पीरियड्स पर मौसम का असर

हम सभी के मन में पीरियड्स को ले कर कई सारे सवाल होते हैं. जैसे यह कैसे प्रभावित होता है? किस तरह से यह हमें प्रभावित करता है? क्या हो अगर किसी तरह से हमारे इस साइकल में रुकावट आ जाए?

क्या मौसम आप के पीरियड्स में रुकावट ला सकता है? इस का जवाब है हां. सर्दियों में पीरियड्स और प्रीमैंस्ट्रुअल तनाव बिलकुल बढ़ सकता है. सर्दियों में पीरियड्स बहुतों के लिए अत्यधिक बुरे हो सकते हैं. सर्दियों में अधिक ठंड के कारण महिलाएं बहुत आसानी से बीमार पड़ सकती हैं. कई बार महिलाओं का मूड भी तापमान की तरह गिरता रहता है और ऐसा लगता है सर्दी का यह मौसम उन के पीरियड्स साइकल पर बहुत ज्यादा असर डाल सकता है. इसीलिए महिलाएं अकसर सर्दियों में पीरियड्स में दिक्कत आने की शिकायत करती रहती हैं. ऐसे में बदलते मौसम के साथ कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना जरूरी है. आइए, जानते हैं वे महत्त्वपूर्ण बातें जो सर्दियों में पीरियड्स साइकल में होने वाले बदलावों से बेहतर तरीके से निबटने में मदद कर सकती हैं:

1. पीरियड्स साइकल की अवधि

सर्दी पीरियड्स साइकल की अवधि को प्रभावित करती है. हारमोन स्राव में बढ़ोतरी, ओव्युलेशन की बढ़ती फ्रीक्वैंसी और साइकल का कम होना जहां सर्दियों की तुलना में 0.9 दिनों का होता है वहीं सर्दियों में पीरियड्स साइकल ठंड की वजह से बिगड़ जाता है. इस रिसर्च के अनुसार गरमियों में अंडाशय अधिक सक्रिय होता है. सर्दियों में ओव्युलेशन स्तर 97% से घट कर 71% रह जाता है. लंबे पीरियड्स साइकल और घटे हुए ओव्युलेशन के कारण पीरियड्स का अनुभव परेशानी भरा हो सकता है.

2. धूप

धूप यानी सूर्य की किरणें विटामिन डी और डोपामाइन दोनों ही बनाने में मदद करती हैं. इन के बिना जो मूड स्विंग्स हम पीरियड्स में महसूस करते हैं, वह बढ़ सकता है, जिस से पार पाना मुश्किल हो सकता है. धूप प्लैजर, मोटिवेशन और कंस्ट्रेशन बढ़ाता है. धूप शरीर में फौलिक स्टिम्युलेटिंग हारमोन  के स्राव को बढ़ा देती है. यह हारमोन शरीर को साधारण बनाता है. महिलाएं गरमियों की तुलना में सर्दियों में ज्यादा ओव्युलेट करती हैं, जिस से उन के पीरियड्स लंबे समय तक चलते हैं.

3. प्री मैंस्ट्रुअल सिंड्रोम

प्री मैंस्ट्रुअल सिंड्रोम यानी पीरियड्स शुरू होने से पहले जो बदलाव या लक्ष्ण महिलाओं में दिखाई देते हैं, उन में महिलाओं को चिड़चिड़ापन, सूजन, चिंता, ऐंग्जाइटी और डिप्रैशन महसूस होता है. सर्दियों में महिलाएं अधिकतर घर में रहती हैं, जिस से वे खुद को अधिक तटस्थ महसूस करती हैं. धूप की कमी यानी विटामिन डी और कैल्सियम की कमी के कारण पीएमएस और बढ़ जाता है. ऐसे समय में खानपान का खास ध्यान रखना जरूरी हो जाता है. उच्च कैल्सियम युक्त खाद्यपदार्थों के सेवन और नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करने से पीएमएस के लक्षणों में सुधार आ सकता है.

4. पीरियड्स में होने वाला दर्द

सर्दियों  में पीरियड्स का दर्द अधिक बढ़ जाता है, क्योंकि ये हमारी रक्तवाहिकाओं को संकुचित कर देते हैं. इस से रक्तवाहिनियों में अवरोध पैदा हो जाता है और रक्तप्रवाह में बाधा आती है. इसीलिए सर्दियों में दर्द ज्यादा होता है. इस के लिए गरम पानी की बोतल या हीटिंग पैड इस दर्द को कम करने में मदद कर सकता है.

