अपने किचन को कैसे रखें पौल्यूशन फ्री

अगर आप यह सोच रही हैं कि आप घर में रहती हैं, इसलिए आप प्रदूषण से दूर हैं तो यह आप की भूल है, क्योंकि लंदन के रोफील्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों के अनुसार, किचन में धुएं की सही निकासी न होने पर आप के घर में बाहर से तीन गुना ज्यादा प्रदूषण होता है और यह ज्यादातर इलैक्ट्रिक बर्नर से ही होता है. इस प्रदूषण से आप को गले में खराश, सिरदर्द, चक्कर आना, सांस लेने में दिक्कत जैसी समस्याएं हो सकती हैं.

भारतीय मसाले न सिर्फ स्वाद बढ़ाते हैं, बल्कि सेहत के लिए भी फायदेमंद होते हैं. लेकिन जहां इन से खाने का जायका बढ़ जाता है, वहीं किचन में तेलमसालों वाला खाना बनाते समय काफी धुआं भी होता है, जो सेहत के लिए नुकसानदायक साबित होता है.

महिलाओं का काफी समय किचन में ही बीतता है. ऐसे में उन के स्वास्थ्य के लिए कोई ऐसा उपकरण जो किचन में मौजूद धुएं को पलभर में बाहर कर किचन को प्रदूषणमुक्त कर दे तो वह है चिमनी.

पहले भारतीय घर बड़े होते थे और रसोईघर आमतौर पर खुले में बनाया जाता था ताकि रसोई का धुआं घर में न फैले, मगर जैसेजैसे आबादी बढ़ रही है परिवार फ्लैटों में सिमटने लगे हैं, जिन में हवा और रोशनी की कमी होती और लोग स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के शिकार होते हैं. इन से बचने के लिए बेहतर वैंटिलेशन के साथ ही सही ढंग से इलैक्ट्रिक उपकरणों को साफ करने की भी जरूरत है ताकि घर के भीतर प्रदूषण न हो.

1. किचन में प्रदूषण के कारण

अब किचन सिर्फ गैस तक ही सीमित नहीं रही है. अब पुरानी किचन मौड्युलर किचन में बदलती जा रही है, जिस में टोस्टर, माइक्रोवेव ओवन व अन्य ढेरों चीजें रखी जाती है. लेकिन जहां ये इलैक्ट्रौनिक उपकरण समय की बचत करते हैं वहीं इन से प्रदूषण भी फैलता है, जो बाहर के प्रदूषण से कहीं ज्यादा खतरनाक होता है. आइए, जानते हैं इस बारे में:

2. टोस्टर

सभी इलैक्ट्रिक बर्नर भाप से पैदा होने वाली डस्ट से सूक्ष्मकण उत्पन्न करते हैं, जो प्रदूषण के लिए जिम्मेदार होते हैं. जब हम लंबे समय तक टोस्टर का इस्तेमाल नहीं करते हैं और फिर जब करते हैं तब उस में जमी गंदगी भाप के रूप में सूक्ष्मकणों में बदल कर प्रदूषण का कारण बनती है, जिस से स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

3. माइक्रोवेव

इंगलैंड की ‘यूनिवर्सिटी औफ मैनचेस्टर’ के शोधकर्ताओं के अनुसार, माइक्रोवेव ओवन कार्बन डाई औक्साइड की अत्यधिक मात्रा का उत्सर्जन करता है जो कार से भी ज्यादा खतरनाक प्रदूषण फैलाने का काम करता है.

रोटी मेकर: रोटी मेकर भले ही झट से गरमगरम रोटियां तैयार कर दे, लेकिन क्या आप जानती हैं कि यह भी आप के घर को प्रदूषित कर रहा है? अगर आप के घर में इस से निकलने वाले धुएं को बाहर निकालने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है, तो इस का इस्तेमाल संभल कर करें.

4. कैसे करें बचाव

– धुएं और गंदगी को किचन से बाहर निकालने के लिए घर में सही वैंटिलेशन होने के साथसाथ चिमनी की भी व्यवस्था करें ताकि घर में प्रदूषण न फैले.

– चिमनी पर जमी गंदगी को हटाने के लिए फिल्टर्स व उस के फे्रम्स को थोड़ेथोड़े दिनों बाद साफ करती रहें.

– जब भी टोस्टर, माइक्रोवेव के बाद कौफी या टी मेकर का इस्तेमाल करें तो उस की साफसफाई का खास खयाल रखें, क्योंकि इन उपकरणों पर गंदगी जमा होने पर प्रदूषण का खतरा ज्यादा रहता है.

– एक बार में एक ही इलैक्ट्रिक उपकरण का उपयोग करने की कोशिश करें.

 

 

प्रदूषण बन सकता है बांझपन की वजह

दिल्ली में तमाम कोशिशों के बावजूद वायु प्रदूषण सेहत के लिए सुरक्षित सीमा से 16 गुणा बढ़ गया. दीवाली के पटाखों से देश की राजधानी फिर ज़हरीले धुएं से भर गई. उस पर पराली के धुएं से हालात और भी खराब हो रहे हैं. हर साल इस समय वायु प्रदुषण का कहर इसी तरह लोगों का दम घोटने लगता है.

सिर्फ दीवाली ही नहीं बाकी समय भी देश के बहुत से इलाकों में वायु प्रदूषण का जहर लोगों की जिंदगी प्रभावित करता रहा है. आज हम जिस वातावरण में जी रहे हैं उस में वायु प्रदूषण का स्तर चरम पर है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार आज विश्व की 92 प्रतिशत जनसंख्या उन क्षेत्रों में रह रही है जहां वायु प्रदूषण विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित सुरक्षा सीमाओं से अधिक है. बढ़ता वायु प्रदूषण गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं और मृत्यु के एक प्रमुख कारण के रूप में उभर रहा है.

वायु प्रदूषण और हमारा स्वास्थ्य

वायु प्रदूषण का प्रभाव हमारे शरीर के प्रत्येक अंग और उस की कार्यप्रणाली पर पड़ता है. इस के कारण हृदय रोग, स्ट्रोक, सांस से संबंधित समस्या, डायबिटीज, बांझपन वगैरह की आशंका बढ़ जाती है.

हाल में हुए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि जो लोग ऐसे स्थानों पर रहते हैं जहां अत्यधिक ट्रैफिक होता है उन की प्रजनन क्षमता में 11 प्रतिशत की कमी आ जाती है. आइये इंदिरा आईवीएफ हॉस्पिटल की डॉ सिम्मी अरोड़ा से जानते हैं कि विषैली हवा में सांस लेने से प्रजनन क्षमता पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह से नकारात्मक प्रभाव कैसे पड़ता है;

वायु प्रदूषण का प्रजनन क्षमता पर प्रत्यक्ष प्रभाव

अंडों की क्वालिटी प्रभावित होना

पार्टिकुलेट मैटर (पीएम), ओजोन, नाइट्रोजन डाय ऑक्साइड, सल्फर डाय औक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, भारी धातुएं और हानिकारक रसायनों का एक्सपोज़र महिलाओं में अंडों की क्वालिटी को प्रभावित करता है. अंडों की खराबी महिलाओं में बांझपन का एक प्रमुख कारण है.

मासिक चक्र संबंधी गड़बड़ियां

प्रदूषण अंडों की क्वालिटी और सेक्स हार्मोनों के स्त्राव को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है जिस का सीधा प्रभाव मासिक चक्र पर पड़ता है. इस के कारण पीरियड्स देर से आना, ब्लीडिंग कम होना या पीरियड्स स्किप होना जैसी समस्याएं हो जाती है जिन के कारण कंसीव करना कठिन हो जाता है.

