Corona के बाद बढ़े जोड़ों के दर्द के मामले, पढ़ें खबर

इन दिनों जोड़ों के दर्द के बढ़ते मामले कोई नई और असाधारण बात नहीं है लेकिन कोरोना काल में युवा और अधेड़ उम्र के लोगों में भी यह समस्या तेजी से बढ़ी है. कोविड के कारण लोगों का संपूर्ण स्वास्थ्य खतरे में पड़ गया है क्योंकि इस संक्रमण से प्रभावित व्यक्ति होम क्वारंटीन या अस्पताल में भर्ती होने के कारण लंबे समय तक निष्क्रिय हो जाता है. इसके अलावा वायरस के दुष्प्रभावों के कारण भी मांसपेशियों और जोड़ों में कमजोरी के मामले बढ़े हैं.

डॉ. अखिलेश यादव, सीनियर हिप एंड नी रिप्लेसमेंट सर्जन, सेंटर फॉर नी एंड हिप केयर, गाजियाबाद के अनुसार, कोविड की परेशानियों के साथ पारिवारिक पृष्ठभूमि, उम्र संबंधी परेशानियां, मोटापा, शारीरिक निष्क्रियता, रूमेटोइड अर्थराइटिस, ऑस्टियोपोरोसिस तथा सूजन संबंधी बीमारियों जैसे संक्रमण समेत कई कारण भी जोड़ों के दर्द के मामले बढ़ रहे हैं. विटामिन डी3 और बी12 समेत अन्य पोषक तत्वों की कमी के कारण जोड़ों को मजबूती देने वाली हड्डियों और कार्टिलेज पर बुरा असर पड़ता है.

पहले से किसी तरह की समस्या से ग्रस्त व्यक्तियों में भी कोविड के बाद के दौर में जोड़ों का दर्द, सूजन, मांसपेशियों और जोड़ों में अकड़न, चलने—फिरने में दिक्कत आदि की आशंका रहती है. इस समस्या की गंभीरता जहां आंशिक से लेकर मामूली तक होती है, वहीं बहुत से मरीज लॉकडाउन के दौरान इस तरह की गंभीर और बार—बार आने वाली समस्या की शिकायत लेकर आए हैं.

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प्रोफेशनल्स के बीच जोड़ों के दर्द के मामलों का एक बड़ा कारण घर से काम करना भी बन रहा है. वैसे तो ज्यादातर कामकाजी प्रोफेशनल्स हमेशा घर से काम करने का ख्वाब देखते हैं लेकिन लॉकडाउन के दौरान काम करते वक्त गलत तरीके से बैठकर काम करने, आरामदेह स्थिति में काम करने के कारण लंबे समय तक जोड़ों संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं.

जंक और फ्रोजन फूड पर बढ़ती निर्भरता अर्थराइटिस और जोड़ों के असह्य होते दर्द के मामले बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा रही है. हाई—फैट जंक फूड में मौजूद बैक्टीरिया शरीर में सूजन बढ़ाते हैं जिससे हमारे शरीर की प्रतिरोधक प्रणाली (इम्युन सिस्टम) घुटने जैसे जोंड़ों की कार्टिलेज और कोशिकाओं पर ही हमला करने लगती है जिससे काफी नुकसान होता है और खासकर संवेदनशील अंगों पर ज्यादा असर पड़ता है.

इस समस्या के साथ मोटापा, व्यायाम का अभाव, बोन डेंसिटी, पेशे से जुड़ी इंजुरी, कामकाज का खराब माहौल जैसे ठीक होने वाले और ठीक नहीं होने वाले कई रिस्क फैक्टर्स जुड़े हुए हैं. दर्द के कारण शारीरिक क्षमता कम होने लगती है और इससे जीवन की गुणवत्ता कमजोर हो जाती है तथा दूसरी बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है.

