मुसकान: सुनीता की जिंदगी में क्या हुआ था

‘‘आंटी, आप बारबार मुझे इस तरह क्यों घूर रही हैं?’’ मेघा ने जब एक 45 साल की प्रौढ़ा को अपनी तरफ बारबार घूरते देखा तो उस से रहा न गया. उस ने आगे बढ़ कर पूछ ही लिया, ‘‘क्या मेरे चेहरे पर कुछ लगा है?’’

‘‘नहीं बेटा, मैं तुम्हें घूर नहीं रही हूं. बस, मेरा ध्यान तुम्हारी मुसकराहट पर आ कर रुक जाता है. तुम तो बिलकुल मेरी बेटी जैसी दिखती हो, तुम्हारी तरह उस के भी हंसते हुए गालों पर गड्ढे पड़ते हैं,’’ इतना कह कर सुनीता पीछे मुड़ी और अपने आंसुओं को पोंछती हुई मौल से बाहर निकल गई. तेज कदमों से चलती हुई वह घर पहुंची और अपने कमरे में बैड पर लेट कर रोने लगी. उस के पति महेश ने उसे आवाज दी, ‘‘क्या हुआ, नीता?’’ पर वह बोली नहीं. महेश उस के पास जा कर पलंग पर बैठ गया और सुनीता का सिर सहलाता रहा, ‘‘चुप हो जाओ, कुछ तो बताओ, क्या हुआ? किसी ने कुछ कहा क्या तुम से?’’

‘‘नहीं,’’ सुनीता भरेमन से इतना ही कह पाई और मुंह धो कर रसोई में नाश्ता बनाने के लिए चली गई. महेश को कुछ समझ में नहीं आया. वह सुनीता से बहुत प्यार करता है और उस की जरा सी भी उदासी या परेशानी उसे विचलित कर देती है. वह उसे कभी दुखी नहीं देख सकता. वह प्यार से उसे नीता कहता है. वह उस के पीछेपीछे रसोई में चला गया और बोला, ‘‘नीता, देखो, अगर तुम ऐसे ही दुखी रहोगी तो मेरे लिए बैंक जाना मुश्किल हो जाएगा. अच्छा, ऐसा करता हूं कि आज मैं बैंक में फोन कर देता हूं छुट्टी के लिए. आज हम दोनों पूरे दिन एकसाथ रहेंगे. तुम तो जानती ही हो कि जब तुम्हारे होंठों की मुसकान चली जाती है तो मेरा भी मन कहीं नहीं लगता.’’

‘‘मुसकान तो कब की हमें छोड़ कर चली गई है,’’ सुनीता के इन शब्दों से महेश को पलभर में ही उस की उदासी का कारण समझ में आ गया. आखिरकार, जिंदगी के 20 साल दोनों ने एकसाथ बिताए थे, इतना तो एकदूसरे को समझ ही सकते थे.

‘‘उसे तो हम मरतेदम तक नहीं भूल सकते पर आज अचानक, ऐसा क्या हो गया जो तुम्हें उस की याद आ गई?’’

सुनीता ने मौल में मिली लड़की के बारे में बताया, ‘‘वह लड़की हमारी मुसकान की उम्र की ही होगी, यही कोई 16-17 साल की. पर जब वह मुसकराती है तो एकदम मुसकान की तरह ही दिखती है. वही कदकाठी, गोरा रंग. मैं तो बारबार चुपकेचुपके उसे देख रही थी कि उस ने मेरी चोरी पकड़ ली और पूछ लिया, ‘आंटी, आप ऐसे क्या देख रहे हैं?’ मैं कुछ कह नहीं पाई और घर वापस आ गई,’’ सुनीता ने फिर कहा, ‘‘चलो, अब तुम तैयार हो जाओ. मैं तुम्हारा खाना पैक कर देती हूं. अब मैं ठीक हूं,’’ और वह रसोई में चली गई. महेश तैयार हो कर बैंक चला गया पर सुनीता को रहरह कर बेटी मुसकान का खयाल आता रहा. एक जवान बेटी की मौत का दर्द क्या होता है, यह कोई सुनीता व महेश से पूछे. मुसकान खुद तो चली गई, इन से इन के जीने का मकसद भी ले गई. 4 साल पहले उन्होंने अपनी इकलौती बेटी को एक दुर्घटना में खो दिया था. हर समय उन के दिमाग में यही खयाल आता था कि क्यों किसी ने मुसकान की मदद नहीं की? अगर कोई समय रहते उसे अस्पताल ले गया होता तो शायद आज वह जिंदा होती. उस पल की कल्पना मात्र से सुनीता के रोंगटे खड़े हो गए और वह फफकफफक कर रोने लगी.

जी भर कर रो लेने के बाद सुनीता जब उठी तो अचानक उसे चक्कर आ गया और वह सोफे का सहारा ले कर बैठ गई. ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ. थोड़ी कमजोरी महसूस हो रही थी तो वह बैडरूम में जा कर पलंग पर ढेर हो गई और फिर उसे याद नहीं कि वह कब तक ऐसे ही पड़ी रही. दरवाजे की घंटी की आवाज से वह उठी और बामुश्किल दरवाजे पर पहुंची. महेश उस के लिए उस का मनपसंद चमेली के फूलों का गजरा लाया था. चमेली की खुशबू उसे बहुत अच्छी लगती थी. पर आज ऐसा न था. आज उसे कुछ अच्छा न लग रहा था, चाह कर भी वह उस गजरे को हाथों में न ले पाई. जैसे ही महेश उस के बालों में गजरा लगाने के लिए आगे बढ़ा तो उस ने उसे रोक दिया, ‘‘प्लीज महेश, आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’’

‘‘क्या हुआ? क्या तुम अभी तक सुबह वाली बात से परेशान हो?’’ महेश ने कहा और उस का हाथ पकड़ कर उसे सोफे पर अपने पास बैठा लिया. ‘‘आज सुबह से ही कमजोरी महसूस कर रही हूं और चाह कर भी उठ नहीं पा रही हूं,’’ सुनीता ने बताया. महेश ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘अरे कुछ नहीं है. वह सुबह वाली बात ही तुम सोचे जा रही होगी और मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि तुम ने खाना भी नहीं खाया होगा.’’सुनीता चुपचाप अपने पैरों को देखती रही.

‘‘अच्छा चलो, आज बाहर खाना खाते हैं. बहुत दिन हुए मैं अपनी बीवी को बाहर खाने पर नहीं ले कर गया.’’ महेश सुनीता को उस उदासी से छुटकारा दिलाना चाहता था जो हर पल उसे डस रही थी. उस के लिए शायद यह दुनिया की आखिरी चीज होगी जो वह देखना चाहेगा – सुनीता का उदास चेहरा. उस के तो दो जहान और सारी खुशियां सुनीता तक ही सिमट कर रह गई थीं, मुसकान के जाने के बाद. दोनों तैयार हो कर पास के होटल में खाना खाने चले गए. महेश ने उन सभी चीजों को मंगवाया जो सुनीता की मनपसंद थीं ताकि वह उदासी से बाहर आ सके.

