पिघलती बर्फ: क्यों स्त्रियां स्वयं को हीन बना लेती हैं?

“आज ब्रहस्पतिवार को तूने फिर सिर धो लिया. कितनी बार कहा है कि ब्रहस्पतिवार को सिर मत धोया कर, लक्ष्मीजी नाराज हो जाती हैं,” मां ने प्राची को टोकते हुए कहा.

“मां सिर चिपचिपा रहा था,” मां की बात सुन कर धीमे स्वर में अपनी बात कह प्राची मन ही मन बुदबुदाई, ‘सोमवार, बुधवार और गुरुवार को सिर न धोओ. शनिवार, मंगलवार, गुरुवार को बाल न कटवाओ क्योंकि गुरुवार को बाल कटवाने से धन की कमी तथा मंगल व शनिवार को कटवाने से आयु कम होती है. वहीं, शनि, मंगल और गुरुवार को नाखून काटने की भी मां की सख्त मनाही थी. कोई वार बेटे पर तो कोई पति पर और नहीं, तो लक्ष्मीजी का कोप… उफ, इतने बंधनों में बंधी जिंदगी भी कोई जिंदगी है.

“कल धो लेती, किस ने मना किया था पर तुझे तो कुछ सुनना ही नहीं है. और हां, आज शाम से तुझे ही खाना बनाना है.” प्राची मां की यह बात सुन कर मन के चक्रव्यूह से बाहर आई.

ओह, यह अलग मुसीबत…सोमवार से तो मेरे एक्जाम हैं. सब मैं ही करूं, भाई तो हाथ लगाएगा नहीं, यह सोच कर प्राची ने सिर पकड़ लिया.

‘अब क्या हो गया?’ मां ने उसे ऐसा करते देख कर कहा.

‘मां सोमवार से तो मेरे एक्जाम हैं,’ प्राची ने कहा.

‘तो क्या हुआ, कौन सा तुझे डिप्टी कलैक्टर बनना है?’

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‘मां, क्या जब डिप्टी कलैक्टर बनना हो, तभी पढ़ाई करनी चाहिए, वैसे नहीं. वैसे भी, मुझे डिप्टी कलैक्टर नहीं बनना, मुझे डाक्टर बनना है और मैं बन कर दिखाऊंगी,” कहते हुए प्राची ने बैग उठाया और कालेज के लिए चल दी.

‘नखरे तो देखो इस लड़की के, सास के घर जा कर नाक कटाएगी. अरे, अभी नहीं सीखेगी तो कब सीखेगी. लड़की कितनी भी पढ़लिख जाए पर रीतिरिवाजों को तो मानना ही पड़ता है.” प्राची के उत्तर को सुन कर सरिता बड़बड़ाईं.

प्राची 10वीं कक्षा की छात्रा है. वह विज्ञान की विद्यार्थी है. सो, उसे इन सब बातों पर विश्वास नहीं है. मां को जो करना है करें पर हमें विवश न करें. पापा भी उन की इन सब बातों से परेशान रहते हैं लेकिन घर की सुखशांति के लिए उन्होंने यह सब सहना सीख लिया है. ऐसा नहीं था कि मां पढ़ीलिखी नहीं हैं, वे सोशल साइंस में एमए तथा बीएड थीं लेकिन शायद उन की मां तथा दादी द्वारा बोए बीज जबतब अंकुरित हो कर उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर करते थे. प्राची ने मन ही मन निर्णय कर लिया था कि चाहे जो हो जाए वह अपने मन में इन बीजों को पनपने नहीं देगी.

