क्या औस्टियोपोरोसिस से अपने बचाव के लिए कुछ उपाय कर सकती हूं?

सवाल-

मेरी मां की उम्र 62 साल है. उन्हें हड्डियों में दर्द रहता है. जांच, एक्सरे कर के डाक्टर ने बताया है कि उन्हें औस्टियोपोरोसिस है. उन की हड्डियां कमजोर हो गई हैं. मां डाक्टर की बताई दवा ले रही हैं पर मैं खुद को ले कर चिंतित हूं कि कहीं यह रोग मुझे भी तो नहीं हो जाएगा? क्या मैं अपने बचाव के लिए कुछ उपाय कर सकती हूं?

जवाब-

हां, क्यों नहीं. आप की मां के डाक्टर ने यह बात ठीक ही बताई है कि औस्टियोपोरोसिस में हड्डियां अंदर ही अंदर कमजोर हो जाती हैं. नतीजतन छोटी सी चोट भी उन पर भारी पड़ सकती है और वे चटक सकती हैं. ऐसे लोग जो खानपान, रहनसहन और आचारव्यवहार के प्रति लापरवाही बरतते हैं या कुछ खास दवा लेने के लिए मजबूर होते हैं, उन में जवानी पार होने के बाद हड्डियों की ताकत घटती जाती है. मगर कोई अपने स्वास्थ्य के प्रति समय से चेत जाए, तो हड्डियों को कमजोर होने से बचा सकता है. इस के लिए निम्नलिखित बातों को गांठ बांध लेना जरूरी है:

चुस्त रहें, तंदुरुस्त रहें: आप जितना चलतेफिरते हैं, शारीरिक मेहनत करते हैं, व्यायाम करते हैं आप की हड्डियां उतनी ही मजबूत बनी रहती हैं. जिन लोगों का पूरा दिन बैठेबैठे बीतता है उन की हड्डियां 40 की उम्र से ही कमजोर होनी शुरू हो जाती हैं. लेकिन शारीरिक भागदौड़ करने वालों की हड्डियां बुढ़ापे में भी ताकत नहीं गवांतीं. अगर आप का स्वास्थ्य अनुमति देता रहे तो जब तक यह जीवन है, व्यायाम को अपनी नित्यचर्या का अंग बनाए रखें. रोज 30-40 मिनट की सैर हड्डियों को युवा बनाए रखने का सब से सरल उपाय है.

पर्याप्त कैल्सियम लें: हड्डियों के निर्माण और पोषण के लिए कैल्सियम जरूरी पोषक तत्त्व है. वयस्क स्त्री और पुरुष के लिए नित्य 500-600 मिलीग्राम कैल्सियम जरूरी है. बुढ़ापा आने पर कैल्सियम की यह दैनिक जरूरत बढ़ कर 1,000 मिलीग्राम हो जाती है.

दूध और दूध से बने पदार्थ जैसे दही, छेना, पनीर, मक्खन कैल्सियम के सब से अच्छे स्रोत हैं. आधा लिटर दूध में 600 मिलीग्राम कैल्सियम होता है. शरीफा, खजूर, खुबानी, किशमिश, हरी पत्तेदार सब्जियां, अनाज, पेयजल और मछली में भी कैल्सियम अच्छी मात्रा में होता है. आहार से कैल्सियम की भरपाई न हो पाए तो डाक्टर से सलाह ले कर कैल्सियम की गोलियां भी ली जा सकती हैं.

शरीर में विडामिन डी का भंडार बनाए रखें: शरीर में विटामिन डी का पर्याप्त भंडार होना भी हड्डियों के निर्माण और पोषण के लिए जरूरी है. अगर शरीर में विटामिन डी की कमी हो तो कैल्सियम के जज्ब होने में अड़चन आ जाती है. चाय और कौफी का कम सेवन करें: चाय, कौफी और ठंडे पेय अधिक पीने से भी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं. मदिरा और धूम्रपान से दूर रहें: मद्यपान और धूम्रपान करने वालों की हड्डियां भी जल्दी ताकत गवां बैठती हैं.