‘‘अरे बस करो, मैं इतना नहीं खा पाऊंगी,’’ जब महेश बैरे को और्डर लिख रहा था तो उस ने बीच में ही कह कर रोक दिया.

‘‘अरे, तुम अकेले थोडे़ ही न खाओगी, मैं भी तो खाऊंगा. भैया, तुम जाओ और फटाफट से सारी चीजें ले आओ. मैं अपनी बीवी को अब और उदास नहीं देख सकता.’’ एक हलकी मुसकान सुनीता के होंठों पर फैल गई. यह सोच कर कि महेश उस से कितना प्यार करता है और अपनेआप पर उसे गर्व भी हुआ ऐसा प्यार करने वाला पति पा कर. खाना खाने के बाद सुनीता की तबीयत कुछ संभल गई. दोनों मनपसंद आइसक्रीम खा कर घर लौट आए. इतनी गहरी नींद में सोई सुनीता कि सुबह देर से आंख खुली. उस ने खिड़की से बाहर झांक कर देखा तो बादल घिरे हुए थे. फिर उस ने पास लेटे महेश को देखा. वह चैन की नींद सो रहा था. एक रविवार को ही तो उसे उठने की जल्दी नहीं होती बाकी दिन तो वह व्यस्त रहता है. फ्रैश हो कर वह रसोई में चली गई चाय बनाने. जब तक चाय बनी, महेश उठ कर बैठक में अखबार ले कर बैठ गया. रोज का उन का यही नियम होता था-एकसाथ सुबहशाम की चाय, फिर अपनेअपने काम की भागदौड़. बाहर बादल गरजने लगे और फिर पहले धीरे, फिर तेज बारिश होने लगी. अचानक सुनीता को लगा कि कोई बाहर खड़ा है. उस ने खिड़की में से झांका. एक लड़की खड़ी थी. उस ने जल्दी से दरवाजा खोला तो देखा वह वही मौल वाली लड़की थी. उसे दोबारा देख कर सुनीता बहुत खुश हुई, ‘‘अरे बेटा, तुम आ जाओ, अंदर आ जाओ.’’

‘‘नहीं आंटी, मैं यहीं ठीक हूं,’’ उस ने डरते हुए कहा. वह कौन सा उसे जानती थी जो उस के घर के अंदर चली जाती. सुनीता ने बड़े प्यार से उस का हाथ पकड़ा और उसे खींच कर अंदर ले आई.

‘‘आंटी, आप यहां रहती हैं? मैं तो कई बार इधर से गुजरती हूं पर मैं ने आप को नहीं देखा.’’ ‘‘हां बेटा, मैं जरा घर में ही व्यस्त रहती हूं.’’

‘‘आंटी, आई एम सौरी. शायद मैं ने आप का दिल दुखाया,’’ मेघा ने कहा.

महेश एक पल को मेघा को देख कर हतप्रभ रह गया. उसे अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि वह मौल वाली लड़की ही है, ‘‘आओ बेटा बैठो, हमारे साथ चाय पियो.’’ उस ने घबराते हुए महेश से नमस्ते की और बोली, ‘‘अंकल, मैं चाय नहीं पीती.’’

‘‘मुसकान भी चाय नहीं पीती थी. बस, कौफी की शौकीन थी. आजकल के बच्चे कौफी ही पसंद करते हैं,’’ ऐसा बोल कर सुनीता रसोई में चली गई. मेघा भी उस के पीछेपीछे रसोई में चली गई.

‘‘तुम्हारा घर पास में ही है शायद?’’ सुनीता ने पूछा.

‘‘हां आंटी, अगली गली में सीधे हाथ को मुड़ते ही जो तीसरा छोटा सा घर है वही मेरा है,’’ मेघा ने बताया. ‘‘अच्छा, वह नरेश शर्मा के साथ वाला?’’ महेश ने पूछा.

‘‘जी हां, वही. मैं रोज यहां से अपने कालेज जाती हूं. आज रविवार है सो अपनी सहेली से मिलने जा रही थी. बारिश तेज हो गई, इसलिए यहीं पर रुक गई.’’ ‘‘कोई बात नहीं बेटा, यह भी तुम्हारा ही घर है. जब मन करे आ जाया करना, तुम्हारी आंटी को अच्छा लगेगा,’’ महेश ने कहा, ‘‘जब से मुसकान गई है तब से इस ने अपनेआप को इस घर में बंद कर लिया है, बाहर ही नहीं निकलती.’’ ‘‘मेरा नहीं मन करता किसी से भी बात करने का. जब से मुसकान गई है…’’ इतना बोलते ही सुनीता की रुलाई छूट गई तो मेघा ने उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘आंटी, यह मुसकान कौन है?’’

‘‘मुसकान हमारी बेटी थी जिसे 4 साल पहले हम ने एक ऐक्सिडैंट में खो दिया.’’ मेघा ने देखा सुनीता आंटी लाख कोशिश करे अपना दुख छिपाने की पर फिर भी उदासी उन पर, अंकल पर और पूरे घर पर पसरी हुई थी.

इस बीच महेश बोले, ‘‘हौसला रखो नीता, मैं हूं न तुम्हारे साथ, बस मुसकान का इतना ही साथ था हमारे साथ.’’ इधर, मेघा ने अब जिज्ञासा जाहिर की, ‘‘आंटी, आप मुझे विस्तार से बताइए, क्या हुआ था.’’ ‘‘बेटा, हमारी शादी के 3 साल बाद मुसकान हमारे घर आई तो हमें ऐसा लगा कि इक नन्ही परी ने जन्म लिया है. हमारे घर में उस की मुसकराहट हूबहू तुम्हारे जैसी थी, ऐसे ही गालों में गड्ढे पड़ते थे.’’

‘‘ओह, तो इसलिए उस दिन आप मुझे मौल में बारबार मुड़मुड़ कर देख रही थीं.’’ ‘‘हां बेटा, अब तुम्हें सचाई पता चल गई, अब तो तुम नाराज नहीं होना अपनी आंटी से,’’ महेश ने कहा.

‘‘नहीं अंकल, वह तो मैं कब का भूल गई.’’