5. हारमोनल इंबैलेंस

हारमोनल इंबैलेंस सर्दियों में होने वाली एक और समस्या है. ठंडे मौसम के कारण सर्दियों में धूप कम निकलती है, कम धूप न केवल ऐंडोक्रीन सिस्टम को प्रभावित करती है, बल्कि थायराइड की गति को भी धीमा कर देती है. धीमे थायराइड से मैटाबोलिज्म भी धीमा हो जाता है. इस का असर हमारे मैटाबोलिज्म और पीरियड्स पर पड़ता है जब तक कि शरीर खुद को मौसम के अनुसार नहीं ढाल लेता. यदि आप के मासिकधर्म में ज्यादा दिक्कत आती है तो गाइनेकोलौजिस्ट या ऐंडोक्रिनोलौजिस्ट से मिलें.

हमारे व्यवहार, परिवर्तन का असर भी हमारे पीरियड्स पर पड़ता है. सर्दियों में हमारे व्यावहारिक जीवन में काफी बदलाव देखने को मिलता है जैसेकि ऐक्सरसाइज कम करना, हाई फैट व शुगरी फूड खाना, शराब का सेवन अधिक करना. इस तरह की जीवनशैली पीरियड्स में होने वाली तकलीफ और पीएमएस को बढ़ा सकती है. मूड, मैटाबोलिज्म और मैंस्ट्रुएशन तीनों मौसम बदलने के साथ बदलते हैं.

 -जैसमिन वासुदेवा

मार्केटिंग मैनेजर, सैनिटरी नैपकिन नाइन 

Periods होने में देरी हो रही है, क्या मुझे Thyroid की जांच करानी चाहिए?

सवाल-

26 साल की अविवाहिता हूं. मेरी लंबाई 5 फुट 3 इंच है और वजन 70 किलोग्राम. 5 माह पहले मुझे मासिकस्राव नहीं हुआ था. लेकिन अगले महीने हुआ था. उस के 10 दिन बाद मैं ने सुरक्षित यौन संबंध स्थापित किए. उस महीने मुझे पीरियड्स समय से हुआ. लेकिन अब देर से हो रहा है. इस के क्या कारण हो सकते हैं? कुछ लोगों ने बताया कि मुझे थायराइड की जांच करानी चाहिए. कृपया बताएं क्या करूं?

जवाब

अनियमित या देरी से मासिकस्राव होने के कई कारण हैं. अगर आप यौन सक्रिय हैं, तो पहली बात यह कि आप को गर्भावस्था के बारे में निश्चित करना चाहिए. इस के अलावा पैल्विक अल्ट्रासाउंड जांच होनी चाहिए ताकि अंडाशय में सिस्ट या पौलिसिस्टिक ओवरीज की जांच हो सके. ये मासिकस्राव में देरी के कारण हो सकते हैं. अधिक वजन का भी मासिकस्राव पर प्रभाव पड़ता है. आप की लंबाई के हिसाब से आप का वजन 60 किलोग्राम होना चाहिए. आप को अपने आहार नियंत्रण एवं जीवनशैली में परिवर्तन के जरीए वजन कम करना चाहिए. इस से आप के मासिकस्राव के नियमित होने में मदद मिलेगी.

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पीरियड्स के दौरान महिलाओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. कई बार इस दौरान महिलाओं को बहुत तेज दर्द का सामना करना पड़ता है. ऐसे में वो दवाइयों का सहारा लेने लगती हैं. पीरियड्स पेन में इस्तेमाल होने वाले पेन किलर्स हाई पावर वाले होते हैं. स्वास्थ पर उनका काफी बुरा असर होता है.

इस खबर में हम आपको पांच घरेलू टिप्स के बारे में बताएंगे जिनको अपना कर आप हर महीने होने वाले इस परेशानी से राहत पा सकेंगी.
तो आइए शुरू करें.

1. तले आहार से करें परहेज

पीरियड्स में आपको अपनी डाइट पर खासा ख्याल रखना होगा. इस दौरान तले, भुने खानों से दूर रहें. अपनी डाइट में हरी सब्जियों और फलों को शामिल करें. ये काफी असरदार होते हैं.

