मनोवैज्ञानिक सेहत पर इनफर्टिलिटी का प्रभाव

इनफर्टिलिटी या बांझपन का इलाज करा रहे दंपतियों की संख्या तेजी से बढ़ी है. इसके कई कारण है, जिसमें अनुवांशिकता, जीवनशैली का तरीका और सवाईकल म्युकस जैसी समस्याएं, फाइब्रॉयड, एंडोमेट्रियोसिस, पेल्विक इंफ्लेमेटरी जैसी परेशानियां शामिल हैं. प्रजनन का चक्र किशोरावस्था के बाद और बीसवें साल शुरू होता है. 30 की उम्र के बाद, प्रजनन क्षमता कम होने लगती है  और अंडों की संख्या कम होने के साथ-साथ अंडों की गुणवत्ता भी कम होने लगती है. इस तरह की परेशानियां, तनाव और चिंता को बढ़ाती है. इसका हानिकारक प्रभाव रिश्तों और व्यक्तिगत विकास पर पड़ता है. इस बारे में बता रही हैं डायना क्रस्टा, चीफ साइकोलॉजिस्ट, नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी.

बांझपन एक चिकित्सा स्थिति है जोकि आपके जीवन के कई पहलुओं को प्रभावित करता है. यह दूसरों के साथ आपके रिश्तों को, जिंदगी को लेकर आपके नजरिये और खुद के लिये आपकी सोच को प्रभावित कर सकता है. आप इन भावनाओं का सामना किस तरह करेंगे, वह आपके व्यक्तित्व और जीवन के अनुभवों पर निर्भर करता है. ज्यादातर लोग परिवार, दोस्तों, चिकित्सा देखभाल करने वालों और मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों के समर्थन से लाभ उठा सकते हैं. शुक्राणु, अंडा, या भ्रूण दान या गर्भकालीन वाहक जैसे बांझपन उपचार विकल्पों पर विचार करते समय, प्रजनन परामर्शदाता की सहायता प्राप्त करना विशेष रूप से सहायक हो सकता है. निम्नलिखित जानकारियां आपको यह फैसला लेने में मदद कर सकती हैं कि फर्टिलिटी संबंधी तनाव के इलाज के लिये या आपके उपचार के विकल्पों का चुनाव करने के लिये आपको प्रोफेशनल मदद की जरूरत है या नहीं.

कब दिखाएं इनफर्टिलिटी काउंसलर को?

पूरी दुनिया में बांझपन और उसके इलाज से भावनात्मक तनाव से गुजरने की वजह से, बांझपन से जूझ रहे दंपतियों को मनोवैज्ञानिक मदद प्रदान करने की सिफारिश की गई. इसके अलावा, कई सारे दंपतियों ने स्वयं भी मनोवैज्ञानिक मदद लेने की इच्छा जाहिर की है. बांझपन को जीवन में होने वाले प्रमुख तनावों में से  सबसे मुख्य कारणों में से एक माना गया है. इसे अक्सर आत्मविश्वास की कमी, वयस्क होने की तरफ कदम बढ़ाने की धारणा में व्यवधान, भविष्य के लिये योजना बनाने में असमर्थता, पहचान और दुनिया को लेकर राय में बदलाव के रूप में परिभाषित किया जाता है. साथ ही व्यक्तिगत, आपसी और सामाजिक रिश्तों में भी बदलाव के रूप में माना जाता है. बांझपन और इसके उपचार से जूझ रहे दंपतियों में तनाव और चिंता का स्तर काफी ज्यादा होता है. वैसे तो तनावपूर्ण स्थितियों में चिंता होना एक सामान्य प्रतिक्रिया है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय शोध में यह बात सामने आई कि आम आबादी की तुलना में बांझ दंपतियों में चिंता का स्तर कहीं ज्यादा होता है. प्रजनन समाधान जैसे एआरटी उपचार-संबंधी अनुभव के परिणाम अक्सर नकारात्मक भाव के रूप में आते हैं. दरअसल, गर्भधारण की अनिश्चितता के साथ-साथ उपचार की विफलताओं को लेकर निराशा की वजह से ऐसा होता है. इसके साथ ही, क्रॉनिक और गंभीर तनाव और मनोवैज्ञानिक बीमारियां, एआरटी उपचार की सफलता को काफी ज्यादा प्रभावित करती है, जिसमें फॉलो-अप संभवत: एक दुष्चक्र बना रही है.

विशिष्ट बांझपन-

तनाव के आयामों में सामाजिक चुनौतियां शामिल हैं (जैसे, अकेलापन; अलगाव महसूस होना; परिवार और दोस्तों के साथ वक्त बिताने में असहजता और तनाव महसूस होना; टिप्पणियों को लेकर संवेदनशीलता और बांझपन के रिमांडर्स), वयस्क के रूप में विकसित होने संबंधी चिंताएं (जैसे, अपनी पहचान पाने के लिये पितृत्व एक जरूरी पड़ाव और जीवन का मुख्य लक्ष्य), भावनात्मक निकटता और यौन सुख में कमी; आत्मविश्वास का कम होना. इसलिये, बांझपन से जूझ रहे दंपतियों के लिये विशेष सहायता समूहों  की जरूरत को काफी महत्व मिला है, खासकर आज के कोविड के समय में.