कुछ दवाएं भी दोषी हो सकती हैं: कुछ दवाएं भी हड्डियों की मजबूती कम करती हैं. इन में कार्टिकोस्टीरौयड सब से महत्त्वपूर्ण है. दूसरी दवा हिपेरिन है, जो रक्तजमावरोधक है और कुछ खास हृदयरोगियों को दी जाती है. इस दवा के प्रयोग से बचा तो नहीं जा सकता, पर इसे रोज ले रहे हैं तो सावधान अवश्य हो जाएं.

कुछ बीमारियां भी हड्डियों में सेंध लगाती हैं: कोई लंबी बीमारी जैसे रूमेटाएड गठिया, मिरगी, डायबिटीज, दमा, क्रौनिक ब्रौंकाइटिस और खास हारमोनल विकार तथा उन में दी जाने वाली दवाओं के दुष्प्रभाव से भी हड्डियां छोटी उम्र में ही कमजोर होने लगती हैं.

इन बीमारियों के होने पर जीवन में अनुशासन रख कर हड्डियों की मजबूती कायम रखी जा सकती है. नियमित सैर करें. खानपान का भी ध्यान रखें. किसी गलत लत में न पड़ें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

ऑस्टियोपोरोसिस: 50+ महिलाओं के लिए फायदेमंद होगी ये डाइट

50 की उम्र तक पहुंचते पहुंचते,अक्सर महिलाओं को ऑस्टियोपोरोसिस,स्क़िन प्राब्लम्ज़,वज़न में बढ़ोतरी जैसी बीमारियों से सामना पड़ने लगता है. ऐसी अवस्था में अपनी डायट के प्रति ज़रा सी लापरवाही भी आपकी दशा को बद से बदतर बना देती है. उम्र बढ़ने के साथ साथ महिलाओं को इन महत्वपूर्ण पोषक तत्वों को अपने भोजन में ज़रूर शामिल करना चाहिए.

A-मज़बूत हड्डियों के लिए कैलशियम

पचास से अधिक उम्र की तीन में एक महिला की ऑस्टीयोपोरोसिस की वजह से हड्डियां टूटने की समस्या का सामना करना पड़ता हैं. उम्र बढ़ने के साथ हमारा शरीर कम कैलशियम अवशोषित करता है. इसलिए इस ओर ध्यान देना हर महिला के लिए ज़रूरी हो जाता है.पचास से अधिक उम्र की महिलाओं को रोज़ाना १२०० मिलिग्राम कैलशियम की ज़रूरत पड़ती है.जिसे अपने डॉक्टर की सलाह पर ,टेबलेट या कैप्सूल फ़ॉर्म में ले सकती हैं. डेयरी प्रॉडक्ट्स कैलशियम का सबसे अच्छा सत्रोत है,लेकिन इन्हें पचाने की क्षमता,कई महिलाओं में कम होती है.

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B-स्वस्थ मांसपेशियों के लिए प्रोटीन

उम्र बढ़ने के साथ गति विधि कम हो जाती है,जो सारकोपेनिया से जुड़ा है.यह एक प्राकृतिक प्रोसेस है जिससे मांसपेशियों को नुक़सान पहुँचता है. 80 की उम्र तक पहुंचते पहुंचते ,महिलाएं अपनी मांसपेशियों का ज़्यादातर हिस्सा खो चुकी होती हैं.अगर आप खाने में प्रोटीन का सेवन अच्छी तरह करती रहें तो आपकी मांसपेशियां सुदृढ़ बनी रहेंगी.यदि आप शाकाहारी हैं तो प्रोटीन युक्त सब्ज़ियां खाएं,जिससे आपके शरीर को भरपेट प्रोटीन मिले.

अपनी डायट में सोया,क्विनोवा,अंडे, डेयरी प्रॉडक्ट्स,नट्स,और बीन्स को शामिल करें,आपके शरीर को कितने प्रोटीन को शामिल करें ये आपके वज़न पर निर्भर करता है.समान्यत:एक्स्पर्ट्स 1.5; ग्राम प्रोटीन ,प्रति किलोग्राम वज़न पर पर लेने की सलाह देते हैं.