हालांकि नियमित व्यायाम करने बैठने या झुकने आदि जैसे प्रक्रियाओं में सुरक्षित मानकों को अपनाने जैसे सक्रिय लाइफस्टाइल बनाए रखने से बहुत सारी समस्याओं से बचा जा सकता है.
कई वर्षों से सक्रिय लाइफस्टाइल अपनाने वाले जो लोग कोविड महामारी के दौरान निष्क्रिय हो गए हैं, उनके संपूर्ण स्वास्थ्य पर असर पड़ा है. बैठने—सोने की खराब मुद्रा या आराम करने के लिए लेट जाने और शरीर को बहुत कम सक्रिय रखने के कारण शरीर अकड़ जैसा जाता है. इस अकड़न और इससे जुड़ी समस्याओं से बचने तथा लंबे समय तक पूरी तरह से स्वस्थ जोड़ बनाए रखने के लिए खुद को सक्रिय रखना ही सबसे अच्छा उपाय है. हल्का—फुल्का व्यायाम भी दर्द से छुटकारा दिलाने में मददगार हो सकता है.

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बच्चों में पोस्ट कोविड, मल्टीसिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम (MIS-C) को न करें नजरंदाज

5 साल के तरुष को एक रात तेज बुखार आया, साथ में पेट दर्द भी था, उसकी माँ सरोज शेलार खुद एक डॉक्टर है, इसलिए कुछ दवाइयां दी,लेकिन कुछ फायदा बच्चे को नहीं हो रहा था. वह समझ नहीं पा रही थी, क्या करें. उन्होंने बेटे को पास के एक अस्पताल ले गयी और तुरंत भर्ती करवाई. वहां बच्चों के डॉक्टर ने उसकी जांच की और बताई कि उसे टाइफाइड हुआ है और उसी हिसाब से उन्होंने दवाई देनी शुरू की, लेकिन तरुष का बुखार उतर नहीं रहा था. अगले दिन तेज बुखार के साथ उसका पेट फूलने लगा, आँखे लाल हो गयी, मुंह में छाले और बदन पर लाल-लाल रैशेज दिखाई पड़ने लगी.

उसकी माँ डॉ. सरोज ने पेडियाट्रिशन को बुलाकर कहा कि उन्हें इलाज का प्रोसेस सही नहीं दिख रहा है, क्योंकि बेटे ने अब खाना पीना भी छोड़ दिया है,इसलिए आप इस बच्चे को सही इलाज़ दें या फिर वह कहीं दूसरे अस्पताल में ले जाएगी. इस बात से घबराकर डॉक्टर ने बच्चे की आरटीपीसीआर चेक किया,तो कोविड निगेटिव निकला, लेकिन‘कोविड एंटीबॉडी टेस्ट’ पॉजिटिव आया. इतनी देर में बच्चे की हालत और अधिक ख़राब हो गयी, उसे आई सी यू में रखा गया. डॉ. सरोज अगले दिन दूसरे अस्पताल में बेटे को ले गयी, वहां डॉक्टर ने बताया कि ये पोस्ट कोविड में होने वाली बीमारी है, जबकि तरुष को कोविड नहीं हुआ था. दो दिन बाद बच्चे को डिस्चार्ज मिल गया. करीब एक महीनेकी दवा के बाद तरुष ठीक हो सका. यहाँ ये समझना जरुरी है कि तरुष की माँ डॉक्टर होने की वजह से बीमारी का इलाज सही नहोने को समझ पायी, लकिन आम इंसान के लिए इस बीमारी को समझना नामुमकिन था.

क्या है मल्टीसिस्टम इन्फ्लेमेटरीन सिंड्रोम (MISC) 

असल में पोस्ट कोविड की ये बीमारी खासकर बच्चों में अधिक देखी जा रही है. इसकी वजह बच्चों का एसिम्पटोमेटिककोविड होने से है, क्योंकि अधिकतर पेरेंट्स ने खुद को कोविड होने पर किसी रिश्तेदार के पास बच्चे को भेज देते है. इससे बच्चे में कोविड हुआ है या नहीं समझना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि बच्चे को इस बारें में पता नहीं है. पेरेंट्स ने भी किसी प्रकार के लक्षण बच्चे में नहीं देखा है. इस बारें में पुणे की मदरहुड हॉस्पिटल की कंसलटेंट नियोनाटोलोजिस्ट एंड पेडियाट्रिशन डॉ. तुषार पारिख कहते है कि कोरोना की ये बीमारी मल्टीसिस्टम इन्फ्लेमेटोरी सिंड्रोम(MIS)  बच्चों में कोरोना होने के बाद 2 सप्ताह से लेकर 5 या 6 सप्ताह बाद में होता है. कई बार कोरोना संक्रमण एसिम्पटोमेटिकहोता है,ऐसे में बच्चे को कोरोना संक्रमण होने पर बुखार खासी होती है और कुछ दिनों में ठीक भी हो जाता है. 2 सप्ताह बाद फिर से बुखार आने लगता है. तब पेरेंट्स घबरा जाते है. मल्टीसिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम (MIS-C) की बीमारीके लक्षण निम्न है,

  • बच्चे को तेज बुखार आना,
  • पेट में दर्द होना,
  • शरीर में रैशेज का आना,
  • मुंह के अंदर अल्सर हो जाना,
  • जीभ का लाल होना,
  • आँखों का लाल हो जाना आदि .