2. तेजपत्ता

तेजपत्ता से होने वाले स्वास्थ लाभ के बारे में बहुत कम लोगों को पता होता है. पीरियड्स से होने वाली परेशानियों में तेजपत्ता काफी कारगर होता है. महावारी के दर्द को दूर करने के लिए महिलाएं इसका इस्तेमाल करती हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- पीरियड्स के ‘बर्दाश्त ना होने वाले दर्द’ को चुटकियों में करें दूर

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

पीरियड्स में तनाव से निबटें ऐसे

मासिकधर्म लड़कियों व महिलाओं में होने वाली एक सामान्य प्रक्रिया है. इस दौरान शरीर में अनेक हारमोनल बदलाव होते हैं, जो शारीरिक और भावनात्मक रूप से प्रभाव डालने के कारण तनाव का कारण बन सकते हैं. कई कारण इस के जिम्मेदार हो सकते हैं.

कई महिलाएं मासिकधर्म शुरू होने से पहले या इस दौरान तनाव की ऐसी स्थिति से गुजरती हैं, जिस में उन्हें चिकित्सकीय इलाज की भी जरूरत होती है. यह सामान्य बात है कि तनाव, चिंता और चिड़चिड़ापन जिंदगी और रिश्तों को प्रभावित कर सकता है.

पीरियड्स के दौरान अगर थोड़ाबहुत तनाव महसूस हो, तो यह एक सामान्य स्थिति मानी जाती है. प्रीमैंस्ट्रुअल सिंड्रोम के लक्षणों का मुख्य कारण ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन हारमोंस के लैवल में बदलाव आना होता है.

सामान्य तौर पर पुरुषों की तुलना में महिलाओं में तनाव से ग्रस्त होने की आशंका ज्यादा होती है, जो मासिकधर्म के दौरान और बढ़ सकती है, क्योंकि ये हारमोनल ‘रोलर कोस्टर’ आप के ब्रेन में न्यूरोट्रांसमीटर्स, जिन में सैरोटोनिन और डोपामाइन हैं, पर प्रभाव डाल सकते हैं, जो मूड को ठीक रखने का काम करते हैं. इस के अलावा जिन लड़कियों या महिलाओं को पहले पीरियड्स के दौरान बहुत अधिक ऐंठन या ब्लीडिंग होती है, वे पीरियड्स शुरू होने से पहले दर्द व असुविधा को ले कर चिंतित हो सकती हैं, जो तनाव का कारण बनता है.

ये लक्षण आप के दैनिक जीवन को प्रभावित करने के लिए काफी गंभीर होते हैं, जिन में चिड़चिड़ापन या क्रोध की भावना, उदासी या निराशा, तनाव या चिंता की भावना,मूड स्विंग या बारबार रोने को मन करना, सोचने या ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत, थकान या कम ऊर्जा, फूड क्रेविंग या ज्यादा खाने की इच्छा, सोने में दिक्कत, भावनाओं को कंट्रोल करने में परेशानी और शारीरिक लक्षण, जिन में ऐंठन, पेट फूलना, स्तनों का मुलायम पड़ना, सिरदर्द और जोड़ों व मांसपेशियों में दर्द शामिल है.

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टीनऐजर्स को भी अत्यधिक तनाव महसूस हो सकता है. उन्हें मांसपेशियों में खिंचाव व ऐंठन, पेट दर्द, जोड़ों व कमर में दर्द व थकान हो सकती है. ये परिवर्तन उन के यौवन काल में हो रहे परिवर्तनों से जुड़ी होते हैं.

हारमोंस जैसे ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन जो पीरियड्स को दुरुस्त करने का काम करते हैं, में उतारचढ़ाव की वजह से आप की भूख, पाचन शक्ति और ऊर्जा का स्तर प्रभावित हो सकता है और ये सब आप के मूड को भी प्रभावित करने का काम करेंगे. इस से मनोवैज्ञानिक कार्यप्रणाली पर भी असर पड़ सकता है. पीरियड्स के दौरान तनाव एक मूड डिसऔर्डर है, जिस से पीरियड्स के दौरान 5% महिलाएं प्रभावित होती हैं. निम्न उपाय पीरियड्स के दौरान तनाव को कम करने में मददगार साबित होंगे:

रीलैक्सेशन टैक्नीक

इस तकनीक का उपयोग करने से स्ट्रैस कम होता है. इस के लिए आप योगा, मैडिटेशन और मसाज जैसी थेरैपी ले सकती हैं.

पर्याप्त नींद लें

पर्याप्त नींद लेना बहुत जरूरी है. लेकिन सिर्फ यही जरूरी नहीं है, बल्कि आप कोशिश करें कि आप का रोजाना सोने व उठने का एक समय हो. छात्राएं सोने के शैड्यूल को न बिगाड़ें, क्योंकि इस से हारमोंस पर असर पड़ता है.

