ये जीना भी कोई जीना है लल्लू…

कोविड की वजह 10 साल का सौरभ ऑनलाइन पढाई करना तो सीख लिया है, पर अब स्कूल खुलने के बाद वह स्कूल से आकर थका हुआ महसूस करता है, मोबाइल पर गेम्स खेलने लगता है, माँ की बात सुनता ही नहीं, उसे अब किताब कॉपी लेकर पढना या लिखना मंजूर नहीं. वह कम्प्यूटर या मोबाइल पर ही पढाई करना चाहता है. उसकी माँ किंजल इसे लेकर परेशान है, कहाँ जाए और क्या करें, ताकि बच्चे की ये आदत छूट जाय. स्कूल से भी टीचर की शिकायत आ रही है, क्योंकि वह पढ़ाई में मन नहीं लगाता.

ये सही है कि कोविड ने बच्चों से लेकर वयस्कों को मानसिक और शारीरिक रूप से इतना नुकसान पहुँचाया है, जिसकी क्षतिपूर्ति करने में शायद सालों लग जायेंगे, क्योंकि कई महीनों की पूरी लॉकडाउन और किसी का घर से बाहर न निकलने का संकल्प, बच्चों और बुजुर्गों के जीवनशैली पर अब खास असर होता दिखाई पड रहा है. अभी स्कूल और कॉलेज खुल चुके है, ऐसे में बच्चों का फिर से बाहर निकल कर स्कूल जाना, पढाई करना, दोस्तों के साथ दोस्ती करना आदि के लिए फिर से उन्हें प्रयास करना पड़ेगा. बहर जाकर खेलना- कूदना तो उन्हें अब जरा भी पसंद नहीं, क्योंकि करीब दो साल बच्चों की पढाई ऑनलाइन हुई है, आब उससे निकलना उन्हें मंजूर नहीं.

इस बारें में स्टोन सफायर इंडिया की चाइल्ड एक्सपर्ट नीना सिंह कहती है कि बच्‍चे जब पज़ल्‍स, पीकाबू, घर-घर खेलने जैसी गतिविधियों में शामिल होते है, तब वे कुछ नया सोचते है,क्योंकि ये खेल एक दूसरे के साथ बातचीत से होता है. साथ ही उनका सामाजिक जुड़ाव बढ़ता है. खेल-कूद बच्‍चे के विकास के लिए बहुत आवश्‍यक है, क्‍योंकि इससे वे शारीरिक रूप से मजबूत होते है और उन्‍हें कई भावनात्‍मक चीजों से निकलने का तरीका मिलता है. इसके अलावा उन्‍हें आगे चलकर दुनिया को सामना करने की सीख मिलती है. खेल-कूद से बच्‍चे को नई चीजों को सिखने में मदद मिलती है, जिससे वे मायूस नहीं होते और खुश रहते है.

प्रभाव विडियो गेम्स का

आज बच्चों के लिए वीडियो गेम्‍स का आकर्षण साउंड वैल्‍यू पर आधारित है. ये गेम्‍स मजेदार होने के साथ-साथ बहुत तेज एक्शन वाले होते है. इन गेम्‍स में दिए गए चैलेंज बच्‍चों को आकर्षित करते है, ऐसे में जब उन्हें छोटी स्‍क्रीन के सामने, कम्‍प्‍यूटर या फिर मोबाइल पर कई घंटे बिताते है, तो वे ट्रेडिशनल खिलौनों से धीरे-धीरे दूर होकर खेलना बंद कर देते है, जिससे उन्‍हें कुछ नई प्रतिभा सीखने का समय नहीं मिल पाता. लगातार कम्‍प्‍यूटर गेम्‍स  खेलने से इंस्‍टैंट एंटरटेनमेंट पाने की इच्‍छा विकसित हो जाती है. उन्‍हें लगता है कि कम्‍प्‍यूटर गेम्‍स ही मनोरंजन का सबसे अच्‍छा विकल्‍प है. इससे किसी दूसरी चीज को ज्‍यादा ध्‍यान से देखने की उनकी क्षमता घटती है और उनके सुनने की शक्ति पर भी असर पड़ता है. जरूरत से ज्‍यादा गेम्‍स खेलने का असर पढ़ाई पर भी पड़ता है, बच्‍चों में तनाव, एंग्‍जाइटी और सोशल फोबिया जैसी स्थितियां देखने को मिलती है. इसके अलावा ऑनलाइन गेम्‍स पर अधिक समय बिताने से बच्‍चे के स्वास्थ्य विकास पर भी असर पड़ता है, ऐसे में माता-पिता का लक्ष्‍य यह होना चाहिए कि उनका बच्‍चा इन सब आदतों से छोड़कर मानसिक और शारीरिक विकास वाली खेल पर ध्यान दें.

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विकसित होती है क्रिएटिविटी

कई बार पढाई को आसान बनाने के लिए शिक्षक संबंधित खिलौनों का इस्‍तेमाल करते है, जिससे बच्चे समझने के साथ उनकी छुपी हुई प्रतिभा को भी आगे लाने का मौका मिलता है, मसलन समस्‍या को हल करने वाले गेम्‍स, क्रिएटिविटी को बढ़ाने वाले गेम्स आदि से बच्चे कई प्रकार चीजे सीखते है. शुरू में शिशु खिलौनों के रंग और आवाज को सुनकर खेलता है. इसके बाद लाइट्स और कलर्स उन्हें समझ में आती है.

