Menstrual हाइजीन टिप्स

पीरियड्स यानि माहवारी महिलाओं के स्वाभाविक विकास का परिचायक है. पहले जहां एक लडकी को पीरियड्स की शुरुआत 12 से 15 साल की उम्र में हुआ करती थी, वहीं आज यह 10 साल की उम्र में ही हो जाती है.

हमारी दादीनानी के समय में पैड्स आम जनता की पहुंच में नहीं थे इसलिए वे घर के फटेपुराने कपड़ों की परतें बना कर प्रयोग करतीं थीं. यही नहीं, उन्हीं कपड़ों को धो कर वे फिर से भी प्रयोग करती थीं पर आज हमारे पास इन दिनों में प्रयोग करने के लिए भांतिभांति के पैड्स, टैंपोन और कप मौजूद हैं और महिलाएं इन्हें यूज भी करती हैं. पर इन दिनों साफसफाई और कुछ अन्य बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है.

अकसर जानकारी के अभाव में महिलाएं साधारण सी सावधानियां भी नहीं रख पातीं और यूरिनरी और फंगल इन्फैक्शन का शिकार हो जाती हैं. बाजार में उपलब्ध किसी भी साधन का पीरियड्स में उपयोग करें पर निम्न बातों का ध्यान जरूर रखें :

  1. सैनेटरी पैड्स

सैनेटरी पैड्स महिलाओं द्वारा सर्वाधिक मात्रा में प्रयोग किए जाते हैं क्योंकि यह कम कीमत में आसानी से मिल जाते हैं पर अकसर महिलाएं इन्हें एक बार प्रयोग करने के बाद बदलने में कंजूसी करती हैं जबकि पैड्स खून के बहाव को एक जगह पर एकत्र कर देते हैं जिस से अकसर अंग में संक्रमण, ऐलर्जी और रैशेज हो जाते हैं. इसलिए अपने खून के बहाव के अनुसार पैड्स को 4-5 घंटे के अंतराल पर बदलना बेहद जरूरी है. साथ ही यदि बहाव अधिक है तो चौड़े पैड्स का प्रयोग करें ताकि किसी भी प्रकार के लीकेज से बची रहें.

2. टैंपोस

पैड्स के मुकाबले टैंपोस काफी आरामदायक और सुरक्षित होते हैं. ये खून को भी अच्छीखासी मात्रा में सोखने की क्षमता रखते हैं पर इन्हें बनाने में भी कैमिकल का प्रयोग किया जाता है इसलिए इन्हें भी नियमित अंतराल पर बदलना जरूरी होता है अन्यथा इन का कैमिकल शरीर को हानि पहुंचा सकता है.

डाक्टरों के अनुसार, इसे 8 घंटे से अधिक नहीं पहनना चाहिए और रात में टैंपुन के स्थान पर पैड का प्रयोग करना चाहिए अन्यथा जलन और खुजली की समस्या हो सकती है.

 

3. मैंस्ट्रुअल कप

यह पीरियड्स के लिए सब से सुरक्षित माना जाता है क्योंकि यह कैमिकल रहित सिलिकौन का एक कप होता है जिसे अंग के मुख पर रखा जाता है और भर जाने पर साफ कर के फिर से प्रयोग किया जा सकता है पर किसी भी प्रकार की ऐलर्जी अथवा इन्फैक्शन होने पर इस का प्रयोग केवल डाक्टर की सलाह पर ही करना चाहिए. साफ करते समय डेटौल और सैवलौन आदि का प्रयोग भी करना चाहिए ताकि यह पूरी तरह कीटाणुमुक्त हो जाए.