डाइट का खास ध्यान रखें

आप कौंप्लैक्स कार्बोहाइड्रेट वाली डाइट लें. अपनी डाइट में साबूत अनाज व स्टार्ची वैजिटेबल्स ऐड करें, जो पीरियड्स के दौरान मूड स्विंग व तनाव को कम करने का काम करेंगी. कैल्सियम रिच फूड जैसे दूध व दही लें. खाने में ज्यादा से ज्यादा फलों व सब्जियों को शामिल करें. थोड़ाथोड़ा खाएं ताकि पेट फूलने की समस्या न हो. अलकोहल व कैफीन से दूरी बनाएं.

विटामिंस हों ज्यादा

अनेक अध्ययनों से पता चला है कि कैल्सियम और विटामिन बी-6 दोनों तनाव के शारीरिक और मनोवैज्ञानिक लक्षणों को कम करने का काम करते हैं.

व्यायाम जरूरी

दौड़ने या साइक्लिंग करने से मूड ठीक होता है.

कोंगिनेटिव बिहेवियरल थेरैपी

इस थेरैपी की तकनीक से आप तनाव पर अलग तरह से काबू पा सकती हैं. समय के साथ आप के मस्तिष्क में तंत्रिकों के मार्ग बदल जाएंगे, जो बेचैन करने वाली प्रतिक्रियाओं को कम करने में मदद करेंगे.

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कई महिलाओं में तनाव प्रीमैंस्ट्रुअल सिंड्रोम का सामान्य लक्षण होता है. लेकिन ऐंठन और पेट फूलने की समस्या की तरह तनाव को भी नियंत्रित किया जा सकता है. इसलिए डरें नहीं, बल्कि डाक्टर से इस बारे में खुल कर बात करें. दवा से भी इसे नियंत्रित किया जा सकता है.

-जैसमिन वासुदेवा

मार्केटिंग मैनेजर, सैनिटरी नैपकिन नाइन.   

Festive Special: जब त्यौहारों में पीरियड्स शुरू हो जाएं

लेखक-पूजा भारद्वाज

फैस्टिवल के मस्तीभरे माहौल में हरकोई मस्ती के मूड में होता है, लेकिन महिलाओं के त्योहारों का मजा तब किरकिरा हो जाता है जब उन्हें ऐसे मौकों पर पीरियड्स शुरू हो जाते हैं. तब इस दौरान होने वाली थकावट, कमर व पेट दर्द, ज्यादा ब्लीडिंग और सिरदर्द जैसी समस्याएं उन के सारे उत्साह को कम कर देती हैं और वे चाह कर भी कुछ नहीं कर पातीं. उन की हर योजना धरी की धरी रह जाती है. घर के बाकी लोगों को मस्ती करते देख उन के चेहरों पर उदासी छा जाती है. ऐसे में अगर वे इन बातों का खयाल रखें तो उन के त्योहार की चमक भी फीकी नहीं पड़ेगी:

रहें टैंशन फ्री

ऐसे समय में महिलाएं खुद को एक सीमित दायरे में बांध लेती हैं और बीमार सा महसूस करती हैं, जबकि यह कोई बीमारी नहीं है, बल्कि यह तो प्राकृतिक प्रक्रिया है, इसलिए दब कर नहीं खुल कर जीएं.  पीरियड्स को ले कर ज्यादा तनाव न लें, क्योंकि ज्यादा तनाव लेना उन की सेहत पर भारी पड़ सकता है. इसलिए सोच सकारात्मक रखें, तो ज्यादा बेहतर है. सब से जरूरी बात है कि परिस्थिति कैसी भी हो खुश रहें, क्योंकि जब आप अंदर से खुश रहेंगी, तो आप के चेहरे पर आने वाले ग्लो की बात ही कुछ अलग होगी.

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हौट वाटर बोतल से सिंकाई

पीरियड्स के दौरान पेट में अगर ज्यादा दर्द हो, तो आप गरम पानी की बोतल से सिंकाई भी कर सकती हैं, क्योंकि पीरियड्स में पेट की निचली तरफ गरम पानी की बोतल से सिंकाई करने से यूटरस की मांसपेशियों को आराम मिलता है और दर्द से राहत मिलती है.