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इसके अलावा शरीर के सभी अंगों में इन्फ्लेमेशन यानि सूजन आ जाती है, जिससे बच्चा सुस्त हो जाता है. कभी- कभी हार्ट में सूजन की वजह से ब्लड सर्कुलेशन बाधित होती है, जिससे बच्चे को चक्कर आना और दूसरे ऑर्गन भी प्रभावित हो जाता है. ऐसे में बच्चे को हॉस्पिटल में भर्ती करवाना पड़ता है. कई बार हार्ट की कोशिकाओं में सूजन आ जाने से सीने में दर्द, सांस लेने में कठिनाई हो सकती है. कई बार फेफड़े पर भी इसका असर देखा गया है. ये आजकल कोविड की वजह से बहुत कॉमन हो चुका है, अधिकतर बच्चे पेट दर्द और तेज बुखार के साथ आते है और डॉक्टर इसे गैस्ट्रोएन्टराइटिस, कोलाईटिस, एपेंडेसाईटिस आदि समझकर इलाज करते है, जिससे बच्चे की हालत गंभीर हो जाती है और कई बार बच्चे की  जान बचाना भी मुश्किल हो जाता है. अपने एक अनुभव के बारें में डॉ. तुषार का कहना है कि 7 साल की एक लड़की को एपेंडिक्स की बिमारी कहकर मेरे पास ऑपरेशन के लिए भेजी गयी थी,सोनोग्राफी किया तो कुछ नहीं था, लेकिन MIS का टेस्ट पॉजिटिव आया. इसलिए जब भी बच्चा पेट दर्द के साथ बुखार लेकर आये, तो उसे MIS की जांच करना जरुरी है, ताकि पोस्ट कोविड की जटिलताओं को समय रहते पहचान लिया जाय. 24 घंटे से अधिक किसी बच्चे में पेट दर्द और बुखार है, तो तुरंत डॉक्टर के पास जाएँ.

मुश्किल है समझना

ये बीमारी पहले नहीं देखी जा रही थी, इसलिए डॉक्टर्स को भी समझने में देर हुई, लेकिन कोविड पीरियड में बहुत सारे बच्चों में ये बिमारी देखी गयी. ये रोग कावासाकी नामक एक बिमारी से थोडा मेल खाता है, इसमें भी मुंह, जीभ लाल होना, रैशेज होना, बुखार आना आदि रहता है, लेकिन कावासाकी बीमारी की वजह किसी को आजतक पता नहीं चल पाया  है. कोरोना में ही इसे देखा गया. कोरोना काल में इसे ‘कावासाकी लाइक इलनेस’ का नाम भी दिया गया है.मल्टीसिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम (MIS-C) की ये बीमारी भी कई तरह की होती है,मसलन कावासाकी लाइक प्रेजेंटेशन, इसमें माइल्ड, मॉडरेट और सीवियर किसी भी प्रकार का हो सकता है.

रिस्क फैक्टर

वैसे मल्टीसिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम (MIS-C)  की ये बिमारी 1 प्रतिशत से भी कम बच्चों में होता है, लेकिन कोरोना की वजह से ये अधिक दिखाई पड़ रहा है,इसमें 12 साल से ऊपर के बच्चे अधिक कॉमन, 6 से 12 साल के बच्चे में लेस कॉमन और 6 साल से नीचे बच्चों में बहुत कम है.

