डा राजीव वर्मा
एचओडी एंड कंसलटेंट –जौइंट रिप्लेसमेंट एंड ऑर्थोपेडिक्स
मणिपाल हॉस्पिटल , द्वारका

आस्टियोपोरोसिस चुपचाप बढ़ता है और तब तक कोई लक्षण प्रकट नहीं करता जब तक हड्डी टूटने की घटना नहीं होती है. इसका एक लक्षण झुका हुआ शरीर भी है, पर लोग अक्सर इसे बढ़ती उम्र का संकेत मानकर नजरअंदाज कर देते हैं. भारत में लाखों लोग ऑस्टियोपोरोसिस से पीड़ित हैं. इसलिए इसके लक्षणों को समय रहते समझना और इसकी रोकथाम करना आवश्यक है. आस्टियोपोरोसिस में हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और हड्डी टूटने का खतरा बढ़ जाता है. यह तब होता है जब पुरानी हड्डी घिसने की तुलना में नई हड्डी बनने की गति धीमी होती है. इस असंतुलन के कारण हड्डियों का घनत्व कम हो जाता है और वो कमजोर हो जाती हैं.

 

शरीर में हड्डियां लगातार बनती रहती हैं. किशोरावस्था में शरीर में नई हड्डी पुरानी हड्डी घिसने के मुकाबले ज्यादा तेजी से बनती है. लेकिन बढ़ती उम्र के साथ नई हड्डी बनने की गति भी धीमी हो जाती है. इसलिए हड्डियों का घनत्व, शक्ति और वजन कम होने लगता है, और हड्डी टूटने का का खतरा बढ़ जाता है. आस्टियोपोरोसिस के कारणों में हार्मोनल परिवर्तन (विशेषकर महिलाओं में रजोनिवृत्ति के बाद), और विटामिन डी की कमी, और कुछ विशेष मेडिकल समस्याएं या दवाएं शामिल हैं. झुककर बैठना: ख़तरे का पहला संकेत. झुक कर बैठना या काइफोसिस (कुबड़ापन), ऑस्टियोपोरोसिस का पहला लक्षण है. यह वर्टिब्रा के टूटने या कमजोर होने के कारण होता है, क्योंकि इससे रीढ़ की हड्डी सिकुड़ जाती है, और फिर झुक जाती है.

आस्टियोपोरोसिस में शरीर कैसे झुक जाता है

1. वर्टिब्रल कम्प्रेशन फ्रैक्चर: यह फ्रैक्चर ऑस्टियोपोरोसिस से पीड़ित लोगों को होता है. इसका कारण रीढ़ की हड्डी कमजोर होना है. इसकी वजह से शरीर झुक जाता है और लंबाई कम हो जाती है.

2. कमजोर मांसपेशियां: इसमें रीढ़ की हड्डी के आसपास की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं, और शरीर झुक जाता है.

3. डिजनरेटिव परिवर्तन: बढ़ती उम्र और ऑस्टियोपोरोसिस के कारण वर्टिब्रा के बीच की डिस्क कमजोर हो जाती है, और रीढ़ की हड्डी मुड़ जाती है.

आस्टियोपोरोसिस के अन्य लक्षण हैं:-

झुके हुए शरीर के अलावा ऑस्टियोपोरोसिस के अन्य लक्षणों में शामिल हैं:-

● पीठ दर्द: वर्टिब्रा के कमजोर होने या टूटने के कारण होता है.
● लंबाई घटना: मरीजों को महसूस होने लगता है कि समय के साथ उनकी लंबाई कम हो रही है.
● हड्डी टूटना: मामूली गिरने या चोट लगने से भी हड्डियां आसानी से टूट जाती हैं.

भारत में ऑस्टियोपोरोसिस एक बढ़ती समस्या है. इसके बढ़ने के कई कारण हैं. सबसे पहले, जनसांख्यिकी की भूमिका है. भारत की वृद्ध आबादी तेजी से बढ़ रही है. जैसे-जैसे जीवन प्रत्याशा बढ़ती है, ऑस्टियोपोरोसिस जैसी उम्र से संबंधित समस्याएं भी बढ़ती हैं. यह बीमारी विशेष रूप से वृद्धों को प्रभावित करती है क्योंकि बढ़ती उम्र के साथ हड्डियों के घनत्व में प्राकृतिक गिरावट के कारण वे कमजोर हो जाते हैं और उन्हें आम तौर से ऑस्टियोपोरोसिस हो जाता है.

