REVIEW: जानें कैसी है हुमा कुरेशी की वेब सीरीज ‘महारानी’

रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताः नरेन कुमार और डिंपल खरबंदा

क्रिएटिव निर्देशकः सुभाष कपूर

निर्देशकः करण शर्मा

कलाकारः हुमा कुरेशी, सोहम शाह, अमित सियाल, प्रमोद पाठक व अन्य.

अवधिः लगभग सात घंटे, 45 से 52 मिनट की अवधि के दस एपीसोड

ओटीटी प्लेटफार्मः सोनी लिव

भारत में बिहार राज्य की गिनती सर्वाधिक पिछड़े राज्य के रूप में होती है. बिहार में गरीबी,  अशिक्षा, गुंडागर्दी, हिंसा, भ्रष्टाचार आदि का बोलबाला है. जातिगत हिंसा,  भेदभाव, वीर सेना व लाल सेना यानी कि नक्सलवाद के साथ ही राजनीति के जिस कुत्सित चेहरे के बारे में लोग सुनते रहे हैं, उसकी एक झलक  वेब सीरीज ‘महारानी’का हिस्सा है. देश की युवा पीढ़ी शायद 1997 से 1999 तक की राजनीति से पूरी तरह वाकिफ नही है. मगर उसी काल में पशुचारा घोटाले में नौ सौ अट्ठावन करोड़ के घोटाले के आरोप के बाद बिहार के मुख्यमंत्री लालूप्रसाद यादव ने त्यागपत्र दिया था, मगर नए मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने अपनी अशिक्षित पत्नी व पूरी तरह से घरेलू महिला राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया था. सुभाष कपूर ने ‘‘बिहार के इतिहास में दर्ज इसी तरह की राजनीति के एक स्याह अध्याय’’ से प्रेरित होकर एक काल्पनिक राजनीतिक घटनाक्रम वाली वेब सीरीज ‘‘महारानी’’लेकर आए हैं, . इस वेब सीरीज के क्रिएटिब डायरेक्टर होने के साथ ही सुभाष कपूर मुख्य लेखक भी हैं.