प्राची के एक्जाम खत्म हुए ही थे कि एक दिन पापा नई कार मारूति स्विफ्ट ले कर घर आए. अभी वह और भाई विजय गाड़ी देख ही रहे थे कि मां नीबू और हरीमिर्च हाथ में ले कर आईं. उन्होंने नीबू और हरीमिर्च हाथ में ले कर गाड़ी के चारों ओर चक्कर लगाया तथा गाड़ी पर रोली से स्वास्तिक का निशान बना कर उस पर फूल मालाएं तथा कलावा चढ़ा कर मिठाई का एक पीस रखा. उस के बाद मां ने नारियल हाथ में उठाया…

“अरे, नारियल गाड़ी पर मत फोड़ना,” अचानक पापा चिल्लाए.

“तुम मुझे बेवकूफ समझते हो. गाड़ी पर नारियल फोडूंगी तो उस जगह गाड़ी दब नहीं जाएगी,” कहते हुए मां ने गाड़ी के सामने पहले से धो कर रखी ईंट पर नारियल फोड़ कर ‘ जय दुर्गे मां’ का उद्घोष करते हुए ‘यह गाड़ी हम सब के लिए शुभ हो’ कह कर गाड़ी के सात चक्कर न केवल खुद लगाए बल्कि हम सब को भी लगाने के लिए भी कहा.

“तुम लगा ही रही हो, फिर हमारे लगाने की क्या आवश्यकता है,” पापा ने थोड़ा विरोध करते हुए कहा.

“आप तो पूरे नास्तिक हो गए हो. आप ने देखा नहीं, टीवी पर लड़ाकू विमान राफेल लाने गए हमारे रक्षामंत्री ने फ्रांस में भी तो यही टोटके किए थे.”

मां की बात सुन कर पापा चुप हो गए. सच, जब नामी व्यक्ति ऐसा करेंगे तो इन बातों पर विश्वास रखने वालों को कैसे समझाया जा सकता है.

समय बीतता गया. मां की सारी बंदिशों के बावजूद प्राची को मैडिकल में दाखिला मिल ही गया. लड़की होने के कारण मां उसे दूर नहीं भेजना चाहती थीं, किंतु इस बार पापा चुप न रह सके. उन्होंने मां से कहा, “मैं ने तुम्हारी किसी बात में दखल नहीं दिया. किंतु आज प्राची के कैरियर का प्रश्न है, इस बार मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनूंगा. मेरी बेटी मैडिकल की प्रतियोगी परीक्षा में सफल हुई है, उस ने सिर्फ हमारा ही नहीं, हमारे पूरे खानदान का नाम रोशन किया है. उसे उस की मंजिल तक पहुंचाने में सहायता करना हमारा दायित्व है.”

मां की अनिच्छा के बावजूद पापा प्राची को इलाहाबाद मैडिकल कालेज में पढ़ने के लिए ले कर गए. पापा जब उसे होस्टल में छोड़ कर वापस आने लगे तब वह खुद को रोक न पाई, फूटफूट कर रोने लगी थी.

“बेटा, रो मत. तुझे अपना सपना पूरा करना है न, बस, अपना ख़याल रखना. तुझे तो पता है तेरी मां तुझे ले कर कितनी आशंकित हैं,” पापा ने उसे समझाते हुए उस के सिर पर हाथ फेरा तथा बिना उस की ओर देखे चले गए. शायद, वे अपनी आंखों में आए आंसुओं को उस से छिपाना चाहते थे.

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पापा के जाने के बाद प्राची निशब्द बैठी थी. बारबार उस के मन में आ रहा था कि वह दुखी क्यों है? आखिर उस की ही इच्छा तो उस के पापा ने उस की मां के विरुद्ध जा कर पूरी की है. अब उसे पापा के विश्वास पर खरा उतरना होगा. प्राची ने स्वयं से ही प्रश्न किया तथा स्वयं ही उत्तर भी दिया.

“मैं, अंजली. और तुम?’ अंजली ने कमरे में प्रवेश करते ही कहा.

“मैं, प्राची.”

“बहुत प्यारा नाम है. उदास क्यों हो? क्या घर की याद आ रही है?”

प्राची ने निशब्द उस की ओर देखा.