वीर्य और शुक्राणुओं की क्वालिटी और मात्रा प्रभावित होना

वायु में मौजूद प्रदूषित कण वीर्य की क्वालिटी को प्रभावित करते हैं. शुक्राणुओं की संख्या कम हो जाती है. उन की संरचना में परिवर्तन आ जाता है और उन की गतिशीलता भी प्रभावित होती है. जिस से पुरूष बांझपन का खतरा बढ़ जाता है.

दिल्ली स्थित एम्स द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार 3 दशक पहले एक सामान्य भारतीय पुरूष में शुक्राणुओं की संख्या औसतन 6 करोड़/मिलीलीटर होता थी. अब यह घट कर 2 करोड़/ मिलीलीटर रह गई है.

गर्भपात का खतरा बढ़ना

जो महिलाएं ऐसे क्षेत्रों में रहती हैं जहां वायु में पीएम 2.5, पीएम10, नाइट्रोजन डाय औक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, ओजोन और सल्फर डाय ऑक्साइड की मात्रा अधिक होती है उन में गर्भपात का खतरा उन महिलाओं की तुलना में अधिक होता है जो कम प्रदूषित स्थानों पर रहती हैं.

मृत बच्चे के जन्म लेने की आशंका

प्रदूषित वातावरण में रहने वाली महिलाओं के मृत बच्चे को जन्म देने की आशंका अधिक होती है. यही नहीं जन्म के समय बच्चे का वज़न कम होना, समय से पहले प्रसव और बच्चे में जन्मजात विकृतियां होने का खतरा भी अधिक होता है.

वायु प्रदूषण का प्रजनन क्षमता पर अप्रत्यक्ष प्रभाव

डायबिटीज के कारण प्रजनन क्षमता प्रभावित होना

वायु प्रदूषण विशेषकर वाहनों से निकलने वाला धुआं, नाइट्रोजन डाय ऑक्साइड, तंबाकू से निकलने वाला धुआं, पीएम 2.5 आदि इंसुलिन रेज़िस्टेंस और टाइप 2 डायबिटीज़ के सब से प्रमुख कारण हैं. इंसुलिन रेज़िस्टेंस के कारण पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) और मेटाबॉलिक सिंड्रोम एक्स दोनों की आशंका अत्यधिक बढ़ जाती है जो महिलाओं में बांझपन के सब से बड़े कारण हैं.

डायबिटीज़ के कारण तंत्रिकाएं को भी नुक्सान पहुंचता है. इस का सीधा संबंध पेनिस के ठीक प्रकार से कार्य न करने से है क्यों कि इस से पेनिस की तंत्रिकाएं भी क्षतिग्रस्त हो जाती हैं.

हार्मोनों के स्त्राव में असंतुलन और बांझपन

इंसुलिन एक हार्मोन है जिसके असंतुलन का प्रभाव सेक्स हार्मोनों जैसे एस्ट्रोजन, प्रोजेस्ट्रौन और टेस्टोस्टेरौन के स्तर पर भी पड़ता है.

प्रदूषण थायरौइड ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोनों को भी प्रभावित करता है, जिससे महिलाओं की प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है.

प्रदूषण से बचने के लिए जरूरी उपाय

अधिक प्रदूषण वाली जगहों पर जाने से बचें, अगर जाना जरूरी हो तो मॉस्क का प्रयोग करें.

अपने घर को रोज वैक्यूम क्लीनर से साफ करें ताकि धूलकण जमा न हो पाएं.

घर की हवा को साफ रखने और प्रदुषण से बचने के लिए एयर प्युरिफायर लगवाएं.

अगर आप ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहां प्रदूषण अधिक है तो खिड़कियों और दरवाजों पर मोटे पर्दे लगाएं.

आप ऐसी जगहों पर काम करते हैं जहां रसायनों का एक्सपोज़र अधिक है तो पूरी सावधानी रखें.

धूम्रपान से बचें.

अगर आप टहलने जाते हैं तो ऐसी जगह चुनें जहां प्रदूषण कम हो.

अपने घर में इनडोर प्लांट्स भी लगाएं. ये इनडोर पॉल्युशन को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

पोषक भोजन और अधिक मात्रा में पानी व तरल पदार्थों का सेवन करें ताकि शरीर से टौक्सिन फ्लश हो सकें.

ज्यादा प्रदूषण के कारण बढ़ रही है बच्चों में मोटापे की परेशानी

हाल ही में हुई एक शोध की माने तो अधिक वायु प्रदूषण वाली जगहों पर रहने वाले बच्चे दूसरे बच्चों की अपेक्षा अधिक मोटे होते हैं. कारण है कि वो अधिक जंक फूड खाते हैं. शोधकर्ताओं का दावा है कि वायु प्रदूषण का स्तर अधिक होने के कारण बच्चे अधिक जंक फूड का सेवन करते हैं. वायु में प्रदूषण का स्तर अधिक होने के कारण बच्चों में हाई ट्रांस फैट डाइट का सेवन 34 फीसदी तक बढ़ जाता है. स्टडी में ये भी पाया गया कि ऐसे वातावरण में बच्चे घर का खाना खाने से ज्यादा बाहर का खाना पसंद करते हैं.

हालांकि बच्चों की आदत में इस बदलाव के पीछे के कारण का ठीक ठीक पता नहीं लगाया जा सका है. पर जानकारों की माने तो इसका सीधा संबंध वायु प्रदूषण से है. जानकारों का मानना है कि प्रदूषण से शरीर को खाने से मिलने वाली एनर्जी और ब्लड शुगर पर प्रभाव पड़ता है और भूख भी कम लगती है.

शोधकर्ताओं की माने को वायु प्रदूषण के स्तर में कमी कर के मोटापे के इस परेशानी को कम किया जा सकता है. अमेरिका में हुए इस शोध में करीब 3100 बच्चों को शामिल किया गया था. इन सभी बच्चों में वायु प्रदूषण से उनके रेस्पिरेटरी सिस्टम पर होने वाले प्रभाव की जांच की गई.

स्टडी में शामिल बच्चों से उनकी खान पान की आदतों के बारे में जानकारी ली गई. वो कब और क्या खाते हैं इस आधार पर इस स्टडी के निष्कर्ष पर पहुंचा गया है. आपको बता दें कि इस शोध में स्टडी में शामिल सभी लोगों के घर के आसपास में मौजूद बिजली संयंत्रों में और गाड़ियों से निकलने वाले प्रदूषण की मात्रा की जांच की गई थी.

इस जांच में पाया गया कि प्रदूषण के  अधिक स्तर वाले क्षेत्र में रहने वाले बच्चों ने हाई ट्रांस फैट डाइट का सेवन करते हैं. स्टडी के नतीजों में शोधकर्ताओं ने पाया कि अधिक वायु प्रदूषण में रहने वाले बच्चे 34 फीसदी ज्यादा ट्रांस फैट डाइट का सेवन करते हैं.

जानें प्रदूषण के बारे में क्या कहती हैं स्मिता कनोडिया, क्षेत्रीय अधिकारी- प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

धरती पर वायु, जल और ध्वनि का जितना संतुलन रहेगा, उतना ही हमारा पर्यावरण सुरक्षित रहेगा. मगर यह बड़े अफसोस की बात है कि हम जैसेजैसे आधुनिकता की तरफ बढ़ रहे हैं, पर्यावरण पर प्रदूषण का प्रकोप उतना ही ज्यादा होता जा रहा है.

केंद्र और राज्य सरकारें भी प्रदूषण को रोकने के लिए अपने स्तर पर कई तरह के काम करती हैं. ऐसे में लोगों को यह जानने का हक है कि प्रदूषण क्या बला है और यह हमारी धरती को किस तरह नुकसान पहुंचाता है? इसी सिलसिले में हरियाणा प्रदूषण बोर्ड फरीदाबाद की क्षेत्रीय अधिकारी स्मिता कनोडिया से बातचीत की गई. पेश हैं, उसी बातचीत के खास अंश:

लोगों को आसान शब्दों में यह कैसे समझया जाए कि प्रदूषण क्या है और

यह कितने तरीके का होता है?