C-स्वस्थ दिमाग़ के लिए विटामिन बी-12

बढ़ती उम्र के साथ महिलाएं एक महत्वपूर्णपोषक तत्व,विटामिन B-12 अवशोषित नहीं कर पातीं हैं। जो,स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं और दिमाग़ दोनों के लिए आवश्यक है.अंडे,दूध,लीन मीट,मछली जैसे पदार्थ बी-१२ के अच्छे स्त्रोत हैं. हालांकि 5० से अधिक उम्र की महिलाओं को रोज़ाना 2.4 माइक्रोग्राम विटामिन बी-12 का सेवन करना चाहिए.

D-स्वस्थ बालों और त्वचा के और बालों के लिए उम्र बढ़ने के साथ महिलाएं अपनी त्वचा और बालों की रंगत खोने लगती हैं. इन्हें बरक़रार रखने के लिए तमाम प्रयास करने के बावजूद कुछ ख़ास असर दिखाई नहीं देता.

  • विटामिन ई के सेवन से आपकी त्वचा में ग़ज़ब का असर दिखलाई देने लगता है.
  • रात में सोने से पहले विटामिन ई और एलोवेरा जेल को मिक्स कर हल्के हाथों से चेहरे पर लगाने से कुछ ही दिनों में चेहरा चमक उठता है.
  • बादाम के तेल में विटामिन ई के साथ मिक्स करके आंखों के नीचे लगाने से काले घेरे ख़त्म हो जाते हैं.
  • विटामिन ई ऑयल में एक चम्मच शहद मिलाकर सोने से पहले अपने होंठों पर लगाने से होठों की शुष्क पपड़ियां जाती रहती हैं.
  • इतना ही नहीं विटामिन ई का सेवन,बढ़ती उम्र के साथ ह्रदय की मांसपेशियों को भी मज़बूत करने में मददगार सिद्ध होता है.

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E-कोशिकाओं के नुक़सान के लिए एंटीआक्सिडेंटस

यदि आप बढ़ती उम्र के प्रभाव को कम करना चाहती हैं ,जैसे सूजन,डायबिटीज़,हार्ट की समस्या,दृष्टि दोष,और अपनी रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना चाहती हैं तो अपनी डायट में एंटीओक्सीडेंट आहार युक्त आहार का सेवन करें जैसे,

  • डार्क
  • चाकलेट ,
  • लहसुन,
  • हल्दी,
  • चुकंदर,
  • अदरक,
  • अनार,
  • कीवी आदि.

हड्डियों की गलन की बीमारी- एवैस्कुलर नेकरोसिस

एवैस्कुलर नेकरोसिस एक ऐसी स्थिति है जिसमें बोन टिशू मरने लगते हैं जिसके कारण हड्डियां गलने लगती हैं. इसे ऑस्टियोनेकरोसिस के नाम से भी जाना जाता है. दरअसल, जब रक्त हड्डियों के टिशू यानी कि उत्तकों तक ठीक से नहीं पहुंच पाता है तो ऐसी स्थिति में इस बीमारी का खतरा बनता है. हालांकि, यह बीमारी किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है लेकिन आमतौर पर 20-60 वर्ष की उम्र वाले लोग इसकी चपेट में ज्यादा आते हैं. इसके अलावा इसका खतरा उनमें भी ज्यादा होता है जो लोग पहले से डायबिटीज़, एचआईवी/एड्स, गौचर रोग या अग्न्याशय की बीमारी से ग्रस्त होते हैं. जब किसी व्यक्ति की हड्डी टूट जाती है या जोड़े अपनी जगह से खिसक जाते हैं तो रक्त हड्डियों तक पहुंचने में अक्षम हो जाता है. यह समस्या शराब, धूम्रपान और दवाइयों के अत्यधिक सेवन के कारण होती है. जिम जाने वाले युवा बॉडी बिल्डिंग के लिए सप्लीमेंट में स्टेरॉयड का सेवन करते हैं. यह स्टेरॉयड उनकी हड्डियों को नुकसान पहुंचाता है और उन्हें इस बीमारी का शिकार बनाता है.