सही जाँच है जरुरी

इसके आगे डॉ.तुषार कहते है कि शुरुआत में डॉक्टर्स को भी इस बिमारी की जानकारी नहीं थी,लेकिन अब रोगी देखकर समझ जाते है. क्लिनिकलजांच से इसे पता लगाया जाता है.अगर बच्चे को बुखार है और MIS-C की कोई लक्षण नहीं है, एक से दो दिन तक फीवर की दवा देने के बाद भी बुखार न उतरने पर तुरंत बच्चों के डॉक्टर के पास ले जाए. क्लिनिकल जाँच के अलावा आरटीपीसीआर और कोविड एंटीबॉडी टेस्ट किया जाता है. बच्चे को अगर कोविड हुआ है, तो पेरेंट्स को बच्चे के पोस्ट कोविड के लक्षण है या नहीं, उसका ध्यान रखने की जरुरत है.डॉक्टर्स को भी इस बारें में जानकारी होनी चाहिए, क्योंकि ऐसे केसेज में कोविड एंटीबॉडी ब्लड टेस्ट करने से तुरंत पता लग जाता है.

सावधानियां

मल्टीसिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम(MIS-C) का इलाज हो जाने पर केवल एक महीना सावधानी बरतना पड़ती है, क्योंकि शरीर के अंदर आये सूजन को ठीक करने के लिए करीब एक महीने तक दवा लेनी पड़ती है. इसमें स्टेरॉयड और तकलीफ ज्यादा होने पर आईवी इंजेक्शन के द्वारा इम्यूनोग्लोबुलिन की दवा देनी पड़ती है. डी डायमर की लेवल अधिक होने पर भी एडवांस दवा की इंजेक्शन देनी पड़ती है. अभी तक मैंने 38 बच्चों की चिकित्सा अप्रैल और मई में किये है. इन महीनों में सबसे अधिक बच्चे इससे प्रभावित थे. सभी बच्चे सीरियस नहीं होते. मॉडरेट और सीवियर होने पर ही उन्हें स्टेरॉयड दिया जाता है. 10 बच्चों में से तक़रीबन 3 बच्चों में मल्टीसिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम पाया गया है. समय से आने पर इस बीमारी का इलाज हो सकता है, लेकिन कई बार ये बीमारी सीरियस हो सकती है, जिसमें हाई कार्डिएक सपोर्ट, ब्लड प्रेशर की दवा आदि देने की आवश्यकता होती है.इस बीमारी से ठीक होने के कुछ सालों बाद हार्ट की कोरोनरी ब्लड वेसेल्स में अगर सूजन आ गया है, तो उन बच्चों को थोड़े अधिक दिनों तक ऑब्जरवेशन में रखना पड़ता है. उनके ब्लड में क्लोटिंग होने का खतरा रहता है, इसलिए लम्बे समय तक दवा लेना पड़ता है. कोरोनरी ब्लड वेसेल्स में सूजन से बाद में भी खून के थक्के उसमें जमा होने की वजह से हार्ट एटैक आ सकता है, इसलिए पहले 3 से 4 महीने के अंतर पर और बड़े होने पर साल में एक बार डॉक्टर की सलाह अवश्य लें. कावासाकी में भी कई बार बच्चों में हार्ट एटैक आ जाता है, लेकिन उसकी संख्या बहुत कम है.

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रहे सतर्क

पहली लहर में बुजुर्ग, जिन्हें अब वैक्सीन लग चुका है, दूसरी लहर में यूथ को कोविड अधिक हुआ, जबकि उन्हें भी अब वैक्सीन की एक डोज दिया जा चुका है,इसलिए तीसरी लहर में बच्चे अधिक प्रभावित होंगे, ऐसा माना जा रहा है, लेकिन कोई ठोस वैज्ञानिक सबूत नहीं मिला है. सावधान रहना आवश्यक है, ताकि बच्चे कोविड से अधिक प्रभावित न हो. पेरेंट्स के लिए मेरा यही मेसेज हैकि कोरोना अभी गया नहीं है. बड़े बच्चों को कोविड के सारे गाइडलाइन्स को फोलो कराएं और साथ में वजह भी क्लियर करें. इसके अलावा 18 साल से कम उम्र के बच्चों को फ्लू का इंजेक्शन दिलवाने की राय ‘कोविड टास्क फ़ोर्स’ ने दी है, क्योंकि इससे फ्लू सम्बंधित बिमारियां कम होगी और हेल्थकेयर पर बोझ भी कम होगा. हर बारिश के बाद वैसे भी फ्लू के केसेज बढ़ते है और पुणे में फ्लू की इंजेक्शन बच्चों को दिए जा रहे है. इसके अलावा परिवार के सभी वैक्सीनेटेड सदस्यों के बीच में बच्चा रहने पर बच्चा सुरक्षित रहता है. इसे ‘कोकून स्ट्रेटिजी’ कहा जाता है, इसे अपनाने की कोशिश करें.

