प्रायश्चित्त: कौनसी गलती कर बैठा था वह

‘‘रोहिणी नामक कोई महिला आप से मिलने का समय तय करना चाहती हैं,’’ निजी सहायक ने इंटरकौम पर बताया.

‘‘मेरा कार्यक्रम देख कर जो भी समय तुम्हें उपयुक्त लगता हो, उन्हें दे दो,’’ सौरभ ने कागजों पर नजर गड़ाए हुए कहा.

‘‘जी, वे कहती हैं कि उन्हें कोई व्यक्तिगत काम है और वे ऐसा समय चाहती हैं जब आप औफिस की चिंताओं से मुक्त हो कर ध्यान से उन की बात सुन सकें.’’ सौरभ को लगा जैसे फोन के दूसरे छोर पर उस का निजी सहायक व्यंग्य से मुसकरा रहा हो.

‘‘ठीक है, मुझ से बात कराओ.’’

लाइन मिलते ही सौरभ ने बात शुरू की, ‘‘हैलो, रोहिणीजी, मैं सौरभ बोल रहा हूं. कहिए, आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’

‘‘नमस्कार, सौरभजी. क्या आज शाम या कल किसी समय आप समय निकाल सकते हैं 1-2 घंटे का?’’ दूसरी ओर से एक संयत और सौम्य स्वर आया.

‘‘लेकिन आप मुझ से किस सिलसिले में मिलना चाहती हैं?’’

‘‘कुछ निहायत व्यक्तिगत काम है, जो फोन पर बताया नहीं जा सकता. कहिए, कब और कहां मिलेंगे?’’

‘‘आज शाम को 6 बजे के बाद आप मेरे घर पर आ जाइए. पता तो…’’

‘‘जी नहीं, आप के घर पर ठीक नहीं रहेगा,’’ रोहिणी ने उस की बात काटी, ‘‘जो बात मैं करना चाह रही हूं, वह शायद आप अपने परिवार को न बताना चाहें और अपनी पुरानी जिंदगी के बारे में बीवीबच्चों को बताना ठीक नहीं.’’

‘‘क्या कह रही हैं आप? मैं ने अपनी जिंदगी में आज तक ऐसा कोई काम नहीं किया जिस के लिए मुझे पछतावा हो या जिसे किसी से छिपाना पड़े,’’ सौरभ ने बड़े गर्व से उस की बात काटी.

‘‘सिवा एक हरकत के. डरिए नहीं, मैं आप को ब्लैकमेल नहीं कर रही, न पैसा हथियाने के चक्कर में हूं. सिर्फ एक सवाल आप के सामने रख कर उसे ठंडे दिमाग से हल करने को कहूंगी. हां तो कहिए, कहां मिलेंगे? आप के दफ्तर में आ जाऊं?’’

‘‘इस समय तो मुझे फुरसत नहीं है और दफ्तर के समय के बाद तो ठीक नहीं लगेगा,’’ वह कुछ हिचकिचाया.

‘‘तो ठीक है, मेरे दफ्तर में आ जाइए. हमारा दफ्तर तो अकसर सारी रात ही चलता रहता है. आप को फेमस पब्लिसिटी का दफ्तर तो मालूम ही होगा. मैं यहां पर कला निर्देशिका हूं और पहली मंजिल पर पहला कमरा मेरा ही है. तो फिर आ रहे हैं न आप?’’

‘‘जी हां,’’ सौरभ के स्वर में अब औपचारिकता से ज्यादा उत्सुकता थी, ‘‘आप कब तक वहां होंगी? मेरा मतलब है शाम को आप की छुट्टी कब होती है?’’

‘‘दफ्तर का समय तो 10 से 5 ही है, लेकिन हमारे यहां काम इतना ज्यादा है कि 9 बजे से पहले तो शायद ही कोई अपनी कुरसी छोड़ता हो. आप को जब भी सुविधा हो, आ जाइए.’’ फिर दूसरी ओर से लाइन कट गई.

सौरभ साढ़े 5 बजे ही रोहिणी के दफ्तर में पहुंच गया. रोहिणी की उम्र 50-55 वर्ष के बीच की थी. आधुनिक ढंग से सजी उस सौम्य महिला ने बड़ी नम्रता से सौरभ का स्वागत किया.

