फिर से नहीं: भाग-4

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विवान के वापस दिल्ली लौट जाने के बाद प्लाक्षा की मुलाकात अपने एक पुराने दोस्त आदित्य से हुई. आदित्य ने बताया कि उस की शादी साक्षी नाम की एक लड़की से होने जा रही है. प्लाक्षा ने जब साक्षी की तसवीर देखी तो चौंक गई. यह वही साक्षी थी, जिसे विवान ने अपनी गर्लफ्रैंड बताया था. वह तुरंत ही दिल्ली जा कर विवान के औफिस पहुंचती है तो वहां उस की मुलाकात साक्षी और विवान दोनों से हो जाती है. उधर प्लाक्षा के मातापिता उस पर शादी के लिए दबाब बना रहे थे और उन्होंने एक लड़का पसंद भी कर लिया था.

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मां का आदेश था कि मुझे नए कपड़े खरीदने हैं उस दिन पहनने के लिए. अब गलती की थी तो भुगतना तो था ही. सप्ताहांत में मैं उन के आदेश का पालन करने के लिए अकेली ही नजदीकी मौल में खरीदारी करने जा पहुंची. मुझे कुछ भी पसंद नहीं आ रहा था. वैसे भी मुझ से अकेले शौपिंग नहीं होती थी. न तो मुझे करनी आती थी और न ही मुझे अकेले घूमना पसंद था. खैर, आजकल जब सब कुछ अकेले ही कर रही थी तो यह भी सही. मैं शौपिंग में और ज्यादा ध्यान लगाने की कोशिश करने लगी. 2-3 ड्रैसेज पसंद कर के मैं ट्रायल रूम में जाने लगी तो वहां खड़ा एक लड़का आदित्य जैसा दिखाई दिया. पास जाने पर पता चला कि वही था. शायद किसी का इंतजार कर रहा था.

‘‘आदित्य तुम यहां? दिल्ली कब आए? बताया भी नहीं.’’

मेरी आवाज सुन कर वह चौंक पड़ा. उस के चेहरे पर मुसकराहट आ गई, ‘‘आज सुबह ही आया हूं. तुम यहां क्या कर रही हो?’’

‘‘परांठे बेच रही हूं…अरे शौपिंग करने आई हूं और तुम ऐसा सवाल पूछ रहे हो,’’ मैं ने हंसते हुए कहा, तो वह भी हंसने लगा.

‘‘अच्छा हुआ तुम मिल गईं. साक्षी मेरे साथ ही है. उस से भी मिल लेना.’’

साक्षी इस के साथ? मैं ने आदित्य को अब तक कुछ नहीं बताया था. कहीं न कहीं आज भी मेरी वफादारी किसी और से ज्यादा विवान की तरफ ही थी. वैसे भी साक्षी को अपनी जिंदगी अपने तरीके से चलाने की पूरी आजादी थी. एक बार मसीहा बन कर भुगत चुकी थी मैं. फिर कोई बखेड़ा खड़ा करना नहीं चाहती थी. आदित्य की ओर हलका सा मुसकरा कर मैं ट्रायल रूम की ओर बढ़ गई.

सभी ट्रायल रूम व्यस्त थे. मैं एक रूम के बाहर खड़ी हो कर इंतजार करने लगी. तभी पास वाले रूम से साक्षी बाहर निकली. मुझे वहां खड़ी देख कर वह सकपका गई.

‘‘हाय प्लाक्षा, कैसी हो?’’ वह बोली.

‘‘मैं ठीक हूं. तुम कैसी हो? और विवान कैसा है आजकल?’’ मैं ने झूठी मुसकान के साथ पूछा.

‘‘विवान ठीक है. तुम्हारी बात नहीं हुई उस से?’’ उस ने झिझकते हुए पूछा.

‘‘नहीं उस दिन के बाद हमारी बात नहीं हुई. वैसे बाहर मैं आदित्य से मिली. वह भी मेरा दोस्त है. उस ने मुझे बताया कि तुम दोनों की शादी होने वाली है,’’ मैं अपनी आवाज में छिपे क्रोध को छिपाने की कोशिश कर रही थी.

मेरी बात सुन कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया,  ‘‘ओह हां, ऐक्चुअली प्लाक्षा हम दोनों आई मीन मेरा और विवान का ब्रेकअप हो गया. मैं अपने मम्मीपापा के खिलाफ नहीं जा सकती, इसलिए हम अलग हो गए,’’ उस ने झूठी मायूसी के साथ कहा.