‘‘खुश रहो बेटा,’’ कहते हुए महेश चाय पीने लगे. सुनीता ने मेघा को बताना जारी रखा, ‘‘मुसकान को बारिश में घूमना बहुत पसंद था. हमारे लाड़प्यार ने उसे जिद्दी बना दिया था. इकलौती संतान होने से वह अपनी सभी जायजनाजायज बातें मनवा लेती थी. जब उस ने 10वीं की परीक्षा पास की तो स्कूटी लेने की जिद की. हम ने बहुत मना किया कि तुम अभी 15 साल की हो, 18 की होने पर ले लेना, पर वह नहीं मानी. खानापीना, हंसना, बोलना सब छोड़ दिया. हमें उस की जिद के आगे झुकना पड़ा और हम ने उसे स्कूटी ले दी. मैं ने उसे ताकीद की कि वह स्कूटी यहीं आसपास चलाएगी, दूर नहीं जाएगी. इसी शर्त पर मैं ने उसे स्कूटी की चाबी दी. वह मान गई और हम से लिपट गई. ‘‘उस दिन वह जिद कर के स्कूटी से अपनी सहेली के घर चली गई. हम उस का इंतजार कर रहे थे. उस दिन भी ऐसी ही बारिश हो रही थी. 2 घंटे बीत गए तब सिटी अस्पताल से फोन आया, ‘जी, हमें आप का नंबर एक लड़की के मोबाइल से मिला है. आप कृपया कर के जल्द सिटी अस्पताल पहुंच जाएं.’ ‘‘डर और घबराहट के चलते मेरे पैर जड़ हो गए. हम दोनों बदहवास से वहां पहुंचे. देखा, हमारी मुसकान पलंग पर लेटी हुई थी, औक्सीजन लगी हुई थी, सिर पर पट्टियां बंधी हुई थीं और साथ वाले पलंग पर उस की सहेली बेहोश थी. जब उसे होश आया तो उस ने बताया, ‘हम दोनों बारिश में स्कूटी पर दूर निकल गईं. पास से एक गाड़ी ने बड़ी तेजी से ओवरटेक किया, जिस से हमें कच्चे रास्ते पर उतरना पड़ा और उस गीली मिट्टी में स्कूटी फिसल गई. हम दोनों गिर गए और बेहोश हो गए. उस के बाद हम यहां कैसे पहुंचे, नहीं मालूम.’ ‘‘इसी बीच डाक्टर आ गए. उन्होंने मुझे और महेश को बताया कि सिर पर चोट लगने से बहुत खून बह गया है. हम ने सर्जरी तो कर दी है पर फिर भी अभी कुछ कह नहीं सकते. अभी 48 घंटे अंडर औब्जर्वेशन में रखना पड़ेगा. डाक्टर की बात सुन कर हम रोने लगे. ये भी परेशान हो गए. पलभर में हमारी दुनिया ही बदल गई. नर्स ने कहा, ‘घबराइए नहीं, सब ठीक हो जाएगा,’ तकरीबन 2 घंटे बाद मुसकान को होश आया,’’ बोलतेबोलते सुनीता का गला रुंध आया तो वह चुप हो गई.

‘‘फिर क्या हुआ अंकल? प्लीज, आप बताइए?’’ मेघा ने डरते हुए पूछा. महेश के चेहरे पर अवसाद की गहरी परत छा गई थी तो सुनीता ने कहा, ‘‘वह जब होश में आई तो उस से कुछ कहा ही नहीं गया. बस, अपने हाथ जोड़ दिए और हमेशा के लिए शांत हो गई.’’ और फिर सुनीता फूटफूट कर रोने लगी. उन का रुदन देख कर मेघा की भी रुलाई छूट गई. उसे समझ नहीं आया कि वह उन से क्या कहे. उस ने सुनीता और महेश का हाथ अपने हाथों में ले कर बस इतना ही कहा, ‘‘मुझे अपनी मुसकान ही समझिए और मैं पूरी कोशिश करूंगी आप की मुसकान बनने की.’’

उन दोनों के मुंह से बस इतना ही निकला, ‘‘खुश रहो बेटा.’’ बाहर बारिश थम चुकी थी और अंदर तूफान गुजर चुका था. मेघा वापस आने का वादा कर के वहां से चली गई. उस से बातें कर के दोनों बहुत हलका महसूस कर रहे थे. दोनों रविवार का दिन अनाथ आश्रम में गरीब बच्चों के साथ बिताते थे. दोनों कपड़े बदल कर वहां चले गए. मेघा जब भी कालेज जाती तो अकसर सुनीता और महेश को बाहर लौन में बैठे देखती तो कभी हाथ हिलाती, कभी वक्त होता तो मिलने भी चली जाती थी. वक्त गुजरने लगा. मेघा के आने से सुनीता अपनी सेहत को बिलकुल नजरअंदाज करने लगी. यदाकदा उसे चक्कर आते थे, कई बार आंखों के आगे धुंधला भी नजर आता तो वह सब उम्र का तकाजा समझ कर टाल जाती. इंतजार करतेकरते 10 दिन हो गए पर मेघा नहीं आई, न ही वह कालेज जाती नजर आई. दोनों को उस की चिंता हुई और जब दोनों से रहा नहीं गया तो वे एक दिन उस के घर पहुंच गए. दरवाजे की घंटी बजाई तो एक 49-50 साल की अधेड़ महिला ने दरवाजा खोला, ‘‘कहिए?’’

‘‘क्या मेघा यहीं रहती है?’’ महेश ने पूछा.

‘‘जी हां, आप सुनीता और महेशजी हैं?’’

सुनीता ने उत्सुकता से जवाब दिया, ‘‘हां, मैं सुनीता हूं और ये मेरे पति महेश हैं.’’

‘‘आप अंदर आइए. प्लीज,’’ बोल कर सुगंधा उन्हें कमरे में ले आई. पूरा घर 2 कमरों में सिमटा था. एक बैडरूम और एक बैठक, बाहर छोटी सी रसोई और स्नानघर. मेघा यहां अपनी मां सुगंधा के साथ अकेली रहती थी उस के पिताजी, जब वह बहुत छोटी थी तब ही संसार से जा चुके थे. सुगंधा एक स्कूल में अध्यापिका थी जिस से उन का घर का गुजारा चलता था. ‘‘मेघा कहां है? बहुत दिन हुए, वह घर नहीं आई तो हमें चिंता हुई. हम उस से मिलने आ गए,’’ सुनीता ने चिंता व्यक्त की.

‘‘वह दवा लेने गई है,’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘आप को क्या हुआ बहनजी?’’ महेश ने पूछा.

सुगंधा उदास हो गई, ‘‘मेरी दवा नहीं भाईसाहब, वह अपनी दवा लेने गई है.’’

‘‘उसे क्या हुआ है?’’ दोनों ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘2-3 साल पहले की बात है. इसे बारबार यूरीन इनफैक्शन हो जाता था. डाक्टर दवा दे देते तो ठीक हो जाता पर बाद में फिर हो जाता. पिछले 10 दिनों से इनफैक्शन के साथ बुखार भी है. पैरों में सूजन भी आ गई है. मैं ने बहुत मना किया पर फिर भी जिद कर के दवा लेने चली गई. अभी आ जाएगी.’’

‘‘डाक्टर ने क्या कहा?’’ सुनीता ने पूछा.

