आखिर किसे एक्सपोज करना चाहती हैं मिर्जापुर 2 की एक्ट्रेस प्रशंसा शर्मा

बहुमुखी प्रतिभा की धनी प्रशंसा शर्मा वास्तव में बधाई की पात्र है. वह लेखक, भारत नाट्यम नृत्यांगना, कराटे में ब्लैक बेल्ट धारी, गायक व अभिनेत्री हैं. झारखंड के झुमरी तलैया निवासी प्रशंसा शर्मा की शिक्षा देहरादून के बोर्डिंग स्कूल में हुई, फिर उन्होने दिल्ली के हिंदू कॉलेज से दर्शन शास्त्र में स्नातक तक की पढ़ाई की. उसके बाद थिएटर करती रहीं. इसी बीच उन्हें स्कॉलरशिप मिल गयी, तो वह प्राग चली गयी. वहां पर अभिनय की पढ़ाई करने के साथ ही यूरोपीय सिनेमा में न सिर्फ अभिनय किया, बल्कि वहां पर एक फिल्म लिखी थी, जिसमें उन्होने अभिनय किया था. पर अपनी मातृभाषा और अपने वतन में काम करने की इच्छा के चलते वह वापस भारत आकर बॉलीवुड पहुंच गयी. यहा पर कुछ फिल्मों में छोटे किरदार निभाए. उसके बाद ‘फोर मोर शॉट्स’, ‘मिर्जापुर’, ‘मिर्जापुर 2’मे अभिनय किया. इन दिनों ‘आल्ट बालाजी’और ‘जी 5’की वेब सीरीज‘‘बिच्छू का खेल’’में  पूनम तिवारी के किरदार में नजर आ रही हैं.

प्रशंसा शर्मा से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत इस प्रकार रही.

‘‘झुमरी तलैया’’जैसी छोटी जगह से मुंबई आकर कैरियर बनाने का अनुभव क्या रहा?

-बहुत मुश्किल रहा. पर मजा भी आया. बहुत संघर्ष रहा. क्योंकि हमें पता ही नहीं था कहां-कहां कहां औडीशन हाते हैं. मैं बहुत भटकी हूं. अब तो यह याद नही कि हमने कितनी बार औडीशन दिया, कितनी बार रिजेक्ट हुई, कितनी बार फिल्म मिलते मिलते भी नहीं मिली. मेरे लिए यह यात्रा बहुत ही सुंदर रही. मैंने अपने मुकाम को देखना छोड़ दिया है. बस, जिस तरह से चीजें सामने आ रही है, उसे ही इंज्वॉय करती जा रही हूं. मेरे काम की प्रशंसा करने वालों की मैं शुक्रगुजार हूं. हो सकता है कि आगे मुझे प्रशंसा ना भी मिले, तो मैं उसके लिए भी तैयार हूं.

मैं मूलतः झारखंड के झुमरी तलैया से जरूर हूं, लेकिन 8 साल की उम्र के बाद मैं वहां रही नहीं हूं.  मेरे माता पिता ने मुझे बोर्डिंग स्कूल भेजा. वहां से भी मुझे कई सारे अच्छे अच्छे अनुभव मिले. एक्सपोजर मिला . उसके बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी में भी काफी अच्छा अनुभव मिला. फिर प्राग में पढ़ाई करने का अवसर मिला. मैं बचपन से ही बहुत स्वतंत्र रही हूं. मेरे माता पिता ने मुझे हमेशा हर काम खुद से करने के लिए सिखाया है. मुझे कुछ भी, कभी भी तैयार नहीं मिला. हर चीज के लिए मेहनत करनी पड़ी. इसीलिए मुंबई मेरे लिए बहुत ज्यादा अच्छा रहा है. बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव रहे हैं. आज मैं इस बात के लिए खुश हूं कि मुझे बहुत अच्छे अनुभव मिले है. मुझे सफलता व असफलता की कद्र पता है.

