‘‘रोहिणी नामक कोई महिला आप से मिलने का समय तय करना चाहती हैं,’’ निजी सहायक ने इंटरकौम पर बताया.

‘‘मेरा कार्यक्रम देख कर जो भी समय तुम्हें उपयुक्त लगता हो, उन्हें दे दो,’’ सौरभ ने कागजों पर नजर गड़ाए हुए कहा.

‘‘जी, वे कहती हैं कि उन्हें कोई व्यक्तिगत काम है और वे ऐसा समय चाहती हैं जब आप औफिस की चिंताओं से मुक्त हो कर ध्यान से उन की बात सुन सकें.’’ सौरभ को लगा जैसे फोन के दूसरे छोर पर उस का निजी सहायक व्यंग्य से मुसकरा रहा हो.

‘‘ठीक है, मुझ से बात कराओ.’’

लाइन मिलते ही सौरभ ने बात शुरू की, ‘‘हैलो, रोहिणीजी, मैं सौरभ बोल रहा हूं. कहिए, आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’

‘‘नमस्कार, सौरभजी. क्या आज शाम या कल किसी समय आप समय निकाल सकते हैं 1-2 घंटे का?’’ दूसरी ओर से एक संयत और सौम्य स्वर आया.

‘‘लेकिन आप मुझ से किस सिलसिले में मिलना चाहती हैं?’’

‘‘कुछ निहायत व्यक्तिगत काम है, जो फोन पर बताया नहीं जा सकता. कहिए, कब और कहां मिलेंगे?’’

‘‘आज शाम को 6 बजे के बाद आप मेरे घर पर आ जाइए. पता तो…’’

‘‘जी नहीं, आप के घर पर ठीक नहीं रहेगा,’’ रोहिणी ने उस की बात काटी, ‘‘जो बात मैं करना चाह रही हूं, वह शायद आप अपने परिवार को न बताना चाहें और अपनी पुरानी जिंदगी के बारे में बीवीबच्चों को बताना ठीक नहीं.’’

‘‘क्या कह रही हैं आप? मैं ने अपनी जिंदगी में आज तक ऐसा कोई काम नहीं किया जिस के लिए मुझे पछतावा हो या जिसे किसी से छिपाना पड़े,’’ सौरभ ने बड़े गर्व से उस की बात काटी.

‘‘सिवा एक हरकत के. डरिए नहीं, मैं आप को ब्लैकमेल नहीं कर रही, न पैसा हथियाने के चक्कर में हूं. सिर्फ एक सवाल आप के सामने रख कर उसे ठंडे दिमाग से हल करने को कहूंगी. हां तो कहिए, कहां मिलेंगे? आप के दफ्तर में आ जाऊं?’’

‘‘इस समय तो मुझे फुरसत नहीं है और दफ्तर के समय के बाद तो ठीक नहीं लगेगा,’’ वह कुछ हिचकिचाया.

‘‘तो ठीक है, मेरे दफ्तर में आ जाइए. हमारा दफ्तर तो अकसर सारी रात ही चलता रहता है. आप को फेमस पब्लिसिटी का दफ्तर तो मालूम ही होगा. मैं यहां पर कला निर्देशिका हूं और पहली मंजिल पर पहला कमरा मेरा ही है. तो फिर आ रहे हैं न आप?’’

‘‘जी हां,’’ सौरभ के स्वर में अब औपचारिकता से ज्यादा उत्सुकता थी, ‘‘आप कब तक वहां होंगी? मेरा मतलब है शाम को आप की छुट्टी कब होती है?’’

‘‘दफ्तर का समय तो 10 से 5 ही है, लेकिन हमारे यहां काम इतना ज्यादा है कि 9 बजे से पहले तो शायद ही कोई अपनी कुरसी छोड़ता हो. आप को जब भी सुविधा हो, आ जाइए.’’ फिर दूसरी ओर से लाइन कट गई.