‘‘डाक्टर को डर है कि कहीं किडनी फेल्योर का केस न हो,’’ कह कर वे रोने लगीं. सुनीता ने उठ कर उन्हें गले से लगा लिया और सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘सुगंधाजी, ऐसा कुछ नहीं होगा. सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘सुनीताजी, डाक्टर ने कुछ टैस्ट करवाए हैं. कल तक रिपोर्ट आ जाएगी,’’ सुगंधा ने बताया. इतने में मेघा आ गई. उस की मुसकान होंठों से गायब हो चुकी थी, रंग पीला पड़ गया था, आंखों के आसपास सूजन आ गई थी, वह बहुत कमजोर लग रही थी. सुनीता और महेश उसे देख कर सन्न रह गए. वे वहां ज्यादा देर न बैठ सके. चलते समय महेश ने मेघा के सिर पर हाथ रखा और सुगंधा से कहा, ‘‘बहनजी, कल हम आप के साथ रिपोर्ट लेने चलेंगे,’’ ऐसा कह कर वे दोनों अपने घर लौट आए. घर आ कर सुनीता सोफे पर ऐसी ढेर हुई कि काफी देर तक हिली ही नहीं. जब महेश ने उस से अंदर जा कर आराम करने को कहा तो वह अपनेआप को चलने में ही असमर्थ पा रही थी. महेश उसे सहारा दे कर अंदर ले गया, ‘‘परेशान न हो, सब ठीक हो जाएगा.’’ अगले दिन दोनों सुगंधा के साथ अस्पताल चले गए. उन पर पहाड़ टूट पड़ा जब डाक्टर ने बताया, ‘यह केस किडनी फेल्योर का है. अब मेघा को डायलिसिस पर रहना होगा जब तक डोनर किडनी नहीं मिल जाती.’ सुगंधा तो बेहोश हो कर गिर ही जाती अगर महेश ने उसे सहारा न दिया होता. उस ने उसे कुरसी पर बैठाया और पानी पिलाया, ‘‘हिम्मत रखिए सुगंधाजी, अगर आप ऐसे टूट जाएंगी तो मेघा को कौन संभालेगा? हम जल्दी मेघा के लिए डोनर ढूंढ़ लेंगे, आप चिंता न करें.’’

मेघा की बीमारी से दोनों परिवारों पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा. सुनीता तो अब ज्यादातर बीमार ही रहने लगी और अचानक एक दिन बेहोश हो कर गिर पड़ी. महेश अभी बैंक जाने के लिए तैयार ही हो रहा था कि धम्म की आवाज से रसोई में भागा तो देखा सुनीता नीचे फर्श पर बेहोश पड़ी हुई है. उस के हाथपैर फूलने लगे पर फिर हिम्मत कर के उस ने एंबुलैंस को फोन कर के बुलाया. इमरजैंसी में उसे भरती किया गया और सारे टैस्ट किए गए पर कुछ हासिल न हो सका. सुनीता हमेशा के लिए चली गई. डाक्टर ने जब कहा, ‘‘यह केस ब्रेन डैड का है, हम उन्हें बचा न पाए,’’ तो महेश धम्म से कुरसी पर गिर गया और सुनीता का चेहरा उस की आंखों के आगे घूमने लगा. पता नहीं वह कितनी देर वहीं पर उसी हाल में बैठा रहा कि अचानक वह फुरती से उठा और डाक्टर के पास जा कर बोला, ‘‘डाक्टर साहब, मैं सुनीता के और्गन डोनेट करना चाहता हूं. मैं चाहता हूं कि सुनीता की किडनी मेघा को लगा दी जाए.’’ डाक्टर ने फटाफट सारे टैस्ट करवाए और सुगंधा व मेघा को अस्पताल में बुला लिया. संयोग ऐसा था कि सुनीता की किडनी ठीक थी और वह मेघा के लिए हर लिहाज से ठीक बैठती थी. खून और टिश्यू सब मिल गए. औपरेशन के बाद डाक्टर ने कहा, ‘‘औपरेशन कामयाब रहा. बस, कुछ दिन मेघा को यहां अंडर औब्जर्वेशन रखेंगे और फिर वह घर जा कर अपनी जिंदगी सामान्य ढंग से जिएगी.’’

सुगंधा ने आगे बढ़ कर महेश के पांव पकड़ लिए और रोने लगीं. महेश ने उन्हें उठाते हुए कहा, ‘‘सुगंधाजी, आप रोइए नहीं. बस, मेघा का खयाल रखिए.’’ घर आ कर सब क्रियाकर्म हो गया. बारीबारी से लोग आते रहे, अफसोस प्रकट कर के जाते रहे. अंत में महेश अकेला रह गया सुनीता की यादों के साथ. उस ने उठ कर सुनीता की फोटो पर हार चढ़ाया. अपने चश्मे को उतार कर अपनी आंखों को साफ करते हुए बोला, ‘‘देखा नीता, हमारी मुसकान को तो मैं बचा नहीं पाया, पर इस मुसकान को तुम ने बचा लिया.’’ जैसे ही महेश पलटा तो उस ने देखा कि उस के पीछे मेघा खड़ी थी और उसी ‘डिंपल’ वाली मुसकान के साथ जैसे कह रही हो कि आप अकेले नहीं हैं, यह ‘मुसकान’ है आप के साथ.

मुसकान : क्यों टूट गए उनके सपने

romantic story in hindi

मुसकान : भाग 2- क्यों टूट गए उनके सपने

लेखिका- निर्मला कपिला

राजकुमार को एंबुलेंस में डाला गया तो सभी उन के साथ जाना चाहते थे पर सुनील नहीं माना. सुनील, अनिल और मुसकान साथ गए.

पटियाला पहुंच कर जल्दी ही सारे टेस्ट हो गए. डाक्टर ने रात को ही उन की बाईपास सर्जरी करने को कहा. 2 बोतल खून का भी प्रबंध करना था, जिस के लिए सुनील और अनिल अपना खून का सैंपल मैच करने के लिए दे आए थे. बेशक दोनों डाक्टर थे पर मुसकान बहुत घबराई हुई थी. लोगों को बीमारी में देखना और बात है पर अपनों के लिए जो दर्द, घबराहट होती है, यह मुसकान आज जान पाई.

सुनील उसे ढाढ़स बंधा रहा था. उसे यह सोच कर दुख हो रहा था कि उस के सपनों की राजकुमारी, जिस ने जीवन में दुख का एक क्षण नहीं देखा, आज इतना बड़ा दुख…वह भी उस रात में जिस में इस समय उस की बांहों में लिपटी सुहागरात की सेज पर बैठी होती.

‘‘मुसकान, मैं हूं न तुम्हारे साथ. मेरे होते तुम चिंता क्यों करती हो.’’

‘‘मुझे आप के लिए दुख हो रहा है कि मेरे पापा के कारण आप को अपनी खुशी छोड़नी पड़ी,’’ मुसकान की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘पगली, यह हमारे बीच में मेरे-तुम्हारे कहां से आ गया. यह मेरे भी पापा हैं. कल को मुझ पर या घर के किसी दूसरे सदस्य पर कोई मुसीबत आ जाए तो क्या तुम साथ नहीं दोगी?’’

‘‘मेरी तो जान भी हाजिर है.’’

‘‘मुझे जान नहीं, बस, मुसकान चाहिए,’’ कहते हुए सुनील ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर दबाया.

सुनील को डाक्टर ने बुलाया था. अनिल बाजार सामान लेने गया हुआ था. मुसकान पापा के पास बैठ गई. पूरे एक घंटे बाद सुनील आया तो उदास और थकाथका सा था.

‘‘क्या खून दे कर आए हैं?’’ मुसकान घबरा गई.

‘‘हां,’’ जैसे कहीं दूर से उस ने जवाब दिया हो.