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कहानीः

कहानी की शुरूआत बिहार के मोरैना गॉंव में निचले तबके के दिलीप( हिमांशु मेहता)द्वारा उच्च जाति के घर पर अपनी पत्नी के काम करने से इंकार करने से होती है. दिलीप कहता है कि अब उंची जाति वालों को याद रखना चाहिए कि प्रदेश के मुख्यमंत्री भीमा भारती(सोहम शाह )हैं. दिलीप जिस भाषा में बातें करते हैं, उसी वजह से दिलीप को गोली से भून दिया जाता है. इधर अपने लाव लश्कर के साथ मुख्यमंत्री अपने पैतृक गांव मनुपुर, गोपालगंज पत्नी रानी (हुमा कुरेशी ) व बेटो तथा बेटी रोशनी(सिद्धि मालवीय ) से मिलने पहॅुचते हैं. वह बामुश्किल अपनी पत्नी का गुस्सा ठंडा कर पाते हैं. इसी बीच लालसेना के शंकर महतो (हरीश खन्ना ) अपने गैंग के साथ मुरैना गांव में सामूहिक नरसंहार को अंजाम देते हैं. तब मुख्यमंत्री बनने से वंचित रह गए व स्वास्थ्यमंत्री नवीन कुमार (अमित सियाल )अपनी ही सरकार के खिलाफ धरने पर बैठकर मुख्यमंत्री से इस्तीफा मांगते हैं. उन्हे अपनी पार्टी यानी कि राष्ट्रीय जन पार्टी के राज्य अध्यक्ष गौरी शंकर पांडे (विनीत कुमार)  का वरदहस्त हासिल है. तभी छठ का पर्व आ जाता है और छठ पर्व के दिन जब मुख्यमंत्री भीमा भारती अपनी पत्नी रानी का व्रत पूर्ण करवाने की क्रिया के लिए गांव की ही नदी पर पहुंचते हैं, तब उन पर दो हमलावर गोली चला देते हैं. घायल अवस्था में उन्हे पटना मेडीकल कालेज में भर्ती कराया जाता है. अब रानी बच्चो के साथ पटना स्थित मुख्यमंत्री आवास पहुंच जाती हैं. इस घटनाक्रम से गौरीशंकर पांडे,  नवीन कुमार व प्रेम कुमार (मोहम्मद आशिक हुसेन )खुश हैं. पर भीमा के के निजी सहायक मिश्रा जी(प्रमोद पाठक)राजनीति को भांपते हुए अस्पताल के सीएमओ डा. डी डी शर्मा (रिजु बजाज)पर भीमा भारती को मुख्यमंत्री आवास में ही भेजने के लिए कहते हैं और उनसे कहते हैं कि वह मेडिकल बुलेटीन जारी कर कह दें कि अब मुख्यमंत्री खतरे से बाहर हैं, इसलिए उन्हे घर भेज दिया गया. ऐसा ही किया जाता है. मगर डॉ. शर्मा सारा सच नवीन कुमार को बता देते हैं कि अभी छह सात माह तक मुख्यमंत्री ठीक नही हो पाएंगे. नवीन कुमार, प्रेम कुमार व गौरीशंकर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामजीवन बोरा (सुधनवा देशपांडे )को बुलाकर मुख्यमंत्री आवास पहुंच जाते हैं, जहंा बोरा, भीमा भारती त्यागपत्र देने का दबाव बनाते हैं. भीमा दावा करते हैं कि बहुमत उनके साथ हैं, इसलिए उनकी पसंद का व्यक्ति ही मुख्यमंत्री बनेगा. बोरा पार्टी के अंदर जांच करने का ऐलान कर देते है कि बहुमत किसके साथ हैं. नवीन कुमार को भरोसा हो जाता है कि अब वही मुख्यमंत्री बनेंगें, मगर अंतिम समय में भीमा के पक्ष में अधिक विधायक जुटते हैं और भीमा भारती अपनी पत्नी रानी भारती(हुमा कुरेशी)को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा देते है, जो कि अनपढ़ हैं, अपना नाम तक नहीं लिख सकती. कुछ पढ़ नही सकती. नवीन कुमार अपने विधायको के साथ विपक्षी दल में शामिल हो जाते हैं. राज्यपाल गोवर्धनदास (अतुल तिवारी)उन्हे बामुश्किल शपथ दिलाते हैं. अब नवीन कुमारअपने मौसा व महामहिम राज्यपाल से कहते हैं कि वह रानी भारती को सदन में विश्वासमत हासिल करने के लिए कहें. विश्वासमत के दौरान अपने संबंध में नवीन कुमार के मुंह से कड़वा सच सुनकर रानी भारती तिलमिला जाती हैं. उसके बाद वह ऐसा जवाब देती है कि विश्वासमत हासिल करने में सफल हो जाती हैं. उसके बाद धीरे धीरे मुख्यमंत्री रानी भारती अपनी देहाती समझ के अनुसार ऐसे कदम उठाती हैं कि बहुत कुछ गडमड हो जाता है.

उधर शंकर महतो और वीर सेना के रामेश्वर मुखिया(आलोक चटर्जी ) अपने अंदाज में नरसंहार करते रहते हैं, धीरे धीरे लोगं की समझ में आता है कि इनसे राज्य के मंत्री मिले हुए हैं. तो वहीं मचान बाबा(तरूण कुमार) का अपना खेल चलता रहता है.

मुख्यमंत्री के आदेश पर वित्त सचिव परवेज आलम(इनामुल हक)जांचकर पशुपालन विभाग में 958 करोड़ की चोरी पकड़ते हैं. मुख्यमंत्री रानी , पशुपालन मंत्री प्रेम कुमार को बर्खास्त कर देती हैं. उसके बाद काफी राजनीतिक उठापटक होती है.

