जानें क्या है प्रैग्नेंसी में आने वाली परेशानियां और उसके बचाव

लेखिका- सोनिया राणा 

मां बनना एक बेहद खूबसूरत एहसास है, जिसे शब्दों में पिरोना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव सा भी प्रतीत होता है. कोई महिला मां उस दिन नहीं बनती जब वह बच्चे को जन्म देती है, बल्कि उस का रिश्ता नन्ही सी जान से तभी बन जाता है जब उसे पता चलता है कि वह प्रैगनैंट है.

प्रैग्नेंसी के दौरान हालांकि सभी महिलाओं के अलगअलग अनुभव रहते हैं, लेकिन आज हम उन आम समस्याओं की बात करेंगे, जिन्हें जानना बेहद जरूरी है.

यों तो प्रैग्नेंसी के पूरे 9 महीने अपना खास खयाल रखना होता है, लेकिन शुरुआती  3 महीने खुद पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है. पहले ट्राइमैस्टर में चूंकि बच्चे के शरीर के अंग बनने शुरू होते हैं तो ऐसे में आप अपने शरीर में होने वाले बदलावों पर नजर रखें और अगर कुछ ठीक न लगे तो डाक्टर का परामर्श जरूर लें.

प्रैग्नेंसी के दौरान महिलाओं को काफी हारमोनल और शारीरिक बदलावों से गुजरना पड़ता है. मितली आना, चक्कर आना, स्पौटिंग, चिड़चिड़ापन, कब्ज, बदहजमी, पेट में दर्द, सिरदर्द, पैरों में सूजन आदि परेशानियोंसे हर गर्भवती महिला को गुजरना पड़ता है. आप कैसे इन समस्याओं से नजात पा सकती हैं, बता रही हैं गाइनोकोलौजिस्ट डा. विनिता पाठक:

शरीर में सूजन

शरीर में सूजन आ जाना भी प्रैग्नेंसी का एक सामान्य लक्षण है. विशेषज्ञों के अनुसार प्रैग्नेंसी में महिला का शरीर लगभग 50 फीसदी ज्यादा खून का निर्माण करता है. गर्भ में पल रहे बच्चे को भी मां के ही शरीर से पोषण मिलता है, जिस की वजह से मां का शरीर ज्यादा मात्रा में खून और फ्लूइड का निर्माण करता है.

हालांकि इस दौरान शरीर में सूजन आ जाना एक सामान्य बात है, लेकिन अगर सूजन बहुत अधिक है तो यह चिंता की बात हो सकती है. आम बोलचाल की भाषा में इसे ओएडेमा कहते हैं. इस दौरान हाथों, चेहरे और पैरों में सब से अधिक सूजन नजर आती है.

सूजन कम करने के लिए पैरों को कुनकुने पानी में नमक डाल कर कुछ देर के लिए डुबो कर रखें. रात को पैरों के नीचे तकिया लगाने से भी सूजन से राहत मिलेगी.

प्रैग्नेंसी की कब्ज न कर दे बवासीर

प्रैग्नेंसी में सही खानपान न लेने से कई महिलाएं कब्ज की समस्या से गुजरती हैं, जिस में आगे जा कर बवासीर होने का खतरा काफी अधिक रहता है. नियमित आहार न लेने से यह समस्या हो सकती है. इस से बचने के लिए जरूरी है कि आप अपने आहार में सेब, केला, नाशपाती, शकरकंद, गाजर, संतरा, कद्दू जैसी सब्जियों और फलों को शामिल करें.

मसालेदार भोजन से बिलकुल परहेज करें और ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं.

गैस, बदहजमी और पेट दर्द की समस्या

प्रैग्नेंसी के दौरान गैस, भारीपन और पेट दर्द की समस्या भी आमतौर पर महिलाओं में देखी जाती है. इन से बचने के लिए सब से पहले अपने आहार से तली हुई चीजों को निकाल दें. मसालेदार खाना खाने से बचें और एक बार में बहुत अधिक भोजन भी न करें. गैस और बदहजमी की समस्या के उपचार के लिए एक गिलास कुनकुने पानी में आधे नीबू का रस मिला कर पीएं.

यूरिन इंन्फैक्शन बनता है परेशानी का सबब

प्रैग्नेंसी में यूरिन इन्फैक्शन हो जाने पर जरूरी है कि आप अधिक से अधिक पानी पीएं ताकि पेशाब के जरीए आप के शरीर से सभी प्रकार के हानिकारक तत्त्व बाहर निकल जाएं. इस के अलावा विटामिन सी से भरपूर फल और सब्जियां खाएं. दही या छाछ भी यूरिन इन्फैक्शन में बहुत लाभदायक होती है.

स्वस्थ प्रैगनैंसी के लिए तैयार करें डाइट चार्ट

शुरुआती 3 महीनों में प्रोटीन, कैल्सियम और आयरन से भरपूर चीजें ज्यादा खानी चाहिए. अपने खाने में दाल, पनीर, अंडा, नौनवेज, सोयाबीन, दूध, दही, पालक, गुड़, अनार, चना, पोहा, मुरमुरे शामिल करें, फल और हरी पत्तेदार सब्जियां भी खूब खाएं. चूंकि बच्चा फ्लूइड में ही रहता है, इसलिए शरीर में पानी की कमी बिलकुल नहीं होनी चाहिए. हर 2 घंटों में नियमित मात्रा में कुछ न कुछ जरूर खाती रहें.

ओमेगा युक्त हो आहार

बच्चे के मस्तिष्क, तंत्रिका प्रणाली और आंखों के विकास के लिए अपने आहार में ओमेगा-3 फैटी ऐसिड के सेवन को भी बढ़ाएं. बच्चे के दिमाग के विकास के लिए ओमेगा-3 और ओमेगा-6 बहुत जरूरी है. फिश, लिवर औयल, ड्राईफ्रूट्स, हरी पत्तेदार सब्जियों और सरसों के तेल में ये अच्छी मात्रा में मिलते हैं. आयरन और फौलिक ऐसिड की गोलियां खाना भी शुरू कर दें. इस से शरीर में खून की कमी नहीं होती है.

प्रैगनैंसी के दौरान मिर्गी, हाइपोथायरायड और थैलेसीमिया के लिए भी जांच कराई जाती है, अगर पेरैंट्स में से किसी में थैलेसीमिया के लक्षण हैं, तो बच्चे के भी इस से पीडि़त होने की आशंका 25% बढ़ जाती है. अगर जांच में बच्चा इन्फैक्टेड पाया जाता है, तो डाक्टर की सलाह ले कर अबौर्शन कराना ही बेहतर होता है.

  इन बातों का भी रखें खास खयाल

– भारी वजन न उठाएं.

– ज्यादा डांस न करें.

– सीढि़यों से न कूदें.

– ज्यादा हाई हील न पहनें.

– ज्यादा ड्राइविंग न करें.

– लंबी यात्रा से बचें.

– रस्सी न कूदें.

– कमर से झुकने के बजाय घुटने मोड़ कर बैठें.

शुरुआती 3 महीनों में इन से बचें

– कई बार महिलाएं डाक्टर की सलाह लिए बिना सर्दीखांसी या हलकी बीमारी होने पर दवा खाना शुरू कर देती हैं, जिस का गर्भनाल के माध्यम से बच्चे के खून में प्रवेश करने की आशंका रहती है. इसलिए पहले 3 महीनों में डाक्टर की सलाह के बिना कोई भी दवा न खाएं.

– इस दौरान कच्चा मांस, कच्चे अंडे और पनीर के सेवन से भी परहेज करें, क्योंकि इन में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया आप के शिशु की सेहत को नुकसान पहुंचा सकती है.

– तनाव भी आप के गर्भ में पल रहे शिशु के लिए किसी बड़े खतरे से कम नहीं है. प्रैग्नेंसी की शुरुआत में कई कारणों के चलते कई महिलाएं तनाव में रहने लगती हैं, जिस का बच्चे की सेहत पर बुरा असर पड़ता है. इस के चलते कई बार गर्भपात भी हो जाता है, इसलिए प्रैग्नेंसी के दौरान जितना हो सके, खुश रहें.

– अच्छा म्यूजिक सुनें, अच्छी किताबें पढ़ें, खुद आप को व्यस्त रखें और डाक्टर की सलह के अनुसार एक्सरसाइज करें.

– प्रैग्नेंसी के दौरान डाइटिंग नहीं करनी चाहिए. इस से शरीर में आयरन, फौलिक ऐसिड, विटामिन, कई तरह के खनिजों और पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है.

– इस दौरान हौट टब और सोना बाथ का उपयोग भी न करें, क्योंकि इस से आप के शरीर का तापमान अचानक बढ़ सकता है, इस से शरीर में पानी की कमी हो सकती है, जो बच्चे के लिए जानलेवा साबित हो सकती है.

– प्रैगनैंसी के दौरान किसी खास चीज को खाने का दिल ज्यादा करने लगता है. ऐसे में किसी एक ही चीज को बारबार खाने के बजाय बाकी चीजों को भी खाने में शामिल करें.

– चाइनीज फूड खाने से आप को बचना चाहिए, क्योंकि उस में जरूरत से ज्यादा अजीनोमोटो होता है, जो आप के बच्चे की सेहत के लिए खतरनाक साबित होता है.

Mother’s Day Special: मां बनने के लिए इनसे बचना है जरूरी

आजकल सैक्स के मामले में बढ़ती आजादी और 1 से ज्यादा पार्टनर की वजह से कई यौन संबंधी बीमारियां होने का डर रहता है. यौन परेशानियों को जल्द से जल्द पहचान कर डाक्टर के पास जाना आवश्यक हो जाता है. ऐसा न करने पर बांझपन जैसी बड़ी परेशानी का भी सामना करना पड़ सकता है.

पेल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज (पीआईडी)

यह ज्यादातर असुरक्षित संबंधों के कारण फैलने वाली बीमारी है. यह मैट्रो शहरों में चुपकेचुपके महिलाओं की इन्फर्टिलिटी का एक बड़ा कारण बन रही है. इस की चपेट में 15 से 24 साल तक की लड़कियां ज्यादा आ रही हैं. पश्चिमी देशों के मुकाबले भारत में हालांकि अभी इस का प्रसार कम है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इस पर लगाम नहीं लगाई तो यह आने वाले समय में बड़ी दिक्कत में तब्दील हो सकती है. इस का असर नई पीढ़ी के मां बनने पर पड़ सकता है.

डा. अनुभा सिंह का कहना है कि यह एक हारमोनल डिसऔर्डर है. इस की सब से बड़ी पहचान है कि इस से अचानक वजन बढ़ने लगता है. माहवारी अनियमित हो जाती है. मुंहासों की समस्या और गंजापन भी हो सकता है. बच्चे पैदा करने की उम्र में लगभग 1 से 10 महिलाओं में यह समस्या देखने को मिलती है. फैलोपियन ट्यूब्स और प्रजनन से जुड़े अन्य अंगों में भी इस से सूजन आ सकती है. समय पर इलाज न कराने पर इस का नतीजा इनफर्टिलिटी के रूप में सामने आ सकता है.

यह बीमारी क्लैमाइडिया ट्रैकोमाइटिस नाम के बैक्टीरिया के कारण होती है. बड़े शहरों में सैक्स के मामलों में बढ़ती आजादी और 1 से ज्यादा पार्टनर इस के फैलने की सब से बड़ी वजह हैं. इस के अलावा साफसफाई का ध्यान न रखने, शराब या स्मोकिंग के कारण इम्यून सिस्टम के कमजोर पड़ने से भी इस का बैक्टीरिया महिलाओं को अपना निशाना बना सकता है.

मैट्रो शहरों में इस की चपेट में आने वाली महिलाओं का प्रतिशत 3 से 10 के बीच है. यह महिलाओं के सोशल स्टेटस और सैक्सुअल बिहेवियर पर काफी निर्भर करता है. 25 साल से कम उम्र की लड़कियों के इस की चपेट में आसानी से आने का कारण यह है कि उन की बच्चेदानी का मुंह इस उम्र तक सैक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज का सामना करने के लिए तैयार नहीं होता है. इस के कारण वे ऐसे रोगों की शिकार बन जाती हैं. यही बीमारियां बाद में पीआईडी की बड़ी वजह बनती हैं.

लक्षणों पर रखें नजर

पीआईडी की चपेट में आने पर वैजाइनल इरिटेशन हो सकती है. व्हाइट डिस्चार्ज की शिकायत हो सकती है. पेडू के निचले हिस्से में दर्द हो सकता है, बुखार आ सकता है व उलटियां भी हो सकती हैं. साथ ही माहवारी से पहले और बाद में शारीरिक संबंध कायम करते समय ब्लीडिंग हो सकती है. इस के कारण पेशाब करते समय जलन भी हो सकती है. कई महिलाओं में ऐसा कोई लक्षण नहीं भी हो सकता है.

कैसे पाएं छुटकारा

डा. अनुभा सिंह का कहना है कि पीआईडी के ज्यादा मामले मैट्रो शहरों में आते हैं. इस बीमारी की एक बड़ी वजह असुरक्षित यौन संबंध है. नई पीढ़ी को इस बात पर जागरूक करने की जरूरत है. इस बीमारी के प्रति लापरवाही आप को मां बनने के सुख से वंचित कर सकती है.

पीआईडी से जुड़े लक्षण महसूस होने पर डाक्टर से संपर्क करें. दवा के साथ ही नियमित चैकअप से इस का आसानी से इलाज संभव है. लापरवाही करने पर यह बीमारी पूरी प्रजनन प्रणाली को अपनी चपेट में ले सकती है. कुछ अन्य यौन बीमारियां भी हैं जो एकसमान घातक हैं जैसेकि:

ट्राइकोमोनिएसिस

अगर किसी महिला की योनि से लगातार 6 महीनों से स्राव होने के साथसाथ उस में खुजली होती है, पति के साथ संबंध बनाते वक्त दर्द होता है, पेशाब करते वक्त परेशानी होती है, तब तुरंत डाक्टर से संपर्क करें. यह ट्राइकोमोनिएसिस बीमारी हो सकती है. कई बार महिलाओं में प्रसव, मासिकधर्म व गर्भपात के समय भी संक्रमण होने का डर होता है.

अशिक्षा, गरीबी, शर्म के कारणों से अकसर महिलाएं प्रजनन अंगों के रोगों का उपचार कराने में हिचकिचाती हैं. प्रजनन अंगों के संक्रमण से एड्स जैसा खतरनाक रोग भी हो सकता है. कौपर टी लगवाने से भी प्रजनन अंगों में रोग के पनपने की आशंका रहती है. क्लैमाइडिया रोग ट्रैकोमाइटिस नामक जीवाणु से हो जाता है. यह रोग मुखमैथुन और गुदामैथुन से जल्दी फैलता है. कई बार इस बीमारी से संक्रमण गर्भाशय से होते हुए फैलोपियन ट्यूब्स तक फैल जाता है. समय पर उपचार नहीं होने पर एचआईवी होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है.

गोनोरिया

यह रोग महिलाओं में सूजाक, निसेरिया नामक जीवाणु से होता है. यह स्त्री के प्रजनन मार्ग के गीले क्षेत्र में आसानी से बड़ी तेजी से बढ़ता है. इस के जीवाणु मुंह, गले, आंखों में भी फैल जाते हैं. इस बीमारी में यौनस्राव में बदलाव होता है. पीले रंग का बदबूदार स्राव निकलता है. कई बार योनि से खून भी निकलता है.

गर्भवती महिला के लिए यह बहुत घातक रोग होता है. प्रसव के दौरान बच्चा जन्म नली से गुजरता है. ऐसे में मां के इस बीमारी से ग्रस्त होने पर बच्चा अंधा भी हो सकता है.

हर्पीज यह रोग हर्पीज सिंपलैक्स से ग्रस्त व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से होता है. इस में 2 प्रकार के वायरस होते हैं. कई बार इस रोग से ग्रस्त स्त्रीपुरुष को मालूम ही नहीं पड़ता कि उन्हें यह रोग भी है. यौन अंगों व गुदा क्षेत्र में खुजली, पानी भरे छोटेछोटे दाने, सिरदर्द, पीठदर्द, बारबार फ्लू होना आदि इस के लक्षण होते हैं.

सैप्सिस

यह रोग ट्रेपोनेमा पल्लिडम नामक जीवाणु से पैदा होता है. योनिमुख, योनि, गुदाद्वार में बिना खुजली के खरोंचें हो जाती हैं. महिलाओं को तो पता ही नहीं चलता है. पुरुषों में पेशाब करते वक्त जलन, खुजली, लिंग पर घाव आदि समस्याएं हो जाती हैं.

हनीमून सिस्टाइटिस

नवविवाहिताओं में यूटीआई अति सामान्य है. इसे हनीमून सिस्टाइटिस भी कहते हैं. यह महिलाओं में मूत्रछिद्र, योनिद्वार और मलद्वार के पास स्थित होता है. यहां से जीवाणु आसानी से मूत्रमार्ग में पहुंच कर संक्रमण कर सकते हैं. करीब 75% महिलाओं में यूटीआई आंतों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण होता है. इस के अतिरिक्त अनेक अन्य प्रजाति के जीवाणु भी यूटीआई उत्पन्न कर सकते हैं.

करीब 40% महिलाएं इस से जीवन में कभी न कभी ग्रस्त हो जाती हैं. अगर बात लक्षणों की करें तो यूटीआई होने पर बारबार पेशाब आता है, पर पेशाब कुछ बूंद ही होता है. मूत्र से दुर्गंध आती है, मूत्र का रंग धुंधला हो सकता है. कभीकभी खून मिलने के कारण पेशाब का रंग गुलाबी, लाल या भूरा हो सकता है.

पति या पत्नी दोनों में से किसी को भी संक्रमण होने पर यौन संबंध बनाए जाते हैं तो यौन संबंधी परेशानी बढ़ सकती है. यदि उपचार नहीं कराया जाता है तो शरीर के अंगों में दर्द हो सकता है, बुखार हो सकता है. कुछ स्थितियों में संक्रमण मूत्राशय से ऊपर पहुंच कर संक्रमण कर सकता है.

प्रजनन अंग साफ व सुरक्षित रहें, इस के लिए जरूरी है कि आप अपने प्रजनन अंगों के बारे में जागरूक हों. उन में कोई भी तकलीफ हो तो तुरंत डाक्टर से सलाह लें.

-अनुभा सिंह

गायनोकोलौजिस्ट व आईवीएफ ऐक्सपर्ट, शांता आईवीएफ सैंटर से बातचीत पर आधारित

प्रैग्नेंसी में किन बातों का रखें ध्यान

प्रैग्नेंट होना किसी भी महिला के जीवन में सबसे सुखद क्षणों में से एक होता है, क्योंकि वह अब अपने अंदर एक और धड़कन को महसूस करती है. आने वाले मेहमान को लेकर सपने संजोती है. अगर आप अपने परिवार की प्लानिंग करने जा रही है तो ये सुनि‍श्चिैत कर लेना बहुत जरूरी है कि मां बनने के लिए आप शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार है या नही.

क्योंकि प्रैग्नेंसी किसी भी महिला के लिए अनमोल पल होता है. इस दौरान प्रैग्नेंट महिलाओं को सभी से तरह-तरह की सलाह भी मिलती रहती हैं, जैसे ये मत खाओ, वो मत खाओ, यहां मत जाओ, ऐसे में मत उठो और पता नहीं क्या-क्या. वैसे राय देना गलत नहीं है, लेकिन कई बार अलग-अलग राय के चक्कर में प्रैग्नेंट महिला उलझन में आ जाती हैं. खासतौर से वो महिलाएं, जो पहली बार मां बनने जा रही हैं.
लेकिन कुछ बातों की जानकारी एक प्रैग्नेंट महिला को भी पता होनी चाहिए ताकि किसी के ना होने पर वह अपना सही से ध्यान रख सके और उसका सही से पालन कर सके नही तो आप सुखद क्षण को आप परेशानी में भी बदल सकती है. इसलिए इस लेख में जानिए कि प्रैग्नेंसी में क्या करना चाहिए क्या नही, साथ ही अपने आहार में किन चीजों को सम्मलित करना चाहिए और किन चीजों को नही.

प्रैग्नेंट होने पर क्या ना करें-

प्रैग्नेंट महिलाओं को कुछ उठते बैठते चलते फिरते वक्त बहुत चीजों का ध्यान रखना पड़ता है.

प्रैग्नेंसी में ज्यादा ना झुकें –

प्रैग्नेंसी के दौरान ज्यादा न झुकें क्योंकि यह गर्भ में पल रहें शिशु के लिए हानिकारक हो सकता है.
इसके लिए चाहे आपकी पहली, दूसरी या तीसरी तिमाही ही क्यों ना हो आप ध्यान रखें कि आप ज्यादा न झुकें. ऐसा करने से गर्भपात, वक्त से पहले प्रसव या फिर गर्भ में पल रहे शिशु को हानि पहुंच सकती है. अगर आप झुक भी रही हैं, तो झटके से न झुके.

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प्रैग्नेंसी ने ज्यादा देर तक खड़ी ना रहे –

प्रैग्नेंसी के दौरान ज्यादा देर तक या एक ही स्थिति में खड़े न रहें, ऐसा करने से परेशानी हो सकती है. क्योंकि ऐसा करने से आपके पैरों में सूजन आ सकती है.
साथ ही ज्यादा देर तक खड़े रहने से प्रैग्नेंसी में समस्या, वक्त से पहले प्रसव या फिर गर्भ में ही शिशु की मृत्यु हो सकती है.

भारी चीजें न उठाएं – प्रैग्नेंसी के दौरान भारी चीजें उठाने से जितना हो सके उतना बचें. क्योंकि प्रैग्नेंसी के दौरान भारी चीजों को उठाने से गर्भपात का खतरा हो सकता है.

प्रैग्नेंसी में अपने आहार में किन चीजों को शामिल करें.

लगभग हर प्रैग्नेंट महिला यही चाहती है कि जन्म के समय उसका बच्चा स्वस्थ और तंदुरुस्त हो. इसलिए प्रैग्नेंट महिलाएं अपने आहार में कई तरह के नई चीजों को शामिल करती हैं. इस लेख में हम प्रैग्नेंसी के दौरान खान-पान के संबंध में जानकारी दे रहे हैं.

डेयरी उत्पादों का सेवन करें-

शिशु के विकास के लिए ज्यादा मात्रा में प्रोटीन और कैल्शियम की जरूरत होगी. एक प्रैग्नेंट महिला के शरीर को रोजाना 1,000mg कैल्शियम की जरूरत होती है इसलिए, आप अपने खान-पान में डेयरी उत्पादों को जरूर शामिल करें. इसके लिए आप डाइट में दही, छाछ व दूध आदि जैसे डेयरी उत्पाद को शामिल करें.
क्योंकि यह प्रैग्नेंट महिला और गर्भ में पल रहे शिशु के विकास के लिए फायदेमंद होते हैं. साथ ही यह ध्यान रखें कि आप सिर्फ पॉश्चरीकृत डेयरी उत्पादों का ही इस्तेमाल करें.

ब्रोकली और हरी पत्तेदार सब्जियां का सेवन करें-

प्रैग्नेंट महिलाओं को अपने खान-पान में हरी पत्तेदार सब्जियां जरूर शामिल करनी चाहिए. इसलिए आप अपने डाइट में पालक, पत्तागोभी, ब्रोकली (एक प्रकार की गोभी), आदि सब्जियां जरूर खाएं. पालक में मौजूद आयरन प्रैग्नेंसी के दौरान खून की कमी को दूर करता है.

सूखे मेवों का सेवन करें-

प्रैग्नेंसी में सूखे मेवों को भी अपने खान-पान में जरूर शामिल करें.
क्योंकि मेवों में उपस्थित कई तरह के विटामिन, कैलोरी, फाइबर व ओमेगा 3 फैटी एसिड आदि पाए जाते है जो प्रैग्नेंसी अवस्था के लिए अच्छे होते हैं.
अगर आपको एलर्जी नहीं है, तो अपने खान-पान में काजू, बादाम व अखरोट आदि को शामिल करें.
अखरोट में भरपूर मात्रा में ओमेगा 3 फैटी एसिड होता है. इसके अलावा, बादाम और काजू भी प्रैग्नेंसी में फायदा पहुंचा सकते हैं. अगर आपको एलर्जी हो तो काजू बादाम व अखरोट ना खाएं.

साबूत अनाज का सेवन करें-

प्रैग्नेंसी के दौरान साबूत अनाज को अपने आहार में जरूर शामिल करें. खासतौर के तब जब आप प्रैग्नेंसी की दूसरी और तीसरी तिमाही में ही क्योंकि की इस दौरान साबूत अनाजों का सेवन फायदेमंद होता है. इससे आपको भरपूर कैलोरी मिलती है, जो गर्भ में शिशु के विकास में मदद करती है. आप साबूत अनाज के तौर पर ओट्स, किनोआ व भूरे चावल आदि को अपने आहार में शामिल कर सकती हैं. इन अनाजों में प्रोटीन की प्रचुर मात्रा पाई जाती है. इसके अलावा, इनमें फाइबर, विटामिन-बी और मैग्नीशियम भी मौजूद होता है, जो प्रैग्नेंसी में फायदा पहुँचतें है.

फलों के जूस और फल का सेवन करें-

प्रैग्नेंसी में महिला को तरह-तरह के मौसमी फलखाने चाहिए. हो सके तो उन्हें संतरा, तरबूज व नाशपाती आदि जैसे फलों को अपने आहार में जरूर शामिल करना चाहिए. इसके अलावा आप इन फलों का जूस भी पी सकती हैं.
दरअसल एक प्रैग्नेंट महिला को अलग-अलग तरह के चार रंगों के फल खाने की सलाह दी जाती है .
वसा और कैलोरी में उच्च खाद्य पदार्थों की जगह रोज फल व सब्जियों के कम से कम पांच हिस्से खाएं. साथ ही पैकेड फ्रूट जूस का सेवन बिल्कुल ना करें.

प्रैग्नेंसी में हमें अपने आहार में क्या शामिल नही करना चाहिए.

कई सारी ऐसी चीजें हैं, जिनका सेवन प्रैग्नेंट महिलाओं को कतई नहीं करना चाहिए. क्योंकि ऐसी चीजों को खाने से प्रैग्नेंट महिलाओं को नुकसान हो सकता इसलिए इन चीजों से परहेज करना चाहिए.

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कच्चे अंडे का सेवन ना करें-

प्रैग्नेंट महिलाओं को कभी भी अधपके व कच्चे अंडे का सेवन नही करना चाहिए क्योंकि इससे सालमोनेला संक्रमण का खतरा हो सकता है. इस संक्रमण से प्रैग्नेंट महिला को उल्टी और दस्त की समस्या उत्तपन्न हो सकती है.

शराब व धूम्रपान के सेवन से बनाएं दूरी-

स्वास्थ्य के लिए नशीली चीजों का सेवन हानिकारक होता है.
खास कर प्रैग्नेंट महिलाओं को नशीली चीजों से दूरी बना कर रखना चाहिए. प्रैग्नेंट महिलाओं को शराब व धूम्रपान नहीं करना चाहिए दरअसल इसका प्रभाव सीधे गर्भ में पल रहे शिशु पर पड़ता है.
शराब व धूम्रपान के सेवन से भ्रूण के दिमागी और शारीरिक विकास में बाधा आती है, साथ ही गर्भपात होने का खतरा भी बढ़ जाता है.

कैफीनयुक्त चीजों का सेवन न करें-

प्रैग्नेंसी में चाय, कॉफी और चॉकलेट जैसी चीजों में कैफीन पाया जाता है, इसलिए इन चीजों के सेवन से बचना चाहिए साथ ही डॉक्टर भी बहुत कम मात्रा में कैफीन लेने की सलाह देते हैं.
क्योंकि ज्यादा मात्रा में कैफीन लेने से गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है तथा जन्म के समय शिशु का वजन भी कम रह सकता है. हालांकि, प्रैग्नेंसी के दौरान रोजाना 200 मिलिग्राम तक कैफीन के सेवन को सुरक्षित माना जाता है पर इससे ज्यादा मात्रा में सेवन करने से स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो सकता है.

उच्च स्तर के पारे वाली मछली व कच्चे मांस का सेवन ना करें-

प्रैग्नेंसी में मछली खाना फायदेमंद होता है, लेकिन प्रैग्नेंट महिलाओं को ऐसी मछलियों को खाने से बचना चाहिए, जिन मछलियों के शरीर में पारे का स्तर अधिक होता है. जैसे कि स्पेनिश मेकरल, मार्लिन या शार्क, किंग मकरल और टिलेफिश जैसी मछलियों में पारे का स्तर ज्यादा होता है, इसलिए मछलियों को सेवन से भ्रूण के विकास में बाधा आ सकती है. कच्चे मांस के सेवन करने से टॉक्सोपलॉस्मोसिस से संक्रमित कर हो सकती है. जिससे कि गर्भपात का खतरा बढ़ सकता है, इसलिए कभी भी कच्चे मांस का सेवन ना करें अच्छे से पका कर मांस को खाये.

प्रैग्नेंसी में कच्चा पपीता व कच्ची अंकुरित चीजों का सेवन नही करना चाहिए-

प्रैग्नेंसी में कच्चा पपीता खाना असुरक्षित होता है. कच्चे पपीते में ऐसा केमिकल पाया गया है, जिससे कि भ्रूण को नुकसान पहुंचा सकता है. इसलिए, प्रैग्नेंसी में कच्चा पपीता खाने से बचें.
साथ ही कच्ची अंकुरित दालों में साल्मोनेला, लिस्टेरिया और ई-कोलाई जैसे बैक्टीरिया मौजूद होते हैं, जिससे फूड पॉइजनिंग की समस्या हो सकती है. इसके कारण प्रैग्नेंट महिला को उल्टी और दस्त की शिकायत हो सकती है.

क्रीम दूध से बनी पनीर का सेवन ना करें-

प्रैग्नेंट महिला को क्रीम दूध से बनी हुई पनीर का सेवन नही करना चाहिए.
दरअसल इस तरह के पनीर को बनाने में पॉश्चरीकृत दूध का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, क्रीम दूध में लिस्टेरिया नाम का बैक्टीरिया मौजूद होता है. इस बैक्टीरिया की वजह से गर्भपात व समय से पहले प्रसव का खतरा बढ़ जाता है.

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बिना धुली हुई सब्जियां और फलों के सेवन से बचना चाहिए-

प्रैग्नेंट महिलाओं की किसी भी फल और सब्जी को खाने से पहले उसे अच्छी तरह धोना चाहिए क्योंकि बिना धुली हुई सब्जी और फल में टॉक्सोप्लाज्मा नाम का बैक्टीरिया मौजूद होता है, जिससे शिशु के विकास में बाधा आ सकती.

मां की सेहत में छिपा बच्चे की सेहत का राज 

गर्भ में पल रहे शिशु की सेहत मां की सेहत पर निर्भर करती है, इसलिए प्रैग्नेंसी के दौरान मां का अपनी सेहत का खास खयाल रखना और स्वास्थ्यवर्धक चीजों को अपनी डाइट में शामिल करना बेहद जरूरी है. इन दिशानिर्देशों का पालन कर प्रैग्नेंट एक हेल्दी शिशु को जन्म दे सकती है:

प्रैग्नेंसी के दौरान क्या करें

अच्छा खाएं

आप प्रैगनैंट हैं इस का यह अर्थ नहीं है कि आप को अब 2 लोगों के लिए खाने की जरूरत है. आप को बस ऐसा आहार लेना है जिस से आप को अधिक से अधिक पोषण मिले. प्रैग्नेंसी के दौरान शरीर को पोषण की बहुत आवश्यकता होती है. आप हेल्दी रहेंगी तभी हेल्दी बच्चे को जन्म दे पाएंगी.

– खासतौर पर प्रोटीनयुक्त चीजों को अपनी डाइट में शामिल करें. इन में दाल, अंकुरित अनाज, दूध एवं दूध से बने पदार्थ, अंडा, मीट आदि को रोज की डाइट में जरूर शामिल करें ताकि शरीर में प्रोटीन की कमी न रहे.

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– हेल्दी प्रैगनैंसी के लिए आयरन को भोजन में शामिल करना बेहद जरूरी है. इसलिए हरी पत्तेदार सब्जियां, अनार, फलियां, लीची, किशमिश, अंजीर जैसी चीजों का रोज सेवन करें. इन के अलावा विटामिन सी का प्रयोग जरूर करें ताकि शरीर में आयरन की कमी न हो सके.

– दिन में 3 बार बड़ी मात्रा में भोजन लेने के बजाय 5-6 बार थोड़ाथोड़ा और संतुलित आहार लेना ज्यादा बेहतर होगा. ध्यान रहे किसी भी समय के भोजन को न छोड़ें. हलके-फुलके नाश्ते के जरीए अपनी ऊर्जा का स्तर बनाए रखें.