‘‘आप थोड़ी देर कमरे में जा कर आराम कर लें, अभी भैया भी आ जाएंगे. मैं पापा के पास बैठती हूं.’’

मुसकान के मन में चिंता होने लगी. सुनील को क्या हो गया. शायद थकावट और परेशानी है और ऊपर से खून भी देना पड़ा. चलो, थोड़ा आराम कर लेंगे तो ठीक हो जाएंगे.

उधर सुनील पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा था. किसे बताए, क्या बताए. मुसकान का क्या होगा. फिर डाक्टर परमिंदर सिंह का चेहरा उस की आंखों के सामने घूमने लगा और उन के कहे शब्द दिमाग में गूंजने लगे :

‘‘सुनील बेटा, तुम  मेरे छात्र रह चुके हो, मेरे बेटे जैसे हो. कैसे कहूं, क्या बताऊं मैं 2 घंटे से परेशान हूं.’’

‘‘सर, मैं बहुत स्ट्रांग हूं, कुछ भी सुन सकता हूं, आप निश्ंिचत हो कर बताइए,’’ सुनील सोच भी नहीं सकता था, वह क्या सुनने जा रहा है.

‘‘तुम एच.आई.वी. पौजिटिव हो. जांच के लिए भेजे गए तुम्हारे ब्लड से पता चला है.’’

‘‘क्या? सर, यह कैसे हो सकता है? आप तो मुझे जानते हैं. कितना सादा और संयमित जीवन रहा है मेरा.’’

‘‘बेटा, मैं जानता हूं और तुम डाक्टर हो, जानते हो कि देह व्यापार और नशेबाजों के मुकाबले में डाक्टर को एड्स से अधिक खतरा है. खुदगर्ज, निकम्मे व भ्रष्ट लोगों की वजह से अनजाने में ही मेडिकल स्टाफ इस बीमारी की गिरफ्त में आ जाता है. सिरिंजों, दस्तानों की रिसाइक्ंिलग, हमारी लापरवाही, अस्पतालों में आवश्यक साधनों की कमी जैसे कितने ही कारण हैं. लोग ब्लड डोनेट करते हैं, समाज सेवा के लिए मगर उसी सेट और सूई को दोबारा इस्तेमाल किया जाए तो क्या होगा? शायद वही सूई पहले किसी एड्स के मरीज को लगी हो.’’

‘‘सर, मुझे अपनी चिंता नहीं है. मैं मुसकान से क्या कहूंगा? वह तो जीते जी मर जाएगी,’’ सुनील की आवाज कहीं दूर से आती लगी.

‘‘बेटा, हौसला रखो. अभी किसी से कुछ मत कहो. आज पापा का आपरेशन हो जाने दो. 15 दिन तो अभी यहीं लग जाएंगे. घर जा कर मांबाप की सलाह से अगला कदम उठाना. जीवन को एक चुनौती की तरह लो. सकारात्मक सोच से हर समस्या का हल मिल जाता है. मुसकान से मैं बात करूंगा पर अभी नहीं.’’

‘‘सर, उसे अभी कुछ मत बताइए, मुझे सोचने दीजिए,’’ कह कर सुनील अपने कमरे में आ गया था.

पर वह क्या सोच सकता है? एड्स. क्या मुसकान सुन सकेगी? नहीं, वह सह नहीं सकेगी. मैं उसे तलाक दे दूंगा, कहीं दूर चला जाऊंगा, नहीं…नहीं…वह तो अपनी जान दे देगी…नहीं…इस से अच्छा वह मर जाएगा पर मांबाप सह नहीं पाएंगे. नहीं…विपदा का हल मौत नहीं. सर ने ठीक कहा था कि सब को एक न एक दिन मरना है पर मरने से पहले जीना सीखना चाहिए.

अचानक उसे ध्यान आया, आपरेशन का टाइम होने वाला है. मुसकान परेशान हो रही होगी…कम से कम जब तक पापा ठीक नहीं होते, मैं उस का ध्यान रख सकता हूं…इतने दिन कुछ सोच भी सकूंगा.

वह जल्दी कमरा बंद कर के वार्ड में आ गया.

‘‘अब कैसी तबीयत है?’’ उसे देखते ही मुसकान पूछ बैठी.

‘‘मैं ठीक हूं. मुसकान, तुम थोड़ी स्ट्रांग बनो. मैं तुम्हें परेशान देख कर बीमार हो जाता हूं.’’

12 बजे राजकुमार को आपरेशन के लिए ले गए. वह तीनों आपरेशन थियेटर के बाहर बैठ गए. मुसकान को सुनील की खामोशी खल रही थी पर समय की नजाकत को देखते हुए चुप थी. शायद पापा के कारण ही सुनील परेशान हों.

आपरेशन सफल रहा. अगले दिन घर से भी सब लोग आ गए थे. मां ने दोनों को गेस्ट रूम में आराम करने को भेज दिया.

कमरे में जाते ही सुनील लेट गया.

‘‘मुसकान, तुम भी थोेड़ी देर सो लो, रात भर जागती रही हो. मुझे भी नींद आ रही है,’’ कहते हुए वह मुंह फेर कर लेट गया. मुसकान भी लेट गई.

शादी के बाद पहली बार दोनों अकेले एक ही कमरे में थे. इस घड़ी में सुनील का दिल जैसे अंदर से कोई चीर रहा हो. उस का जी चाह रहा था कि मुसकान को बांहों में भर ले पर नहीं, वह उसे और सपने नहीं दिखाएगा. वह उस की जिंदगी बरबाद नहीं होने देगा.

मुसकान मायूस सी किसी हसरत के इंतजार में लेट गई. कुछ कहना चाह कर भी कह नहीं पा रही थी. सुनील पास हो कर भी दूर क्यों है? शायद कई दिनों से भागदौड़ में ढंग से सो नहीं पाया. पर दिल इस पर यकीन करने को तैयार नहीं था. उस ने सोचा, सुनील थोड़ी देर सो ले तब तक मैं वार्ड में चलती हूं. जैसे ही वह दरवाजा बंद करने लगी कि सुनील उस का नाम ले कर चीख सा पड़ा.

‘‘क्या हुआ,’’ वह घबराई सी आई तो देखा कि सुनील का माथा पसीने से भीगा हुआ था.

‘‘एक गिलास पानी देना.’’

उस ने पानी दिया और उसे बेड पर लिटा दिया.

‘‘कहीं मत जाओ, मुसकान. मैं ने अभीअभी सपना देखा है. एक लालपरी बारबार मुझे दिखाई देती है. मैं उसे छूने के लिए आगे बढ़ता हूं पर छू नहीं पाता, एक पहाड़ आगे आ जाता है. वह उस के पीछे चली जाती है. मैं उस पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश करता हूं तो नीचे गिर जाता हूं,’’ इतना कह कर सुनील मुसकान का हाथ जोर से पकड़ लेता है.

‘‘कैसी बहकीबहकी बातें कर रहे हो? सपने भी क्या सच होते हैं? चलो, चुपचाप सो जाओ. तुम्हारी लालपरी तुम्हारे पास बैठी है.’’