रखें इन बातों का भी ध्यान

  • इन दिनों में अपनी इंटीमेट हाइजीन का विशेष ध्यान रखें ताकि किसी भी प्रकार के इन्फैक्शन से बची रहें.
  • सदैव अच्छी कंपनी के प्रोडक्ट्स का ही प्रयोग करें.
  • पीरियड्स के शुरुआती और अंतिम दिनों में जब फ्लो कम होता है तो पैंटी लाइनर पैड्स का प्रयोग किया जा सकता है। यह पैड पैंटी में आसानी से चिपक जाते हैं.
  • इन दिनों में बहुत भारी वजन को उठाने और लोअर बौडी पार्ट की ऐक्सरसाइज को करने से बचें क्योंकि इन दिनों में लोअर पार्ट में काफी बदलाव होते हैं.
  • सिंथैटिक कपड़े की जगह केवल सूती पैंटी का ही प्रयोग करें क्योंकि कई बार सिंथैटिक कपड़े से इंटीमेट पार्ट में रैशेज हो सकते हैं.

(जे पी हौस्पिटल, भोपाल की वरिष्ठ गाइनोकोलौजिस्ट, डाक्टर सुधा अस्थाना से की गई बातचीत पर आधारित)

माहवारी कोई बीमारी नहीं

पीरियड्स के बारे मे हमारा समाज आज भी खुल कर बात करने से कतराता है. इसे आज भी सभी के सामने बात न करने वाली चीज समझा जाता है. पैड छिपा कर लाओ, लड़कों से मत बताओ और घर में इस दौरान सभी से दूर रहो जैसी बातें हर लड़की को सिखाई जाती हैं.

पीरियड्स कोई छिपाने वाली बात नहीं है. यह एक नैचुरल प्रक्रिया है जो हर महिला को मासिकधर्म के रूप में होती है. लेकिन पीरियड्स का नाम सुनते ही कई लोग असहज महसूस करने लगते हैं जैसे किसी गंदे शब्द का इस्तेमाल कर लिया हो.

कई महिलाओं के मन में पीरियड्स को ले कर कई समस्याएं, कई सवाल होते हैं, जिन पर वे खुल कर बात भी नहीं कर पातीं. आज हमारा समाज आधुनिकता की ओर तेजी से बढ़ तो रहा है लेकिन समाज की मानसिकता अभी भी पुरने खूंटे से बंधी हुई है. आज भी महिलाओं को पीरियड्स होने पर मंदिर जाने नहीं दिया जाता, अचार छूने नहीं दिया जाता, उन के साथ अलग व्यवहार किया जाता है. ऐसी सोच को बदलने और समाज को जागरूक करने के लिए हर साल 28 मई को वर्ल्ड मैंस्ट्रुअल हाइजीन डे मनाया जाता है जो इस साल भी हाल ही में मनाया गया.

वर्ल्ड मैंस्ट्रुअल हाइजीन डे मनाने का मुख्य उद्देश्य है समाज में फैली मासिकधर्म संबंधी गलत अवधारणा को दूर करना और महिलाओं को पीरियड्स के समय स्वच्छता के लिए जागरूक करना. इस की शुरुआत साल 2014 को हुई.

मासिकधर्म कोई बीमारी या गंदगी नहीं

पत्रिकाओं, टीवी और इंटरनैट के जरिए हमें कई सारी जानकारियां अब मिलने लगी हैं जिस वजह से समाज की सोच में सुधार भी देखने को मिला है. पहले यदि टीवी पर सैनिटरी पैड का प्रचार आता था तो चैनल बदल दिया जाता था. लेकिन अब ऐसा कम देखने को मिलता है. लेकिन अभी भी लोग इस के बारे में खुल कर बात नहीं करते. यहां तक कि खुद महिलाएं इस पर बात करने में असहज महसूस करती हैं.

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एक ही घर में रहने के बावजूद पीरियड्स के लिए कई गुप्त नामों का इस्तेमाल किया जाता है ताकि किसी को पता न लगे. पैड को काली पौलिथीन या पेपर से कवर किया जाता है. जैसे कोई जानलेवा हथियार को छुपाया जा रहा है. लोगों को समझना जरूरी है कि मासिक धर्म कोई अपराध नहीं है बल्कि प्रकृति की ओर से दिया गया महिलाओं को एक तोहफा है. ऐसे समय में महिलाओं की खास ध्यान रखने की जरूरत है न कि उन के साथ अलग व्यवहार किया जाना चाहिए.