क्या तुम्हें पता है कि उस ने तुम्हारे कारण अपने मम्मीपापा से कितना बड़ा झूठ बोला है? और तुम कह रही हो कि तुम अपने मम्मीपापा के खिलाफ नहीं जा सकतीं. तुम उस के साथ ऐसा कैसे कर सकती हो?’’ मेरे स्वर में क्रोध था, आंखें गुस्से से जल रही थीं.

‘‘मुझे सब पता है कि उस ने क्या किया है, क्या नहीं. मैं उस की गर्लफ्रैंड हूं…आई मीन थी. और तुम क्यों इतनी परेशान हो रही हो उस के लिए? क्या अब तुम फिर से उस पर चांस मारने का सोच रही हो?’’

‘‘शटअप. बकवास बंद करो अपनी,’’ मैं ने गुस्से में कपड़े वहीं पटक दिए और वहां से जाने लगी.

‘‘बकवास तो तुम कर रही हो. दूसरों से भी और अपनेआप से भी. आंखें खोल कर देखो सचाई क्या है,’’ वह पीछे से बोलती जा रही थी.

शुक्र था कि आदित्य बाहर नहीं खड़ा था. मैं तेज कदमों से मौल के बाहर आ गई. अब मुझे विवान पर तरस आ रहा था. वह शुरू से ही बहुत सीधा था. कोई बड़ी बात नहीं थी कि साक्षी ने उस के साथ ऐसा किया. पता नहीं किस हाल में होगा वह और यहां साक्षी मजे से शौपिंग कर रही है. इतने संवेदनहीन कैसे हो सकते हैं लोग? मुझे विवान से बात करनी ही होगी अभी. फोन तो पर्स में था. पर्स कहां गया?

मैं भाग कर वापस मौल में गई. पर्स शायद ट्रायल रूम में ही भूल आई थी. साक्षी के चक्कर में दिमाग ने काम करना ही बंद कर दिया था. पर्स वहीं पड़ा था. सांस में सांस आई. पास के ट्रायल रूम से किसी की आवाज आ रही थी. कोई लड़की गुस्से में फोन पर बात कर रही थी. मैं नजरअंदाज कर के आगे बढ़ने लगी. तभी मेरे कानों ने वह नाम सुना जिस के बाद मेरे कदम वहीं ठिठक गए.

‘‘विवान तुम समझ नहीं रहे हो. मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था,’’ यह साक्षी की आवाज थी. ‘‘मुझे उस से बदतमीजी से बात करनी पड़ी वरना उसे शक हो जाता. तुम भी न कभी ढंग से झूठ नहीं बोल सकते. झूठ बोलते वक्त हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अपने भागीदारों से कुछ न छिपाओ पर तुम्हें तो सब कुछ खुद करना होता है.’’

झूठ? विवान ने किस से झूठ बोला था, मुझ से? और साक्षी भी उस में भागीदार थी? मैं सोच रही थी.

‘‘अच्छा अब भड़को मत. यह सोचो कि आगे क्या करना है. मुझे उस वक्त जो समझ आया मैं ने बोल दिया. अब तुम ही सिचुएशन को संभालो.’’

आवाज आनी बंद हो गई. मैं बाहर चल पड़ी. बाहर आदित्य मिल गया.

‘‘अरे प्लाक्षा, तू इतनी देर से अंदर थी? साक्षी भी पता नहीं इतनी देर से क्या कर रही है. मैं पूरा मौल घूम आया और वह अभी बाहर नहीं आई. तुम्हें मिली क्या?’’

मैं उस वक्त उस से बात करने के बिलकुल मूड में नहीं थी. ‘‘नहीं, मैं अभी चलती हूं जरूरी काम है,’’ इतना कह कर मैं बाहर आ गई.

 

कुछ देर पहले विवान के लिए जो तरस था वह अब गुस्से में बदल चुका था. उस ने मुझ से झूठ बोला था? लेकिन वह झूठ कैसे बोल सकता है? उसे तो झूठ से सख्त नफरत थी. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है. मेरा दिमाग चकराने लगा था. मैं फुटपाथ पर ही एक बैंच पर बैठ गई. कुछ भी सोचनेसमझने की क्षमता अब मुझ में नहीं थी. बेहतर यही होगा कि मैं विवान के मुंह से ही सब कुछ सुनूं.

‘‘हैलो विवान, तुम मुझ से अभी मिल सकते हो?’’ इतना ही कह पाई मैं.

उस की आवाज में हैरानी के साथसाथ चिंता भी झलक रही थी, ‘‘प्लाक्षा, तुम कहां हो? इतने दिनों से तुम से मिलने की, बात करने की कोशिश कर रहा हूं, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा.’’