वह धीरेधीरे उस के माथे को सहलाने लगी. सुनील ने आंखें बंद कर लीं. थोड़ी देर बाद मुसकान ने सोचा, वह सो गया है. वह चुपके से उठी और वार्ड की तरफ चल पड़ी. वह उसे डिस्टर्ब नहीं करना चाहती थी.

आगे पढ़ें- कुछ देर के लिए वहां…

ये भी पढ़ें- एक अच्छा दोस्त: सतीश ने कैसे की राधा की मदद

मुसकान : भाग 1- क्यों टूट गए उनके सपने

लेखिका- निर्मला कपिला

आज आसमान से कोई परी उतरती तो वह भी मुसकान को देख कर शरमा जाती, क्योंकि मुसकान आज परियों की रानी लग रही है. नजाकत से धीरेधीरे पांव रखती शादी के मंडप की ओर बढ़ रही मुसकान लाल सुर्ख जरी पर मोतियों से जड़ा लहंगाचोली पहने जेवरों से लदी, चूड़ा, कलीरे और पांव में झांजर डाले हुए है. उस के भाई उस के ऊपर झांवर तान कर चल रहे हैं. झांवर भी गोटे और घुंघरुओं से सजी है. उस का सगा भाई अनिल उस के आगेआगे रास्ते में फूल बिछाते हुए चल रहा है.

शादी के मंडप की शानोशौकत देखते ही बनती है. सामने स्टेज पर सुनील दूल्हा बना बैठा है. वहां मौजूद सभी एकटक मुसकान को आते हुए देख रहे हैं जो अपने को आज दुनिया की सब से खुशनसीब लड़की समझ रही है. आज मुसकान अपने सपनों के राजकुमार की होने जा रही है. सुनील के पिता सुंदरलालजी जिस फैक्टरी में लेखा अधिकारी हैं उसी में मुसकान के पिता राजकुमार सहायक हैं.

दोनों परिवार 20 साल से इकट्ठे रह रहे हैं. दोनों के घरों के बीच में दीवार न होती तो एक ही परिवार था. राजकुमार के 2 बच्चे थे, जबकि सुंदरलाल का इकलौता बेटा सुनील था. यह छोटा सा परिवार हर तरह से खुशहाल था. सुंदरलाल, मुसकान को अपनी बेटी की तरह मानते थे. तीनों बच्चे साथसाथ खेले, बढ़े और पढ़े.

मुसकान, अनिल से 5 वर्ष छोटी थी. सुनील और मुसकान हमउम्र थे. दोनों पढ़ने में होशियार थे. जैसेजैसे बड़े होते गए उन में प्यार बढ़ता गया. मन एक हो गए, सपने एक हो गए और लक्ष्य भी एक, दोनों डाक्टर बनेंगे.

राजकुमार की हैसियत मुसकान को डाक्टरी कराने जितनी नहीं थी मगर सुनील के मांबाप ने मन ही मन मुसकान को अपनी बहू बनाने का निश्चय कर लिया था इसलिए उन्होंने यथासंभव सहायता का आश्वासन दे कर मुसकान को डाक्टर बनाने का फैसला कर लिया था. अनिल भी इंजीनियरिंग कर के नौकरी पर लग गया. वह भी चाहता था कि मुसकान डाक्टर बने.

सुनील को एम.बी.बी.एस. में दाखिला मिल गया. मुसकान अभी 12वीं में थी. जब सुनील पढ़ने के लिए पटियाला चला गया तब दोनों को लगा कि वे एकदूसरे के बिना जी नहीं सकेंगे. मुसकान को लगता कि उस का कुछ कहीं खो गया है पर वह चेहरे पर खुशी का आवरण ओढ़े रही ताकि मन की पीड़ा को कोई दूसरा भांप न ले. दाखिले के 7 दिन बाद सुनील पटियाला से आया तो सीधा मुसकान के पास ही गया.

‘लगता है 7 दिन नहीं सात जन्म बाद मिल रहा हूं. मुसकान, मैं तुम्हें बहुत मिस करता हूं.’

मुसकान कुछ कह न पाई पर उस के आंसू सबकुछ कह गए थे.

‘मुसकान, आंसू कमजोर लोगों की निशानी है. हमें तो स्ट्रांग बनना है, कुछ कर दिखाना है, तभी तो हमारा सपना साकार होगा,’ सुनील ने उसे हौसला दिया.

अब दोनों ही अपना कैरियर बनाने में जुट गए. सुनील जब भी घर आता मुसकान के लिए किताबें, नोट्स ले कर आता. वह चाहता था कि मुसकान को भी उस के ही कालिज में दाखिला मिल जाए. मुसकान उसे पाने के लिए कुछ भी कर सकती थी. सुनील मुसकान की पढ़ाई की इतनी चिंता करता कि फोन पर उसे समझाता रहता कि कौन सा विषय कैसे पढ़ना है, टाइम मैनेज कैसे करना है.

सुनील एक हफ्ते की छुट्टी ले कर घर आया और मुसकान से टेस्ट की तैयारी करवाई. दोनों ने दिनरात एक किया. अगर लक्ष्य अटल हो, प्रयास सबल हो तो विजय निश्चित होती है. मुसकान को भी पटियाला में ही प्रवेश मिल गया. मुसकान को दाखिल करवाने दोनों के ही मांबाप गए थे. वापसी से पहले सुनील की मां ने मुसकान से कहा था, ‘बेटा, हमें उम्मीद है तुम दोनों अपने परिवार की मर्यादा का ध्यान रखोगे तो हम सब तुम्हारे साथ हैं.’

‘मां, जितना प्यार मुझे मेरे मांबाप ने दिया है उस से अधिक आप लोगों ने दिया है. मैं आप से वादा करती हूं कि मेरा जीवन इस परिवार और प्यार के लिए समर्पित है,’ मुसकान मम्मी के गले लग गई.

दोनों ने बड़ी मेहनत की और अपने मांबाप की आशाओं पर फूल चढ़ाए. सुनील ने एम.डी. की और उसे पटियाला में ही नौकरी मिल गई. दोनों के मांबाप चाहते थे अब सुनील व मुसकान की शादी हो जानी चाहिए पर दोनों ने फैसला किया था कि जब मुसकान भी एम.डी. हो जाए उस के बाद ही वे शादी करेंगे.

आज उन की मेहनत और सच्चे प्यार का पुरस्कार शादी के रूप में मिला था. सुनील हाथ में जयमाला लिए मंडप की ओर आती मुसकान को देख रहा था.

मुसकान की विदाई एक तरह से अनोखी ही थी. न किसी के चेहरे पर उदासी न आंखों में आंसू. सभी लोग शादी के मंडप से निकले और गाडि़यों में बैठ कर जहां से चले थे वहीं वापस आ गए. दुलहन के रूप में मुसकान सुनील के घर चली गई. दोनों घरों के बीच एक दीवार ही तो थी. जब सब के दिल एक थे तो मायका क्या और ससुराल क्या.

आज सुनील से भी अपनी खुशी छिपाए नहीं छिप रही थी. आज वह अपनी लाल परी को छुएगा.

