डॉक्टर्स और पेशेंट के बीच मजबूत करे रिश्ते कुछ ऐसे

आये दिन डॉक्टर्स और रोगी के परिजन के बीच मारपीट अखबारों की सुर्ख़ियों में होती है, क्योंकि परिजन किसी अपने प्रियजन को आखिरी समय में डॉक्टर के पास ले जाने औरउसके ठीक होने की आस लिए जाते है, पर उसकी मृत्यु हो जाती है, जिसे वे डॉक्टर की लापरवाही समझते है. जबकि ऐसा कम ही होता है. डॉक्टर और मरीज के बीच ऐसा सम्बन्ध हमारे समाज और परिवार के लिए ठीक नहीं. आज डॉक्टर्स भी किसी गंभीर रोगी को इलाज करने से कतराते है, यही वजह है कि कई बार समय से इलाज न होने पर रोगी की मृत्यु हो जाती है. पश्चिम बंगाल, असम में आज गंभीर बीमार वाले रोगी को डॉक्टर्स इलाज नहीं करते और उन्हें किसी दूसरे राज्य में इलाज के लिए भेज देते है. जहाँ इतना सारा पैसा खर्च करने के बावजूद रोगी को इलाज देर से मिल पाती है और अधिकतर मरीज की मृत्यु हो जाती है. ये दुखद है, क्योंकि जितना कोशिश एक परिवार अपने प्रियजन को बचाने के लिए करता है, उतना ही एक डॉक्टर को भी करने की जरुरत होती है. इन संबंधों को सुधारने के लिए डॉक्टर्स और रोगी के परिजन सभी को धीरज धरने की जरुरत होती है.

मकसद है जागरूक करना

इसलिए हर साल 1 जुलाई को नेशनल डॉक्टर्स डे मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का मकसद बेहतर स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक करना और डॉक्टरों को उनकी समर्पित सेवा के लिए शुक्रिया अदा करना होता है. नेशनल डॉक्टर्स डे की शुरुआत के बारें मेंआइये जानते है.

पहला नेशनल डॉक्टर्स डे वर्ष 1991में मनाया गया था, क्योंकि दिन रात मेहनत कर एक डॉक्टर अपने मरीज को ठीक करता है. कोविड 19 में भी डॉक्टरों ने इलाज करते हुए पूरे भारत में 798 डॉक्टर्स ने अपनी जान गवाई. उस दौरानउन्होंने महीनों खुद को परिवार से दूर रखा, लेकिन वे लगे रहे. इतना ही नहीं, उन्हें आसपास के लोगों नेघर में घुसने नहीं दिया,पीपीए किट पहनकर घंटो अस्पताल में रहना और मरीजो का इलाज करना कोई आसान काम नहीं था, लेकिन उन्होंने किया और आज भी कर रहे है, जिससे करोड़ों लोगों की जान बच पाई.

बदलती सोच है जिम्मेदार

दरअसल, इस दिन डॉक्टर बिधान चन्द्र राय की जन्मदिन और पूण्यतिथि दोनों ही है. उन्हें उस समय का सबसे बेहतर डॉक्टर माना जाता था. इसलिए इस दिन को डॉक्टर्स के महत्व को याद किया जाता है. मुंबई, अपोलो स्पेक्ट्रा केइंटरनल मेडिसिन एक्सपर्ट,डॉ तुषार राणे कहते है किकुछ वर्ष पहले मरीज, डॉक्टरों को भगवान के स्वरूप मानते थे और डॉक्टर मरीज को ठीक करने के लिए अपनी जान की बाजी लगाते थे, लेकिन बदलते समय के साथ-साथ डॉक्टर और मरीज दोनों की सोच बदली है. अब डॉक्टरों को मरीज, भगवान का दर्जा नहीं देते.ये कहना भी गलत नहीं होगा कि इधर कुछ डॉक्टरों की आकांक्षाएं भी बढ़ी है.वे पहले की तरह निष्ठापूर्वक काम नहीं करते. डॉक्टर्स और मरीज के परिवार के बीच तनाव या झगड़े के मामले जो काफी बढ़ चुके है उसे कम करना आज बहुत जरुरी है. इसका मुख्य कारण डॉक्टर और मरीजों केरिश्तों के बीच संवेदनहीनता का होना है. इसे ठीक करने के तरीके निम्न है,

• डॉक्टर मरीजों की सेवा करते है इसलिए उसके अंदर सहानुभूति और करूणा के साथ मरीजों की देखभाल का गुण होना चाहिए, क्योंकि डॉक्टर-मरीज का रिश्ता पवित्र और आपसी विश्वास, सम्मान पर आधारित होता है.इसका उदाहरण कोरोना महामारी के दौरान सामने आया.कोरोना की संक्रामक बीमारी ने मरीजों के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने में डॉक्टरों के सामने कई चुनौतियां खड़ी कर दी थी, ऐसी स्थिति में मरीजों को विश्वास दिलाकर उनका इलाज करना काफी मुश्किल था, लेकिन डॉक्टरोंने इस चुनौती पूरी की है. डॉक्टरों की कडी मेहनत से ही कोरोना संक्रमण पर लगाम लग पाया.