पर्यावरण में होने वाला हर वह बदलाव जिस का धरती पर मौजूद जीवों पर बुरा असर पड़ता है, प्रदूषण कहलाता है. चूंकि ऐसे जहरीले तत्त्व हवा, पानी और भूमि की क्वालिटी को खराब करते हैं, इसलिए जल, वायु और ध्वनि ये 3 प्रकार के प्रदूषण हमें सब से ज्यादा प्रभावित करते हैं.

भूमिगत जल प्रदूषण किस कारण से होता है?

इसे प्रदूषण का चौथा प्रकार कहा जा सकता है. हमारे घरों, कारखानों, अस्पतालों आदि से निकलने वाला कचरा भूमिगत जल को खराब करने की सब से बड़ी वजह है. यही ठोस कचरा जमीन के रास्ते धरती के भीतर जा कर भूमिगत पानी को खराब कर देता है.

फरीदाबाद और गुरुग्राम का ऐसा ठोस कचरा बंधवाड़ी लैंडफिल मैनेजमैंट साइट पर जमा किया जाता है. अगर शहरों का ऐसा कचरा ट्रीट किया जा रहा है, तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन अगर ऐसा नहीं हो पाता है, तो वह कचरा धीरेधीरे जमीन के पानी को प्रदूषित कर देता है, जो एक खतरे की घंटी है.

कहने को लैंडफिल साइट पर घरों का कचरा ही जमा होता है, पर उस में प्लास्टिक, पौलिथीन, टूटे थर्मामीटर, बैटरी, कांच आदि भी होते हैं, जो बहुत खतरनाक होते हैं. प्लास्टिक की लाइफ 100 साल तक होती है. ऐसी चीजों का अगर वैज्ञानिक तरीके से निबटान न किया जाए, तो भूमिगत पानी पर बहुत बुरा असर डालती हैं, तभी तो बड़ीबड़ी फैक्टरियों, कारखानों आदि में ट्रीटमैंट प्लांट्स लगाने के आदेश दिए जाते हैं और उन्हें काम के हिसाब से ग्रीन, ह्वाइट, औरेंज और रैड कैटेगरी में बांटा जाता है. जो लोग नियमों का पालन नहीं करते हैं, उन पर कड़ी कार्यवाही तक की जाती है.

कैमिकलयुक्त वेस्ट वाटर को ट्रीट करने के बाद ही फैक्टरी वाले उसे सीवर में डाल सकते हैं. अगर कोई रैड कैटेगरी की फैक्टरी किसी भी तरह के कानून का उल्लंघन करती पाई जाती है, तो उस पर 12,500, औरेंज कैटेगरी पर 7,500 और ग्रीन कैटेगरी पर 5,000 रुपए प्रतिदिन का जुरमाना लगता है.

इसी तरह कोई इंडस्ट्री पर्यावरण में विषैला धुआं छोड़ती है तो उसे नियंत्रित करने के लिए एअर पौल्यूशन कंट्रोल डिवाइस लगाने होते हैं. इस के बाद ही चिमनी से धुआं बाहर छोड़ा जा सकता है.

गांवदेहात में खेत में पराली जलाने से होने वाला प्रदूषण कैसे नुकसानदायक होता है?

पराली को खेत में जलाने के अलग नुकसान हैं. इस से धरती की ऊपरी परत खराब हो जाती है, जो सब से ज्यादा उपजाऊ मानी जाती है. धुएं से पर्यावरण तो खराब होता ही है, सांस से संबंधित बीमारियां होने का खतरा भी बना रहता है.

प्रदूषण से जुड़े सरकारी महकमे कैसे प्रदूषण की रोकथाम पर काम करते हैं?

दरअसल, हमारा विभाग एक मौनिटरिंग एजेंसी है. हम दूसरे विभागों से तालमेल करते हैं ताकि पर्यावरण से जुड़ी समस्याएं समय रहते दूर की जा सकें.

निर्माण क्षेत्र के हिसाब से सरकार द्वारा ऐंटीस्मोग गन लगाने के दिशानिर्देश जारी किए गए हैं. अगर कोई बिल्डर 5000 स्क्वेयर मीटर के एरिया में एक ऐंटीस्मोग गन लगा कर काम करता है तो पौल्युशन कम होता है.

सरकार ने अपनी तरफ से भी ऐंटीस्मोग गन लगवाई हैं. इस के अतिरिक्त मशीनीकृत ?ाड़ू भी लगवाई जाती है. अगर किसी इलाके में काफी कंस्ट्रक्शन हो रहा है और उस एअर क्वालिटी खराब हो कर 300 के मानक से ऊपर पहुंच जाए तो फिर कंस्ट्रक्शन के सारे काम रुकवा दिए जाते हैं.

लोगों को किस तरह इस समस्या के प्रति जागरूक किया जा सकता है?

कार पूलिंग करनी चाहिए. ज्यादा गाडि़यां चलेंगी तो प्रदूषण ज्यादा होगा और ट्रैफिक जाम की समस्या भी बढ़ेगी. इस से वायु और ध्वनि प्रदूषण बढ़ता है. यातायात सार्वजनिक परिवहन जैसे बस, मैट्रो आदि का इस्तेमाल करें. लोगों की जागरूकता ही प्रदूषण को कम करने का आसान हल है.

पौल्यूशन का असर मेरी स्किन पर साफ दिखाई देता है. कृपया बताएं मुझे स्किन को पौल्यूशन से बचाने के लिए क्या करना चाहिए?

सवाल

पौल्यूशन का असर मेरी स्किन पर साफ दिखाई देता है. कृपया बताएं मुझे स्किन को पौल्यूशन से बचाने के लिए क्या करना चाहिए?

जवाब 

प्रदूषित हवा में ऐसिड अधिक होने की वजह से स्किन रूखी हो जाती है और प्रदूषण के कण उन के अंदर प्रवेश कर जाते हैं. लिहाजाऐसा क्लींजर यूज करें जो स्किन से नमी निकाले बिना उसे मौइस्चराइज करे. स्किन पर मौइस्चराइजर लगाने के बजाय फेशियल औयल यूज करें. यह हानिकारक तत्वों को स्किन में प्रवेश करने से रोकता है. स्किन में मौजूद औयल प्रदूषण के हानिकारक कण और धूलमिट्टी को हटाने में टोनर मदद करता है.

इसलिए मौइस्चराइजर के बाद टोनर लगाएं. समयसमय पर स्किन की स्क्रबिंग करना भी जरूरी हैलेकिन हलके हाथों से ताकि स्किन धूलमिट्टी और औयल से पूरी तरह फ्री हो जाए. आप चाहें तो फेशियल की जगह हलदी वाला या फिर आलू वाला फेस मास्क भी लगा सकती हैं. यह भी स्किन पर प्रदूषण के असर को कम करने में मदद करेगा.

घरेलू प्रदूषण से छुटकारा दिलाएंगे ये 8 उपाय

घर हो या बाहर प्रदूषण आज हर जगह है. बाहर के प्रदूषण पर तो हमारा उतना बस नहीं है, लेकिन घर के प्रदूषण को हम अपनी थोड़ी सी कोशिश और सजगता से जरूर कम कर सकते हैं. ठंड में तो हमें और भी सचेत हो जाना चाहिए. इस की वजह यह है कि ठंड के मौसम में धूलधुआं ऊपर नहीं उठ पाता और सारा प्रदूषण हमारे इर्दगिर्द जमा होता रहता है. ठंड के मौसम में कुहरा होने के कारण कार्बन डाईऔक्साइड, मिथेन और नाइट्रस औक्साइड जैसी खतरनाक गैसों का प्रकोप और अधिक बढ़ जाता है.