सैनिटरी पैड का इस्तेमाल कितना सुरक्षित

पीरियड्स के दौरान महिलाओं के शरीर में कई प्रकार के बदलाव आते हैं, जिन के बारे में उन्हें पता नहीं होता. जब पहली बार लड़कियों को पीरियड्स आते हैं तो मां का फर्ज बनता है वह इस बारे में खुल कर बात करें. लेकिन ऐसा नहीं हो पाता. पीरियड्स को शर्म की पोटली में बांध कर रख दिया जाता है. आज भी गांवकस्बों में कई महिलाएं पीरियड्स होने पर कपड़े का इस्तेमाल करती हैं. वहीं कई महिलाएं सैनिटरी पैड का इस्तेमाल तो करती हैं लेकिन इस का सही रूप से इस्तेमाल करना नहीं जानती.

सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करना बहुत आसान है लेकिन यह बीमारियों को न्योता भी देता है. दरअसल, सैनिटरी पैड में डायोक्सिन नाम के एक पदार्थ का इस्तेमाल किया जाता है. डायोक्सिन का उपयोग नैपकिन को सफेद रखने के लिए किया जाता है. हालांकि इस की मात्रा कम होती है लेकिन फिर भी यह नुकसानदायक हो सकता है. जिस से कई बीमारियों के होने का खतरा बना रहता है जैसे ओवेरियन कैंसर, हार्मोनल डिसफंक्शन. इसलिए महिलाओं को इन दिनों आर्गेनिक क्लौथ से पैड्स का इस्तेमाल करना चाहिए. ये पैड रुई और जूट से बने होते हैं. यह इस्तेमाल करने में भी आरामदायक है और उपयोग किए गए पैड्स को धो कर फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है. साथ ही ये पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचाते.

लंबे समय तक पैड का इस्तेमाल है खतरनाक

सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करने से महिलाओं में इंफैक्शन और जलन की शिकायत आमतौर पर देखी जाती है. ऐसी परेशानियां ज्यादातर पीरियड्स खत्म होने के बाद होती है. जब ज्यादा लंबे समय तक पैड्स का इस्तेमाल किया जाता है, तो इस से एयर सर्कुलेशन बहुत कम हो जाता है और वैजाइना में स्टेफिलोकोकस औरेयस बैक्टीरिया पनप जाते हैं. यही बैक्टीरिया पीरियड्स के कुछ दिनों बाद ऐलर्जी या इंफैक्शन का कारण बन जाते हैं.

पीरियड्स के समय साफसफाई है जरूरी

– पीरियड्स के समय में हर 4 घंटे के अंदर अपना पैड बदलना चाहिए.

– कौटन पैड का इस्तेमाल करें.

– अगर आप टैंपौन का यूज करती हैं तो हर

2 घंटे में इसे बदलें.

– लगातार समयसमय पर अपने प्राइवेट पार्ट की सफाई करती रहें, जिस से कि पीरियड्स से आने वाली गंध से छुटकारा मिले.

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– पीरियड्स के समय शरीर में बहुत अधिक दर्द होता है. इसलिए इन दिनों कुनकुने पानी से नहाएं. इस से दर्द में राहत मिलेगी.

– इन दिनों अपने बिस्तर की सफाई का ध्यान रखना चाहिए.

– पीरियड्स के समय टाइट पैंट या लोअर न पहनें.