– होने वाले शिशु की हड्डियों और दांतों के विकास के लिए कैल्सियम की मात्रा अधिक लें. ऐसा करना आप को पीठ और कमर के दर्द से भी छुटकारा दिलाएगा और ब्रैस्ट फीडिंग के लिए भी तैयार करेगा. इस के लिए दूध व दूध की बनी चीजें, फलियां, हरी पत्तेदार सब्जियां खासतौर से पालक, मूंगफली आदि को डाइट में शामिल करें.

ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं

– वैसे तो पानी का ज्यादा से ज्यादा सेवन सभी के लिए जरूरी है, लेकिन प्रैग्नेंट होने पर कम पानी पीने का रिस्क बिलकुल नहीं लें. प्रैगनैंसी के वक्त खुद और होने वाले बच्चे को हेल्दी रखने के लिए दिन में कम से कम 8-10 गिलास पानी जरूर पीएं.

– पानी शरीर की नमी बरकरार रखता है, जिस से शरीर का तापमान भी संतुलित रहता है.

– कुछ महिलाओं को लगता है कि प्रैग्नेंट होने पर व्यायाम या ऐक्सरसाइज नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करना प्रैग्नेंट महिलाओं के लिए खतरनाक हो सकता है, लेकिन यह गलत है. डाक्टर की सलाह पर व्यायाम जरूर करें और नियमित करें.

– अच्छा व्यायाम ताकत और सहनशक्ति देता है. इस शक्ति की जरूरत आप को प्रैग्नेंसी के दौरान बढ़ते वजन को संभालने और प्रसवपीड़ा के दौरान होने वाले शारीरिक तनाव को झेलने के दौरान होगी. यह शिशु के जन्म के बाद वजन घटाने में भी आप की सहायता करता है.

– व्यायाम ऐक्टिव बनाता है और प्रैग्नेंसी के अवसाद को दूर करने में भी मदद करता है.

– मौर्निंग वाक या ईवनिंग वाक करें.

– घर के छोटेमोटे काम करना भी फायदेमंद होता है.

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वैक्सिनेशन का रखें खयाल

– प्रैगनैंसी के दौरान लगने वाला कोई भी टीका लगवाना न भूलें. अगर कुछ दिन लेट हो जाती हैं तो डाक्टर से परामर्श ले कर तुरंत लगवा लें.

साफ-सफाई रखनी जरूरी

– प्रैग्नेंट होने पर आप की जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं, क्योंकि आप को अपने साथसाथ अपने होने वाले बच्चे का भी ध्यान रखना होता है. बाकी सभी चीजों की तरह ही प्रैगनैंसी के दौरान साफसफाई रखना बहुत जरूरी है. साफसफाई न रखने से संक्रमण हो सकता है जो सीधा आप के स्वास्थ्य पर असर डालता है.

– घर की रोज सफाई करवाएं.

– रोज धुले कपड़े पहनें.

– रोज नहाएं और त्वचा में नमी बनाए रखें.

– बैडशीट को हर हफ्ते चेंज करें.

– धूलमिट्टी से दूर रहें.

आराम जरूर करें

प्रैग्नेंसी के शुरुआती और आखिरी दिनों में आराम करने की बेहद जरूरत होती है. आप खुद को जरूरत से ज्यादा न थकाएं. दोपहर में झपकी आपके और आप के बच्चे दोनों के लिए लाभदायक रहेगी. कामकाज में किसी और की मदद लें.

इन चीजों से बचाव करें

– कच्चा दूध, पानी प्रैग्नेंट के लिए हानिकारक होगा.

– ज्यादा वसा वाले खाने से दूर रहें.

– एकसाथ या एक बार में अधिक पानी न पीएं. इस से पेट में दर्द हो सकता है. शरीर में भारीपन भी महसूस होगा.

प्रैगनैंसी के पहले महीने में इन चीजों से बचें:

– हील से दूर रहें.

– लंबी यात्रा न करें.

– भारी चीजें न उठाएं.

– ज्यादा झुकने से बचें.

– तनाव से दूर रहें.

– शराब और धूम्रपान का सेवन भूल कर भी न करें. इस से प्रैग्नेंट के साथसाथ उस के होने वाले बच्चे को भी बड़ा खतरा हो सकता है.

– कैफीन का सेवन कम करें, क्योंकि इस के अधिक सेवन से गर्भपात की भी समस्या हो सकती है.

– प्रैग्नेंट उपवास न करें.

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– नमक का अधिक मात्रा में सेवन करने से बचें.

– जंक फूड या बाहरी चीजों के सेवन से बचें.

– तेज धूप में बाहर न जाएं.

-डा. नुपुर गुप्ता, गाइनोकोलौजिस्ट ऐंड डाइरैक्टर वैल वूमन क्लीनिक, गुरुग्राम

 

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