दादी की उम्र में मां बनती महिलाएं

बीते वर्ष 6 सितंबर 2019 की सुबह सफला रानी भाटिया अखबार में भारत के आंध्र प्रदेश की यारावती नामक एक महिला के बारे में समाचार पढ़ रही थी, जिस ने 74 वर्ष की उम्र में एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया था. सफला रानी खुद 5 वर्षीय बेटे की मां है. उन्हें और उन के पति बलराज भाटिया को दिल्ली के एक स्वास्थ्य केंद्र में 16वें आईवीएफ चक्र से गुजरने के बाद संतान की प्राप्ति हुई थी. फरवरी 2014 में सफला ने 62 वर्ष की उम्र में अपने पुत्र वैराज भाटिया को जन्म दिया था. इन का कहना था कि मैं अच्छी तरह समझ सकती हूं कि उस महिला पर क्या गुजरी होगी. क्योंकि किसी महिला को अगर बच्चा पैदा न हो तो समाज में उसे बांझ कह कर दुत्कारा जाता है. सफला रानी की शादी 40 साल की उम्र में हुई थी. वे तभी से देशविदेश के विभिन्न अस्पतालों में आईवीएफ चक्र अजमा रही थीं.

चिकित्सा शोधों के बाद गर्भधारण की उम्र में काफी वृद्धि हो चुकी थी लेकिन मुख्य समस्या तो सामाजिक दबाव है जो एक उम्र के बाद बच्चा पैदा करने पर नैतिकता और बच्चों के भविष्य पर कई सवाल उठाता है. जैसे यारावती की जुड़वां बेटियां जब सिर्फ 6 साल की होंगी तब वह 80 वर्ष की हो जाएंगी. जब ये बच्चियां 20 वर्ष की होंगी तब क्या होगा?

भारत के हरियाणा प्रदेश के जिला जींद के गांव अलेवा निवासी राजो देवी ने वर्ष 2008 में जब 70 वर्ष की उम्र में अपनी पुत्री को जन्म दिया था, तो उन्हें विश्व की सब से बूढ़ी मां का खिताब प्राप्त हुआ था. राजो देवी का कहना है कि लोगबाग मुझे अपनी पुत्री की दादी मां समझ लेते हैं. शायद मैं इस की शादी भी न देख पाऊं. राजो देवी से सब से बूढ़ी मां का खिताब भी छिन चुका है.

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आईवीएफ में उम्र की सीमा नहीं

जबकि बच्चा गोद लेने की भी एक उम्र है. गोद लेने वाले युगल की संयुक्त उम्र 90 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए. उन में से एक व्यक्ति की उम्र 45 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए. जबकि आईवीएफ में कोई ऐसी अंतिम सीमा नहीं है. इंडियन काउंसिल औफ मैडिकल रिसर्च द्वारा जारी किए गए दिशानिर्देशों में सलाह दी गई है कि युगल की संयुक्त आयु 110 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए. लेकिन यह सिर्फ एक दिशानिर्देश है.

जोखिम भी है

आईवीएफ तकनीक आने के बाद चिकित्सा का पेशा खूब फलफूल रहा है, क्योंकि आईवीएफ के चक्र की कीमत कई लाख तक होती है. जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के अधिकांश हिस्सों में बीमा कंपनियां आमतौर पर 45 के बाद आईवीएफ उपचार के लिए भुगतान करना बंद कर देती हैं. भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई के वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. डूरू शाह इस तरह के प्रजनन उपचार को नैतिक रूप से गलत बताते हैं. इन का कहना है कि 74 वर्ष की उम्र में जुड़वां बच्चों को जन्म देना बहुत ही जोखिम भरा है, क्योंकि इस उम्र में शरीर कमजोर हो जाता है. जबकि गर्भावस्था में 40 प्रतिशत अधिक खून की आवश्यकता होती है. जिस से हृदय पर अतिरिक्त भार पड़ता है. चिकित्सा विज्ञान के अनुसार 50 वर्ष के बाद का गर्भधारण कई जटिलता बढ़ा देता है. बच्चों की परवरिश का भी कुछ पता नहीं होता.

अपने जीवन के 50 वर्ष पूरे कर चुकी महिलाओं को अधिकांश चिकित्सक बच्चा गोद लेने का सुझाव देते हैं. चिकित्सकों का कहना है कि यदि कोई आईवीएफ कराना चाहता है तो यह दंपती का अपना निर्णय होता है. हम क्या सोचते हैं यह कोई मायने नहीं रखता.

चाइल्डकेयर संस्थानों में बच्चों के लिए काम करने वाले गैरलाभकारी संस्था कैटलौग फौर सोशल ऐक्शन के सहसंस्थापक विपुल जैन का कहना है कि यदि स्त्री रोग विशेषज्ञ किसी दंपती को उचित सुझाव देते हैं तो निश्चित ही बहुत से जोड़े यह बात मान जाएंगे.

आईवीएफ विशेषज्ञ और गौडियम आईवीएफ की संस्थापक डा. मणिका खन्ना का कहना है कि मेरे पास आईवीएफ की इच्छा ले कर आने वाले युगलों में अधिकतर की उम्र 50 से 55 वर्ष के बीच होती है. बहुत कम युगल ही 55 के पार होते हैं. वैसे भी कम से कम एक बच्चा होना प्रत्येक युगल का मौलिक अधिकार है. इस उपचार से मना नहीं कर सकते लेकिन हमें सतर्क रहना होता है. 50 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं के मधुमेह, हृदय रोग व अन्य बीमारियों के लिए पूरी तरह जांच करनी होती है.

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जोखिम के बाद भी कई युगल आईवीएफ के लिए पूरी तरह उत्सुक रहते हैं. जैसे कि चंगाकर युगल ने जोखिम उठाने का फैसला लिया था. यह युगल अपने 2 बेटों को खो चुका था. इन के 4 वर्षीय पुत्र की मौत कैंसर के कारण हो गई थी. सेवानिवृत्ति के बाद यह युगल अहमदाबाद की प्रजनन विशेषज्ञ डा. फाल्गुनी बवीशी के क्लीनिक में पहुंचा था. जब ये दोनों पतिपत्नी जुड़वां पुत्रों के मातापिता बने थे. तब श्रीमती सरोज चंगाकर की उम्र 59 वर्ष थी तथा पुरुषोत्तम चंगाकर की उम्र 57 वर्ष थी. इन के दोनों पुत्र करुतिल और उत्पल अब 7 वर्ष के हैं. सरोज का पूरा दिन उन की साफसफाई, खाना खिलाना व तैयार कर स्कूल भेजने में बीत जाता है.

ऐसी दिनचर्या युवा मां को भी थका देती है. ऐसे में आधी उम्र के बाद मां बनने की ख्वाहिश काफी भारी भी पड़ती है. मगर फिर भी संतानमोह के आगे युगल हर मुश्किल झेलने का तैयार हो ही जाते हैं.

-डा. प्रेमपाल सिंह वाल्यान

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