सौरभ साढ़े 5 बजे ही रोहिणी के दफ्तर में पहुंच गया. रोहिणी की उम्र 50-55 वर्ष के बीच की थी. आधुनिक ढंग से सजी उस सौम्य महिला ने बड़ी नम्रता से सौरभ का स्वागत किया.

‘‘माफ कीजिए, मैं समय से कुछ पहले ही आ गया हूं. आप ने कुछ ऐसा रहस्य का जाल बुन दिया कि काम में दिल ही नहीं लगा. आधा दिन खराब कर दिया आप ने मेरा,’’ सौरभ कह कर मुसकराया.

‘‘और आप ने जो मेरी आधी जिंदगी खराब कर दी, उस की शिकायत मैं किस से करूं?’’ रोहिणी ने एक दर्दभरी मुसकान के साथ कहा.

‘‘क्या कह रही हैं आप? जहां तक मेरा खयाल है इस से पहले हम कभी मिले भी नहीं,’’ सौरभ अप्रतिम हो कर बोला.

‘‘आप ठीक कह रहे हैं, लेकिन कई बार अनजाने में ही इंसान अपनी जिंदगी संवारने के चक्कर में दूसरों की जिंदगी उजाड़ देता है,’’ रोहिणी के स्वर में कसक थी.

‘‘माफ करिएगा, आप को कुछ गलतफहमी हो रही है. मैं ने आज तक किसी का कुछ नुकसान नहीं किया है. मैं जो आज इस ओहदे पर हूं…’’

‘‘ओह, मैं आप के व्यक्तिगत जीवन की बात कर रही हूं, औफिस की नहीं.’’

‘‘उस में भी मैं दावे से कह सकता हूं कि मैं ने कभी किसी लड़की को बुरी नजर से नहीं देखा. न किसी को सब्जबाग दिखाए और न ही मेरी शक्लसूरत ऐसी है कि जिसे देख कर किसी की नींद उड़े.’’ सौरभ के कहने के ढंग पर रोहिणी खिलखिला कर हंस पड़ी.

सौरभ ने आगे कहा, ‘‘हां, तो बताइए न, किस तरह मैं ने आप की जिंदगी खराब की?’’ सौरभ के स्वर में चुनौती थी.

‘‘आप पूनम को तो नहीं भूले होंगे?’’

‘‘जी नहीं. मानता हूं कि मेरी और पूनम की शादी होने वाली थी, लेकिन पूनम का ही इरादा शादी करने का नहीं था. मेरी तरफ से ऐसी कोई बात नहीं हुई, जिस से पूनम की जिंदगी खराब होती.’’

‘‘जानती हूं. आप ने अपनी और पूनम की जिंदगी अपने मनमुताबिक चलाने के लिए मेरी गाड़ी पटरी पर से उतार दी.’’ रोहिणी के स्वर में पीड़ा थी.

‘‘मैं आप की बात बिलकुल नहीं समझ पा रहा, रोहिणीजी. समझाने की कोशिश करेंगी?’’

‘‘जी हां, वही तो बता रही हूं. पूनम पति नहीं, बल्कि एक ऐसा साथी चाहती थी जो उस के जीवन में एक पुरुष की कमी को तो पूरा कर सके, पर उसे किसी बंधन में न बांधे.’’

‘‘आप बिलकुल ठीक कह रही हैं. उसे पति नहीं, मात्र एक ऐसे पुरुष की आवश्यकता थी जो उस की शारीरिक भूख को मिटा सके. यह मुझे कतई मंजूर नहीं था.’’

‘‘इसलिए आप ने उस की मुलाकात सुमित से करवा दी, जिस से आप के भागने का रास्ता आसान हो गया.’’