“मैं तुम्हारा दर्द समझ सकती हूं. जब भी कोई पहली बार घर छोड़ता है तब उस की मनोदशा तुम्हारी तरह ही होती है. पर धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. सारी बातों को दिल से निकाल कर बस यह सोचो, हम अपना कैरियर बनाने के लिए यहां आए हैं.”

“तुम सच कह रही हो,” प्राची ने चेहरे पर मुसकान लाते हुए कहा.

“अच्छा, अब मैं चलती हूं. थोड़ा फ्रेश हो लूं. अपने कमरे में जा रही थी कि तुम्हारा कमरा खुला देख कर तुम्हारी ओर नजर गई, सोचा मिल तो लूं अपनी नई आई सखी से. मेरा कमरा बगल वाला है. रात्रि 8 बजे खाने का समय है, तैयार रहना. अपना यह बिखरा सामान आज ही समेट लेना, कल से कालेज जाना है,” अंजली ने कहा.

अंजली के जाते ही प्राची अपना सामान अलमारी में लगाने लगी. तभी मोबाइल की घंटी बज उठी. फोन मां का था. “बेटा, तू ठीक है न? सच, अकेले अच्छा नहीं लग रहा है. बहुत याद आ रही है तेरी.”

“मां, मुझे भी…’ कह कर वह रोने लगी.

“तू लौट आ,” मां ने रोते हुए कहा.

“प्राची, क्या हुआ? अगर तू ऐसे कमजोर पड़ेगी तो पढ़ेगी कैसे? नहीं बेटा, रोते नहीं हैं. तेरी मां तो ऐसे ही कह रही है.” पापा ने मां के हाथ से फोन ले कर उसे ढाढस बंधाते हुए कहा.

“अरे, तुम अभी बात ही कर रही हो, खाना खाने नहीं चलना.”

“बस, अभी…पापा, मैं खाना खाने जा रही हूं, आ कर बात करती हूं.”

मेस में उन की तरह कई लड़कियां थीं. अंजली ने सब को नमस्ते की. उस ने भी अंजली का अनुसरण किया. सभी ने उन का बेहद अपनेपन से स्वागत करते हुए एकदूसरे का परिचय प्राप्त किया. सब से परिचय करने के बाद अंजली ने एक टेबल की कुरसी खिसकाते हुए उसे बैठने का इशारा किया और स्वयं भी बैठ गई. अभी वे बैठी ही थीं कि उन के सामने वाली कुरसी पर 2 लड़कियां आ कर बैठ गईं. अंजली और प्राची ने उन का खड़े हो कर अभिवादन किया. उन दोनों ने उन्हें बैठने का आदेश देते हुए उन का परिचय प्राप्त करते हुए तथा अपना परिचय देते हुए साथसाथ खाना खाया. रेखा और बबीता सीनियर थीं. वे बहुत आत्मीयता से बातें कर रही थीं. खाना भी ठीक लगा. खाना खा कर जब वह अपने कमरे में जाने लगी तो रेखा ने उस के पास आ कर कहा, “प्राची और अंजली, तुम दोनों नईनई आई हो, इसलिए कह रही हूं, हम सब यहां एक परिवार की तरह ही रह रहे हैं, तुम कभी स्वयं को अकेला मत समझना. हंसीमजाक में अगर कोई तुम्हें कुछ कहे तो सहजता से लेना. दरअसल, कुछ सीनियर्स, जूनियर की खिंचाई कर ही लेते हैं.”

“रेखा दी और प्राची, ये खाओ बेसन के लड्डू. मां ने साथ में रख दिए थे,” अंजलि ने एक प्लेट उन के आगे बढ़ाते हुए कहा.

“बहुत अच्छे बने हैं,” एकएक लड्डू उठा कर खाते हुए प्राची और रेखा ने कहा.