‘‘अभी मिल सकते हो?’’ मैं ने फिर से पूछा.

‘‘हां बिलकुल, बताओ कहां आना है?’’

‘‘घर आ जाओ,’’ कह कर मैं ने फोन रख दिया. इतने दिनों से मेरे जीवन में चल रही उथलपुथल शायद आज शांत हो जाएगी. थके कदमों से मैं घर की ओर चल पड़ी. अभी सचाई का सामाना करना बाकी था.

मेरे पहुंचने से पहले ही विवान मेरे घर पहुंच चुका था. मैं चुपचाप ताला खोलने लगी. उसे अभी यह नहीं पता था कि मैं ने उस की और साक्षी की फोन पर की गई बात सुन ली थी. मैं देखना चाहती थी कि अब भी मुझे बेवकूफ ही बनाता है या सच बोलता है.

‘‘साक्षी ने मुझे बताया कि आज तुम मिली थीं उस से. उस की तरफ से मैं तुम से माफी मांगता हूं. वह ब्रेकअप और शादी के कारण वैसे ही काफी परेशान है, इसीलिए इतना कुछ बोल गई,’’ मेरे कुछ पूछे बिना ही वह बोलने लगा.

‘‘इट्स ओके,’’ मैं ने इतना ही कहा.

‘‘तुम नाराज हो क्या मुझ से? मैं नहीं बता पाया तुम्हें उस वक्त. तुम्हारी अपनी प्रौब्लम थी और मैं भी साक्षी के कारण परेशान चल रहा था. वह सब मैं उस दिन पता नहीं कैसे कह गया,’’ वह बोलता जा रहा था.

‘‘इट्स ओके विवान. मैं नाराज नहीं हूं,’’ मैं शांत थी.

‘‘फिर तुम ने मुझे यहां क्यों बुलाया?’’ वह थोड़ा हैरान था, ‘‘मम्मीपापा से फिर मिलना है क्या?’’

मैं ने इनकार में सिर हिला दिया. फिर बोली, ‘‘मुझे सच जानना है विवान.’’

‘‘सच? किस बात का सच?’’

बातें घुमाने का अब कोई मतलब नहीं था. मैं ने सीधेसीधे पूछने का निश्चय किया और बोली, ‘‘आज मुझ से लड़ाई के बाद जब साक्षी तुम से फोन पर बात कर रही थी तो मैं ने कुछ बातें सुन ली थीं. उन्हें सुन कर मुझे लगा कि तुम मुझ से कुछ झूठ बोल रहे हो.’’

विवान के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. उसे उम्मीद नहीं थी कि इस तरीके से उस की पोल खुल जाएगी.

‘‘नहीं वह किसी और के बारे में बात कर रही थी. तुम ने शायद गलत समझ लिया,’’ वह बोला. लेकिन पहली बार वह मुझ से नजरें चुरा रहा था.

‘‘और झूठ नहीं विवान, मुझे सिर्फ सच सुनना है,’’ मैं चिल्लाई नहीं थी. अपने शांत स्वर पर मैं खुद हैरान थी.

विवान शब्द ढूंढ़ने की कोशिश कर रहा था. झूठ बोलना आसान होता है, लेकिन उसे स्वीकार करना बहुत मुश्किल. उस ने अपनी आंखों को उंगलियों से ढक कर खुद को शांत करने की कोशिश की, फिर हिम्मत कर के बोलना शुरू किया, ‘‘प्लाक्षा, पिछले कुछ महीनों में मैं ने तुम से पता नहीं कितने झूठ बोले हैं. मैं कोई सफाई नहीं देना चाहता लेकिन मेरा इरादा तुम्हारा दिल दुखाने का नहीं था. मैं बस तुम्हें पाने के लिए यह सब झूठ बोलता गया.’’

‘‘मतलब?’’ अब सब कुछ मेरे बरदाश्त से बाहर होता जा रहा था, ‘‘हमारा ब्रेकअप हो चुका है न 2 साल पहले? फिर ये पानाखोना क्या है?’’