‘‘मां, हमें जल्दी फारिग करो, हम थक गए हैं,’’ सुनील बेसब्री से बोला.

‘‘बस, बेटा, 10 मिनट और लगेंगे. मुसकान कपड़े बदल ले.’’

मम्मी मुसकान को एक कमरे में ले गईं और एक बड़ा सा पैकेट दे कर बोलीं, ‘‘बेटा, यह सुनील ने अपनी पसंद से तुम्हारे लिए खरीदा है आज रात के लिए.’’

मम्मी के जाने के बाद मुसकान ने कमरा अंदर से बंद किया और जैसे ही उस ने पैकेट खोला, वह उसे देख कर हैरान रह गई. पैकेट में सुर्ख रंग का जरी, मोतियों की कढ़ाई से कढ़ा  हुआ कुरता, हैवी दुपट्टा पटियाला सलवार, परांदा आदि निकला था. उस ने तो बचपन से ही पैंटजींस पहनी थी. कपड़ों की तरफ दोनों ने पहले कभी ध्यान ही नहीं दिया था. सुनील ने भी कभी उस के कपड़ों पर कोई टिप्पणी नहीं की थी.

वह बड़े सलीके से तैयार हुई. अपने केशों में परांदी, सग्गीफूल लगाया, मैच करती लिपस्टिक लगाई, माथे पर मांग टीका लटक रहा था, फिर दुपट्टा पिनअप कर के जैसे ही शीशे के सामने खड़ी हुई सामने पंजाबी दुलहन के रूप में खुद को देख मुसकान हैरान रह गई. सुनील की पसंद पर उसे नाज हो आया और दिल धड़क उठा रात के उस क्षण के लिए जब उस का राजकुमार उसे अपनी बांहों में भर कर उस की कुंआरी देहगंध से रात को सराबोर करेगा.

किसी ने दरवाजा खटखटाया. मुसकान ने दरवाजा खोला तो सामने मम्मी और मां घबराई सी खड़ी थीं.

‘‘बेटी, तुम्हारे पापा की तबीयत खराब हो गई थी. सुनील और अनिल उन्हें अस्पताल ले कर गए हैं. पर घबराने की बात नहीं है, अभी आते होंगे,’’ कह कर मां और मम्मी दोनों उस के पास बैठ गईं.

मुसकान एकदम घबरा गई. अभी 1 घंटा पहले तो पापा ठीक थे, हंसखेल रहे थे. उस ने जल्दी से मोबाइल उठाया, ‘‘सुनील, कैसे हैं पापा, क्या हुआ उन्हें?’’

‘‘मुसकान, देखो घबराना नहीं,’’ सुनील बोला, ‘‘मेरे होते हुए चिंता मत करो. पापा को हलका हार्ट अटैक पड़ा है. हमें इन्हें ले कर पटियाला जाना होगा. तुम जरूरी सामान और कपड़े ले कर डैडी के साथ यहीं आ जाओ. तुम भी साथ चलोगी. मेरे वाला पैकेट अभी संभाल कर रख लो.’’

‘‘मम्मी, सुनील ने मुझे अस्पताल बुलाया है. पापा को पटियाला ले कर जाना पड़ेगा,’’ और फिर जितनी हसरत से उस ने सुनील वाले कपड़े पहने थे, उतने ही दुखी मन से उन्हें उतार दिया. हलके रंग का सूट पहना और यह सोच कर कि इस लाल सूट को तो वह सुहागरात को ही पहनेगी उसे बड़े प्यार से उसी तरह अलमारी में रख दिया.

आगे पढ़ें- डाक्टर ने रात को ही…

ये भी पढ़ें- तीमारदारी: राज के साथ क्या हुआ

मुसकान : भाग 3- क्यों टूट गए उनके सपने

लेखिका- निर्मला कपिला

वार्ड में पहुंचते ही उस का सामना

डा. परमिंदर से हो गया, ‘‘गुडमार्निंग, सर.’’

‘‘गुडमार्निंग, बेटा. कैसी हो?’’

‘‘फाइन, सर.’’

‘‘अच्छा, 10 मिनट बाद मेरे आफिस में आना,’’ कह कर डाक्टर परमिंदर सिंह चले गए.

10 मिनट बाद वह डा. परमिंदर के सामने थी.

‘‘बैठो बेटा. सुनील कहां है?’’

‘‘सर, वह कमरे में सो रहे हैं. उन की तबीयत ठीक नहीं. मैं ने सोचा कुछ सो लें तो मैं इधर आ गई. पता नहीं क्यों खामोश से, परेशान से हैं.’’

‘‘तुम ने पूछा नहीं?’’

‘‘पूछा था. कहते हैं, कुछ नहीं…पर कुछ अजीब सी दहशत में कोई सपना देखा है, बता रहे थे.’’

‘‘बेटा, तुम सुनील से कितना प्यार करती हो?’’

‘‘अपनी जान से बढ़ कर. सर, आप तो जानते हैं कि हम बचपन से ही एकदूसरे को कितना चाहते हैं.’’

‘‘कल हम यही बातें कर रहे थे. कल उस ने एक अपाहिज को देखा. एक्सीडेंट की वजह से उस की दोनों टांगें काटनी पड़ीं. उस की पत्नी का रुदन देखा नहीं जा रहा था, तभी एकदम वह बोल उठा था कि कल को अगर उसे ऐसा कुछ हो जाए तो मुसकान कैसे जी पाएगी. बेटी, वह तुम्हें दुखी नहीं देख सकता.’’

‘‘सर, इस का मतलब वह मुझे प्यार नहीं करते या वह मुसकान को जान ही नहीं पाए. अगर कल मैं अपाहिज हो जाऊं तो वह क्या करेंगे? जब हम किसी से प्यार करते हैं तो उस का एक ही अर्थ होता है कि हम उस को मन और आत्मा से प्यार करते हैं. उस की हर अच्छाईबुराई अपनाते हैं.’’

‘‘पर मन और आत्मा की भी कई जरूरतें होती हैं जिन का संबंध इस शरीर से होता है,’’ डा. परमिंदर ने टोका.

‘‘सर, मैं सोचती हूं कि प्यार ही दुनिया में एक ऐसी शक्ति है जो मन और आत्मा को सही दिशा देती है. इसी शक्ति से हम जरूरतों के अधीन नहीं रहते बल्कि जरूरतों को अपने अधीन कर सकते हैं.’’

‘‘वाह बेटा, मुझे नहीं पता था कि मुसकान इतनी समझदार और साहसी है. मुझे लगता है तुम मेरे बेटे को जीवन दान दे सकती हो.’’

‘‘मैं समझी नहीं सर, आप किस की बात कर रहे हैं?’’

कुछ देर के लिए वहां खामोशी छा गई. फिर डा. परमिंदर इस खामोशी को तोड़ते हुए बोले, ‘‘आजकल तुम्हें पता है, डाक्टर लोग ही नहीं सारा मेडिकल स्टाफ जिन हालात में काम कर रहा है ऐसे में हम कभी भी किसी खतरनाक बीमारी का शिकार हो सकते हैं. आज सुनील के साथ ऐसी ही अनहोनी हो गई है. मुझ से वादा करो तुम सब की खातिर जो कदम उठाओगी सोचसमझ कर उठाओगी. कल सुनील का खून तुम्हारे पापा से मैच करने के लिए लिया तो वह एच.आई.वी. पाजिटिव है.’’