पोस्ट कोविड में स्किन की देखभाल करना है जरुरी 

सुमन और उसके पूरे परिवार को कोविड हुआ. सभी घर पर क्वारेंटीन रहकर डॉक्टर की सलाह से दवाइयां ली और कुछ दिनों बाद सभी की रिपोर्ट निगेटिव आ गई, बच्चे से लेकर पति-पत्नी सभी कमजोरी महसूस करने लगे. थोड़े दिनों में वह भी ठीक हो गया, लेकिन सुमन के स्किन पर रैशेज होने लगे, जिसमें बहुत खुजली होने लगी. उन्होंने डॉक्टर से सलाह ली, तो पता चला कि ये पोस्ट कोविड का रिएक्शन है. डॉक्टर ने उन्हें कुछ दवाइयां और लोशन लगाने के लिए दिए, जिससे वह करीब एक महीने बाद में ठीक हो पायी. 

असल में कोविड महामारी की दूसरी लहर ने हर व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर बना दिया है, लेकिन वे लोग जो कोविड से बाहर निकले है, जो निगेटिव हो चुके है,  उन्हें कुछ महीनो तक कोविड के बाद साइड इफेक्ट देखने को मिला, खासकर त्वचा और हेयर की समस्या उनमें अधिक रहती है. इस बारें में अमृतसर की आर एम एस्थेटिक्स की सेलेब्रिटी डर्मेटोलोजिस्ट & बोटॉक्स स्पेशलिस्ट डॉ. अमीषा महाजन कहती है कि ये समस्या कोविड के 1 से 3 महीने बाद शुरू होता है, जिसमें हेयर फॉल ख़ास होता है. कुछ लोगों को कोविड के तुरंत बाद केशों के गिरने की वजह कोविड के दौरान ली गई दवाइयां हो सकती है. लेकिन एक महीना या 3 महीने के बाद हेयर फॉल पोस्ट कोविड में ही होता है. इसके अलावा कोविड के बाद त्वचा पर खुजली या रैशेज भी आने की संभावना रहती है, इसकी दो वजह है,

  • कोविड के वायरस की वजह से खुजली का होना,
  • पोस्ट कोविड में त्वचा ड्राई होने की वजह से खुजली होना. 

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ये भी सही है कि ड्राईनेस स्किन को अधिक प्रभावित करती है उसे कंट्रोल करना जरुरी है, कई लोगों को इससे बाद में एक्जिमा भी हो जाया करती है. अगर स्किन सम्बन्धी कोई बीमारी है, तो एंटीबेक्टेरियल साबुन का प्रयोग न करें, ये त्वचा के लिए बहुत ही कठोर होते है, अगर त्वचा में अधिक रैशेज हो, तो मुलायम साबुन या पुराने ज़माने के जैसे दूध या दही से भी नहा सकते है. कुछ गाइडलाइन्स पोस्ट कोविड से बचने के निम्न है,

हेयरफॉल 

जब शरीर कोविड या किसी घातक बीमारी का शिकार होता है, तो व्यक्ति बहुत तनावग्रस्त हो जाता है, जिसका प्रभाव बालों पर अधिक रहता है. वैज्ञानिक रूप से इसे टेलोगेन एफ्फ्लुवियम अर्थात शरीर में शॉक बीमारी की वजह से है, इससे सिर के बाल आसानी से झड़ने लगते है.ये केश अधिकतर गुच्छों में नहाने या बाल झाड़ने के वक्त गिरते है. ये लक्षण कोविड के 2 से 3 महीने बाद दिखती है. ये किसी भी व्यक्ति के लिए बहुत चिंता का विषय होता है, क्योंकि केशों का झड़ना, 6 से 9 महीने तक चलता रहता है, लेकिन अच्छी बात ये है कि बालों का फिर से उगना भी जारी रहता है. मेरे हिसाब से ऐसे समय में केशों पर तेल न लगायें, क्योंकि इससे कमजोर जड़ों से हेयर फिर से गिरने लगते है. बालों के लिए सप्लीमेंट्स और हेयर सीरम बहुत अच्छा होता है, जो मजबूत बाल ग्रो करने में सहायता करती है.   