दूसरा, खान-पान की आदतें भी मुख्य कारण हैं. भारतीय आहार विटामिन डी और कैल्शियम से भरपूर होता है जो हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है. इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च के एक अध्ययन के अनुसार, आबादी का एक बड़ा हिस्सा आवश्यक मात्रा से कम पोषक तत्वों का सेवन करता है.

तीसरा, धूप की भी इसमें मुख्य भूमिका है. भारत में पर्याप्त धूप निकलती है, फिर भी यहाँ विटामिन डी की कमी आम है. इसका कारण जीवनशैली है, जैसे बढ़ती इनडोर गतिविधियाँ और सांस्कृतिक मान्यताएं, जैसे ज्यादा से ज्यादा शरीर को कपड़ों से ढकना, जिसकी वजह से शरीर को पर्याप्त धूप नहीं मिल पाती है. इसके अलावा, लोग ऊंची इमारतों में रहने लगे हैं, जिससे बाहर समय बिताना कम हो गया है.

चौथा, जेनेटिक संवेदनशीलता भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. शोध से पता चलता है कि ऑस्टियोपोरोसिस की ऊँची दर में कुछ आनुवंशिक कारणों का भी योगदान है. ये आनुवंशिक प्रवृत्तियाँ हड्डियों के घनत्व और हड्डियों के स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं, जिससे कुछ व्यक्तियों को दूसरों के मुकाबले ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा अधिक होता है. जर्नल ऑफ एसोसिएशन ऑफ फिजिशियन ऑफ इंडिया के एक अध्ययन के अनुसार, लगभग 50 मिलियन लोग ऑस्टियोपोरोटिक या हड्डी के कम वजन से पीड़ित हैं, जिससे उन्हें फ्रैक्चर का खतरा होता है. इस अध्ययन से यह भी पता चलता है कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस 8% से 125% तक ज्यादा होता है. ऑस्टियोपोरोसिस का निदान

भविष्य में फ्रैक्चर को रोकने और स्थिति को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए ऑस्टियोपोरोसिस का शीघ्र निदान महत्वपूर्ण है.
डायग्नोस्टिक टूल्स:

1. बोन मटेरियल डेन्सिटी (बीएमडी) परीक्षण: बोन डेन्सिटी को मापने के लिए सबसे आम रूप से ड्युअल-एनर्जी एक्स-रे एब्ज़ॉर्पशियोमीट्री (डेक्सा) स्कैन किया जाता है.
2. रक्त परीक्षण: ये हड्डियों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए कैल्शियम और विटामिन डी के स्तर और पोषक तत्वों की जाँच के लिए किया जाता है.
3. वर्टीब्रल फ्रैक्चर असेसमेंट (वीएफए): यह इमेजिंग टूल वर्टीब्रल फ्रैक्चर का पता लगाने में मदद करता है.

ऑस्टियोपोरोसिस की रोकथाम और प्रबंधन ऑस्टियोपोरोसिस एक गंभीर स्थिति है, लेकिन जीवनशैली में बदलाव और इलाज की मदद से इसे नियंत्रित किया व रोका जा सकता है.

1. कैल्शियम: यह हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है. वयस्कों को प्रतिदिन लगभग 1000-1200mg कैल्शियम की आवश्यकता होती है. इसके स्रोतों में डेयरी उत्पाद और पत्तेदार सब्जियाँ हैं.
2. विटामिन डी: यह कैल्शियम अवशोषण के लिए आवश्यक है. सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आने पर शरीर विटामिन डी का संश्लेषण करता है. इसकी कमी वाले लोगों के लिए सप्लीमेंट्स जरूरी हैं.
3. धूम्रपान और अत्यधिक शराब से परहेज: दोनों ही हड्डियों के नुकसान के प्रमुख कारण हैं और इनमें योगदान करते हैं और इसलिए इनसे बचना चाहिए.

इलाज:

दवाओं से ऑस्टियोपोरोसिस के प्रबंधन में मदद मिलती है. इनमें बिसफ़ॉस्फ़ोनेट्स, सलेक्टिव एस्ट्रोजन रिसेप्टर मॉड्यूलेटर (एसईआरएम), और हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एचआरटी) शामिल हैं.