‘‘उस की सुमित से मुलाकात मैं ने जरूर करवाई थी, लेकिन बगैर किसी मतलब के. सुमित और मैं बचपन के दोस्त थे, पर पढ़ाई और नौकरी के सिलसिले में अलग हो गए थे. एक बार वर्षों बाद मिलने पर बातचीत के दौरान उस ने पूछा कि मेरी शादी हो गई क्या, मैं ने उसे पूनम की शादी के बारे में जो हिचकिचाहट थी वह बता दी. वह मानने को तैयार ही नहीं हुआ कि अपने देश में भी ऐसे विचारों की लड़कियां हो सकती हैं.

सुमित ने एक बार पूनम से मिलने की इच्छा जाहिर की और मैं ने एक रोज दोनों की मुलाकात करा दी. उस के बाद तो उन दोनों की घनिष्ठता इतनी तेजी से बढ़ी कि उन की दोस्ती करवाने वाला मैं बहुत पीछे छूट गया. खैर, इस सब से आप को क्या फर्क पड़ा?’’

‘‘सिर्फ मुझे ही तो फर्क पड़ा क्योंकि मैं सुमित की बीवी हूं,’’ रोहिणी ने एक सफल खिलाड़ी की तरह अपना तुरुप का इक्का चल दिया.

सौरभ हक्काबक्का रह गया और बोला, ‘‘मैं वाकई बहुत शर्मिंदा हूं कि मैं ने इस तरह आप की जिंदगी बरबाद की, लेकिन सच कहता हूं कि उस समय मुझे यह मालूम नहीं था कि सुमित शादीशुदा है.’’

‘‘और जब मालूम भी हुआ तो क्या उस समय आप को सुमित की पत्नी से कुछ हमदर्दी हुई थी?’’ रोहिणी ने सीधे उस की आंखों में झांकते हुए कहा.

सौरभ उस नजर का सामना न कर सका, ‘‘मेरा खयाल था कि शायद सुमित की पत्नी उस के उपयुक्त न हो, मगर आप को देख कर तो ऐसा नहीं लगता. क्या आप का दांपत्य जीवन सुखी नहीं था?’’

‘‘बहुत ज्यादा, लेकिन उस मनहूस शाम से पहले तक जब सुमित और पूनम मिले थे. वैसे, अब भी अपनी तरफ से तो सुमित मुझे खुश ही रखने की कोशिश करता है.’’

‘‘लेकिन इस सब के बावजूद सुमित पूनम के चक्कर में पड़ा कैसे?’’

‘‘ये काजू देख रहे हैं न आप. इन्हें खाने की इच्छा न आप को थी न मुझे, लेकिन प्लेट सामने रखी है तो मैं भी बराबर खा रही हूं और आप भी. मेरा मतलब है कि अगर एक आधुनिक पढ़ीलिखी स्त्री का सहवास सहज ही मिल जाए तो किसे आपत्ति होगी? और फिर मेरी ओर से भी कोई विरोध नहीं हुआ,’’ रोहिणी चाय का एक घूंट भर कर बोली, ‘‘अब आप पूछेंगे कि मैं ने एतराज क्यों नहीं किया?

मैं कमा कर खुद अपने पैरों पर खड़ी हो सकती थी. मैं ने सुमित को छोड़ा क्यों नहीं? महज अपनी बेटी के लिए. मैं नहीं चाहती थी कि मेरी बेटी तलाकशुदा मांबाप की औलाद कहलाए और समाज में तिरस्कृत हो.

सुमित ने भी उसे भरपूर प्यार दिया और चाहे हम शारीरिक व मानसिक रूप से वर्षों से अलग हो चुके हों, पर अभी भी अपनी बेटी के लिए, दुनिया के सामने हम एक सफल पतिपत्नी का नाटक करते हैं.’’

‘‘काफी मुश्किल काम है यह,’’ सौरभ सहानुभूति से बोला.

‘‘बेहद. पर अब तो खैर आदत पड़ गई है, लेकिन यह जान कर कि इतने दिनों का यह नाटक और मेहनत बेकार गई, मेरी हिम्मत ही टूट गई थी. तभी मुझे आप के बारे में पता चला और मेरी हिम्मत कुछ बढ़ी,’’ रोहिणी कहतेकहते रुक गई.

‘‘हां, कहिए मैं आप की क्या मदद कर सकता हूं?’’ सौरभ की आंखें चमकीं.

‘‘कुछ रोज पहले आप को एक नंबर से गुमनाम एसएमएस मिला था कि आप के बेटे सुनील की दोस्ती एक आवारा खानदान की लड़की के साथ है और आप ने उसे उस बेबुनियाद एसएमएस से डर उस लड़की से संबंध तोड़ लेने को कहा है.’’

‘‘तो क्या रश्मि आप की बेटी है? मुझे मालूम नहीं था,’’ सौरभ खिसिया कर बोला, ‘‘मैं ने रश्मि को देखा है, बड़ी प्यारी लड़की है. देखिए, मुझे इस बारे में ज्यादा तो कुछ पता ही नहीं था. ऐसा एसएमएस देख कर घबराना तो लाजिमी ही था, पर अब खैर बात ही दूसरी है. आप बेफिक्र रहें. मैं बच्चों की खुशी के बीच में नहीं आऊंगा. वैसे, इस एसएमएस के विषय में आप को किस ने बताया?’’

‘‘सुनील ने, रश्मि को अभी कुछ मालूम नहीं है.’’

‘‘तो उसे कुछ भी मालूम न होने दीजिए. आप जब भी कहें, मैं और मेरी पत्नी बाकायदा शादी का प्रस्ताव ले कर आप के यहां आ जाएंगे.’’

‘‘वह तो सुनील और रश्मि की मरजी पर है कि वे कब शादी करना चाहते हैं, फिर मैं और सुमित स्वयं ही आप के यहां आएंगे,’’ रोहिणी ने घड़ी देखी, ‘‘अब चलें, काफी समय हो गया है.’’

‘‘हां, चलिए. अब तो खैर मुलाकात होगी ही.’’

‘‘लेकिन आज की मुलाकात को भूल कर.’’

‘‘आप मुझ पर विश्वास कर सकती हैं,’’ सौरभ विनम्रता से बोला.

सुनील अपने कमरे की छत पर नजर गड़ाए अनमना सा लेटा था.

‘‘सुनील, तुम जब चाहो रश्मि से शादी कर सकते हो, लेकिन एक शर्त है, तुम्हें रश्मि की मां की बहुत इज्जत करनी होगी और उन्हें बहुत प्यार देना होगा.’’

‘‘यह कोई मुश्किल बात नहीं है, पापा. वे बहुत ही अच्छी महिला हैं. उन्हें प्यार करना या इज्जत देना मेरे लिए स्वाभाविक ही होगा.’’

‘‘बुढ़ापे में कई बार इंसान का स्वभाव बदल जाता है. बेटे, वादा करो चाहे वे कैसी भी हों, तुम उन का निरादर या तिरस्कार तो नहीं करोगे. एक बार चाहे मुझे और अपनी मां को मत पूछना, लेकिन अपनी सास का खयाल हमेशा रखना. वादा करते हो.’’

‘‘वादा रहा, पापा. लेकिन आप उन के बारे में इतने फिक्रमंद क्यों हैं? कल तक तो आप उस खानदान से कोई ताल्लुक नहीं रखने को कह रहे थे और आज उन के लिए इतनी हमदर्दी हो रही है,’’ सुनील हंसा.

‘‘एक लंबी कहानी है, बेटे,’’ सौरभ ने सुनील को पूरा किस्सा सुनाया और

बोला, ‘‘रोहिणीजी के प्रति जो गलती  मुझ से अनजाने में हो गई, बेटे, उस का प्रायश्चित्त अब तुम्हें करना है, रश्मि और रोहिणीजी को सदा खुश रख कर.’’

‘‘वादा करता हूं,’’ सुनील के चेहरे का विश्वास साफ झलक रहा था.

 

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