• कोविड-19 महामारी ने डॉक्टर और मरीज के रिश्ते में भारी बदलाव लाया है. डॉक्टरों के निदान और उपचार के साथ मरीजों से बातचीत करने का तरीका पूरी तरह से बदला है. इसके अलावा महामारी के दौरान टेलीमेडिसिन एक वरदान रहा है. यह विकल्प डॉक्टर को फोन पर या वीडियो के माध्यम से संवाद करने, मरीज की समस्या के बारे में जानने, उसके चेहरे के भाव, दृश्य संकेतों और शरीर की भाषा पर ध्यान देने और फिर उपचार के अगले कदम पर निर्णय लेने की अनुमति दिया है.इससे मरीजों को कोरोना संक्रमण के जोखिम को कम करने का एक अनोखा तरीका रहा. वे केवल अति आवश्यक होने पर ही अस्पताल गए. ये तभी संभव हो पाया, जब डॉक्टर्स और रोगी के बीच एक अच्छा तालमेल बैठा, जिससे उनकी जरूरतों और उनके समग्र स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद मिली.

• डॉक्टर के अच्छे व्यवहार से रोगी की बीमारी आधी हो जाती है. इलाज के दौरान चिकित्सक के प्रति आत्मीयता का भाव होने पर चिकित्सक के व्यवहार से मरीज मं ठीक होने का विश्वास जागृत होता है. चिकित्सक को मरीज के आर्थिक स्थति को देखते हुए सस्ता और बेहतर इलाज की व्यवस्था करना जरुरी है, ताकि गरीब मरीज दवा व इलाज के अभाव में स्वास्थ्य सेवा से बंचित न रह सके.

• डॉक्टर होने के कारण आपका शेड्यूल बिगड़ सकता है, लेकिनआपको मरीज के बीमारी को उसके लक्षणों सहित वर्णन को सुनना आवशयक है. अन्यथा वे समस्या का खुलकर नहीं बतायेंगे और डॉक्टर उचित उपचार नहीं कर पायेंगे.

• मरीज खुद कितना निर्णय ले सकता है, इसकी जानकारी पता करें, ताकि उसके इलाज की प्रक्रिया उसे समझ में आयें. मरीज की सभी शंकाओं को दूर करने का प्रयास करें. उपचार के फायदे और नुकसान की पहचान में भी उनकी मदद करे.

• डॉक्टरों को मरीज के चेहरे के भावों पर ध्यान देना चाहिए. जरूरत पड़ने पर उसे शांत करने की कोशिश करन जरुरी है. मरीज के वफादार साथी बनने की कोशिश करें. उनकी भावनाओं को सुलझाने में उनकी सहायता करें.

• मरीजों को यह जानकारी होनी चाहिए कि जटिलताएं मेडिकल प्रक्रिया का ही एक हिस्सा होती है और सरकार तथा चिकित्सकों को इन जटिलताओं जानकारी पहले ही मरीज और उनके परिजनों को उपलब्ध करवानी चाहिए इससे मरीजों तथा चिकित्सकों के बीच किसी भी प्रकार का विवाद उत्पन्न ही ना हो. दोनों के बीच आपसी सामंजस्य और विश्वास बना रहे.

इसके अलावा डॉक्टर को मरीज का स्वागत मुस्कान के साथ कर मरीज की समस्या को ध्यान से सुनना आवश्यक है,इससे उन्हें कुछ राहत मिलती है. मरीजों को इलाज के बारे में झूठी उम्मीदें देने से बचें, उन्हें बीमारी के बारे में शिक्षित करें, उपचार के दुष्प्रभावों के बारे में बताएं और सुनिश्चित करें कि वे सुरक्षित है.ऐसी चीजे मरीज के साथ विश्वास और मजबूत बंधन बनाने में मदद करेगा. मरीजों को डॉक्टरों के मेडिकल इतिहास की स्पष्ट तस्वीर देनी चाहिए, ताकि उनका आप पर भरोषा हो.

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