वैसे कुहरा नुकसानदेह नहीं होता है, लेकिन जब इस में धूल, धुआं मिलता है तो यह खतरनाक हो जाता है. इसलिए ठंड के मौसम में प्रदूषण और बढ़ जाता है. तभी तो इस मौसम में आंखों में जलन, नाक में खुजली, गले में खराश, खांसी जैसी परेशानियां होती हैं. इन के अलावा फेफड़ों में संक्रमण की भी शिकायत हो जाती है. कारण, इस मौसम में वातावरण में तरहतरह के वायरस सक्रिय हो जाते हैं.

आंकड़े बताते हैं कि हर साल 43 लाख लोग घर के प्रदूषण के शिकार हो रहे हैं. अत: घर के प्रदूषण से बचना भी चुनौती ही है. फिर भी थोड़ी सी जागरूकता बरत कर घर को प्रदूषण से बचाया जा सकता है. आइए, जानते हैं कैसे.

1. धूम्रपान सेहत के लिए खतरनाक है, फिर भी लोग धूम्रपान करते हैं. जो इस के आदी हैं, उन के लिए तो यह जानलेवा है ही, उन के लिए भी खतरनाक है, जो धूम्रपान नहीं करते. ऐक्टिव स्मोकिंग से ज्यादा खतरनाक पैसिव स्मोकिंग होती है. इसीलिए सब से पहले तो परिवार के जो सदस्य धूम्रपान के आदी हैं वे घर में इस का धुआं न फैलाएं. धूम्रपान का सब से बुरा असर बच्चों और बुजुर्गों पर पड़ता है. इस के अलावा अगर घर का कोई सदस्य दिल की बीमारी या फेफड़ों के संक्रमण से ग्रस्त है, तो उस के लिए पैसिव स्मोकिंग जानलेवा हो सकती है.

2. कीटनाशक के प्रयोग में सावधानी बरतें. घर की मक्खियों, मच्छरों, तिलचट्टों आदि से छुटकारा पाने के लिए बाजार में तरहतरह के रिपेलैंट अगरबत्ती या लिक्विड दोनों ही रूपों में उपलब्ध हैं. ये तमाम तरह के रिपेलैंट कीड़ेमकोड़ों को भगाने के साथसाथ घर में प्रदूषण फैलाने का भी काम करते हैं. दोनों ही तरह के रिपेलैंट से हानिकारक रसायन और जहरीले धुएं से सेहत को नुकसान पहुंचता है. बच्चों और बुजुर्गों को सांस की परेशानी, खांसी और ऐलर्जी की शिकायत हो जाती है.

3. घर में कीड़ेमकोड़े होने से भी घर का प्रदूषण बढ़ता है. घर में चींटियां, मकडि़यां गंदगी फैलाती हैं. इन के अलावा चूहों, तिलचट्टों और छिपकलियों की बीट से भी प्रदूषण फैलता है. अत: घर की नियमित साफसफाई बेहद जरूरी है. परदों और गलीचों में खूब धूल जम जाती है, इसलिए इन की भी समयसमय पर सफाई करते रहें. रसोई और बाथरूम की नालियों की सफाई का भी खासतौर पर ध्यान रखें. कई बार नाली या पानी का पाइप फट जाता है. पर चूंकि नालियां और पानी के पाइप लाइन दीवार में काउंसलिंग सिस्टम से लगाए जाते हैं, इसलिए इन में आई खराबी का तब तक पता नहीं चलता जब तक दीवार में सीलन नजर नहीं आती. इस से रसोई और बाथरूम में तिलचट्टों और सीलन की समस्या बढ़ती है. अत: नाली या पानी के पाइप में कहीं कोई गड़बड़ी आती है, तो उस की तुरंत मरम्मत करवाएं.

4. घर की दीवारों में इस्तेमाल होने वाले रंग में कम से कम मात्रा में सीसा और वीओसी (वाष्पशील कार्बनिक यौगिक) हो, इस का ध्यान रखें. ऐसी कंपनी के रंग का चुनाव करें, जिस में सीसा और वीओसी हो ही न. इस का कारण यह है कि वीओसी में फौर्मैलडिहाइड और ऐसिटैलडिहाइड जैसे खतरनाक रसायन होते हैं, जो स्नायुतंत्र को प्रभावित करते हैं. बच्चों पर इन का असर और भी खतरनाक होता है. सीसा बच्चों के दिमागी विकास में रुकावट डालता है, इसलिए ऐसे रंगों का चुनाव करें, जिन में कम से कम मात्रा में सीसा और वीओसी हो.

5. घर के प्रदूषण से छुटकारा पाने के लिए ऐरोगार्ड या एअरप्यूरिफायर का इस्तेमाल करें.

6. घर के प्रदूषण में सब से बड़ी भूमिका रसोई की होती है. खाना बनाते वक्त निकलने वाला धुआं प्रदूषण फैलाता है. यह धुआं दमे के मरीज के लिए बहुत ही तकलीफदायक होता है. स्वस्थ व्यक्ति को भी छींक और खांसी की तकलीफ होती है. इसलिए रसोई के प्रदूषण से निबटने के लिए चिमनी या ऐग्जौस्ट फैन का इस्तेमाल करें. ये धुएं को घर में फैलने से रोकते हैं. कुछ होम ऐप्लायंस भी प्रदूषण फैलाते हैं खासतौर पर एअरकंडीशनर. इसलिए समयसमय पर भी इन की भी साफसफाई करती रहें. अगर एअरकंडीशनर के फिल्टर को नियमित रूप से साफ न किया जाए, तो यह सेहत के लिए नुकसानदेह होता है. इस के फिल्टर पर जमने वाली धूल की परत सांस की तकलीफ बढ़ाती है. इतना ही नहीं यह ऐलर्जी का भी कारण बनती है. इस से फेफड़ों में संक्रमण से खांसी की शिकायत भी हो सकती है.

7. घर की दीवार में दरार भी प्रदूषण के लिहाज से नुकसानदेह हो सकती है. छत या दीवार में दरार से कमरों में सीलन आती है. सीलन से सर्दी, खांसी ओर सांस से संबंधित तमाम बीमारियां परिवार के सदस्यों को हो सकती हैं. इसलिए घर की दीवार या छत में कहीं कोई दरार दिखाई दे तो उस की तुरंत मरम्मत करा लें.

8. घर में वैंटिलेशन का पूरा इंतजाम हो. सुबह के समय घर की सभी खिड़कियां और दरवाजे खोल दें. परदों को भी हटा दें ताकि घर में ताजा हवा आ सके. ताजा हवा घर के भीतर की प्रदूषित हवा का असर कम कर देती है.

इन 10 पौधों से रखें घर को प्रदूषण मुक्त

बैडरूम वह जगह है जहां हम दिन भर की थकान मिटाते हैं. लेकिन नर्म मुलायम बिस्तर, मखमली परदे, मध्यम रोशनी के साथसाथ बैडरूम की मनपसंद साजसज्जा और फर्नीचर होने के बावजूद नींद न आए तो समझिए घर की भीतरी हवा शुद्ध नहीं है.

नासा इंस्टिट्यूट औफ अमेरिका ने एक शोध में पाया कि जो लोग दिन भर व्यस्त रहते हैं उन्हें तनावमुक्त होने और आरामदायक नींद के लिए दूसरों से कहीं अधिक शुद्ध और साफ हवा की जरूरत होती है. इसलिए सलाह दी जाती है कि कुछ ऐसे पौधे घर के भीतर रखे जाएं, जो बाथरूम से निकलने वाली अमोनिया गैस, कूड़ेकरकट से फौर्मैल्डहाइड गैस, डिटर्जैंट से बैंजीन, फर्नीचर से ट्राईक्लोरोइथिलीन, गैस स्टोव से कार्बन मोनोऔक्साइड और लौंडरी आदि के कपड़ों से निकलने वाली गंध के प्रभाव को निष्क्रिय कर सकें. कुछ विशेष पौधे लगाने से व एअर प्यूरीफायर का काम करते हैं.