रेखा दीदी और अंजली का व्यवहार देख कर एकाएक प्राची को लगा कि जब ये लोग रह सकती हैं तो वह क्यों नहीं. मन में चलता द्वंद्व ठहर गया था. अंजली ने बताया, सुबह 8 बजे नाश्ते का समय है.

अपने कमरे में आ कर प्राची अब काफी व्यवस्थित हो गई थी. तभी मां का फोन आ गया…”मैन, चिंता मत करो, मैं ठीक हूं. यहां सब अच्छे हैं,” प्राची ने सारी घटनाएं उन्हें बताते हुए कहा.

“ठीक है बेटा, पर ध्यान से रहना. आज के जमाने में किसी पर भरोसा करना उचित नहीं है. कल तेरा कालेज का पहला दिन है. हनुमान जी की फोटो किसी उचित स्थान पर रख कर उन के सामने दिया जला कर, उन से आशीर्वाद ले कर जाना.”

“जी मां.”

ढेरों ताकीदें दे कर मां ने फोन रख दिया था. समय बीतता गया. वह कदमदरकदम आगे बढ़ती गई. पढ़ते समय ही उस की दोस्ती अपने साथ पढ़ने वाले जयदीप से हो गई. एमबीबीएस खत्म होने तक वह दोस्ती प्यार में बदल गई. लेकिन अभी उन की मंजिल विवाह नहीं थी. प्राची को गाइनोलौजिस्ट बनना था जबकि जयदीप को जरनल सर्जरी में एमएस करना था.

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उस के एमबीबीएस करते ही मां उस पर विवाह के लिए दबाव बनाने लगी किंतु उस ने अपनी इच्छा बताते हुए विवाह के लिए मना कर दिया. रैजीडैंसी करते हुए उन्होंने पीजी की तैयारी प्रारंभ कर दी. कहते हैं, जब लक्ष्य सामने हो, परिश्रम भरपूर हो तो मंजिल न मिले, ऐसा हो नहीं सकता. पीजी की डिग्री मिलते ही उन्हें दिल्ली के प्रसिद्ध अपोलो अस्पताल में जौब मिल गया.

उस के जौब मिलते ही मां ने विवाह की बात छेड़ी तो प्राची ने जयदीप से विवाह की इच्छा जाहिर की.

पहले तो मां बिगड़ीं, बाद में मान गईं लेकिन फिर भी उन के मन में संदेह था कि वह बंगाली परिवार में एडजस्ट कर पाएगी कि नहीं. उन्होंने उन दोनों को मिलने के लिए बुलाया. जयदीप आखिर उस के मांपापा को पसंद आ ही गया.

प्राची मंगली थी, सो, मां ने पंडितजी को बुलवा कर उन की कुंडली मिलवाई तो पता चला कि जयदीप मंगली नहीं है. पंडितजी की बात सुन कर मां चिंताग्रस्त हो गई थीं.

“पंडितजी, प्राची के मंगल को शांत करने का कोई उपाय है?”

“प्राची का उच्च मंगल लड़के का अनिष्ट कर सकता है. विवाह से पूर्व प्राची का पीपल के पेड़ से विवाह करा दें, तो मंगलीदोष दूर हो जाएगा या फिर वह 29 वर्ष की उम्र के बाद विवाह करे,” पंडितजी ने मां की चिंता का निवारण करते हुए कहा.

मां ने प्राची को पंडितजी की बात बताई तो वह भड़क गई तथा उस ने पीपल के वृक्ष से विवाह के लिए मना कर दिया.

“बेटी, शायद तुझे पता न हो, विश्वसुंदरी तथा मशहूर हीरोइन ऐश्वर्या राय बच्चन ने भी अपने मांगलिक दोष को दूर करने के लिए पीपल के वृक्ष से विवाह किया था,” मां ने प्राची को समझाने की कोशिश करते हुए कहा.