अधिक ड्राईनेस 

कोविड के बाद स्किन का ड्राई होना बहुत ही कॉमन है. त्वचा रुखी होने के साथ-साथ उससे पपड़ी भी निकल सकती है, ऐसे में हमेशा मुलायम साबुन या क्लींजर के प्रयोग के साथ-साथ थिक मोयस्चराईजिंग क्रीम कम से कम दिन में 2 से 3 बार लगाने की जरुरत होती है, ताकि खुजली और रैशेज से जल्दी छुटकारा मिले. ड्राई स्किन में हमेशा खुजली अधिक होती है, लेकिन इसका सबसे बढ़िया इलाज गाढ़ा क्रीम और ओलिव आयल लगाना ही है, जो मोयास्चराईजर को अंदर से सील कर देती है. एंटी बेक्टेरियल साबुन, क्लींजर से दूर रहे, क्योंकि ये स्किन के लिए कठोर होती है. 

एक्ने का बढ़ना 

कोविड के बाद कील-मुहांसे और रोजेसिया बढ़ जाती है, इसके लिए डॉक्टर की सलाह लेकर एंटी-एक्ने मेडिसिन लें और क्रीम लगाते रहे, ताकि आपके कील-मुहांसे और रोजेसिया यानि गुलाबी पैच जो त्वचा पर होती है, वह पूरी तरह से ठीक हो सकें.

त्वचा का डार्क हो जाना 

यह एक कॉमन साइड इफ़ेक्ट है, जो कोविड वायरस के संक्रमण के बाद होती है और धीरे-धीरे अपने आप ठीक हो जाती है, लेकिन इसे जल्दी ठीक करने के लिए मोयस्चराईजर और माइल्ड डीपिगमेंटेशन क्रीम का प्रयोग करना अच्छा होता है. वैसे भी स्किन की डार्कनेस कम होने में महीनो लगते है. अधिक से अधिक रिच एंटी ऑक्सीडेंटस भोजन और स्किन सप्लीमेंट्स भी त्वचा के रंग को ठीक करने में मदद करती है. बहुत अधिक पिगमेंटेशन कोविड के दौरान दी गयी दवाइयों से भी हो सकती है. अगर आपकी पिगमेंटेशन ठीक नहीं हो रही है, तो किसी स्किन स्पेशलिस्ट डॉक्टर की सलाह लेकर मेडिसिन लेने की कोशिश करें.

इसके आगे डॉ.अमीषा कहती है कि कोविड के निगेटिव होने बाद कुछ न कुछ समस्या हमारे शरीर में आएगी और सबको ये समझना पड़ेगा, ऐसे में अगर कुछ विटामिन्स की जरुरत हो तो उसे भी लेना पड़ेगा. कोविड के दौरान विटामिन सी और जिंक के टेबलेट लोग लेते है. कोविड के बाद भी उसे कुछ समय लेने की सलाह दी जाती है. पोस्ट कोविड में मैंने सबसे अधिक हेयर फॉल देखा है. इसमें बाल गुच्छों में उतरते है. नहाते समय पूरी जाली हेयर से भर जाती है. कई बार लोग समझ भी नहीं पाते है कि कोविड की वजह से बाल झड़ रहे है. कई बार तीन महीने के बाद भी बाल झड़ने लगते है. ये समस्या पोस्ट कोविड के बाद अधिक देखा है. इसके अलावा  अगर किसी को स्किन की कोई बीमारी पहले थी, कोविड के बाद फिर से दिखाई पड़ सकती है. हेयर फाल को कंट्रोल करने में दो से तीन महीने लगते है. अच्छी बात यह है कि झड़ने वाले सारे बाल फिर से अच्छी तरह उग आते है. घबराने की जरुरत नहीं होती. ये बॉडी की एक रिएक्शन है, जो थोड़े दिनों में ठीक हो जाता है. केवल धैर्य की जरुरत होती है.

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 इसके अलावा कोविड के बाद चिल्ब्लैन्स यानि हाथ या पांव की उँगलियों में सूजन और लाली की वजह से खुजली होना, ये अधिकतर ठंडी के मौसम में अधिक ठण्ड से होता है. इसकी कोई दूसरी वजह न दिखने से समझ में आया कि ये पोस्ट कोविड का रिएक्शन है. ये समस्या बहुत कम लोगों में देखा गया है. अब इसका इलाज़ हो रहा है और चिंता की कोई वजह नहीं है. हेयर फॉल की समस्या 30 प्रतिशत लोगों में देखी  गयी. इस समय प्रोटीन रिच डाइट जिसमें कार्बोहाइड्रेट, नट्स, फ्रूट्स और फैट सब लेना जरुरी होता है.