यह पढ़ते हुए मन में जरूर यह बात आ रही होगी कि पौधे तो रात में कार्बन डाईऔक्साइड गैस छोड़ते हैं. हमें तो औक्सीजन चाहिए. जी हां, आप के मन में उठी यह शंका निर्मूल नहीं है, क्योंकि जब पौधों में फोटोसिंथेसिस की प्रक्रिया होती है, तो ऐसे में वे कार्बन डाईऔक्साइड गैस खींचते हुए औक्सीजन छोड़ते हैं और यह प्रक्रिया रोशनी में होती है. लेकिन रात के अंधेरे में पौधों की यह प्रक्रिया ठीक इस के विपरीत होती है.

वैज्ञानिकों का मानना है कि कुछ ऐसे पौधे हैं, जो रात्रि में भी, देर शाम तक औक्सीजन देते रहते हैं. ये पौधे हमें विषैली गैसों से छुटकारा दिलवाने में प्रभावी होते हैं.

लेकिन हमें यह जानकारी ही नहीं होती कि कौन सा सजावटी पौधा कहां रखें.

तो चलिए, हम आप को कुछ ऐसे ही एअर प्यूरीफायर पौधों की जानकारी देते हैं, जो वायू प्रदूषण को नियंत्रित करने में सहायक पाए गए हैं:

1. स्नेक प्लांट:

दिनरात औक्सीजन देने वाले इस पौधे को वनस्पति जगत में सैंसेवीरिया ट्रीफैसिया नाम से जाना जाता है. बागबानी के शौकीन इसे स्नेक प्लांट के नाम से जानते हैं. यह पौधा रात्रि में भी औक्सीजन देता है. इसलिए दिनरात औक्सीजन स्तर को बढ़ा कर प्रदूषण रोकता है. अत: बाथरूम में अमोनिया गैस के प्रभाव को निष्क्रिय करने के लिए स्नेक प्लांट लगाएं. नीचे फर्श पर या खिड़की पर रखा यह पौधा कूड़े की गंध को भी खत्म कर देगा. यदि फूलों की सुगंध चाहिए तो बाथरूम में गुलदाउदी का पौधा रखें.

2. गोल्डन पोथोस:

भीतर छाया में कम सूर्य की रोशनी में पलने वाला हरेपीले चौड़े पत्तों वाला यह पौधा वायु प्रदूषण को रोकने में सहायक होता है. एयर प्यूरीफायर पौधों की गिनती में शुमार गोल्डन पोथोस का पौधा भीतर किसी भी स्थान में बल्ब या ट्यूब की रोशनी में पलताबढ़ता है. यह भीषण आर्द्रता में जीविन रहता है. यह मौस स्टिक के सहारे कम पानी में अच्छे परिणाम देता है. कूड़े से निकलने वाली गैस के प्रभाव को ऐलोवेरा के पौधे की तरह निष्क्रिय करने में भी यह सहायक है. अंधेरे में रखने के बावजूद हैंगिंग पौट में रखा यह पौधा हराभरा रह कर एयर प्यूरीफायर का काम बखूबी करता है. यह पौधा आम दुर्गंध के साथसाथ गैस स्टोव से निकलने वाली कार्बन मोनोऔक्साइड गैस को दूर करने में भी सक्षम होता है.

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3. वीपिंग फिग:

भीतर कमरों में हैवी परदों, गलीचों और फर्नीचर से भी गंध निकलती रहती है, जो धीरेधीरे वायु की शुद्धता के लैवल को प्रभावित करती है. ऐसे में वीपिंग फिग नामक यह पौधा इस प्रकार की सभी गंध को शुद्ध करने में सहायक होता है. यदि फर्नीचर से पेंट आदि की गंध आती है, तो वार्नेक ड्रैसीना का पौधा भी इस गंध को दूर करने में सहायक हो सकता है. कमरे की खिड़की में रखा रोडडैंड्रन सिमसी पौधा प्लाईवुड और फोम के गद्दों से निकलती गंध को भी सोख लेगा.

इसी प्रकार बैडरूम में कई बार परदों या ड्राईक्लीन किए कपड़ों से उठने वाली गंध को खत्म करने के लिए यदि गरबेरा डैजी का पौधा रख लिया जाए तो भी बहुत अच्छा प्रभाव देखने को मिलेगा. मगर यह पौधा काफी देखरेख मांगता है. लेकिन यह ऐलोवेरा, स्नेक पौधे की तरह देर रात तक औक्सीजन के स्तर को बढ़ाए रखने में सक्षम होता है.

4. पीस लिली:

यदि हरियाली के साथसाथ भीनीभीनी सुगंध के भी इच्छुक हैं, तो वसंत ऋतु में पूरे यौवन पर रहने वाले सफेद पीस लिली पौधे को भी घर के भीतर रख सकते हैं. कम रोशनी और सप्ताह में एक बार पानी की सादा खुराक में पलने वाला यह पौधा वायु प्रदूषण को रोकने की अद्भुत क्षमता रखता है. यह ब्रीथिंग स्पेस के लिए आप के घर के भीतर साबुन, डिटर्जैंट से निकलने वाली बैंजीन गंध, कूड़े की गंध को सोखने की क्षमता रखता है. यह पौधा एअर प्यूरीफायर का बढि़या स्रोत है.

बात अब फूलों वाले पौधों की चली है, तो बैडरूम की खिड़की में ऐंथूरियम का महंगा पौधा जहां सीधी धूप न पड़ता हो रखा जा सकता है.

5. रैड एज्ड ड्रैसीना:

इस पौधे को भीतर रखने से वायू प्रदूषण नियंत्रण का कार्य सुगमता से हो जाता है.

6. ग्रेप आइवी:

मध्यम रोशनी, कम पानी, थोड़ी सी देखरेख में पलने वाले इस पौधे को वायु प्रदूषण रोकने का बढि़या स्रोत माना गया है.

यदि हराभरा स्वस्थ ग्रेप आईवी का पौधा शयनकक्ष में काउच के साथ रखा जाए तो वह वायु को शुद्ध करेगा. पौधा बढ़ रहा हो तो खूब पानी दीजिए. जिन लोगों की त्वचा संवेदनशील है या ऐलर्जी हो वे इस से सतर्क रहें. वैसे यह पौधा कई तरह की गैसों को निष्क्रिय करने में सक्षम होता है.

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किचन की कार्बन मोनोऔक्साइड गैस या घर के बाहर आग जलाने से हुई दुर्गंध के प्रभाव को रोकने के लिए रबड़ प्लांट का पौधा भीतरबाहर दोनों जगह काम करेगा.

7. बैंबू पाम:

मकड़ी के जालों को दूर रखने वाला यह पौधा आज की मौडर्न सोसाइटियों में सब की पहली पसंद है. भले ही यह सजावट के लिए रखा गया हो पर यह कमरे के भीतर नमी को नियंत्रित करता है. इसलिए इसे सीधी धूप पढ़ने वाली जगह न रखें, पर यह ध्यान रहे कि हवा वहां आराम से बहती हो. यह किचन, कूड़ाकरकट, साबुन आदि की गंध को नियंत्रित करेगा.

8. लैवेंडर:

घर में यदि लौबी है, तो भीनीभीनी खुशबू देने वाला, कीड़ों को भगाने वाला लैवेंडर का पौधा भी रख सकते हैं.

9. ऐरक:

ऐरक पाम का पौधा ड्राइंगरूम की शोभा बढ़ाने के साथसाथ बैंजीन, कार्बन मोनोऔक्साइड, फौर्मैल्डहाइड तथा झाड़ूपोंछे में इस्तेमाल होने वाली सामग्री से निकलती जाइलीन गंध को रोकने के लिए रख सकते हैं.