• कैल्शियम सप्लीमेंट: यह उन लोगों को दिया जाता है जो आहार के माध्यम से अपनी कैल्शियम की आवश्यकता को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं.
• विटामिन डी सप्लीमेंट: यह उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जिन्हें सीमित धूप या अवशोषण की समस्या है.
• बिसफ़ॉस्फ़ोनेट्स: ये हड्डी में मिनरल्स का घनत्व को बढ़ाने के लिए दिए जाते हैं.
• सलेक्टिव एस्ट्रोजन रिसेप्टर मॉड्यूलेटर (एसईआरएम): रालोक्सिफेन जैसे एसईआरएम हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी से जुड़े जोखिमों के बिना एस्ट्रोजन के कारण होने वाले हड्डी-सुरक्षात्मक प्रभाव उत्पन्न करते हैं.
• हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एचआरटी): इसका उपयोग उन महिलाओं के लिए किया जाता है जो रजोनिवृत्ति के बाद के जोखिमों और बार-बार होने वाले रजोनिवृत्ति के लक्षणों से पीड़ित होती हैं.
• पैराथाइरॉइड हार्मोन एनालॉग्स: टेरीपैराटाइड जैसी दवाओं का उपयोग ओस्टियोब्लास्ट द्वारा नई हड्डियों के निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए किया जाता है.

ऑस्टियोपोरोसिस प्रबंधन में सर्जिकल प्रक्रियाओं की भूमिका

अगर ऑस्टियोपोरोसिस के कारण हड्डी टूटती है, तो सर्जरी जरूरी हो जाती है. इन प्रक्रियाओं का उद्देश्य हड्डी को जोड़ना, फिर से गतिविधि संभव बनाना, और जटिलताओं को रोकना है. अगर हड्डी टूटने पर पारंपरिक इलाज से लाभ ना मिले, तो सर्जरी का परामर्श दिया जाता है.

सामान्य सर्जिकल प्रक्रियाएं

1. वर्टीब्रोप्लास्टी और काइफोप्लास्टी

वर्टीब्रोप्लास्टी: यह एक मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया है जिसमें टूटे हुए वर्टिब्रा में बोन सीमेंट डालकर इसे ठीक किया जाता है.

काइफोप्लास्टी: इस प्रक्रिया में, टूटे हुए वर्टिब्रा में बलून डालकर जगह बनाई जाती है ताकि उसमें बोन सीमेंट भरा जा सके और वर्टिब्रा की ऊंचाई फिर से ठीक की जा सके.

2. स्पाइनल फ्यूजन
इस प्रक्रिया में बोन ग्राफ्ट और/या मेटल रॉड्स, प्लेट्स या स्क्रू की मदद से दो या अधिक वर्टिब्रा को जोड़कर रीढ़ की हड्डी को ठीक किया जाता है.

3. हिप फ्रैक्चर सर्जरी

हिप फ्रैक्चर सर्जरी के प्रकार:

इंटरनल फिक्सेशन: इसमें स्क्रू, रॉड और प्लेट की मदद से फ्रैक्चर को ठीक किया जाता है.

टोटल हिप रिप्लेसमेंट: इसमें फ़ेमोरल हेड और एसिटाबुलम सहित हिप के पूरे जॉइंट को प्रोस्थेटिक से बदला जाता है.

4. सर्जरी द्वारा कलाई और अन्य फ्रैक्चर ठीक करना इसमें स्क्रू, पिन, प्लेट या बाहरी उपकरणों द्वारा फ्रैक्चर ठीक किया जाता है.

शरीर का झुकना देखने में एक छोटी समस्या है, लेकिन यह ऑस्टियोपोरोसिस का शुरुआती लक्षण हो सकता है. पर सही पोषण, नियमित व्यायाम, जीवनशैली में बदलाव और इलाज की मदद से ऑस्टियोपोरोसिस को ठीक करना संभव है. शरीर झुकने के परिणामों और ऑस्टियोपोरोसिस के प्रभाव को समझकर एक स्वस्थ भविष्य की ओर बढ़ा जा सकता है. यदि शारीरिक मुद्रा में कोई परिवर्तन या हड्डी कमजोर होने का कोई अन्य लक्षण महसूस हो, तो फ़ौरन अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. हड्डियां शरीर को आधार देती हैं, इसलिए स्वस्थ शरीर के लिए उनका
स्वस्थ होना बहुत जरूरी है.

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