मुंबई पहुंचने पर आपको किस तरह के संघर्ष से जूझना पड़ा?

-मुझे दूसरों के मुकाबले कुछ कम संघर्ष करना पड़ा. वास्तव में मुंबई पहॅुचने के बाद मैने सीधे अभिनेत्री के तौर पर फिल्में पाने का संघर्ष नहीं किया. मेरे सामने मंुबई में अपने आपको टिकाए रखने की जरुरत थी. इसलिए ऐसा काम करना था,  जिससे कुछ पैसे मिलते रहें. इसके साथ ही मेरा मकसद फिल्म विधा को और कैमरे के पीछे के काम को भी समझना था. इसलिए मुंबई पहुंचने के बाद मैंने निर्देशक आयप्पपा के साथ बतौर सहायक निर्देशक काम करना शुरू किया. मुझे उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला. मैने इंटर्नशिप वहां से शुरू की, बाद में मैने दूसरों के साथ भी सहायक निर्देशक के तौर पर काम किया.

वैसे जब मैं मुंबई पहुंची, तो मेरे मन में डर भी था और अभिनेत्री बनने का एक्साइटमेंट उत्साह भी था. बतौर सहायक निर्देशक काम करते हुए काफी कुछ सीखा और बॉलीवुड की कार्यशैली समझ में आयी. तब मैने धीरे धीरे अभिनय करने के मकसद से आॅडीशन देने शुरू किए. काफी रिजेक्शन हुए. कुछ फिल्में मिली, पर फिर हाथ से निकल गयीं. मुझे पता था कि अभिनय कैसे करना है, पर मुंबई पहुंचने के बाद यहां लोगों को बताना पड़ता है कि मैं अभिनय कर सकती हूं. तो उस प्रोसेस का हिस्सा बनी.

पहला ब्रेक कैसे मिला?

-मुझे लगता है कि अभिनेत्री के तौर पर मेरा पहला ब्रेक तो बचपन में ही मिल गया था. मैं पांच वर्ष की उम्र से ही स्टेज पर अभिनय करती आयी हूं. पांच वर्ष की उम्र में स्टेज पर एक नाटक का मंचन हो रहा था. मैने देखा कि एक कलाकार खरगोश की तरह स्टेज पर कूद रहा है. तो मुझे लगा कि मैं भी ऐसा कर सकती हूं. तो मैंने भी खरगोश की तरहजंप कूदी. जिसे देखकर निर्देशक ने मुझे खरगोश के किरदार के लिए चुन लिया. यही मेरा पहला ब्रेक था और तभी मुझे अहसास हो गया था कि मुझे यही करना है.

किन किन नाटकों में आपने अभिनय किया है?

-मैं बचपन से ही नाटक करती आयी हूं. स्कूल व कालेज में भी नाटकों में अभिनय किया करती थी. रत्ना पाठक शाह और आदि पदमशी के निर्देशन में नाटक किए हैं. हिंदू कालेज में मैं ड्रामैटिक सोसायटी की हेड थी. उस वक्त नाटक मंे अभिनय व निर्देशन दोनों करती थी. नाट्य फेस्टिवल का हिस्सा बनती थी. नाट्य प्रतियोगिताओं मंे अपने नाटक लेकर जाया करती थी. मैने कई अवार्ड जीते हैं. बंगलोर, दिल्ली सहित कई शहरों के स्कूलों में नाट्य प्रतियोगिता का हिस्सा बनी. मैं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय भी गयी थी. मुंबई के पृथ्वी थिएटर, रंगशारदा, एनसीपीए पर मेरे नाटक के शो हुए. हमने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में ‘‘द क्यूरिएस्ट लैंप आफ  काटकी’’में अभिनय किया था. अभी अतुल कुमार के संग पृथ्वी पर दस दिन तक एक नाटक‘‘दिस इज आल वेल, व्हेन देअर इज वेल’’.

भारत नाट्यम नृत्य और भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा कहां से ली?