10. स्पाइडर प्लांट:

इसे टोकरी में लटका कर रखें और घर के भीतर और बाहर कूड़े की दुर्गंध को दूर भगा कर एक स्वच्छ वातावरण पा कर भीतर आराम से चैन की नींद सोएं. ये सभी प्यूरीफायर पौधे घर की शोभा बढ़ाने के साथसाथ तरोताजा माहौल भी देंगे.

बढ़ते प्रदूषण में रखें अपना ख्याल

इस बार त्योहार खुशियों के साथ अपने साथ कुछ और भी लेकर आया है. यहां बात हो रही है, वातावरण में बढ़ते प्रदूषण की. दीवाली के बाद बढ़े हुए प्रदूषण ने हर बार के सारे आंकड़े पार कर दिए हैं. त्योहार खत्म होने के कई दिनों के बाद भी इसका असर खत्म होते नहीं दिख रहा है. ऐसे में सबसे ज्यादा चिंता का विषय कुछ है तो वह है आम लोगों की सेहत.

वैदिक ग्राम के डॉक्टर पीयूष जुनेजा का कहना है कि ऐसे समय में न केवल बीमार व्यक्तियों को बल्कि सेहतमंद लोगों को भी अपना ध्यान रखने की बहुत आवश्यकता है. बाहर की हवा में पटाखों के धुएं की वजह से रासायनिक पदार्थों में अचानक से काफी बढ़ोतरी हो गयी है. ये पदार्थ हवा में मिलकर हमारे फेफड़ों तक पहुंचते हैं, जिससे कई तरह की खतरनाक बीमारियां हो सकती हैं. हम कुछ छोटी-छोटी बातों को अगर ध्यान में रखें, तो इन चीजों के प्रभाव को कम कर सकते है. कुछ दिनों के लिए सुबह की सैर तथा खुली जगह पर व्यायाम ना करें, हवा के सीधे संपर्क में आने से बचें जिसके लिए बाहर निकलते वक्त अपने मुंह पर मास्क या कपड़ा बांध लें, अपने खाने में शहद, नींबू व गुड का प्रयोग करे जो एन्टीइन्फेक्शन का काम करेगा.

बदलते मौसम और बढ़ते प्रदूषण में अपने शरीर का ख्याल रखना अत्यंत ही जरूरी है. कुछ छोटे कदमों से आप घर में ही इसके खतरनाक प्रभावों को कम कर सकते हैं. एनडीएमसी की रिटायर डायरेक्टर डॉक्टर अल्का सक्ससेना कहती हैं कि इस प्रदूषित हवा से बचने के लिए काफी छोटी छोटी बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. जैसे घर की साफ सफाई समय से करें, सोने से पहले भाप का सेवन करें, जिससे दिन भर की गंदगी आपके फेफड़ों से निकल जाएगी. बाहर के खाने से पूरी तरह से दूर रहें. ज्यादा से ज्यादा घर पर बनीं गर्म चीजें ही खाएं. इन सब चीजों से आप अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा सकेंगे, जो की आपको बीमारियों से दूर रखेगी.

एक कहानी ऐसी भी

अमित और उनकी पत्नी आकांक्षा मल्टिनैशनल कंपनी में काम करते हैं. दिल्ली में आने के बाद पति-पत्नी दोनों के करियर को परवाज मिली. बेटी सुगंधा के पैदा होने के बाद सब कुछ किसी परीकथा की तरह लग रहा था. एक दिन अचानक हल्की खांसी और बुखार के बाद 2 साल की सुगंधा को दमा डायगनोस हुआ. डॉक्टर ने बताया कि वह जिस इलाके में रह रहे हैं उसकी वजह से ही बच्चे को ऐसी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है और अगर वह यहीं रहते रहे, तो परेशानी बिगड़ सकती है. सुयश और आकांक्षा ने दिल्ली छोड़ कर बैंगलुरु ऑफिस में ट्रांसफर का मन बना लिया है. उनका कहना है कि इस शहर ने हमें बहुत कुछ दिया है लेकिन अपनी बेटी की कीमत पर अपना करियर हमें मंजूर नहीं है.

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हवा में मौजूद हैं ये आठ विलेन

1. PM10 :  पीएम का मतलब होता है पार्टिकल मैटर. इनमें शामिल है हवा में मौजूद धूल, धुंआ, नमी, गंदगी आदि जैसे 10 माइक्रोमीटर तक के पार्टिकल. इनसे होने का वाला नुकसान ज्यादा परेशान करने वाला नहीं होता.

2. PM2.5 : 2.5 माइक्रोमीटर तक के ये पार्टिकल साइज में बड़े होने की वजह से ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं.

3. NO2 : नाइट्रोजन ऑक्साइड, यह वाहनों के धुंए में पाई जाती है.

4. SO2 : सल्फरडाई ऑक्साइड गाड़ियों और कारखानों से निकलने वाले धुंए से निकल कर फेफड़ों को काफी नुकसान पहुंचाता है.

5. CO : कार्बनमोनो ऑक्साइड, गाड़ियों से निकल कर फेफड़ों को घातक नुकसान पहुंचाता है.

6. O3 : ओजोन, दमे के मरीज और बच्चों के लिए बहुत नुकसानदेह

7. NH3 : अमोनिया, फेफड़ों और पूरे रेस्पिरेटरी सिस्टम के लिए खतरनाक

8. Pb : लेड, गाडियों से निकलने वाले धुंए के आलावा मेटल इंडस्ट्री से भी निकल कर यह लोगों की सेहत को नुकसान पहुंचाने वाला सबसे खतरनाक मेटल हैं.

इन सबको औसत 24 घंटे तक नापने के बाद एक इंडेक्स तैयार किया जाता है. हमारे आसपास की हवा को नापने के लिए देश की सरकार ने एयर क्वॉलिटी इंडेक्स नाम का एक मानक तय किया है. इसके तहत हवा को 6 कैटगिरी में बांटा गया है.

– अच्छा (0-50)

– संतोषजनक (50-100)

– हल्की प्रदूषित (101-200, फेफडों, दमा और हार्ट पेशंट्स के लिए खतरनाक)

– बुरी तरह प्रदूषित (201-300, बीमार लोगों को सांस लेने में तकलीफ हो सकती है)

– बहुत बुरी तरह प्रदूषित (301-400, आम लोगों को सांस की बीमारी की शिकायत हो सकती है)

– घातक रूप से प्रदूषित (401-500, हेल्दी और बीमार दोनों ही तरह के लोगों के लिए खतरनाक)

घर का प्रदूषण

– किचन में लगे वेंटिलेशन फैन को देखें. अगर उस पर ज्यादा कालिख जम रही है तो जान जाएं कि किचन में हवा नुकसानदायक स्तर तक बढ़ चुकी है.

– एसी का फिल्टर और पीछे की तरफ की वेंट में अगर ज्यादा धूल या कालिख जमा हो रही है तो यह इस बात की ओर इशारा है कि घर बुरी हवा के निशाने पर है.

– बिजी हाईवे या सड़कों के किनारे बने मकान, कारखानों के करीब बने मकानों में स्वाभाविक तरीके से धूल और मिट्टी के साथ कार्बन पार्टिकल पहुंच जाते हैं.

क्या करें

– किचन में इलेक्ट्रॉनिक चिमनी लगवाएं

– किचन में बेहतर वेंटिलेशन रखें

– अगर घर के आसपास बिजी रोज या कारखाने हों तो खिड़की दरवाजों को हैवी ट्रैफिक के वक्त बंद रखें. इससे भले ही पूरा बचाव न हो लेकिन धूल-मिट्टी कम से कम घर में घुस पाएगी.