‘‘सर…’’ वह जोर से चीख उठी.

‘‘बेटे, हौसला रखो. अगर तुम से उस की शादी न हुई होती तो उस के पास कई विकल्प थे. वह कहीं भी कैसे भी जी लेता. मगर आज वह तुम्हें क्या जवाब दे. इसलिए मुझे डर है कहीं वह कुछ ऐसावैसा कदम न उठा ले. वह तुम्हारी जिंदगी बरबाद नहीं होने देगा.’’

‘‘सर, मैं उस के बचपन से ले कर अब तक के हर पल की गवाह हूं. उस ने कभी कोई गलत काम नहीं किया. फिर उस के साथ ऐसा क्यों हुआ?’’ मुसकान का दिल फटने को था.

‘‘तुम्हें पता है, हमारे पेशे में किसी के साथ भी ऐसा हो सकता है. मैं यह नहीं कहता कि तुम उस के साथ अपनी जिंदगी बरबाद करो. मगर यह सोच कर कि अगर तुम्हारे साथ ऐसा हुआ होता तो सुनील को क्या करना चाहिए था. फिर तुम लोग डाक्टर हो, जानते हो क्याक्या परहेज कर के एक आम आदमी जैसा जीवन जीया जा सकता है. अब तुम चलो. उस ने अभी तुम्हें बताने के लिए मना किया था पर मुझे दोनों की चिंता है इसलिए तुम्हें बताना जरूरी था.’’

वह उठी पर उस के कदम आगे बढ़ने से इनकार कर रहे थे. यह क्या हो गया सुनील? अकेले इतना बड़ा दुख सह रहे हो? वह लालपरी वाला सपना नहीं बल्कि उस के दिल की बात थी, तभी तो मुझ से दूरदूर था. क्या बीत रही होगी उस के दिल पर. वह मुझ से प्यार करता है तभी तो मुझे छूने से डरता है…कहीं मुसकान को भी एड्स न हो जाए. कितना संघर्ष करना पड़ा होगा दिल से…अपने अरमानों का खून करते हुए पर वह मुसकान को नहीं जानता…मैं उसे टूटने नहीं दूंगी…उसे ध्यान आया वह अकेला है…उसे अब अकेला नहीं छोड़ना चाहिए. उस के कदमों में कुछ तेजी आ गई.

मुसकान ने धीरे से दरवाजा खोला. सुनील सो रहा था. वह कितनी देर उसे सोता हुआ देखती रही. फिर चुपके से पास बैठ गई और उस के माथे को चूमा तो आंखों से आंसू टपक कर सुनील के माथे पर पड़े. वह हड़बड़ा कर उठा, ‘‘मुसकान, क्या हुआ? पापा ठीक हैं न?’’

‘‘हां.’’

‘‘अच्छा चलो, पापा के पास चलते हैं,’’ उस ने उठने की कोशिश की पर मुसकान ने उसे जबरदस्ती लिटा दिया.

‘‘सुनील, बताओ तुम मुझे कितना प्यार करते हो?’’

‘‘अपनी जान से भी ज्यादा.’’

‘‘झूठ, अच्छा मान लो मैं अपाहिज हो जाऊं, तुम्हारे काम की न रहूं तो?’’

‘‘मुसकान,’’ वह चीख सा पड़ा, ‘‘ऐसी बात भूल कर भी न कहना. मैं तुम से प्यार करता हूं तुम्हारे शरीर से नहीं.’’

‘‘झूठ.’’ वह रो पड़ी, ‘‘अगर मुझ से प्यार करते होते तो मुझे अपने दुख में शरीक न करते? क्या मुझे इतना स्वार्थी समझ लिया कि मैं तुम से घृणा करने लगूंगी? क्या सोच कर तुम अकेले इतना बड़ा बोझ लिए अपने से लड़ रहे हो?’’

‘‘मुसकान, यह क्या तुम बहकी- बहकी बातें कर रही हो?’’

‘‘अभीअभी मैं डा. परमिंदर सिंह से मिल कर आ रही हूं. मेरे होते, मांबाप के होते, तुम ने कैसे सोच लिया कि अपनी जिंदगी का फैसला तुम्हें अकेले करना है.’’

‘‘अब जब तुम जान ही गई हो तो मुझे समझने की कोशिश करो, मुसकान. यह ठीक है मैं तुम्हें जान से भी अधिक चाहता हूं मगर इतना भी स्वार्थी नहीं कि तुम्हारा जीवन बरबाद करूं,’’ सुनील ने समझाने की कोशिश की.

‘‘मैं सोचसमझ कर ही कह रही हूं. देखो, जो मुसीबत हम पर आई है उस में न तुम्हारा दोष है न मेरा, न ही हमारे मांबाप का. यह मुसीबत तो हम सब पर आई है और तुम्हें यह हक कदापि नहीं है कि तुम अकेले कोई फैसला करो. अगर तुम मुझ से प्यार करते हो, मांबाप को प्यार करते हो तो हम दोनों मिल कर सोचेंगे. मैं तुम्हारी पत्नी हूं. मेरा भी हर फैसले पर उतना ही हक है जितना तुम्हारा. फिर अगर हमें अभी पता न चलता तो क्या करते.’’

‘‘मैं क्या फैसला ले सकता हूं? मेरे पास बचा ही क्या है? मुसकान, मैं बरबाद हो गया,’’ सुनील के आंसू नहीं थम रहे थे.

‘‘अच्छा, अगर मुझे एड्स हो गया होता तो तुम क्या करते? क्या मुझे छोड़ देते या मरने देते?’’

‘‘नहीं…नहीं, ऐसा मत कहो. मैं कैसे तुम्हें छोड़ सकता था?’’

‘‘हम दोनों डाक्टर हैं, सुनील. इस बीमारी के बारे में हम जानते हैं और यह भी जानते हैं कि क्या परहेज कर के हम आम इनसान की तरह जी सकते हैं. हम अपना बच्चा ही पैदा नहीं कर सकते न और तो कुछ समस्या नहीं है…तो देश में कितने अनाथ बच्चे हैं, कोई भी गोद ले लेंगे. साथसाथ दुखसुख बांट लेंगे, मेरे लिए नहीं तो कम से कम दोनों के मांबाप की तो सोचो. वह सह सकेंगे? मुझ से वादा करो कि मुझ से दूर जाने की नहीं सोचोगे. मैं जी नहीं पाऊंगी,’’ यह कहते समय मुसकान सुनील की छाती पर सिर रख कर रोए जा रही थी.

‘‘मुसकान, मैं तो यों ही टूट रहा था, तड़प रहा था अपनी लालपरी को छूने के लिए, मुझे पता ही नहीं चला वह तो मेरे दिल में बैठी है… उस परी ने मुझे नई जिंदगी दी है,’’

ये भी पढ़ें- खुदगर्ज मां: क्या सही था शादी का फैसला

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें