डिलीवरी को आसान बनाने के लिए रोजाना करें ये एक्सरसाइज

पिछली पीढ़ी की ज्यादातर महिलाएं प्रसव से पहले तक रसोई और घर का सारा काम आसानी से संभालती थीं. लेकिन आज की महिलाओं के लिए प्रसव उतना आसान नहीं है. अब ज्यादा से ज्यादा महिलाएं गर्भधारण एवं प्रसव को कठिन कार्य मानती हैं. उन्हें प्रसव बेहद कष्टदायी लगने लगा है. इस कष्ट से बचने के लिए वे सिजेरियन डिलिवरी ज्यादा पसंद कर रही हैं, जो शरीर को आगे चल कर कमजोर बना देती है. इसलिए गर्भधारण से ले कर प्रसव व प्रसवोपरांत तक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए व्यायाम एक बेहतर विकल्प है. प्रसवकाल को सुखद बनाए रखने के लिए व्यायाम में फिजियोथेरैपी एक अच्छा माध्यम है. यह गर्भकाल और प्रसव के दौरान होने वाली कई तरह की परेशानियों से छुटकारा दिलाती है. 9 महीने के लंबे गर्भकाल में स्वास्थ्य का ध्यान रखना बहुत जरूरी है. इस के लिए फिजियोथेरैपी को नियमित रूप से अपनाना चाहिए-

स्ट्रैंथनिंग

कमर के लिए : पैरों को एकसाथ मिला कर कमर के आगे की तरफ लाते हुए आसन पर बैठ जाएं, फिर घुटनों को धीरेधीरे जमीन से छुआने की कोशिश करें. इस क्रिया को भी कई बार करें.

गले के लिए : इसे करने के लिए सीधे बैठें, फिर एक हाथ को मोड़ कर सिर के पीछे की तरफ का हिस्सा पकड़ें और कुहनियों को ऊपर की ओर उठाएं. यही क्रिया दूसरे हाथ से भी दोहराएं. आसन पर बैठ कर दोनों हाथों को आगे की ओर ले जाएं. फिर धीमी गति से सांस लेते हुए हाथों को दोनों ओर फैलाएं. इस क्रिया को 10-12 बार दोहराएं.

 पीठ के लिए : पैरों को जमीन पर टिकाते हुए कुरसी पर सीधी बैठ जाएं. फिर दोनों हाथों से कमर को पकड़ें. आसन पर धीरे से हाथों और घुटनों के बल टेक लगाते हुए झुकें, फिर धीरेधीरे पीछे के मध्य भाग को ऊपर और नीचे की ओर ले जाएं.

गले की पीछे की पेशियों के लिए : इस क्रिया को करने के लिए घर की किसी दीवार के पास खड़ी हो जाएं. कंधों के बराबर दोनों हथेलियों को जोड़ कर रखें. दोनों पैरों के बीच थोड़ी दूरी बना कर रखें यानी पैर मिलें नहीं. फिर दीवार से 30 सैंटीमीटर की दूरी पर खड़े हो कर कुहनियों को मोड़ कर धीरेधीरे नाक से दीवार छूने की कोशिश करें. यह क्रिया फिर दोहराएं. यह व्यायाम प्रसव को भी आसान बनाता है.

जांघों की पेशियों के लिए : इसे करने के लिए सीधी लेट जाएं और फिर एक मोटे तकिए को बारीबारी से घुटनों के बीच 10 मिनट तक दबाए रखें. ऐसा कई बार करें.

रिलैक्सेशन मैथेड : सब से पहले आसन पर लेट जाएं और अपनी सांस की गति पर ध्यान दें. फिर दोनों एडि़यों को 5 सैकंड तक दबा कर रखें. फिर ढीला छोड़ दें. यह क्रिया घुटनों, हथेलियों, कुहनियों, सिर आदि हिस्सों के साथ भी करें. इस से शरीर की पेशियां रिलैक्स होती हैं.

कीगल्स व्यायाम : कीगल्स व्यायाम को मूत्रत्याग के दौरान किया जाता है. इसे करने के लिए मूत्र के दौरान 3 से 5 सैकंड तक मूत्र को रोकरोक कर करें. इस से पेट के निचले हिस्से में कसावट आती है. गर्भवती महिलाओं के लिए यह बेहद महत्त्वपूर्ण व्यायाम है.

पैरों की पेशियों के लिए : इस क्रिया को करने के लिए पहले तो आसन पर बैठें. फिर आसन के ऊपर एक मोटा कपड़ा बिछा कर एडि़यों से उसे दबाएं. इस के बाद पैरों की उंगलियों से कपड़े को भीतर की ओर खींचने की कोशिश करें. इस क्रिया को भी कई बार दोहराएं. यह व्यायाम पैरों की पेशियों में कसावट लाने के साथसाथ फ्लैट फुट की समस्या को भी रोकता है, रक्तसंचार को बढ़ा कर पैरों की सूजन को भी कम करता है.

ध्यान देने योग्य बातें :

  1. दिन भर में एक बार व्यायाम जरूर करें और व्यायाम करते समय थकान और दर्द का ध्यान जरूर रखें.
  2. शुरू में व्यायाम कम समय के लिए करें. फिर धीरेधीरे समय बढ़ाएं.
  3. चिकनी फर्श पर व्यायाम बिलकुल न करें.
  4. व्यायाम करते समय ढीले वस्त्र पहनें.
  5. खाने के तुरंत बाद व्यायाम कभी न करें. खाने के कम से कम 2 घंटे बाद ही व्यायाम करें.
  6. गर्भावस्था के दौरान महिलाएं कम जगह वाले फर्नीचर पर न बैठें. इस से पेशियों पर ज्यादा दबाव पड़ता है.
  7. बैठते समय पीठ को कुरसी से सटा कर बैठें और पैरों को फर्श पर रखें.
  8. गर्भधारण के 20 सप्ताह बाद सीधी न लेटें, बल्कि सिर और कंधों को ऊंचा कर के लेटें. इस के लिए सिर के नीचे 2 तकिए लगा कर लेटें. ऐसा करना गर्भाशय की रक्तनलिकाओं में पड़ने वाले दबाव के कारण होने वाले हाइपरटैंशन को रोकता है.
  9. हाई हील के सैंडल पहनने से बचें, फ्लैट फुटवियर ही पहनें, इस से रीढ़ की हड्डी पर खिंचाव कम होगा.
  10. गर्भकाल के समय व्यायाम करने पर किसी भी प्रकार का दर्द या समस्या हो तो तुरंत स्त्रीरोग विशेषज्ञा की सलाह लें.व्यायाम से संबंधित विशेष जानकारी फिजियोथेरैपिस्ट से भी ले सकती हैं.

गर्भकाल के दौरान होने वाली समस्याएं

  1. पेट के निचले हिस्से में सिकुड़ी अवस्था में स्थित यूटरस गर्भकाल के हफ्तों बीतने के बाद विकसित हो जाता है. इस कारण शरीर के आगे के हिस्से में शरीर का भार बढ़ता है, जिस से शरीर का संतुलन बनाए रखने में समस्या उत्पन्न होने लगती है.
  2. कंधे लटकने लगते हैं. ऐसी अवस्था में मांसपेशियों में खिंचाव पड़ने लगता है.
  3. घुटने फूलने लगते हैं और दोनों पैरों में अंतर बढ़ जाता है, जिस की वजह से कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
  4. जिन महिलाओं का वजन ज्यादा होता है, उन की पेशियां ढीली होने की वजह से उन में फ्लैट फुट की समस्या उत्पन्न हो सकती है.
  5. पेट की मांसपेशियों में खिंचाव पड़ने की वजह से स्ट्रैस की समस्या उत्पन्न होने लगती है.
  6. आम अवस्था की अपेक्षा गर्भावस्था के दौरान ज्यादा आराम करने से मांसपेशियां कमजोर पड़ने लगती हैं.
  7. शरीर के आकार में बदलाव आने के कारण शरीर फैलने लगता है.

फिजियोथेरैपी के फायदे

  1. स्वास्थ्य बेहतर बना रहता है और शारीरिक परेशानियां कम होती हैं.
  2. व्यायाम सर्कुलेटरी प्रौब्लम्स, वैरिकोस वेंस समस्या और पैरों की सूजन को कम करता है.
  3. प्रसव के बाद स्वास्थ्य में भी बहुत तेजी से सुधार आता है.
  4. यह जोड़ों से संबंधित समस्याओं को कम करने के साथसाथ उन्हें रोकने में भी सहायक है.
  5. शरीर को नियंत्रित करने में मदद करती है.
  6. गर्भकाल के दौरान मधुमेह की समस्या होने से रोकती है.
  7. यह शरीर के आकार में भी संतुलन बनाए रखने के लिए सहायक है.
  8. फिजियोथेरैपी पेट की मांसपेशियों को सुचारु बनाए रखने में भी प्रभावकारी है.

ध्यान दें

गर्भावस्था के दौरान व्यायाम अच्छा है, लेकिन जरूरी नहीं है कि हर तरह का व्यायाम हर किसी के लिए फायदेमंद हो. गर्भावस्था और किसी भी प्रकार की शारीरिक बीमारी जैसे उच्च रक्तचाप, हृदय संबंधी बीमारी, एक से ज्यादा बार गर्भपात होना, गर्भाशय के द्रव में होने वाले बदलाव आदि में व्यायाम करना जोखिम भरा काम है. इस स्थिति में अपनी इच्छा से कोई व्यायाम न करें. गर्भकाल के शुरुआत से ही स्त्रीरोग विशेषज्ञा के निर्देशानुसार ही व्यायाम करें.

– डा. अरुण कुमार पी.टी, चीफ फिजियोथेरैपिस्ट, लक्ष्मी हौस्पिटल, कोच्चि

हैप्पी प्रैगनैंसी के सिंपल सीक्रेट्स

मांबनने का एहसास दुनिया का सब से खूबसूरत एहसास होता है लेकिन 9 महीने की गर्भावस्था का यह समय काफी कठिन और नाजुक भी होता है. जरा सी लापरवाही से प्रैगनैंसी में कौंप्लिकेशंस आ सकते हैं. बच्चे के स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है. पहली और तीसरी तिमाही काफी नाजुक होती है. इसलिए इस समय मां को अपना भरपूर ख्याल रखना चाहिए. अपनी डाइट, लाइफस्टाइल, ऐक्सरसाइज के साथसाथ मैंटल हैल्थ को ले कर भी पूरी सतर्कता बरतनी चाहिए ताकि वह स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सके.

हैल्दी प्रैगनैंसी के लिए इन बातों का खयाल जरूर रखें:

1- सही और पौष्टिक खानपान

गर्भावस्था के पूरे 9 महीने खानपान में कोई भी लापरवाही न बरतें. आप जो भी खाएंगी वह आप के शिशु को भी लगेगा. प्रैगनैंसी के दौरान ही नहीं बल्कि कंसीव करने से पहले और डिलीवरी के बाद भी महिलाओं को अपनी डाइट का ध्यान रखना चाहिए. प्रेगनेंसी में पौष्टिक आहार लेने से उस के मस्तिष्क का सही विकास होने में मदद मिलती है और जन्म के समय शिशु का वजन भी ठीक रहता है.

संतुलित आहार से शिशु में जन्मजात विकार से भी बचाव होता है. अकसर प्रैगनैंसी के पहले महीने में कुछ महिलाओं को उलटी, मितली, भूख न लगना, थकान जैसी परेशानियां होती हैं जिस से उन्हें खाने में परेशानी आती है. मगर इस समय भी अपनी डाइट में फाइबर से भरपूर सब्जियां, फल, नट्स, दूध आदि जरूर लें.

प्रैगनैंसी के 9 महीनों में शरीर शिशु के पोषण और विकास के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहा होता है. इस समय में शरीर को पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन की जरूरत होती है जिसे उबले अंडे, मछली, कम वसा वाला मांस, बींस जैसे राजमा, लोबिया, मूंग और साबूत मूंग, मेवे, सोया और दाल आदि से पूरा किया जा सकता है. अंडा काफी पौष्टिक होता है. उस में प्रोटीन, बायोटिन, कोलैस्ट्रौल, विटामिन डी, ऐंटीऔक्सीडैंट आदि भरपूर मात्रा में होते हैं इसलिए ये भी प्रैगनैंट महिलाओं के लिए काफी फायदेमंद होते हैं.

प्रैगनैंसी के दौरान महिलाओं को अपने आहार में हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, पत्तागोभी और ब्रोकली को शामिल करना चाहिए. इन के अलावा फलियां जैसे बींस और सहजन भी खाना चाहिए. इन में फाइबर, प्रोटीन, आयरन और कैल्सियम की अधिक मात्रा होती है जिन की जरूरत प्रैगनैंट महिलाओं को होती है.

2- सही और संयुक्त खानपान

ज्यादा फाइबर वाली चीजों का सेवन करें. प्रैगनैंसी के दौरान कब्ज की शिकायत बढ़ जाती है, इसलिए पाचनक्रिया का ठीक होना बहुत जरूरी है. कोशिश करें कि अपने फूड्स में ज्यादा से ज्यादा फाइबर लें. इस से कब्ज होने का खतरा नहीं रहता है.

सूखा मेवा भी प्रैगनैंसी में काफी सही आहार है. आप बादाम, अखरोट और काजू अपने आहार में शामिल कर सकती हैं. इन में कई तरह के विटामिन, कैलोरी, फाइबर और ओमेगा-3 फैटी ऐसिड होता है जिस की जरूरत मां और गर्भस्थ शिशु दोनों को होती है.

आप जो भी खाती हैं उस में एकतिहाई से थोड़ा ज्यादा हिस्सा कार्बोहाइड्रेट्स का होना चाहिए. सफेद के बजाय संपूर्ण अनाज वाली वैरायटी चुनें ताकि आप को पर्याप्त फाइबर मिल सके. प्रतिदिन दूध और डेयरी उत्पादों का सेवन करें जैसे दूध, दही, चीज, छाछ व पनीर लें. अगर आप को दूध नहीं पचता है तो कैल्सियम युक्त अन्य विकल्प जैसे छोले, राजमा, ओट्स, बादाम, सोया दूध, सोया पनीर आदि का चयन कर सकती हैं.

3- ध्यान रखें

सप्ताह में 2 दिन मछली लें. मछली में प्रोटीन, विटामिन डी, खनिज, ओमेगा-3 फैटी ऐसिड आदि होते हैं जो आप के शिशु के तंत्रिकातंत्र के विकास के लिए जरूरी होते हैं. यदि आप को मछली पसंद नहीं है या आप शाकाहारी हैं तो ओमेगा-3 फैटी ऐसिड अन्य खाद्यपदार्थों से पा सकती हैं जैसे मेवे, बीज, सोया उत्पाद और हरी पत्तेदार सब्जियों से.

आप को गर्भावस्था में 2 लोगों के लिए खाने की जरूरत नहीं है. भारत में अधिकांश डाक्टर दूसरी और तीसरी तिमाही में 300 अतिरिक्त कैलोरी के सेवन की सलाह देते हैं. फिर भी यह ध्यान रखें कि गर्भ में नन्हा शिशु पल रहा है और उस के लिए आप को खाना है न कि किसी बड़े व्यक्ति के लिए. प्रैगनैंसी के दौरान बहुत अधिक चाय, कौफी पीने से बचें. कौफी में मौजूद कैफीन सेहत को नुकसान पहुंचा सकती है. बेहतर है कि आप नीबू वाली चाय, हर्बल टी या कैफीन रहित ड्रिंक्स का सेवन करें.

बीचबीच में हैल्दी स्नैक्स का सेवन करें. इस के लिए आप रोस्टेड बादाम, काजू, मखाने, चने आदि खाएं. प्रैगनैंसी के दौरान कुछ चीजों के सेवन से बचना चाहिए जैसे कच्चा या अधपका मांस, कच्चा अंडा, पपीता आदि. आप उबला अंडा खा सकती हैं पर ध्यान रखें कि पीले वाला भाग अच्छी तरह से पक गया हो.

4- आयरन

शरीर में हीमोग्लोबिन बनाने के लिए आयरन की जरूरत होती है. हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाने वाला प्रोटीन है जो शरीर के विभिन्न अंगों तथा ऊतकों में औक्सीजन पहुंचाने का काम करता है. डाक्टर द्वारा बताए गए सप्लिमैंट्स के अलावा पर्याप्त मात्रा में आयरन से भरपूर भोजन खाएं ताकि आप का आयरन का स्तर ऊंचा रहे. अपने भोजन में आयरन से भरपूर फूड्स जैसे अनार, चुकंदर आदि को शामिल करें. फौलिक ऐसिड का सेवन भी प्रैगनैंसी के दिनों में बहुत जरूरी होता है.

सीडीसी (सैंटर्स फौर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवैंशन) के अनुसार गर्भावस्था की योजना बना रही महिलाओं को कम से कम 1 महीना पहले और गर्भावस्था के दौरान प्रतिदिन 400 मिलीग्राम फौलिक ऐसिड का सेवन करना चाहिए. फौलिक ऐसिड विटामिन बी का एक रूप है जो शिशु की मस्तिष्क व रीढ़ से जुड़े जन्मदोष से बचाव कर सकता है. इसे आप हरी पत्तेदार सब्जियों, दालों, फोर्टिफाइड अनाज के सेवन से पा सकती हैं. प्रैगनैंसी के पहले 3 महीनों में आप को फौलिक ऐसिड सप्लिमैंट्स लेने की जरूरत होगी क्योंकि यह भू्रण को हैल्दी रखने में मदद कर सकता है.

5- खुद को हाइड्रेटेड रखें

खुद को हाइड्रेटेड रखने की कोशिश करें. अपने साथ हमेशा एक बोतल पानी रखें और बीचबीच में पानी पीती रहें. साथ ही नारियल पानी, स्मूदी, फलों से तैयार जूस और शेक्स भी पी सकती हैं ताकि शरीर में पानी की कमी न हो. डाइट में उन फलों को शामिल करें जिन में पानी की मात्रा अधिक होती है. खीरा, खरबूज, लौकी, तरबूज आदि खाएं. दिनभर में कम से कम 3 से 4 लिटर पानी और 1 से 2 गिलास जूस पीएं. ऐसा करने से शरीर में मौजूद विषैले पदार्थ शरीर से  बाहर निकल जाते हैं. पानी आप के यूरिनरी ट्रैक के संक्रमण को रोकने में मदद करता है जिस का खतरा गर्भवती महिलाओं में अधिक होता है. शरीर में पर्याप्त पानी होने से गर्भावस्था के दौरान निर्जलीकरण और सूजन से भी बचाव होता है.

6- शारीरिक रूप से ऐक्टिव रहें

प्रतिदिन रात डिनर करने के बाद 15 से 30 मिनट टहलें. इस से शरीर में ब्लडसर्कुलेशन सही बना रहेगा. इस से डिलिवरी के समय अधिक समस्या नहीं होगी. सप्ताह में कम से कम 5 दिन 30 मिनट के लिए ब्रिक्स वाक करें. इस से शरीर को गर्भावस्था और प्रसव के दौरान होने वाले सभी परिवर्तनों से निबटने में मदद मिल सकती है. आप फिजिकली और इमोशनली फिट महसूस करेंगी. ब्रीदिंग ऐक्सरसाइज से भी फायदा होगा. लेकिन भारी वजन उठाने वाली और कठिन व्यायाम करने से बचें. रोजाना अपनी क्षमतानुसार कुछ हलके ऐक्सरसाइज करें. नियमित रूप से हलके व्यायाम करने के बहुत फायदे हैं. आप के जरीए शिशु को भी इन का लाभ मिलेगा.

7- तनाव से दूरी

किसी बात को ले कर चिंतित या तनाव में न रहें. इस से मानसिक और शारीरिक सेहत को नुकसान पहुंच सकता है. स्ट्रैस के कारण कंसीव करने में भी दिक्कत आ सकती है. यहां तक कि प्रीमैच्योर लेबर भी हो सकता है. यही वजह है कि प्रैगनैंट महिलाओं को खुश रहने की सलाह दी जाती है.

8- आराम

शरीर को पर्याप्त आराम दें. गर्भावस्था के शुरुआती महीनों में महिलाएं थकान महसूस करती हैं. ऐसा उन के शरीर में स्रावित हो रहे गर्भावस्था हारमोन के उच्च स्तर की वजह से होता है. बाद में यह थकान रात में बारबार पेशाब के लिए उठने या फिर बढ़े पेट की वजह से आराम से न सो पाने का कारण बन सकती है.

करवट ले कर सोने की आदत डालें. तीसरी तिमाही में करवट ले कर सोने से शिशु तक रक्त का प्रवाह बेहतर रहता है. करवट ले कर सोने से मृत शिशु के जन्म का खतरा पीठ के बल सोने की तुलना में कम होता है.

जब तक शिशु सुरक्षित तरीके से जन्म नहीं ले लेता तब तक अपने डाक्टर के संपर्क में बनी रहें. जब भी आप को शरीर में किसी तरह की परेशानी या बेचैनी अथवा कोई और समस्या नजर आए तो तुरंत डाक्टर से संपर्क करें. डाक्टर आप के घर के करीब का हो तो ज्यादा अच्छा है क्योंकि जरूरत पड़ने पर आप तुरंत उन के पास पहुंच जाएंगी.

इलाइची चाय से लेकर मसाला चाय तक, जानें ये 3 चाय पीने के फायदे

चाय पीने का अपना ही एक अलग मजा होता है. चाहे वह दोस्तों के साथ हो या रिश्तेदारों के साथ. ऑफिस में बॉस के साथ चाय पीने का मौका मिले या किसी खास इंसान को होटल या अपने घर पर दिया गया चाय का इनविटेशन. चाय हर मौके के लिए परफेक्ट है.

कैंसर से बचाव में चाय के फायदे

कैंसर से बचाव में चाय कुछ हद तक फायदेमंद साबित हो सकती है. दरअसल, चाय में पॉलीफेनॉल्स पाए जाते हैं, जो ट्यूमर कोशिकाओं को फैलने से रोक सकते हैं. एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन) की वेबसाइट पर इसी संबंध में कई शोध उपलब्ध हैं. इनके अनुसार, ग्रीन टी ग्लूटाथियोन एस-ट्रांसफरेज और क्विनोन रिडक्टेस जैसे डिटॉक्सिफिकेशन एंजाइम को सक्रिय करने का काम कर सकती है, जो ट्यूमर को बढ़ने से रोकने का काम कर सकते हैं. इसके अलावा, ग्रीन टी और ब्लैक टी में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट फ्लेवनोइड्स (एपिकैटेचिन, एपिगैलोटेचिन, एपिकैटेचिन गैलेट) कीमोंप्रिवेंटिव (कैंसररोधी) प्रभाव दिखा सकते हैं.

हृदय के लिए फायदेमंद है चाय

संतुलित मात्रा में ग्रीन टी या ब्लैक टी का सेवन हृदय को स्वस्थ रखने में मददगार साबित हो सकता है. दरअसल, चाय का सेवन करने वाले लोगों में ब्लड प्रेशर, सीरम में लिपिड की मात्रा और डायबिटीज नियंत्रित रहती है. साथ ही कोलेस्ट्रॉल भी कम होता है, जिससे शरीर को हृदय रोग होने की संभावना कम होती है. फिलहाल, हृदय स्वास्थ्य के मामले में चाय के बेहतर प्रभाव जानने के लिए अभी और वैज्ञानिक शोध की जरूरत है.

डायबिटीज कम करने में चाय के फायदे

एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित एक शोध में मधुमेह के लिए चाय के फायदे की बात कही गई है. शोध में बताया गया है कि चाय डायबिटीज के जोखिम और इससे जुड़ी जटिलताओं को कम करने में मददगार हो सकती है. शोध के अनुसार, चाय इंसुलिन की सक्रियता को बढ़ाती है, जो ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है. इस आधार पर कह सकते हैं कि चाय का सेवन डायबिटीज के मरीजों के लिए लाभकारी हो सकता है. इस शोध में ग्रीन, ब्लैक और ओलोंग जैसी विभिन्न प्रकार की चायों को शामिल किया गया है.

(आलेख में किए गए दावों की पुष्टि हम नहीं करते, किसी भी सलाह पर अमल करने से पहले डॉक्टर से परामर्श अवश्य लें.)

अब आप सोच रहे होगें कि इतनी अलग अलग तरह की चाय हमें कहां मिल सकती है तो आपको ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है, क्योंकि हम आपको बताने वाले हैं एक ऐसे ब्रांड के बारे में जहां आपको चाय की कई वैरायइटीज मिल सकती हैं. आइए जानते हैं इसके बारे में…

Sugandh Tea- 29 सालों से बेहतरीन चाय की पहचान 

जी हां, सुगन्ध टी पिछले 29 सालों से चाय की कई बेहतरीन किस्में बना रही हैं जो न सिर्फ स्वाद में बल्कि सेहत के लिए भी फायदेमंद है. यहां आपको चाय की अलग अलग किस्में मिलेंगी, जिनके बारे में आप यहां क्लिक shopsugandh.com करके डीटेल में जान सकते हैं.  

  1. इलाइची चाय –

अब आपको इलायची चाय बनाने के लिए अलग से इलायची पीसने की भी जरूरत नहीं है क्योंकि सुगन्ध लाया है एक अनोखी इलायची चाय जिसमें चाय पत्ती के साथ असली इलायची कूट के डाली गई है ताकि आपके चाय पीने का अनुभव और भी खास हो जाए.

2. मसाला चाय- 

बात करते हैं हमारी स्पेशल मसाला चाय के बारे में जो आपको ताजगी भी देगी और एक जबरदस्त स्वाद भी. इस चाय की खास बात ये है कि इसमें आपको अलग अलग मसालों का फ्लेवर एक ही चाय में मिल जाएगा. इसमें अदरक, लौंग, इलायची और काली मिर्च का ऐसा स्वाद है जिस वजह से आप इसे बार बार पीना चाहेंगे.

3. असम चाय-

उच्च गुणवत्ता वाली चाय की पत्तियों से बनी असम चाय एक अलग ही स्वाद और ताजगी का एहसास देती है. सुगन्ध अपनी गोल्ड चाय में कुछ ऐसी ही बेहतरीन और चुनिंदा बगानो से लायी गई चाय आपके लिए पेश करता है. ये चाय कम मात्रा में ही बनाई जाती है

 

Pregnancy में कैसी हो डाइट

गर्भ धारण करना किसी भी महिला के जीवन की सब से बड़ी खुशी होती है. मगर इस दौरान उसे कई सावधानियां भी बरतनी पड़ती हैं. आज नारी पर घरबाहर दोनों जिम्मेदारियां हैं. वह घर, बच्चों, औफिस सभी को हैंडल करती है.

आधुनिक युग की नारी होने के नाते कुछ महिलाएं धूम्रपान और शराब आदि का भी सेवन करने लगी हैं. यही वजह है कि गर्भावस्था में उन्हें अपनी खास देखभाल की जरूरत होती है. थोड़ी सी सावधानी बरतने पर मां और शिशु दोनों स्वस्थ और सुरक्षित रह सकते हैं.

पौष्टिक आहार लेना जरूरी

आप मां बनने वाली हैं, तो यह जरूरी है कि आप पौष्टिक आहार लें. इस से आप को अपने और अपने गर्भ में पल रहे शिशु के लिए सभी जरूरी पोषक तत्त्व मिल जाएंगे. इन दिनों आप को अधिक विटामिन और खनिज, विशेषरूप से फौलिक ऐसिड और आयरन की जरूरत होती है.

गर्भावस्था के दौरान कैलोरी की भी कुछ अधिक जरूरत होती है. सही आहार का मतलब है कि आप क्या खा रही हैं, न कि यह कि कितना खा रही हैं. जंक फूड का सेवन सीमित मात्रा में करें, क्योंकि इस में केवल कैलोरी ज्यादा होती है बाकी पोषक तत्त्व कम या कह लें न के बराबर होते हैं.

मलाई रहित दूध, दही, छाछ, पनीर आदि का शामिल होना बहुत जरूरी है, क्योंकि इन खाद्यपदार्थों में कैल्सियम, प्रोटीन और विटामिन बी-12 की ज्यादा मात्रा होती है. अगर आप को लैक्टोज पसंद नहीं है या फिर दूध और दूध से बने उत्पाद नहीं पचते, तो अपने खाने के बारे में डाक्टर से बात करें.

पेयपदार्थ

पानी और ताजे फलों के रस का खूब सेवन करें. उबला या फिल्टर किया पानी ही पीएं. घर से बाहर जाते समय पानी साथ ले जाएं या फिर अच्छे ब्रैंड का बोतलबंद पानी ही पीएं. ज्यादातर रोग जलजनित विषाणुओं की वजह से ही होते हैं. डब्बाबंद जूस का सेवन कम करें, क्योंकि इन में बहुत अधिक चीनी होती है.

वसा और तेल

घी, मक्खन, नारियल के दूध और तेल में संतृप्त वसा की ज्यादा मात्रा होती है, जो ज्यादा गुणकारी नहीं होती. वनस्पति घी में वसा अधिक होती है. अत: वह भी संतृप्त वसा की तरह शरीर के लिए अच्छी नहीं है. वनस्पति तेल वसा का बेहतर स्रोत है, क्योंकि इस में असंतृप्त वसा अधिक होती है.

समुद्री नमक या आयोडीन युक्त नमक के साथसाथ डेयरी उत्पाद आयोडीन के अच्छे स्रोत हैं. अपने गर्भस्थ शिशु के विकास के लिए अपने आहार में पर्याप्त मात्रा में आयोडीन शामिल करें.

गर्भावस्था से पहले आप का वजन कितना था और अब आप के गर्भ में कितने शिशु पल रहे हैं, उस हिसाब से अब आप को कितनी कैलोरी की जरूरत है, यह डाक्टर बता सकती हैं.

गर्भावस्था में क्या न खाएं

गर्भावस्था के दौरान कुछ खाद्यपदार्थों का सेवन न करें. ये शिशु के लिए असुरक्षित साबित हो सकते हैं. जैसे अपाश्चयुरिकृत दूध (भैंस या गाय का) और उस से बने डेयरी उत्पादों का सेवन गर्भावस्था में सुरक्षित नहीं है. इन में ऐसे विषाणुओं के होने की संभावना रहती है, जिन से पेट के संक्रमण का खतरा रहता है. कहीं बाहर खाना खाते समय भी पनीर से बने व्यंजनों से बचें.

सभी किस्म के मांस को तब तक पकाएं जब तक कि उस से सभी गुलाबी निशान न हट जाएं. अंडे को भी अच्छी तरह पकाएं. विटामिन और खनिज की अधिक खुराक लेना भी शिशु के लिए हानिकारक हो सकता है. कोई भी

दवा बिना डाक्टर की सलाह के न लें.

आज बहुत सी महिलाएं कामकाजी हैं, जो प्रैगनैंसी के दौरान भी औफिस जाती हैं और उन की डिलिवरी भी सामान्य होती है. लेकिन आप की प्रैगनैंसी में कौंप्लिकेशंस हैं, तो सफर में अपना खास खयाल रखें. सफर पर जाने से पहले डाक्टर से जरूर मिल लें.

अधिकतर मामलों में प्रैगनैंसी के दौरान ट्रैवलिंग सेफ होती है, फिर भले ही आप ट्रैवलिंग कार से कर रही हो, बस से या फिर ट्रेन से. लेकिन कुछ प्रिकौशंस को ध्यान में रखें तो आप और आप के बच्चे को किसी भी अचानक होने वाली घटना से बचाया जा सकता है.

प्रैगनैंसी में शुरू के 3 महीने और आखिर के 3 महीने सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण होते हैं. इस दौरान सफर करने से बचें. अगर किसी महिला को डाक्टर ने प्रैगनैंसी के हाई रिस्क पर होने की वजह से पूरी तरह बैड रैस्ट की सलाह दी है तो ऐसी महिलाओं के लिए यात्रा करना हानिकारक हो सकता है.

इन बातों को रखें याद

सब से पहले तो किसी भी हालात में शरीर में पानी की कमी न होने दें. अगर आप विमान से सफर कर रही हैं तो नमी का स्तर कम होने के कारण डीहाईडे्रशन की संभावना रहती है. पैर फैलाने के लिए पर्याप्त जगह वाली सीट लें. रैस्टरूम सीट के करीब हो.

अगर आप कार द्वारा लंबी दूरी का सफर तय कर रही हैं, तो सीट बैल्ट पेट के नीचे बांधें. कार की अगली सीट पर बैठें और स्वच्छ हवा के लिए खिड़की खुली रखें. ब्लडप्रैशर सामान्य रखने, ऐंठन और सूजन से बचने के लिए पैरों को फैलाती और मूवमैंट में रखें.

गर्भावस्था के दूसरे फेज यानी 3 से 6 महीने के बीच का समय सुरक्षित होता है. इन महीनों के दौरान मौर्निंग सिकनैस, अधिक थकान, सुस्ती जैसी शिकायतें कम ही होती हैं.

ऐसी जगह जाने से बचें जहां किसी संक्रमित बीमारी का प्रकोप फैला हो.

गर्भावस्था के 14 से 28 सप्ताहों के बीच ही यात्रा करें.

सफर के दौरान डाक्टर के निर्देशों का पालन करते हुए दवा साथ रखें. डाक्टर के पेपर्स और उन का फोन नंबर हमेशा साथ रखें ताकि आपातकाल में उस का उपयोग कर पाएं.

सफर में ज्यादा भागदौड़ न करें, क्योंकि आप जितनी अशांत रहेंगी, आप के बीमार होने की आशंका उतनी ही अधिक होगी.

नशीले पदार्थों से दूर रहें

गर्भावस्था में महिलाएं नशीले पदार्थों के सेवन से दूर रहें. साथ ही उन दवाओं से भी परहेज करें, जिन में ड्रग्स की मात्रा अधिक हो. यदि इस अवस्था में महिला शराब, सिगरेट, तंबाकू, पान, बीड़ी या गुटका का सेवन करती है तो इस का गर्भ में पल रहे शिशु पर प्रतिकूल असर पड़ता है. उस में शारीरिक दोष, सीखने की अक्षमता और भावनात्मक समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

गर्भावस्था के शुरू के 10 हफ्तों के बाद शिशु के शरीर का विकास तेजी से होने लगता है और इस में नशीले पदार्थों के सेवन का असर इतना खतरनाक पड़ता है कि उस के नर्वस सिस्टम के साथ आंखें भी खराब हो सकती हैं. इस के अलावा बच्चा ऐब्नौर्मल पैदा हो सकता है, समयपूर्व प्रसव भी हो सकता है, जिस से शिशु पर जान का जोखिम बना रहता है.

कैफीन की मात्रा भी कम करें. प्रतिदिन 200 मिलीग्राम से अधिक कैफीन लेने से गर्भपात और कम वजन वाले शिशु के जन्म का जोखिम बढ़ जाता है. इसलिए प्रतिदिन 2 कप इंस्टैंट कौफी या 2 कप चाय से अधिक का सेवन न करें.

अगर आप मांस नहीं खाती हैं, तो अनाज, साबूत व पूर्ण अनाज, दालें और ड्राईफू्रट्स आप के लिए प्रोटीन के अच्छे स्रोत हैं. शाकाहारियों को प्रोटीन के लिए प्रतिदिन 45 ग्राम ड्राईफू्रट्स और 2/3 कप फलियों की आवश्यकता होती है. 1 अंडा, 14 ग्राम ड्राईफू्रट्स या 2 कप फलियां लगभग 28 ग्राम मांस के बराबर मानी जाती हैं. अगर मांसाहारी हैं तो मछली, चिकन आदि प्रोटीन के बेहतर स्रोत हैं.

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6 TIPS: Pregnancy में पहनें मैटरनिटी बेल्ट

मैटरनिटी बेल्ट एक किस्म का पट्टा होता है जो गर्भवती महिलाओं के पेट और कमर को सहारा देता है. ये बेल्ट गर्भावस्था के बाद भी पहनी जा सकती है.  इसको पहनने से उभरी और सूजी हुई मांसपेशियां वापस अपने पुराने आकार में आ जाती हैं. यह लचीली बेल्ट गर्भवती महिलाओं को गर्भ के दूसरे और तीसरे तिमाही चरण में बहुत सहायता करती है.

गर्भवती महिलाओं को मैटरनिटी बेल्ट से कई फायदे होते हैं. गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद भी मैटरनिटी बेल्ट को पहनना जा सकता है.

1. दर्द कम करती है

गर्भावस्था के दौरान अधिकतर महिलाओं को पीठ, कमर और जोड़ों में दर्द होता है. इस कारण वो अपने दैनिक काम करने में भी बहुत तकलीफ महसूस करती हैं. मैटरनिटी बेल्ट उनके गर्भ और पीठ को सहारा देती है और बिना किसी दर्द के काम करने में सहायता करती है. गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को कई तरह के दर्द होते हैं.

यह दर्द स्नायु, नितम्ब के अगले हिस्से और पेट के नीचे की तरफ होते हैं. इस दर्द का कारण मुख्यतः गर्भ के बढ़ने के कारण स्नायु और हड्डियों पर पड़ने वाला अतिरिक्त भार होता है. बेल्ट के कारण यह भार बंट जाता है. अतः किसी एक स्थान पर अतिरिक्त भार नहीं पड़ता. इसके साठ ही गर्भावस्था के दौरान शरीर में रिलैक्सिन नाम के होर्मोन की मात्रा बढ़ जाती है. इस कारण नितम्ब के जोड़ों पर असहाय दर्द होता है. कई बार इसी कारण पीठ के नीचले हिस्से में भी दर्द होता है. बेल्ट पहनने से जोड़ों को सहारा मिलता है और दर्द में आराम मिलता है.

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2. हल्का दबाव

यदि दिन भर के काम के दौरान पेट को हल्का-हल्का दबाव दिया जाता रहे तो यह गर्भाशय को सहारा देता है और चलने-फिरने के दौरान होने वाली मुश्किल को भी कम करता है. लेकिन यह ध्यान में रखा जाना चाहिए की दबाव बहुत ज्यादा ना हो और बेल्ट इतनी कसकर ना बांधी जाए कि पेट में खून का बहाव प्रभावित हो.

3. दैनिक क्रियाकलापों में सहायता

गर्भावस्था में नियमित रूप से चलने-फिरने से उच्च रक्तचाप, अवसाद और डायबिटीज जैसी बीमारियां दूर रहती हैं. लेकिन शारीरिक मेहनत के दौरान होने वाला दर्द और असहजता बहुत सी औरतों को टहलने-घूमने से रोक देते हैं. मैटरनिटी बेल्ट पहनने से आपका दर्द और असहजता कम होगी और आप अपनी दैनिक दिनचर्या को जी पाएंगी.

4. हर्निया के मरीजों के लिए लाभदायक

जिन महिलाओं को हर्निया की समस्या है, गर्भावस्था के दौरान यह बेल्ट उनके लिए बहुत आवश्यक और सहायक है.

5. शरीर की मुद्रा को सही रखती है

मैटरनिटी बेल्ट पहनने से आपकी पीठ को सहारा मिलता है जिस कारण शरीर की मुद्रा सही बनी रहती है. इससे नीचली पीठ जरुरत से ज्यादा खिंचने से बच जाती है. गर्भावस्था के दौरान अतिरिक्त वजन के कारण कई बार रीढ़ की मासपेशियां खिंच जाती हैं. मैटरनिटी बेल्ट इन मासपेशियों को खिंचचने से बचाती है और शरीर को सीधे रखने में सहायता करती है.

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6. प्रसव के पश्चात के फायदे

प्रसव के बाद मॉसपेशियां और स्नायु ढीले पड़ जाते है. उनको वापस अपने पुराने आकार में आने में समय लगता है. इसके साथ ही महिलाओं को अपने नवजात शिशु को भी देखना पड़ता है. प्रसव के बाद बेल्ट पहनने से यह आसान हो जाता है. नवजात शिशु के साथ ही नयी-नवेली मां के शरीर को भी स्वस्थ होने का मौका मिल जाता है.

इन सबके बावजूद, यह मैटरनिटी बेल्ट आपकी समस्याओं के समाधान का मात्र एक बाहरी सहारा है. यह भी जरूरी है कि इसपर आवश्यकता से अधिक निर्भर ना हों. जरूरी है कि मांसपेशियों और स्नायु की बेहतरी हेतु व्यायाम और खान-पान का खास ध्यान रखा जाए. यह बेल्ट पहनने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह अवश्य लें.

मां और बच्चों की केयर से जुड़ी सावधानियों के बारे बताइए?

सवाल-

मेरी उम्र 37 वर्ष है और मेरी 7 महीने में प्रीमैच्योर डिलिवरी हुई है. मैं पूरी प्रैगनैंसी के दौरान लगातार मैडिसिन पर चल रही हूं. मेरा दूध बच्चे के लिए पूरा नहीं हो पाता है इसलिए मैं उसे फौर्मूला मिल्क दे रही हूं. लेकिन उस से बच्चे का पेट साफ ही नहीं हो पाता है. लगातार बच्चे को कौन्सिपेशन रहती है. कृपया बताएं कि मैं क्या करूं?

जवाब

आप के बच्चे का जन्म 7वें महीने में हुआ है. समय से पहले जन्म होने के कारण ऐसे बच्चों का संपूर्ण शारीरिक व मानसिक विकास सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त पोषण का मिलना बेहद आवश्यक हो जाता है क्योंकि ऐसे बच्चों का जीवन तब तक संकट में होता है जब तक इन का पूरा टर्म यानी 36 हफ्ते पूरे न हो जाएं. ऐसे में बच्चे की मां के गर्भ के समान तापमान में संरक्षित रखने के लिए जितना उसे नियोनेटल केयर यूनिट में रखा जाना आवश्यक होता है उतना ही जरूरी है उसे आवश्यक न्यूट्रिशन प्रदान करना. इसलिए बच्चे की मां का दूध दिया जाना चाहिए. अगर आप का दूध नहीं बन पा रहा है तो अपने लिए न्यूट्रिशनिस्ट की मदद से संपूर्ण आहार सुनिश्चित करें. बच्चे को 8-12 बार फीड करने की कोशिश करें क्योंकि जब बच्चा स्तनपान करता है तो ऐसे हारमोन बनते हैं जिन से अपनेआप दूध बनने लगता है. खाने में दूध, अलसी, ओट्स और गेहूं का सेवन बढ़ाएं.

सवाल-

मेरी 2 महीने की बच्ची है. मेरे घर में सभी सदस्य कोरोना पीडि़त हो गए हैं. मैं थोड़ा डरी हुई हूं कि क्या मुझे अपनी बच्ची को स्तनपान करवाना चाहिए? मेरे घर के सभी सदस्य ऐसा करने से मना कर रहे हैं?

जवाब

वर्ल्ड हैल्थ और्गेनाइजेशन द्वारा साफतौर पर यह दिशानिर्देश जारी किए हैं कि हर मां कोरोना प्रभावित होने के बावजूद अपने बच्चे को स्तनपान करवा सकती है. यहां आप तो कोरोना से प्रभावित हैं भी नहीं तो आप को बिना किसी संशय के बच्चे को स्तनपान करवाते रहना चाहिए. आप का दूध ही बच्चे के लिए सुरक्षाकवच का काम करेगा, फिर चाहे वह कोरोना हो या अन्य कोई भी संक्रमण. साथ ही आप को बच्चे के आहार में गोजातीय दूध आधारित उत्पादों जैसेकि फौर्मूला मिल्क से बचना चाहिए. आखिर में यह बेहद आवश्यक है कि आप बच्चे का नियमित चैकअप करवाती रहें. हर ऐक्टिविटी पर रखें नजर. जैसे ही आप को कोई लक्षण दिखाई दे तुरंत डाक्टर के पास जाएं.

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सवाल

मैं ने 40 वर्ष की आयु में आईवीएफ की मदद से 2 जुड़वां बच्चों को जन्म दिया है. मेरी डिलिवरी औपरेशन से हुई है. औपरेशन की वजह से मेरा शरीर बेहद कमजोर हो गया है. मैं दोनों बच्चों को ठीक से फीड नहीं करा पाती, उन्हें ज्यादातर गाय का दूध देना पड़ता है. अब बच्चे भी ऊपर का दूध पीने में ज्यादा सहज रहते हैं. अगर मैं उन्हें फीड करवाने की कोशिश भी करती हूं तो वे पीते नहीं हैं.

जवाब-

औपरेशन से डिलिवरी होने की वजह से आप यकीनन अपने बच्चों को पहले घंटे में अपना दूध नहीं पिला पाई होंगी. मां का पहला दूध बच्चे के लिए प्रतिरक्षा का काम करता है. ऐसे में आप के लिए बहुत जरूरी हो जाता है कि आप बच्चों को अपना दूध दें. अगर वे आप का दूध नहीं पीते हैं तो अपना मिल्क, पंप की मदद से स्टरलाइज किए गए कंटेनर में निकालें और बच्चों को चम्मच की मदद से पिलाएं.

गायभैंस का दूध बिलकुल नहीं दें क्योंकि इस दूध से बच्चों को ऐलर्जी और अन्य हैल्थ रिस्क हो सकते हैं. इस दूध के सेवन से बच्चे में इन्फैक्शन का खतरा बढ़ जाता है. अगर आप को लगता है कि 2 बच्चों के लिए आप का दूध पर्याप्त नहीं है तो नियोलेक्टा का 100% ह्यूमन मिल्क भी आप बच्चों को दे सकती हैं क्योंकि यह उत्पाद डोनेट किए गए ब्रैस्ट मिल्क को ही पाश्च्युराइज्ड कर के बनाया जाता है. लेकिन पहले डाक्टर से सलाह जरूर कर लें.

सवाल-

मेरा बच्चा 4 महीने का है. उसे मेरी मदर इन ला चम्मच से साधारण पानी और अन्य सभी तरह के पेयपदार्थ पिलाती हैं और कभीकभी आलू मैश कर के भी देती हैं. मैं अपने बच्चे की सेहत को ले कर चिंतित हूं. मैं ने सभी जगह पढ़ा है और डाक्टर भी यही सलाह देते हैं कि 6 महीने तक बच्चे को सिर्फ मां का दूध दें और कुछ भी ऊपर का खानपान नहीं देना चाहिए. क्या इस से मेरे बच्चे की पाचनक्रिया पर प्रभाव पड़ेगा?

जवाब-

घर में अकसर बड़ेबुजुर्ग अपने देशी नुसखे बच्चों पर आजमाते हैं. हालांकि उन की भावना अच्छी होती है लेकिन एक डाक्टर होने के नाते मैं इस की सपोर्ट नहीं करती. बच्चे की पाचनक्रिया विकसित हुए बिना उसे अनाज या अन्य खाद्यपदार्थ नहीं देना चाहिए. इतना ही नहीं अगर गरमी का मौसम हो तो भी बच्चे को बारबार और आवश्यकतानुसार स्तनपान कराने पर उसे पानी या किसी अन्य तरल पेय की आवश्यकता नहीं होती है. इसलिए दाई या अन्य लोगों के कहने पर पानी आदि अन्य पेयपदार्थ देने की कोशिश न करें.

मानव दूध ऐंटीबौडी प्रदान करता है और आसानी से पचने योग्य होता है. इस में वे सभी आवश्यक पोषक तत्त्व होते हैं, जो बच्चे के संपूर्ण विकास के लिए बेहद आवश्यक होते हैं.

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सवाल-

मैं 7 महीने के बच्चे की मां हूं. मेरा दूध इतना ज्यादा बनता है कि कई बार कहीं भी बहने लगता है, जो मेरे लिए काफी मुश्किल भरी स्थिति हो जाती है. मैं क्या करूं?

जवाब-

अगर आप का दूध बहुत अधिक मात्रा में बनता है तो इस का मतलब है आप पूरी तरह से स्वस्थ हैं. ब्रैस्ट मिल्क कुदरत की नेमत की तरह है. अगर अपने बच्चे को फीड कराने के बाद भी आप का बहुत दूध बनता है तो आप पंप की मदद उसे निकाल कर मदर मिल्क बैंक में डोनेट कर सकती हैं क्योंकि दुनिया में लाखों बच्चे ऐसे हैं जिन्हें कई कारणों से मां के दूध का पोषण नहीं मिल पाता और उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ती है. इसलिए आप अपने नजदीकी मदर मिल्क बैंक में दूध को जरूर डोनेट करें. यदि आप जाने में समर्थ नहीं हैं तो मिल्क बैंक से संपर्क करें. वे स्वयं आप के यहां से मिल्क कंटेनर तय समय पर कलैक्ट कर लेंगे.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

10 टिप्स: प्रेग्नेंसी के पहले और बाद में ऐसे रखें अपना ख्याल

गर्भावस्था के दौरान महिला को कई शारीरिक और भावनात्मक बदलावों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में मां और जन्म लेने वाले बच्चे के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कि गर्भधारण करने से पहले ही प्लानिंग कर ली जाए -पूर्व गर्भावस्था, गर्भावस्था के दौरान, प्रसव अवधि और प्रसव के बाद. आइए जानते हैं इन चारों चरणों के दौरान जरूरी सावधानियों के बारे में:

गर्भावस्था से पहले अगर आप मां बनने की योजना बना रही हैं तो सब से पहले किसी स्त्री रोग विशेषज्ञा से मिलें. इस से आप को स्वस्थ प्रैगनैंसी प्लान करने में सहायता मिलेगी.

गर्भधारण करने के 3 महीने पहले से जिसे प्री प्रैगनैंसी पीरियड कहते हैं, डाक्टर के सुझाव अनुसार जीवनशैली में परिवर्तन लाने से न केवल प्रजनन क्षमता सुधरती है, बल्कि गर्भावस्था के दौरान होने वाली समस्याएं भी कम होती हैं और प्रसव के बाद रिकवर होने में भी सहायता मिलती है.

1 सर्वाइकल स्मीयर:

याद करें कि आप ने पिछली बार सर्वाइकल स्मीयर टैस्ट कब करवाया था. यदि अगला टैस्ट आने वाले 1 साल में करवाना बाकी है तो उसे अभी करा लें. स्मीयर जांच सामान्यत: गर्भावस्था में नहीं कराई जाती है, क्योंकि गर्भावस्था की वजह से ग्रीवा में बदलाव आ सकते हैं और सही रिपोर्ट आने में कठिनाई हो सकती है.

2 वजन:

अगर आप का वजन ज्यादा है और बौडी मास इंडैक्स (बीएमआई) 23 या इस से अधिक है, तो डाक्टर आप को वजन कम करने की सलाह देंगे. वजन घटाने से आप के गर्भधारण करने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं और आप अपनी गर्भावस्था की सेहतमंद शुरुआत कर सकती हैं. अगर आप का वजन कम है तो डाक्टर से बीएमआई बढ़ाने के सुरक्षित उपायों के बारे में बात करें. यदि आप का वजन कम है तो माहवारी चक्र अनियमित रहने की भी संभावना अधिक होती है. इस से भी गर्भधारण में समस्याएं आती हैं. आप का बीएमआई 18.5 और 22.9 के बीच होना चाहिए.

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3 गर्भावस्था के दौरान:

द इंस्टिट्यूट औफ मैडिसिन की गाइडलाइंस के अनुसार प्रैगनैंसी के दौरान महिला को अपने बीएमआई के हिसाब से वजन बढ़ाना चाहिए. अंडरवेट वूमन यानी बीएमआई 18.5 से कम हो तो उसे 12 से 18 किलोग्राम तक वजन बढ़ाना चाहिए. नौर्मल वेट वूमन यानी बीएमआई 18.5 से 25 हो तो 11 से 15 किलोग्राम तक वजन बढ़ाएं. महिला ओवर वेट हो यानी 25 से 30 तक बीएमआई हो तो उसे 7 से 11 किलोग्राम तक वजन बढ़ने देना चाहिए. 30 से ज्यादा बीएमआई होने पर 5 से 9 किलोग्राम तक वजन बढ़ाना चाहिए.

4 व्यायाम:

व्यायाम हैल्दी लाइफस्टाइल का अहम हिस्सा है. कोई कौंप्लिकेशन न हो तो प्रैगनैंट वूमन को हैल्दी रहने के लिए नियमित व्यायाम करते रहना चाहिए. कम से कम 30 मिनट का सामान्य व्यायाम जरूर करें. आइस हौकी, किक बौक्सिंग, राइडिंग आदि न करें.

5 संतुलित और पोषक भोजन खाएं:

मैक्स हौस्टिपल, शालीमार बाग, दिल्ली के डाक्टर एसएन बासु कहते हैं कि गर्भावस्था के दौरान संतुलित और पोषण भोजन का सेवन करें ताकि बच्चे के विकास और आप के शरीर में हो रहे बदलावों के लिए आप का शरीर तैयार हो सके. एक मां बनने वाली महिला को आमतौर पर प्रतिदिन 300 अतिरिक्त कैलोरी की आवश्यकता होती है.

6 सप्लिमैंट्स:

गर्भावस्था के दौरान प्रतिदिन कैल्सियम, फौलेट और आयरन की निश्चित मात्रा की निरंतर आवश्यकता होती है. इन की पूर्ति के लिए सप्लिमैंट्स का सेवन करना जरूरी होता है. कैल्सियम-1200 एमएल, फौलेट-600 से 800 एमएल, आयरन-27 एमएल. हर गर्भवती महिला को गर्भावस्था के दौरान 100 एमजी की आयरन की 100 गोलियों का सेवन अवश्य करना चाहिए. ये मां और बच्चे दोनों के लिए जरूरी हैं. प्रैगनैंसी के शुरुआती दिनों में विटामिंस की मेगा डोज बर्थ डिफैक्ट्स की वजह बन सकती है. प्रैगनैंट महिलाओं को अनपाश्चराइज्ड दूध, सौफ्ट चीज और रौ रैड मीट भी नहीं लेना चाहिए. इस से मिसकैरेज और दूसरी समस्याएं पैदा हो सकती है. प्रैगनैंट वूमन को हमेशा फल और सब्जियां अच्छी तरह धो कर खानी चाहिए.

7 पर्याप्त नींद लें:

गर्भवती महिलाओं को पर्याप्त आराम और नींद की जरूरत होती है. उन्हें रात में कम से कम 8 घंटे और दिन में 2 घंटे सोना चाहिए. नींद की कमी के कारण शरीर की लय गड़बड़ा जाती है.

8 शारीरिक रूप से सक्रिय रहें:

गर्भावस्था के दौरान भी अपनी सामान्य दिनचर्या जारी रखें. घर का काम करें. अगर नौकरी करती हैं तो औफिस जाएं, रोज आधा घंटा टहलें. डाक्टर की सलाह के हिसाब से अपना वर्कआउट जारी रखें. ध्यान रखें, इस दौरान रस्सी न कूदें और न ही कोई ऐसा कार्य करें जिस से शरीर को झटका लगे.

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9 भावनात्मक स्वास्थ्य का ध्यान रखें:

गर्भावस्था में भावनात्मक स्वास्थ्य का खयाल रखें. मूड स्विंग अधिक हो तो अवसाद की शिकार हो सकती हैं. अगर 2 सप्ताह तक यह स्थिति बनी रहती है तो डाक्टर से संपर्क करें.

10 प्रसव:

सामान्य प्रसव में रिकवरी जल्दी हो जाती है. 7 से 10 दिनों में शरीर में ऊर्जा का स्तर सामान्य हो जाता है. जबकि आमतौर पर सिजेरियन डिलिवरी के बाद 4 से 6 सप्ताह तक कोई काम न करने की सलाह दी जाती है. अस्पताल से घर आने पर अधिक शारीरिक मेहनत न करें. प्रसव के तुरंत बाद वजन घटाने में जल्दबाजी न करें. संतुलित और पोषक भोजन का सेवन करें. बच्चे को स्तनपान जरूर कराएं.

डिलीवरी से पहले ऐसे करें देखभाल

एक रिसर्च के अनुसार, जिन महिलाओं की प्रसव पूर्व केयर नहीं होती है, उनके बच्चे सामान्य बच्चों की तुलना में वजन में कम होने के साथसाथ उनमें मृत्यु का खतरा भी कहीं अधिक होता है. इसलिए प्रैगनैंसी में केयर है जरूरी.

डॉक्टरी जांच है जरूरी

जैसे ही आपको अपनी प्रैगनैंसी के बारे में पता चले तो आप तुरंत ही डाक्टर के पास जाएं, ताकि जरूरी जांच से प्रैगनैंसी कंफर्म हो सके और सभी जरूरी टेस्ट्स समय पर हो पाएं. साथ ही पेट में पल रहे शिशु को पोषण देने के लिए व मष्तिक व रीढ़ की हड्डी में जन्म दोष को रोकने के लिए जरूरी विटामिंस, जिसमें फोलिक एसिड का अहम रोल होता है आदि को समय पर शुरू किया जा सके. ताकि मां और बच्चे में किसी तरह की कमी न रहने पाए.

समयसमय पर टेस्ट करवाएं

प्रैगनैंसी को 3 ट्राइमेस्टर में बांटा गया है. जिसमें पहली स्टेज पहले हफ्ते में 12 हफ्ते की होती है. दूसरी स्टेज 13 हफ्ते से 26 हफ्ते की होती है. और आखिरी यानि तीसरी स्टेज  27 हफ्ते से शुरू हो कर आखिर तक मानी जाती है. इस दौरान शिशु में कोई जेनरिक दोष तो नहीं है, सही से अंगों का विकास तो हो गया है, दिल की धड़कन, ब्लड टेस्ट जैसी चीजों की समयसमय पर जांच की जाती है. ताकि समय पर परेशानी के बारे में पता लगाकर सही समय पर इलाज शुरू किया जा सके. इसलिए आप इस दौरान टेस्ट्स में लापरवाही बिलकुल न करें. जो टेस्ट जब करवाना है उसे तभी करवाएं. वरना थोड़ी सी देरी आप पर भारी पड़ सकती है.

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वीकली चेकअप

प्रैगनैंसी का समय बहुत ही चैलेंजिंग होता है. इस दौरान शरीर में कई तरह के बदलाव होते रहते हैं. जैसे अचानक से शरीर के तापमान का बढ़ना, ब्लड प्रेशर का बढ़ना व कम हो जाना, वजन का कम होने जैसे लक्षण. इसलिए आप इन्हें वीकली मोनिटर करने के लिए घर पर ही इन्हें मापने की मशीन लाएं. और अगर संभव न हो तो इन्हें रेगुलर मोनिटर करवाते रहें. ताकि जरा भी गड़बड़ी होने पर एडवांस्ड ट्रीटमेंट देकर आपकी व बच्चे की सुरक्षा की जा सके.