‘‘माफ कीजिए, मैं समय से कुछ पहले ही आ गया हूं. आप ने कुछ ऐसा रहस्य का जाल बुन दिया कि काम में दिल ही नहीं लगा. आधा दिन खराब कर दिया आप ने मेरा,’’ सौरभ कह कर मुसकराया.

‘‘और आप ने जो मेरी आधी जिंदगी खराब कर दी, उस की शिकायत मैं किस से करूं?’’ रोहिणी ने एक दर्दभरी मुसकान के साथ कहा.

‘‘क्या कह रही हैं आप? जहां तक मेरा खयाल है इस से पहले हम कभी मिले भी नहीं,’’ सौरभ अप्रतिम हो कर बोला.

‘‘आप ठीक कह रहे हैं, लेकिन कई बार अनजाने में ही इंसान अपनी जिंदगी संवारने के चक्कर में दूसरों की जिंदगी उजाड़ देता है,’’ रोहिणी के स्वर में कसक थी.

‘‘माफ करिएगा, आप को कुछ गलतफहमी हो रही है. मैं ने आज तक किसी का कुछ नुकसान नहीं किया है. मैं जो आज इस ओहदे पर हूं…’’

‘‘ओह, मैं आप के व्यक्तिगत जीवन की बात कर रही हूं, औफिस की नहीं.’’

‘‘उस में भी मैं दावे से कह सकता हूं कि मैं ने कभी किसी लड़की को बुरी नजर से नहीं देखा. न किसी को सब्जबाग दिखाए और न ही मेरी शक्लसूरत ऐसी है कि जिसे देख कर किसी की नींद उड़े.’’ सौरभ के कहने के ढंग पर रोहिणी खिलखिला कर हंस पड़ी.

सौरभ ने आगे कहा, ‘‘हां, तो बताइए न, किस तरह मैं ने आप की जिंदगी खराब की?’’ सौरभ के स्वर में चुनौती थी.

‘‘आप पूनम को तो नहीं भूले होंगे?’’

‘‘जी नहीं. मानता हूं कि मेरी और पूनम की शादी होने वाली थी, लेकिन पूनम का ही इरादा शादी करने का नहीं था. मेरी तरफ से ऐसी कोई बात नहीं हुई, जिस से पूनम की जिंदगी खराब होती.’’

‘‘जानती हूं. आप ने अपनी और पूनम की जिंदगी अपने मनमुताबिक चलाने के लिए मेरी गाड़ी पटरी पर से उतार दी.’’ रोहिणी के स्वर में पीड़ा थी.

‘‘मैं आप की बात बिलकुल नहीं समझ पा रहा, रोहिणीजी. समझाने की कोशिश करेंगी?’’

‘‘जी हां, वही तो बता रही हूं. पूनम पति नहीं, बल्कि एक ऐसा साथी चाहती थी जो उस के जीवन में एक पुरुष की कमी को तो पूरा कर सके, पर उसे किसी बंधन में न बांधे.’’

‘‘आप बिलकुल ठीक कह रही हैं. उसे पति नहीं, मात्र एक ऐसे पुरुष की आवश्यकता थी जो उस की शारीरिक भूख को मिटा सके. यह मुझे कतई मंजूर नहीं था.’’

‘‘इसलिए आप ने उस की मुलाकात सुमित से करवा दी, जिस से आप के भागने का रास्ता आसान हो गया.’’

‘‘उस की सुमित से मुलाकात मैं ने जरूर करवाई थी, लेकिन बगैर किसी मतलब के. सुमित और मैं बचपन के दोस्त थे, पर पढ़ाई और नौकरी के सिलसिले में अलग हो गए थे. एक बार वर्षों बाद मिलने पर बातचीत के दौरान उस ने पूछा कि मेरी शादी हो गई क्या, मैं ने उसे पूनम की शादी के बारे में जो हिचकिचाहट थी वह बता दी. वह मानने को तैयार ही नहीं हुआ कि अपने देश में भी ऐसे विचारों की लड़कियां हो सकती हैं.

सुमित ने एक बार पूनम से मिलने की इच्छा जाहिर की और मैं ने एक रोज दोनों की मुलाकात करा दी. उस के बाद तो उन दोनों की घनिष्ठता इतनी तेजी से बढ़ी कि उन की दोस्ती करवाने वाला मैं बहुत पीछे छूट गया. खैर, इस सब से आप को क्या फर्क पड़ा?’’

‘‘सिर्फ मुझे ही तो फर्क पड़ा क्योंकि मैं सुमित की बीवी हूं,’’ रोहिणी ने एक सफल खिलाड़ी की तरह अपना तुरुप का इक्का चल दिया.