भूमिका किताबों की

किताबों से बच्‍चे में नाम को पहचानने और उन्हें पढ़ने  की रूचि विकसित  होती है. इस तरह बच्‍चे को एक पिक्‍टोरियल वर्जन मिलता है, जिससे उन्हें उस अक्षर को याद रखना आसान होता है. इसलिए ये जरुरी होता है कि बच्‍चों को  छोटी उम्र में ऐसी किताबें पढाई जाय, जिनमें हर पन्‍ने पर तस्‍वीरें और कुछ शब्‍द हों. इससे वे जानेंगे कि जिन शब्‍दों को वह सुन रहे है, वे पन्‍नों पर कैसे दिखते है. इसमें पढाई के किताब के अलावा कॉमिक बुक्स, फिक्शन वाली कहानियाँ अधिक आकर्षित करती है. जटिल बिल्डिंग सेट और ब्‍लॉक्‍स से उनकी रचनात्‍मकता और समस्‍या को हल करने के कौशल को सहयोग मिलेगा, साथ ही वे बॉक्‍स पर दी गई तस्‍वीर के अनुसार वही स्‍ट्रक्‍चर बनाने की कोशिश करेंगे या फिर कुछ दूसरी आकृति बनाने की कोशिश करेंगे.

खेलना है जरुरी

खेलने से बच्‍चे मजबूत, तंदुरुस्‍त और आत्‍मनिर्भर बनते है. यही नहीं, वे भावनात्‍मक रूप से भी विकसित होते है, इससे उनमें बचपन में होने वाला तनाव कम होता है. हालांकि, यदि बच्‍चे खेलेंगे नहीं, तो उनमें अवांछनीय और लम्बे प्रभाव नजर आ सकते है. एक अध्ययन में यह पाया गया है कि जब बच्‍चों को खेलने का मौका नहीं मिलता, तब उनके व्‍यवहार और ध्‍यान संबंधी समस्‍याओं के अधिक होने का खतरा होता है.  यदि बच्‍चों को केवल तकनीकी गेम्‍स ही खिला रहे है और उनके साथ किसी प्रकार के दूसरे गेम नहीं खेल रहे है, तो बच्‍चों को उनकी कल्‍पना, रचनात्‍मकता को पंख देने का मौका गंवा सकते है. जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए उनमें स्किल्स को विकसित करना मुश्किल होता है.

टेक्‍नोलॉजिकल खिलौने है नुकसानदायक

टेक्‍नोलॉजिकल ट्वॉएज़ बच्‍चे के मनोरंजन के लिए असाधारण विकल्‍प होते है और सभी बच्चे इसे पसंद करते है, इन खिलौनों में काफी रोशनी और तरह-तरह के मूवमेंट या आवाज होते है. इन्‍हें अधिक समय के लिए इस्‍तेमाल करने पर बच्चे को कई प्रकार के नुकसान हो सकता है, जो निम्न है,

अस्‍वस्‍थ जीवनशैली

बच्‍चे अपने रोबोट या वी-टेक टैबलेट से खेल रहे होते है, तो कई बार वे उससे घंटों खेलते रहते है,  इतनी देर तक बैठे रहने से बच्‍चों में मोटापा बढ़ सकता है और वह डायबिटीज के भी शिकार हो सकते है. बच्‍चे लगातार लंबे समय तक टैबलेट या टीवी  देखने पर उनकी आंखों को भी नुकसान हो सकता है. इसलिए, पेरेंट्स अपने बच्‍चों के टीवी देखने या मोबाइल या कम्‍प्‍यूटर पर गेम खेलने के समय को सीमित करे, ताकि बच्‍चे एक समन्वित स्‍वस्‍थ लाइफस्‍टाइल जी सकें.

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एकाकीपन   

वीडियो गेम्‍स जैसे कुछ ऑनलाइन गेम्‍स और ऐप्‍स के कारण आपके बच्‍चे के दूसरों के साथ बातचीत करना बिल्‍कुल बंद हो जाता है. लंबे समय तक वीडियो गेम खेलने से बच्चा दूसरों से दूर हो सकता है, इस तरह उसके बातचीत करने के तरीके पर असर पड़ता है। यदि पेरेंट्स यह नोटिस करते है कि उनका बच्‍चा वीडियो गेम खेलते समय खुद को अपने कमरे में ही सीमित कर रहा है तो उन्‍हें समझाकर फैमिली रूम में लायें, ताकि बच्‍चों के साथ रिश्‍ते को मजबूत  बनाना संभव हो, उन्‍हें बच्‍चे को बाहरी दुनिया से पूरी तरह अलग-थलग होकर एक बंद कमरे में खेलने की अनुमति नहीं देनी चाहिए.

सामाजिकता का अभाव

बच्चों के साथ पेरेंट्स को क्वालिटी टाइम बिताना चाहिए, ताकि उन्हें परिवार के लोगों से  बातचीत करना, बड़ों से बर्ताव करना सीख लें, वीडियों गेम्स खेलने पर बच्चे इतना व्यस्त हो जाते है कि बच्‍चों के साथ बातचीत शुरू करना लगभग मुश्किल ही होता है, इसलिए अपने परिवार और दोस्‍तों के साथ सामाजिक होना और उनसे बात करना बच्‍चों के लिए काफी कठिन हो जाता है.

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