लेखनः

सुभाष कपूर ने बिहार की राजनीति के नब्बे के दशक के स्याह अध्याय को काल्पनिक कथा के नाम पर गढ़ने का असफल प्रयास किया है. उनके लेखन में काफी खोखलापन है. कई दृश्यों को देखकर इस बात का अहसास होता है कि सुभाष कपूर इसकी कथा पटकथा लिखते हुए काफी डरे हुए थे और उनकी पूरी कोशिश रही है कि हर पक्ष को खुश किया जाए. बिहार राज्य के अंदर सामाजिक स्तर पर जातिगत भेदभाव को भी बहुत उथला ही पेश किया गया है. वेब सीरीज में कुछ जटिलताएं जरुर रोमांचित करती हैं, मगर दृश्य नही करते, यह लेखन की कमजोर कड़ी है. वेब सीरीज की शुरूआत ही  जातिगत भेदभाव की तरफ इशारा करते हुए होती है, लेकिन बहुत जल्द सुभाष कपूर के लेखन की गाड़ी पटरी से उतर जाती है. सुभाष कपूर ने ‘महारानी’ की कहानी का केंद्र मुख्यमंत्री रानी भारती के इर्द गिर्द रखते हुए एक अंगूठा छाप अशिक्षित मुख्यमंत्री को भ्रष्टाचार के सागर में पवित्रता की मूर्ति बताकर पूरी बिहार की राजनीतिक सत्यता को ही उलट पुलट कर एक नए सत्य को लोगों से कबूल करवाने का असफल प्रयास किया है. एक संवाद है, जब रानी भारती अपने पति भीमा भारती व मिश्राजी से कहती हैं-‘‘हम सच जानना चाहते हैं और आप सरकार बचाना चाहते हैं?’’लेकिन लेखक इस बात के लिए बधाई के पात्र है कि उन्होेने रानी को एक ऐसी महिला के रूप में पेश किया है, जो मानती है कि अशिक्षित होने के कारण वह पढ़लिख नही सकती, मगर अपने जीवन के अनुभवांे के आधार पर उसकी जो समझ है, वह उसके लिए काफी मायने रखती है.

लेखक की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी यह है कि मुख्यमंत्री भीमा भारती क्यों अपनी पत्नी रानी भारती को अपने साथ रखने की बजाय गांव में ही रखते हैं, इस पर उनकी कलम चुप रह गयी?क्या भीमा अपनी अशिक्षित पत्नी की वजह से ख्ुाद को हीन ग्रंथि का शिकार समझते हैं. गॉंव की रहने वाली, पति की सेवा, अपने बच्चों व अपनी गाय की देखभाल के प्रति समर्पित रानी भारती मुख्यमंत्री बनते ही दो एपीसोड के अंदर ही जिस कुटिल राजनेता की तरह आदेश देना शुरू करती हैं, उसका यह परिवर्तन भी अविश्वसनीय लगता है. रानी को इंसान के तौर पर विकसित करने के लिए मुख्यमंत्री बनते ही उनके समक्ष बाधाओं का अंबार लगा दिया जाता है, मगर वह बिना पति व राजनीतिज्ञ भीमा भारती की सलाह के सारे निर्णय लेती रहती है. यह सब कहीं न कहीं लेखकीय कमजोरी है, भले ही इसके पीछे लेखक की मंशा नारी शक्ति का चित्रण करना ही क्यों न रहा हो,  मगर उसका आधार तो सशक्त होना चाहिए. पर लेखक बुरी तरह से मात खा गए हैं. कई जगह बेवजह अश्लील गालियों का समावेश है.  राजनीति में धर्म गुरूओं के प्रभाव की लेखक ने हल्की झलक ही पेश की है, जबकि राजनीति व धर्म का मिलाप कई निराले खेल करता रहा है और आज भी कर रहा है. वेब सीरीज में धर्म को बेचने का भी प्रयास है.

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इसमें चरित्रगत विसंगतियां भी हैंं. मसलन एक दृश्य में मुख्यमंत्री रानी भारती पुरूष विधायको व मंत्रियो द्वारा विवाहित महिला यानी कि उन्हें फूल मालाएं देने का विरोध करती हैं,  तो कुछ एपीसोड के बाद एक दृश्य में वह बड़ी सहजता से स्वीकार करती हैं. यह चरित्र में बदलाव? इतना ही नही एक दृश्य में मिश्राजी जब उसकी बांह पकड़कर बरामदे में उनके पति के पास ले जाते हैं, तो यह वह कैसे स्वीकार कर लेती है?

लेखक ने लाल सेना (नक्सलवाद)और वीर सेना के संग राजनेताओं के गठबंधन का भी चित्रण किया है. मगर नक्सलवाद या वीर सेना क्यो पूरे गॉंव के गॉंव का नरसंहार करते हैं, इसकी वजह व इन दोनो के वजूद को लेकर कोई बात नही करती. शुरूआती एपीसोडों में यह संवाद जरुर है-‘‘पिछड़ो ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए एक हाथ में लाल झंडा और दूसरे हाथ में बंदूक उठा ली है. ’’पर अहम सवाल यह है कि क्या वीर सेना या नक्सलवाद के पीछे महज जातिगत समीकरण ही हैं?ऐसे में नरंसहार?

बिहार के स्याह इतिहास में1995 की बिहार बाढ़,  बड़ा नरसंहार जहां माओवादियों ने भूमिहारों को मार गिराया था,  और लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार जहां एक भूमिहार उग्रवादी समूह ने अनुसूचित जाति के लोगों को गोली मार दी थीआदि का भी समावेश है, मगर इसे फिल्मकार सही ढंग से चित्रित नही कर पाए. जो कुछ दिखाया, वह प्रभाव नही डालता.