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जानें पीरियड्स के दौरान क्या खाएं और क्या नहीं

पीरियड्स से पहले होने वाली तकलीफ़, मूड स्विंग्स, पेट में दर्द, क्रैम्प्स (ऐंठन) जैसी समस्याएं यानी पीएमएस की तकलीफें हार्मोन्स के कम या ज़्यादा होने के कारण होती हैं. सच कहें तो हार्मोन्स में बदलाव ही महिलाओं के मासिक धर्म का प्रमुख कारण होता है. लेकिन यदि ये हार्मोन्स असंतुलित हो जाते हैं तो ये तकलीफें हद से ज़्यादा बढ़ जाती है.आइये जानते हैं डायटीशियन डॉ स्नेहल अडसुले से कि पीरियड्स के समय , बाद में और पहले क्याक्या चीज़ें खानी चाहिए;

पीरियड्स के पहले

पीरियड्स के पहले यानी मेन्स्ट्रुअल सायकल के 20वें से 30 वें दिन तक आप के अंदर की ऊर्जा कम हो जाती है. आप थोड़ी उदासी भी महसूस कर सकती हैं. दिन में कई बार काफी ज़्यादा भूख महसूस हो सकती है और इसलिए इन दिनों आप के शरीर और मन के लिए सेहतमंद स्नैक्स ज़रुरी होते हैं.

रिफाइन्ड शक्कर, प्रोसेस्ड फूड और अल्कोहल का सेवन जितना संभव हो कम करें. बादाम, अखरोट, पिस्ता जैसे सूखे मेवे यानी हेल्दी फैट का सेवन करें. सलाद में तिल और सूरजमुखी के बीज शामिल करें. सेब, अमरुद, खजूर,पीच जैसे अधिक फायबर वाले फलों को अपने आहार में शामिल करें.

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हायड्रेटेड रहें. सोड़ा और मीठे पेय से परहेज़ करें. पर्याप्त मात्रा में पानी पियें. नींबू पानी में पुदिना और अदरक डाल कर पिएं. रात को सोने से पहले शरीर और मन को आराम मिले इसके लिए पेपरमिंट या कैमोमाईल चाय लें.

खून में आयरन सही मात्रा में रहने से आप का मूड और ऊर्जा का स्तर भी अच्छा रहेगा. नट्स, बीन्स (फलियां), मटर, लाल माँस और मसूर जैसे लोहयुक्त खाद्यपदार्थों का आहार में समावेश करें. पेट फूलने या सूजन जैसी समस्या से बचने के लिए नमक का सेवन कम करें.

पीरियड्स के दिनों में (पहले से सातवें दिन तक)

पीरियड्स के दिनों में खास कर पहले दो दिनों में आप को ऐसा लग सकता है जैसे सारी शक्ति चली गई हो. ऊर्जा का स्तर बेहद कम हो जाता है और आप को थकान महसूस हो सकती है. इसलिए इन दिनों ऐसा भोजन करें जिस से आप के शरीर में ऊर्जा का स्तर ऊँचा ऱखने में मदद मिले. अपने आहार में किशमिश, बादाम, मूँगफली, दूध का समावेश करें.

जंक और प्रोसेस्ड फूड में सोडियम और रिफाइन्ड कार्ब्ज प्रचुर मात्रा में होते हैं. इन्हें खाने से बचें. शीतल पेयों में रिफाइन्ड शक्कर भारी मात्रा में होती है जिस के कारण क्रैम्प्स (ऐंठन) आने की मात्रा और पीड़ा बढ़ सकती है. शीतलपेय या सोड़ा के बजाय नींबूपानी, ताजा फलों का रस या हर्बल टी लें.

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पीरियड्स के बाद के दिन (सातवें दिन से अठारहवें दिन तक)

इन दिनों आप काफी अच्छा महसूस करती हैं. इन्ही दिनों में ओव्यूलेशन होता है. ऐसे में व्यायाम के लिए ये दिन सर्वश्रेष्ठ होते हैं. अपने सलाद या सब्ज़ी में एक चम्मच फ्लैक्स या कद्दू के बीज डालें. इस से आप के शरीर में नैसर्गिक रुप से एस्ट्रोजन का स्तर ऊँचा रहेगा. पालक, दही, हरी सब्ज़ियां, फलियां जैसे कैल्शियमयुक्त खाद्यपदार्थ का सेवन करने के लिए यह सप्ताह सब से अच्छा है. इस चरण में आप की भूख धीरेधीरे कम होती है इसलिए समय पर भोजन करने का खासतौर पर ध्यान रखें.

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