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पोस्ट कोविड: डॉक्टर ने बताया कैसे रखें ख्याल

देश में ठण्ड और त्योहार का मौसम शुरू होते ही कोरोना के प्रति लोगों की लापरवाही देखने को मिली. जबकि ठण्ड, कोहरा और प्रदूषण ने कोरोना को और मजबूती देने का काम किया. दिल्ली में ठंड बढ़ने के साथ ही कोरोना केसेस बढ़ने लगे हैं. लोग अस्पतालों के लंबे-चौड़े खर्चों, डॉक्टर्स की लापरवाही के चलते बुखार, खांसी होने पर ना तो कोई कोरोना टेस्ट करवा रहे हैं और ना ही डॉक्टर के पास जा रहे हैं. वे घर में ही अलग कमरे में रहकर बुखार के लिए पैरासिटामॉल दवा का सेवन कर रहे हैं. साथ ही खांसी के लिए गर्म पानी का भांप ले रहे हैं. ऐसे में उनको कोरोना है या फ्लू इसका पता ही नहीं चल रहा है.

घर के अन्य लोग जो उनके कांटटैक्ट में हैं उनका बाहर के लोगों के बीच भी उठना बैठना है. जिसके चलते कोरोना को बढ़ने का अवसर मिल रहा है. कोरोना संक्रमित लोग हमारे आस-पास घूम रहे हैं और हमें पता ही नहीं है. वायरस हर इंसान की इम्यूनिटी पावर को देखकर हमला कर रहा है, किसी को कम तो किसी को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा है. इसलिए लॉकडाउन भले खत्म हो गया हो, ऑफिस जाना शुरू हो गया हो, मेट्रो, ट्रेन, बसों ने रफ्तार पकड़नी शुरू कर दी हो मगर ठण्ड के मौसम में कोरोना को लेकर हमें और ज्यादा सतर्कता और सावधानी बरतने की जरूरत है.

दिल्ली शहर में कोविड माहामारी की तीसरी लहर विकराल रूप ले चुकी है. इस आर्टिकल के माध्यम से डॉक्टर सुगंधा गुप्ता (संस्थापक व वरिष्ठ मनोचकित्सक दिल्ली माईंड क्लिनिक करोल बाग) हमें पोस्ट कोविड के बारे में पूरी जानकारी दे रहीं हैं.

क्या है कोविड की तीसरी लहर का कारण

– मौसम में बदलाव और प्रदूषकों में बढ़ोतरी – lockdown के बाद धीरे-धीरे खुलते व्यवसाय और बाजार
– त्योहारों का समय और शादियों के मुहूर्त
– pandemic fatigues यानी लंबे समय से नियमों में बंधे लोगों को छूट मिलने पर लापरवाही.

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इन बढ़ते आंकड़ों के साथ एक चीज समझनी बहुत जरूरी है और वह यह कि हम में से 60-70% लोग या तो कोविड से ग्रसित हो चुके हैं या फिर किसी कोविड पेसेंट के संबंध मे आ चुके हैं. जहां कई लोग हल्के फुल्के लक्षण आने पर भी बार-बार टेस्ट करा रहे हैं, वहीं कुछ मरीज ज्यादा बीमार होने के बावजूद भी सामाजिक बॉयोकट के डर से टेस्ट कराने से कतरा रहे हैं. तो कई लोग बिना डॉक्टर की सलाह के ही कोविड पॉजिटिव पेसेंट की पर्ची से दवाइयां खरीदकर खा रहे हैं. जिसका शरीर पर साइड इफेक्ट देखने को मिल रहा है. आपकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई हो या नेगेटिव, चाहे आप हॉस्पीटल रहकर आए हो या हों home quarantine में रहे हो, कुछ चीजों का विशेष ध्यान रखना जरूरी है.

शारीरिक स्वास्थय के लिए पोस्ट कोविड केयर

1. पौष्टिक, घर का बना आहार. तेल, चिकना, मीठा कम. प्रोटीन, फल, सलाद, जूस ज्यादा.
ओमेगा फेट्टी एसिड आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में कामगार है.

