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सुलेखा किचन से गिरतीपड़ती बाहर निकल आईं. अपने कमरे में बैठी निविदा को अपने पापा की इतनी ऊंची दहाड़ का कारण समझ नहीं आया पर मालिनी को सब समझ आ रहा था. वह अपना सामान पैक कर चुकी थी. आज वह निर्णय ले चुकी थी कि नाटक से परदा उठाना है.

‘‘जा तेरे पापा बुला रहे हैं,’’ मालिनी बोली.

‘‘पर क्यों... इतना गुस्सा?’’ निविदा डर के कारण थरथर कांप रही थी, ‘‘तूने फिर कुछ कर दिया क्या?’’

‘‘कुछ नहीं किया मैं ने... तू जा तो सही,’’ उस ने निविदा को कमरे से बाहर धकेल दिया.

‘‘जी पापा,’’ निविदा हकलाते हुए बोली.

‘‘कौन है यह?’’

‘‘क... कौन?’’

‘‘यह लड़का. इसीलिए भेजा है तुझे चंडीगढ़ कि तू लड़कों के साथ गुलछर्रे उड़ाए? ऐसी बिगड़ैल, संस्कारहीन आवारा लड़कियों के साथ दोस्ती करे?’’

‘‘कौन लड़का पापा? मुझे नहीं पता आप किस की बात कर रहे?’’ पर फिर

पापा के हाथ अपना मोबाइल देख कर निविदा का सिर चकरा गया.

‘‘बुला अपनी उस सहेली को बाहर. बहुत हो गई बाहर रह कर पढ़ाई. अब तू यहीं रह कर पढ़ेगी. तेरी मम्मी के उलटेसीधे अरमान हैं ये. यहां कालेज नहीं हैं क्या?’’

पापा का गुस्सा देख कर निविदा थरथर कांप रही थी. सबकुछ समझ गई थी...

मालिनी ने उस का भविष्य खत्म कर दिया...

‘‘मैं इस लड़के की अभी पुलिस में रिपोर्ट करता हूं,’’ निविदा के पापा बोले.

‘‘ऐसा क्यों कर रहे हैं आप? पहले निविदा को आराम से बैठा कर पूछ तो लीजिए कि कौन है यह,’’ सुलेखा बोलीं.

‘‘तू चुप रह. तेरी सह पर ही बिगड़ी है,’’ एकाएक निविदा के पापा का एक झन्नाटेदार थप्पड़ सुलेखा के गाल पर पड़ गया.

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