डाइट हो न्यूट्रिएंट्स से भरपूर

आपको सामान्य महिला की तुलना में हर रोज 300 से 500 कैलोरीज ज्यादा लेने की जरूरत है. बता दें कि प्रैगनैंट महिला को रोज 60 ग्राम प्रोटीन, 35-40 मिलीग्राम आयरन, 1000 मिलीग्राम कैल्शियम व 400 माइक्रोग्राम फोलिक एसिड लेने की जरूरत होती है. इसके लिए आप डाक्टर द्वारा दिए गए डाइट चार्ट की मदद लें या फिर समयसमय पर डाक्टर से अपनी डाइट के बारे में सलाह लेते रहें.

बॉडी को रखें एक्टिव

प्रैगनैंसी कोई बीमारी नहीं है, जो आप पूरे 9 महीने कुछ नहीं कर सकते. अगर आपकी प्रैगनैंसी में किसी भी तरह का कोई कॉम्प्लिकेशन नहीं है और डाक्टर आपको एक्टिव रहने के लिए लाइट एक्सरसाइज, की की सलाह देते हैं तो आप इसे अपने डेली रूटीन में जरूर शामिल करें. क्योंकि इससे एक तो नार्मल डिलीवरी में मदद मिलेगी और दूसरा आपकी एनर्जी बूस्ट होने से आप चीजों को ज्यादा अच्छे से एंजोय कर पाएंगे. साथ ही इससे बीपी कंट्रोल में होने के साथ पीठ के दर्द से राहत मिलने के साथसाथ पेल्विक एरिया में होने वाले खिंचाव में भी कमी आती है.

हाइजीन का खास खयाल

प्रैगनैंट महिलाओं को इस दौरान अपनी पर्सनल हाइजीन का खास ध्यान रखना चाहिए. क्योंकि इस दौरान हार्मोन्स में हुए बदलाव के कारण पसीना आने के साथ वेजाइनल डिस्चार्ज बहुत अधिक होता है. और यह माहौल कीटाणुओं के पनपने के लिए बिलकुल उपयुक्त माना जाता है. ऐसे में अगर आप हाइजीन का ध्यान नहीं रखते हैं तो इंफेक्शन होने के चांसेस काफी ज्यादा बढ़ सकते हैं.

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वैकल्पिक स्त्रीरोग को महिलाएं ना करें नजरअंदाज, हो सकता है नुकसान

मदरहुड हॉस्पिटल, नोयडा की सीनियर कंसल्टेंट और गायनेकोलॉजिस्ट डॉ मंजू गुप्ता द्वारा इनपुट

कोविड-19 के शुरुआती फेज में हॉस्पिटल के बेड्स बहुत तेजी से भर रहे थे और इसलिए पूरी दुनिया के डॉक्टरों ने कुछ चिकित्सा प्रक्रियाओं को स्थगित करने का फैसला किया था. कई सर्जरी जो एमरजेंसी की स्थिति में नहीं होती, उन्हें वैकल्पिक सर्जरी के रूप में भी जाना जाता है. इस तरह की सर्जरी को कोरोना के चरम काल में स्थगित कर दिया गया ताकि ज्यादा से ज्यादा संख्या में कोविड मरीजों को हॉस्पिटल में भर्ती किया जा सके. हालाँकि 2020 की आखिरी तिमाही में कुछ क्षेत्रों में वैकल्पिक सर्जरी फिर से शुरू हुई, लेकिन यह देखा गया है कि कई मरीजों को अभी भी हॉस्पिटल जाकर अपनी वैकल्पिक सर्जरी करवाने में शंका हो रही है. कई मेडिकल एसोसिएशन और हॉस्पिटल्स ने कोविड-19 के दौर में वैकल्पिक सर्जरी के लिए अपने खुद के सुरक्षा दिशानिर्देश जारी किए हैं.

वैकल्पिक सर्जरी के कॉमन टाइप (प्रकार)

विभिन्न स्वास्थ्य संगठनों के अनुसार, “वैकल्पिक सर्जरी” को किसी भी प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है, वैकल्पिक सर्जरी से मतलब ऐसी सर्जरी से होता है जिससे व्यक्ति के स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभाव न हो या जिसे तीन महीने तक स्थगित करने पर मरीज के स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े. इन नॉन-एमरजेंसी प्रक्रियाओं में निम्नलिखित सर्जरी शामिल हैं:

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● कॉस्मेटिक सर्जरी

● डर्मटोलॉजी प्रक्रिया

● आई सर्जरी (नेत्र शल्य चिकित्सा) जैसे मोतियाबिंद सर्जरी

● पित्ताशय की थैली (गैललब्लड्डेर) की सर्जरी

● स्त्री रोग संबंधी सर्जरी, जैसे कि हिस्टेरेक्टॉमी

● आर्थोपेडिक सर्जरी

● प्रोस्टेट सर्जरी

गैर-जरूरी रिप्रोडक्टिव हेल्थ केयर (प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल) में देरी होने से पड़ने वाला प्रभाव

प्रेग्नेंसी केयर (गर्भावस्था देखभाल)

प्रसवपूर्व अल्ट्रासाउंड और भ्रूण के सर्वेक्षण सहित प्रसव पूर्व देखभाल में देरी नहीं होनी चाहिए क्योंकि इससे गंभीर खतरा हो सकता है. यदि डाक्टर भ्रूण के विकास में कोई अनियमित वृद्धि देखता है, तो उसे सर्जरी की जरुरत हो सकती है. इससे विशिष्ट जन्म दोष वाले बच्चों के दीर्घकालिक परिणाम को बेहतर बनाने में मदद करता है.

स्त्री रोग संबंधी कैंसर

ओवेरियन ट्यूमर से सम्बंधित सर्जरी को लेकर डाक्टरों ने सुझाव दिया है कि इस तरह की सर्जरी में देरी नहीं करनी चाहिए. ओवेरियन कैंसर या सर्वाइकल कैंसर जोकि स्टेज 1B में होती है तो इसके सर्जरी में देरी नहीं होनी चाहिए. जिस मरीज में जानलेवा आंत में रुकावट या हैमरेज होता है उन्हें भी तुरंत मेडिकल हस्तक्षेप की जरुरत होती है.

आपातकालीन गर्भनिरोधक प्रक्रिया

कोविड-19 द्वारा लगे लॉकडाउन में कई जगहों पर इमरजेंसी गर्भनिरोधक गोलियों की उपलब्धता में कमी देखी गई थी, इसमें देरी नहीं की जानी चाहिए क्योंकि इमरजेंसी गर्भनिरोधक गोली की प्रभावकारिता तब होती है जितनी जल्दी आप इसे खाते हैं जितना जल्दी आप इसे खायेंगे उतना ही ज्यादा इसका प्रभाव होगा. जितनी जल्दी हो सके अपने असुरक्षित यौन संबंध के बाद इन गर्भनिरोधक गोलियों को खाएं. ये गोलियां केवल तभी प्रभावी होती है जब इसका उपयोग गर्भावस्था होने से पहले किया जाता है. इमरजेंसी गर्भनिरोधक गोलियों में पहले से ही स्थापित हो चुकी गर्भावस्था को समाप्त करने में कोई क्षमता नहीं होती है.

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सौम्य स्त्री रोग संबंधी कंडीशन

फाइब्रॉएड, एंडोमेट्रियोसिस, पेल्विक दर्द और सौम्य ओवेरियन की सर्जरी में कई महीनों तक देरी हो सकती है. फाइब्रॉएड के ट्रीटमेंट में देरी होने से एनीमिया, बांझपन और किडनी, आंत्र, मूत्राशय या संचार प्रणालियों में परेशानी आ सकती है जोकि लॉन्गटर्म कॉम्प्लीकेशन्स हो सकती है.

प्रैग्नेंसी में किन बातों का रखें ध्यान

प्रैग्नेंट होना किसी भी महिला के जीवन में सबसे सुखद क्षणों में से एक होता है, क्योंकि वह अब अपने अंदर एक और धड़कन को महसूस करती है. आने वाले मेहमान को लेकर सपने संजोती है. अगर आप अपने परिवार की प्लानिंग करने जा रही है तो ये सुनि‍श्चिैत कर लेना बहुत जरूरी है कि मां बनने के लिए आप शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार है या नही.

क्योंकि प्रैग्नेंसी किसी भी महिला के लिए अनमोल पल होता है. इस दौरान प्रैग्नेंट महिलाओं को सभी से तरह-तरह की सलाह भी मिलती रहती हैं, जैसे ये मत खाओ, वो मत खाओ, यहां मत जाओ, ऐसे में मत उठो और पता नहीं क्या-क्या. वैसे राय देना गलत नहीं है, लेकिन कई बार अलग-अलग राय के चक्कर में प्रैग्नेंट महिला उलझन में आ जाती हैं. खासतौर से वो महिलाएं, जो पहली बार मां बनने जा रही हैं.
लेकिन कुछ बातों की जानकारी एक प्रैग्नेंट महिला को भी पता होनी चाहिए ताकि किसी के ना होने पर वह अपना सही से ध्यान रख सके और उसका सही से पालन कर सके नही तो आप सुखद क्षण को आप परेशानी में भी बदल सकती है. इसलिए इस लेख में जानिए कि प्रैग्नेंसी में क्या करना चाहिए क्या नही, साथ ही अपने आहार में किन चीजों को सम्मलित करना चाहिए और किन चीजों को नही.

प्रैग्नेंट होने पर क्या ना करें-

प्रैग्नेंट महिलाओं को कुछ उठते बैठते चलते फिरते वक्त बहुत चीजों का ध्यान रखना पड़ता है.

प्रैग्नेंसी में ज्यादा ना झुकें –

प्रैग्नेंसी के दौरान ज्यादा न झुकें क्योंकि यह गर्भ में पल रहें शिशु के लिए हानिकारक हो सकता है.
इसके लिए चाहे आपकी पहली, दूसरी या तीसरी तिमाही ही क्यों ना हो आप ध्यान रखें कि आप ज्यादा न झुकें. ऐसा करने से गर्भपात, वक्त से पहले प्रसव या फिर गर्भ में पल रहे शिशु को हानि पहुंच सकती है. अगर आप झुक भी रही हैं, तो झटके से न झुके.

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प्रैग्नेंसी ने ज्यादा देर तक खड़ी ना रहे –

प्रैग्नेंसी के दौरान ज्यादा देर तक या एक ही स्थिति में खड़े न रहें, ऐसा करने से परेशानी हो सकती है. क्योंकि ऐसा करने से आपके पैरों में सूजन आ सकती है.
साथ ही ज्यादा देर तक खड़े रहने से प्रैग्नेंसी में समस्या, वक्त से पहले प्रसव या फिर गर्भ में ही शिशु की मृत्यु हो सकती है.

भारी चीजें न उठाएं – प्रैग्नेंसी के दौरान भारी चीजें उठाने से जितना हो सके उतना बचें. क्योंकि प्रैग्नेंसी के दौरान भारी चीजों को उठाने से गर्भपात का खतरा हो सकता है.

प्रैग्नेंसी में अपने आहार में किन चीजों को शामिल करें.

लगभग हर प्रैग्नेंट महिला यही चाहती है कि जन्म के समय उसका बच्चा स्वस्थ और तंदुरुस्त हो. इसलिए प्रैग्नेंट महिलाएं अपने आहार में कई तरह के नई चीजों को शामिल करती हैं. इस लेख में हम प्रैग्नेंसी के दौरान खान-पान के संबंध में जानकारी दे रहे हैं.

डेयरी उत्पादों का सेवन करें-

शिशु के विकास के लिए ज्यादा मात्रा में प्रोटीन और कैल्शियम की जरूरत होगी. एक प्रैग्नेंट महिला के शरीर को रोजाना 1,000mg कैल्शियम की जरूरत होती है इसलिए, आप अपने खान-पान में डेयरी उत्पादों को जरूर शामिल करें. इसके लिए आप डाइट में दही, छाछ व दूध आदि जैसे डेयरी उत्पाद को शामिल करें.
क्योंकि यह प्रैग्नेंट महिला और गर्भ में पल रहे शिशु के विकास के लिए फायदेमंद होते हैं. साथ ही यह ध्यान रखें कि आप सिर्फ पॉश्चरीकृत डेयरी उत्पादों का ही इस्तेमाल करें.

ब्रोकली और हरी पत्तेदार सब्जियां का सेवन करें-

प्रैग्नेंट महिलाओं को अपने खान-पान में हरी पत्तेदार सब्जियां जरूर शामिल करनी चाहिए. इसलिए आप अपने डाइट में पालक, पत्तागोभी, ब्रोकली (एक प्रकार की गोभी), आदि सब्जियां जरूर खाएं. पालक में मौजूद आयरन प्रैग्नेंसी के दौरान खून की कमी को दूर करता है.

सूखे मेवों का सेवन करें-

प्रैग्नेंसी में सूखे मेवों को भी अपने खान-पान में जरूर शामिल करें.
क्योंकि मेवों में उपस्थित कई तरह के विटामिन, कैलोरी, फाइबर व ओमेगा 3 फैटी एसिड आदि पाए जाते है जो प्रैग्नेंसी अवस्था के लिए अच्छे होते हैं.
अगर आपको एलर्जी नहीं है, तो अपने खान-पान में काजू, बादाम व अखरोट आदि को शामिल करें.
अखरोट में भरपूर मात्रा में ओमेगा 3 फैटी एसिड होता है. इसके अलावा, बादाम और काजू भी प्रैग्नेंसी में फायदा पहुंचा सकते हैं. अगर आपको एलर्जी हो तो काजू बादाम व अखरोट ना खाएं.

साबूत अनाज का सेवन करें-

प्रैग्नेंसी के दौरान साबूत अनाज को अपने आहार में जरूर शामिल करें. खासतौर के तब जब आप प्रैग्नेंसी की दूसरी और तीसरी तिमाही में ही क्योंकि की इस दौरान साबूत अनाजों का सेवन फायदेमंद होता है. इससे आपको भरपूर कैलोरी मिलती है, जो गर्भ में शिशु के विकास में मदद करती है. आप साबूत अनाज के तौर पर ओट्स, किनोआ व भूरे चावल आदि को अपने आहार में शामिल कर सकती हैं. इन अनाजों में प्रोटीन की प्रचुर मात्रा पाई जाती है. इसके अलावा, इनमें फाइबर, विटामिन-बी और मैग्नीशियम भी मौजूद होता है, जो प्रैग्नेंसी में फायदा पहुँचतें है.

फलों के जूस और फल का सेवन करें-

प्रैग्नेंसी में महिला को तरह-तरह के मौसमी फलखाने चाहिए. हो सके तो उन्हें संतरा, तरबूज व नाशपाती आदि जैसे फलों को अपने आहार में जरूर शामिल करना चाहिए. इसके अलावा आप इन फलों का जूस भी पी सकती हैं.
दरअसल एक प्रैग्नेंट महिला को अलग-अलग तरह के चार रंगों के फल खाने की सलाह दी जाती है .
वसा और कैलोरी में उच्च खाद्य पदार्थों की जगह रोज फल व सब्जियों के कम से कम पांच हिस्से खाएं. साथ ही पैकेड फ्रूट जूस का सेवन बिल्कुल ना करें.

प्रैग्नेंसी में हमें अपने आहार में क्या शामिल नही करना चाहिए.

कई सारी ऐसी चीजें हैं, जिनका सेवन प्रैग्नेंट महिलाओं को कतई नहीं करना चाहिए. क्योंकि ऐसी चीजों को खाने से प्रैग्नेंट महिलाओं को नुकसान हो सकता इसलिए इन चीजों से परहेज करना चाहिए.

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कच्चे अंडे का सेवन ना करें-

प्रैग्नेंट महिलाओं को कभी भी अधपके व कच्चे अंडे का सेवन नही करना चाहिए क्योंकि इससे सालमोनेला संक्रमण का खतरा हो सकता है. इस संक्रमण से प्रैग्नेंट महिला को उल्टी और दस्त की समस्या उत्तपन्न हो सकती है.

शराब व धूम्रपान के सेवन से बनाएं दूरी-

स्वास्थ्य के लिए नशीली चीजों का सेवन हानिकारक होता है.
खास कर प्रैग्नेंट महिलाओं को नशीली चीजों से दूरी बना कर रखना चाहिए. प्रैग्नेंट महिलाओं को शराब व धूम्रपान नहीं करना चाहिए दरअसल इसका प्रभाव सीधे गर्भ में पल रहे शिशु पर पड़ता है.
शराब व धूम्रपान के सेवन से भ्रूण के दिमागी और शारीरिक विकास में बाधा आती है, साथ ही गर्भपात होने का खतरा भी बढ़ जाता है.

कैफीनयुक्त चीजों का सेवन न करें-

प्रैग्नेंसी में चाय, कॉफी और चॉकलेट जैसी चीजों में कैफीन पाया जाता है, इसलिए इन चीजों के सेवन से बचना चाहिए साथ ही डॉक्टर भी बहुत कम मात्रा में कैफीन लेने की सलाह देते हैं.
क्योंकि ज्यादा मात्रा में कैफीन लेने से गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है तथा जन्म के समय शिशु का वजन भी कम रह सकता है. हालांकि, प्रैग्नेंसी के दौरान रोजाना 200 मिलिग्राम तक कैफीन के सेवन को सुरक्षित माना जाता है पर इससे ज्यादा मात्रा में सेवन करने से स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो सकता है.

उच्च स्तर के पारे वाली मछली व कच्चे मांस का सेवन ना करें-

प्रैग्नेंसी में मछली खाना फायदेमंद होता है, लेकिन प्रैग्नेंट महिलाओं को ऐसी मछलियों को खाने से बचना चाहिए, जिन मछलियों के शरीर में पारे का स्तर अधिक होता है. जैसे कि स्पेनिश मेकरल, मार्लिन या शार्क, किंग मकरल और टिलेफिश जैसी मछलियों में पारे का स्तर ज्यादा होता है, इसलिए मछलियों को सेवन से भ्रूण के विकास में बाधा आ सकती है. कच्चे मांस के सेवन करने से टॉक्सोपलॉस्मोसिस से संक्रमित कर हो सकती है. जिससे कि गर्भपात का खतरा बढ़ सकता है, इसलिए कभी भी कच्चे मांस का सेवन ना करें अच्छे से पका कर मांस को खाये.

प्रैग्नेंसी में कच्चा पपीता व कच्ची अंकुरित चीजों का सेवन नही करना चाहिए-

प्रैग्नेंसी में कच्चा पपीता खाना असुरक्षित होता है. कच्चे पपीते में ऐसा केमिकल पाया गया है, जिससे कि भ्रूण को नुकसान पहुंचा सकता है. इसलिए, प्रैग्नेंसी में कच्चा पपीता खाने से बचें.
साथ ही कच्ची अंकुरित दालों में साल्मोनेला, लिस्टेरिया और ई-कोलाई जैसे बैक्टीरिया मौजूद होते हैं, जिससे फूड पॉइजनिंग की समस्या हो सकती है. इसके कारण प्रैग्नेंट महिला को उल्टी और दस्त की शिकायत हो सकती है.

क्रीम दूध से बनी पनीर का सेवन ना करें-

प्रैग्नेंट महिला को क्रीम दूध से बनी हुई पनीर का सेवन नही करना चाहिए.
दरअसल इस तरह के पनीर को बनाने में पॉश्चरीकृत दूध का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, क्रीम दूध में लिस्टेरिया नाम का बैक्टीरिया मौजूद होता है. इस बैक्टीरिया की वजह से गर्भपात व समय से पहले प्रसव का खतरा बढ़ जाता है.

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बिना धुली हुई सब्जियां और फलों के सेवन से बचना चाहिए-

प्रैग्नेंट महिलाओं की किसी भी फल और सब्जी को खाने से पहले उसे अच्छी तरह धोना चाहिए क्योंकि बिना धुली हुई सब्जी और फल में टॉक्सोप्लाज्मा नाम का बैक्टीरिया मौजूद होता है, जिससे शिशु के विकास में बाधा आ सकती.

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