“मां, क्या ऐश्वर्या ने ठीक किया था? माना उस ने ठीक किया था, तो यह कोई आवश्यक नहीं कि मैं भी वही करूं जो ऐश्वर्या ने किया. मेरी अपनी सोच है, समझ है, स्वयं पर दृढ़विश्वास है. दुर्घटनाएं या जीवन में उतारचढ़ाव तो हर इंसान के जीवन में आते हैं. ऐसी परिस्थितियों से स्वयं को उबारना, जूझना तथा जीवन में संतुलन बना कर चलना ही इंसान का मुख्य ध्येय होना चाहिए, न कि टोनेटोटकों में इंसान अपनी आधी जिंदगी या ऊर्जा बरबाद कर स्वयं भी असंतुष्ट रहें तथा दूसरों को भी असंतुष्ट रखें,” प्राची ने शांत स्वर में कहा.

“बेटा, हमारे समाज में कुछ मान्यताएं ऐसी हैं जिन्हें मानने से किसी का कुछ नुकसान नहीं होता, लेकिन किसी के मन को शांति मिल जाए, तो उसे मानने में क्या बुराई है. मैं ने तेरी जिद के कारण, अपने मन को मार कर तेरी खुशी के लिए तेरे विजातीय विवाह को स्वीकार कर लिया जबकि हमारे खानदान में आज तक ऐसा नहीं हुआ. ऐसे में तू क्या अपनी मां की छोटी सी इच्छा पूरी नहीं कर सकती. मैं तेरे भले के लिए कह रही हूं. तेरा भारी मंगल तेरे जयदीप की जान भी ले सकता है,” मां ने अपना आखिरी हथियार आजमाने की कोशिश करते हुए कहा.

“मां, मैं आप से बहुत प्यार करती हूं. आप को दिल से धन्यवाद देती हूं कि आप ने मेरी खुशी के लिए हमारे विवाह की स्वीकृति दी, लेकिन जिन मान्यताओं पर मुझे विश्वास नहीं है, उन्हें मैं कैसे मान लूं. पीपल के वृक्ष से विवाह कर के क्या ताउम्र मैं अपने व्यक्तित्व के अपमान की अग्नि में नहीं जलती रहूंगी? क्या जबजब मुझे अपना यह कृत्य याद आएगा तबतब मुझे ग्लानि या हीनभावना के विषैले डंक नहीं डसेंगे? अगर जयदीप मांगलिक होता और मैं मांगलिक नहीं होती तब क्या जयदीप को भी हमारा समाज पीपल के वृक्ष से विवाह करने के लिए कहता? क्या यह स्त्री के स्त्रीत्व या उस की गरिमा का अपमान नहीं है? स्त्री के साथ कोई अनहोनी हो जाए तो कोई बात नहीं लेकिन पुरुष के साथ कोई हादसा न हो, इस के लिए ऐसे ढकोसले… हमारा समाज जीवन में आई हर विपत्ति के लिए सदा स्त्री को ही क्यों कठघरे में खड़ा करता है? स्त्री हो कर भी क्या आप ने कभी सोचा है?

“नहीं मां, नहीं. शायद, हम स्त्रियों का तो कोई आत्मसम्मान है ही नहीं. होगा भी कैसे, जब हम स्त्रियों को ही स्वयं पर विश्वास नहीं है. तभी तो हम स्त्रियां अनुमानित विपदा को टालने के लिए व्यर्थ के ढकोसलों- व्रत, उपवास, यह न करो, वह न करो आदि में न केवल स्वयं लिप्त रहतीं हैं बल्कि अपने बच्चों को भी मानने के लिए विवश कर उन के विश्वास को कमजोर करने से नहीं चूकतीं.

“मैं आप की खुशी और आप के मन की शांति के विवाह के लिए 2 वर्ष और इंतजार कर सकती हूं पर पीपल के वृक्ष से विवाह कर स्वयं को स्वयं की नजरों नहीं गिरने दूंगी. मुझे अपने प्यार पर विश्वास है, वह मेरी बात कभी नहीं टालेगा.”