साफ-सफाई का रखें खास ध्यान

पीरियड्स के दौरान साफसफाई का विशेष ध्यान रखें ताकि सेहत पर इस का बुरा असर न पड़े. इस दौरान पर्सनल साफसफाई का ध्यान रखने से आप कई तरह की बीमारियों जैसे यूटीआई और इन्फैक्शन से भी बच सकती हैं और इस में सब से अहम रोल उस पैड या सैनिटरी नैपकिन का होता है, जिस का आप पीरियड्स के दौरान इस्तेमाल करती हैं. इस के अलावा पीरियड्स के दौरान ऐंटीबायोटिक साबुन या क्लींजर से प्राइवेट पार्ट की सफाई करें. स्नान जरूर करें, क्योंकि इस से आप तरोताजा महसूस करेंगी और खिलीखिली नजर आएंगी.

कंफर्ट है जरूरी

आज भी ऐसी कई महिलाएं हैं, जो पीरियड्स के दौरान सैनिटरी पैड्स की जगह गंदे कपड़े, न्यूजपेपर, पत्ते या फिर गलत पैड्स का इस्तेमाल करती हैं, जिस में खुद को असहज महसूस करती हैं और कपड़े गंदे होने के डर से कहीं जाती नहीं और त्योहार का भरपूर आनंद नहीं ले पाती हैं. इसलिए इस समय में सिर्फ पैड्स का ही इस्तेमाल करें ताकि आप खुल कर जी सकें.

सही पैड ही चुनें

पीरियड्स के दौरान लंबे समय तक एक ही पैड का इस्तेमाल आप के लिए घातक साबित हो सकता है. इसलिए पैड कितनी भी अच्छी क्वालिटी का क्यों न हो कम से कम दिन में 3 बार जरूर चेंज करें, साथ ही पैड की क्वालिटी पर भी ध्यान दें, क्योंकि कई महिलाएं सस्ते के चक्कर में उत्पाद की गुणवत्ता से समझौता कर लेती हैं और कम पैसों में घटिया ब्रैंड के नैपकिन यूज करने लगती हैं, जिस से उन्हें रैशेज हो जाते हैं.

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वैसे तो बाजार में विभिन्न कंपनियों के सैनिटरी नैपकिन मौजूद हैं, लेकिन नाइन की बात ही कुछ खास है, क्योंकि यह आप को खुल कर जीने की आजादी देता है और यह डाईऔक्सिन मुक्त है, जो सर्विकल कैंसर होने के खतरे को नियंत्रित करता है. इस के अलावा यह हैवी फ्लो में कामयाब है और लीक भी नहीं होता है. इसे डिस्पोज करना भी काफी आसान है, साथ ही यह पौकेट फ्रैंडली भी है.

जरूरी बातें

– सैनिटरी नैपकिन को 3-4 घंटे में बदलती रहें.

– माहवारी में हाइजीन का पूरापूरा ध्यान रखें ताकि आप को इन्फैक्शन न हो.

– माहवारी में प्राइवेट पार्ट की सफाई पर ध्यान दें.

– सूती अंडरवियर पहनें.

– माहवारी में डीहाइड्रेशन की समस्या भी हो सकती है, इसलिए अधिक पानी पीएं.

– इस समय तंग कपड़े पहनने से बचें. ढीले कपड़े पहनें.

पीरियड्स के दौरान इन बातों का भी रखें ख्याल

बिजी लाइफस्टाइल में बहुत जरूरी है कि आप पीरियड्स के दौरान अपनी स्वच्छता का पूरा ख्याल रखें क्यों कि अगर ऐसा नहीं किया तो बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. इसीलिए आज हम आपको बताएंगे की कैसे पीरियड्स के दौरान साफ-सफाई बनाए रखें और बीमारियों से भी बचे रहें…

1. ब्लीडिंग के दौरान रखें साफ-सफाई

पीरियड्स के दौरान शरीर से ब्लीडिंग होने पर विशेष रूप से अपने प्राइवेट पार्ट्स को साफ रखना महत्वपूर्ण है. इस हिस्से की सफाई के लिए गर्म पानी और इंटिमेट या वैजाइनल वाश का उपयोग करें.

2. कभी भी एक साथ दो पैड का इस्तेमाल न करें

कुछ महिलाएं ज्यादा फ्लो के समय सावधानी वश 2 सेनेटरी पैड का उपयोग करती हैं. यह उचित नहीं क्यों कि यह योनि क्षेत्र में संक्रमण का कारण बन सकता है. इसीलिए एक ही पैड का इस्तेमाल करें और यदि फ्लो अधिक हो तो इसे बदलते रहें.