कुछ लोगों में यह बीमारी एक या दोनों कूल्हों और जोड़ों में हो सकती है. इसमें होने वाला दर्द हल्का से गंभीर हो सकती है जो वक्त के साथ धीरे-धीरे बढ़ता जाता है. बीमारी का समय पर निदान और इलाज जरूरी है अन्यथा एक समय के बाद जब बीमारी गंभीर हो जाती है तो हड्डियां पूरी तरह गलने लगती हैं. इसके बाद व्यक्ति को गंभीर आर्थराइटिस की बीमारी हो सकती है.

एवैस्कुलर नेकरोसिस के लक्षण

  • शुरुआती चरणों में इस बीमारी के कोई लक्षण नहीं नज़र आते हैं. हालांकि, जब बीमारी गंभीर होने लगती है तो वजन उठाने या एक्सरसाइज़ करने पर जोड़ों में दर्द होने लगता है.
  • जब बीमारी अपने चरम पर पहुंचने लगती है तो आराम के दौरान या बिना कोई काम किए भी दर्द होता है.
  • कूल्हों में होने वाला दर्द जांघों, पेड़ू या नितंब तक फैल सकता है.
  • हाथो और कंधों में दर्द
  • पैर और घुटनों में दर्द

यदि आपके कूल्हों या जोड़ों में लगातार दर्द बना हुआ है तो बिना देर किए हड्डियों के किसी अच्छे डॉक्टर से संपर्क करें.

क्या हैं कारण?

यह बीमारी हड्डियों तक खून न पहुंचने से ही संबंधित है, जिसके कई कारण हो सकते हैं जैसे कि,

जोड़ों या हड्डियों में डैमेज: सामान्य जीवन में हमारे पैर में अक्सर चोट या मोच लगती रहती है. कई बार यह चोट गंभीर होती है जिसके कारण आस-पास की नसें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं. कई बार कैंसर के इलाज के कारण भी हड्डियां कमज़ोर पड़ जाती है और नसें क्षतिग्रस्त हो सकती हैं.

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रक्त वाहिकाओं में वसा का जमाव: वसा का जमाव छोटी रक्त वाहिकाओं में बाधा का कारण बनता है, जिसके कारण रक्त का प्रवाह धीमा हो जाता है.

विशेष बीमारियां: सिकल सेल एनीमिया या गौचर रोग के कारण भी रक्त का प्रवाह धीमा हो जाता है.

स्टेरॉयड का अत्यधिक सेवन: कोर्टिकोस्टेरॉयड का अत्यधिक सेवन करने से नसों पर दबाव पड़ता है जिसके कारण खून का प्रवाह धीमा हो जाता है. इसके कारण रक्त वाहिकाओं में वसा का जमाव भी होता है जो रक्त प्रवाह में बाधा का कारण बनता है.

दवाइयों का अत्यधिक सेवन: जब कोई व्यक्ति कई मेडिकेशन लेता है तो इसका असर उसकी हड्डियों पर पड़ता है. दवाइयां हड्डियों को कमज़ोर करती हैं जो एवैस्कुलर नेकरोसिस का कारण बनता है.

एवैस्कुलर नेकरोसिस से बचाव के उपाय

  • शराब का कम से कम सेवन करें
  • कोलेस्ट्रॉल स्तर को कम रखें
  • स्टेरॉयड का सेवन बंद कर दें या कम से कम सेवन करें
  • धूम्रपान से दूरी बनाएं
  • वजन को संतुलित बनाए रखें
  • समय-समय पर स्वास्थ्य जांच कराएं
  • बेवजह दवाइयों का सेवन बिल्कुल न करें

एवैस्कुलर नेकरोसिस का निदान

शारीरिक परीक्षण के दौरान डॉक्टर आपके जोड़ों को दबाकर देखेगा और साथ ही जोड़ों को अलग-अलग मुद्रा में घुमाकर देखेगा. इसके बाद वह आपको विभिन्न प्रकार की इमेजिंग टेस्ट कराने की सलाह देता है:

एक्स-रे: एक्स-रे की मदद से हड्डियों में आए बदलाव की पहचान की जाती है. बीमारी की शुरुआत में एक्स-रे की रिपोर्ट अक्सर नॉर्मल ही आती है.

