प्ले बैक सिंगर अन्वेषा इस बार दिवाली कैसे मनाने वाली है, पढ़ें इंटरव्यू

कला के माहौल में पैदा हुई अन्वेषा को बचपन से ही संगीत के क्षेत्र में जाने की इच्छा थी, उन्होंने हिन्दुस्तानी क्लासिकल संगीत की शिक्षा 4 साल की उम्र में गुरु पंडित जयंत सरकार, जो पटियाला घराने के गुरु और पंडित अजय चक्रवर्ती के शिष्य रहे, उनसे लिया है. टीवी पर अन्वेषा की पहली प्रस्तुति साल 2007 में ‘वौइस् ऑफ़ इंडिया छोटे उस्ताद से किया, जब वह केवल 13 साल की थी. इसके बाद उन्होंने म्यूजिक का महा मुकाबला में भाग लिया है. बॉलीवुड संगीत के क्षेत्र में उनका पहला ब्रेक 14 साल की उम्र में गोलमाल रिटर्न्स के गीत ‘था कर के……’ से मिला, जिसके संगीतकार प्रीतम थे. गाना सुपरहिट रही, इसके बाद अन्वेषा को पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा और उन्होंने डेंजरस इश्क, राँझना, लव यू इश्क, प्रेम रतन धन पायों आदि कई फिल्मों में सुरीले संगीत से सबको सरोबार किया है. उन्होंने इंडस्ट्री के सभी बड़े संगीतकारों जैसे ए आर रहमान, अजय अतुल, इस्माइल दरबार, शंकर इशान लोय, जॉय सरकार आदि के गाने गाये है. हिंदी के अलावा उन्होंने बांग्ला, तमिल, तेलगू मलयालम, गुजराती, राजस्थानी, भोजपुरी और मराठी में भी गाने गाएं है.

म्यूजिक में आने की प्रेरणा

अन्वेषा कहती है कि मैं सेकंड जेनेरेशन की संगीतज्ञ हूँ, मेरे परिवार में कई लोग संगीत, कला और साहित्य से जुड़े है. इससे घर में संगीत पर चर्चा होती रहती है, मैं सुर के साथ ही पैदा हुई और इसे निखारने के लिए मैंने शिक्षा ली है. मेरी माँ गाती थी, उनका नाम मीता दत्ता गुप्ता है. प्रोफेशनली वह गा चुकी है. उन्होंने संगीत की शिक्षा भी ली है, इसलिए बचपन में उनको संगीत की रियाज़ करते देखती थी, ऐसे में बहुत छोटी उम्र से मैं उन्हें फोलो करती रहती थी, उनके जैसे आवाज निकालती थी. थोड़ी बड़ी होने पर उन्होंने मुझे गुरु के पास ले गए, ताकि सुर की पकड़, संगीत की बारीकियों को मैं सीख सकूँ. मैंने 4 साल की उम्र से गुरु से संगीत की तालीम लेनी शुरू की. क्लासिकल संगीत गाते हुए मुझे फ़िल्मी और हर तरह के पॉप संगीत की तरफ रुझान बढ़ने लगा. उस समय पॉप के क्षेत्र में यहाँ कुछ नहीं था, अब कई सारी संस्थाएं पॉप के क्षेत्र में भी आ चुकी है.

संगीत बना मेरा पैशन

वह आगे कहती है कि इससे मुझे प्ले बैक सिंगिंग में बड़े सिंगर्स के गाने के तरीके को सुनना और सीखना अच्छा लगने लगा था. मेरे अंदर लाइट म्यूजिक के प्रति प्यार बढ़ता गया और मेरा झुकाव इंडी पॉप की तरफ हो गया. इसके बाद रियलिटी शो में जाने की कोशिश करने लगी. ऑडिशन दिया, बच्चों की रियलिटी शो ‘वौइस् ऑफ़ इंडिया, छोटे उस्ताद में आने के बाद मैं सबकी नजर में आ गई, क्योंकि वहां लोगों ने मुझे चुना और मैं वर्ल्डवाइड जानी गई. शो के ख़त्म होने के 25 दिनों के बाद मुझे पहला प्ले बैक मिल गया था, जो संगीतकार जतिन ललित के साथ था. इसके बाद से मेरा किसी प्रोजेक्ट में आना आसान हुआ. केवल हिंदी फिल्मों में ही नहीं, रीजनल फिल्मों में भी गाने का अच्छा अवसर मिल रहा है.

था स्टेज फियर

अन्वेषा हंसती हुई कहती है कि पहली परफॉरमेंस मैंने 4 साल की उम्र में दिया था और पूरी गाने के दौरान मैं माथा नीची कर गाई थी, बचपन में स्टेज का डर बहुत था, इसे दूर करने में काफी साल लगे है, लेकिन रियलिटी शो से मेरे अंदर कॉन्फिडेंस आया और मैं वहां सामने देखकर गाना गा सकी.

तकनीक के खिलाफ नहीं

तकनीक की मदद से आज हर कोई अच्छा गा सकता है, ऐसे में प्ले बैक सिंगर की भूमिका को लेकर अन्वेषा चिंतित है. वह कहती है कि मैं तकनीक के खिलाफ नहीं हूँ, समय के साथ चलना जरुरी है. मैं अगर नए ज़माने के तकनीक का सहारा लेकर गाने वाले के बारें में सोचूं, तो मेरा ग्रोथ रुक जायेगा. ये सही है कि सालों की संगीत साधना के बाद मैं यहाँ तक पहुंची हूँ और अपना एक मुकाम पाई है, मुझे अपनी मेहनत और लगन पर भरोसा है. अगर आप की नीव मजबूत है, तो कोई आपको हिला नहीं सकता. पहले जब तकनीक नहीं थी, तब भी गायकों में राजनीति होती थी, लेकिन तब अलग हुआ करती थी. आज की तारीख में दुनिया में घटने वाले सभी चीजें सोशल मिडिया पर आसानी से मिल जाती है, लोग ओवर लोड हो चुके है और सभी एक दूसरे की नक़ल करने में लगे है. हर किसी को स्टार बनना  है और ये समाज के लिए अनहेल्दी परिस्थिति है, जिसका असर समाज पर पड़ रहा है. इनफार्मेशन की ओवर लोड से व्यक्ति जितना खुद को बचा सकता है, उतना ही उसके लिए अच्छा होता है. बहुत लोगों को लगता है कि तकनीक का प्रयोग कर वे आसानी से गा सकते है, लेकिन मेरे हिसाब से तकनीक का प्रयोग कर किसी की टैलेंट को अपमानित करना ठीक नहीं. तकनीक का गलत प्रयोग करना भी ठीक नहीं, टैलेंट की कद्र जितनी पहले होती थी, उतनी ही आज भी होनी चाहिए. मेहनत की वैल्यू केवल गायिकी में ही नहीं, हर क्षेत्र में है, लेकिन गलत प्रयोग करने वालों का इलाज कुछ नहीं है. इसके साथ ही सबको आगे बढ़ना है.

मनी मेकिंग डिवाइस

रियलिटी शोज अच्छा मंच देती है, लेकिन कुछ लोग रियलिटी शोज करने के बाद गायब हो जाते है या शोज करते रहते है, आप की राय इस बारें में क्या है? अन्वेषा कहती है कि मंच मिलना एक बड़ी बात होती है, आज कई लोग काफी टेलेंटेड भी है, लेकिन शोज की संख्या इतनी अधिक है कि टैलेंट को याद रखना मुश्किल हो रहा है. इतने सारे डांस रियलिटी शोज, सिंगिंग शोज है कि एक सीजन के बाद तुरंत दूसरी शोज शुरू हो जाती है, ऐसे में आज ये एक व्यवसाय हो चुका है, पहले जो प्रतिभा की खोज का एक इमानदार एप्रोच था, आज वह नहीं है. आज के रियलिटी शोज मनी मेकिंग डिवाइस हो चुके है. टैलेंट को खोजने के लिए अगर सही प्रयास है, तो उसमे समय लगता है. हर थोड़े दिन में टैलेंट तैयार नहीं होते, क्योंकि इसके लिए बहुत मेहनत, समय और लगन की जरुरत होती है. अगर इतने सारे टैलेंट है, तो वे बाद में किसी को दिखते क्यों नहीं है, म्यूजिक कंपोजर क्या उन्हें बुलाकर नए गाने देते है? ये मेरा भी प्रश्न है, जिसका उत्तर मिलना आसान नहीं.

किये काफी संघर्ष

अन्वेषा अपनी संघर्ष के बारें में कहती है कि जब मैं संगीत के क्षेत्र में मेहनत कर रही थी, तो एक गाने की ऑफर के लिए बहुत इंतज़ार करना पड़ता था. इन्टरनेट तब इतना स्ट्रोंग नहीं था. इसलिए किसी संगीतकार तक पहुंचना आसान नहीं था. आज के गायक कलाकारों के पास हर तरह की सुविधा उपलब्ध है, वे सोशल मीडिया के किसी भी प्लेटफॉर्म पर अपनी आवाज रिकॉर्ड कर डाल सकते है. वे एक इंडिपेंडेंट सिंगर या चैनेल भी बना सकते है, जिसे संगीतकार नोटिस करते है और उन्हें काम मिलता है. सोशल मीडिया से कई बच्चे आज संगीत के क्षेत्र में आ रहे है, इन्टरनेट उनके लिए वरदान है, कई सरे कंपोजर ऐसे है जो संगीत के लिए फिल्म इंडस्ट्री पर डिपेंडेंट नहीं है, जो एक अच्छी बात है. मैंने तो अभी मेरा इंडिपेंडेंट म्यूजिक जोन शुरू किया है, जिसमे सोंग बालकनी को लोगों ने काफी पसंद किया.

बढाएं संगीत का ज्ञान

किसी गायक कलाकार को शस्त्रीय संगीत के सीखने को लेकर अन्वेषा कहती है कि कैरियर के पहले पडाव में मैंने देखा है कि शास्त्रीय संगीत की तालीम के साथ आने वाले कलाकार को एक सम्मानित दृष्टी से देखा जाता था, लेकिन समय के साथ – साथ संगीत में काफी बदलाव आया है. आज थोड़े पॉप संगीत को अधिक महत्व दिया जा रहा है और इसमें शास्त्रीय संगीत सीखना जरुरी नहीं होता, लेकिन हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत अपने आप में काफी रिच है, इसकी क़द्र भी है. इसलिए संगीत के ज्ञान को बढाने के लिए क्लासिकल संगीत को सीखना जरुरी होता है, जिसमे संगीत की सभी बारीकियों को आसानी से समझा जा सकता है.

खुद को रखे शेप में

इतने सारे टैलेंट के बीच में खुद को प्रूव कर टिके रहना कितना मुश्किल होता है? अन्वेषा कहती है कि मैं खुद को खुशनसीब समझती हूँ, क्योंकि मुझे अच्छा काम मिल रह है. उस दिशा में अभी अधिक एफर्ट नहीं लगाना नहीं पड़ता. मैं खुद को मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से हेल्दी रखना चाहती हूँ. इससे किसी भी उतार – चढ़ाव को आसानी से झेला जा सकता है, नहीं तो बहुत अधिक तनाव में जीना पड़ता है. क्रिएटिव लोग अधिक सेंसेटिव होते है और बहुत जल्दी तनावग्रस्त हो जाते है. खुद को प्रेजेंटेबल रखने के लिए मैं योगा, वर्कआउट और डांस करती हूँ.

हूँ फॅमिली पर्सन

अन्वेषा का कहना है कि समय मिलने पर मैं कुछ समय तक चुप रहना पसंद करती हूँ, कुछ नहीं करती. क्योकि साइलेंस रहने से मैं खुद को आगे के लिए तरोताजा करती हूँ. उसे मैं एन्जॉय भी करती हूँ. लॉकडाउन के समय मैंने काफी पुरानी घूल जमी किताबों को निकाल कर पढ़ी थी, जो बचपन की आदत थी. मैं काम से वापस आने के बाद परिवार के साथ ओटीटी प्लेटफॉर्म पर फिल्में देखना पसंद करती हूँ और पूरे दिन में एक भोजन उनके साथ करती हूँ.

सेलिब्रेट करना जरुरी

अन्वेषा त्योहारों में सेलिब्रेशन को अधिक पसंद करती है, क्योंकि इसमें सभी साथ मिलकर इसे मनाते है, जिससे व्यक्ति फिर से तरोताजा महसूस करते है. अधिकतर त्योहारों में बाहर शोज होते है, लेकिन इस बार दिवाली को परिवार के साथ मनाना पसंद है. उन्हें दिवाली पर स्वादिष्ट पकवान के साथ रंगोली बनाना बहुत पसंद है, जिसे वे खुद बनाने का प्रयास करती है.

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