“किंतु तेरे मंगली होने की बात मुझे तेरी सासससुर को बतानी होगी. कहीं ऐसा न हो कि बाद में वे हम पर इस बात को छिपाने का दोष लगा दें.”

“जैसा आप उचित समझें,” कह कर प्राची उठ कर चली गई.

“तुम्हारी जिद्दी बेटी को समझाना बहुत मुश्किल है. पंडितजी सही कह रहे हैं. इस का मंगल उच्च है, तभी इस में इतनी निडरता और आत्मविश्वास है. अगर लड़के वालों को कोई आपत्ति नहीं है, तो कर देते हैं विवाह,” पापा ने उस के उठ कर जाते ही मां से कहा.

“कहीं लड़के का अनिष्ट…” मां के चेहरे पर चिंता की लकीरें झलक आई थीं.

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“कैसी बातें कर रही हो तुम? तुम ही कहतीं थीं कि तुम्हारे पिताजी सदा कहते थे कि अच्छाअच्छा सोचो, तो अच्छा होगा. हमारे नकारात्मक विचार हमें सदा चिंतित तो रखते ही हैं, किसी कार्य की सफलता के प्रति हमारी दुविधा के प्रतीक भी हैं. वहीं, सकारात्मक विचार हमें सकारात्मक ऊर्जा से भर कर हमारे कार्य को सफल बनाने में सहायक होते हैं. तुम चिंता मत करो, हमारी प्राची में हौसला है, विश्वास है, उस का कभी अनिष्ट नहीं होगा. अब हमें विवाह की तैयारी करनी चाहिए,” पापा ने मां को समझाते हुए कहा.

“जैसा आप उचित समझें, लेकिन अगर हम जयदीप के मातापिता से इस संदर्भ में बात कर लें तो मेरी सारी दुविधा समाप्त हो जाएगी.”

ठीक है, मैं समय ले लेता हूं,” कहते हुए दिनेश फोन करने लगे.

जयदीप के मातापिता से मिलते ही सरिता ने अपने मन की बात कही.

“बहनजी, हम इन बातों को नहीं मानते. मेरा और विजय का विवाह आज से 30 वर्ष पूर्व बिना कुंडली मिलाए हुआ था. हम ने सफल वैवाहिक जीवन बिताया. मेरा तो यही मानना है अगर हमारे विचार मिलते हैं, हमें एकदूसरे पर विश्वास है तो हम जीवन में आई हर कठिनाई का सामना कर सकते हैं. जो होना होगा वह होगा ही, व्यर्थ के ढकोसलों में पड़ कर हम अपने मन को कमजोर ही करते हैं,” शीला ने कहा.

शीला की बात सुन कर सरिता के मनमस्तिष्क में प्राची के शब्द भी गूंजने लगे- ‘ममा, हम स्त्रियां स्वयं को इतना हीन क्यों बना लेती हैं? जीवन में आई हर विपदा को अपने क्रूर ग्रहों का कारण मान कर सदा कलपते रहना उचित तो नहीं है. एकाएक उस के मन में व्याप्त नकारात्मकता की जगह सकारात्मकता ने ले ली. उस की सकारात्मक सोच ने उस में उर्जा का ऐसा संचार कर दिया था कि अब उसे भी लगने लगा कि व्यक्ति अपनी निष्ठा, लगन, परिश्रम और आत्मविश्वास से कठिन से कठिन कार्य में भी सफलता प्राप्त करने के साथ जीवन में आई हर चुनौती का सामना करने में सक्षम रह सकता है. इस के साथ ही उन के मन पर वर्षो से चढ़ी ढोंग और ढकोसलों की जमी बर्फ पिघलने लगी थी. उन्होंने प्राची और जयदीप के संबंध को तहेदिल से स्वीकार कर विवाह की तैयारियां शुरू कर दीं.

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