एमआरआई/सीटी स्कैन: एमआरआई या सीटी स्कैन की मदद से बीमारी की शुरुआत में हड्डियों में आए बदलाव का पता लगाया जा सकता है.

बोन स्कैन: मरीज की नसों में रेडियोएक्टिव सामग्री डाली जाती है. यह सामग्री धीरे-धीरे पूरी हड्डियों तक पहुंचकर बीमारी की पहचान करने में मदद करती है.

एवैस्कुलर नेकरोसिस का उपचार

एवैस्कुलर नेकरोसिस का इलाज बीमारी की गंभीरता पर नर्भर करता है. इस बीमारी के इलाज के लिए शुरुआत में मेडिकेशन व थेरेपी दी जाती है. मेडिकेशन से कोई लाभ न मिलने पर डॉक्टर सर्जरी का विकल्प अपनाता है.

मेडिकेशन व फिज़ियोथेरेपी

बीमारी की शुरुआत में मरीज को मेडिकेशन व फिज़ियो थेरेपी दी जाती है, जहां उसे दर्द निवारक दवाएं और रक्त प्रवाह को बेहतर करने के लिए दवाओं की सलाह दी जाती है. इसके साथ ही उसे ऑस्टियोपोरोसिस व नॉन-स्टेरॉयड दवाएं दी जाती हैं. कुछ दवाइयों की मदद से मरीज के कोलेस्ट्रॉल स्तर को कम करने की कोशिश की जाती है. मरीज को समय-समय पर अस्पताल जाकर स्तिथि की जांच करनी होती है. फिज़ियोथेरेपी की मदद से मरीज की क्षतिग्रस्त हड्डियों पर पड़ने वाले दबाव को कम करने की कोशिश की जाती है. फिज़ियोथेरेपी जोड़ों में आई जकड़न को कम करने में सहायक होती है. इसके अलावा हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए डीटोनेट थेरेपी का सहारा लिया जाता है जिससे हड्डियों को गलने से रोका जा सके. मरीज को पर्याप्त आराम करने की सलाह दी जाती है. यहां तक हड्डियों में इलेक्ट्रिकल करंट भी दिया जाता है जिससे क्षतिग्रस्त हड्डियों की जगह पर नई हड्डियां विकसित हो सकें. यह करंट सर्जरी के दौरान सीधा क्षतिग्रस्त क्षेत्र पर लगाया जाता है.

सर्जरी

कोर डिकम्प्रेशन: इसमें सर्जन हड्डी की अंदरूनी परत को हटा देता है. इससे न सिर्फ दर्द से राहत मिलती है बल्कि उस स्थान पर नई और स्वस्थ बोन टिशू और नसें विकसित होने लगती हैं.

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बोन ट्रांसप्लान्ट: इस प्रक्रिया में सजर्न बीमारी ग्रस्त हड्डी को स्वस्थ हड्डी से बदल देता है. यह हड्डी शरीर के किसी अन्य भाग से ली जा सकती है.

जॉइंट रिप्लेसमेंट: इस प्रक्रिया की मदद से घिसे हुए जोड़ों को निकाल कर उनके स्थान पर प्लास्टिक, मेटल या सरैमिक जोड़ लगा दिए जाते हैं.

डॉक्टर अखिलेश यादव, वरिष्ठ प्रत्यारोपण सर्जन, जॉइंट रिप्लेसमेंट, सेंटर फॉर नी एंड हिप केयर, गाजियाबाद से बातचीत पर आधारित.

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