2. पूरी तरह से रिकवरी के लिए 6-7 की नींद जरूरी है.

3. व्यायाम करना बेहद जरूरी है. चाहे 15 मिनट की सूरज की रोशनी में सैर हो या कमरे में ऐरोबिक्स. कसरत आपकी मांसपेशियों में रक्त संचार बढ़ाने के साथ ही हड्डियों में कैलशियम, विटामिन डी के absorption को भी बढ़ाती है. जिससे हमारे बॉडी की स्टेमिना बढ़ने में मदद मिलती है.

4-मार्जरी आसन, भुजंगासन, अर्धचन्द्रासन और सूर्य नमस्कार) फेफड़ों और पूरे शरीर के स्वास्थय के लिए लाभ दायक हैं. मानसिक स्वास्थ्य शारीरिक के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान देना बेहद जरूरी है.

पिछले 3 से 4 महीने में कई ऐसे मरीज हमारे पास आए जिनकी कोविड रिपोर्ट नेगेटिव हुयए एक महीने से ज्यादा हो गया है या फिर उनके परिवार में कोई पॉजिटिव था लेकिन वे निगेटिव थे लेकिन इसके बावजूद ये लोग काफी डर और भय के साथ जूझ रहे हैं. ऐसे कई लोग मानसिक रोग के साथ सामने आ रहे हैं.

इनमें से प्रमुख हैं-

1. पेनिक डिसऑर्डर – अचानक बहुत तेज घबराहट होना. जिसमें छाती में दर्द , सांस फूलना, धड़कन बढ़ना, चक्कर, उल्टी, बेहोशी जैसा मह्सूस करना, लेकिन सभी जांच नॉर्मल आती है.

2. इन्सोम्नीया – नींद न आना, सोने मे डर लगना कि कहीं नींद में कुछ हो ना जाये, सोते-सोते डर कर नींद का खुल जाना और धड़कन, पसीने आना जैसे लक्षण होते हैं.

3. Somatization डिसऑर्डर – मन में बार-बार बीमारी का वहम आना, छोटे-छोटे मामूली लक्षण पर भी डर जाना, ज्यादा चिंता करना, गूगल पर बीमारी के लक्षण ढूंढना और बार-बार डॉक्टर्स से परामर्श लेना और टेस्ट कराना. वहीं रिपोर्ट नॉर्मल आने पर भी तसल्ली ना मिल पाना.

4. Depression/अवसाद- तनाव की वजह से उदासी, मायूसी, नकारात्मक विचार आना, काम की इच्छा ना करना, जल्दी थक जाना, चिड़चिड़ा मन रहना आदि. इसके अलावा कोविड ने कई और तरह की भी भावनात्मक और मानसिक तकलीफों को भी जन्म दिया है.

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मानसिक स्वास्थ्य के लिए पोस्ट कोविड केयर

-Covid की शारीरिक दूरी को सामाजिक दूरी ना समझें.
-6 फीट की उचित दूरी से ही अपने पड़ोसी, सब्जी वाले से बात करें.
– सोशल मीडिया का सही उपयोग करते हुए अपने परिवार और रिश्तेदारों से जुड़े रहें.
– Isolated, अकेले ना रहे.
अपनी रुचि के अनुसार किसी काम मे मन लगाएं.
कोई नई हॉबी सीखें.
– व्यायाम, पौष्टिक आहार, अच्छी नींद, योग पर भी ध्यान दें.
-बार-बार अपने शरीर पर, हल्के लक्षण पर अनावश्यक ध्यान ना दें.

हर 15 मिनट में oximeter पर ऑक्सीजन नापना, हर आधे घंटे में बुखार चेक करना, गूगल पर कोविड के बारे में लगातार पढ़ते रहना, इससे संबंधी न्यूज देखना, ये सब करने से बचें. अपनी दिनचर्या व्यस्त रखें. धीरे-धीरे घर के काम काज शुरु करें, खाली सोच में समय ना बिताएं. याद रखें, कोविड महामारी अभी भी हमारे बीच मे हैं और आने वाले समय मे हमें पूरी सावधानी बरतनी है, लेकिन इस सब के साथ एक अच्छी खबर ये भी है कि फाइजर कंपनी की vaccine शोध में 90% कामगार पाई गई है और जल्दी ही हमारे बीच आने की उमीद है. इसलिए सकारात्मक रहें और अपना ख्याल रखें.

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