-मुझे चटर्जी शिक्षक ने मुझे डफली बजाना,  हरमोनियम बजाना और गाना सिखाया. जबकि श्रीमती राजलक्ष्मी से मैंने भारत नाट्यम नृत्य सीखा. मैने उनके साथ आठ वर्ष तक भारत नाट्यम किया. मैने आठवीं कक्षा में भारत नाट्यम विषय के साथ परीक्षा भी दी थी. 12वीं में संगीत और भारत नाट्यम मेरे विषय थे. बचपन से ही मुझे नाटकों में अभिनय करना, गीत गाना और नृत्य करने का शौक रहा है.

आपने यूरोप में कौन सा सिनेमा किया?

-मैने यूरोपीय सिनेमा में लघु फिल्में काफी की हैं. मैंने ‘डर्टी लांड्री’, ‘मारा’, ‘स्वीट’जैसी फिल्में की.  मुझे बूरो कापिला संग काम करने का मौका मिला था. मैने कुछ लोगों के साथ मिलकर पटकथा लिखी थी फिर बूनो कापिला ने उसे निर्देशित किया था. इसके अलावा फ्रांस की कई इंडीपेंडेंट कंपनियों के साथ मैने काम किया था. जब मैं प्राग के स्कूल मंे गयी थी, उस वक्त प्राग के कई इंडीपेंडेंट फिल्मकारों के साथ जुड़ने का सौभाग्य मिला था. मुझे सामने से बुलाकर अभिनय के काम दिए जाते थे और मुझे मजा भी आता था, वहां पर काम करते हुए.

आपने वहीं रहकर यूरोपीय सिनेमा में काम करने की बजाय मुंबई वापस क्यों आ गयी?

-मुझे इस बात का अहसास था कि मेरी मातृभाषा हिंदी है और मुझे अंग्रेजी अच्छी आती है. मुझे वहां पर रूसी या फ्रांसीसी व अन्य भाषाओं में काम करना पड़ रहा था, जो कि काफी कठिन हो रहा था. मैने सोचा कि क्यों न मैं बॉलीवुड जाकर अपनी भाषा में काम करुं. इसी सोचा के साथ मैं मुंबई वापस लौटी. फिर अपना वतन, अपना ही होता है. इसके अलावा इन दिनों भारत में जिस तरह की वेब सीरीज व कुछ फिल्में बन रही हैं,  लिखी जा रही है, जिस तरह की कहानियों पर काम हो रहा है, ऐसा तेज गति से बदलाव दुनिया के किसी भी कोने में नहीं आया है. यहां ढेर सारी वेब सीरी बन रही हैं. तो मुझे लगा कि अभिनय करने के लिए भारत से बेहतर जगह कोई हो हीं नहीं सकती. लेकिन मैं अंतरराष्ट्रीय सिनेमा, क्रास ओवर सिनेमा,  यूरोपियन सिनेमा भी करना चाहूंगी. पर फिलहाल वेब सीरीज व फिल्मों के संदर्भ में भारत से ज्यादा उत्साह जनक जगह कोई और नही है.

आपने यूरोप में फिल्म लिखी थी. भारत पहुॅचने के बाद आपने लेखन मंे रूचि नहीं दिखायी?

-मैं अपना प्रोडक्शन हाउस चलाती हूं, जिसका नाम है-‘‘डाक्यू प्रोडक्शन’’. जिसके तहत अब तक मैंने कई विज्ञापन फिल्में बनायी हैं. कुछ ब्रांड फिल्में लिखी हैं. मैने एक फिल्म की पटकथा लिखी है, जिसे प्रोड्यूर्स गिल्ड ने दस सर्वश्रेष्ठ पटकथाओं में चुना है. इस पर जल्द ही फिल्म बन जाएगी. इसके अलावा एक अन्य पटकथा भी लिखी है. तो वहीं मैं नित्या मेनन की राइटिंग टीम का भी हिस्सा हूं. उनकी वेब सीरीज में एक लेखक मैं भी हूं. यूरोपीय सिनेमा में काम करने के बाद अब मुंबई में बौलीवुड सिनेमा में काम करते हुए क्या फर्क महसूस करती हैं?

