#coronavirus: ‘अलिखित कानून’ को नजरअंदाज कर टैक्नोलौजी खरीद  

दुनिया के विकसित देशों के बीच एक अलिखित क़ानून यह है कि अन्य देशों से अगर वे कुछ खरीदते हैं तो केवल कच्चा माल ही ख़रीदते हैं. लेकिन, अब जब वायरसरूपी कोविड-19 महामारी फैली, तो इन देशों ने, मजबूरीवश, टैक्नोलौजी ख़रीदना भी शुरू कर दिया है.

विकसित देशों की वर्षों से यह परंपरा रही है कि वे किसी भी विकासशील देश से तकनीक नहीं ख़रीदते थे. विकासशील देशों से वे केवल कच्चा माल ख़रीदते थे. यदि किसी टैक्नोलौजी की ज़रूरत होती थी तो वे इंतेज़ार करते थे कि कोई यूरोपीय देश वह टैक्नोलौजी विकसित कर ले. विकासशील देशों से कच्चा माल लेकर पश्चिमी देश अपनी टैक्नोलौजी की मदद से अपने उत्पाद तैयार करते थे और फिर उन्हें विकासशील देशों को निर्यात कर देते थे.

आज जब पूरे विश्व में वायरसरूपी कोविड-19 महामारी फैली तो बहुत सी परंपराएं टूटती नजर आईं. अब यूरोपीय देश भी विकासशील देशों से ज़रूरत के उपकरण ख़रीद रहे हैं. अब वे दूसरे देशों से कच्चा माल खरीद कर अपनी टैक्नोलौजी से प्रोडक्ट विकसित करने का इंतजार नहीं कर रहे.  हाल ही में दुनिया के सबसे ताकतवर पश्चिमी मुल्क अमेरिका ने विकासशील देश भारत से बनीबनाई हाइड्रौक्सिक्लोरोक्वीन दवा आयात की. कुछ ही दिनों पहले यह ख़बर आई कि ईरान ने जरमनी और तुर्की को 40 हज़ार कोरोना टैस्टकिट निर्यात की हैं.

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दरअसल, यूरोप की अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं गैरयूरोपीय देशों के उत्पादों को घटिया समझती थीं और उन्हें सर्टिफ़िकेट नहीं देती थीं, लेकिन ईरान की कोरोना टैस्टकिट सीई को यूरोप ने सर्टिफ़ाई कर दिया है.

ऐसे में यह कहा जाना स्वाभाविक है कि गंभीर जरूरतों के चलते ये संस्थाएं या तो अपने नियमों में नरमी ले आई हैं या फिर अपनी अलिखित डील से पीछे हट गई हैं.

वैसे, अगर संविधान की बात की जाए तो दुनिया में हर देश का अपना संविधान होता है जिसके द्वारा वहां की शासन व्यवस्था चलती है. विश्व में 2 तरह के संविधानों का प्रचलन है – लिखित संविधान और अलिखित संविधान. विश्व का सबसे पहला लिखित संविधान संयुक्त राज्य अमेरिका का है, जबकि दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान भारत का है. कुछ देश ऐसे भी हैं जिनके पास अलिखित संविधान होता है, जैसे इंग्लैंड और सऊदी अरब के संविधान.

बहरहाल, कोविड-19 की मार का विकसित देशों पर बहुत बुरा असर पड़ा है. उनकी अतिविकसित स्वास्थ्य सेवाएं भी नाकाम हो गई हैं. शायद इसी वजह से वे दूसरे देशों की तरफ हाथ फैलाने को मजबूर हुए हैं.

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