स्मॉग

स्मॉग शब्द स्मोक और फॉग से मिल कर बना है. मतलब यह कि जब वातावरण में मौजूद धुंआ फॉग के साथ मिल जाता है तब स्मॉग कहलाता है. जहां गर्मियों में वातावरण में पहुंचने वाला स्मोक ऊपर की ओर उठ जाता है, वहीं ठंड में ऐसा नहीं हो पाता और धुंए और धुंध का एक जहरीला मिक्चर तैयार होकर सांसों में पहुंचने लगता है. स्मॉग कई मायनों में स्मोक और फॉग दोनों से ज्यादा खतरनाक होता है.

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कैसे बचें

– बीमार हों या हेल्दी, हो सके तो स्मॉग में बाहर न निकलें. अगर निकलना ही पड़े तो मास्क लगा कर निकलें.

– सुबह के वक्त काफी स्मॉग रहता है. इसकी वजह अक्सर रात के वक्त वातावरण में जमा धुंए का न छंट पाना होता है जो सुबह की धुंध में मिल कर स्मॉग बना देता है. – सर्दियों में ऐसा अक्सर होता है इसलिए बेहतर होगा भोर (5-6 बजे) की बजाय धूप निकलने के बाद (तकरीबन 8 बजे) वॉक पर जाएं.

– सर्दियों में जहां एयर पल्यूशन ज्यादा रहता है वहीं लोग पानी भी कम पीते हैं. यह खतरनाक साबित होता है. दिन में तकरीबन 4 लीटर तक पानी पिएं. प्यास लगने का इंतजार न करें कुछ वक्त के बाद 1-2 घूंट पानी पीते रहें.

– घर से बाहर निकलते वक्त भी पानी पिएं. इससे शरीर में ऑक्सीजन की सप्लाई सही बनी रहेगी और वातावरण में मौजूद जहरीली गैसे अगर ब्लड तक पहुंच भी जाएंगी तो कम नुकसान पहुंचा पाएंगी.

– नाक के भीतर के बाल हवा में मौजूद बड़े डस्ट पार्टिकल्स को शरीर के भीतर जाने से रोक लेते हैं. हाईजीन के नाम पर बालों को पूरी तरह से ट्रिम न करें. अगर नाक के बाहर कोई बाल आ गया है तो उसे काट सकते हैं.

– बाहर से आने के बाद गुनगुने पानी से मुंह, आंखें और नाक साफ करें. हो सके तो भाप लें.

– अस्थमा और दिल के मरीज अपनी दवाएं वक्त पर और रेग्युलर लें. कहीं बाहर जाने पर दवा या इन्हेलर साथ ले जाएं और डोज मिस न होने दें. ऐसा होने पर अटैक पड़ने का खतरा रहता है.

– साइकल से चलने वाले लोग भी मास्क लगाएं. चूंकि वे हेल्मेट नहीं लगाते इसलिए उनके फेफड़ों तक बुरी हवा आसानी से पहुंच जाती है.

इन लक्षणों के होते ही ध्यान दें

– सांस लेने में तकलीफ होने पर या सीढ़ियां चढ़ते या मेहनत करने पर हांफने लगने पर

– सीने में दर्द या घुटन महसूस होने पर

– 2 हफ्ते से ज्यादा दिनों तक खांसी आने पर

– 1 हफ्ते तक नाक से पानी या छींके आने पर

– गले में लगातार दर्द बने रहने पर

इनको जरा बचा कर रखें

– 5 साल से कम बच्चों की इम्युनिटी काफी कमजोर होती है इसलिए उन्हें एयर पल्युशन से रिस्क ज्यादा होता है. इसलिए सर्दियों में उन्हें सुबह वॉक के लिए न ले जाएं.

– अगर बच्चे स्कूल जाते हैं अटेंडेंट्स से रिक्वेस्ट कर सकते हैं कि बच्चों को मैदान में खिलाने की बजाए इनडोर ही खिलाएं.

– धूल भरी और भारी ट्रैफिक वाली मार्केट्स में बच्चों को ले जाने से बचें.

– टू वीलर में बच्चों को लेकर न निकलें.

– बच्चों के कार में बाहर ले जाते वक्त शीशे बंद रखें और एसी चलाएं.

– बच्चों को भी थोड़ी-थोड़ी देर पर पानी पिलाते रहें जिससे शरीर हाइड्रेट रहे और इनडोर पल्युशन से होने वाला नुकसान भी कम हो.

– बच्चे जब बाहर से खेल कर आएं तो उनका भी मुंह अच्छी तरह से साफ करें.

– उम्रदराज लोगों को बिगड़ती हवा काफी परेशान कर सकती है.

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– प्रदूषण स्तर बढ़ने पर बाहर जाने से बचें.

– धूप निकलने के बाद ही घर से बाहर निकलें. धूप निकलने पर हवा में प्रदूषण स्तर नीचे आने लगता है.

– अगर किसी बीमारी की दवाएं ले रहे हैं तो लगातार लेते रहें. ऐसा न करने पर हालत खराब हो सकती है.

– सर्दी के मौसम में ज्यादा एक्सरसाइज (ब्रिस्क वॉक या जॉगिंग आदि) न करें.

– सर्दियों में अगर बाहर निकलना ही पड़े तो अच्छी क्वॉलिटी का मास्क लगा कर निकलें.

– टू व्हीलर या ऑटो में सफर की बजाय टैक्सी या कंट्रोल माहौल वाले मेट्रो या एसी बसों में ही यात्रा करें.

प्रदूषण से बचाना सामूहिक जिम्मेदारी

बढ़ता प्रदूषण, कूड़े के ढेर, बदबू, नालियों का बंद होना,  सड़कों पर बेतहाशा भीड़ पर लोग अकसर गुस्सा होते हैं पर वे भूल जाते हैं कि वे ज्यादातर खुद ही इस के जिम्मेदार हैं. औरतें और ज्यादा, क्योंकि घरों का कूड़ा वे ही इधरउधर फेंकती रहती हैं.

जब से मशीनों की सहायता से तरहतरह की चीजें सस्ते में बनाना आसान हुआ है, लोगों में खरीदारी की होड़ लग गई है. दिल्ली का करोलबाग हो या चेन्नई का टी नगर, खरीदारों से भरा होता है और वहां न गाडि़यां खड़ी करने की जगह बचती है, न सामान रखने की.

यह सामान अंत में घरों में पहुंचता है जहां और जगह और जगह का शोर मचता रहता है. नई अलमारियां बनती हैं, अलमारियों के ऊपर ओवरहैड कपबर्ड बनते हैं. कौरीडोरों में लौफ्ट बनते हैं. उन में ठूंसठूंस कर सामान रखा जाता है पर फिर भी रोना रोया जाता है कि जगह कम है.

दूसरी ओर न इस्तेमाल किया या थोड़ा इस्तेमाल किया सामान फालतू में कोनों में सड़ कर कूड़े के ढेरों को बढ़ाता है और शहरी रोते हैं कि शहर और आसपास का पर्यावरण गंदा हो रहा है.

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आर्थिक उन्नति के नाम पर बेमतलब में इजिप्ट के पिरामिड या दिल्ली की कुतुब मीनार बनाना जरूरी नहीं है. लोगों को मौसम से बचाने के लिए सुविधाजनक घर चाहिए, जहां दम न घुटे पर जब उन में सामान भर दिया जाएगा तो वे ही कबाड़खाना बन जाएंगे जो वे घर ही घर का पर्यावरण खराब करते हैं, जो बाहर के खराब पर्यावरण से भी ज्यादा खतरनाक  होताहै.

अमेरिकी गायिका मैडोना ने तय किया है कि वह कुछ नहीं खरीदेगी. सालभर तक कोविड ने इस में हैल्प की कि लौकडाउन हो गया, पार्टियां बंद हो गईं. अब तो आदत हो गई है कि 3-4 जोड़ी कपड़े रखो, धोधो पहनो.

महात्मा गांधी का सामान न के बराबर था और वे 100 करोड़ लोगों के दिलों पर राज करते थे, 1-1 पिन बचा कर रखते थे.