-वहां पर अनुशासन ज्यादा है.

जब अपको पहली बार ‘मिर्जापुर’ में राधिया का किरदार निभाने का आफर मिला था, उस वक्त मन में क्या विचार आए थे?

-किरदार सुनने के बाद मेरे दिमाग में आया था कि इसे मैं निभाउं कैसे? मैने स्क्रिप्ट पढ़ी तो उसमे राधिया के दृश्य काफी कम थे. मैं उपर से इस किरदारो निभाना नहीं चाहती थी. मेरा किरदार छोटा हो या बड़ा, मैं अपने हर किरदार को लेकर एक जैसी मेहनत करती हॅू. जब मेरे पास ‘मिर्जापुर’में राधिया के किरदार का आफर आया, तो मंै इसके लेखक पुनीतकृष्णन से मिली. मैं अपने साथ इस किरदार को लेकर काफी नोट्स तैयार कर ले गयी थी. हम लोगों के बीच काफी चर्चा हुई, उन्हे भी मजा आया. हमने मेहनत करके इस किरदार को गढ़ा. वह घर पर है, पर जब वह कुछ करती है या बोलती है, तभी वह नजर आती है या ‘एलाइव’होती है. उसके बोलेन का ढंग, चाल ढाल, सब कुछ मेरे लिए काफी एक्साइटमेंट रहा.

‘‘आल्ट बालाजी’’की वेब सीरीज‘‘बिच्छू का खेल’’को लेकर क्या कहेंगी?

-इस हास्य व अपराध प्रधान वेब सीरीज में मैं  कॉमेडी करते हुए नजर आ रही हॅंू. मैंने कॉमेडी करते हुए काफी इंज्वॉय किया. ‘मिर्जापुर’ में राधिया जैसा एक गंभीर इंटेंस किरदार निभाने के  बाद जब मेरे पास ‘बिच्छू का खेल’का आफर आया कि इसमें कॉमेडी करनी है, तो मैंने तुरंत लपक लिया. इसके निर्देशक आशीश आर शुक्ला बेहतरीन निर्देशक हैं. मुझे उस वेब सीरीज या फिल्म में काम करने में मजा आता है, जहां मैं निर्देशक के साथ कोलाबरेट कर सकूं, अपना कुछ योगदान दे सकूं. मैं उन अभिनेत्रियों में से नहीं हूं कि सेट पर पहुंचे, संवाद बोले और काम खत्म. निर्देशक आशीश आर शुक्ला के साथ बैठकर मैने अपने पूनम के किरदार पर काफी काम किया,  काफी समय बिताया. मैने भी कुछ लिखा, कुछ संवाद बदले और किरदार को एक नया रंग दिया.

पूनम बहुत मजेदार और रोमांटिक महिला है. वह अपने व पुलिस इंस्पेक्टर निकुंज तिवारी(जीशान कादरी) के साथ समय बिताती हैं. बहुत ही बबली है. फुल आफ लाइफ है. मुझे पूनम के किरदार में कलाकार की हैसियत से काफी कुछ करने का अवसर मिला. यह किरदार राधिया के एकदम विपरीत है.

आप भारत नाट्यम डांसर भी हैं. यह आपके अभिनय में किस तरह से मदद करता है?

-देखिए, हर तरह के नृत्य में भाव तो लाने ही पड़ते हैं. भारत नाट्यम का जो स्ट्क्चर व अनुशासन है, वह मेरी हर जगह मदद करता है. और मुझे बहुत प्रिय भी है. भारत नाट्यम मुझे अनुशासन में रहने की याद दिलाता रहता है. भारत नाट्यम डांस में ढेर सारे एक्सप्रेशन हैं, भाव भंगिमाएं हैं. मैं बचपन से ही स्टेज पर नृत्य व भारत नाट्यम करती आयी हूं.

आपने भारत नाट्यम के स्टेज शो करने की नहीं सोचती?

-मैं आशा करती हूं कि मुझे किसी वेब सीरीज या फिल्म के अंदर ऐसा कोई किरदार मिले, जिसमें मुझे भारत नाट्यम करने का भी अवसर हो.

अब यूट्यूब  का जमाना है. लोग अपने खुद के गाए हुए गाने यूट्यूब पर डाल देते हैं. आप भी ऐसा कर सकती हैं?

-जी हां! बिलकुल. . . थोड़ा रियाज कर लूं. फिर गाना रिकार्ड कर ‘यूट्यूब’पर डालना शुरू करुंगी. इसके अलावा में कराटे में ब्लैक बेल्ट भी हूं.

आपकी प्रतिभा को देखकर आपके माता-पिता क्या सोचते हैं?

-मेरे माता पिता ने कभी भी मेरे उपर कुछ भी जबरन नहीं थोपा. उन्होने मुझे पढ़ाई के लिए भी ही दबाव नहीं डाला. मुझसे कभी नही कहा कि मुझे डाक्टर या इंजीनियर बनना है. इसी वजह से मैं बचपन से ही पढ़ाई छोड़ कर नाटक, संगीत, नृत्य , कराटे आदि करती रही हूं. मेरे अंदर बहुत ज्यादा एनर्जी है. मैं घंटो तक यह सारी चीजें कर सकती हूं. मेरे माता पिता को मेरे बचपन में ही पता चल गया था कि यह लड़की कला के क्षत्रे मेंं ही कुछ करेगी. वह लोग बहुत ज्यादा सपोर्टिव हैं. उन्होंने मुझे मेरी मर्जी के अनुसार काम करने की पूरी छूट दी. मुझे हमेशा से लगता है कि हम कलाकार के बारे में इतना कुछ पढ़ते हैं, तो उसका कलाकार के माता-पिता किस दौर से गुजरते हैं?हर माता-पिता को उनके बच्चे की काबीलियत पता होती है, ऐसे में जब उनके बच्चे को काम नहीं मिलता है, तो उन पर क्या बीतती है. इसकी कहीं चर्चा नहीं होती. बौलीवुड में हर किसी को वर्षों तक संघर्ष करना पड़ता है. और उस संघर्ष को उसके  माता पिता देखते रहते हैं, जो कि उनके लिए बहुत दर्द पूर्ण होती हैं. मेरे माता-पिता के लिए भी यह बहुत कठिन था, लेकिन फिर भी उन्होंने बहुत प्यार से मुझे संभाला,  सपोर्ट किया.

आपने काफी कुछ लिखा है. आपने फिल्म की पटकथा भी लिखी है. तो आपको ऐसा नहीं लगता है कि आप किसी फिल्म को खुद निर्देशित भी करें?

-नहीं. . . मैं निर्देशन नहीं करूंगी. पर मैं अपनी लिखी हुई पटकथा वाली फिल्म में अभिनय जरुर करूंगी. सिद्धांत मेरे सह लेखक है. बहुत सारी चीजें हम लोग साथ में लिखते हैं.  जाहिर सी बात है कि मैं जो लिखूंगी,   उसमें अभिनय करना चाहूंगी. मगर निर्देशन नही करना चाहती.

आपको किस तरह की किताबे पढ़ने का शौक है?

-मैं बहुत पढ़ती हूं. मेरे पसंदीदा लेखक मिलिंद तोमर है. मैं चाहती हूं कि मैं उर्दू सीख लूं, ताकि और अच्छे अच्छे लेखकों को पढ़ सकूं. मिलन कुंडेरा मेरा फेवरेट अॉथर है. मुझेफिलॉसफी के बारे में पढ़ना बहुत अच्छा लगता है. मैंने फिलॉसफी विषय के साथ ही स्नातक की डिग्र्री हासिल की है. मुझे भारतीय दर्शन शास्त्र बहुत पसंद है.

दर्शन शास्त्र फिलॉसफी अभिनय में भी बहुत मददगार साबित होती होगी?

-बिलकुल मदद करती है. क्योंकि फिलॉसफी आपको अभिनय करने के लिए फोर्स करती है. यही वजह है कि शायद मैं हर किरदार को को इतना अच्छी तरह से कर पाती हूं और शायद इसी वजह से वह इतना निखर कर आता है. क्योंकि मैं उसके बारे में बहुत ज्यादा सोचती हूं. बहुत अंदर तक पहुंच जाती हूं. क्योंकि फिलॉसफी दर्शन शास्त्र कहीं ना कहीं मुझे मदद करता ही है. मैं एक्टिंग पर आधारित किताबें भी बहुत पढ़ती हूं. मैं हमेशा अपनी कला को निखारती रहती हूं. मैंने जापानी थिएटर से संबंधित कई किताबें पढ़ी हैं. मैं अपने स्किल और अपने अभिनय को बेहतर बनाने का पूरा प्रयास करती रहती हूं.

आपके अब तक के अनुभव क्या कहते हैं?

-जितनी मुझे जानकारी है, उसके आधार पर मुझे लगता है कि मुझे भविष्य में बहुत सारा अच्छा काम करने का अवसर मिलेगा. अभी तो सिर्फ एक छोटी सी शुरुआत है. अभी तो मैंने सिर्फ एक कदम चला है.  अभी तो पूरा रास्ता चलना बाकी है.

किस तरह के किरदार करने में आपकी ज्यादा रुचि है?

-मुझे ऐसे किरदार पसंद है, जिसमें गहराई हो. मुझे वैसा किरदार निभाना है, जो वास्तव में इंसान नजर आए.  मुझे ऐसे किरदार करने में बहुत बहुत ज्यादा  दिलचस्पी है. मैं ऐसा किरदार करना चाहती हूं, जो बहुत कुछ करता हो. मैं कोई ऐसा किरदार निभाना चाहती हूं, जिसे निर्देशक ने पूरी तरह से सोचा है और वह किसी इंसान के बारे में हो. खास तौर पर औरतों के बारे में. पर मुझे ऐसी महिला के किरदार नही निभाने हैं, जिसे महज सेक्स परोसने के नजरिए से फिल्म में रखा जाता है. मुझे ऐसा किरदार निभाना है, जो गलतियां भी करती है.  मुझे उन किरदारों को निभाने में रूचि है, जिसमें इंसान को सही ढंग से दिखाया जाए, औरतों को सही ढंग से दिखाया जाए. औरत भी इंसान है. उसकी भी अपनी इच्छाएं व समझ है. तो मैं मुझे अगर ऐसा कुछ करने को मिला, तो मुझे बहुत खुशी होगी.  मैं जब किसी किरदार को निभाती हूं, तो हमेशा यही कोशिश करती हूं कि मैं उसके अंदर कितना कुछ दे दूं,  ताकि वह एक इंसान की तरह नजर आए, किरदार की तरह नहीं.

बौलीवुड में नारी सशक्तिकरण के नाम पर कुछ रहा है या नहीं?

-शुरुआत तो हो गई है. पर मुझे लगता है कि अभी हमें बहुत कुछ करना बाकी है. अभी इसे बहुत सुधारना है. अभी तो हमने सिर्फ शुरुआत की है, जो कि बहुत अच्छी बात है.  लेकिन फिर भी अभी हमें इसमें बहुत बहुत कुछ करना है.

बौलीवुड फिल्मों में एक्सपोजर बहुत होता है. आपने क्या सीमाएं तय की है?

-इस तरह बता पाना मुश्किल है. पटकथा के आधर पर ही बता सकती हूं. अगर पटकथा पढ़ कर मुझे लगता है कि ऐसा करके ही कहानी आगे बढ़ेगी, तो शायद मैं एक्सपोज कर दूंगी. अगर मुझे ऐसा लगेगा कि इसकी कोई जरूरत नहीं है, यह सिर्फ दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए रखा गया है, तो नहीं करूंगी.

आपका फिटनेस मंत्रा क्या है?

-ज्यादा खाना खाना खाती हूं. ज्यादा स्पाइसी खाना नहीं खाती. योगा व  वॉकिंग करती हूं. दौड़ती हूं. अगर हम अपनी सही लाइफ स्टाइल को फॉलो करेंगें, तो अपने आप ही फिट रहेंगें.

लॉकडाउन के पांच माह लोग अपने अपने घरों में कैद रहे. उस दौरान आपने कैसे समय बिताया ?

-मैंने लिखा. पहली बार मैंने अपनी खुद की स्क्रिप्ट लिखी, जो कि मेरे लिए बहुत ज्यादा चुनौतीपूर्ण रहा. मैंने एक्टिंग के बारे में बहुत कुछ पढ़ा. बहुत सारे आॅन लाइन वर्कशॉप किए. मैंने समय का सही उपयोग किया. मेरे जो शिक्षक थे, उनके साथ वर्कशॉप किया. मैथड वर्क किया. मैंने पिछले साल एक बिल्ली को बचाया था, तो मैंने इस वर्ष एक छोटी बिल्ली को गोद लिया. ताकि पहली वाली को एक दोस्त मिल जाए. इसके अलावा मैंने संगीत का रियाज फिर से शुरू किया. मैं अपने गुरु जी मिस्टर चटर्जी से जूम पर बात करती थी. उनसे बात करके मुझे बहुत अच्छा लगता था.  योगा बहुत किया. मैं पहले एक घंटा योगा करती थी, लेकिन अब मेरे पास समय था. तो ठीक से प्राणायाम करती थी. मेडीटेशन करती थी. मैंने खुद को बहुत संभाला. अच्छा अच्छा खाना बनाया. मुझे महसूस हुआ कि मुझे कितनी कम चीजों की जरूरत है.

आपके पसंदीदा गायक कौन है?

-मेरी पहली पसंदीदा गायक मेरी मां हैं. उन्हें गाने का शौक है. मेरे घर में सभी को गाने का शौक है. मेरी मां भी गाती हैं, वह मेरी पसंदीदा हैं. इसके अलावा रेखा भारद्वाज, ए आर रहमान व लक्की अली मेरे पसंदीदासंगीतकार हैं.

सोशल मीडिया पर क्या लिखना पसंद करती हैं?

-मैं सोशल मीडिया पर ज्यादा कुछ नहीं लिखती. मैं ज्यादा से ज्यादा अपनी फोटो लगाती हूं और अपने काम के बारे में लोगों को बताती हूं. अगर कुछ गलत हो रहा है, तो उसको कैसे सही किया जा सकता है, यह जरुर लिखती हूं. नारी सशक्तिकरण को लेकर कुछ लिखनी हूं.

यदि आपको समाज सेवा करने का मौका मिले?

-मैं तो जानवरों के लिए काम कर रही हूं. मैं उन औरतों के साथ काम करना चाहूंगी, जिन्होंने अपनी जिंदगी में बहुत कष्ट सहे हैं, जिन्हें अपनी आवाज उठाने की आजादी नहीं है.  पर हिम्मत नहीं हारी है. अपने आप को स्वतंत्र रूप से रखने की हिम्मत नहीं है, मैं उनकी हमेशा मदद करना चाहूंगी.

कुछ नया कर रही हैं?

-मैं रीमा कागटी संग एक वेब सीरीज ‘‘फालेन’’कर रही हूं, जिसकी शूटिंग इस वर्ष होने वाली थी, लेकिन कोरोनावायरस से की वजह से टल गई.

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