विवान के आंसू आने लगे थे, ‘‘प्लाक्षा, मैं तुम्हें सब कुछ सचसच बताता हूं. बस तुम बीच में रिऐक्ट मत करना. पहले पूरी बात सुनना. उस के बाद ही फैसला करना कि मैं सही हूं या गलत.’’ मैं ने हामी में सिर हिला दिया. 2 मिनट तक खुद को संयमित करने के बाद उस ने फिर से बोलना शुरू किया, ‘‘तुम तो जानती हो मैं अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में कितना कमजोर हूं. और शायद सारे लड़के ऐसे ही होते हैं. ऐसा नहीं है प्लाक्षा कि मैं ने तुम से कभी प्यार नहीं किया, लेकिन मुझे कभी उसे जताना नहीं आया. जब हमारा ब्रेकअप हुआ तो मैं तुम्हें जाने से नहीं रोक पाया. कहीं न कहीं मैं जानता था कि मुझ में ही कोई कमी थी. तुम पर हक तो पूरा जताता था, लेकिन बदले में प्यार देना भूल जाता था.

‘‘ब्रेकअप के बाद कुछ वक्त तक तो मैं सामान्य रहा. तब तो कई बार हमारी बात भी हो जाती थी तो लगता ही नहीं था कि हम दूर हुए हैं. उस के बाद जब तुम ने कोई भी संपर्क रखने से मना कर दिया तब भी मैं ने बिना सोचेसमझे हामी भर दी. उस वक्त तक मुझे एहसास नहीं था कि तुम मेरे लिए कितनी इंपौर्टेंट हो.

‘‘इस दौरान मैं कई तरह के लोगों से मिला, कई तरह के अनुभव हुए. धीरेधीरे एक बात समझ आई कि तुम ने जितनी अच्छी तरह मुझे संभाल रखा था, उतना कोई कभी नहीं कर सकता. तब मुझे तुम्हारी कमी का एहसास हुआ. कई बार तो अकेलेपन में मन ही मन रो पड़ता तुम्हें याद कर के. कई बार तुम से बात करने की भी कोशिश की लेकिन तब तक शायद तुम मेरे प्रति बिलकुल निष्ठुर हो चुकी थीं. तुम ने भी ढंग से बात करना छोड़ दिया.

‘‘तुम्हारी जिंदगी में जो भी चल रहा था, उस एकएक बात की खबर थी मुझे. मुझ से अलग हो कर काफी आत्मनिर्भर हो गई थीं तुम. तुम्हें ऐसे देख कर खुशी भी होती थी और दुख भी कि मैं ने इतने सालों तक तुम्हें बांध कर रखा. मैं ने तुम से कभी कहा नहीं लेकिन मुझे हमेशा से तुम पर गर्व था. अपने पुरुष अहं के कारण ही शायद तुम्हें कभीकभार रोक बैठता था पर जब मैं चला गया तो तुम ने अपने हिसाब से जीना शुरू कर दिया. मुझे बस एक ही बात का डर रहता था कि कोई तुम्हारे भोलेपन का फायदा न उठा ले. तुम चाहे कितनी भी मुंहफट, मजबूत और समझदार हो, लेकिन तुम्हारी सब से बड़ी कमजोरी यह है कि तुम किसी को भी बहुत जल्दी अपना मान लेती हो. पहले तो मैं तुम्हें अपने सुरक्षा घेरे में रखता था कि कोई तुम्हें किसी तरह की कोई चोट न पहुंचाए लेकिन अब मैं नहीं था. तुम ने कई बार धोखे खाए और फिर से उठ खड़ी हुईं, वह भी दोगुने आत्मविश्वास के साथ.

‘‘उस वक्त मुझे लगने लगा कि मुझ में भी कई परिवर्तन आ रहे हैं. तुम्हारे जीवन में जो कुछ भी चल रहा था उसे देख कर जलन तो होती थी, लेकिन तुम जिस तरह से अपनेआप को संभाल रही थीं उसे सराहने से खुद को रोक नहीं पाता था. मेरे मन में तुम्हारे लिए इज्जत बढ़ती जा रही थी.’’

‘‘इन सब बातों का तुम्हारे झूठ से क्या संबंध? मुझे इन फालतू फिल्मी बातों में कोई दिलचस्पी नहीं है,’’ मैं ने सपाट शब्दों में कहा. वह आखिर साबित क्या करना चाहता था कि वह अब भी मुझ से…? नहीं, अब मैं बेवकूफ नहीं थी. उस के पास पूरे 5 साल थे अपने प्यार को साबित करने के लिए. अब इन सब बातों का क्या मतलब?

‘‘प्लीज प्लाक्षा, मेरी पूरी बात तो सुन लो. फिर तुम्हें जो कहना हो जी भर के कह लेना,’’ उस ने विनती की तो मैं गुस्सा पी कर चुप हो गई.