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3. आरामदायक, साफ अंडरवियर पहनें

अपने सैनिटरी पैड को बदलते समय आवश्यक है इन दिनों कुछ आरामदायक अंडरवियर पहने. केवल कौटन या कपड़े से बने अंडरवियर जो आप की स्किन को सांस लेने की अनुमति देते हैं. सिंथेटिक और टाइट अंडरवियर भी संक्रमण को आमंत्रित करते है.

हमेशा प्राइवेट पार्ट्स को आगे से पीछे की तरफ धोएं या पोंछें. यह महत्वपूर्ण है क्यों कि विपरीत दिशा में सफाई, बैक्टीरिया का रास्ता बना सकती है जिस से संक्रमण हो सकता है.

4. अक्सर उत्पादों को बदले

एक सैनिटरी उत्पाद आप के शरीर के संपर्क में जितना लंबा होगा, संक्रमण का खतरा उतना ही अधिक होगा. बहुत लंबे समय तक रहने पर पैड रशेस पैदा कर सकते हैं और संक्रमण भी पैदा कर सकते हैं. आम तौर पर एक पैड का उपयोग 6 घंटे तक किया जा सकता है. टैम्पोन को भी हर 2 से 3 घंटे में बदलने की आवश्यकता होती है.

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पीरियड्स के दौरान साफ-सफाई न करना हो सकता है खतरनाक

महिलाओं और लड़कियों के लिए प्रत्येक महीने 4 -5 दिन काफी थकावट वाला और दर्द भरा होता है. यह वक्त है जब उन्हें पीरियड्स के दर्द से जूझना पड़ता है. लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि तकलीफ की वजह से आप उन दिनों खुद की देखभाल करना छोड़ दें. बल्कि उन दिनों आप के प्राइवेट पार्ट्स को ज़्यादा देखभाल की जरुरत होती है. आइये जानते हैं इंटरनेशनल फर्टिलिटी सेंटर की डॉ. रीता बक्शी से कि पीरियड्स के दिनों में साफ-सफाई क्यों जरुरी है और कैसे रखी जा सकती है-

1. यूरिन इन्फेक्शन्स

पीरियड्स के दौरान खुद को साफ न रखना बहुत सारे बैक्टीरियाज को आमंत्रित करता है जो आगे चल कर यूरिन इन्फेक्शन्स की वजह बन सकते हैं. इस से पेट के निचले हिस्से में दर्द के साथ किडनी भी प्रभावित हो सकती है.

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2. रैशज

यह एक बहुत ही आम समस्या है और लगभग हर दूसरी महिला ने कभी न कभी इस का अनुभव किया है. पीरियड्स के दौरान होने वाले रैशेज का मुख्य कारण सैनिटरी नैपकिन को बारबार बदलना नहीं है. आधुनिक समय के नैपकिन बनाने में कंपनियां अच्छी मात्रा में प्लास्टिक और अन्य सामग्री का उपयोग करते हैं जो आप की स्किन के लिए अनुकूल नहीं है. इस के अलावा 4-6 घंटे से अधिक के लिए एक नैपकिन का उपयोग करने से रक्त उस के आसपास के संक्रमण का कारण बन सकता है जिस से स्किन पर चकत्ते और जलन होती है.

3. सफेद डिस्चार्ज

प्राइवेट पार्ट्स से व्हाइट डिस्चार्ज हर बार अस्वस्थ परिस्थितियों की ओर इशारा नहीं करता है. लेकिन पीरियड्स के दौरान अस्वच्छता आप की योनि में बैक्टीरिया का कारण बन सकती है और परिणामस्वरूप सफेद डिस्चार्ज हो सकता है. इस लिए ज़रूरी है कि इस हिस्से को पीरियड्स के दौरान साफ़ और स्वच्छ रखें.

4. बांझपन की संभावना

पीरियड्स के दौरान अशुद्ध कपड़ों का उपयोग करना या लंबे समय तक एक ही सैनिटरी नैपकिन या टैम्पोन का उपयोग करना बैक्टीरिया के विकास को सुविधाजनक बना सकता है. ये बैक्टीरिया बांझपन की संभावना बढ़ा सकते हैं.

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5. सरवाइकल कैंसर की संभावना

पीरियड्स के दौरान अस्वच्छता की वजह से कैंसर के विकास की संभावनाएं पैदा हो जाती हैं. महिलाओं के लिए यह बहुत जरूरी है कि वे अपने पीरियड्स के दौरान न केवल खुद को साफ रखें बल्कि नियमित रूप से अपने प्राइवेट पार्ट की सफाई कर के हमेशा स्वच्छता बनाए रखें.

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