सहायता समूह किस तरह सहायता करने के तंत्र में मदद कर रहे हैं?

कई बार रोगियों और दंपतियों को उपचार के दौरान एक मनोवैज्ञानिक या थैरेपिस्ट के पास जाने के बारे में पूछा जाता है. हालांकि, बांझपन से जूझ रहे कई दंपति इच्छाओं को पूरा करने के क्रम में, अपनी भावनाएं प्रभावित दंपतियों से साझा करने के लिये आगे आए हैं. ऐसे में सहायता करने वाले कम्युनिटी ग्रुप एकजुट होते हैं और बांझपन के कलंक से बाहर आने में मदद कर सकते हैं. साथ ही इस ग्रुप ने अन्य दंपतियों के साथ समान अनुभवों को जानने का मौका दिया. इससे दंपतियों को यह समझने में मदद मिल सकती है कि बांझपन की समस्या से गुजरने वाले वे अकेले नहीं हैं, साथ ही यह एहसास दिलाया कि उनकी प्रतिक्रियाएं, भावनाएं और संघर्ष सामान्य हैं और इस तरह उनके अकेलेपन को कम किया.

सहायता करने के कई सारे मॉडल्स के साथ, विशेष सपोर्ट ग्रुप, तनाव के उनके कारकों से लड़ने में उनकी मदद करते हैं. सहायक मॉडल, इनफर्टिलिटी संबंधी तनाव के विभिन्न आयामों का प्रबंधन करने के साथ-साथ परेशानी के अनुरूप मदद विकसित करने में अहम भूमिका निभाता है. हालांकि, सपोर्ट ग्रुप भी गहराई में जाकर, आत्मनिरीक्षण, मूल्यांकन कर समस्या के मूल कारण का पता लगाते हैं और फिर मन को शांति मिलती है. रोगी के अनुरूप काउंसलिंग सेंटर्स, विभिन्न रोचक थैरेपीज जैसे फोकस ग्रुप चर्चा, व्यक्तिगत मूल्यांकन के जरिए उन्हें अपने डर, चिंताओं और घबराहट को बाहर निकालने में मदद करते हैं और संतुलित आहार, सोने के सेहतमंद रूटीन के साथ दंपतियों को सेहतमंद दिनचर्या बनाए रखने में मदद करते हैं. साथ ही उनकी मानसिक और शारीरिक समस्याओं को कम करते हैं.

लंबे समय तक इनफर्टिलिटी होने से दोनों ही पार्टनर में अकेलापन और टूट जाने का गंभीर अनुभव हो सकता है. बांझपन जीवन की सबसे निराशानजक समस्या है, जिसका सामना दंपति करते हैं. सेहत से जुड़ी ढेर सारी चर्चाओं और अनिश्चितताओं के साथ, यह बांझपन अधिकांश दंपतियों में भावनात्मक उथल-पुथल पैदा कर सकती है. संयोग से, बांझपन उपचार के लिये नई और ज्यादा प्रभावी तकनीकें और सहयोगी तंत्र, लगातार विकसित हो रहे हैं.

मानसिक रूप से कमजोर करती है सेल्फी लेने की आदत

आजकल लोगों के बीच, खास कर के युवाओं के बीच सेल्फी को लेकर जिस तरह की दीवानगी देखी जाती है वो हैरान करने वाला है. लोगों की ये आदत अब जानलेवा बन चुकी है. हाल ही में हुई एक स्टडी में ये बात सामने आई कि सेल्फी लोगों में कौस्मेटिक सर्जरी के लिए प्रौत्साहित करती है.

स्टडी के मुताबिक, सेल्फी लेने के बाद लोगों में मानसिक दबाव अधिक हो जाता है. ज्यादा सेल्फी लेने वाले लोग अधिक चिंतित महसूस करते हैं. उनका आत्मविश्वास कम हो जाता है और वे शारीरिक आकर्षक में कमी महसूस करते हैं. ज्यादा सेल्फी लेने वाले लोगों में अपने लुक्स को लेकर काफी हीन भावना बढ़ जाती है, ये भावना इतनी तीव्र होती है कि वो अपनी कौस्मेटिक सर्जरी कराने की सोचने लगते हैं.

इस स्टडी में करीब 300 लोगों को शामिल किया गया है.  अध्ययन में पाया गया कि किसी फिल्टर का उपयोग किए बिना सेल्फी पोस्ट करने वाले लोगों में चिंता बढ़ने और आत्मविश्वास में कमी देखी जाती है. सेल्फी लेने और उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के बाद मूड खराब होता है और इसका सीधा असर आत्मविश्वास पर पड़ता है.

स्टडी में ये भी देखा गया है कि ये मरीज सेल्फी लेने और उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के बाद अधिक चिंतित, आत्मविश्वास में कमी और शारीरिक आकर्षण में खुद को कमतर आंकते हैं. यही नहीं, जब मरीजों ने अपनी सेल्फी बार-बार ली तथा अपनी सेल्फी में बदलाव की तो सेल्फी के हानिकारक प्रभाव को महसूस किया.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें