प्रश्नचिह्न : अंबिका के प्यार यश के बदले व्यवहार की क्या थी वजह?

आयुष का बिलखने का स्वर सुन कर अंबिका लपक कर अपने ड्राइंगरूम में आई थी.

‘‘क्या हुआ, बेटे?’’ उस ने आयुष से पूछा.

‘‘पापा ने मारा,’’ आयुष गाल सहलाते हुए बोला.

‘‘यश, क्यों मारा तुम ने? 4 साल के बच्चे पर हाथ उठाते तुम्हें शर्म नहीं आई?’’ अंबिका गुस्से में पलटी, पर उस का स्वर तो मानो किसी पत्थर से टकरा कर लौट आया था. यश तक तो उस का स्वर शायद पहुंचा ही नहीं था.

एक क्षण के लिए अंबिका का मन हुआ कि बुरी तरह बिफर कर यश को इतनी खरीखोटी सुनाए कि वह फिर कभी नन्हे मासूम आयुष पर हाथ उठाने की बात सोच भी न सके. पर कुछ सोच कर चुप रह गई थी.

आयुष अब भी सिसक रहा था.

उस पर जान छिड़कने वाले पिता ने उसे क्यों मारा, यह बात उस की समझ से परे थी.

यश अपना फोन कान से लगाए न जाने किस से बातचीत में उलझा था. उस के लिए तो मानो अंबिका और आयुष हो कर भी नहीं थे वहां.

अंबिका ने आयुष को शांत कर के खिलापिला कर सुला तो दिया था पर उस के मुख पर चिंता की स्पष्ट रेखाएं थीं.

‘क्या हो गया था यश को? ऐसा तो नहीं था वह,’ अंबिका सोच में डूब गई.

परिवार का हीरेजवाहरात का पुराना कारोबार था जिसे यश और उस के बड़े भाई रतनराज मिल कर संभालते थे. उन के पिता ने घर और व्यापार का बंटवारा दोनों बेटों के बीच इतनी सावधानी से किया था कि दोनों के बीच मनमुटाव की गुंजाइश ही नहीं थी.

कारोबार में कुशल यश को जीवन की हर आकर्षक वस्तु से लगाव था. पार्टियां देना और पार्टियों में जाना हर रोज लगा ही रहता था, पर पिछले 3-4 माह से यश में आ रहे परिवर्तनों को देख कर वह हैरान थी. कभीकभी उसे लगता कि कहीं कुछ नहीं बदला, पर दूसरे ही क्षण वह कुछ घटनाओं को याद कर के घबरा उठती. हर क्षण उसे आभास होता कि यश अब पहले जैसा नहीं रहा, लेकिन बहुत सोचने पर भी उसे इस परिवर्तन का कारण समझ में नहीं आ रहा था.

कार स्टार्ट होने की आवाज सुनते ही अंबिका की तंद्रा टूटी थी. फोन पर हुई लंबी बातचीत के बाद यश कहीं चला गया था.

आयुष को उस के बिस्तर में सुला कर अंबिका बाहर निकली. वहां ड्राइवर माधव को चौकीदार से हंसीठिठोली करते देख हैरान रह गई.

‘‘तुम यहां बैठे हो, माधव? साहब की कार कौन चला कर ले गया है?’’

‘‘साहब अपनेआप चला कर ले  गए हैं. मुझे बुलाया ही नहीं,’’ माधव का उत्तर था.

‘‘तुम यहां रहते ही कब हो? पान खाने या सिगरेट पीने गए होगे. साहब कब तक तुम्हारी प्रतीक्षा करते?’’ अंबिका का सारा गुस्सा माधव पर ही उतरा था.

‘‘मैं तो यहीं चौकीदार के पास बैठा था. कार स्टार्ट होने की आवाज सुन कर भाग कर उन के पास पहुंचा, पर साहब ने मेरी ओर देखा तक नहीं.’’

‘‘ठीक है,’’ अंबिका अंदर चली गई.

सोफे पर बैठ कर अंबिका देर तक शून्य में ताकती रही. यही सब बातें तो हैं जो उस के मन को खटकती हैं. यश का इस तरह उसे बिना बताए चले जाना, ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ. भीड़भाड़ वाली सड़कों पर स्वयं कार चलाने से यश सदा बचता था. यदि माधव जरा भी इधरउधर चला जाए तो वह चीखचिल्ला कर घर सिर पर उठा लेता था. आज वही यश माधव को छोड़ कर स्वयं ही चला गया. अंबिका को चिंता होने लगी. उस ने यश को कौल किया पर यश ने मोबाइल फोन स्विच औफ कर रखा था.

अंबिका को अब पूरा विश्वास हो चला था कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. वह किसी से बात कर के अपने मन का बोझ हलका करना चाहती थी. अपने मातापिता को असमय फोन कर के वह परेशान नहीं कर सकती थी. यश के बड़े भाई रतनराज का विचार भी आया मन में, पर उन से फोन पर कुछ कहना ठीक न समझा. आखिर में उस ने अपनी प्रिय सहेली हर्षिता को फोन लगाया. हर्षिता उस की सब से करीबी सहेली तो थी ही, संकट की घड़ी में उस पर आंख मूंद कर विश्वास भी किया जा सकता था.

हर्षिता से फोन पर बात करते हुए अंबिका का गला भर आया, आवाज भर्रा गई.

‘‘क्या बात है, अंबिका? तुम इतनी परेशान हो और मुझे बताया तक नहीं. ये सब बातें फोन पर नहीं होतीं. तुम इंतजार करो. मैं 5 मिनट में तुम्हारे घर पहुंचती हूं,’’ हर्षिता ने आश्वासन दिया.

कुछ ही देर में हर्षिता उस के घर में थी. आते ही बोली, ‘‘अब विस्तार से बता, बात क्या है?’’

उत्तर में अंबिका उस के गले लग कर फूटफूट कर रो पड़ी.

‘‘पता नहीं हमारे हंसतेखेलते घर को किस की नजर लग गई, हर्षिता. यश को न अब मेरी चिंता है न आयुष की.’’

‘‘तुम ने उस से बात करने का प्रयत्न किया?’’

‘‘कई बार, पर यश कुछ बोलता ही नहीं. बस, मूक बन कर बैठा रहता है.’’

‘‘सारे लक्षण तो वही हैं, तुझे बहुत सावधानी से काम लेना पड़ेगा,’’ हर्षिता किसी बड़े विशेषज्ञ की तरह बोली.

‘‘कैसे लक्षण?’’

‘‘प्रेमरोग के लक्षण. मैं तो तुझे बहुत समझदार समझती थी, पर तू तो निरी बुद्धू निकली. मैं दावे के साथ कह सकती हूं कि यश के जीवन में कोई और स्त्री आ गई है. उसी ने तुम लोगों के जीवन में उथलपुथल मचा दी है.’’

‘‘मैं नहीं मानती. यश में चाहे कितनी भी बुराइयां हों पर उस के चरित्र में कोई खोट नहीं है.’’

‘‘बड़ी भोली हो तुम. ऐसी स्त्रियां बहुत फरेबी होती हैं. इन के प्रभाव से तो विश्वामित्र जैसे ऋषिमुनि भी नहीं बच सके थे. यश तो फिर भी मनुष्य है.’’

‘‘ठीक है. मैं कल ही यश से बात करूंगी.’’

‘‘तुम ऐसा कुछ नहीं करोगी. मैं ने कहा न, तुम्हें सावधानी से काम  लेना पड़ेगा.’’

‘‘तो क्या करूं?’’

‘‘तुम्हें यश की हर गतिविधि पर नजर रखनी होगी. अच्छा होगा कि एक डायरी बना लो और उस में प्रतिदिन की घटनाएं लिखती जाओ.’’

‘‘पर कौन सी घटनाएं?’’

 

‘‘यही कि यश कब आता है, कब जाता है, किसकिस से मिलताजुलता है. घर आने पर उस की हर चीज का ध्यान से निरीक्षणपरीक्षण करो. सब से बड़ी बात कि यश के विरुद्ध कुछ सुबूत इकट्ठा करो.’’

‘‘उस से क्या होगा, मैं कौन सा उस के विरुद्ध कोर्टकचहरी के चक्कर लगाऊंगी?’’ अंबिका बोली.

‘‘तुम कुछ समझती नहीं हो. जब तुम यश पर किसी और स्त्री के चक्कर में होने का आरोप लगाओगी तो सुबूत तो पेश करने ही होंगे.’’

‘‘मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगी. मुझे पूरा विश्वास है कि यश बेवफा हो ही नहीं सकता. तुम्हें तो स्वयं पता है कि यश किस तरह हमारा खयाल रखता था.’’

‘‘तुम ठीक कहती हो. हम सब यश का उदाहरण देते थकते नहीं थे, पर अब तुम खतरे की घंटी स्वयं सुन रही हो तो तुम क्या अपने परिवार को सुरक्षित नहीं रखना चाहोगी?’’ हर्षिता ने प्रश्न किया.

‘‘क्यों नहीं, इसीलिए तो तुम्हें फोन किया था. पर मैं ऐसा कुछ नहीं करना चाहती कि स्थिति और बिगड़ जाए.’’

‘‘कुछ नहीं होगा. तुम्हें केवल थोड़ा सावधान रहना होगा. तुम कहती हो कि यश लंबे समय तक फोन पर बात करता है. कम से कम फोन नंबर पता करो. एक दिन जैसे ही यश घर से निकले, तुम पीछा करो. पता तो लगे कि सचाई क्या है?’’

‘‘मैं कोशिश करूंगी, हर्षिता, पर कोई वादा नहीं करती.’’

‘‘मेरे चाचाजी पुलिस में बड़े अफसर हैं. तुम चाहो तो हम उन की मदद ले सकते हैं. वे यश से बातचीत कर के कोई न कोई समाधान अवश्य निकाल लेंगे,’’ हर्षिता ने सुझाव दिया था.

‘‘नहीं, हर्षिता, यह परिवार के सम्मान की बात है. रतन भैया को सूचित किए बिना मैं ने ऐसा कुछ किया तो वे नाराज होंगे.’’

‘‘ठीक है, तुम अच्छी तरह सोचविचार लो. क्या करना है, यह निर्णय तो तुम्हें ही लेना होगा. पर तुम्हें जब भी मेरी मदद की जरूरत हो, मैं तैयार हूं. स्वयं को कभी अकेला मत समझना,’’ हर्षिता ने आश्वासन दे कर विदा ली.

अंबिका देर तक अकेली बैठी सोचती रही. कहीं से कोई प्रकाश की किरण नजर नहीं आ रही थी. तभी अचानक उसे याद आया कि 3 दिन बाद ही आयुष का जन्मदिन है. हर वर्ष आयुष का जन्मदिन वे बड़ी धूमधाम से मनाते रहे हैं. उसे लगा कि इतनी सी बात भला उसे समझ में क्यों नहीं आई. पिछले जन्मदिन पर सब ने कितना धमाल किया था.

पांचसितारा होटल में ऐसी शानदार थीम पार्टी का आयोजन किया था यश ने कि सब ने दांतों तले उंगली दबा ली थी.

अंबिका को बड़ी राहत मिली थी. यश अवश्य ही आयुष के जन्मदिन पर ‘सरप्राइज पार्टी’ का आयोजन कर रहा है. तभी तो उस ने कुछ बताया नहीं. आज आने दो घर, खूब खबर लूंगी. कम से कम गेस्ट लिस्ट के बारे में तो उस से सलाह लेनी ही चाहिए थी.

इसी ऊहापोह में कब आंख लग गई, अंबिका को पता ही नहीं लगा. पर जब नींद खुली और यश का बिस्तर खाली देखा तो वह धक् से रह गई. यश रात को घर लौटा ही नहीं था. यदि वह घर नहीं लौटा तो उसे वह कहां ढूंढ़ने जाए. फूटफूट कर रोने का मन हो रहा था पर इस कठिन समय में आंसू भी उस का साथ छोड़ गए थे.

उस ने मशीनी ढंग से आयुष को तैयार कर स्कूल भेजा. तभी यश की कार की आवाज आई तो वह लपक कर मुख्यद्वार पर पहुंची.

‘‘कहां थे अब तक? कम से कम एक फोन ही कर दिया होता. चिंता के कारण मेरा बुरा हाल था. कल शाम से खाना तो क्या, मुंह में पानी की बूंद तक नहीं गई है,’’ अंबिका एक ही सांस में बोल गई थी पर यश बिना कोई उत्तर दिए अंदर चला गया.

‘‘मैं कुछ पूछ रही हूं, यश. मुझे अपने प्रश्नों के उत्तर चाहिए.’’

‘‘बाहर नौकरों के सामने तमाशा करने की क्या जरूरत है? ये प्रश्न घर में आ कर भी पूछे जा सकते हैं,’’ यश बोला.

‘‘तो अब बता दो, यश. रातभर कहां थे तुम? और यह भी कि मुझ से ऐसा क्या अपराध हो गया है कि तुम ने इस तरह मुंह फेर लिया है? तुम बहुत बदल गए हो, यश.’’

‘‘समय के साथ हर व्यक्ति बदल जाता है. तुम्हें नहीं लगता कि तुम आजकल इतने प्रश्न पूछने लगी हो कि स्वयं एक प्रश्नचिह्न बन कर रह गई हो. बारबार मैं कहां गया था, क्यों गया था जैसे प्रश्न मत किया करो, क्योंकि मेरे पास इन के उत्तर हैं ही नहीं. तुम मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो. कल से पानी भी नहीं पिया, जैसे ताने दे कर अपनी निरीहता भी मुझे मत दिखाओ. घर में क्या खाने का सामान नहीं है? मेरी 10 से 5 की नौकरी नहीं है. तुम लोगों के ऐशोआराम के लिए बहुत खटना पड़ता है. हर समय इन बातों का ब्योरा मत मांगा करो,’’ यश ने टका सा उत्तर दिया था. हालांकि मीठा बोल बोलने वाले यश ने अपना स्वर ऊंचा नहीं किया, पर उस की बातों से अंबिका का दिल छलनी हो गया.

अगले दिन आयुष का जन्मदिन था. सुबह से ही उसे शुभकामनाएं देने वालों के फोन आने लगे थे. पर यश भोर में ही उठ कर कहीं चला गया था. आयुष कई बार पूछ चुका था कि उस के जन्मदिन की पार्टी कहां होगी?

‘सरप्राइज पार्टी’ की प्रतीक्षा करते हुए शाम घिर आई थी. आयुष कंप्यूटर गेम्स खेलने में व्यस्त था. अपने जन्मदिन की बात शायद अब वह भूल ही गया था.

‘‘आयुष, कहां हो तुम? अंबिका, यश, घर में कोई है या नहीं?’’ जैसे प्रश्नों से सारा घर गूंज उठा था. यश के बड़े भाई रतनलाल, उन की पत्नी अंजलि व उन के दोनों बच्चे आए थे.

‘‘तुम लोग तो हमें याद करते नहीं, हम ने सोचा हम ही मिल आएं. आयुष बेटे, जन्मदिन मुबारक हो,’’ रतन ने बड़ा सा डब्बा आयुष को पकड़ा दिया.

‘‘इस की जरूरत नहीं थी, भाईसाहब. हम कोई पार्टी नहीं कर रहे,’’ अंबिका उदास स्वर में बोली.

‘‘पार्टी नहीं भी कर रहे तो क्या हुआ? आयुष को जन्मदिन का उपहार तो मिलना ही चाहिए,’’ अंजलि ने प्यार से आयुष का माथा चूम लिया.

‘‘यश कहां है? तुम लोग आजकल रहते कहां हो, महीनों से यश घर नहीं आया? तुम भी हमें भूल ही गई हो,’’ अंजलि ने उलाहना दिया.

उत्तर में अंबिका के मुख से एक शब्द भी नहीं निकला. वह स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख सकी और फफक कर रो पड़ी.

‘‘क्या हुआ?’’ अंजलि और रतन ने हैरानपरेशान स्वर में पूछा. बच्चे भी टकटकी लगा कर अंबिका को ही घूर रहे थे.

‘‘तुम लोग अंदर जा कर खेलो,’’ रतन ने बच्चों से कहा.

अंबिका ने आंसुओं को संभालते हुए रतन और अंजलि को सबकुछ बता दिया.

‘‘यश के रंगढंग बदले हुए हैं, यह तो मुझे भी लगा था. आजकल उस की किसी काम में रुचि नहीं रही, पर तुम लोगों के घरेलू जीवन में ऐसी उथलपुथल मची हुई है, इस की तो हम ने कल्पना भी नहीं की थी.

‘‘चिंता मत करो, अंबिका. मैं एकदो दिन में सब पता कर लूंगा. पहले तो मैं कल ही बच्चू से सब उगलवा लूंगा. तुम जल्दी से तैयार हो जाओ. आज आयुष के जन्मदिन की पार्टी हम ‘इंद्रप्रस्थ रिजोर्ट’ में करेंगे,’’ रतन ने कहा.

इंद्रप्रस्थ रिजोर्ट में आयुष का जन्मदिन मना कर रात में देर से लौटी थी अंबिका. आयुष प्रसन्नता से झूम रहा था.

अगली सुबह अंबिका पर मानो वज्रपात हुआ. फोन की घंटी बजी तो उनींदी सी अंबिका ने फोन उठाया.

‘‘हैलो, क्या मैं अंबिका राज से बात कर सकती हूं?’’ दूसरी ओर से किसी स्त्री का स्वर गूंजा था.

‘‘बोल रही हूं,’’ अंबिका बोली.

‘‘तुम से अधिक बेशर्म स्त्री मैं ने दूसरी नहीं देखी. जब यशराज तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहता तो क्यों उस के गले पड़ी हो? छोड़ क्यों नहीं देतीं उसे?’’

‘‘कौन हो तुम? और मुझ से इस तरह बात करने का साहस कैसे हुआ तुम्हारा?’’ अंबिका की नींद हवा हो गई थी. वह ऐसे तड़प उठी मानो किसी ने बिजली का नंगा तार छुआ दिया हो.

‘‘मैं कौन हूं, यह महत्त्वपूर्ण नहीं हैं, मैं जो कह रही हूं वह महत्त्वपूर्ण है. यशराज तुम्हारे साथ नहीं, मेरे साथ जीवन बिताना चाहता है. अपना और अपने बेटे का भला चाहती हो तो तुरंत बिस्तर बांधो और मुक्त कर दो मेरे यश को.’’

‘‘नहीं तो क्या कर लोगी तुम?’’ अंबिका चीखी.’’

‘‘यह तो समय आने पर ही पता चलेगा,’’ दूसरी ओर से अट्टहास सुनाई दिया.

काफी देर तक अंबिका पत्थर की मूर्ति की भांति बैठी रह गई. धीरेधीरे दिन बीता, शाम आई. देर रात गए यश घर लौटा और सोफे पर ही पसर गया. वह अब भी गहरी नींद में था.

पर आज अंबिका के संयम का बांध टूट गया. उस ने झिंझोड़ कर यश को जगाया. हैरान यश आंखें मलते हुए उठ बैठा.

‘‘तुम्हारी प्रेमलीला इस सीमा तक पहुंच जाएगी यह तो मैं ने सोचा भी नहीं था. पर मेरे जीवन में जहर घोल कर तुम इस तरह चैन से नहीं सो सकते,’’ अंबिका बिफर उठी.

‘‘बात क्या है, अंबिका? इस तरह रोष में क्यों हो?’’

‘‘मेरे रोष का कारण जानना चाहते हो तुम? मुझ से मुक्ति चाहते हो? एक बार कह कर तो देखते, मैं यह उपकार भी कर देती. पर तुम ने तो अपनी प्रेमिका से कहलवा कर मुझे अपमानित करना ही उचित समझा.’’

‘‘किस ने अपमानित किया तुम्हें, अंबिका?’’ यश सन्न रह गया.

‘‘सबकुछ जानते हुए बनने का प्रयत्न मत करो. तुम्हारी सहमति के बिना किसी का मुझ से इस तरह बात करने का साहस नहीं हो सकता.’’

‘‘आओ, अंबिका, यहां बैठो मेरे पास. मैं तुम्हें सब सच बताऊंगा. मैं ने आज तक तुम्हें कुछ नहीं बताया क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि जिस नर्क की आग में मैं जल रहा था, वह मेरे हंसतेखेलते परिवार को भस्म कर दे. पर अब शायद पानी सिर से गुजर गया है.’’

‘‘कौन है वह? मुझे इस तरह धमकी देने का साहस कैसे हुआ उस का?’’

‘‘वह? एक डांसर है. बार में, होटलों में और छोटेमोटे उत्सवों में नाचगा कर अपना काम चलाती है. मेरा परिचय उस से मेरे मित्र तेजाश्री ने कराया था. मैं भी शराब के नशे में शायद बहक गया था. तब से वह मुझे यह कह कर ब्लैकमेल करती रही कि मेरे संबंध के बारे में वह तुम्हें बता देगी, पत्रपत्रिकाओं में फोटो छपवा देगी. अब तक वह मुझ से लाखों रुपए ऐंठ चुकी है और अब उस ने मुझ पर दबाव डालना शुरू कर दिया कि तुम्हें छोड़ कर उस से विवाह कर लूं वरना अपने गुंडों से हमारे पूरे परिवार को तबाह करवा देगी.’’

‘‘इतना कुछ हो गया और तुम ने मुझे हवा तक नहीं लगने दी. पतिपत्नी यदि सुखदुख के साथी न हों तो दांपत्य जीवन का अर्थ ही क्या है?’’ अंबिका क्रोधित स्वर में बोली.

‘‘मुझे लगा था कि इस समस्या से मैं स्वयं निबट लूंगा पर मैं जितना इसे सुलझाने का प्रयत्न करता उतना ही उलझता जाता. अब यह नाराजगी छोड़ो और सोचो कि आगे क्या करना है,’’ यश याचनाभरे स्वर में बोला.

‘‘मैं रतन भैया को फोन कर के बुलाती हूं. रतन भैया और अंजलि भाभी कल आए थे. हम सब साथ गए थे आयुष का जन्मदिन मनाने. मैं ने उन्हें सब बता दिया था.’

रतनराज तुरंत चले आए थे. सारी बातें विस्तार से सुन कर उन के आश्चर्य की सीमा नहीं रही. यश ऐसी मुसीबत में फंस सकता है, यह उन की समझ से परे था. अंबिका ने हर्षिता को भी बुला लिया था. वे सब मिल कर हर्षिता के चाचाजी से मिलने गए.

‘‘यह तो सीधासादा ब्लैकमेल का चक्कर है. हमारे पास तो हरदिन ऐसी सैकड़ों शिकायतें आती हैं. आप मेरी मानें तो पुलिस में रपट कर दें. इन लोगों का साहस इतना बढ़ गया है कि अब ये बड़े मुरगों को फंसाने की ताक में रहते हैं,’’ हर्षिता के अंकल ने सलाह देते हुए कहा.

रतनराज और यशराज जैसे रसूख वाले परिवार के साथ ऐसा हो सकता है, यह सोच कर सभी हैरान थे.

रतन की सलाह से यश अपने परिवार के साथ विएना चला गया.

‘‘मैं यहां सब संभाल लूंगा. तुम वहां के कार्यालय की जिम्मेदारी संभालो. वैसे भी मैं तुम्हें कुछ समय के लिए विएना भेजने की सोच रहा था,’’ रतनराज ने कहा.

हवाई जहाज में बैठने के बाद यश ने चैन की सांस ली थी. आज उसे एहसास हुआ कि अपनी परेशानियों को परिवारजनों से न बांट कर न केव?ल उस ने भूल की थी बल्कि उन पर अन्याय भी किया था. अब उसे लग रहा था कि यह तो अक्षम्य अपराध था जिस ने उसे बरबादी के कगार पर ला कर खड़ा कर दिया था.

प्रश्नचिह्न: निविदा ने पिता को कैसे समझाया

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प्रश्नचिह्न- भाग 2: निविदा ने पिता को कैसे समझाया

मालिनी क्लास में भी उस की दोस्ती किसी दूसरे से नहीं होने देती. उस की दबंगता की वजह से दूसरी लड़कियां निविदा के आसपास भी नहीं फटकतीं. मालिनी उस से मनचाहा व्यवहार करती. उस का दब्बूपन उस के लिए कुतूहल का विषय था. ऐसी लड़की पढ़ने में इतनी होशियार कैसे थी कि उसे इस कालेज में प्रवेश मिल गया.

मालिनी की हरकतों की वजह से निविदा भी कई बार डांट खा जाती थी.

एक दिन मालिनी टीचर्स के जाने के बाद क्लास में अपने गु्रप की लड़कियों के साथ टीचर्स की नकल कर उन का मजाक उड़ा रही थी. बाकी विद्यार्थी चले गए थे. लेकिन वह तो मालिनी की आज्ञा के बिना खिसक भी नहीं सकती. उस दिन मालिनी व उन लड़कियों की शिकायत चपरासी के जरीए टीचर्स तक पहुंच गई.

उन सब के साथ निविदा को भी खूब डांट पड़ी. कालेज में उस पूरे ग्रुप की तो छवि खराब थी ही, निविदा भी उस में शामिल हो गईर् थी. उन के क्लासरूम के आगे स्टाफरूम था जहां से निकल कर जाते समय टीचर्स की नजर विद्यार्थियों पर पड़ जाती थी.

दूसरे दिन मालिनी व उस की गु्रप की लड़कियां क्लासरूम की पीछे की खिड़की से कूद कर एडल्ट मूवी देखने की योजना बना रही थीं.

मालिनी ने उसे भी पकड़ लिया, ‘‘तू भी चल हमारे साथ.’’

‘‘नहीं, मैं नहीं जाऊंगी… मुझे क्लास अटैंड करनी है,’’ वह भीख मांगने वाले अंदाज में बोली.

‘‘एक दिन नहीं करेगी तो क्या आईएएस बनने से रह जाएगी?’’ चुपचाप चल हमारे साथ.

‘‘तुम मेरे साथ इतनी जबरदस्ती क्यों करती हो मालिनी?’’ वह घिघियाती हुई बोली, ‘‘तुम्हें जाना है तो तुम जाओ.’’

‘‘ताकि तू टीचर्स से हमारी खासकर मेरी शिकायत कर दे.’’

‘‘मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगी.’’

मगर मालिनी ने उस की एक न सुनी और उस के डर से वह भी पीछे की खिड़की से कूद कर मालिनी के साथ चली गई. उस में इतनी हिम्मत नहीं थी कि मालिनी की दबंगता के खिलाफ बगावत कर उस की शिकायत कर उस से दुश्मनी मोल लेती. मूवी में उस का मन बिलकुल नहीं लगा.

घर के घुटनभरे वातावरण से भाग कर यहां आईर् थी पर मालिनी पता नहीं कहां से अभिशाप बन उस के जीवन के साथ लग गईर् थी. मालिनी के गु्रप के साथ उसे जबरदस्ती रहना पड़ता था, जिस से क्लास में, कालेज में उस की छवि खराब हो रही थी.

यों मालिनी उसे कई मुसीबतों से बचाती भी थी. तबीयत खराब होने पर उसे डाक्टर को भी दिखा लाती. दवा भी ला देती. उस की तरफ उस का रवैया सुरक्षात्मक तो रहता पर वैसा ही जैसा किसी का अपने गुलाम के प्रति रहता है.

उस दिन उन के पूरे ग्रुप के गायब होने की शिकायत प्रिंसिपल तक चली गई और अगले दिन प्रिंसिपल के सामने उन का जवाब तलब हो गया. सब को खूब डांट पड़ी. सभी को अपनेअपने अभिभावकों को बुला लाने का फरमान सुना दिया गया. प्रिंसिपल के इस फरमान के बाद तो निविदा के लिए जैसे दुनिया खत्म हो गई और भविष्य चौपट.

पापा का डरावना चेहरा, मम्मी का रोनासिसकना, गिड़गिड़ाना, घर का घुटन भरा वातावरण सबकुछ याद आ गया. इस हरकत के बाद तो पापा उसे यहां कभी नहीं रहने देंगे. उस दिन कमरे में आ कर वह फूटफूट कर रो पड़ी. पर मालिनी को कोई फर्क नहीं पड़ा. वह मस्त थी.

‘‘इतना स्यापा क्यों कर रही है ऐसा क्या हो गया भई? मूवी ही तो गए थे किसी का मर्डर तो नहीं किया. प्रिंसिपल ने डांटा ही तो है… कालेज लाइफ में तो ये सब चलता ही रहता है.’’

‘‘तुम्हारे लिए यह साधारण बात होगी,’’ अचानक निविदा ने अपना आंसुओं भरा चेहरा उठाया, ‘‘पर मेरे लिए तो मेरा पूरा भविष्य खत्म हो गया. मुझे तो अब कालेज छोड़ना पड़ेगा… मेरे पापा अब मुझे यहां किसी कीमत पर नहीं रहने देंगे… जिन मुश्किलों से घबरा कर यहां आई थी, तुम्हारी हरकतों व ज्यादतियों ने मुझे फिर वहीं धकेल दिया. तुम्हारा क्या, तुम तो खेल की दुनिया में भी अपना कैरियर बना लोगी, पर मैं क्या करूंगी,’’ कहतेकहते निविदा फिर फूटफूट कर रोने लगी.

शांत और हर समय घबराई सी निविदा को इतने गुस्से से बोलते देख मालिनी एकाएक संजीदा हो गई. टेबल पर सिर रख कर फूटफूट कर रोती निविदा के सिर पर स्नेह से हाथ फेरने लगी, ‘‘चुप हो जाओ निविदा… लगता है कुछ गलती हो गई मुझ से… मैं कोशिश करूंगी स्थिति को संभालने की… कम से कम तुम पर आंच न आए… पर ऐसा क्या है तुम्हारे मन में जो तुम इतनी डरी और घुटी हुई रहती हो हर वक्त? क्या कमी है तुम में? तुम्हारे जैसा दिमाग, खूबसूरती, जिन के पास हो उन का व्यक्तित्व तो आत्मविश्वास से वैसे ही छलक जाएगा. सबकुछ होते हुए भी तुम इतनी डरपोक क्यों हो? आत्मविश्वास नाम की चीज नहीं है तुम्हारे अंदर.’’

निविदा ने कोई जवाब नहीं दिया.

मालिनी उस के सिर पर हाथ फेरती रही, ‘‘बताओ मुझे… शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद

कर सकूं.’’

‘‘तुम क्या मदद करोगी मेरी… इतनी बड़ी मुसीबत में फंसा दिया मुझे.’’

‘‘बोल कर तो देखो निविदा… खोटा सिक्का भी काम आता है कभीकभी… मैं जिंदगी को बहुत गंभीरता से कभी नहीं लेती, इसलिए बिंदास रहती हूं… पर तुम्हारी बातों ने आज सोचने पर मजबूर कर दिया है.’’

और निविदा ने धीरेधीरे सुबकसुबक कर पहली बार किसी गैर के सामने अपना पूरा मन खोल कर रख दिया. पूरा बचपन, पूरा अतीत बयां करते हुए मालिनी को न जाने कितनी बार निविदा को गले लगा कर चुप करा कर सांत्वना देनी पड़ी.

‘‘इतना कुछ निविदा… काश, तुम मुझे पहले बताती. आई एम सौरी… गलती हो गई मुझ से… पर मैं ही सुधारूंगी इसे. चाहे इस के लिए मुझे सारा इलजाम खुद पर क्यों न लेना पड़े. तुम फिक्र मत करो.’’

दूसरे दिन मालिनी प्रिंसिपल से व्यक्तिगत तौर पर मिलने उन के औफिस पहुंच गई

और उन्हें सारी बात कह सुनाई, ‘‘बस एक मौका और दे दीजिए मैम. पूरे ग्रुप से आप को कभी शिकायत का मौका नहीं मिलेगा… अगर शिकायत मिली तो आप सब से पहले मुझे रैस्टिकेट कर दीजिएगा…’’

प्रिंसिपल पिघल गईं और उन्होंने पूरे ग्रुप को माफी दे दी.

निविदा मालिनी की मुरीद हो गई. उस के बिंदास, लापरवाह, दबंग स्वभाव के पीछे एक संजीदा व सहृदय दोस्त के दर्शन हुए. जिस मालिनी की वजह से निविदा को कालेज की भी जिंदगी दमघोटू महसूस हो रही थी वही जिंदगी उसी मालिनी के सान्निध्य में खुशगवार लगने लगी थी. वह पढ़ाई करती तो मालिनी अपना ही नहीं उस का भी काम कर देती.

‘‘तू अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे… मैं तेरे जैसी लायक नहीं… पर मेरी सखी जिस दिन आईएएस बनेगी गर्व से कौलर मैं ही अप करूंगी.’’

‘‘वह मौका तो मुझे भी मिलेगा मालिनी जिस दिन खेल की दुनिया में तू नाम रोशन करेगी.’’

दोनों सहेलियां दिल से एकदूसरे के नजदीक आ गईर् थीं. प्रथम वर्ष के इम्तिहान के बाद विद्यार्थी छुट्टियों में अपनेअपने घर चले गए. निविदा भी दुखी मन से अटैची पैक करने लगी. अपने घर जाने का मन मालिनी का भी नहीं हो रहा था.

‘‘मैं भी तेरे साथ तेरे घर चलती हूं निविदा… कुछ दिन तेरे साथ रहूंगी. फिर कुछ दिनों के लिए घर चली जाऊंगी या फिर तू मेरे साथ चले चलना कुछ दिनों के लिए…’’

निविदा घबरा गई. मालिनी की बेबाकी घर में क्या गुल खिला सकती है, वह जानती थी. उस ने कई तरह के बहाने बनाए और फिर सुबह की बस से अपने घर चली गई.

प्रश्नचिह्न- भाग 3: निविदा ने पिता को कैसे समझाया

घर पहुंचे निविदा को 2-3 दिन ही हुए थे कि एक दिन शाम को बिना किसी पूर्व सूचना के मालिनी उस के घर पहुंच गई.

‘‘कौन हो तुम?’’ एक अजनबी लड़की को दरवाजे पर बैग और अटैची के साथ खड़े देख कर मालिनी के पापा ने पूछा.

‘‘नमस्ते अंकल… नमस्ते आंटी… मैं मालिनी हूं… निविदा की बैस्ट फ्रैंड और उस की रूममेट.’’

इसी बीच निविदा बाहर आ गई. मालिनी को देख कर बुरी तरह चौंक गई, ‘‘मालिनी तू?’’

‘‘तू मुझ से बोल कर आई थी कि मम्मीपापा के साथ साउथ घूमने जाना है पर मैं समझ गई थी तू झूठ बोल रही है. इसलिए आ गई,’’ मालिनी बेबाकी से बोली.

उस की बोलचाल, चालढाल, उस के व्यक्तित्व से लग रहा था जैसे घर में तूफान आ गया है. उस की हरकतें देख कर निविदा व उस की मम्मी सुलेखा अपनेआप में सिमट रही थीं और निविदा के पापा उस संस्कारहीन लड़की को आश्चर्य से त्योरियां चढ़ाए देख रहे थे.

‘‘मालिनी तू क्यों… मेरा मतलब तू कैसे आ गई?’’ सकपकाई सी निविदा बोली.

‘‘अरे, ऐसे क्यों घबरा रही है… तेरे साथ छुट्टियां बिताने आई हूं…’’ वह उस की पीठ पर हाथ मारती हुई बोली, ‘‘चल, मेरा सामान अंदर रख और बाथरूम स्लीपर ले कर आ… आंटीजी, कुछ खानेपीने का इंतजाम कर दीजिए. बहुत भूख लगी है.’’

सुलेखा किचन में घुस गईं. निविदा उस का सामान अंदर रख बाथरूम स्लीपर उठा लाई. मालिनी ने आराम से जूते खोल स्लीपर पहन कहा, ‘‘जा मेरे जूते भी कमरे में रख. मेरी अटैची से तौलिया निकाल लाना.’’ निविदा के तौलिया लाने पर मालिनी वाशरूम में घुस गई.

निविदा के पापा को निविदा के साथ उस का नौकरों जैसा व्यवहार अखर गया. सुलेखा पकौड़े बना लाईं.

मालिनी फ्रैश हो कर टेबल पर आ गई. पूछा, ‘‘क्या बनाया आंटी? वाह पकौड़े… तू भी खा निविदा. क्या स्वादिष्ठ पकौड़े बनाए हैं आंटी… इस निविदा को भी सिखा दीजिए… कभीकभी पीजी होस्टल के रूम में ऐसे ही पकौड़े बना कर खिला दिया करना.’’

‘‘निविदा तुम्हारी नौकरानी है न,’’ एकाएक निविदा के पापा बुदबुदाए.

‘‘अंकल कुछ कहा आप ने?’’

मगर उन्होंने कोईर् जवाब नहीं दिया. रात को मालिनी कमरे में निविदा से अपने व्यवहार के लिए माफी मांग रही थी.

‘‘पर तू ऐसा कर क्यों रही है… मेरे पापा के मन में मेरी बैस्ट फ्रैंड की इमेज खराब हो जाएगी.’’

‘‘तू देखती जा कि मैं क्या करती हूं.’’

दूसरे दिन नाश्ते की टेबल पर सब चुपचाप नाश्ता कर रहे थे. लेकिन मालिनी का घमासान जारी था. वह निविदा को किसी न किसी चीज के लिए किचन में दौड़ा रही थी.

‘‘अच्छा, वह अखबार भी उठा कर देना तो जरा निविदा,’’ वह इतमीनान से टोस्ट के ऊपर आमलेट रख कर खाते हुए बोली.

निविदा ने अखबार ला कर उसे दे दिया. फ्रंट पेज पर समाचार समलैंगिक संबंधों पर कोर्ट की मुहर लगने को ले कर था.

‘‘तुझे पता है निविदा, समलैंगिकता क्या होती है?’’ एकाएक मालिनी बोली.

निविदा के पापा के हाथ से टोस्ट छूटतेछूटते बचा. उन्होंने गुस्से से भरी नजरों से निविदा की तरफ देखा. निविदा को काटो तो खून नहीं.

‘‘चुप मालिनी बाद में बात करेंगे,’’ वह किसी तरह बोली.

‘‘अरे बाद में क्या… देख न अंदर क्या समाचार छपा है… एक पिता ने अपनी तीनों बेटियों से रेप किया… कितने वहशी होते हैं ये पुरुष… अपनी शारीरिक क्षमता पर बहुत घमंड है इन्हें… औरत को कमजोर समझते हैं… औरत इन के लिए एक शरीर मात्र है… 2 टांगों के बीच कुदरत ने इन्हें जो दिया है न उस के बल पर दुनिया रौंदने चले हैं… न रिश्ता देखते हैं, न उम्र… न समय देखते हैं न परिस्थिति… हर तरह से औरत का इस्तेमाल करना, फायदा उठाना शगल है इन का… बीवी के रूप में भी औरत का शोषण करते हैं. कमजोर मानसिकता के खुद होते हैं और मारतेपीटते, सताते बीवियों को हैं… मेरा पति ऐसा करेगा तो हाथपैर तोड़ कर रख दूंगी…’’

निविदा और सुलेखा सन्न बैठी रह गईं. पापा के सामने मालिनी की ऐसी बेबाकी से निविदा की टांगें कांपने लगीं. हाथ से दूध का गिलास छूट गया. गिलास तो फूटा ही, नाश्ते की प्लेट भी नीचे गिर कर टूट गई.

‘‘निविदा,’’ पापा की कु्रद्ध दहाड़ गूंजी, ‘‘तमीज नहीं है तुम्हें… इसीलिए भेजा है तुम्हें घर से बाहर पढ़ने कि तुम समय देखो न जगह… कुछ भी डिसकस करने लग जाओ.’’

निविदा को लगा कि पापा का गुस्सा आज या तो उस की मम्मी को हलाल करेगा या फिर उसे.

लेकिन मालिनी इतमीनान से बोली, ‘‘यह क्या निविदा… दूध पीती बच्ची है क्या अभी… चीजें गिराती रहती है… और तू कांप क्यों रही है… हर वक्त कांपती रहती है, क्लास में… कालेज में टीचर्स के सामने, लड़कियों के सामने. मैं सोचती थी तू वहीं कांपती है. डरपोक कहीं की. अंकल इसे किसी मनोचिकित्सक को दिखाइए… मानसिक रूप से बीमार है आप की बेटी.’’

निविदा के पापा गुस्से में नाश्ता पटक कर बाहर चले गए. निविदा खुद को संयत नहीं कर पा रही थी. मालिनी के सामने तो पापा ने किसी तरह खुद को नियंत्रित कर लिया पर इस का खमियाजा उसे बाद में भुगतना पड़ेगा.

पापा के जाने के बाद मालिनी निविदा को खींच कर कमरे में ले गई और छाती से चिपका लिया, ‘‘डर मत निविदा, तेरा डर ही तेरा दुश्मन है. अकसर हमारे अंदर के डर का दूसरे फायदा उठाते हैं. तेरे घर का वातावरण और तेरे पापा के व्यवहार, क्रोध व ज्यादतियों ने तेरे अंदर डर भर दिया है और मैं तेरा यह डर दूर कर के रहूंगी.’’

निविदा देर तक मालिनी के कंधे पर सिर रख कर रोती रही. उस के पापा इस कुसंस्कारी, दिशाहीन, वाचाल लड़की को जितना अपनी नजरों से दूर रखना चाहते, वह उतना ही उन के आसपास मंडराती. निविदा मन ही मन कामना कर रही थी कि मालिनी के रहते हुए घर में कोई अप्रिय स्थिति न खड़ी हो… कहीं पापा मम्मी की धुनाई कर के अपना गुस्सा न निकाल दें या फिर मालिनी को ही कुछ उलटासीधा बोल दें.

मालिनी को आए 1 हफ्ता होने वाला था. एक दिन एकाएक निविदा के

फोन पर किसी लड़के के दोस्ताना मैसेज आने लगे. वह कोई गलत बात तो नहीं करता पर उस के प्रोफाइल फोटो पर बड़े प्यारे कमैंट करता. उसे दोस्त बनाने को उत्सुक दिखता.

निविदा बहुत परेशान हो रही थी कि न जाने कौन लड़का है. प्रोफाइल पिक्चर देखी तो काफी आकर्षक लगा. फिर मालिनी से अपनी परेशानी कही, ‘‘पता नहीं इस के पास मेरा नंबर कहां से आ गया… कहीं पापा को पता चल गया तो…’’

‘‘अरे, तू इतना डरती क्यों है? कोई ऐसीवैसी बात तो नहीं लिख रहा न… इस उम्र में दोस्ती, थोड़ीबहुत ऐसी हलकीफुलकी बातें जायज हैं. लड़केलड़की की दोस्ती कोई बुरी बात नहीं. जब तक कुछ बुरा नहीं कह रहा चुप रह.’’

यह सुन कर निविदा नहाने चली गई.

मालिनी ने निविदा का मोबाइल उठा कर चुपचाप लौबी में अखबार पढ़ते उस के पापा के सामने टेबल पर रख दिया. मैसेज लगातार आ रहे थे. लगातार बजती मैसेज टोन से परेशान उस के पापा ने निविदा का मोबाइल उठाया और चैक करने लगे. किसी लड़के के मैसेज निविदा के मोबाइल पर और वे भी ऐसे दिलकश अंदाज में, साथ ही उस ने अपने कई फोटो भी भेजे थे. उन्हें समझ नहीं आया कि पहले मोबाइल पटकें या निविदा को या फिर मालिनी को घर से निकालें… बस बहुत हो गई बाहर रह कर पढ़ाई.

‘‘निविदा… सुलेखा…’’ वे बहुत जोर से चिल्लाए.

प्रश्नचिह्न- भाग 4: निविदा ने पिता को कैसे समझाया

सुलेखा किचन से गिरतीपड़ती बाहर निकल आईं. अपने कमरे में बैठी निविदा को अपने पापा की इतनी ऊंची दहाड़ का कारण समझ नहीं आया पर मालिनी को सब समझ आ रहा था. वह अपना सामान पैक कर चुकी थी. आज वह निर्णय ले चुकी थी कि नाटक से परदा उठाना है.

‘‘जा तेरे पापा बुला रहे हैं,’’ मालिनी बोली.

‘‘पर क्यों… इतना गुस्सा?’’ निविदा डर के कारण थरथर कांप रही थी, ‘‘तूने फिर कुछ कर दिया क्या?’’

‘‘कुछ नहीं किया मैं ने… तू जा तो सही,’’ उस ने निविदा को कमरे से बाहर धकेल दिया.

‘‘जी पापा,’’ निविदा हकलाते हुए बोली.

‘‘कौन है यह?’’

‘‘क… कौन?’’

‘‘यह लड़का. इसीलिए भेजा है तुझे चंडीगढ़ कि तू लड़कों के साथ गुलछर्रे उड़ाए? ऐसी बिगड़ैल, संस्कारहीन आवारा लड़कियों के साथ दोस्ती करे?’’

‘‘कौन लड़का पापा? मुझे नहीं पता आप किस की बात कर रहे?’’ पर फिर

पापा के हाथ अपना मोबाइल देख कर निविदा का सिर चकरा गया.

‘‘बुला अपनी उस सहेली को बाहर. बहुत हो गई बाहर रह कर पढ़ाई. अब तू यहीं रह कर पढ़ेगी. तेरी मम्मी के उलटेसीधे अरमान हैं ये. यहां कालेज नहीं हैं क्या?’’

पापा का गुस्सा देख कर निविदा थरथर कांप रही थी. सबकुछ समझ गई थी…

मालिनी ने उस का भविष्य खत्म कर दिया…

‘‘मैं इस लड़के की अभी पुलिस में रिपोर्ट करता हूं,’’ निविदा के पापा बोले.

‘‘ऐसा क्यों कर रहे हैं आप? पहले निविदा को आराम से बैठा कर पूछ तो लीजिए कि कौन है यह,’’ सुलेखा बोलीं.

‘‘तू चुप रह. तेरी सह पर ही बिगड़ी है,’’ एकाएक निविदा के पापा का एक झन्नाटेदार थप्पड़ सुलेखा के गाल पर पड़ गया.

अब तक मालिनी भी लौबी में आ चुकी थी. वह बोली, ‘‘यह क्या कर रहे हैं अंकल आप… शर्म आनी चाहिए आप को.’’

‘‘तुम चुप रहो. मेरे परिवार के बीच में बोलने का तुम्हें कोई हक नहीं है. मेरी बेटी को बिगाड़ कर रख दिया है तुम ने. नौकर बना कर रखा है इसे इतने दिनों से,’’ निविदा के पापा भी उतने ही गुस्से में चिल्लाए.

‘‘नीचे सुर में बात कीजिए अंकल मुझ से. निविदा की तरह दहाड़ सुनने की

आदत नहीं है मुझे,’’ मालिनी तैश में बोली, ‘‘अभी आप मुझे संस्कारहीन कह रहे थे. आप में कौन से संस्कार हैं. निविदा को मैं ने नहीं बिगाड़ा है, बल्कि मैं तो उसे मजबूत बनाना चाहती हूं. बिगाड़ा तो आप ने है उस का भविष्य. कभी सोचा है जिस बेटी के मनमस्तिष्क में इतना डर भर दिया है, जो अपने ही घर में हर कदम पर हारती रहती है वह घर से बाहर की दुनिया से कैसे जीतेगी? आज मेरा उस से नौकरों जैसा व्यवहार आप को चुभ रहा है, लेकिन आप ने उसे जितना आत्महीन व डरपोक बना दिया है, कल जमाना दबाएगा उसे.

‘‘विवाह के बाद आप जैसा ही कोई पुरुष उस का फायदा उठाएगा. कैसे लड़ेगी निविदा? अपने जीवन की छोटी सी भी कठिनाई से, परेशानी से… हर जगह आप खुद तो नहीं खड़े रहेंगे न उस के साथ. आंटी का जीवन नर्क बना दिया आप ने. आप की पत्नी हैं ये. क्या कुसूर है इन का? शरीर पर पड़ी आप की मार, इन के मनमस्तिष्क को उस से भी ज्यादा घायल कर देती होगी? बेटी के सामने और कर गई होगी… आज बेटी की सहेली के सामने. अगर इतना ही जोर से आंटी मार दे आप को इस समय तो कैसा लगेगा आप को?

‘‘सिर्फ पुरुष हैं. शारीरिक ताकत है. इस ताकत पर कूद रहे हैं आप? घर का माहौल इतना दमघोटू बना रखा है आप ने. मैं 2 ही दिनों में उकता गईर्. ये दोनों जिंदगी कैसे बिता रही होंगी? किसी विषय पर बात नहीं कर सकती निविदा आप के सामने. कहां जाए वह किसी विषय पर बात करने? इकलौती बेटी. पहले भरेपूरे परिवार होते थे अंकल, आजकल 1-2 बच्चे, मातापिता ही सरपरस्त, मातापिता ही दोस्त. अगर मातापिता दोस्त नहीं बनेंगे तो बच्चे बाहर भटकेंगे… इतनी अकल 20 साल की उम्र में मुझे भी है, फिर आप को क्यों नहीं है… सैक्स, समलैंगिकता, लिव इन रिलेशन, लड़कों से दोस्ती… क्या है इन बातों में ऐसा, जो आप से बात नहीं कर सकती निविदा? किसी लड़के से दोस्ती कोई गुनाह क्यों है आप की नजरों में? कौन सी सदी में जी रहे हैं आप?

‘‘और मुझे क्या निकालेंगे आप घर से. मैं खुद यहां रहना नहीं चाहती पर निविदा को समेट लीजिए अंकल, हर जगह मालिनी नहीं मिलेगी इसे… यहां पर तो मैं इस के साथ ऐक्टिंग कर रही थी… पर कालेज में जब मुझे यह पहली बार मिली थी तब ऐक्टिंग नहीं की थी मैं ने. इसे मिलने वाला हर इंसान मालिनी नहीं होगा, जो इस की असलियत जान कर गलत फायदा न उठाए और जिस लड़के के मैसेज निविदा के लिए आ रहे हैं वह मेरा भाई है. मैं ने ही कहा था उसे. स्वस्थ दोस्ती कोई गुनाह नहीं होती. अब नहीं आएंगे मैसेज… इतना मत दबाइए निविदा को कि उबरने में उस की पूरी जिंदगी खप जाए.

‘‘कमजोर पुरुष हैं आप… जिस बात का समाधान नहीं सूझा, आप ने आंटी को पीट कर निकाला और आप की मारपीट व झगड़े ने निविदा को मानसिक रोगी बना दिया था. आंटी ने छिपछिप कर इस का इलाज कराया… ऐसा न हो आप की ये हरकतें से फिर मानसिक रोगी बना दें और इस बार शायद हमेशा के लिए…’’ कहतेकहते मालिनी की आंखों में आंसू आ गए. कंठ अवरुद्ध हो गया. उस ने निविदा को एक बार गले लगाया और फिर भरी आंखों से एक प्रश्नचिह्न मालिनी के पापा की तरफ उछालती हुए अपना बैग कंधे पर डाल अटैची ड्रैग करती हुए बाहर निकल गई. रोती हुई निविदा अपने कमरे में चली गई.

निविदा के पापा हारे हुए खिलाड़ी की तरह अपनी जगह खड़़े रह गए. सुलेखा भी एक घृणित नजर उन पर डालती हुईं निविदा के पीछे चली गईं. मालिनी वह सब कह गई थी जो वे दोनों वर्षों से कहना चाहती थीं.

निविदा के पापा काफी देर हताश से वैसे ही खड़े रहे. इतने कड़े और स्पष्ट शब्दों में उन्हें आईना कोई नहीं दिखा पाया था. फिर अचानक उन की आंखों से आंसू निकले कि सचमुच बड़ी गलती कर गए जीवन में. उन की फूल सी बच्ची मनोचिकित्सक के चक्कर काट चुकी है नन्ही सी उम्र में और उन्हें पता ही नहीं. मालिनी उन के सामने एक प्रश्नचिह्न टांग गई थी. वे उठे और मालिनी के कमरे की तरफ चल दिए… जो कुछ बचा था उसे समेटने के लिए… मालिनी के प्रश्नचिह्न का जवाब लिखने के लिए.

प्रश्नचिह्न- भाग 1: निविदा ने पिता को कैसे समझाया

निविदा को चंडीगढ़ के मशहूर गर्ल्स कालेज में प्रवेश मिल गया था. उस की खुशी का ठिकाना न था. उज्ज्वल भविष्य की एक उम्मीद तो पक्की हो ही गईर् थी, पर सब से बड़ी बात यह थी कि वह अपने घर से भाग जाना चाहती थी. घुटन होती थी उसे यहां रहने में. नफरत हो गई थी उसे पिता की दबंगता व मम्मी की भीरुता से.

निविदा उठ कर अपनी स्टडी टेबल पर बैठ गई. मन में पिता के रौद्र रूप का कुछ ऐसा डर बैठा कि वह अपनी सहेलियों के पिताओं से भी डरने लगी. कोई उस से ऊंची आवाज में कुछ पूछ लेता तो उस के मुंह से शब्द नहीं निकल पाते. ऐसी स्थिति उस के साथ अकसर आती.

उस की सहेलियां अकसर उस का मजाक उड़ातीं, ‘‘कब तक बच्ची बनी रहेगी?’’

मम्मी का कभी सिर फूटा होता, कभी गालों पर थप्पड़ों के निशान होते, तो कभी पीठ पर नील पड़े होते. मम्मी को तो लंबे समय तक नाराज रहने या बोलचाल बंद रखने का भी अधिकार नहीं था. पापा से अधिक मुंह फुला कर बात करना भी उन्हें भारी पड़ जाता. वे और पिट जातीं. अगर पिटतीं नहीं तो खाने की थाली फिंकती या घर की कोई अन्य चीज टूटती. घर का वातावरण हमेशा तनावपूर्ण बना रहता. उस में सांस लेना दूभर हो जाता.

बचपन की याद आते ही निविदा का मन कड़वाहट से भर गया. उसे याद आया कि

क्लास में टीचर अचानक खड़ा कर के कोई

प्रश्न पूछते तो उत्तर आते हुए भी वह बता नहीं पाती थी और अगर टीचर ने डांट दिया तो उस की बोलती अगले कई दिनों के लिए बंद हो

जाती थी. वह चाहते हुए भी बातचीत शुरू नहीं कर पाती थी.

निविदा की ऐसी कई स्थितियां देख कर प्रिंसिपल जबतब उस की मम्मी को बुला लेती थीं पर मम्मी बेचारी भी क्या करतीं. वे इतनी परेशान हो गईं कि उस का स्कूल बदलने का सोचने लगीं. तब मम्मी की एक फ्रैंड ने उसे किसी मनोचिकित्सक को दिखाने की सलाह दी. मम्मी पिता से छिप कर उसे मनोचिकित्सक के पास ले गईं.

डाक्टर ने सबकुछ विस्तार से जानना चाहा तो मम्मी ने सबकुछ बता दिया.

पूरी बात सुन कर डाक्टर ने कहा, ‘‘मैं दवा तो दूंगा, लेकिन सब से पहला इलाज तो आप दोनों पतिपत्नी के हाथों में है. इस तरह लड़ते पतिपत्नी, एक कोने में खड़े बच्चों को बिलकुल भूल जाते हैं कि उन के कोमल मन पर इस का कितना खतरनाक असर पड़ता है.

‘‘आज की आप लोगों की  गलतियां आप की बेटी को मानसिक रूप से उम्रभर के लिए पंगु बना देंगी. वह अपना आत्मविश्वास खो देगी. मानसिक रूप से बीमार हो जाएगी.’’

‘‘आप ही बताएं, क्या करूं डाक्टर?’’

‘‘मेरे खयाल से बच्ची के भविष्य के लिए आप को अपने पति से अलग हो जाना चाहिए.’’

‘‘यह कैसे होगा डाक्टर… बच्ची का भविष्य बनाने के लिए पैसा भी तो चाहिए? मायके से भी कोई सहारा नहीं है मुझे,’’ मम्मी हताश हो कर बोलीं तो डाक्टर हार कर चुप हो गए.

डाक्टर से दवा लिखवा कर मम्मी उसे घर ले आई थीं. उस के बाद मम्मी उस का अतिरिक्त खयाल रखने लगी थीं.

बड़ी होतेहोते निविदा समझने लगी थी कि उसे अतिरिक्त भावनात्मक सुरक्षा देने में मम्मी भी किस कशमकश व अंतर्द्वंद्व के दौर से गुजरती थीं.

एक तरफ गुस्से से दहाड़ता पति, दूसरी तरफ कांपती बेटी… मम्मी को खुद को कितना जोड़ना पड़ता था उसे टूटने से बचाने के लिए.

मम्मी बस उसे उठतेबैठते पढ़ाई पर ध्यान लगाने के लिए समझातीं, कुछ बड़ा करने के लिए प्रेरित करतीं, ‘‘देख बेटा, बहुत कुछ हासिल कर सकती है तू अपनी शिक्षा के बल पर… अपने पैरों पर खड़ा होना और वह भी इतनी मजबूती से कि कोई तुझे धक्का न दे सके… बस तू पढ़ाई में अपना तनमन लगा दे.’’

और निविदा ने खुद को किताबों में डुबो दिया. जबजब घर की स्थिति कटुपूर्ण होती, वह अपने कमरे का दरवाजा बंद कर देती, क्योंकि पिता का विरोध करने की उस में हिम्मत नहीं थी. ‘पिता का मजबूती से विरोध करने के लिए उसे मजबूती से अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ेगा,’ इसी सोच ने उसे किताबी कीड़ा बना दिया.

12वीं कक्षा में उस ने 97% मार्क्स लिए. मम्मी काफी खुश हुईं. पापा ने भी बहुत शाबाशी दी. बेटी की प्रगति से वे खुश तो होते थे पर वे उस का खो क्या रहे हैं, यह नहीं समझते थे.

लड़कियों के मामले में उस के पिता आज भी दकियानूसी विचारों के थे. लड़कों से दोस्ती, खुली या छोटी पोषाक पहनना, बातचीत में खुलापन, बड़ों से हर विषय पर बातचीत, लड़की का मुंह उठा कर कुछ भी जोर से बोल देना, देर तक सहेली के घर रुकना, उन की नजरों में आज के जमाने में भी संस्कारहीन रवैया था. ऐसे ही बहुत से कारण थे जिन से वह इस बंदीगृह से भाग कर खुली हवा में सांस लेना चाहती थी.

आखिर उस का प्रवेश चंडीगढ़ के एक कालेज में हो गया. लेकिन उस की मुश्किलें यहां भी कम नहीं हुईं. पीजी होस्टल में उसे रूममेट के नाम पर जिस लड़की का साथ मिला, वह उस से बिलकुल उलट थी. मालिनी अति आत्मविश्वासी, बिंदास, टौमबौय टाइप की, पढ़ने में औसत, एक हाकी प्लेयर थी जिस का प्रवेश इस कालेज में स्पोर्ट्स कोटे से हुआ था.

निविदा ने कमरे में पहले अपना सामान रखा, बाद में मालिनी आई थी. 5 फुट 7 इंच लंबी पैंटशर्ट पहने, बौय कट हेयर और लड़कों जैसे बेबाक हावभाव व बातचीत देख कर निविदा पहले ही दिन घबरा गई कि कहां फंस गई… यह तो पढ़ने भी नहीं देगी. उस ने अपना कमरा बदलवाने की कोशिश भी की पर सफल न हो सकी.

‘‘क्या बात है कमरा बदलवाने गईर् थी? मुझ से डर लगता है… खा जाऊंगी क्या?’’

‘‘न… नहीं तो…’’ निविदा उस की बेबाक बात से सूखे पत्ते सी कांप गई.

‘‘तो फिर?’’ वह एक पैर कुरसी पर रखती हुई बोली.

‘‘नहीं, बस मैं तो ऐसे ही…’’

‘‘क्या कमरा बदलना है?’’ वह उस के कंधे पर हाथ रखते हुए, देख लेने वाले अंदाज में बोली, ‘‘तो बदलवा देती हूं.’’

‘‘न… नहीं तो…’’

‘‘ठीक है तो फिर फिक्र मत कर…’’ वह कंधा थपथपाते हुए बोली, ‘‘अब चल जरा मेरा सामान खोल और मेरी अलमारी में लगा दे..’’

‘‘मैं?’’

‘‘हां तो और कौन? पिघल जाएगी क्या

मेरा सामान लगाने में?’’ वह धमकाने वाले अंदाज में बोली.

निविदा आगे कुछ नहीं बोली. चुपचाप मालिनी का सामान निकाल कर अलमारी में लगाने लगी. कमरा छोड़ कर जाए भी तो कहां. यहां होस्टल में यह दबंग लड़की उसे रहने नहीं देगी और घर जाना नहीं चाहती.

मालिनी का बिस्तर ठीक करना, कपड़े धोना, प्रैस करना, मतलब कि उस के सभी जरूरी कार्य करना उस की दिनचर्या में शामिल होने लगा. तिस पर भी मालिनी उसे चैन से रहने दे तब तो. कभी वह कमरे में दोस्तों का जमघट लगा लेती, कभी फोन पर जोरजोर से बातें करती, कभी मोबाइल पर गाने सुनती. और कुछ नहीं तो जबरदस्ती उस से फालतू की बातें करती. वह तभी चैन से पढ़ पाती जब मालिनी कहीं खेलने गई होती.

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