अगर दुनिया को प्रदूषण से बचना है तो घर का, बच्चों का, खुद का व औरों का सामान न खरीदें. पुराने से काम चलाएं. जब तक कोई चीज खराब न हो, बदलें नहीं. उत्पादकों से कहें कि हम तो ‘दादा खरीदे पोता बरते’ वाला सामान चाहते हैं. यह बनाया जा सकता है और बनाना आसान है.

उत्पादक समझ गए हैं कि लोगों में नए की ललक है, इसलिए थोड़ा सा बदलाव कर के नया, अब शक्तिशाली, ‘अब नए के फीचरों के साथ’ के शब्दों का धुआंधार इस्तेमाल करते हुए प्रचार करते हैं क्योंकि उन्हें मुनाफे से मतलब होता है, उन से जो प्रदूषण फैल रहा उस की चिंता नहीं.

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उत्पादक, कंपनियां, बिजली घर, पैट्रोल रिफाइनरियां प्रदूषण का कारण नहीं, प्रदूषण का कारण सीधेसादे घर के लोग हैं, वहां रहती औरतें हैं, जिन की अलमारियों में सामान ठूंसठूंस कर भरा है, जो हर रोज ड्रम भर कर सामान फेंकते हैं. सब से ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले को देखना है तो दूर न जाइए, बस शीशे के सामने खड़े हो जाएं, दिख जाएगा.

National Environment Control Day: वायु प्रदूषण पर दें ध्यान 

विश्व में प्रदूषण एक साइलेंट किलर बन चुका है. इससे हमारे सारे प्राकृतिक पदार्थ नष्ट हो रहे है. भारत में इसे हर साल 2 दिसम्बर को रास्ट्रीय पर्यावरण नियंत्रण दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसको मनाने का उद्देश्य 2 और 3 दिसम्बर साल 1984 की रात को भोपाल में मिथाइल आइसोसाइनाइट गैस के रिसाव से, त्रासदी के शिकार लोगों को याद करना है. इसमें लगभग 3787 लोग मारे गए थे और लाखों लोग प्रभावित भी हुए थे. इस त्रासदी का प्रभाव आज भी जन्म लेने वाले बच्चों में पाया जाता है. वे अपंग पैदा हो रहे है.

इसे हर साल मनाने का खास उद्देश्य लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता फ़ैलाने से है, क्योंकि पर्यावरण प्रदूषण से कई बीमारियाँ आज पैर पसार रही है, जो चिंता का विषय है. इस बारें में कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल के पल्‍मनरी एवं स्‍लीप मेडिसिन कंसल्‍टेंट डॉ. (कर्नल) एस पी राय कहते है कि स्वच्छ वायु, स्वास्थ्य के लिए मूलभूत जरुरत है और वायु प्रदूषण विभिन्‍न गंभीर तरीकों से आज स्‍वास्‍थ्‍य को प्रभावित कर रहा है. ओजोन जैसे प्रदूषक तत्‍व लोगों की सांस में जलन पैदा करते है, अस्‍थमा और सीओपीडी के लक्षण बढ़ाते है साथ ही फेफड़ा व हृदय रोग पैदा करते है. 

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असल में वायु प्रदूषण, प्रमुख रूप से उद्योगों, मोटर वाहनों, एवं थर्मोइलेक्ट्रिक पावर प्‍लांट्स से निकलने वाली तथा बायोमास ईंधन के जलने से पैदा होने वाली गैसों और पार्टिकुलेट मैटर (छोटे कणों) का मिश्रण है. पतझड़ और जाड़े के महीनों में, खेतों में बड़े पैमाने पर जलायी जाने वाली पराली, जो यांत्रिक जुताई का एक किफायती विकल्‍प है, इससे धुंआ, धुंध और सूक्ष्‍म-कणीय प्रदूषण फैलता है. धातुएं एवं फ्री रेडिकल्‍स जैसे वायु प्रदूषक, फेफड़े के वायु नालों और वायु कोष को नुकसान पहुंचाते है, जहां ऑक्‍सीजन और कार्बन डाइ-ऑक्‍साइड का आदान-प्रदान होता है. बच्‍चे, बुजुर्गों और यूथ, जो किसी प्रकार की क्रोनिक अस्‍थमा, सीओपीडी, फाइब्रोसिस डायबिटीज और हृदय रोग जैसी बीमारियों से पीडि़त है, उन लोगों पर वायु प्रदूषण के प्रभाव का खतरा अधिक होता है. 

विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन भी स्‍वास्‍थ्‍य को प्रभावित करने वाले चार वायु प्रदूषकों पर जोर देता है, पार्टिकुलेट मैटर, नाइट्रोजन डाइ-ऑक्‍साइड, सल्‍फर डाइ-ऑक्‍साइड और ओजोन. इन चार प्रदूषकों पर जोर देने का उद्देश्‍य वायु की गुणवत्‍ता की सामान्‍य स्थिति पर नजर रखना है. दिल्‍ली और एनसीआर उन क्षेत्रों में शामिल है, जहां वायु की गुणवत्‍ता सबसे खराब है, जहां वर्ष 1999 के बाद से दिवाली के दौरान हर नवंबर में यह गुणवत्‍ता स्‍तर पीएम 2.5 और पीएम 10 तक पहुंच जाता है. 

हाउसहोल्‍ड एयर पॉल्‍यूशन (एचएपी), जिसे इनडोर एयर पॉल्‍यूशन (आईएपी) के रूप में भी जाना जाता है, इसका प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों के लिए गंभीर होता है, जो चिंता का विषय है, क्‍योंकि वहां की यह अधिकांश आबादी खाना पकाने एवं स्‍पेस हीटिंग के लिए परंपरागत बायोमास पर निर्भर है. साथ ही रोशनी के लिए केरोसीन या अन्‍य तरल ईंधनों को उपयोग में लाते हैं, जिनसे एचएपी का लेवल बढ़ने का अधिक खतरा होता है. वायु प्रदूषण को कम करने के उपाय निम्न है,

  • धुंआ करने से बचे और धूम्रपान बंद करें, 
  • पुराने कुक स्‍टोव्‍स की जगह स्‍वच्‍छ कुक स्‍टोव्‍स का प्रयोग करें,
  • डीजल ट्रांसपोर्ट से होने वाले प्रदूषण को कम करने की कोशिश करें, 
  • बायोमास और जीवाश्‍म ईंधनों को खुले में न जलाएं,
  • फसलों की पराली जलाने से बचें,
  • लिक्विड पेट्रोलियम गैस और बिजली के साथ-साथ बायोगैस एवं एथेनॉल का प्रयोग करें, जो स्‍वच्‍छ ऊर्जा के कुछ विकल्‍प आज प्राप्त है,
  • ड्राइविंग की जगह कारपूलिंग, सार्वजनिक परिवहन, बाइकिंग और पैदल चलने की आदत बनाएं,
  • प्‍लास्टिक का कम से कम उपयोग करें.

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इसके आगे डॉ. एस. पी. राय कहना है कि कुछ सावधानियां अपनाए जाने से व्यक्ति कई बिमारियों से खुद को सुरक्षित रख सकता है, कुछ बातें निम्न है,

  • लोगों को चाहिए कि वो जितना हो सके, उतना अधिक घर पर रहें और घर से काम करने की कोशिश करें, अधिकतम वायु प्रदूषण के समय में अधिक यातायात वाली जगहों से दूर रहकर ही व्‍यायाम करें,
  • अपने घर से फफूंद, धूल और पालतू पशुओं के रोवें को यथासंभव दूर रखें,
  • समय से टीकाकरण कराएं, हर वर्ष फ्लू का टीका लें और यदि आपकी उम्र 65 वर्ष और इससे अधिक है, तो निमोनिया का भी टीका लें,
  • बाहर निकलने पर हमेशा मास्‍क का प्रयोग करें. 

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