लेखक व क्रिएटिब निर्देशक सुभाष कपूर तथा निर्देशक करण शर्मा इस बात के लिए बधाई के पात्र हैं कि बिना अश्लील दृश्यों के भी वह राजनीति के अंदर व्याप्त ‘सेक्स’व नारी शोषण का चित्रण करने में सफल रहे हैं.

 

निर्देशनः

बतौर निर्देशक करण शर्मा  भी इस राजनीतिक घटनाक्रम वाली ‘महारानी’के साथ पूरा न्याय नही कर पाए. वेब सीरीज में अचानक  कहीं भी सामूहिक नरसंहार होने लगता है, तो अचानक बाबाजी का प्रवचन शुरू हो जाता है. अचानक भोजपुरिया आइटम सॉंग आ जाता है. दृश्यों के बीच सही तालमेल ही नही है. इतना ही नही लेखक के साथ साथ निर्देशक को भी नही पता है कि 1998 में मोबाइल नही था. मगर चैथे एपीसोड में रॉंची के डीएम माणिक गुप्ता(राजीव रंजन) से जब परवेज आलम कहते है कि छोटे लाल(मुरारी कुमार )को फोन कीजिए, तो डीएम साहब अपनी जेब से मोबाइल निकालकर छोटे लाल(मुरारी कुमार) को फोन करते हैं.

इतना ही नही कुछ दृश्यों में संवाद और किरदारो के चलते ओंठ मेल नही खाते हैं. यह तकनीकी गड़बड़ी है.

कैमरामैन अनूप सिंह बधाई के पात्र हैं. उन्होने कई दृश्यों को अपने कैमरे से इस तरह से कैद किया है कि सब कुछ जीवंत हो जाता है.

अभिनयः

सोहम शाह ने एक चतुर व कुटिल राजनीतिज्ञ भीमा भारती को जिस तरह से अपने अभिनय से उकेरा है, उसके लिए वह प्रशंसा बटोर ले जाते हैं. अपनी पत्नी रानी के मुख्यमंत्री बनने के बाद उसकी हरकतो से भीमा को अपनी ही चाल पर संदेह होता है, इस बात को सोहम ने बड़ी सहजता से निभाया है. एक दृश्य में भीमा अपनी पत्नी व मुख्यमंत्री रानी से धीरे से कहते हैं-‘‘मुझे नहीं पता कि मुझे किसने अधिक चोट पहुंचाई है।‘‘ ‘‘हत्यारे ने या आप . . ?‘‘ उस वक्त उनकी भाव भंगिमाएं कमाल की हैं. रानी भारती के किरदार में हुमा कुरेशी ने अपनी तरफ से बेहतरीन अभिनय किया है. गॉंव में रह रही घरेलू रानी के किरदार में दर्शक पहचान ही नही पाता कि यह हुमा कुरेशी हैं. मगर कई जगह उन्हे पटकथा से आपेक्षित मदद नही मिली, तो कई जगह निर्देशक की अपनी गलतियों की वजह से वह मात खा गयी हैं. एक ही संवाद में हुमा कुरेशी ‘स्कूल’और‘इस्कूल’कहती है. यह कलाकार की नहीं, निर्देशक की कमजोरी का प्रतीक है. मिश्राजी के किरदार को प्रमोद पाठक ने अपने उत्कृष्ट अभिनय से जीवंतता प्रदान करने मे सफल रहे हैं. नवीन कुमार का किरदार काफी हद तक बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नितीश कुमार से प्रेरित नजर आता है. नवीन कुमार के किरदार में अभिनेता अमित सियाल का अभिनय बहुत सहज है. वैसे उन्हे अपनी प्रतिभा को निखारने के कई अवसर मिले हैं. सदन में विश्वासमत के दौरान विपक्ष के नेता के तौर पर उन्ळे काफी अच्छे संवाद भी मिले, पर उन संवादों के साथ वह ठीक से खेल नही पाए. वित्त सचिव  परवेज आलम के किरदार में अभिनेता इनामुल हक अपने अभिनय से छाप छोड़ जाते हैं. विनीत कुमार, कानन अरूणाचलम, कनि कुश्रुति, , ज्योति दुबे, अतुल तिवारी,  सुशील पांड ने भी ठीक ठाक अभिनय किया है.

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