‘‘मेरे घर पर मेरी शादी की बातें होने लगी थीं. मैं ने उन से कह दिया था कि मुझे शादी नहीं करनी. लेकिन घर वालों को तुम तो जानती ही हो. वे सुनते ही कहां हैं. कुछ लड़कियों से मुझे मिलवा भी दिया. मगर मेरी नजर हर लड़की में तुम्हें ही ढूंढ़ती. सब में कुछ न कुछ तुम सा मिला, लेकिन मुझे तो तुम चाहिए थीं. और कोई पसंद ही कहां आने वाली थी.

‘‘फिर एक दिन मैं ने मम्मीपापा से कह दिया कि मैं शादी करूंगा तो सिर्फ तुम से वरना जिंदगी भर कुंवारा रहूंगा. उन्हें इस में कोई परेशानी नहीं थी. परेशानी तो तुम्हें मनाने की थी. तुम तो मुझ से इतनी दूर चली गई थीं कि तुम्हें वापस पाना कोई आसान काम नहीं था. तभी मुझे पता चला कि तुम दिल्ली आ गई हो.

‘‘मैं बिना कुछ सोचेसमझे तुम से मिलने की योजना बनाने लगा. उस दिन जब मैं तुम्हारे औफिस आया था, वह इत्तफाक नहीं था. मैं जानता था कि तुम वहां काम करती हो. पहले तो मुझे लगा कि अपने चार्म से तुम्हें मना लूंगा, लेकिन उस दिन तुम्हारा रुख देख कर मुझे पता चल गया कि यह काम इतना आसान नहीं है. 2-3 दिन तक यही सोचता रहा कि क्या और कैसे करूं?

‘‘तब साक्षी ने मुझे यह रास्ता बताया. वह मेरी दोस्त है प्लाक्षा. हम दोनों ने मिल कर यह कहानी रची. मुझे उम्मीद नहीं थी कि तुम मेरी बात मान जाओगी पर तुम ने हां कह दिया. मैं हैरान तो था लेकिन खुश भी. यह सोच कर कि शायद तुम्हारे मन में अब भी कहीं न कहीं मेरे लिए थोड़ी जगह है.

‘‘मम्मीपापा को भी अपनी इस योजना में शामिल कर लिया. तुम्हें उन से मिलवाना कोई बड़ी बात नहीं थी. मुश्किल यह थी कि जब तुम्हारे साथ अकेला होता तो खुद को संभाल नहीं पाता था. उस दिन तुम्हारे जन्मदिन पर शायद मैं अपना भांडा फोड देता, लेकिन अच्छा हुआ जो तुम नाराज हुईं और मैं चुपचाप वहां से चला आया.

‘‘जब तुम ने मुझ से अपने मम्मीपापा से मिलने को कहा तो मुझे बहुत हंसी आई. जो काम मैं तुम से झूठ बोल कर करवा रहा था तुम वही मुझ से सच में करवाना चाहती थी. मेरे लिए तो ये सोने में सुहागा था. तुम्हारे साथ ज्यादा वक्त बिताने का मौका जो मिल रहा था, वह भी बिना कोई योजना बनाए.

‘‘और हां, तुम्हारे दोस्त आदित्य को कैसे भूल सकता हूं. उस के कारण तो सारा खेल बिगड़ गया मेरा. मैं कहता था न मुझे वह शुरू से पसंद नहीं था.’’

मैं व्यंग्य से मुसकरा दी. वह बोलता जा रहा था, ‘‘इत्तफाक देखो, औफिस आते ही जिस से तुम सब से पहले मिलीं, वह साक्षी थी. तुम दोनों को साथ देख कर मैं समझ गया कि अब मेरा खेल और नहीं बचा. उस दिन भी मैं तुम से झूठ ही बोला. साक्षी के सामने आने से सब कुछ बिगड़ गया था. अब मेरे पास तुम से मिलने का कोई बहाना नहीं था. प्लान तो यह था कि अपने ब्रेकअप की बात कह कर तुम्हारी सहानुभूति पाने के बहाने तुम्हारे करीब आ जाऊंगा. पर अब तो तुम मुझ से बात करने को ही राजी नहीं थीं.

‘‘आज जो कुछ भी हुआ वह योजनानुसार नहीं था. हालांकि करना मैं भी यही चाहता था जो साक्षी ने किया लेकिन मैं तुम से झूठ बोलबोल कर थक चुका था. आज तुम से मिलने में बहुत डर लग रहा था. जानता था कि आज तुम्हें सच बताना ही पड़ेगा. बस यही सच है. अब तुम मेरे साथ जो सुलूक करना चाहती हो कर सकती हो.’’

-क्रमश:

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