प्रत्युत्तर: सफलता की सीढि़यों पर साथ देने वाले लोगों के हालात की इंसानियत की कहानी

Serial Story: प्रत्युत्तर (भाग-4)

लेखक- बिकाश गोस्वामी

मुन्नी ने आईटी में बीटेक किया है और पढ़ाई खत्म कर आज ही लौटी है. अब उस की इच्छा अमेरिका के एमआईटी से एमटेक करने की है. उस ने अप्लाई भी कर दिया है. उस को जो नंबर मिले हैं और उस का जो कैरियर है उस से उसे आसानी से दाखिला मिल जाएगा. शायद स्कालरशिप भी मिल जाए.

जानकी ने अभी हां या न कुछ भी नहीं कहा है. वे अजय के साथ बात करने के बाद ही कोई फैसला लेंगी. जानकी देवी के लिए आज की रात बहुत मुश्किल हो गई है. इतने वर्षों के अंतराल के बाद विजय का इस तरह आना उन्हें पुरानी यादों के बीहड़ में खींच ले गया है. अब रात काफी हो चुकी है. जानकी सोने की कोशिश करने लगीं.

3 दिन बीत चुके हैं. जानकी देवी का इन 3 दिनों में औफिस आना बहुत कम हुआ है. ज्यादातर वक्त अमृता के साथ ही कट रहा है. इधर, अजय ने हमीरपुर में एक इंगलिश मीडियम स्कूल खोला है. इन दिनों वे स्कूल चलाते हैं और साथ ही जानकी देवी के विधानसभा क्षेत्र की देखभाल करते हैं. वे भी गांव से यहीं चले आए हैं. अब यह घर, घर लगने लगा है.  वे अजय और अमृता के साथ शुक्रवार को देहरादून जा रही हैं ताकि शनिवार और इतवार, पूरे 2 दिन, सुजय अपने परिवार के साथ, खासकर अपनी दीदी के साथ, बिता सके.

बुधवार को सवेरे अचानक जानकी देवी के पास मुख्य सचिव का फोन आया, मुख्यमंत्री नोएडा विकास प्राधिकरण की फाइल के बारे में पूछ रहे हैं. उन्होंने तुरंत अपने सचिव को बुला कर वह फाइल मांगी. फाइल पढ़ने के बाद उन की आंखें खुली की खुली रह गईं. यह विजय ने किया क्या है? सारे अच्छे आवासीय और कमर्शियल प्लौट कई लोगों और संस्थाओं को, सारे नियम और कानून की धज्जियां उड़ाते हुए, 99 साल की लीज पर दे दिए हैं.

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सरकारी नुकसान लगभग कई सौ करोड़ का आंका गया है. सारे साक्ष्य और प्रमाण विजय के विरुद्ध जा रहे हैं. वे फाइल खोले कुछ देर चुपचाप बैठी रहीं. उन को समझ में नहीं आ रहा था, क्या करें. उसी वक्त अमृता का फोन आया. उस ने घर में अपने दोस्तों के लिए एक छोटी सी पार्टी रखी है. जानकी देवी का वहां कोई काम नहीं है, फिर भी उन का वहां रहना जरूरी है. सचिव से कहा कि फाइल को गाड़ी में रखवा दें, रात को एक बार फिर देखेंगी.

पार्टी खत्म होतेहोते रात के 10 बज गए, उस के बाद जानकी देवी ने अजय से कहा कि वे सो जाएं, उन का इंतजार न करें. इस के बाद वे स्टडी रूम में फाइल ले कर बैठीं. पूरी फाइल दोबारा पढ़ ली, विजय को बचाना मुश्किल जान पड़ा. सुबह उन्होंने अपने सचिव को फोन कर पूछा, ‘‘क्या आप विजय, नीलम तथा उन के बच्चों के नाम पर जो भी चल व अचल संपत्ति है, सब का ब्योरा मुझे हासिल करवा सकते हैं? अगर हासिल करवा पाएं तो बहुत अच्छा होगा और यह ब्योरा मुझे हर हाल में आज दोपहर तक चाहिए.

सचिव ने उन्हें वह रिपोर्ट दोपहर के 2 बजे दे दी. रिपोर्ट देख कर उन की आंखें फटी की फटी रह गईं. विजय ने यह किया क्या है? उस ने अपने नाम और कुछ बेनामी भी, इस के अलावा ससुराल वालों के नाम से भी करोड़ों की संपत्ति जमा की है. अब उन के मन में कोई भी दुविधा नहीं थी. उन्होंने फाइल में सीबीआई से जांच कराए जाने की संस्तुति कर फाइल आगे बढ़ा दी.

देहरादून और मसूरी में 3 दिन देखते ही देखते कट गए. काफी दिनों बाद उन्होंने सही माने में छुट्टी मनाई थी. सुजय भी बहुत खुश हुआ. उसे अपनी दीदी काफी दिनों के बाद जो मिली थी. लेकिन जैसे दिन के बाद आती है रात, पूर्णिमा के बाद अमावस, ठीक वैसे ही खुशी के बाद दुख भी तो होता है. सुजय को होस्टल में छोड़ने के बाद जानकी देवी का मन भर आया. अजय को भी अगले दिन हमीरपुर जाना पड़ा. लखनऊ के इस बंगले में इस वक्त सिर्फ जानकी और अमृता हैं. लखनऊ वापस आए हुए आज 3 दिन हुए हैं.

शाम को सचिवालय से आ कर अभी चाय पी ही रही थीं कि रामलखन ने आ कर खबर दी कि विजय कुमार आप से मिलना चाहते हैं. जानकी को कुछ क्षण लगा यह समझने में कि असल में विजय उन से मिलने आया है. पहले सोचा कि नहीं मिलेंगे. क्या होगा मिल कर? उन के जीवन का यह अध्याय तो कब का समाप्त हो गया है. फिर मन बदला और कहा, ‘‘उन्हें बैठाओ, मैं आ रही हूं.’’

आराम से हाथमुंह धो कर कपड़े बदले और करीब 40 मिनट के बाद जानकी विजय से मिलने कमरे में आईं. वह इंतजार करतेकरते थक चुका था. जानकी देवी को देखते ही वह उठ कर खड़ा हो गया, गुस्से से उस का मुंह लाल था. उस ने जानकी से गुस्से में कहा, ‘‘तुम मेरा एक छोटा सा अनुरोध नहीं रख पाईं?’’

विजय का गुस्से से खड़ा होना और फिर उन के बात करने के लहजे से जानकी देवी को गुस्सा आया, पर वे अपने गुस्से को काबू कर बोलीं, ‘‘अनुरोध रखने लायक होता तो जरूर रखती.’’

‘‘क्या कहा? तुम्हें पता है, मुझे फंसाया गया है?’’

‘‘अच्छा, तुम ने क्या मुझे इतना बुद्धू समझ रखा है? मैं ने क्या फाइल नहीं पढ़ी है? और क्या मुझे यह पता नहीं है कि विजय कुमार को फंसाना इतना आसान नहीं है.’’

‘‘तो तुम भी यकीन करती हो कि मैं दोषी हूं?’’

‘‘प्रश्न मेरे यकीन का नहीं है. प्रश्न है साक्ष्य का, प्रमाण का. समस्त साक्ष्य और प्रमाण तुम्हारे विरुद्ध हैं. मैं अगर चाहती तो तुम्हारी सजा मुकर्रर कर सकती थी लेकिन मैं ने ऐसा नहीं किया. अपनेआप को निर्दोष साबित करने का मैं ने तुम्हें एक और मौका दिया है.’’

‘‘सुनो, मैं तुम से रिक्वेस्ट कर रहा हूं. प्लीज, अपने डिसीजन पर एक बार फिर विचार करो. मुझे पता है कि यह तुम्हारे अख्तियार में है. वरना मैं बरबाद हो जाऊंगा. मेरा कैरियर…’’

विजय की बात काट कर जानकी ने कहा, ‘‘अब यह मुमकिन नहीं है,’’ वे अपना धीरज खो रही थीं, ‘‘एक बात और, जालसाजी करते वक्त तुम्हें कैरियर की बात याद क्यों नहीं आई? तुम्हारे जैसे बड़े बेईमान और जालसाज लोगों को सजा मिलनी ही चाहिए.’’

‘‘क्यों, मैं बेईमान हूं? मैं जालसाज हूं? मैं ने जालसाजी की है?’’ विजय चिल्लाने लगा.

‘‘चिल्लाओ मत. नीची आवाज में बात करो. यहां शरीफ लोग रहते हैं. अच्छा, एक बात बताओ, दिल्ली के ग्रेटर कैलाश वाली तुम्हारी कोठी का दाम क्या है? नोएडा के प्राइम लोकेशन में तुम्हारे 4 प्लौट हैं. इस के अलावा गुड़गांव के सैक्टर 4 में तुम्हारी आलीशान कोठी है, देहरादून में फार्महाउस भी है, और बताऊं? तुम्हें कितनी तनख्वाह मिलती है, क्या यह मुझे नहीं पता? ये सारी संपत्ति क्या तुम दोनों की तनख्वाह की आमदनी से खरीदना संभव है? तुम क्या समझते हो, मैं तुम्हारी कोई खबर नहीं रखती हूं?’’

विजय को जानकी से इस तरह के उत्तर की उम्मीद नहीं थी. कुछेक पल के लिए तो वह भौंचक रह गया. उस के पास जानकी के प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं था. ऐसी सूरत में एक आम

आदमी जो करता है, विजय ने भी वही किया, वह गुस्से में उलटीसीधी बकवास करने लगा, ‘‘हां, तो अब समझ में आया कि इन सारी फसादों की वजह तुम ही हो.’’

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जानकी ने उसे फिर समझाने की कोशिश की, ‘‘तुम फिर गलती कर रहे हो. तुम्हारी इस हालत की जिम्मेदार मैं नहीं, तुम खुद हो. मैं तो इस घटनाक्रम में बाद में जुड़ी हूं. एक बात और, शायद तुम यह भूल गए हो कि जिंदगी की दौड़ में मैं तुम से बहुत आगे निकल आई हूं. तुम्हारे सीनियर मेरे अंडर में काम करते हैं. मैं जब तक बैठने को न कहूं, वे मेरे सामने खड़े रहते हैं. मैं भला तुम्हारी तरह के तुच्छ व्यक्ति के पीछे क्यों पड़ूंगी. इस से मुझे क्या हासिल होने वाला है?’’

विजय को यह सुन कर और भी ज्यादा गुस्सा आ गया. वह अपना संयम खो कर चिल्लाने लगा, ‘‘बस, अब और सफाई की जरूरत नहीं है. तेरा असली चेहरा अब दिखाई दे गया.’’

अचानक दरवाजे के पास से एक आवाज आई, ‘‘हाऊ डेयर यू? आप की हिम्मत कैसे हुई मेरी मां के साथ इस तरह से बात करने की?’’

आवाज सुन कर दोनों दरवाजे की तरफ पलटे और देखा कि अमृता दरवाजे के सामने खड़ी है.

‘‘मैं तब से सुन रही हूं, आप एक भद्र महिला के साथ लगातार असभ्य की तरह बात कर रहे हैं. और मां, पता नहीं तुम भी क्यों ऐसे बदतमीज लोगों को घर में घुसने देती हो, यह मेरी समझ से परे है. इन जैसे बदतमीजों को तो घर के अंदर ही नहीं घुसने देना चाहिए.’’

‘‘अमृता, तुम इन्हें पहचान नहीं पाईं. ये तुम्हारे पिता हैं.’’

अमृता कुछेक पल के लिए सन्न रह गई. फिर संयत स्वर में हर शब्द को आहिस्ताआहिस्ता, साफसाफ लहजे में कहा, ‘‘नहीं, इन के जैसा नीच, लोभी, स्वार्थी व्यक्ति के साथ मेरा कोई रिश्ता नहीं है. सिर्फ जन्म देने से ही कोई पिता नहीं बन जाता है. मेरे पिता का नाम अजय कुमार गौतम है. और आप? आप को शर्म नहीं आती? इसी महिला को अपनी पत्नी के रूप में पहचान देने में आप को शर्म महसूस हुई थी. इसीलिए एक असहाय महिला और 5 साल की बच्ची को त्याग देने में आप को जरा भी संकोच नहीं हुआ था, और आज उसी के पास आए हैं सहायता की भीख मांगने?

‘‘इन सब के बावजूद, वह आप को मिल भी जाती अगर आप उस के योग्य होते. योग्य होना तो दूर की बात, आप तो इंसान कहलाने के लायक भी नहीं हैं, आप तो इंसान के नाम पर कलंक हैं. निकल जाइए यहां से और आइंदा हम लोगों के नजदीक भी आने की कोशिश मत कीजिएगा, नहीं तो हम से बुरा कोई न होगा. नाऊ, गैट आउट, आई से, गैट आउट.’’

विजय धीरेधीरे सिर नीचा कर कमरे से निकल गया. जानकी देवी अवाक् थीं, वे तो बस अपनी बेटी का चेहरा देखती रहीं. उन्होंने अपनी लड़की का यह रूप कभी नहीं देखा था. उन की आंखों में गर्व और आनंद से आंसू भर आए. उन्हें एहसास हुआ कि इतने दिनों के बाद विजय को अपने किएधरे का प्रत्युत्तर आखिर मिल ही गया.

अमृता ने मां के पास जा कर पूछा, ‘‘क्या मैं ने कोई गलत काम किया, मां? मैं ने ठीक तो किया न?’’

जानकी ने अमृता को बांहों में भर कर कहा, ‘‘हां, तुम ने बिलकुल सही किया, बेटी. उन की जिन बातों का मैं कोई जवाब नहीं दे सकी थी, तुम ने उन का सही प्रत्युत्तर दे दिया था.’’

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Serial Story: प्रत्युत्तर (भाग-3)

लेखक- बिकाश गोस्वामी

जानकी के कमरे में आते ही विजय ने कहा, ‘बैठो, तुम से बहुत जरूरी बात करनी है.’

‘एक काम करते हैं, मैं तुम्हारा खाना लगा देती हूं. तुम पहले खाना खा लो, फिर मैं इत्मीनान से बैठ कर तुम्हारी बातें सुनूंगी,’ जानकी ने कहा.

‘नहीं, बैठो. मेरी बातें जरूरी हैं,’ यह कह कर विजय ने जानकी की ओर देखा. जानकी पलंग के एक किनारे पर बैठ गई. विजय ने एक लिफाफा ब्रीफकेस से निकाला, फिर उस में से कुछ कागज निकाल कर जानकी को दे कर कहा, ‘इन कागजों के हर पन्ने पर तुम्हें अपने दस्तखत करने हैं.’

‘दस्तखत? क्यों? ये कैसे कागज हैं?’ जानकी ने पूछा.

विजय कुछ पल खामोश रहने के बाद बोला, ‘जानकी, असल में…देखो, मैं जो तुम से कहना चाह रहा हूं, मुझे पता नहीं है कि तुम उसे कैसे लोगी. देखो, मैं ने बहुत सोचसमझ कर तय किया है कि इस तरह से अब और नहीं चल सकता. इस से तुम्हें भी तकलीफ होगी और मैं भी सुखी नहीं हो सकता. मुझे उम्मीद है कि तुम मुझे गलत नहीं समझोगी, मुझे तलाक चाहिए.’

‘तलाक!’ जानकी के सिर पर मानो आसमान टूट कर गिर पड़ा हो.

‘हां, देखो, मुझे नहीं लगता कि तुम्हारे और मेरे बीच जो मानसिक दूरियां हैं वे अब खत्म हो सकती हैं. और यह भी तो देखो कि मैं कितना बड़ा अफसर बन गया हूं. वैसे यह तुम्हारी समझ से परे है. इतना समझ लो कि अब तुम मेरे बगल में जंचती नहीं. यही सब सोच कर मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि इस के अलावा अब कोई उपाय नहीं है,’ विजय ने कहा.

‘इस में मेरा क्या कुसूर है? मैं ने इंटर पास किया है. तुम मुझे शहर ले चलो, मैं आगे और पढ़ूंगी, मैं तुम्हारे काबिल बन कर दिखाऊंगी,’ कहतेकहते जानकी का गला भर आया था.

‘मैं मानता हूं कि इस में तुम्हारा कोई दोष नहीं, पर अब यह मुमकिन नहीं.’

‘फिर मुझे सजा क्यों मिलेगी? मैं मुन्नी को छोड़ कर नहीं रह सकती.’

‘मुन्नी तुम्हारे पास ही रहेगी. मैं तुम्हें हर महीने रुपए भेजता रहूंगा. अगर तुम चाहो तो दोबारा शादी भी कर सकती हो. शादी का सारा खर्चा भी मैं ही उठाऊंगा.’

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जानकी समझ गई कि विजय के साथ उस का रिश्ता अब खत्म हो चुका है, भला कोई पति अपनी पत्नी को दूसरी शादी के लिए कभी कहता है? जो रिश्ते दिल से नहीं बनते, उन्हें जोरजबरदस्ती बना के नहीं रखा जा सकता है. यदि वह इस वक्त दस्तखत नहीं भी करती है तो भी विजय किसी न किसी बहाने से तलाक तो हासिल कर ही लेगा और उस से मन को और ज्यादा चोट पहुंचेगी.

अचानक उसे एहसास हुआ कि विजय ने उस से कभी भी प्यार नहीं किया. उस ने खुद से सवाल किया कि क्या वह विजय से प्यार करती है? दिल से जवाब ‘नहीं’ में मिला. फिर उस ने विजय से पूछा, ‘कहां दस्तखत करने हैं?’

विजय की बताई जगह पर उस ने हर पन्ने पर दस्तखत कर दिए. उस का हाथ एक बार भी नहीं कांपा.

विजय ने नहीं सोचा था कि काम इतनी आसानी से संपन्न हो जाएगा. उस ने सारे कागज समेट कर ब्रीफकेस में डालते हुए कहा, ‘मुझे अभी निकलना पड़ेगा. पहले ही काफी देर हो चुकी है.’

जानकी ने अचानक सवाल किया, ‘वह लड़की कौन है जिस के लिए तुम ने मुझे छोड़ा है? क्या वह मुझ से ज्यादा सुंदर है?’

विजय ठिठक गया. उस ने इस सवाल की उम्मीद नहीं की थी, कम से कम जानकी से तो नहीं ही. अब उसे एहसास हुआ कि जानकी काफी अक्लमंद है. उस ने कहा, ‘उस का नाम नीलम है. हां, वह काफी सुंदर है और सब से बड़ी बात यह है कि वह शिक्षित तथा बुद्धिमान है. वह भी मेरी तरह आईएएस अफसर है. हम दोनों एक ही बैच से हैं. तलाक होते ही हम शादी कर लेंगे.’

जानकी ने बात को आगे बढ़ाना उचित नहीं समझा. विजय के कमरे से निकलते ही अम्मा ने पूछा, ‘तुम क्या अभी चले जाओगे?’

विजय ने जवाब दिया, ‘हां.’

तब अम्मा ने कहा, ‘छि:, तू इतना स्वार्थी है? तू ने अपने सिवा और किसी के बारे में नहीं सोचा?’

विजय समझ गया कि अम्मा ने उन दोनों की सारी बातें सुन ली हैं. अम्मा के चेहरे पर क्रोध की ज्वाला थी. वे लगातार बोले जा रही थीं, ‘अच्छा, हम लोगों की छोड़, तू ने अपनी लड़की के बारे में एक बार भी नहीं सोचा कि पिता के अभाव में परिवार में यह लड़की कैसे पलेगी? और जानकी का क्या होगा? तू इतना नीच है, इतना कमीना है?’

विजय कुछ कहने जा रहा था. उसे रोक उन्होंने कहा, ‘मुझे तुम्हारी सफाई नहीं चाहिए. याद रहे, आज अगर तुम चले गए तो सारी जिंदगी मैं तुम्हारा मुंह नहीं देखूंगी. यह जो जायदाद तुम देख रहे हो वह तुम्हारे बाप की नहीं है. यह सारी जायदाद मुझे मेरी मां से मिली है, इस की एक कौड़ी भी तुम्हें नहीं मिलेगी.’

विजय ने एक निगाह अम्मा पर डाली और फिर सिर नीचा कर के चुपचाप घर से चला गया. अम्मा रो पड़ी थीं, लेकिन जानकी नहीं रोई. उस के हावभाव ऐसे थे जैसे कि कुछ हुआ ही न हो.

अम्मा अपनी जबान की पक्की थीं. महीना बीतने से पहले ही वकील बुलवा कर उन्होंने सारी जायदाद अपने छोटे बेटे और बहू जानकी के नाम बराबरबराबर हिस्सों में बांट दी. जानकी के पिता आए थे एक दिन जानकी को अपने साथ अपने घर ले जाने के लिए, लेकिन जानकी की सास ने जाने नहीं दिया. बंद कमरे में दोनों के बीच बातचीत हुई थी. किसी को नहीं पता. लगभग सालभर के बाद जानकी को तलाक की चिट्ठी मिली. उस के कुछ ही दिनों बाद जानकी की सास ने खुद खड़े हो कर अजय के साथ जानकी का विवाह कराया. अजय की बीवी उस के गौना के ठीक एक दिन पहले अपने प्रेमी के साथ भाग गई थी. उस के बाद अजय ने शादी नहीं की थी. वह बीए पास कर के गांव के ही स्कूल में अध्यापक की नौकरी कर रहा था और साथ ही साथ एक खाद की दुकान भी चला रहा था. उन के समाज में पुनर्विवाह के प्रचलन के कारण उन्हें कोई सामाजिक परेशानी नहीं उठानी पड़ी. सालभर के भीतर ही उन के बेटे सुजय का जन्म हुआ.

विजय फिर कभी गांव नहीं आया. वादे के अनुसार उस ने जानकी को मासिक भत्ता भेजा था, किंतु जानकी ने मनीऔर्डर वापस कर दिया था.

जानकी गांव की एकमात्र इंटर पास बहू थीं. वे गांव के विकास के कार्यों से जुड़ने लगीं. ताऊजी की मृत्यु के बाद वे गांव की प्रधान चुनी गईं. उसी समय उन की ईमानदारी और दूरदर्शिता की वजह से गांव का खूब विकास हुआ. नतीजा यह हुआ कि वे अपनी पार्टी के नेताओं की निगाह में आईं और उन्हें विधानसभा चुनाव की उम्मीदवारी का टिकट मिल गया. चुनाव में 50 हजार से भी ज्यादा वोटों से जीत कर वे विधानसभा सदस्य के रूप में चुनी गईं और मंत्री भी बनाई गईं.

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इन सब कामों में पति अजय का भरपूर सहयोग तो मिला ही, सास का भी समर्थन उन्हें मिलता रहा. मुन्नी की पढ़ाई पहले नैनीताल, फिर दिल्ली और अंत में बेंगलुरु में हुई. सुजय भी अपनी दीदी की तरह देहरादून के शेरवुड एकेडेमी के होस्टल में रह कर पढ़ रहा है.

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Serial Story: प्रत्युत्तर (भाग-2)

लेखक- बिकाश गोस्वामी

पढ़ाई का माध्यम हिंदी होने के कारण उस की अंगरेजी कमजोर थी. उस ने खूब मेहनत कर अपनी अंगरेजी भी सुधारी. बीए का इम्तिहान देने के बाद वह गांव न जा कर सीधा दिल्ली चला गया. विजय का परिवार अमीर नहीं था, लेकिन संपन्न था. घर में खानेपीने की कोई कमी नहीं थी. उसे हर जरूरत का पैसा घर से मिलता था, लेकिन वह पैसे की अहमियत को जानता था. वह फुजूलखर्ची नहीं था. वह दिल्ली में अपने इलाके के सांसद के सरकारी बंगले के सर्वेंट क्वार्टर में रहता और उन्हीं के यहां खाता था. इस के एवज में उन के 3 बच्चों को पढ़ाता था. खाली समय में वह अपनी पढ़ाई करता था. इस तरह, 1 साल के कठोर परिश्रम के बाद वह आईएएस की परीक्षा में सफल हुआ.

मसूरी में ट्रेनिंग पर जाने से पहले वह हफ्तेभर के लिए गांव आया. उसी समय उस ने अपनी लड़की को पहली बार देखा. जानकी ने हाईस्कूल में फेल होने के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. इसी वजह से उस ने पहले तो उसे बहुत डांटा फिर उस के साथ उस ने ठीक से बात भी नहीं की. यहां तक कि अपनी लड़की मुन्नी को उस ने एक बार भी गोदी में नहीं लिया.

जानकी ने हर तरह से विजय को खुश करने की कोशिश की लेकिन विजय टस से मस नहीं हुआ. किसी तरह वह 7 दिन काट कर मसूरी चला गया. जानकी कई दिनों तक गमगीन रही. फिर उसे सास और देवर ने समझाया कि वह बहुत बड़ा अफसर बन गया है और इसीलिए उस की पत्नी का पढ़ालिखा होना जरूरी है. मजबूर हो कर जानकी ने फिर पढ़ना शुरू किया. पहले हाईस्कूल फिर इंटरमीडिएट सेकंड डिवीजन में पास किया.

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विजय खत वगैरह ज्यादा नहीं लिखता था, लेकिन इस बार जाने के बाद तो एक भी खत नहीं लिखा. अचानक 3 साल बाद एक चिट्ठी आई, ‘अगले शनिवार को आ रहा हूं, 2 दिन रहूंगा.’ उस वक्त वह बदायूं का डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट था. घर के सब लोग बहुत खुश हुए. देखते ही देखते सारे गांव में यह खबर फैल गई. गांव वाले यह कहने लगे कि अब जानकी अपने पति के साथ शहर में जा कर रहेगी. पति बहुत बड़ा अफसर है, शहर में बहुत बड़ा बंगला है. अब जानकी की तकलीफें खत्म हुईं. लेकिन जानकी बिलकुल चुप थी, न वह ‘हां’ कह रही थी, न ‘ना’, असल में विजय से वह नाराज थी. उस ने विजय के जाने के बाद उस से माफी मांगते हुए कम से कम 6-7 चिट्ठियां लिखीं, हाईस्कूल और इंटरमीडिएट पास होने की खबर भी दी लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिला. इंसान से क्या गलती नहीं होती है? गलती की क्या माफी नहीं मिलती है?

शनिवार के दिन घर के सभी लोग तड़के ही जाग गए. सारे घर को धो कर साफ किया गया. बगल के मकान में रहने वाले ताऊजी, जो गांव के मुखिया भी हैं, सुबह से ही नहाधो कर तैयार हो कर विजय की बैठक में बैठ गए. मुन्नी को नई फ्रौक पहनाई गई. होश में आने के बाद वह पहली बार अपने पापा को देखेगी. वह कभी घर के अंदर और कभी घर के बाहर आजा रही थी. उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. पापा उस के लिए ढेर सारे खिलौने लाएंगे, नए कपड़े लाएंगे. उस ने एबीसीडी सीखी है, पापा को सुनाएगी, रात को पापा के साथ लेटेगी. सारे दोस्त घर के आसपास चक्कर लगा रहे थे.

धीरेधीरे दिन ढल गया. सुबह और दोपहर की बस आई और चली भी गई लेकिन विजय नहीं आया. ताऊजी इंतजार करकर के आखिर लगभग 2 बजे अपने घर चले गए. यारदोस्त भी सब अपने घर चले गए. सास ने जबरदस्ती मुन्नी को खिला दिया. लगभग 3 बजे देवर अजय और सास ने भी खाना खा लिया, लेकिन बारबार कहने के बाद भी जानकी ने नहीं खाया. उस ने सिर्फ इतना कहा, ‘मुझे भूख नहीं है, जब भूख लगेगी तब मैं खुद खा लूंगी.’

सास ने भी ज्यादा जोर नहीं डाला. उन्हें जानकी की जिद के बारे में पता है. जबरदस्ती उस से कुछ नहीं कराया जा सकता है.

शाम ढलने को थी कि अचानक दूर से बच्चों के शोर मचाने की आवाज आई. कोई कुछ समझ सकता इस से पहले ही एक सफेद ऐंबेसेडर कार दरवाजे पर आ कर रुकी. उस में से विजय उतरा. उसे देखते ही देखते घर का गमगीन माहौल उत्सव में तबदील हो गया. सारा का सारा गांव विजय के दरवाजे पर इकट्ठा हो गया. इतना बड़ा अफसर उन्होंने कभी नहीं देखा था. जानकी रसोई में व्यस्त थी, चायनाश्ते का प्रबंध कर रही थी. बैठक में यारदोस्तों ने विजय को घेर रखा था. धीरेधीरे उसे थकान लगने लगी. करीब

7 बजे ताऊजी उठे और सभी से जाने को कहा. उन्होंने कहा, ‘अब विजय को थोड़ा आराम करने दो. वह पूरे रास्ते खुद ही गाड़ी चला कर आया है, जाहिर है कि थक गया होगा. फिर वह इतने दिनों के बाद घर आया है, उसे अपने घर वालों से भी बातें करने दो. अरे भाई, मुन्नी को भी तो मौका दो अपने पापा से मिलने का.’

अब सब न चाहते हुए भी जाने को मजबूर थे. विजय की जान में जान आई. विजय अपने साथ कोई सूटकेस वगैरह नहीं लाया बल्कि केवल एक ब्रीफकेस लाया था. अम्मा ने पूछा, ‘तू तो कोई कपड़े वगैरह साथ नहीं लाया. मुझे तो तेरा इरादा अच्छा नहीं लग रहा. मुझे सही बता, तेरा इरादा क्या है?’

विजय ने कहा, ‘मैं यहां रहने नहीं आया हूं. मैं तो यहां जरूरी काम से आया हूं. मुझे आज रात को ही वापस लौटना है. अगर रास्ते में गाड़ी खराब नहीं हुई होती तो इस वक्त मैं वापस जा रहा होता.’

अम्मा ने पूछा, ‘यह बता, ऐसा भी क्या जरूरी काम जिस के लिए तू सिर्फ कुछ घंटे के लिए आया? तुझे क्या हम लोगों की, अपनी बीवी की, मुन्नी की जरा भी याद नहीं आती?’

विजय ने इस प्रश्न का उत्तर न दे कर पूछा, ‘जानकी दिखाई नहीं पड़ रही, वह कहां है?’

अम्मा ने कहा, ‘चल, इतनी देर बाद उस बेचारी की याद तो आई. उसे मरने की भी फुरसत नहीं है. सारे मेहमानों के चायनाश्ते का इंतजाम वही तो कर रही है. इस वक्त वह रसोई में है.’

विजय ने कहा, ‘मैं हाथमुंह धो कर अपने कमरे में जा रहा हूं. तुम उसे वहीं भेज दो. उस से मुझे जरूरी काम है.’

‘‘मैडम, आज औफिस नहीं जाएंगी क्या? साढ़े 9 बजने वाले हैं,’’ रामलखन की आवाज सुन कर जानकी देवी की तंद्रा भंग हुई और वे वर्तमान में लौट आईं. बोलीं, ‘‘टेबल पर नाश्ता लगाओ, मैं आ रही हूं.’’

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साढ़े 10 बजे एक विभागीय मीटिंग थी, खत्म होतेहोते डेढ़ बज गया. बाद में भी कुछ अपौइंटमैंट थे. साढ़े 3 बजे अमृता उर्फ मुन्नी का फोन आया. काम में उलझे होने के कारण समय का खयाल ही नहीं रहा. निजी सचिव को कह कर सारे अपाइंटमैंट खारिज कर सीधे घर चली आईं जानकी देवी. अब आज और कोई काम नहीं. अमृता के साथ खाना खा कर उस के बेंगलुरु के किस्से सुनने बैठ गईं. एक बार खयाल आया कि विजय की बात अमृता से कहें, पर दूसरे ही क्षण मन से यह खयाल निकाल दिया, सोचा कि कोई जरूरत नहीं है. लेकिन रात को बिस्तर पर लेटते ही फिर पुरानी यादें ताजा हो गईं.

आगे पढ़ें- जानकी के कमरे में आते ही विजय…

Serial Story: प्रत्युत्तर (भाग-1)

लेखक- बिकाश गोस्वामी

घड़ी में 6 बजे का अलार्म बजते ही जानकी देवी की आंखें खुल गईं. उन्होंने हाथ बढ़ा कर अलार्म बंद कर दिया. फिर कुछ देर बाद वे बिस्तर से उठीं  और बाथरूम में घुस गईं. नहाधो कर जब वे बाहर निकलीं तो उन्हें हलकी सर्दी महसूस होने लगी. उन्होंने शाल को थोड़ा कस कर ओढ़ लिया.

आज वे काफी खुश थीं. उन की लड़की अमृता पढ़ाई पूरी कर वापस आ रही थी. वे बरामदे में कुरसी पर बैठ गईं. सामने मेज पर रखी गरम चाय और शहर से प्रकाशित सारे हिंदी व अंगरेजी के अखबार रखे थे. सुबह की चाय वे अखबार पढ़तेपढ़ते ही पीती थीं. यह उन की रोज की दिनचर्या थी.

जानकी देवी उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री थीं. हालांकि वे कैबिनेट मंत्री नहीं थीं लेकिन राज्यमंत्री होते हुए भी उन का स्वतंत्र विभाग था, पंचायती राज और ग्रामीण उन्नयन विभाग. बुंदेलखंड क्षेत्र के हमीरपुर जिले के एक अविकसित और संरक्षित विधानसभा सीट से वे निर्वाचित हुईं, वह भी दूसरी बार. उन का जनाधार बहुत अच्छा था. दोनों बार वे 50 हजार से भी ज्यादा वोटों से जीतीं. उन की छवि एक ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ और मेहनती मंत्री की थी.

आज जानकी देवी का मन अखबार में नहीं लग रहा था. बारबार निगाहें अपनेआप घड़ी की ओर चली जा रही थीं. 4 महीने हो गए थे उन्हें अमृता को देखे हुए. ऐसा लग रहा था मानो घड़ी की सूई अटक गई हो. ऐसे में घर के नौकर रामलखन ने आ कर खबर दी कि कोई मिस्टर विजय कुमार आए हैं और आप से मिलना चाहते हैं.

‘‘मिस्टर विजय कुमार? मैं किसी विजय कुमार को नहीं जानती. फिर उन का इतनी सुबह घर में क्या काम?’’

रामलखन ने जवाब दिया, ‘‘जी, उन्होंने कहा कि वे आप के पुराने परिचित हैं.’’

‘‘ठीक है, बैठाओ उन को.’’

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उन्होंने बैठाने को तो कह दिया पर वे समझ नहीं पाईं कि कौन आया है. उन्होंने स्लिप के ऊपर एक बार और निगाह दौड़ाई. हैंडराइटिंग कुछ जानीपहचानी सी लगी. कोशिश करने के बाद भी वे याद नहीं कर पाईं कि आगंतुक कौन है.

करीब 5 मिनट बाद जानकी देवी ड्राइंगरूम में आईं. विजय की पीठ उन की तरफ थी. फिर भी तुरंत उन्होंने उन्हें पहचान लिया. उन्हें देख कर जानकी देवी को थोड़ा आश्चर्य हुआ. अभी तक विजय उन्हें देख नहीं पाए थे. पहले खयाल आया कि नहीं मिलते हैं, फिर सोचा कि मिलने में हर्ज ही क्या है. जानकी देवी ने हलके से गला खंखारा. विजय घूमे, फिर हंस कर पूछा, ‘‘पहचाना?’’

‘‘हां, क्यों नहीं. अभी तुम इतना भी नहीं बदले हो कि मैं तुम्हें पहचान न पाऊं. थोड़े मोटे जरूर हो गए हो और कुछ बाल पके हैं, बस.’’

‘‘लेकिन तुम काफी बदल गई हो.’’

‘‘हां, जिंदगी में आंधीतूफान काफी झेलना पड़ा, शायद इसी वजह से. लेकिन तुम? अचानक कैसे आना हुआ? आजकल कहां हो? नीलम कैसी है?’’

उसी वक्त रामलखन चाय की ट्रे ले कर अंदर आया. जानकी देवी ने एक कप विजय की ओर बढ़ा कर कहा, ‘‘लो, चाय पियो.’’

रामलखन के जाने के बाद विजय ने कहा, ‘‘मैं गाजियाबाद में हूं. नीलम अच्छी है. फिलहाल उस की पोस्टिंग गौतम बुद्ध नगर में है. 1 बेटा है और 1 बेटी है, दोनों दिल्ली में पढ़ते हैं. काफी दिनों से सोच रहा था कि तुम से मिलूं, पर वक्त नहीं निकाल पा रहा था. आज एक काम से लखनऊ आया था, सोचा कि मिल लूं. आज तो मुन्नी लौट रही है?’’

‘‘हां, पर अब उसे मुन्नी कह कर कोई नहीं बुलाता है. यह नाम उसे पसंद नहीं है. उस का नाम अमृता है. सब उसे इसी नाम से बुलाते हैं. तो तुम्हें इतने दिनों के बाद मुन्नी की याद आई?’’

‘‘नहीं, यह बात नहीं है. याद नहीं आती हो, ऐसा भी नहीं. असल में व्यस्तता के कारण मैं वक्त नहीं निकाल पाता,’’ उन के लहजे में हकलाहट और संकोच साफ झलक रहा था.

अब जानकी देवी से रहा नहीं गया. उन्होंने पूछा, ‘‘सच बताओ, तुम्हारा असली मकसद क्या है? तुम ऐसे ही तो आने से रहे, क्या मैं तुम्हें पहचानती नहीं?’’

विजय समझ गए कि वे पकड़े गए हैं. कुछ सेकंड चुप रहने के बाद वे बोले, ‘‘मैं तुम्हारे पास एक काम से आया हूं.’’

‘‘मेरे पास? काम से? मुझ से तुम्हारा क्या काम?’’ जानकी देवी ने चकित हो कर पूछा.

‘‘असल में, कल शाम को तुम्हारे दफ्तर में एक फाइल आई है. आज तुम्हारी मेज पर रखी जाएगी.’’

‘‘तुम किस फाइल की बात कर रहे हो?’’ जानकी देवी ने फिर पूछा.

‘‘नोएडा विकास प्राधिकरण के प्लौट ऐलौटमैंट के ऊपर जो जांच आयोग बैठा है, उस की फाइल. इस केस में सभी लोगों ने मिल कर मुझे फंसाया है. जानकी, मेरा यकीन करो. अब तुम अगर थोड़ी सी भी कोशिश करो तो मैं छूट सकता हूं.’’

‘‘अच्छा तो यह बात है. अभी तक वह फाइल मैं ने देखी नहीं है और जब तक मैं फाइल देख नहीं लेती तब तक मैं कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हूं. हां, इतना जरूर कह सकती हूं कि यदि तुम निर्दोष हो तो कोई तुम्हें दोषी करार नहीं दे सकता.’’

यह कह कर उन्होंने घड़ी की ओर देखा. विजय समझ गए कि अब उठना पड़ेगा. वे उठ कर खड़े हो गए और बोले, ‘‘अब चलूंगा, लेकिन मैं बहुत उम्मीद ले कर जा रहा हूं. मैं तुम से फिर आ कर मिलूंगा.’’

विजय के जाते ही जानकी देवी के चेहरे पर नफरत की लहर दौड़ गई. उन की आंखों के सामने पुरानी स्मृतियां जाग उठीं.

जानकी समाज के एकदम निचले हिस्से से आती हैं. पहले उन लोगों को हरिजन कहा जाता था, पर अब दलित कहा जाता है. जानकी की शादी हुई थी 9 साल की उम्र में. पति विजय की उम्र उस वक्त 14 साल थी और वह कक्षा 8 में पढ़ता था. जानकी का गौना 13 साल की उम्र में हुआ और वह ससुराल आ गई. उस वक्त वह कक्षा 7 में पढ़ती थी.

जानकी का पढ़नेलिखने में मन नहीं लगता था. ससुराल में आ कर वह खुश थी. सोचा, चलो पढ़नेलिखने से अब छुटकारा मिला. लेकिन मनुष्य सोचता कुछ है और होता कुछ और है. उस वक्त उस का पति विजय 12वीं कक्षा में था और वह पढ़ने में तेज था. उस की इच्छा थी कि उस की पत्नी जानकी भी पढ़े. सास को भी कोई आपत्ति नहीं थी, कहा, ‘तुम पढ़ो. मुझे कोई ऐतराज नहीं है.’

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इस तरह से शुरू हुई जानकी की बेमन की पढ़ाई. स्कूल घर के पास ही था. पढ़ाईलिखाई की देखरेख का दायित्व दिया गया देवर अजय को जो कक्षा 8 का छात्र था. पति विजय ने इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की और डिगरी की पढ़ाई करने के लिए कानपुर चला गया. वहां के क्राइस्ट चर्च डिगरी कालेज में उसे दाखिला मिल गया. जिस साल विजय ने बीए पास किया उसी साल मुन्नी पैदा हुई और जानकी हाईस्कूल में फेल हो गई. उस वक्त जानकी की उम्र 17 साल थी. उसी वक्त से विजय में बदलाव आना शुरू हो गया. इस बदलाव को जानकी शुरू में भांप नहीं पाई और जब समझ में आया तब काफी देर हो चुकी थी.

छोटे से एक गांव का दलित लड़का विजय, जब कानपुर में पढ़ने गया तब हालांकि वह अन्य शहरी छात्रों से पढ़ने में तेज था लेकिन उस में शहरी तौरतरीकों का अभाव था. 6 महीने में ही उस ने अपना हावभाव, चालचलन, पोशाक सबकुछ बदल लिया. अब उसे देख कर कोई भी नहीं कह सकता था कि वह दलित जाति का ग्रामीण लड़का है. लेकिन इन सब के बावजूद उस ने अपनी पढ़ाई के साथ कोई समझौता नहीं किया. बीए की पढ़ाई करने के दौरान ही उस ने तय कर लिया था कि उसे आईएएस बनना है. इस की तैयारी उस ने तभी से शुरू कर दी. इन 3 सालों में उस ने गिनेचुने दिन ही गांव में बिताए.

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