सौरभ हक्काबक्का रह गया और बोला, ‘‘मैं वाकई बहुत शर्मिंदा हूं कि मैं ने इस तरह आप की जिंदगी बरबाद की, लेकिन सच कहता हूं कि उस समय मुझे यह मालूम नहीं था कि सुमित शादीशुदा है.’’

‘‘और जब मालूम भी हुआ तो क्या उस समय आप को सुमित की पत्नी से कुछ हमदर्दी हुई थी?’’ रोहिणी ने सीधे उस की आंखों में झांकते हुए कहा.

सौरभ उस नजर का सामना न कर सका, ‘‘मेरा खयाल था कि शायद सुमित की पत्नी उस के उपयुक्त न हो, मगर आप को देख कर तो ऐसा नहीं लगता. क्या आप का दांपत्य जीवन सुखी नहीं था?’’

‘‘बहुत ज्यादा, लेकिन उस मनहूस शाम से पहले तक जब सुमित और पूनम मिले थे. वैसे, अब भी अपनी तरफ से तो सुमित मुझे खुश ही रखने की कोशिश करता है.’’

‘‘लेकिन इस सब के बावजूद सुमित पूनम के चक्कर में पड़ा कैसे?’’

‘‘ये काजू देख रहे हैं न आप. इन्हें खाने की इच्छा न आप को थी न मुझे, लेकिन प्लेट सामने रखी है तो मैं भी बराबर खा रही हूं और आप भी. मेरा मतलब है कि अगर एक आधुनिक पढ़ीलिखी स्त्री का सहवास सहज ही मिल जाए तो किसे आपत्ति होगी? और फिर मेरी ओर से भी कोई विरोध नहीं हुआ,’’ रोहिणी चाय का एक घूंट भर कर बोली, ‘‘अब आप पूछेंगे कि मैं ने एतराज क्यों नहीं किया?

मैं कमा कर खुद अपने पैरों पर खड़ी हो सकती थी. मैं ने सुमित को छोड़ा क्यों नहीं? महज अपनी बेटी के लिए. मैं नहीं चाहती थी कि मेरी बेटी तलाकशुदा मांबाप की औलाद कहलाए और समाज में तिरस्कृत हो.

सुमित ने भी उसे भरपूर प्यार दिया और चाहे हम शारीरिक व मानसिक रूप से वर्षों से अलग हो चुके हों, पर अभी भी अपनी बेटी के लिए, दुनिया के सामने हम एक सफल पतिपत्नी का नाटक करते हैं.’’

‘‘काफी मुश्किल काम है यह,’’ सौरभ सहानुभूति से बोला.

‘‘बेहद. पर अब तो खैर आदत पड़ गई है, लेकिन यह जान कर कि इतने दिनों का यह नाटक और मेहनत बेकार गई, मेरी हिम्मत ही टूट गई थी. तभी मुझे आप के बारे में पता चला और मेरी हिम्मत कुछ बढ़ी,’’ रोहिणी कहतेकहते रुक गई.

‘‘हां, कहिए मैं आप की क्या मदद कर सकता हूं?’’ सौरभ की आंखें चमकीं.

‘‘कुछ रोज पहले आप को एक नंबर से गुमनाम एसएमएस मिला था कि आप के बेटे सुनील की दोस्ती एक आवारा खानदान की लड़की के साथ है और आप ने उसे उस बेबुनियाद एसएमएस से डर उस लड़की से संबंध तोड़ लेने को कहा है.’’

‘‘तो क्या रश्मि आप की बेटी है? मुझे मालूम नहीं था,’’ सौरभ खिसिया कर बोला, ‘‘मैं ने रश्मि को देखा है, बड़ी प्यारी लड़की है. देखिए, मुझे इस बारे में ज्यादा तो कुछ पता ही नहीं था. ऐसा एसएमएस देख कर घबराना तो लाजिमी ही था, पर अब खैर बात ही दूसरी है. आप बेफिक्र रहें. मैं बच्चों की खुशी के बीच में नहीं आऊंगा. वैसे, इस एसएमएस के विषय में आप को किस ने बताया?’’

‘‘सुनील ने, रश्मि को अभी कुछ मालूम नहीं है.’’

‘‘तो उसे कुछ भी मालूम न होने दीजिए. आप जब भी कहें, मैं और मेरी पत्नी बाकायदा शादी का प्रस्ताव ले कर आप के यहां आ जाएंगे.’’

‘‘वह तो सुनील और रश्मि की मरजी पर है कि वे कब शादी करना चाहते हैं, फिर मैं और सुमित स्वयं ही आप के यहां आएंगे,’’ रोहिणी ने घड़ी देखी, ‘‘अब चलें, काफी समय हो गया है.’’

‘‘हां, चलिए. अब तो खैर मुलाकात होगी ही.’’

‘‘लेकिन आज की मुलाकात को भूल कर.’’

‘‘आप मुझ पर विश्वास कर सकती हैं,’’ सौरभ विनम्रता से बोला.

सुनील अपने कमरे की छत पर नजर गड़ाए अनमना सा लेटा था.

‘‘सुनील, तुम जब चाहो रश्मि से शादी कर सकते हो, लेकिन एक शर्त है, तुम्हें रश्मि की मां की बहुत इज्जत करनी होगी और उन्हें बहुत प्यार देना होगा.’’

‘‘यह कोई मुश्किल बात नहीं है, पापा. वे बहुत ही अच्छी महिला हैं. उन्हें प्यार करना या इज्जत देना मेरे लिए स्वाभाविक ही होगा.’’

‘‘बुढ़ापे में कई बार इंसान का स्वभाव बदल जाता है. बेटे, वादा करो चाहे वे कैसी भी हों, तुम उन का निरादर या तिरस्कार तो नहीं करोगे. एक बार चाहे मुझे और अपनी मां को मत पूछना, लेकिन अपनी सास का खयाल हमेशा रखना. वादा करते हो.’’

‘‘वादा रहा, पापा. लेकिन आप उन के बारे में इतने फिक्रमंद क्यों हैं? कल तक तो आप उस खानदान से कोई ताल्लुक नहीं रखने को कह रहे थे और आज उन के लिए इतनी हमदर्दी हो रही है,’’ सुनील हंसा.

‘‘एक लंबी कहानी है, बेटे,’’ सौरभ ने सुनील को पूरा किस्सा सुनाया और

बोला, ‘‘रोहिणीजी के प्रति जो गलती  मुझ से अनजाने में हो गई, बेटे, उस का प्रायश्चित्त अब तुम्हें करना है, रश्मि और रोहिणीजी को सदा खुश रख कर.’’

‘‘वादा करता हूं,’’ सुनील के चेहरे का विश्वास साफ झलक रहा था.

 

प्रायश्चित: क्यों दूसरी शादी करना चाहता था सुधीर

आज सुधीर की तेरहवीं है. मेरा चित्त अशांत है. बारबार नजर सुधीर की तसवीर की तरफ चली जाती. पति कितना भी दुराचारी क्यों न हो पत्नी के लिए उस की अहमियत कम नहीं होती. तमाम उपेक्षा, तिरस्कार के बावजूद ताउम्र मुझे सुधीर का इंतजार रहा. हो न हो उन्हें अपनी गलतियों का एहसास हो और मेरे पास चले आएं. पर यह मेरे लिए एक दिवास्वप्न ही रहा. आज जबकि वह सचमुच में नहीं रहे तो मन मानने को तैयार ही नहीं. बेटाबहू इंतजाम में लगे हैं और मैं अतीत के जख्मों को कुरेदने में लग गई.

सुधीर एक स्कूल में अध्यापक थे. साथ ही वह एक अच्छे कथाकार भी थे. कल्पनाशील, बौद्धिक. वह अकसर मुझे बड़ेबड़े साहित्यकारों के सारगर्भित तत्त्वों से अवगत कराते तो लगता अपना ज्ञान शून्य है.

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मुझ में कोई साहित्यिक सरोकार न था फिर भी उन की बातें ध्यानपूर्वक सुनती. उसी का असर था कि मैं भी कभीकभी उन से तर्कवितर्क कर बैठती. वह बुरा न मानते बल्कि प्रोत्साहित ही करते. उस दिन सुधीर कोई कथा लिख रहे थे. कथा में दूसरी स्त्री का जिक्र था. मैं ने कहा, ‘यह सरासर अन्याय है उस पुरुष का जो पत्नी के होते हुए दूसरी औरत से संबंध बनाए,’ सुधीर हंस पड़े तो मैं बोली, ‘व्यवहार में ऐसा होता नहीं.’

सुधीर बोले, ‘खूबसूरत स्त्री हमेशा पुरुष की कमजोरी रही. मुझे नहीं लगता अगर सहज में किसी को ऐसी औरत मिले तो अछूता रहे. पुरुष को फिसलते देर नहीं लगती.’

‘मैं ऐसी स्त्री का मुंह नोंच लूंगी,’ कृत्रिम क्रोधित होते हुए मैं बोली.

‘पुरुष का नहीं?’ सुधीर ने टोका तो मैं ने कोई जवाब नहीं दिया.

 

कई साल गुजर गए उस वार्त्तालाप को. पर आज सोचती हूं कि मैं ने बड़ी गलती की. मुझे सुधीर के सवाल का जवाब देना चाहिए था. औरत का मौन खुद के लिए आत्मघाती होता है. पुरुष इसे स्त्री की कमजोरी मान लेता है और कमजोर को सताना हमारे समाज का दस्तूर है. इसी दस्तूर ने ही तो मुझे 30 साल सुधीर से दूर रखा.

सुधीर पर मैं ने आंख मूंद कर भरोसा किया. 2 बच्चों के पिता सुधीर ने जब इंटर की छात्रा नम्रता को घर पर ट्यूशन देना शुरू किया तो मुझे कल्पना में भी भान नहीं था कि दोनों के बीच प्रेमांकुर पनप रहे हैं. मैं भी कितनी मूर्ख थी कि बगल के कमरे में अपने छोटेछोटे बच्चों के साथ लेटी रहती पर एक बार भी नहीं देखती कि अंदर क्या हो रहा है. कभी गलत विचार मन में पनपे ही नहीं. पता तब चला जब नम्रता गर्भवती हो गई और एक दिन सुधीर अपनी नौकरी छोड़ कर रांची चले गए.

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मेरे सिर पर तब दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. 2 बच्चों को ले कर मेरा भविष्य अंधकारमय हो गया. कहां जाऊं, कैसे कटेगी जिंदगी? बच्चों की परवरिश कैसे होगी? लोग तरहतरह के सवाल करेंगे तो उन का जवाब क्या दूंगी? कहेंगे कि इस का पति लड़की ले कर भाग गया.

पुरुष पर जल्दी कोई दोष नहीं मढ़ता. उन्हें मुझ में ही खोट नजर आएंगे. कहेंगे, कैसी औरत है जो अपने पति को संभाल न सकी. अब मैं उन्हें कैसे समझाऊं कि मैं ने स्त्री धर्म का पालन किया. मैं ने उन वचनों को निभाया जो अग्नि को साक्षी मान कर लिए थे.

तीज का व्रत याद आने लगा. कितनी तड़प और बेचैनी होती है जब सारा दिन बिना अन्न, जल के अपने पति का साथ सात जन्मों तक पाने की लालसा में गुजार देती थी. गला सूख कर कांटा हो जाता. शाम होतेहोते लगता दम निकल जाएगा. सुधीर कहते, यह सब करने की क्या जरूरत है. मैं तो हमेशा तुम्हारे साथ हूं. पर वह क्या जाने इस तड़प में भी कितना सुख होता है. उस का यह सिला दिया सुधीर ने.

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बनारस रहना मेरे लिए असह्य हो गया. लोगों की सशंकित नजरों ने जीना मुहाल कर दिया. असुरक्षा की भावना के चलते रात में नींद नहीं आती. दोनों बच्चे पापा को पूछते. इस बीच भइया आ गए. उन्हें मैं ने ही सूचित किया था. आते ही हमदोनों को खरीखोटी सुनाने लगे. मुझे जहां लापरवाह कहा वहीं सुधीर को लंपट. मैं लाख कहूं कि मैं ने उन पर भरोसा किया, अब कोई विश्वासघात पर उतारू हो जाए तो क्या किया जा सकता है.

क्या मैं उठउठ कर उन के कमरे में झांकती कि वह क्या कर रहे हैं? क्या यह उचित होता? उन्होंने मेरे पीठ में छुरा भोंका. यह उन का चरित्र था पर मेरा नहीं जो उन पर निगरानी करूं.

‘तो भुगतो,’ भैया गुस्साए.

भैया ने भी मुझे नहीं समझा. उन्हें लगा मैं ने गैरजिम्मेदारी का परिचय दिया. पति को ऐसे छोड़ देना मूर्ख स्त्री का काम है. मैं रोने लगी. भइया का दिल पसीज गया. जब उन का गुस्सा शांत हुआ तो उन्होंने रांची चलने के लिए कहा.

‘देखता हूं कहां जाता है,’ भैया बोले.

हम रांची आए. यहां शहर में मेरे एक चचेरे भाई रहते थे. मैं वहीं रहने लगी. उन्हें मुझ से सहानुभूति थी. भरसक उन्होंने मेरी मदद की. अंतत: एक दिन सुधीर का पता चल गया. उन्होंने नम्रता से विवाह कर लिया था. सहसा मुझे विश्वास नहीं हुआ. सुधीर इतने नीचे तक गिर सकते हैं. सारी बौद्धिकता, कल्पनाशीलता, बड़ीबड़ी इल्म की बातें सब खोखली साबित हुईं. स्त्री का सौंदर्य मतिभ्रष्टा होता है यह मैं ने सुधीर से जाना.

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उस रोज भैया भी मेरे साथ जाना चाहते थे. पर मैं ने मना कर दिया. बिला वजह बहसाबहसी, हाथापाई का रूप ले सकता था. घर पर नम्रता मिली. देख कर मेरा खून खौल गया. मैं बिना इजाजत घर में घुस गई. उस में आंख मिलाने की भी हिम्मत न थी. वह नजरें चुराने लगी. मैं बरस पड़ी, ‘मेरा घर उजाड़ते हुए तुम्हें शर्म नहीं आई?’

उस की निगाहें झुकी हुई थीं.

‘चुप क्यों हो? तुम ने तो सारी हदें तोड़ दीं. रिश्तों का भी खयाल नहीं रहा.’

‘यह आप मुझ से क्यों पूछ रही हैं? उन्होंने मुझे बरगलाया. आज मैं न इधर की रही न उधर की,’ उस की आंखें भर आईं. एकाएक मेरा हृदय परिवर्तित हो गया.

मैं विचार करने लगी. इस में नम्रता का क्या दोष? जब 2 बच्चों का पिता अपनी मर्यादा भूल गया तो वह बेचारी तो अभी नादान है. गुरु मार्ग दर्शक होता है. अच्छे बुरे का ज्ञान कराता है. पर यहां गुरु ही शिष्या का शोषण करने पर तुला है. सुधीर से मुझे घिन आने लगी. खुद पर शर्म भी. कितना फर्क था दोनों की उम्र में. सुधीर को इस का भी खयाल नहीं आया. इस कदर कामोन्मत्त हो गया था कि लाज, शर्म, मानसम्मान सब को लात मार कर भाग गया. कायर, बुजदिल…मैं ने मन ही मन उसे लताड़ा.

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‘तुम्हारी उम्र ही क्या है,’ कुछ सोच कर मैं बोली, ‘बेहतर होगा तुम अपने घर चली जाओ और नए सिरे से जिंदगी शुरू करो.’

‘अब संभव नहीं.’

‘क्यों?’ मुझे आश्चर्य हुआ.

‘मैं उन के बच्चे की मां बनने वाली हूं.’

‘तो क्या हुआ. गर्भ गिराया भी तो जा सकता है. सोचो, तुम्हें सुधीर से मिलेगा क्या? उम्र का इतना बड़ा फासला. उस पर रखैल की संज्ञा.’

‘मुझे सब मंजूर है क्योंकि मैं उन से प्यार करती हूं.’

यह सुन कर मैं तिलमिला कर रह गई पर संयत रही.

‘अभी अभी तुम ने कहा कि सुधीर ने तुम्हें बरगलाया है. फिर यह प्यारमोहब्बत की बात कहां से आ गई. जिसे तुम प्यार कहती हो वह महज शारीरिक आकर्षण है.

एक दिन सुधीर का मन तुम से भी भर जाएगा तो किसी और को ले आएगा. अरे, जिसे 2 अबोध बच्चों का खयाल नहीं आया वह भला तुम्हारा क्या होगा,’ मैं ने नम्रता को भरसक समझाने का प्रयास किया. तभी सुधीर आ गया. मुझे देख कर सकपकाया. बोला, ‘तुम, यहां?’

‘हां मैं यहां. तुम जहन्नुम में भी होते तो खोज लेती. इतनी आसानी से नहीं छोड़ूंगी.’

‘मैं ने तुम्हें अपने से अलग ही कब किया था,’ सुधीर ने ढिठाई की.

‘बेशर्मी कोई तुम से सीखे,’ मैं बोली.

‘इन सब के लिए तुम जिम्मेदार हो.’

‘मैं…’ मैं चीखी, ‘मैं ने कहा था इसे लाने के लिए,’ नम्रता की तरफ इशारा करते हुए बोली.

‘मेरे प्रति तुम्हारी बेरुखी का नतीजा है.’

‘चौबीस घंटे क्या सारी औरतें अपने मर्दों की आरती उतारती रहती हैं? साफसाफ क्यों नहीं कहते कि तुम्हारा मन मुझ से भर गया.’

‘जो समझो पर मेरे लिए तुम अब भी वैसी ही हो.’

‘पत्नी.’

‘हां.’

‘तो यह कौन है?’

‘पत्नी.’

‘पत्नी नहीं, रखैल.’

‘जबान को लगाम दो,’ सुधीर तनिक ऊंचे स्वर में बोले. यह सब उन का नम्रता के लिए नाटक था.

‘मुझे नहीं मालूम था कि तुम इतने बड़े पाखंडी हो. तुम्हारी सोच, बौद्धिकता सिर्फ दिखावा है. असल में तुम नाली के कीड़े हो,’ मैं उठने लगी, ‘याद रखना, तुम ने मेरे विश्वास को तोड़ा है. एक पतिव्रता स्त्री की आस्था खंडित की है. मेरी बददुआ हमेशा तुम्हारे साथ रहेगी. तुम इस के साथ कभी सुखी नहीं रहोगे,’ भर्राए गले से कहते हुए मैं ने फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा. भरे कदमों से घर आई.

इस बीच मैं ने परिस्थितियों से मुकाबला करने का मन बना लिया था. सुधीर मेरे चित्त से उतर चुका था. रोनेगिड़गिड़ाने या फिर किसी पर आश्रित रहने से अच्छा है मैं खुद अपने पैरों पर खड़ी हूं. बेशक भैया ने मेरी मदद की. मगर मैं ने भी अपने बच्चों के भविष्य के लिए भरपूर मेहनत की. इस का मुझे नतीजा भी मिला. बेटा प्रशांत सरकारी नौकरी में आ गया और मेरी बेटी सुमेधा का ब्याह हो गया.

बेटी के ब्याह में शुरुआती दिक्कतें आईं. लोग मेरे पति के बारे में ऊलजलूल सवाल करते. पर मैं ने हिम्मत नहीं हारी. एक जगह बात बन गई. उन्हें हमारे परिवार से रिश्ता करने में कोई खोट नहीं नजर आई. अब मैं पूरी तरह बेटेबहू में रम गई. जिंदगी से जो भी शिकवाशिकायत थी सब दूर हो गई. उलटे मुझे लगा कि अगर ऐसा बुरा दिन न आता तो शायद मुझ में इतना आत्मबल न आता.

जिंदगी से संघर्ष कर के ही जाना कि जिंदगी किसी के भरोसे नहीं चलती. सुधीर नहीं रहे तो क्या सारे रास्ते बंद हो गए. एक बंद होगा तो सौ खुलेंगे. इस तरह कब 60 की हो गई पता ही न चला. इस दौरान अकसर सुधीर का खयाल जेहन में आता रहा. कहां होंगे…कैसे होंगे?

एक रोज भैया ने खबर दी कि सुधीर आया है. वह मुझ से मिलना चाहता है. मुझे आश्चर्य हुआ. भला सुधीर को मुझ से क्या काम. मैं ने ज्यादा सोचविचार करना मुनासिब नहीं समझा. वर्षों बाद सुधीर का आगमन मुझे भावविभोर कर गया. अब मेरे दिल में सुधीर के लिए कोई रंज न था. मैं जल्दीजल्दी तैयार हुई. बाल संवार कर जैसे ही मांग भरने के लिए हाथ ऊपर किया कि प्रशांत ने रोक लिया.

‘मम्मी, पापा हमारे लिए मर चुके हैं.’

‘नहीं,’ मैं चिल्लाई, ‘वह आज भी मेरे लिए जिंदा हैं. वह जब तक जीवित रहेंगे मैं सिं?दूर लगाना नहीं छोड़ूंगी. तू कौन होता है मुझे यह सब समझाने वाला.’

‘मम्मी, उन्होंने क्या दिया है हमें, आप को. एक जिल्लत भरी जिंदगी. दरदर की ठोकरें खाई हैं हम ने तब कहीं जा कर यह मुकाम पाया है. उन्होंने तो कभी झांकना भी मुनासिब नहीं समझा. तुम्हारा न सही हमारा तो खयाल किया होता. कोई अपने बच्चों को ऐसे दुत्कारता है,’ प्रशांत भावुक हो उठा.

‘वह तेरे पिता हैं.’

‘सिर्फ नाम के.’

‘हमारे संस्कारों की जड़ें अभी इतनी कमजोर नहीं हैं बेटा कि मांबाप को मांबाप का दर्जा लेखाजोखा कर के दिया जाए. उन्होंने तुझे अपनी बांहों में खिलाया है. तुझे कहानी सुना कर वही सुलाते थे, इसे तू भूल गया होगा पर मैं नहीं. कितनी ही रात तेरी बीमारी के चलते वह सोए नहीं. आज तू कहता है कि वह सिर्फ नाम के पिता हैं,’ मैं कहती रही, ‘अगर तुझे उन्हें पिता नहीं मानना है तो मत मान पर मैं उन्हें अपना पति आज भी मानती हूं,’ प्रशांत निरुत्तर था. मैं भरे मन से सुधीर से मिलने चल पड़ी.

सुधीर का हुलिया काफी बदल चुका था. वह काफी कमजोर लग रहे थे. मानो लंबी बीमारी से उठे हों. मुझे देखते ही उन की आंखें नम हो गईं.

‘मुझे माफ कर दो. मैं ने तुम सब को बहुत दुख दिए.’

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जी में आया कि उन के बगैर गुजारे एकएक पल का उन से हिसाब लूं पर खामोश रही. उम्र के इस पड़ाव पर हिसाबकिताब निरर्थक लगे.

सुधीर मेरे सामने हाथ जोड़े खड़े थे. इतनी सजा काफी थी. गुजरा वक्त लौट कर आता नहीं पर सुधीर अब भी मेरे पति थे. मैं अपने पति को और जलील नहीं देख सकती. बातोंबातों में भइया ने बताया कि सुधीर के दोनों गुर्दे खराब हो गए हैं. सुन कर मेरे कानों को विश्वास नहीं हुआ.

मैं विस्फारित नेत्रों से भैया को देखने लगी. वर्षों बाद सुधीर आए भी तो इस स्थिति में. कोई औरत विधवा होना नहीं चाहती. पर मेरा वैधव्य आसन्न था. मुझ से रहा न गया. उठ कर कमरे में चली आई. पीछे से भैया भी चले आए. शायद उन्हें आभास हो गया था. मेरे सिर पर हाथ रख कर बोले, ‘इन आंसुओं को रोको.’

‘मेरे वश में नहीं…’

‘नम्रता दवा के पैसे नहीं देती. वह और उस के बच्चे उसे मारतेपीटते हैं.’

‘बाप पर हाथ छोड़ते हैं?’

‘क्या करोगी. ऐसे रिश्तों की यही परिणति होती है.’

भइया के कथन पर मैं सुबकने लगी.

‘भइया, सुधीर से कहो, वह मेरे साथ ही रहें. मैं उन की पत्नी हूं…भले ही हमारा शरीर अलग हुआ हो पर आत्मा तो एक है. मैं उन की सेवा करूंगी. मेरे सामने दम निकलेगा तो मुझे तसल्ली होगी.’

भैया कुछ सोचविचार कर बोले, ‘प्रशांत तैयार होगा?’

‘वह कौन होता है हम पतिपत्नी के बीच में एतराज जताने वाला.’

‘ठीक है, मैं बात करता हूं…’

सुधीर ने साफ मना कर दिया, ‘मैं अपने गुनाहों का प्रायश्चित्त करना चाहता हूं. मुझे जितना तिरस्कार मिलेगा मुझे उतना ही सुकून मिलेगा. मैं इसी का हकदार हूं,’ इतना बोल कर सुधीर चले गए. मैं बेबस कुछ भी न कर सकी.

आज भी वह मेरे न हो सके. शांत जल में कंकड़ मार कर सुधीर ने टीस, दर्द ही दिया. पर आज और कल में एक फर्क था. वर्षों इस आस से मांग भरती रही कि अगर मेरे सतीत्व में बल होगा तो सुधीर जरूर आएंगे. वह लौटे. देर से ही सही. उन्होंने मुझे अपनी अर्धांगिनी होने का एहसास कराया तो. पति पत्नी का संबल होता है. आज वह एहसास भी चला गया.

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