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लेखिका- निर्मला कपिला

राजकुमार को एंबुलेंस में डाला गया तो सभी उन के साथ जाना चाहते थे पर सुनील नहीं माना. सुनील, अनिल और मुसकान साथ गए.

पटियाला पहुंच कर जल्दी ही सारे टेस्ट हो गए. डाक्टर ने रात को ही उन की बाईपास सर्जरी करने को कहा. 2 बोतल खून का भी प्रबंध करना था, जिस के लिए सुनील और अनिल अपना खून का सैंपल मैच करने के लिए दे आए थे. बेशक दोनों डाक्टर थे पर मुसकान बहुत घबराई हुई थी. लोगों को बीमारी में देखना और बात है पर अपनों के लिए जो दर्द, घबराहट होती है, यह मुसकान आज जान पाई.

सुनील उसे ढाढ़स बंधा रहा था. उसे यह सोच कर दुख हो रहा था कि उस के सपनों की राजकुमारी, जिस ने जीवन में दुख का एक क्षण नहीं देखा, आज इतना बड़ा दुख...वह भी उस रात में जिस में इस समय उस की बांहों में लिपटी सुहागरात की सेज पर बैठी होती.

‘‘मुसकान, मैं हूं न तुम्हारे साथ. मेरे होते तुम चिंता क्यों करती हो.’’

‘‘मुझे आप के लिए दुख हो रहा है कि मेरे पापा के कारण आप को अपनी खुशी छोड़नी पड़ी,’’ मुसकान की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘पगली, यह हमारे बीच में मेरे-तुम्हारे कहां से आ गया. यह मेरे भी पापा हैं. कल को मुझ पर या घर के किसी दूसरे सदस्य पर कोई मुसीबत आ जाए तो क्या तुम साथ नहीं दोगी?’’

‘‘मेरी तो जान भी हाजिर है.’’

‘‘मुझे जान नहीं, बस, मुसकान चाहिए,’’ कहते हुए सुनील ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर दबाया.

सुनील को डाक्टर ने बुलाया था. अनिल बाजार सामान लेने गया हुआ था. मुसकान पापा के पास बैठ गई. पूरे एक घंटे बाद सुनील आया तो उदास और थकाथका सा था.

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