों का उपयोग करें-

एक चीज़ हमेशा याद रखें की भाषा मायने रखती है, इसलिए अपने द्वारा चुने गए शब्दों से अवगत रहें.मृत्यु के बारे में बात करते समय ऐसे शब्दों का प्रयोग करें जो सरल और प्रत्यक्ष हों. उनके माता-पिता की मृत्यु कैसे हुई, इस बारे में जितना संभव हो उतना सरल होने की कोशिश करें. लेकिन केवल एक हद तक जो आपके बच्चे की आयु और विकास के लिए उपयुक्त हो.बहुत अधिक विस्तार में जाने से एक बच्चे के दिमागी विकास पर बुरा असर पड़ेगा. इसलिए अपने स्पष्टीकरण को सत्य लेकिन संक्षिप्त रखें.

उदाहरण के लिए , “मुझे पता है कि आप बहुत दुखी महसूस कर रहे हैं. मैं भी दुखी हूँ. हम दोनों ही उनसे बहुत प्यार करते थे, और वह भी हमसे प्यार करते थे.”
अपने बच्चे की उम्र को ध्यान में रखते हुए मृत्यु की प्रकृति के बारे में ईमानदार रहें.

4-बच्चो को भ्रमित न करें-

एक चीज़ हमेशा याद रखें ‘सच्चाई छुपाने से बाद में अविश्वास पैदा हो सकता है’ क्योंकि बच्चे मौत के बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक रहते हैं.

अभी कुछ ही समय पहले की बात है ,एक छोटी बच्ची के पिता का देहांत हो गया था,उसके पूछने पर की पापा कहाँ गए ? घरवालों ने उससे कहा की वो सोते-सोते भगवान जी के पास चले गए.आप यकीन नहीं करेंगे ‘उस छोटी बच्ची को सोने से डर लगने लगा ‘.
इसलिए “नींद में चले गए” जैसे वाक्यांशों को भ्रमित करने के बजाय वास्तविक शब्दों का उपयोग करके मौत की व्याख्या करें.
उदाहरण के लिए , आप कह सकते हैं कि मृत्यु का मतलब है कि व्यक्ति के शरीर ने काम करना बंद कर दिया है या वह व्यक्ति अब सांस नहीं ले सकता है.

एक चीज़ और मृत्यु के बारे में अपने परिवार की धार्मिक या आध्यात्मिक मान्यताओं को साझा करें.

4-उन्हें अपनी भावनाओं और आशंकाओं को साझा करने दें:

माता पिता की मृत्यु के बाद कई बच्चे अपनी कहानी साझा करना चाहते हैं. वे आपको बताना चाहते हैं कि क्या हुआ, वे कहाँ थे जब उन्हें उनके माता पिता की मृत्यु के बारे में बताया गया या उस वक़्त उन्हे कैसा महसूस हुआ………
कभी-कभी बच्चे एक भय का भी अनुभव कर सकते है. वे इस बात को लेकर परेशान हो सकते हैं की अन्य लोग जो उनके करीब हैं वे भी उन्हें छोड़ देंगे या उनकी भी मृत्यु हो जाएगी.

यह सुनिश्चित करने के लिए कि आपके बच्चे कैसा महसूस कर रहे हैं और क्या कर रहे हैं, बातचीत जारी रखें. हीलिंग का मतलब प्रियजन के बारे में भूलना नहीं है. इसका मतलब है कि व्यक्ति को प्यार के साथ याद करना.

5-परंपराएँ और याद करने के तरीके बनाएँ:

अक्सर ऐसा होता है की जब बच्चे माता पिता से दूर हो जाते है तो कुछ विशेष अवसर जिनमे उनकी अपने माता पिता से कुछ कीमती यादें जुड़ी होती है जैसे मदर्स डे, फादर डे,वर्षगाँठ आदि बच्चो के लिए विशेष रूप से कठिन हो सकते हैं.
कोशिश करें की जितना ज्यादा संभव हो सके बच्चों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के अवसर दे. यह बातचीत के माध्यम से, नाटक के माध्यम से, या ड्राइंग और पेंटिंग के माध्यम से हो सकता है.

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कम उम्र में माता-पिता को खोने से दीर्घकालिक परिणाम हो सकते हैं जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता है. यही कारण है कि माता-पिता की मृत्यु के बाद पारिवारिक परामर्श इतना महत्वपूर्ण हो सकता है, खासकर अगर नुकसान अप्रत्याशित या दर्दनाक है, जैसे कि आत्महत्या या हिंसक मौत.

NOTE: प्रत्येक परिवार का द्रष्टिकोण अलग हो सकता है.

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